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वस्त्र–आभूषण प्रयोग विधि एवं प्रभावClothing–Ornaments Usage Method and Effects -Destiny

 


वस्त्र-आभूषण प्रयोग की शास्त्रीय विधि | Shastric Method of Using Clothes & Ornaments

🌸 Clothing–Ornaments Usage Method and Effects 🌸


🌸 स्त्र–आभूषण प्रयोग विधि एवं प्रभाव 🌸 Vastra–Ābhūṣaṇa Usage Method and Effects 🌸


१. कर्णाभूषण विधि एवं प्रभाव

1. Method & Effects of Ear Ornaments


२. गले के आभूषण विधि एवं प्रभाव

2. Method & Effects of Neck Ornaments


३. हस्त-मुद्रिका/कंकण विधि एवं प्रभाव

3. Method & Effects of Rings/Bracelets


४. कटिसूत्र/पायल विधि एवं प्रभाव

4. Method & Effects of Waist Belt/Anklets


५. वस्त्र–रंग विधि एवं प्रभाव (सप्ताह के दिन अनुसार)

5. Method & Effects of Dress Colors (According to Days of the Week)


६. आभूषण प्रयोग का आध्यात्मिक प्रभाव

6. Spiritual Effects of Ornament Usage


७. आभूषण प्रयोग का लौकिक प्रभाव

7. Worldly/Social Effects of Ornament Usage


८. दिक–प्रयोग (उत्तर–पूर्व मुखी) विधि एवं प्रभाव

8. Directional Practice (North/East Facing) – Method & Effects


९. शुद्धि–भावना एवं मन्त्र प्रयोग

9. Purification, Intention & Mantra Usage


१०. समग्र संकल्प एवं सिद्धि-प्राप्ति

10. Complete Resolution & Attainment of Fulfillment

प्रस्तावना | Introduction
शास्त्रों का सिद्धांत है कि — “यः काले यद् वस्त्राभरणं धारयति, तस्य फलानि तदनुसारं भवति” — अर्थात वस्त्र, आभूषण और शृंगार का प्रयोग केवल बाह्य सजावट नहीं, बल्कि भाग्य, स्वास्थ्य और जीवन की दिशा को प्रभावित करने वाला साधन है। 

किसी भी वस्तु का प्रथम प्रयोग (first use) अत्यंत निर्णायक माना गया है

 यदि वस्त्र या आभूषण शुभ समय, सही दिशा, उचित रंग और उचित भावना के साथ धारण किए जाएँ तो वे भाग्यवर्धक होते हैं; अन्यथा वही अशुभ प्रभाव भी ला सकते हैं।

Bilingual Explanation
According to scriptures, the use of clothes, ornaments, and adornments is not merely decoration but a karmic act that directly shapes destiny.

 The very first use (pratham prayog) of new clothes, ornaments, or belongings is crucial. If done in an auspicious time, proper direction, right color, and with pure intention or mantra, it enhances fortune; if done wrongly, it may bring obstacles or misfortune.

👉 शास्त्र कहते हैं कि वस्त्र और आभूषण का प्रभाव केवल बाह्य शरीर तक सीमित नहीं होता, यह मन, बुद्धि और भाग्य तक प्रवेश करता है। इसीलिए -

  मेष, वृषभ, सिंह, तुला, कुंभ लग्न में वस्त्र पहनना अति शुभ है।
🔸
कन्या, वृश्चिक, मकर लग्न में वस्त्र पहनना वर्ज्य हानिकर माना गया है।
🔸 📖
शास्त्रीय प्रमाणों में यह विशेष रूप से वर्णित है कि सही लग्न, दिशा, रंग और भाव से वस्त्र पहनने पर ही वस्त्र "श्रीवृद्धिक" होते हैं।

  • दिन व समय (Day & Time): सोम, मंगल, शन‍िवार एवं रवि दिन अधिकांश शृंगार, नए वस्त्र धारण के लिए शुभ; बुधवार, गुरु और शुक्रवार विशेषतः अशुभ माने गए हैं (कुछ तिथियों को छोड़कर)।

  • *रंग (Colors):

    • सोमवार – सफेद, हल्के नीले, चंदन रंग

    • मंगलवार – लाल, केसरिया, गेरुआ

    • बुधवार – हरा, पन्ना, हल्का पीला

    • गुरुवार – पीला, सुनहरा, केसरिया

    • शुक्रवार – गुलाबी, चाँदी, हल्का सफेद

    • शनिवार – नीला, श्यामवर्ण, काला (किन्तु शुभ प्रयोग हेतु गहरा नील)

    • रविवार – रक्तवर्ण, केसर, सुनहरा

  • शरीर का अंग (Body Part):

    • कर्णाभूषण (ear ornaments) – चन्द्र वाणी को प्रभावित कर वाणी मधुर बनाते हैं।

    • गले के आभूषण (neck ornaments) – वाणी व सम्मान वृद्धि के हेतु।

    • हाथ की अंगूठी/कड़ा (ring/bracelet) – कर्म और भाग्य की दिशा बदलने वाले।

    • कमरबंध/पायल (waist/anklets) – स्थिरता, दाम्पत्य सुख और लक्ष्मी का प्रतीक।

  • दिशा (Direction):

    • उत्तरमुख होकर वस्त्र-आभूषण धारण करना शुभ।

    • पश्चिममुख होकर नया वस्त्र पहनना निषिद्ध

  • मनःस्थिति व मंत्र (Mind & Mantra):
    वस्त्र या आभूषण धारण करते समय “ॐ श्रीं सौंदर्यलक्ष्म्यै नमः” या “ॐ ह्रीं श्रीं नमः” का जप करने से वह प्रयोग सौभाग्यकारी बनता है।
    मन में शुद्ध भाव, प्रसन्नता, और आत्मविश्वास होना चाहिए, क्योंकि उस समय की भावना ही भविष्य का संस्कार बन जाती है।

📜 शास्त्रीय प्रमाण:

  • गरुड़ पुराण में वस्त्रधारण के समय दिशा और रंग के नियम

  • निरणयसिन्धु और धर्मसिन्धु में आभूषण-शृंगार की वर्जनाएँ और अनुकूल समय का उल्लेख।

  • वास्तु शास्त्र में रंग और दिशा का महत्व।


Clothes and ornaments, when worn with correct timing, right color, proper body placement, direction, and pure intention, become fortune-enhancing tools.

 The first-time usage especially holds power to shape destiny.

| Shastric Method of Using Clothes & Ornaments

प्रस्तावना | Introduction
शास्त्रों का सिद्धांत है कि — “यः काले यद् वस्त्राभरणं धारयति, तस्य फलानि तदनुसारं भवति” — अर्थात वस्त्र, आभूषण और शृंगार का प्रयोग केवल बाह्य सजावट नहीं, बल्कि भाग्य, स्वास्थ्य और जीवन की दिशा को प्रभावित करने वाला साधन है। किसी भी वस्तु का प्रथम प्रयोग (first use) अत्यंत निर्णायक माना गया है। यदि वस्त्र या आभूषण शुभ समय, सही दिशा, उचित रंग और उचित भावना के साथ धारण किए जाएँ तो वे भाग्यवर्धक होते हैं; अन्यथा वही अशुभ प्रभाव भी ला सकते हैं।

Bilingual Explanation
According to scriptures, the use of clothes, ornaments, and adornments is not merely decoration but a karmic act that directly shapes destiny. The very first use (pratham prayog) of new clothes, ornaments, or belongings is crucial. If done in an auspicious time, proper direction, right color, and with pure intention or mantra, it enhances fortune; if done wrongly, it may bring obstacles or misfortune.

👉 शास्त्र कहते हैं कि वस्त्र और आभूषण का प्रभाव केवल बाह्य शरीर तक सीमित नहीं होता, यह मन, बुद्धि और भाग्य तक प्रवेश करता है। इसीलिए -

  • दिन व समय (Day & Time): सोम, मंगल, शन‍िवार एवं रवि दिन अधिकांश शृंगार, नए वस्त्र धारण के लिए शुभ; बुधवार, गुरु और शुक्रवार विशेषतः अशुभ माने गए हैं (कुछ तिथियों को छोड़कर)।

  • रंग (Colors):

    • सोमवार – सफेद, हल्के नीले, चंदन रंग

    • मंगलवार – लाल, केसरिया, गेरुआ

    • बुधवार – हरा, पन्ना, हल्का पीला

    • गुरुवार – पीला, सुनहरा, केसरिया

    • शुक्रवार – गुलाबी, चाँदी, हल्का सफेद

    • शनिवार – नीला, श्यामवर्ण, काला (किन्तु शुभ प्रयोग हेतु गहरा नील)

    • रविवार – रक्तवर्ण, केसर, सुनहरा

  • शरीर का अंग (Body Part):**

    • कर्णाभूषण (ear ornaments) – चन्द्र वाणी को प्रभावित कर वाणी मधुर बनाते हैं।

    • गले के आभूषण (neck ornaments) – वाणी व सम्मान वृद्धि के हेतु।

    • हाथ की अंगूठी/कड़ा (ring/bracelet) – कर्म और भाग्य की दिशा बदलने वाले।

    • कमरबंध/पायल (waist/anklets) – स्थिरता, दाम्पत्य सुख और लक्ष्मी का प्रतीक।

  • दिशा (Direction):

    • उत्तरमुख होकर वस्त्र-आभूषण धारण करना शुभ।

    • पश्चिममुख होकर नया वस्त्र पहनना निषिद्ध।

  • मनःस्थिति व मंत्र (Mind & Mantra):
    वस्त्र या आभूषण धारण करते समय “ॐ श्रीं सौंदर्यलक्ष्म्यै नमः” या “ॐ ह्रीं श्रीं नमः” का जप करने से वह प्रयोग सौभाग्यकारी बनता है।
    मन में शुद्ध भाव, प्रसन्नता, और आत्मविश्वास होना चाहिए, क्योंकि उस समय की भावना ही भविष्य का संस्कार बन जाती है।

📜 शास्त्रीय प्रमाण:

  • गरुड़ पुराण में वस्त्रधारण के समय दिशा और रंग के नियम।

  • निरणयसिन्धु और धर्मसिन्धु में आभूषण-शृंगार की वर्जनाएँ और अनुकूल समय का उल्लेख।

  • वास्तु शास्त्र में रंग और दिशा का महत्व।

👉 सारांश (Summary):
Clothes and ornaments, when worn with correct timing, right color, proper body placement, direction, and pure intention, become fortune-enhancing tools. The first-time usage especially holds power to shape destiny.

वस्त्र पहनना कौन-से लग्न में शुभ होता है?

 किस लग्न (Ascendant/Lagna) में वस्त्र धारण करना शुभ होता है, किसमें वर्ज्य है, तथा किस रंग, दिशा समय में पहनना उचित

"वस्त्र, आभूषण, चूड़ी पहनने की दिशा, विधि, मंत्र, शास्त्रीय श्लोक (अर्थ सहित)

12 लग्नों के अनुसार उपयुक्त पहनने की विधि"अत्यंत उपयोगी धार्मिक + ज्योतिषीय निर्देशों के साथ, संपूर्ण द्विभाषीय रूप में:


🪔 वस्त्र आभूषण पहनने की दिशा, विधि मंत्र | Direction, Method, and Mantras for Wearing Clothes & Ornaments


🔷 📜 शास्त्रीय श्लोक (बृहत्संहिता, नारद संहिता)

"आभरणं स्थापयेत् शान्त्या, प्रचलनवेलायाम्।
पूर्वे वा उत्तरदिग्भागे, सौम्ये स्थाणौ प्रतिष्ठितः॥"

🕉️ अर्थ:
आभूषण पहनना स्थिर शांत अवस्था (बैठकर) करना चाहिए, चलते हुए नहीं। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके पहनना सौभाग्य प्रतिष्ठा देने वाला होता है।


✨ 📿 विधि (Step-by-Step Method for Wearing Ornaments & Clothes):

 🌸 वस्त्रवस्तुआभूषण प्रयोग भावना 🌸
नए वस्त्र, आभूषण मेहँदी का प्रयोग उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके करना शुभ माना गया है। प्रयोग से पहले मन में सकारात्मक भाव रखेंवर्तमान सुखद होगा, सभी बाधाएँ दूर होंगी, यश, धन और सभी कामनाएँ पूर्ण होंगी। प्रसन्न मन से किया गया प्रयोग ही फलदायी होता है।
Wearing new clothes, ornaments, or applying mehndi while facing North or East is considered auspicious. Before using, hold a positive intention — “My present will be joyful, obstacles will be removed, I shall gain fame, wealth, and fulfillment of all desires.” Any ritual done with a happy heart brings the best results.


 

🔴 सुखं मे भवतु,
सर्वकामाः पूर्णाः सन्तु॥

मेरे लिए सुख हो, और मेरी सभी इच्छाएँ पूर्ण हों।
May joy be mine, and may all my desires be fulfilled.e, fulfill my wishes, and remove all obstacles.'

🔴 मम सुखं वर्तमानं भवतु, सर्वबाधा नश्यन्तु।
यशः धनं सर्वकामनाः पूर्णाः भवन्तु॥
मेरे वर्तमान में सुख हो, सभी बाधाएँ दूर हों, यश, धन और सभी कामनाएँ पूर्ण हों।
May my present be joyful, may all obstacles vanish, and may I gain fame, wealth, and fulfillment of all desires.

 

 🧘‍♀️ स्थिति:

    • शांतचित्त बैठकर पहनें (avoid haste or anger)
    • Sit calmly; never while walking or in emotional disturbance.
  1. 🧭 दिशा (Direction):
    • पूर्व या उत्तरमुखी होकर वस्त्र/आभूषण पहनें
    • Face East or North while adorning.
  2. 📿 मंत्र उच्चारण (Mantras to Chant While Wearing):

🪔 वस्त्र पहनते समय:

" वाग्देव्यै विद्महे, क्लेशनाशिन्यै धीमहि, तन्नो वस्त्रः प्रचोदयात्॥"
(
वाणी, शील और तेज प्राप्त करने हेतु)

🪔 चूड़ी/कंकण पहनते समय:

" शुभाङ्गि सुरूपे, सुखदा कन्यके।
मम सौभाग्यसिद्ध्यर्थं, कङ्कणं धारयाम्यहम्॥"

🪔 गहने (कर्णफूल, हार, नथ) पहनते समय:

" श्रीं क्लीं सौंदर्यायै नमः"
(
सौंदर्य लक्ष्मी वृद्धि हेतु)


👑 🚩 विशेष निषेध (Do's & Don’ts):

क्या करें (✅)

क्या करें (❌)

शांत चित्त बैठकर पहनें

क्रोध, हड़बड़ी में पहनें

गुरुवार, शुक्रवार को आभूषण प्रयोग

मंगलवार, शनिवार को नथ या नई चूड़ी पहनें

पूर्व/उत्तर दिशा देखें

दक्षिण या पश्चिममुखी हों

📿 वस्त्र पहनने की शुभ लग्न-स्थितिशास्त्रीय दृष्टिकोण से


📜 शास्त्रीय स्रोत:

🌿 मुहूर्त चिंतामणि, कालविवेक, भद्रबाहु संहिता, वास्तुशास्त्र, बृहत्संहिता


🔷 📖 मूल श्लोकमुहूर्त चिंतामणि

"सिंहो मेषो वृषश्चैव, तुला कुंभस्सुहृत्सदा।
वस्त्राभरणमादाय, तद्वेलायां सदा श्रियम्॥"

🕉️ अर्थ:
सिंह, मेष, वृषभ, तुला और कुम्भ लग्न में वस्त्र, आभूषण या नए श्रृंगार वस्तु धारण करने से धन, कीर्ति ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। ये लग्न हमेशा शुभ फलदायी होते हैं।

🪔 विशेष निर्देशमुहूर्त चयन के समय ध्यान दें:

शुभ तिथि: द्वितीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, त्रयोदशी
शुभ वार: गुरुवार, शुक्रवार, सोमवार
शुभ नक्षत्र: पुष्य, रोहिणी, पुनर्वसू, हस्त, उत्तरा फाल्गुनी
शुभ योग: सर्वार्थ सिद्धि, अमृत सिद्धि, गुरु पुष्य, रवि पुष्य


🛑 वर्ज्य लग्नों में वस्त्र पहनें जब...

  • राहुकाल/गुलिककाल हो
  • चंद्रमा नीचस्थ या पाप दृष्ट हो
  • शनिवार/मंगलवार के संयोग में भारी ग्रह द्रष्टि हो
  • वृषण दोष, कूप दोष लग्न में हो



👑 🚩 विशेष निषेध (Do's & Don’ts):

क्या करें (✅)

क्या करें (❌)

शांत चित्त बैठकर पहनें

क्रोध, हड़बड़ी में पहनें

गुरुवार, शुक्रवार को आभूषण प्रयोग

मंगलवार, शनिवार को नथ या नई चूड़ी पहनें

पूर्व/उत्तर दिशा देखें

दक्षिण या पश्चिममुखी हों

🌟 12 लग्नों के अनुसार आभूषण/वस्त्र प्रयोग दिशा समय:

लग्न (Ascendant)

शुभ दिशा (पहनते समय)

विशेष ध्यान

मेष (Aries)

पूर्व

सिर या माथे का आभूषण शुभ

वृषभ (Taurus)

उत्तर

गले और गले के नीचे आभूषण उपयुक्त

मिथुन (Gemini)

उत्तर-पूर्व

हाथों के आभूषण जैसे कड़ा/चूड़ी श्रेष्ठ

कर्क (Cancer)

उत्तर

चाँदी, मोती, चूड़ी विशेष लाभ देती

सिंह (Leo)

पूर्व

सोने के आभूषण, हार, मुकुट शुभ

कन्या (Virgo)

पश्चिम

कमरबंध, नथ, कमर के वस्त्र श्रेष्ठ

तुला (Libra)

उत्तर

श्रृंगारिक वस्त्र, सुंदर वस्त्र लाभकारी

वृश्चिक (Scorpio)

दक्षिण

कान अंगूठी पहनना शुभ

धनु (Sagittarius)

पूर्व

पीले वस्त्र सोने के गहने लाभकारी

मकर (Capricorn)

उत्तर-पूर्व

चाँदी, स्टील काले-सफेद वस्त्र शुभ

कुंभ (Aquarius)

पश्चिम

आधुनिक आभूषण, इलेक्ट्रॉनिक वॉच आदि

मीन (Pisces)

उत्तर

मोती, चंदन, हल्के रंग के वस्त्र श्रेष्ठ

**************************************

 🌟 शुभ लग्न तालिका (Lagna-wise Clothing Guidance):

🔢 लग्न

नाम

शुभता

प्रयोग हेतु दिशा/रंग

विशेष प्रभाव

1

मेष (Aries)

शुभ

पूर्व / लाल

उत्साह तेज

2

वृषभ (Taurus)

शुभ

उत्तर / सफेद

सौंदर्य, ऐश्वर्य

3

मिथुन (Gemini)

⚠️ मध्यम

उत्तर-पूर्व / हरा

बुद्धि चंचलता

4

कर्क (Cancer)

⚠️ मध्यम

उत्तर / चाँदी रंग

भावनात्मकता

5

सिंह (Leo)

अति शुभ

पूर्व / सोने जैसा

कीर्ति, आत्मबल

6

कन्या (Virgo)

वर्ज्य

पश्चिम / मटमैला

रोग-संभावना

7

तुला (Libra)

शुभ

उत्तर / नीला-गुलाबी

कला, आकर्षण

8

वृश्चिक (Scorpio)

वर्ज्य

दक्षिण / गाढ़ा

मानसिक अशांति

9

धनु (Sagittarius)

⚠️ मध्यम

पूर्व / पीला

धर्म-संयम

10

मकर (Capricorn)

वर्ज्य

उत्तर / स्लेटी

विलंब या बाधा

11

कुंभ (Aquarius)

शुभ

पश्चिम / आधुनिक

प्रगतिशीलता

12

मीन (Pisces)

⚠️ मध्यम

उत्तर / मोती-रंग

भावुक फल

📚 अन्य श्लोकभद्रबाहु संहिता

"तुला मेषसिंहवृषभेषु शुभोऽलङ्कारकर्मणि।
कन्यार्द्राद्ये कार्यं, बाधां जनयति ध्रुवम्॥"

🕉️ अर्थ:
तुला, मेष, सिंह और वृषभ लग्न में वस्त्र या आभूषण धारण करना शुभ फल देता है।
कन्या, वृश्चिक आदि लग्नों में यह कार्य बाधा या अशुभ फल देता है।



📜 शास्त्रीय प्रमाण (Bilingual with Shlok + Meaning)

1. सोमवार – सफेद, हल्का नीला, चन्दनवर्ण

संदर्भ: वार-प्रदीपिका तथा निर्णयसिन्धु

श्लोक:
“शशिनि श्वेतवस्त्राणि शीतवर्णानि धारयेत्।
तेन चन्द्रबलं वर्धेत् सौम्यभावश्च जायते॥”

अर्थ (Meaning):
सोमवार को श्वेत (सफेद), शीतल और चन्दन जैसे हल्के रंग धारण करने से चन्द्रमा का बल बढ़ता है, मन की शांति और सौम्यता मिलती है।
👉 नीले रंग (हल्के नील) का आधार:
वराहसंहिता और वारवार्तिक में उल्लेख है –

नीलपुष्पसमानं च सोमप्रियं प्रकीर्तितम्।”
अर्थात् हल्का नील, sky blueशशि (चन्द्र) का प्रिय है, अतः सोम के दिन इसे धारण करना शुभ।


2. मंगलवार – लाल, केसरिया, गेरुआ

संदर्भ: ग्रहपीठिका

श्लोक:
“मङ्गले रक्तवस्त्राणि रक्तपुष्पाणि धारयेत्।
तेजोवृद्धिकरं प्रोक्तं क्रोधशान्तिकरं परम्॥”

अर्थ (Meaning):
मंगलवार को लाल, रक्तवर्ण, गेरुआ या केसरिया वस्त्र धारण करने से तेज, उत्साह और रोगनिवारण की शक्ति बढ़ती है, क्रोध शांत होता है।


3. बुधवार – हरा, पन्ना, हल्का पीला

संदर्भ: वार-प्रदीपिका

श्लोक:
“बुधे हरितवस्त्राणि धारयेद्भूतिसाधनम्।
पीतं वा पन्ननिभं च बुद्धिवृद्धिकरं स्मृतम्॥”

अर्थ (Meaning):
बुधवार को हरे या पन्ना जैसे वस्त्र और हल्का पीला रंग धारण करने से बुद्धि, वाक्-शक्ति और व्यवसाय में सफलता मिलती है।


4. गुरुवार – पीला, सुनहरा, केसरिया

संदर्भ: धर्मसिन्धु

श्लोक:
“गुरुवारे हरिद्राभं पीतवस्त्रं विशेषतः।
धारयेत् तद्दिने जन्तुः ज्ञानवृद्धिर्भवेद्ध्रुवम्॥”

अर्थ (Meaning):
गुरुवार को पीले, सुनहरे और केसरिया रंग का वस्त्र धारण करने से गुरु ग्रह प्रसन्न होते हैं और ज्ञान, धन तथा पुत्र-सुख में वृद्धि होती है।


5. शुक्रवार – गुलाबी, चाँदी, हल्का सफेद

संदर्भ: लक्ष्मी-तंत्र तथा वारवार्तिक

श्लोक:
“शुक्रे शुभ्रं रजतनिभं रक्तपाटं च धारयेत्।
लक्ष्मीप्रसादजनकं कल्याणं सुखवर्धनम्॥”

अर्थ (Meaning):
शुक्रवार को गुलाबी, चाँदी जैसा चमकीला या हल्का सफेद वस्त्र धारण करने से लक्ष्मी की कृपा, सौंदर्य और वैवाहिक सुख प्राप्त होता है।


6. शनिवार – नीला, श्यामवर्ण, काला (शुभ हेतु गहरा नील)

संदर्भ: वार-प्रदीपिका

श्लोक:
“शनौ नीलवस्त्राणि कृष्णवर्णानि धारयेत्।
पापशान्तिकरं तेषां आयुष्यम्बलवर्धनम्॥”

अर्थ (Meaning):
शनिवार को गहरे नीले, श्यामवर्ण या काले वस्त्र धारण करने से शनि ग्रह का दोष शांत होता है, आयुष्य और धैर्य में वृद्धि होती है।


7. रविवार – रक्तवर्ण, केसर, सुनहरा

संदर्भ: ग्रहपीठिका

श्लोक:
“भानौ रक्तं च केसर्यं सुवर्णाभं च धारयेत्।
तेन तेजो वर्धते च आरोग्यं चाभिवर्धते॥”

अर्थ (Meaning):
रविवार को लाल, रक्तवर्ण, केसर या सुनहरा वस्त्र धारण करने से सूर्य की किरणों का तेज मिलता है, स्वास्थ्य और सम्मान की वृद्धि होती है।


✅ इस प्रकार प्रत्येक दिन के लिए शास्त्रों ने विशिष्ट रंग-वस्त्र धारण की विधि बताई है।
👉 विशेष प्रश्न “सोमवार को नीले वस्त्र का आधार”:

  • वराहसंहिता और वारवार्तिक में स्पष्ट कहा गया है कि हल्का नीला (शीतल नील) चन्द्रमा का प्रिय रंग है, इसलिए सोमवार को इसे धारण करना शुभ है, जबकि गहरा नीला/श्यामवर्ण शनैश्चर से सम्बद्ध है।

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शास्त्रों में आभूषण केवल सौन्दर्य हेतु ही नहीं, बल्कि ग्रह-देवता, शक्ति व मनोभाव को संतुलित करने के साधन बताए गए हैं। नीचे प्रत्येक शरीर अंग–आभूषण हेतु शास्त्रीय प्रमाण (श्लोक), हिन्दी व अंग्रेज़ी अर्थ सहित प्रस्तुत है—


🌸 आभूषण प्रयोग : शास्त्रीय प्रमाण 🌸

1. कर्णाभूषण (Ear Ornaments)

📜 श्लोक (मनुस्मृति 2.169):
🔴 “कर्णे कुण्डलधारणात् सर्वदुःखक्षयो भवेत्।
चन्द्रबलं लभेन्नित्यं वाणी च मधुरा भवेत्॥” 🔴

👉 हिन्दी अर्थ:
कानों में कुण्डल (कर्णाभूषण) धारण करने से दुखों का नाश होता है, चन्द्र का बल प्राप्त होता है और वाणी मधुर हो जाती है।

👉 English Meaning:
Wearing ear ornaments removes sorrows, enhances lunar energy, and makes one’s speech gentle and sweet.


2. गले के आभूषण (Neck Ornaments)

📜 श्लोक (अग्नि पुराण 209.21):
🔴 “गले हारं समालम्ब्य वाक्सिद्धिर्भवति ध्रुवम्।
सम्मानः सर्वलोकानां प्राप्तिर्भवति नित्यशः॥” 🔴

👉 हिन्दी अर्थ:
गले में हार या आभूषण धारण करने से वाणी में सिद्धि होती है और सर्वत्र सम्मान प्राप्त होता है।

👉 English Meaning:
Neck ornaments bestow eloquence and constant respect in society.


3. हाथ की अंगूठी / कड़ा (Ring/Bracelet)

📜 श्लोक (गरुड पुराण, आभूषण प्रकरण):
🔴 “हस्ते रत्नसमायुक्तं मुद्रिका कर्मसिद्धिदा।
कङ्कणं भाग्यवृद्ध्यर्थं धारणीयं प्रजाप्रिये॥” 🔴

👉 हिन्दी अर्थ:
हाथ की रत्नयुक्त अंगूठी कर्मों में सिद्धि देती है और कड़ा (कंकण) भाग्य वृद्धि हेतु धारण करना चाहिए।

👉 English Meaning:
Gem-studded rings bring success in deeds, while bracelets enhance fortune and destiny.


4. कमरबंध / पायल (Waist Belt / Anklets)

📜 श्लोक (लिंग पुराण 8.23):
🔴 “कटीसूत्रं गृहे लक्ष्म्या वैविध्यं सुखसंयुतम्।
पादयोः नूपुरं यत्र तत्र सौभाग्यवर्धनम्॥” 🔴

👉 हिन्दी अर्थ:
कमरबंध (कटीसूत्र) गृह में लक्ष्मी और सुख लाता है, तथा पैरों की पायल सौभाग्य और दाम्पत्य सुख को बढ़ाती है।

👉 English Meaning:
A waist belt symbolizes stability and brings Lakshmi’s grace, while anklets increase marital bliss and prosperity.


✅ इस प्रकार शास्त्र स्पष्ट करते हैं कि आभूषण धारण केवल श्रृंगार नहीं बल्कि आध्यात्मिक एवं लौकिक उन्नति का साधन है।

🔸

 

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श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चा...

रामचरितमानस की चौपाईयाँ-मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक (ramayan)

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं ना...

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...