विवाह
में विलंब
विवाह
के लिए कात्यायनी पूजन ।
10oct
- 18 oct
विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन ।
वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह
बिलम्ब या बाधा को समाप्त करने के लिए -दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये |प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय ,संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के
पश्चात् अपने विवाह की याचना ,प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब या बाधा को समाप्त करने के लिए
प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या
दोपहर ११.४० से १२.४० बजे के मध्य ,कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये |१०८बार| उत्तर दिशा में मुँह हो ,लाल वस्त्र हो जाप के समय |दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो |वर्तिका उत्तर दिशा की और हो |गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल(बाधा नाशक +महुआ (सौभाग्य) तैल मिला कर प्रयोग करे
मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके
दुर्योग एवं व्यवधान समाप्त हो एवं आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित ||
षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र
का २८ आहुति /१०८ आहुति हवन करिये |
चंद्रहासोज्ज्वल करा शार्दूल वर वाहना।
कात्यायनी शुभं द्याद्देवी दानव घातिनी॥
भगवान कृष्ण सा पति
पाने के लिए ब्रज गोपियों ने कात्यायनी
पूजा की थी। इसीलिए ब्रज की अधिष्ठात्री देवी के रूप में कात्यायनी प्रतिष्ठित हैं। स्वर्ण के समान
इनका स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है |
मंत्र विवाह के लिए - कात्यायनी, महामाया महायोगीन्यधीश्वरी ।
नंद गोप सुतं देवी पति में कुरुते नम: ॥
पुरुष वर्ग को विवाह के लिए दुर्गा सतशति के
अर्गला स्त्रोत के २३`वे श्लोक -पत्नीम मनोरमां
देहि ...का सम्पुट पाठ करना चाहिए |
1-शैलपुत्री - शुद्ध घी अर्पित करने से आरोग्य ।
2-ब्रह्मचारिणी- शकर भोग -आयु बढ़ोतरी ।
3-चंद्रघंटा - खीर
भोग -दु:खों से मुक्ति|-
4-कूष्मांडा -मालपुओं
बुद्धि, ।
5-स्कंदमाता-केले का भोग -शरीर
स्वस्थ ।
6-कात्यायनी -शहद
भोग -आकर्षण शक्ति ।
7-कालरात्रि – भोजन- आकस्मिक –
संकट|
8-महागौरी- नारियल दान- नि:संतानों
– मनोकामना |
9- सिद्धिदात्री- तिल का भोग--
कल्याणकारी - मृत्यु - भय - अनहोनी घटनाओं से बचाता है।
२-धन हानि रोकने या धन वृद्धि के लिए - अध्याय
२.३.४ (धन की देवी लक्ष्मी से सम्बंधित है |) का प्रतिदिन
पाठ करे |शत्रु उच्चाटन हेतु इसके २०० पाठ |
३-प्रथम अध्याय
बाधा नाशक महाकाली से सम्बंधित है |मारण ,मोहन के
लिए उपयोगी है
आहुति तथा विशेष -विवरण
1-पाठ के पूर्व दुर्गा जी को हाथो से मुद्रा (आकृति
विशेष ) बना कर दिखाएं.।
मुद्रा-अक्ष ,परुष,गदा, वाण ,कुलिश,पद्म, ,चक्र,धनुष',कुण्डिका,दंड शक्ति ,
वामकेश्वर तंत्र
के अनुसार प्रदर्शन वाली मुद्राएं -असि (तलवार )/खड्ग,चर्म-ढाल,जलज -शंख , घंटा, शूल , पाश , चक्र , मूसल , हल, शिर , भुशण्डि (गुलेल) परिघ,
-अध्याय तृतीय -37 वे श्लोक(गर्ज -गर्ज ) की या 37 से अध्याय अंत तक शहद की आहुति।
-अध्याय चतुर्थ -23 -26 श्लोक पढ़ते समय आहुति नहीं
देना चाहिए।
34 -37 श्लोक के 125000 जप से
सर्व कामना पूर्ति होती है।
अध्याय पंचम -
प्रारम्भ मे 8 मुद्राये देवी के समक्ष बनाएं. . ।
मुद्राएं - घंटा, शूल , पाश , चक्र , मूसल , हल, शिर ,
8वें-अध्याय में मुखेन काली इस
श्लोक पर रक्त चंदन की आहुति दें।
11वें- ग्यारहवें अध्याय की आहुति खीर से दें। सर्वाबाधा
प्रशमनम् मंत्र में काली मिर्च से आहुति दें।
नर्वाण मंत्र से 108 आहुति
दें।
प्रत्येक अध्याय
के अंत मे -इति शब्द का प्रयोग अध्याय के अंत मे नहीं करना चाहिए.।
इति बोलने से- धन
हानि ;अध्याय बोलने से प्राण या स्वयं की हानि ;वध बोलने से - कुल या हानि ;अतः आहुति नहीं दे रहे हो तो खड़े हो कर निम्न मंत्र बोल कर जल
छोड़ें -
ॐ जय जय
मार्कण्डेय सावर्णिके मन्वन्तरे देवी माहात्म्ये सत्याह सन्तु (मम कामः )जगदम्बा अर्पणम अस्तु.।
आहुति
मंत्र –
खड़े
होकर -उलटे पान पर एक इलायची
, कमलगट्टा, 2 लौंग ,गूगल घी लेकर -
तांत्रिक-ॐ जयंती सांगायै सायुधायै सशक्तिकाय
सपरिवारायै सवाहनायै काली चामुण्डा देव्यै कर्पूर बीज अधिस्ठात्रयै महा आहुतिम
समर्पयामि नमः ।
वैदिक - ॐ प्राणाय स्वाहा ,पानाय स्वाहा ,व्यानाय स्वाहा ,अम्बे अम्बिके अम्बालिके नामा
नयति कश्चन , । ससस्त्यश्चकह सुभद्रि कां कां
पीलवासिनी स्वाहा ।
आहुति की सामग्री छोड़े।
5 बार घी छोड़े।
मंत्र
बोले -ॐ
घृतं घृत पावनः पिवतव वसाम वसा पावनः। पिवत अंतिरिक्षस्य हवि राशि
स्वाहा। दिशः प्रतिशादि शोव्विद्दिश
उद्दिशो दिग भ्य स्वाहा। (यजुर्वेद-सं अ 6 /19)
मंत्रों
से शुद्ध घी की आहुति दें : -
ॐ प्रजापतये
स्वाहा। इदं प्रजापतये न मम।ॐ इन्द्राय स्वाहा। इदं इन्द्राय न मम।
ॐ अग्नये स्वाहा।
इदं अग्नये न मम।ॐ सोमाय स्वाहा। इदं सोमाय न मम।
ॐ भूः स्वाहा। इदं
अग्नेय न मम।ॐ भुवः स्वाहा। इदं वायवे न मम।
ॐ स्वः स्वाहा।
इदं सूर्याय न मम।ॐ ब्रह्मणे स्वाहा। इदं ब्रह्मणे न मम।
ॐ विष्णवे स्वाहा।
इदं विष्णवे न मम।ॐ श्रियै स्वाहा। इदं श्रियै न मम।
ॐ षोडश मातृभ्यो
स्वाहा। इदं मातृभ्यः न मम॥
स्मृति एवं ज्ञान वृद्धि के लिए १०-१७ अक्टूबर २०१८;सरस्वती
१-विद्यार्थी एवं प्रतियोगी वर्ग को दुर्गा सतशति के पांचवे से १३ वे अध्याय का पाठ करने से सफलता मिलती है |या भाग
सरस्वति से सम्बंधित है |शत्रु
पर नियंत्रण वशीकरण ,विद्वेषण के लिए उपयोगी |
२-धन हानि रोकने या धन वृद्धि के लिए - अध्याय
२.३.४ (धन की देवी लक्ष्मी से सम्बंधित है |) का प्रतिदिन
पाठ करे |शत्रु उच्चाटन हेतु इसके २०० पाठ |
३-प्रथम अध्याय
बाधा नाशक महाकाली से सम्बंधित है |मारण ,मोहन के
लिए उपयोगी है |
सरस्वती मंत्र
'ॐ वागदैव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्।'
'शारदा शारदां भौज वदना, वदनाम्बुजे।
सर्वदा
सर्वदास्माकमं सन्निधिमं सन्निधिमं क्रियात्।
- शरद काल में उत्पन्न कमल के समान मुखवाली और सब मनोरथों
को देने वाली मां शारदा समस्त समृद्धियों के साथ मेरे मुख में सदा निवास
करें।
नमस्ते शारदे देवी, काश्मीरपुर वासिनी,
त्वामहं प्रार्थये नित्यं, विद्या दानं च देहि में,
कंबू कंठी सुताम्रोष्ठी सर्वाभरणं भूषिता,
महासरस्वती देवी, जिव्हाग्रे सन्नी विश्यताम् ।।
त्वामहं प्रार्थये नित्यं, विद्या दानं च देहि में,
कंबू कंठी सुताम्रोष्ठी सर्वाभरणं भूषिता,
महासरस्वती देवी, जिव्हाग्रे सन्नी विश्यताम् ।।
* सरस्वती का बीज मंत्र –“ह्रीं “ है।
भोग
1-शैलपुत्री - शुद्ध
घी अर्पित करने से आरोग्य । 2-ब्रह्मचारिणी- शकर भोग -आयु बढ़ोतरी ।
3-चंद्रघंटा - खीर भोग -दु:खों से
मुक्ति|- 4कूष्मांडा -मालपुओं बुद्धि, ।
5-स्कंदमाता-केले का भोग
-शरीर स्वस्थ । 6-कात्यायनी -शहद भोग -आकर्षण शक्ति ।
7-कालरात्रि – भोजन- आकस्मिक – संकट|
8-महागौरी- नारियल दान- नि:संतानों – मनोकामना |
9- सिद्धिदात्री- तिल का भोग-- कल्याणकारी - मृत्यु - भय - अनहोनी घटनाओं से बचाता है।
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