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श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि

            श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी

श्राद्ध कब नहीं करें : 

१. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे । 
२. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए । 
३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है ।
४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए, इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है ।
५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।


          श्राद्ध कब, क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते

          किस तिथि की श्राद्ध नहीं - 
१. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है, उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चाहिए । पिता जीवित हो तो, गया श्राद्ध न करें
२. मां की मृत्यु (सौभाग्यवती स्त्री) किसी भी तिथि को हुईं हो, श्राद्ध केवल नवमी को ही करना है ।
३. श्राद्ध चतुर्दशी को नहीं करना चाहिए ।इस दिन जिनकी तिथि ज्ञात नहीं हो, उनका श्राद्ध विधान है ।
४. श्राद्ध का समय दोपहर 1 2 बजे से सायं 5 बजे का होता हैं । 

              जनेऊ,चन्दन जल विधि
पितर पूजा / कार्य करते समय क्या विशेष सावधानी रखना चाहिए ?
     पितरों की पूजा के समय उपनयन या जनेऊ अपशब्द या बाएं से दाहिने करना चाहिए वामावर्त या विपरीत क्रम से गंध जल धूप आगे उनको प्रदान करना चाहिए|
पितरों को चंदन तर्जनी से ही लगाना चाहिए अनामिका उंगली का प्रयोग केवल देवताओं के लिए प्रयोग किया  जाता है|

वर्ष में  कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं?
वर्ष में श्राद्ध के 96 अवसर होते हैं जैसे 12 अमावस्या चार युग तिथि 14 मनुवादी तिथि 12 संक्रांति 12 विद्युत योग 12 व्यतिपात योग 15 महालय श्राद्ध  का तथा पांच पर्व वेद्य|


श्राद्ध कार्य में प्रयोग होने वाले कुछ कूट शब्द एवं उनके अर्थ क्या है|
जनसामान्य संस्कृत भाषा से बहुत अधिक परिचित नहीं होने के कारण श्राद्ध में प्रयोग होने वाले शब्दों के अर्थ नहीं समझ पाता है| जैसे उदक अर्थात   अर्घदान पूजा के लिए जल प्रदान करना, अमन्न= अर्थात कच्चा अन्य, आलोड़न= जल को घुमाना, एक्को दृष्टि= पिता एक व्यक्ति के लिए किए जाने वाले श्राद्ध |
जो विश्वेदेव रहित पूजा की जाती है एक कुदृष्टि कहलाता है|
 कव्य= पितरों के लिए प्रदान किए जाने वाला द्रव्य वस्तु, तर्पण= पितर देवता ऋषि इनको जल प्रदान करना तर्पण क्रिया कहलाती है| दोहित्र=पुत्री का पुत्र गेंडे के सिंग से बना हुआ पात्र एवं कपिला गाय का घी यह तीनों श्राद्धकर्म में विशेष महत्व रखते हैं तथा इनको दोहित्र की संज्ञा या नाम दिया गया है|

नारायण बलि= दुर्गति से बचने के लिए किया जाने वाला प्रायश्चित स्वरूप अनुष्ठान  कोविधि संगत पूजा पाठ|
  पवित्री= कृष्ण उसके द्वारा बनाई गई अंगूठी जो अनामिका उंगली में पहनी जाती है| महालय= भाद्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक की अवधि| मार्जन= जल का छोटा देकर किसी चीज को पवित्र करना|  सपिंड= स्वयं से लेकर पूर्व की सात पीढ़ी तक के पुरुष, सोदक= 8 पीढ़ी से लेकर 14 पीढ़ी तक के पुरुष,
सगोत्र= 15 पीढ़ी से 21 वीं पीढ़ी तक के पूर्व पुरुष| सव्य= जनेऊ को बाएं कंधे पर डालना दाने हाथ के नीचे करना है इसके विपरीत अपसव्य विधि कहलाती है अर्थात जनेऊ को दाहिने कंधे पर डालकर बाए हाथ के नीचे करना| दूध, शहद, गंगाजल, केसर, गंध वस्त्र कुश प्रमुख है ।

 

बच्चों का श्राद्ध?

१. दो या उससे कम आयु के बच्चे की वार्षिक तिथि और श्राद्ध नहीं किया जाता है ।
२. यदि मृतक दो सै छह वर्ष आयु का है तो भी उसका श्राद्ध नहीं किया जाता है । उसका केवल मृत्यु के १० दिन के अन्दर सोलह पिण्डो (मलिन षोडशी) का दान किथा जाता है ।
३. छह वर्ष से अधिक आयु में मृत्यु होने पर श्राद्ध की सम्पूर्ण प्रक्रिया की जाती है ।
४. कन्या की दो से दस वर्ष की अवथि में मृत्यु होने की स्थिति में उसका श्राद्ध नहीं करते है । केवल मलिन षोडशी तक की क्रिया की जाती है ।
५. अविवाहित कन्या की दस बर्ष से अधिक आयु में मृत्यु होने पर मलिन षोडशी, एकादशाह, सपिण्डन आदि की क्रियाएं की जाती हैं ।
६. विवाहित कन्या को मृत्यु होने पर माता पिता के घर में श्राद्ध आदि की क्रिया नहीं की जाती है । 

 

श्राद्ध के भोज्य पदार्थ : 

गेंहूं, जो, उड़द, फल, चावल, शाक, आम, करोंदा, ईख, अंगूर, किशमिश, बिदारिकंद, शहद, लाजा, शक्कर, सत्तू, सिंघाड़ा, केसर, सुपाडी ।
अक्षत श्राद्ध स्थल /कहाँ करे :  गंगा, प्रयाग, अमरकंटक, उग्रद्ध ,बदरीनाथ ।

श्राद्ध के प्रकार :

१. शुभ या मंगल कर्म के प्रारंभ में -आभ्युदिक श्राद्ध । २.पर्व के दिन : पार्वण श्राद्ध । 
३. प्रतिदिन : नित्य श्राद्ध । ४. ग्रहण रिश्तेदार मृत्यु : नैमित्तिक -काम्य श्राद्ध ।
५. संक्रांति जन्मसमय : श्राद्ध अक्षय फल प्रद । ६. सभी नक्षत्र में काम्य श्राद्ध ।
दैवताओ से पूर्व पितरों कों तर्पण दें । गृहस्थों के प्रथम देवता पितर होते है । (१६ वां अध्याय)

 

  समय : 

तृतीय प्रहर, अभिजित मुहूर्त, रोहिनी नक्षत्र उदय काल में अक्षयफल दानकर्त्ता को मिलता है । जल अर्पण के लिए श्राद्ध  के लिए कुतुप   काल दिन में 11: 36 बजे से लेकर 12:24 तक होता है|
अपराहन काल 1:12 से 3: 36 मिनट तक होता है
मध्यान काल दिन में 10:45 से 1:12 तक लगभग होता है
 रोहिण काल दिन का नवा मुहूर्त 12:24 से 1:12 तक माना जाता है|
संगव काल दिन में 10:48 से पहले का समय|
माघ में शुक्ल दशमी (९ फरवरी)  घी, तिल मिश्रित जल से स्नान ।रविवार को पुष्प, इत्र, पुनवर्सु, नवग्रह औषधियों से मिश्रित जल से स्नान करे ।
                 प्रत्येक माह श्राद्ध करने का क्या फ
                              
अष्टमी चर्तुदशी, अमावस्या/पूर्णिमा, संकांति को सुगंध, जल व तिल पितरों कों दे। 

              किस दिन श्राद्ध करने का क्या फल :

रविवार-आरोग्य, सोमवारसौभाग्य , मंगलवार विजय , बुघ मनोकामना , गुरूवार ज्ञान , शुक्रवार धन , शनवार आयु   |
माघ में शुक्ल दशमी (९ फरवरी)  घीतिल मिश्रित जल से स्नान ।रविवार को पुष्पइत्रपुनवर्सुनवग्रह औषधियों से मिश्रित जल से स्नान करे ।

              श्राद्ध में क्या नहीं करें /वर्जित -

१. सामाजिक या व्यापारिक संबंध स्थापित न करें । 
२. श्राद्ध के दिन दही नहीं बिलाएं ,चक्की नहीं चलाएं तथा बाल न कटवाऐ ।

                     श्राद्ध के दिन क्या नहीं खाएं  ?
१--बैंगन, गाजर, मसूर, अरहर, गोल लौकी, शलजम, हींग, प्याज, लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिधाङा, जामुन, पिपली, सुपाड़ी, कुलपी, महुआ, असली पिली सरसों और चना का प्रयोग श्राद्ध में निषिद्ध है ।
२-हींग, लोकी, लहसुन, काला नमक, धनिया, अम्लवेतस, राजगिरा, सौंफ, कचनार, श्वेत चावल, बड़ा नीबू, बैगन, चोई साग, नारियल, जामुन, जीरा, चिरौंजी, लोहे के पात्र में बना

निमंत्रित : ब्राह्मणों को पिप्त मिश्रित जल देना चाहिए। इसके बाद पिंड अंश देवे।

     निमंत्रित ब्राहम्णो से कहे (भोजन उपरांत) अभिलाषा कथन / याचना-"

हे  ,  पितरगण हमारे दाताओ की अभिवृद्धि है। वेदज्ञान, संतान, श्रद्धा की संख्या बढे। हमसे सब याचना करे हमे याचना न करना पडे।आमंत्रित ब्राहम्ण तथास्तु कहकर आशीर्वाद दे। "

श्राद्ध कर्म के पश्चात् - पिंड गाय, बकरी, ब्राहम्ण अग्नि जल पक्षि को दे।

 संतान की अभिलाषा
बीच वाले पिंड को। खाने से पूर्व याचना करे। हे पितरगण वंश वृद्धि करने वाली संतान का मुझमे गर्भाधान करे।
पितृकर्म की समाप्ति के पश्चात वेश्वदेव का पूजन करे।
इसके बाद पिंड अंश देवे।
तर्पण- विधि
दोनों हाध से करें तर्जनी व अंगूठे के मध्य कुश हो ।
दक्षिण दिशा की ओर मुंह हो हाथ मैं कुश, जौ, शहद, जल, काले तिल एवं अनामिका में स्वर्ण अंगूठी हो ।

दाई अनामिका मे दो कुश पवित्री, बाई अनामिका में तीन कुश पवित्री पहने ।
जल दोनों हाथ मिलाकर तर्जनी एवं अंगूठे के मध्य छेत्र से निचे की ओर छोड़ना चाहिए, तीन अंजलि छोड़े ।
हाथ जितना ऊपर (कम से कम ह्रदय तक) हो उतना ऊपर का जल, काले तिल छोड़े । संभव हो तो नाभि के बराबर पानी (जलाशय, नदी आदि में खड़े होकर) पितरो का ध्यान करते हुए जो तिल व पानी छोड़ना चहिए ।
जनेऊ दाहिने कन्धे पर बाएं हाथ के निचे हो ।सप्तमी को तिल वर्जित श्राद्ध के दिन जन्म दिन हो तो तिल वर्जित । मंत्र पढ़े तो और भी उत्तम है ।

ॐ उशन्त स्तवा नि धीमहयुशन्त:समिधीमही ।
उशन्नुशत आ वह पितृन हविषे अन्तवे ।
अथवा ॐ आगच्छन्तु में पित्तरंइमं गृहणन्तु जलांजालिम् ।

विशेष ध्यान रखने योग्य तथ्य
१. श्राद्ध की सम्पूर्ण क्रिया दक्षिण की ओर मुंह करके तथा अपव्यय (जनेऊ को दाहिने कंधे पर डालकर बाएं हाथ के नीचे करलेने की स्थिति) होकर की जाती हैं ।
२. श्राद्ध में पितरों को भोजन सामग्री देने के लिए मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग करना चाहिए ।  मिट्टी के बर्तनों के अलावा लकड़ी के बर्तन, पत्तों के दौनों (केले के पत्ते को छोड़कर) का भी प्रयोग कर सकते हैं । 
३. श्राद्ध में तुलसीजल का प्रयोग आवश्यक हैं । 
४. श्राद्ध बिना आसन के न करें । 
५. श्राद्ध में अग्नि पर घी, तिल के साथ डालें, निर्धनता की स्थिति में केवल शाक से श्राद्ध करें । यदि शाक न हो तो गाय को खिलाने से श्राद्ध सम्पन्न हो जाता है । 


६. मृत्यु के समय जो तिथि होती है, उसे ही मरण तिथि माना जाता है । (मरण तिथि के निर्धारण में सूर्योदय कालीन तिथि ग्राह नहीं है ।) श्राद्ध मरण तिथि के दिन ही किया जाता है ।  पति के रहते मृत नारी के श्राद्ध में ब्राम्हण के साथ सौभाग्यवती ब्राम्हणी को पति के साथ भी भोजन कराना  |

श्राद्ध काल में जपनीय मंत्र.
. ऊँ क्री क्ली ऐ सर्बपितृभयो स्वात्मा सिद्धये ऊँ फट । 
२. ऊँ सर्ब पितृ प्र प्रसन्नो भव ऊँ ।
३. ऊँ पितृभ्य: स्वघाचिंभ्य: स्वधानम: पितामहेम्यस्वधायिम्यर: स्वधा नमर: । जिनकी जन्म पत्रिका में पितृदोष हो तो उन्हें पितृ पक्ष में नित्य श् ऊँ ऐ पितृदोष शमन हीं ऊँस्वधा ।। मंत्र जाप के पश्चात तिलांजलि से अधर्य दें व निर्धन को तिल दान अवश्य करे ।

सुख वैभव वृद्धि , पितृ दोष बाधा शमन मन्त्र
ॐ श्रे सर्व पितृदोष निवारण क्लेश हन हन सुख शांति देहि फट् स्वाहा ।
पितृ दोष शमन और घर में सुख शांति क्या करे ?
दूध का बना प्रसाद का भोग लगाएं और नित्य मंत्रजप के बाद पश्चिम दिशा की तरफ वह फेंक दें । इस प्रकार ग्यारह दिन तक प्रयोग करें । इस प्रकार जब प्रयोग समाप्त हो जाए तब बारहवे दिन उस मिटटी के पात्र को विसर्जित कर नारियल पूजा के स्थान में रख दें । इस प्रकार करने से पितृ दोष शमन और घर में सुख शांति होती है ।

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टिप्पणियाँ

  1. व्यक्ति के मृत्यु के बाद उसे रात में पहली बार कब लिया जाए

    जवाब देंहटाएं
  2. व्यक्ति के मृत्यु के उपरांत उसे श्राद्ध पक्ष में कब लिया जा सकता है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. पंडित श्री वी के तिवारी जी कृपया इस बात का प्रमाण बतायें की देवताओं से पहले पितृ तर्पण करना चाहिए

      हटाएं
  3. मेरे पिता 9 जुलाई 2009 को शांत हुए थे ।हम उनका श्राद्ध कार्यक्रम 2 बर्ष बाद आरंभ किया ।2015 से 2019 तक हर साल कुल मै चाचा ,आजा ,चाची आदि लोग शांत हुए है ।क्या इस समय मुझे मेरे पिता का श्राद्ध करने ठीक होगा ।वैसे मान्यता है जिस साल कोई कुल का शांत होता है उस साल ये काम नही किया करना चाहिए।कृपया मग्रदर्शन दे।

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    उत्तर
    1. आपको अपने पिता का श्राद्ध अवश्य करना चाहिये। विशेष जानकारी के लिये कॉल कर सकते है 9463405098

      हटाएं
  4. मेरी माता की मृत्यू 14 Sept 19 भाद्रपद पौर्णिमा ko हुई तो वार्षिक श्राद्ध, भरणी श्राद्ध kab करे. ना अमि ko भी श्राद्ध कर्ण जरुरी है क्या

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  5. Mere pita ki mrityu २ september २०१९ ko hua us din tritya aur chaturthi dono tithiyan thi to unke varshik shradh ki koun si tithi li jayegi please btaiye mujhe??

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  6. क्या मुण्डन कराकर ही पिंडदान करना चाहिए।

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  7. क्या मुण्डन कराकर ही पिंडदान करना चाहिए।

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  8. Father in law ki death 2019 mai hui thi to kya is year shrad kr sakti h

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  9. pandit ji namskar Meri sasu ma 15 february 2021 me death hui thi to kya ham is saal shrad kr sakte hi vese ham amavs krte hai aap bataey

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विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -