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हरतालिका तीज : पूजन मंत्र: रक्षा बन्धन,कथा ,महत्व,दशराज्ञ युद्ध

 

हरतालिका  : पूजन मंत्र: कथा महत्व

भाद्र शुक्ल तृतीया - समग्र भारत में अलग अलग नाम से विख्यात है ।
पुराणों में भी हरि काली , हस्त गोरी , स्वर्ण गोरी , कोटेश्वरी आदि नाम से वर्णित व्रत।
महाराष्ट्र एवं शेष उत्तर भारत में हरतालिका तीज का पर्व | गौरी तृतीया (गणगौर –राजस्थान) - मंगला गौरी देवी नाम से मंगला देवी के स्वरूप की पूजा होती है | कुंडली में मंगल के अशुभ प्रभाव या मांगलिक दोष के लिए की जाती है |

  •  सांस्कृतिक प्रसार :
    - उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश (पूर्वांचल), बिहार में यह व्यापक प्रचलित है।
    - चंपावत, मां पूर्णागिरि धाम के सामवेदी ब्राह्मणों का विशेष पर्व है।
    - महाराष्ट्र में हरतालिका तीज, राजस्थान में गणगौर (गौरी तृतीया), दक्षिण भारत में स्वर्ण गौरी हब्बा के रूप में यह पर्व
    पार्वती तपस्या, अखण्ड सौभाग्य हेतु।

स्वर्ण गौरी - (कर्नाटक, आंध्र, तमिलनाडु) गौरी हब्बा-पर्व अति महत्वपूर्ण है - नारियां सौभाग्य , सुखी वैवाहिक जीवन हेतु, देवी गौरी के आशीर्वाद के लिये स्वर्ण गौरी व्रत का करती हैं।
मान्यता - तीज के दिन देवी गौरी अपने मायके (माता पिता के घर) आती हैं। अगले दिन भगवान गणेश, उनके पुत्र, माता गौरी को पिता के या अपने घर कैलाश पर्वत पर वापस ले जाने आते हैं।
हरितालिका पूजा समय - 06:11 - 07:40 बजे तक ;uttam 10:18-13:05
प्रदोषकाल हरितालिका पूजा समय - 18:36 से 20:55 बजे तक ;
भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष तृतीया को प्रत्येक वर्ष (सूर्य चंद्र एवं नक्षत्र की विशेष स्थिति में) मनाया जाता है। सोमवार होने पर यह विशेष उपयोगी एवं सिद्ध प्रद माना गया है। व्रत विशेष रूप से अविवाहित, सौभाग्यवती या विधवा नारियों के द्वारा किया जाता है। पुरुष वर्ग के लिए भी दाम्पत्य सुख हेतु उपयोगी व्रत है। मूल रूप से इसमें शिव पार्वती के पूजन का विधान है।
उमा महेश्वर व्रत या हरतालिका व्रत के रूप में यह प्रचलित है।
व्रत फल - भगवान शिव महादेव की कृपा से इस व्रत को करने वाले स्त्री पुरुष की - वीरभद्र, महाकाल, नंदीश्वर, विनायक आदि शिव जी के गण, शिव उमा के भक्तों की रक्षा, आरोग्य, दीर्घायु, सौभाग्य, पुत्र तथा पति पत्नी में प्रेम की रक्षा करते हैं।
निराहार रहने का विधान उल्लेखित है। काले तिल और घी से 8 आठ आहुतियाँ दी जाती है। 08-08 के जोड़े से 16 सौभाग्य द्रव्य जो (सौभाग्यवती स्त्रियों के कार्य में आने वाली सामग्री) दान दी जाती है।
व्रत करने के पूर्व संकल्प हाथ में जल, पुष्प लेकर -
"मम उमा महेश्वर सायुज्य सिद्धये हरतालीका वृतम अहम करिष्ये।"
(मैं उमा महेश्वर की प्रसन्नता, कृपा के लिए यह हरतालिका व्रत करने का संकल्प लेती हूँ।)
ऐसा कहकर जल पृथ्वी पर छोड़ दिया जाता है।
पूजन मंत्र:
"देवि देवी उमे गौरी त्राहिमाम करुणा निधे।
मम अपराधाः क्षन्तव्या भक्ति मुक्ति प्रदा भव॥"
इस प्रकार प्रार्थना की जाती है - हे देवी मां गौरी आप मेरे समस्त अपराध क्षमा कर मुझे मोक्ष प्रदान करें क्योंकि आप करुणा की सागर हैं।
हरकाली व्रत वर्णन -
युधिष्ठिर को भगवान श्री कृष्ण ने बताया था। हर काली व्रत कथा का उल्लेख भविष्य पुराण में भी प्राप्त होता है।
कथा -
महाराज दक्ष प्रजापति की एक कन्या थीं। उनका रंग नील कमल के समान नीली आभा के साथ काला था। काली नाम से प्रसिद्ध हुईं। इनका विवाह भगवान शिव के साथ हुआ। विवाह मंडप में विष्णु जी के साथ विराजित थे। उस समय शिवजी ने भगवती काली को कहा - "प्रिय गौरी यहां आओ"। उनका यह व्यंग वचन सुनकर भगवती क्रोधित हो गईं।
शिव जी ने मेरा कृष्ण वर्ण देखकर परिहास किया और मुझे गोरी कहा है। अब मैं अपने शरीर को अग्नि में समाहित कर दूंगी।
देवी ने अपने शरीर की हरित वर्ण की कांति त्यागकर अग्नि में समर्पित हो गयीं। आगामी जन्म में हिमालय की पुत्री रूप में गौरी नाम से प्रकट होकर शिवजी की तपस्या कर उन्हें प्राप्त किया।
हरतालिका व्रत की उत्पत्ति :
गौरी ने भाद्र शुक्ल तृतीया को रात्रि में शिव की पूजा की। सुबह प्रतिमा को नदी में विसर्जित करने गईं, उसी समय उनके पिता वहां पहुंचे। गौरी ने कहा मैं केवल शिवजी से विवाह करूंगी।
पिता राजा हिमालय ने बेटी की खुशी के लिए शिवजी से गौरी का विवाह किया। इस प्रकार यह व्रत सर्वप्रथम पार्वती जी द्वारा शिव को प्राप्त करने के लिए किया गया था।
जनेऊ (उपाकर्म) और रक्षा बंधन का संबंध :
तिवारी, त्रिपाठी, दीक्षित आदि ब्राह्मण हस्त नक्षत्र में हरतालिका तीज पर जनेऊ धारण करते हैं। इसका उल्लेख ऋग्वेद (सप्तम मंडल) में दशराज्ञ युद्ध प्रसंग से जुड़ा हुआ है।
ऋग्वेद के अनुसार - ब्रह्मऋषि वशिष्ठ मुनि के नेतृत्व में कश्यप गोत्रीय सामवेदी ब्राह्मणों ने, इक्ष्वाकु वंशज राजाओं से युद्ध किया था जिसे दशराज्ञ युद्ध कहा गया। इसमें सामवेदी कश्यप-शांडिल्य ब्राह्मणों की विजय हुई थी। इसी विजय के स्मरण में इन गोत्रों ने यजुर्वेदीय रक्षा-बन्धन की बजाय, हरतालिका तीज पर रक्षा-सूत्र व उपाकर्म का विधान प्रारम्भ किया।
शिव पुराण कथा :
माता पार्वती ने शिव को पति रूप में प्राप्त करने हेतु इस व्रत का प्रथम अनुष्ठान किया था। इसी कारण इसे सौभाग्यवती स्त्रियां अपने अक्षय सौभाग्य की प्राप्ति हेतु करती हैं। अविवाहित कन्याएं मनोनुकूल वर पाने हेतु इस व्रत को करती हैं।
🌟 कश्यप-शाण्डिल्य गोत्र सम्बन्ध

  • कश्यप ऋषिदेव-मानव-नागों के प्रजापिता, रक्षा विधान के मूलकर्ता।
  • शाण्डिल्य ऋषिगृह्यसूत्र रक्षा सूत्र-विधान प्रतिपादक।
    👉 अतः इन गोत्रों में भाद्र शुक्ल तृतीया का रक्षा बन्धन अनिवार्य माना गया है। हरतालिका तीज रक्षा बन्धन / उपाकर्म (भाद्र शुक्ल तृतीया)केवल सामवेदी ब्राह्मणों के लिये मुख्य।
  • ऋग्वेदी यजुर्वेदीइसे नहीं, बल्कि श्रावण पूर्णिमा का पालन करते हैं।
  • कश्यप शाण्डिल्य गोत्र का इस दिन विशेष सम्बन्ध।
  • हरतालिका तीजपार्वती तपस्या, अखण्ड सौभाग्य हेतु।
  • रक्षा बन्धन / उपाकर्म (भाद्र शुक्ल तृतीया)केवल सामवेदी ब्राह्मणों के लिये मुख्य।
  • ऋग्वेदी यजुर्वेदीइसे नहीं, बल्कि श्रावण पूर्णिमा का पालन करते हैं।
  • कश्यप शाण्डिल्य गोत्र का इस दिन विशेष सम्बन्ध।

हरतालिका तीज एवं रक्षा बन्धन महात्म्य 🌿


1. हरतालिका तीज (भाद्र शुक्ल तृतीयाहस्त नक्षत्र)

📖 शास्त्रीय सन्दर्भ

स्कन्दपुराणपार्वतीजी ने शिवजी को पति रूप में प्राप्त करने के लिये कठोर तप किया।

श्लोक:
सत्यां सतीं तपः कुर्वन्तीं त्रिजगद्वन्द्यनायिकाम्।
शिवोऽपि तुष्ट्वा वरदो बभूव जनसिद्धये॥

हिन्दी अर्थपार्वतीजी ने तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर शिवजी वरदाता बने।
English Meaning – Goddess Parvati performed penance; Lord Shiva, pleased, granted her boon of marriage.

👉 इस दिन सुहागिन स्त्रियाँ अखण्ड सौभाग्य और कन्याएँ उत्तम वर प्राप्ति हेतु व्रत करती हैं।


2. रक्षा बन्धन एवं उपाकर्म

📖 वेदों में उल्लेख

ऋग्वेद (10.85.28)
येन बध्नाति मनसा विश्वतो वाचमश्रुताम्।
तं मे मनः शृणोतु नः॥

हिन्दी अर्थजिस रक्षा सूत्र से मन को बाँधा जाता है, वही रक्षा हमें सुरक्षित रखे।
English Meaning – May that sacred thread, which binds the wandering mind, protect and safeguard us.


📖 उपाकर्म / रक्षा-बन्धन का वेद अनुसार भेद

  • ऋग्वेदी ब्राह्मणश्रावण पूर्णिमा को उपाकर्म रक्षा-बन्धन।
  • यजुर्वेदी ब्राह्मणश्रावण पूर्णिमा (कहीं-कहीं श्रवण नक्षत्र तक) उपाकर्म करते हैं।
  • सामवेदी ब्राह्मणभाद्रपद शुक्ल तृतीया (हरतालिका तीज वाले दिन) उपाकर्म और रक्षा-बन्धन करते हैं।
  • अथर्ववेदीयक्षेत्रानुसार अलग-अलग प्रथा।

👉 अतः स्पष्ट है कि भाद्र शुक्ल तृतीया का रक्षा-बन्धन केवल सामवेदियों का मुख्य पर्व है।


📖 शास्त्रीय प्रमाण

धर्मसिन्धु (उपाकर्म प्रकरण)
ऋग्यजुषोः श्रावण्यां पौर्णमास्यामुपाकर्म सामिनां भाद्रपदे शुक्लतृतीयायाम्

🔹 हिन्दी अर्थऋग्वेदी और यजुर्वेदी ब्राह्मण श्रावण पूर्णिमा को उपाकर्म करें; सामवेदी भाद्रपद शुक्ल तृतीया को।
🔹 English – For Rigveda and Yajurveda followers, Upakarma is on Shravan Purnima, but for Samaveda followers, it is on Bhadrapada Shukla Tritiya.


📖 विशेष गोत्र सम्बन्ध

  • कश्यप शाण्डिल्य गोत्र के ब्राह्मणों में यह तिथि (भाद्र शुक्ल तृतीया) पर रक्षा सूत्र बाँधने और उपाकर्म करने की परम्परा है।
  • इसका सम्बन्ध ऋषि शाण्डिल्य और कश्यप प्रजापति से है, जिन्होंने गृह्यसूत्र और रक्षा-विधान प्रतिपादित किया।

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥

हिन्दी अर्थजिस सूत्र से बलि दानवराज को बाँधा गया, उसी से तुम्हें बाँधता हूँ; तुम स्थिर रहो और रक्षा करो।
English Meaning – With the same thread that bound mighty King Bali, I now bind you – remain steadfast, protect always.

📑 हरतालिका तीज एवं सामवेदीय रक्षा-बन्धन महात्म्य


1. धर्मसिन्धु प्रमाण (Samavedi Upakarma & Raksha Bandhan)

श्लोक (Sanskrit)

हिन्दी अर्थ

English Translation

ऋग्यजुषोः श्रावण्यां पौर्णमास्यामुपाकर्म सामिनां भाद्रपदे शुक्लतृतीयायाम् ” (धर्मसिन्धु, उपाकर्म प्रकरण)

ऋग्वेदी और यजुर्वेदी ब्राह्मण श्रावण पूर्णिमा को उपाकर्म करें, परन्तु सामवेदियों का उपाकर्म रक्षा-बन्धन भाद्रपद शुक्ल तृतीया को होता है।

Rigvedic and Yajurvedic Brahmins observe Upakarma on Shravan Purnima, but Samavedic Brahmins observe Upakarma and Raksha Bandhan on Bhadrapada Shukla Tritiya.

 ऋग्वेद के 7वें मण्डल से "दशराज्ञ युद्ध" का संदर्भ 📖 महाभारत सन्दर्भ (शान्ति पर्व)

महर्षि याज्ञवल्क्य द्वारा वेदोपाकर्म रक्षा सूत्र-विधान।
श्लोक:
ऋषयः श्रोतुमायान्ति वेदं ब्रह्म सनातनम्।
उपाकर्मणि कर्तव्यं रक्षासूत्रं विधीयते॥

👉 इस दिन ऋषि-तर्पण, वेदाध्ययन का पुनः आरम्भ, रक्षा सूत्र बन्धन अनिवार्य है।


3. विशिष्ट युद्ध-घटनाएँ .

वैदिक युद्ध-सन्दर्भ: दशराज्ञ युद्ध

घटक

विवरण

वेद/मण्डल

ऋग्वेदमण्डल 7 (सुकта 18, 33, 83)

युद्ध

"Battle of the Ten Kings" – दाशराज्ञ युद्ध

नेतृत्व

राजा सुदास तृत्सु-भरत, विरजित वशिष्ठ {सामवेदी गोत्रीय ब्राह्मणों का प्रतिनिधि}

विरोधी संघ

पुरु वंश, यदु, भृगु, द्वृयु, मात्स्य, आल्य (आलिन), शिव, विषणिन् आदि

परिणाम

सुदास की निर्णायक विजय; कुरु साम्राज्य का उदय, सामवेदीय परंपरा का परिवर्तन (उपाकर्म का तीज को स्थान)

4. दीपक-विधि (Ritual Lamp Guidelines)

  • दिशापूर्वाभिमुख।
  • दीपक रंगपीला/स्वर्णाभ।
  • वर्तिका (बाती) संख्या (षड्गुण सिद्धि हेतु)
  • उपहारनारियल, फल, वस्त्र, स्वर्ण।

  • हरतालिका तीजपार्वती तपस्या, सौभाग्य-वरदान हेतु।
  • रक्षा बन्धन / उपाकर्मवेदों की रक्षा, ऋषि-स्मरण, देवासुर युद्ध-विजय, कृष्ण-द्रौपदी की घटना।

कथा (संकलन)



श्री महादेव जी बोले - हे देवी ! हां सुनो, मैं तेरे सम्मुख उस व्रत को कहता हूं, जो परम गुप्त है,

- तारा गणों में चंद्रमा , ग्रहों में सूर्य, वर्णों में ब्राह्मण , नदियीं में  गंगा, पुराणों में महाभारत, वेदों में सामवेद और इंद्रियों में मन श्रेष्ठ है, वैसे ही पुराणों और वेद सब में हरतालिका तीज का वर्णन है. जिसके प्रभाव से तुमको मेरा आधा आसान प्राप्त हुआ है। हे देवी ! मैं तुमसे वर्णन करता हूँ।

-भाद्र पद माह के शुक्ल पक्ष की हस्त नक्षत्र संयुक्त तृतीया के दिन इस व्रत का अनुष्ठान करने से सब पापों का नाश हो जाता है।

-तुमने पहले हिमालय पर्वत पर इसी महान व्रत को किया था, जो मैं तुम्हें सुनाता हूं।

 पार्वती जी बोलीं- हे प्रभु! इस व्रत को मैंने किस लिए किया था वह मुझे सुनाने की इच्छा है, सो कृपा करके कहिए।

टैब शिवजी बोले

पर्वतों में  श्रेष्ठ हिमालय नमक एक पर्वत है, जो अनेक प्रकार की भूमि तथा विविध वृक्षों से परिपूर्ण है। उस पर्वत पर अनेक प्रकार के पक्षी, मृग, देवगढ़, गंधर्व, सिद्ध चरण और मुदित मन से विचरण करते रहते हैं. एवं गंधर्व गण निरंतर गान किया करते हैं। र्वत की चोटी स्फटिक, स्वर्ण, मणि, मुंगो से सुशोभित है। पर्वत आकाश के समान ऊँचा है। चोटी सदा बर्फ से ढकी रहती है, तथा गंगा का निरंतर निनाद होता रहता है।

 हे पार्वती ! तुमने अपने बाल्यावस्था में , ! तुमने 12 वर्ष तक हमको प्राप्त करने की तपस्या की थी.

- माघ की महीने में कंठ तक जल में निवास कर,

- वैशाख मास के प्रखर धूमें अग्नि सेवन कर,

- श्रावण मास में घर से बहार वर्षा में भींग कर मेरी तपस्या निराहार रहकर आदि आदि कठिन ताप किया .

तुम्हारे इस उग्र तप को देखकर तुम्हारे पिता हिमवान बहुत ही दुखी एवं चिंतित हुए।

वे तुम्हारे विवाह के विषय में चिंतायुक्त हो गए, कि ऐसी तपस्विनी कन्या के लिए वर कहां से उपलब्ध हो सकेगा।

ऐसे ही समय में ब्रह्मपुत्र नारद जी आकाश मार्ग से तुम्हारे पिता के पास आये।

 तुम्हारे पिता ने उन मुनिश्रेष्ठ की अर्घ, पद्य, आसन आदि दे कर पूजा की और हिमवान के कहा - वह मुनिवर ! आप अपने आने का कारण बताएं क्योंकि परम सौभाग्य से ही आप जैसे महानुभावों का आगमन होता है।

 उत्तर में नारद जी ने कहा - हे पर्वत राज ! आप मेरे आने का कारण जानना चाहते हैं तो सुनिए, मुझे भगवान विष्णु ने आपके पास संदेशवाहक के रूप में भेजा है और कहा है कि अपने इस कन्या रत्न को किसी योग्य पुरुष के ही हाथ में अर्पित करें।

सम्पूर्ण देवों में वासुदेव से बढ़कर अन्य कोई देव नहीं है। इसलिए मेरी भी यही राय है कि आप अपने कन्या भगवान विष्णु को सौप कर जगत में यशस्वी बने।

नारद जी की बात सुनकर हिमालय ने कहा - यदि भगवान विष्णु ने इस कन्या को ग्रहण करें की इच्छा की है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है, क्यों कि आपकी सम्मति है, इसलिए अब आज से इस सम्बन्ध को निश्चित ही समझिए।

हिमवान द्वार इस प्रकार का निश्चयात्मक उत्तर पाकर नारद जी हमारे स्थान से अंतध्यान होकर शंख चक्र गदा एवं पद्मधारी विष्णु जी के पास उपस्थित हुए।

विष्णु भगवान से कहा

हे देव! मैंने आपका विवाह संबंध पर्वतराज हिमालय की पुत्री से निश्चित कर दिया है। उधर हिमालय ने प्रसन्न होकर तुमसे कहा की, हे पुत्री! मैंने तुम्हारा विवाह भगवान विष्णु के साथ पक्का कर दिया है। पिता द्वार विपरीतार्थक वाक्य सुनकर तुम अपनी सखी के घर चली गई और वहीं भूमि  पर लोट पॉट हो कर क्रंदन कर दुखी हो कर   होकर अत्यंत विलाप करने लगी।

तुम्हें रुदन करते देखकर तुम्हारी सहेलियों ने तुमसे पूछा

 हे देवी ! तुम अपने दुख का कारण मुझे बताओ हम सभी निहसंदेह आपका कार्य पूरा करेंगे।

सखियो द्वार अश्वासन पाकर तुमने उत्तर दिया, सखी आप सभी सुनिए, मेरी इच्छा महादेव जी के साथ विवाह करने की है, परन्तु मेरे पिता ने मेरी इच्छा के विरुद्ध कार्य किया है, अर्थात  उन्होंने विष्णु भगवान के साथ विवाह करने का नारद जी को वचन दे दिया है. इसलिए सखियां अब मैं अपने इस शरीर का निश्चित रूप से परित्याग करूंगी.

 तुम्हारी सारी बात सुनकर सखियों ने कहा तुम घबराओ नहीं हम और तुम दोनों ही ऐसी घनघोर वन में निकल चले जहां पर तुम्हारी पिता न पहुंच सके।

 इस प्रकार की गुप्त मंत्रणा करके तुम अपनी सखियों के साथ निर्जन वन में पलायन कर गई।

-तुम्हारी पिता हिमवान ने आस पड़ोस के घरों में तुम्हारी खोज की किन्तु तुम्हारा कहीं पता ना चला।

तुम्हारे पिता ने तुम्हें ना पाकर मन में संदेश दिया कि कहीं किसी देव, दानव, किन्नर आदि ने मेरी पुत्री का अपहरण तो नहीं कर लिया। वे इस सोच में भी पड़ गए कि मैं अब नारद जी को क्या जवाब दूंगा।क्योंकि मैंने उनसे भगवान विष्णु के लिए पुत्री के विवाह का वचन दिया था, अब मैं उपहास का पात्र बनूँगा, ऐसा सोचते सोचते पिता हिमवान मूर्छित हो गए, उनके संज्ञाशून्य हो गए.

हिमवान मूर्छित को देख कर , सभी लोग उनके समीप एकत्रित होकर उनसे पूछने लगे कि,

 हे पर्वतराज ! आप अपनी मूर्छा अवस्था का कारण मुझे बताएं। 

- हिमालय ने उन लोगों से कहा, मेरी कन्या का किसी ने अपहरण कर लिया है या हो सकता है किसी विषधर सांप ने डसलिया हो अथवा सिंह व्याघ्र आदि किसी पशु ने भक्षण कर लिया हो, यही मेरे दुःख का करण है ।

 न जाने मेरी पुत्री कहां चली गई है ।अब मैं क्या करुं, ऐसा कहते हुए हिमालय इस प्रकार कांपने लगे, जैसे किसी प्रचंड आँधी में वृक्ष हिलते है, तत्पश्चात  तुम्हारे पिता तुम्हारी खोज में भयानक जंगल के भीतर अग्रसर हुए।

-इधर तुम तो पहले से ही अपनी सखियों के सा

वहां एक गुफा भी थी. तुमने उसी गुफा में जाकर आश्रय लिया और निराहार रहकर मेरा बालुकामयी मूर्ति का स्थापन किया।

जब भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया हस्त नक्षत्र से युक्त tithi तृतीया आई तब तुमने उस दिन रात्रि में जागरण कर गीत वाद्य आदि के साथ मेरा भक्ति पूर्व पूजन किया। हे प्रिये! तुम्हारे द्वार की गई उस कठिन तपस्या एवं व्रत के प्रभाव से मेरा सिंहासन चलायेमान हो उठा और जहां तुम सखियों के साथ थी, उस स्थान पर मैं जा पहुंचा।

मैंने तुमसे कहा कि, हे वरानने ! मैं तुमसे अत्यंत प्रसन्न हूँ, तुम मुझसे अपना इच्छित वर प्राप्त कर लो।

 तब उत्तर में तुमने कहा - हे देव ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न  आप मुझे पतिरूप में प्राप्त हो। मैं 'तथास्तु ' कहकर पुनः अपने कैलाश पर्वत पर आ गया।  मेरे चले आने के बाद तुमने प्रातः काल नदी में स्नान क्र मेरी स्थापित मूर्ति का विसर्जन किया। इतना करने के बाद तुमने अपनी सखियों के साथ पारण किया।

उसी समय तुम्हारे पिता हिमालय भी तुम्हें खोजते हुए उसी जंगल में आ गए। किन्तु वन की गहनता के कारन चारों ओर ढूंढने पर भी तुम्हारा कुछ भी पता उन्हें न चला। अब तो वे निराश हो कर भूमि पर गिर पड़े। पुनः उठने के बाद हिमालय ने दो कन्याओं को सुप्तावस्था में देखा। उन्होंने निकट आकर तुम्हें गोद में उठा लिया और रुदन करने लगे। रोते -रोते ही उन्होंने तुमसे पूछा कि, तुम इस घनघोर जंगल में क्यों आई?

पिता की बात सुनकर तुमने उनसे कहा कि - हे तात ! मैं अपना विवाह शिव जी के साथ करना चाहती थी, परंतु मेरी इच्छा के प्रतिकुल अपने विष्णु भगवान से मेरा विवाह निश्चित  कर दिया था , इसी करण रूष्ट होकर मैं अपनी सखियों के साथ गृह का परित्याग कर यहाँ चली आई।

 हे तात ! यदि आप मुझे घर ले जाना चाहते हैं, तो मुझे महादेव जी से विवाह करने की आज्ञा दीजिए। मेरा ऐसा ही दृढ़ निश्चय है।

तुम्हारे इस कठिन संकल्प को जानकर तुम्हारे पिता ने तथास्तु कहा, और वे तुम्हें अपने साथ घर वापस ले आए। घर वापस आने पर मेरे साथ तुम्हारा पाणी ग्रहण हुआ।

 इसी व्रत के प्रभाव से तुमने अचल सौभाग्य प्राप्त कर लिया। मैंने आज तक व्रत का कथान किसी से नहीं किया है। हे देवी! तुम अपनी सखियों के द्वार हरण की गई इसी से इस व्रत का नाम हरितालिका है।

दशराज्ञ युद्ध (Battle of Ten Kings) – विस्तृत घटनावर्णन

1. पृष्ठभूमि

  • यह युद्ध ऋग्वेद मण्डल 7 (सूक्त 18, 33, 83 आदि) में वर्णित है।
  • इसमें भरत वंशीय राजा सुदास और उनके पुरोहित वशिष्ठ प्रमुख पात्र हैं।
  • सुदास के विरोध में उसके प्रतिद्वन्द्वी राजा विश्वामित्र ने दस राजाओं का एक महासंघ खड़ा किया।
  • यह युद्ध परुष्णी नदी (आज की रावी नदी, पंजाब) के तट पर लड़ा गया।

2. युद्ध में सम्मिलित दल

() सुदास की सेना

  • भरत वंश (त्रित्सु शाखा)
  • ब्रह्मऋषि वशिष्ठ का मार्गदर्शन (सामवेदी कश्यप गोत्रीय ब्राह्मण सहयोग)
  • रथ, घोड़े, पैदल सेना

() विरोधी संघ – ‘दशराज्ञ’ (Ten Kings Confederacy)

  • पुरु, यदु, तुर्वश, द्रुह्यु, अनुये पाँच वैदिक जनजातियाँ
  • साथ में सहयोगी: भृगु, अलिन, शिव, विषणिन्, भलानस आदि
  • इनके आध्यात्मिक मार्गदर्शक: ऋषि विश्वामित्र

3. युद्ध की स्थिति

  • विश्वामित्र ने दस राजाओं का संघ बनाकर सुदास को घेरने का प्रयास किया।
  • दोनों पक्षों की सेनाएँ परुष्णी नदी के दोनों किनारों पर खड़ी थीं।
  • शत्रुओं ने सुदास को नदी पार करने से रोकना चाहा, लेकिन वशिष्ठ ने देवताओं का आह्वान कर यज्ञीय मन्त्रों से मार्ग प्रशस्त किया।
  • विरोधी संघ नदी में फँस गयाभारी जलप्रवाह और दलदल में उनकी अधिकांश सेना नष्ट हो गई।

4. ऋग्वैदिक वर्णन (संदर्भ श्लोक)

📖 ऋग्वेद 7.18.7

इन्द्रः पुरुत्रा विदथेषु शत्रून् जहा रथेषु प्रयुतां नदीनाम्

अर्थ (हिंदी):
इन्द्र ने शत्रुओं को चारों ओर विदथों (सभाओं/युद्धस्थलों) में पराजित किया, और नदी पार करने वाले उनके रथों को नष्ट कर दिया।

English:
Indra destroyed the foes in many gatherings and shattered their chariots while crossing the river.

📖 ऋग्वेद 7.18.13

पुरुश्च ये दशगवा उपष्टुतः सुदासं योधयन्नवस्रिधः

अर्थ (हिंदी):
पुरु और अन्य दस राजा सुदास से युद्ध करने के लिए एकत्र हुए, परन्तु वे स्वयं ही विनष्ट हो गए।

English:
The Purus and ten kings gathered to fight Sudas, but they themselves perished.

5. परिणाम

  • सुदास की निर्णायक विजय हुई।
  • दशराज्ञ संघकी सेनाएँ नष्ट हो गईं; केवल थोड़े योद्धा बच पाए।
  • इस युद्ध के बाद भरत वंश की शक्ति स्थापित हुई।
  • आगे चलकर भरत + पुरु का मेल = कुरु वंश, जिसने वैदिक सभ्यता को संगठित किया।

6. ब्राह्मणीय परम्परा पर प्रभाव

 इस विजय में सामवेदीकश्यपशाण्डिल्य गोत्रीय ब्राह्मणों ने वशिष्ठ का साथ दिया।

  • युद्ध-विजय के उपलक्ष्य में इन गोत्रों ने परम्परागत यजुर्वेदीय पूर्णिमा वाले उपाकर्म रक्षा-बन्धन की तिथि बदलकर भाद्र शुक्ल तृतीया (हरतालिका तीज) कर दी।
  • इसलिए आज भी तिवारी, त्रिपाठी, त्रिवेदी, दीक्षित, तेवारी आदि सामवेदी ब्राह्मण हरतालिका तीज को रक्षा-बन्धन जनेऊ-संस्कार (उपाकर्म) के रूप में मानते हैं।

7. सांस्कृतिक-आध्यात्मिक महत्त्व

  • युद्ध को इन्द्र-वृत्र संग्राम की प्रतीकात्मक छाया माना जाता हैजहाँ इन्द्र (दैवी शक्ति) ने असुरों/विरोधियों को जलप्रलय में नष्ट किया।
  • इसी दिन को सामवेदी परम्परा ने विजय-स्मरण, रक्षा-सूत्र और शिवोपासना से जोड़ा।
  • स्त्रियों के लिए यह हरतालिका व्रत शिव-पार्वती मिलन का प्रतीक बना।
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श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चा...

रामचरितमानस की चौपाईयाँ-मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक (ramayan)

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं ना...

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...