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शिव तांडव स्तोत्रम् अर्थ सहित

 

रावण रचित शिव तांडव स्तोत्रम् अर्थ सहित

🔱 क्या वर्तमानशिव तांडव स्तोत्रमूल पाठ है?

उत्तर: मूल ग्रंथ रूप मेंशिव तांडव स्तोत्रकी कोई पूर्ण हस्तलिखित प्रति उपलब्ध नहीं है।
परंतु कई काव्य-संकलनों, स्तोत्रमालाओं और दक्षिण भारत के शैव मठों की पाण्डुलिपियों में इसके आंशिक या पाठभेदयुक्त रूप मिलते हैं।
9
वीं से 12वीं सदी तक के दक्षिण भारतीय स्रोतों (शैव, तमिळ, कश्मीरी भाष्य) में इसके भिन्न-भिन्न संस्करणों का उल्लेख मिलता है।

🔎 उदाहरण:

  • कुछ प्राचीन पांडुलिपियों में केवल 11 या 14 श्लोक हैं।
  • वर्तमान में प्रचलित पाठ में 16 मुख्य श्लोक + उपश्लोक (नमः शिवाय शान्ताय...) सम्मिलित हैं, जो कालांतर में भक्ति प्रवाह के अनुसार जुड़ते गए।

🔸 Thus, the presently popular "Shiv Tandav Stotram" is a composed version — compiled and stabilized through oral traditions, temple recitations, and devotional compilations, not a single-scripture original.


📚 शैव संप्रदाय में वर्तमान पाठ का स्थान

आज भी अधिकांश शैव परंपराओं में (विशेषतः दक्षिण भारतचिदंबरम, कांची, रामेश्वरम्) यही प्रचलित पाठ मूल स्तोत्र रूप में गाया, पढ़ा और नृत्य में प्रस्तुत किया जाता है।

  • नटराज मंदिरों में यह स्तोत्र नाट्य रूप में भी सजीव होता है।
  • तांडव नृत्य के भाव, स्वर, राग, और रस इसी पाठ पर आधारित होते हैं।

🔸 In Shaiva sects, this current form is respected as traditional. It is not questioned for its textual authenticity but revered for its rasa, devotion, and spiritual vibrancy.


🕉️ शिवभक्तों के लिए सरल अर्थ सहित प्रस्तुति क्यों आवश्यक है?

कारण: जब तक पाठक/पाठी को श्लोकों के शब्दार्थ ज्ञात नहीं होते, तब तक:

  • स्वर (intonation),
  • भाव (emotion),
  • रस (aesthetic sentiment – वीर, करुण आदि),
  • लय (rhythm),
  • नृत्य (movement, mudras) –
    सभी कृत्रिम, यांत्रिक बन जाते हैं।

उदाहरण:
जटाटवी-गलज्जल...” – जब पाठक को जटाटवी’ = जटाओं का वन, गलज्जल’ = बहता जल का अर्थ पता होगा
तभी वह गंगा प्रवाह का दृश्य, शिव का रूप, और वीर रस की गंभीरता अनुभूत कर पाएगा।

🔸 Meaning ignites imagination. Clarity in language awakens bhava (emotion), which naturally shapes tone, rhythm, and rasa.


🙏 इसलिए सरलार्थ सहित पठनीय प्रस्तुति अत्यंत आवश्यक है।

  • पाठकश्रोतासाधक बनने की यात्रा शब्द से भाव की ओर होती है।
  • यही कारण है कि हमने श्लोक-दर-श्लोक bilingual प्रस्तुत किया, ताकि स्वर, उच्चारण, भाव, दृष्टि और मनोवृतिसभी स्वमेव परिष्कृत हो जाएँ।

निष्कर्ष

बिंदु

स्पष्टीकरण

📜 मूल ग्रंथ

हस्तलिपियों में पूर्णरूपेण नहीं, आंशिक रूप उपलब्ध

🕉️ प्रचलित पाठ

शैव परंपरा में स्वीकार्य पूज्य रूप में प्रचलित

📖 पाठभेद

कुछ श्लोक हटे/जुड़े; लय और भाव के अनुसार परिवर्तित

🔤 शब्दार्थ की भूमिका

बिना अर्थ के राग होता है, रस, भाव, भक्ति

🎵 पाठक के लिए सुझाव

अर्थ सहित, चरणबद्ध पाठ से भक्ति की ऊर्जा जागृत होती है

 

🕉 वर्तमान प्रचलित 'शिव तांडव स्तोत्र' – परंपरा, ऐतिहासिकता एवं पाठ्य-भेद

🔹 परंपरागत दृष्टिकोण (Traditional View)

🪔 प्रचलित 'शिव तांडव स्तोत्रम्' की रचना रावण द्वारा की गई मानी जाती है।
इसमें कुल 16 प्रमुख छंद हैं जो महादेव शिव के तांडव रूप, उनके सौंदर्य, शक्ति, भयावहता और करुणासभी को दर्शाते हैं।

It is traditionally believed to be authored by Ravana, the king of Lanka, as a hymn of fierce devotion to Lord Shiva. The existing text has 16 core verses glorifying the Tandava form of Shiva.


🔹 ऐतिहासिक तथ्य (Historical Evidence)

🪶 कई अभिलेखों ताड़पत्रों में जो प्राचीन शिव स्तोत्र मिलते हैं, उनमें 9वीं शताब्दी तक कुछ श्लोकों में भिन्नता पाई जाती है।
कुछ अंश अतिरिक्त रूप से जोड़ दिए गए हैं या फिर स्थानिक पाठभेद (regional variants) पाए जाते हैं।

Several copperplate inscriptions and palm-leaf manuscripts from the 9th century show that some verses differ from today’s commonly recited text. Some versions include additional verses or variations, possibly due to regional or oral transmission.


🔹 गूढ़ार्थ और व्याकरणिक कठिनाई (Hidden Meaning & Complexity)

🧠 'शिव तांडव' के श्लोक अत्यंत गूढ़ संस्कृत में हैं, जिनमें प्रयुक्त शब्दों के प्रतीकात्मक अर्थ, तांत्रिक संकेत, छंद-विशेष (शिव-नवछंद) भी होते हैं।
विशेषतः अलंकार, अनुप्रास, समास और द्वंद्वात्मक अर्थ इसे शाब्दिक अर्थ से परे ले जाते हैं।

The hymn is composed in highly ornate Sanskrit with deep symbolic meanings, sometimes reflecting Tantric ideas and specific poetic meters (like Shiv-navachhanda). It often uses dense compounds, alliteration, and layered meanings beyond literal interpretation.


🔹 सरल शब्दार्थ प्रस्तुति का महत्व (Importance of Simple Rendering)

📚 आज के पाठक हेतु सरल अनुवाद आवश्यक है, जिसमें:

  • शब्दार्थ (Word meanings)
  • संदर्भ के अनुसार व्याख्या (Contextual interpretation)
  • दर्शन, तंत्र और भक्ति के दृष्टिकोण से टिप्पणी (Philosophical & Devotional commentary)
  • लयबद्ध पठन योग्य शैली (Rhythmic & readable form)
    इससे यह स्तोत्र केवल पाठ नहीं, एक अनुभूति बनता है।

For modern readers, it is essential to provide an easy bilingual breakdown with literal meanings, contextual notes, and philosophical insights. This transforms the stotra into not just a chant but a spiritual experience.


🕉️– प्रथम श्लोक

जटाटवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुंगमालिकाम्॥

हिन्दी सरलार्थ:
जिस स्थान पर जटाओं की वन-जैसी जटाटवी से गंगा जल की धारा बह रही है, और जिसके गले में विशाल सर्प की लहराती माला झूल रही है...

English Meaning:
Where the sacred stream of Ganga flows through his matted locks, and a great serpent hangs as a garland around his neck…

 

🔷 श्लोक 1

🔹 संस्कृत मूल श्लोक:
जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुंगमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥


🔹 शब्दार्थ (Word-by-word Hindi Meaning):

  • जटाटवीजटाओं का वन (dense forest-like matted hair)
  • गलज्जलप्रवाहबहता हुआ जल प्रवाह (flowing stream)
  • पावितस्थलेजिससे पवित्र किया गया स्थान (sanctified place)
  • गलेऽवलम्ब्यगले में लटकाए हुए (hanging on the neck)
  • लम्बितां भुजङ्गतुंगमालिकाम्लंबी ऊँची सर्पमालिका (long lofty garland of serpents)
  • डमड्डमड्ड...डमरू की आवाज़ (onomatopoeic syllables for damaru beat)
  • चकारकिया (performed)
  • चण्ड ताण्डवम्प्रचंड तांडव नृत्य (fierce Tandava dance)
  • तनोतुफैलाए, प्रसारित करे (may it spread)
  • नः शिवः शिवम्हमारे लिए शिव कल्याण करें (may Shiva grant us auspiciousness)

🔹 सरल हिन्दी भावार्थ:
जिस स्थान को भगवान शिव की जटाओं से बहता गंगा जल पवित्र कर रहा है, और जिनके गले में विशाल सर्पों की लंबी माला झूल रही है,
जो अपने डमरू से डम-डम की ध्वनि करते हुए उग्र तांडव नृत्य कर रहे हैं
वे भगवान शिव हमारे लिए कल्याणकारी हों।


🔹 Transliteration (English Pronunciation):
Jaṭāṭavī-galaj-jala-pravāha-pāvita-sthale
Gale’valambya lambitāṁ bhujaṅga-tuṅga-mālikām

Ḍamaḍḍamaḍḍamaḍḍama-nnināda-vaḍḍamarvayaṁ
Chakāra chaṇḍa-tāṇḍavaṁ tanotu naḥ śivaḥ śivam


🔹 English Meaning:
May Lord Shiva — whose matted hair holds the purifying stream of Ganga,
who wears a lofty garland of serpents around his neck,
and who performs the fierce Tandava dance to the resounding beat of his damaru —
bestow auspiciousness upon us.


🔷 श्लोक 2

जटा कटाह सम्भ्रम भ्रमन्निलिंप निर्झरी
विलोल वीचि वल्लरी विराज मानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाट पट्ट पावके
किशोर चन्द्रशेखरे रतिर्ममाकृतिं विदम्॥

हिन्दी भावार्थ:
जिनकी जटाओं के भीतर दिव्य जलधाराएं भ्रमण करती हैं,
जिनके शीश पर लहराते जल के झरने शोभा पा रहे हैं,
जिनके ललाट पर अग्नि की प्रचंड ज्वाला धधक रही है,
और जिनके सिर पर बालचंद्र सुशोभित है
ऐसे शिव में मेरा मन रमा रहे।

English Meaning:
Whose matted hair carries celestial streams swirling in divine motion,
whose head shines with waves of flowing waters,
whose forehead blazes with roaring fire,
and who adorns the crescent moon like a youthful jewel —
may my heart find devotion in that Shiva.


🔷 श्लोक 3

धरा धरेन्द्र नन्दिनी विलास बन्धु बन्धुर
स्फुरद्दिगन्त सन्तति प्रमोद मान मानसे।
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥

हिन्दी भावार्थ:
जो हिमालयपुत्री पार्वती के साथ प्रेममय लीलाओं से शोभित हैं,
जिनकी उपस्थिति दिशाओं तक को आनंदित कर देती है,
जिनकी करुणा दृष्टि भयानक संकटों को रोक देती है,
ऐसे दिगंबर शिव में मेरा मन रमण करे।

English Meaning:
Who delights in graceful play with the daughter of the Himalayas,
whose presence fills the directions with joy and bliss,
whose merciful glance restrains even the fiercest of calamities —
may my mind find delight in that sky-clad Lord Shiva.


🔷 श्लोक 4

जटा भुजङ्ग पिङ्गल स्फुरत्फणा मणि प्रभा
कदम्ब कुङ्कुम द्रव प्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्ध सिन्धुर स्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥

हिन्दी भावार्थ:
जिनकी जटाओं में सर्प लहराता है, जिसकी फणमणि से ज्योति निकल रही है,
जिनकी शोभा से दिशाओं की अप्सराएं कदंब-कुंकुम के रंग में रंजित हो रही हैं,
जो मतवाले हाथी की तरह गरजते हैं, जिनकी त्वचा हाथी की सी है
ऐसे भूतों के स्वामी शिव में मेरा मन अद्भुत आनंद पाए।

English Meaning:
Whose matted locks hold a fiery serpent, its jewel glowing bright,
whose aura paints the faces of celestial maidens with crimson hues,
who roars like an intoxicated elephant, wearing its hide as cloth —
may my heart find wonder and joy in that Lord of beings.


🔷 श्लोक 5

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेष लेख शेखर
प्रसून धूलि धोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः।
भुजङ्ग राज मालया निबद्ध जाट जूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः॥

हिन्दी भावार्थ:
जिनके चरण कमलों पर इंद्रादि देवता पुष्पवृष्टि करते हैं,
और उन पुष्पों की धूल से उनका पादपीठ पवित्र होता है,
जिनकी जटाएं सर्पराज की माला से बंधी हैं,
और जिनके मस्तक पर चंद्रमा शोभा पा रहा है
वे शिव सदा-सर्वदा हमें शुभत्व प्रदान करें।

English Meaning:
At whose feet celestial beings like Indra shower flowers in worship,
their dust sanctifying the ground beneath,
whose locks are tied with the king of serpents,
and who bears the moon — friend of the night-bird — on his crown —
may that Shiva bless us with lasting fortune and glory.

🔷 श्लोक 6

ललाट चत्वर ज्वलद्धनञ्जय स्फुलिङ्गभा
निपीत पञ्च सायकं नमन्निलिंप नायकम्।
सुधा मयूख लेखया विराजमान शेखरं
महा-कपालिशं शिवं भजे शिरोमणिं॥

हिन्दी भावार्थ:
जिसके ललाट पर अग्नि की ज्वाला दहक रही है,
जिसने कामदेव को भस्म कर दिया,
जिन्हें देवता भी नमन करते हैं,
जो चंद्रमा की किरण से सुशोभित हैं और महाकपाल धारण करते हैं
ऐसे शिव, सिरमौर देवता की मैं वंदना करता हूँ।

English Meaning:
Whose forehead blazes with the fire of Dhanuñjaya (conquering flame),
who has incinerated the god of desire,
to whom all celestial beings bow,
whose head is adorned with the radiant crescent moon —
I worship that great Lord Shiva, the crown jewel of all.


🔷 श्लोक 7

वै यदग्निभस्मतः शिरोभिराम चेतसां
सुधांशु लेखया विभूषणं रघूत्तम प्रियम्।
भजस्व रुद्रमीश्वरं सुरेश्वरं महेश्वरं
विभुं विशुद्धम व्ययं परं शिवं शाश्वतम्॥

हिन्दी भावार्थ:
जो लोग केवल बाह्य सौंदर्य या अलंकरण से आकर्षित होते हैं,
वे नहीं समझ सकते कि शिव अपने मस्तक पर अग्नि और चंद्रमा को समान भाव से धारण करते हैं।
ऐसे रघुकुल के प्रिय, देवों के देव, महेश्वर, शुद्ध, अविनाशी और परम शिव की मैं भक्ति करता हूँ।

English Meaning:
Those enchanted merely by ornaments fail to perceive
how Shiva wears both blazing fire and the moon on his head.
I adore that beloved of the Raghu race, the Lord of gods, the supreme Maheshwara,
who is pure, eternal, unchanging, and the ultimate truth.


🔷 श्लोक 8

वा सुरेन्द्रनम्रणं बिन्दु पद्मजा मुखं
चारुणोर्मि नीलवर्ण नैन दन्त दंष्ट्रिणम्।
यौवनं चाष्ट मूर्ति गर्व निर्जितं भजे
कदा शमं करोतु मे शिवाल मूर्ति मण्डनम्॥

हिन्दी भावार्थ:
मैं तो देवताओं द्वारा पूजित रूप की, ब्रह्मा या लक्ष्मी के सौंदर्य की,
विष्णु के रंग, दाँत या शक्ति की, यौवन या आठ रूपों के अभिमान की आराधना करता हूँ।
मैं उस शिव को पूजता हूँ जो अलंकरण नहीं, शांति प्रदान करते हैं।
वे मुझे कब परम शांति देंगे?

English Meaning:
I do not revere the form praised by gods, nor the beauty of Brahma or Lakshmi,
nor the blue-hued Vishnu with sharp teeth and mighty arms,
nor youthful pride or the eightfold majestic forms —
I worship only that Shiva whose essence is peace.
When will that peaceful adorned one bless me with serenity?


🔷 श्लोक 9

कदा निलिंप निर्झरी निकुञ्ज कोटरे वसन्
विमुक्त दुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन्।
विमुक्त लोक मङ्गल स्फुरत्प्रकाश मानमं
मणिं परं शिवं भजे जटाजुटं शाश्वतम्॥

हिन्दी भावार्थ:
कब मैं देवलोक की निर्झरिणी की कंदराओं में निवास करूँगा,
जहाँ मेरा चित्त दूषित विचारों से मुक्त हो,
और सिर पर सदा हाथ जोड़कर शिव की स्तुति करता रहूँगा
उस दिव्य प्रकाशमान, कल्याणकारी, चिरस्थायी जटाधारी शिव की मैं उपासना करता हूँ।

English Meaning:
When shall I dwell in the mountain caves by divine streams,
with a mind free from wicked thoughts,
hands forever folded on my head in reverence,
worshipping that supreme, radiant, ever-auspicious jewel —
Lord Shiva, the eternal bearer of matted locks?


🔷 श्लोक 10

इमं हि नित्यमेव मुक्त मुक्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विनायकं हि तं गुरुं समस्त लोक नायकम्॥

हिन्दी भावार्थ:
जो व्यक्ति इस उत्तम स्तोत्र को प्रतिदिन पढ़ता, स्मरण करता और उच्चारण करता है,
वह सदा शुद्धता को प्राप्त करता है।
वह शीघ्र ही हरि और गुरु में परम भक्ति को प्राप्त करता है,
क्योंकि वही गुरु समस्त लोकों के नायक विनायक हैं।

English Meaning:
Whoever recites, remembers, and chants this supreme hymn daily
attains constant purity of being.
He quickly gains deep devotion toward Hari and the Guru,
for that Guru — the remover of obstacles — is the Lord of all the worlds.

🔷 श्लोक 11

नमः शिवाय शान्ताय सत्त्व मूर्तये नमः।
नमः शिवाय शुद्धाय सुबोधाय शक्तये॥

हिन्दी भावार्थ:
शांतस्वभाव शिव को नमस्कार,
सत्वगुण के मूर्तिमान स्वरूप को नमस्कार।
शुद्ध और श्रेष्ठ बोध (ज्ञान) स्वरूप शक्तिमान शिव को नमस्कार।

English Meaning:
Salutations to peaceful Shiva, the embodiment of purity and serenity.
Salutations to the form of Sattva, to the pure, wise, and powerful Lord.


🔷 श्लोक 12

नमः शिवाय सोमाय सदा शिवाय शङ्कराय।
नमः शिवाय शुद्धाय नमः ज्ञानस्वरूपिणे॥

हिन्दी भावार्थ:
चन्द्रमा से सुशोभित, सदा कल्याणकारी शंकर को नमस्कार।
शुद्ध और ज्ञानस्वरूप शिव को नमस्कार।

English Meaning:
Salutations to Shiva, the moon-crowned, ever-auspicious Shankara.
Salutations to the pure one, to the embodiment of knowledge.


🔷 श्लोक 13

स्मरं स्मरारिजं भवं भवार्ति नाशनं।
सदाशिवं सदा भद्रं नमामि शङ्करं शिवम्॥

हिन्दी भावार्थ:
मैं कामदेव के संहारक, संसारजनक और भव-दुख के नाशक,
सदा शुभ शिव, सदा मंगलकारी शंकर को नमस्कार करता हूँ।

English Meaning:
I bow to Shiva — the destroyer of desire, the source of creation,
the remover of worldly suffering, the ever-auspicious, ever-blessed Shankara.


🔷 श्लोक 14

हरं हरी प्रियं भक्त कल्पद्रुम मव्ययम्।
सुरार्चितं सुरेशं भजे पार्वती पतिम्॥

हिन्दी भावार्थ:
हर (शिव), हरि (विष्णु) के प्रिय, भक्तों के इच्छाओं को पूर्ण करने वाले कल्पवृक्ष,
अविनाशी, देवताओं द्वारा पूजित, देवों के स्वामी, पार्वतीपति शिव की मैं भक्ति करता हूँ।

English Meaning:
I worship Hara, the beloved of Hari, the eternal wish-fulfilling tree for devotees,

🔷 श्लोक 15

महेश्वरं महादेवं महात्मानं महोर्जितम्।
महाव्रतं महायोगं महापातकनाशनम्॥

हिन्दी भावार्थ:
मैं उन महेश्वर, महादेव, महान आत्मा, अत्यंत पराक्रमी,
उच्च व्रतधारी, महान योगी और सभी महान पापों के नाशक शिव की वंदना करता हूँ।

English Meaning:
I worship Maheshwara, the great God, the supreme soul, mighty in strength,
the upholder of great vows, the supreme yogi, the destroyer of the gravest sins.


🔷 श्लोक 16

नमः शिवाय शान्ताय नमः कौपीनवस्त्रिणे।
नमः दिगम्बरायै नमः सन्ध्याबालकाय च॥

हिन्दी भावार्थ:
शांतस्वभाव शिव को नमस्कार,
जो केवल कौपीन (लंगोट) पहनते हैं, उन्हें नमस्कार।
दिगंबर (वस्त्ररहित आकाशवस्त्रधारी) को नमस्कार,
और संध्या के समय बालक के रूप में प्रकट होने वाले शिव को भी नमस्कार।

English Meaning:
Salutations to the serene Lord Shiva,
clothed only in a loincloth,
salutations to the sky-clad ascetic,
to the one who appears as a boy at twilight — I bow to Him.

worshipped by the gods, the Lord of all celestials — the husband of Parvati.

शिव तांडव स्तोत्रम् (मूल श्लोक एवं अर्थ सहित) – अर्थ एवं रहस्य bilingual रूप में 🔱

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श्लोक 15
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः॥

अर्थ (हिंदी):
जिनके चरणों की वन्दना में इन्द्र आदि सहस्त्र नेत्रों वाले समस्त देवताओं के मुकुटों से झरते पुष्पों की धूलि उनके चरणों को सुशोभित करती है,
जिनके जटाजूट में सर्पराज (वासुकि) की माला बँधी है,
और जिनके मस्तक पर चन्द्रमा (चकोर का प्रिय मित्र) सुशोभित है,
वे भगवान शिव हम सबको श्री, ऐश्वर्य और चिरस्थायी कल्याण प्रदान करें।

Meaning (English):
May Lord Shiva,
whose feet are sanctified by the pollen-dust scattered from the crowns of countless gods like Indra,
whose matted locks are adorned with the king of serpents,
and who bears the moon (beloved of the Chakora bird) on His head,
bless us eternally with prosperity, glory, and divine fortune.


श्लोक 16 (अंतिम)
इमं हि नित्यं एव मुक्तमुक्तमोत्तमं
स्तवं पठंस्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेत्य सन्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु यान्ति नान्यथा गतिं
विनाकपृष्ठमाचरे प्रयान्ति सान्ततिं ध्रुवम्॥

अर्थ (हिंदी):
जो मनुष्य इस मुक्त और उत्तम स्तोत्र का नित्य श्रद्धापूर्वक पाठ करता है,
या स्मरण करता है, या उच्चारण करता है,
वह निरंतर पवित्रता को प्राप्त करता है।
और वे शिवभक्तजन भगवान हर (शिव) एवं उनके सद्गुरु में गहरी भक्ति प्राप्त करते हैं,
अन्यथा उन्हें कोई और गति (मोक्ष या शिवत्व) नहीं मिलती।
सत्य ही है कि वे भगवान शिव के पीछे-पीछे चलते हुए
चिरकालिक दिव्यता को प्राप्त करते हैं।

Meaning (English):
He who recites, remembers, or chants this ever-liberating and supremely glorious hymn daily,
attains constant purity.
Devotees soon develop unwavering devotion to Lord Hara (Shiva) and the Guru.
Without such devotion, no other path leads to liberation.
Truly, they follow Lord Shiva’s footsteps
and attain eternal spiritual perfection.


📜 टिप्पणी | Commentary:
यह स्तोत्र रावण द्वारा रचित माना गया है, जिसमें वह अपने आराध्य भगवान शिव के विराट, तांडवकारी, सौंदर्य एवं करुणा से युक्त स्वरूप का गान करता है। प्रत्येक श्लोक में रस, लय और अनुभूति का अद्भुत संगम है। अर्थ जानने पर ही उसकी भाव-ध्वनि, गेयता, और शिव की अनन्य भक्ति का अनुभव साकार होता है।

यह वही पाठ है जो आज शैव संप्रदायों में प्रमुख रूप से प्रचलित हैयद्यपि कुछ भिन्न श्लोक विविध पांडुलिपियों में उपलब्ध हैं, किन्तु यह संस्करण जनमानस में सबसे अधिक श्रुत और गेय है।

🔚***************

🕉️ शिव तांडव स्तोत्रम्मूल छंदबद्ध पाठ 🕉

1.
जटाटवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥

2.
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी-
-
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥

3.
धराधरेन्द्रनन्दिनी विलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥

4.
जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥

5.
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः॥

6.
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-
-
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदं िवं कदाऽहं आश्रये॥

7.
कराल भाल पट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनञ्जयाधरीकृत प्रचण्ड पञ्चसायके।
धरा धरे न्द्रनन्दिनी कुचाग्र चित्र पत्रक-
-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥

8.
नवीन मेघ मण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्
कुहू निशीथिनीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः।
निलिम्प निर्झरी निकुञ्ज कोटरेन्द्रतर्जितो

  • -द्रुधद्रविणसङ्गिनि कदा सदाशिवं भजे॥

9.
प्रचण्ड वद्रव प्रवाह पावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम्।
भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाट जूटकः
कदा विधेय वः शिवं भजामि बालचन्द्रम॥

10.
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति सन्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा
शिवं समाविशत्यचिरान्न यत्र तत्परः॥

11.
पूजा वसान समये दशवक्त्रगी तं
यः शम्भु भक्ति भवितः सनयेति स्तोत्रम्।
तं शम्भु लोकमवप्नोति शिवेन सार्धं
श्री चन्द्र शेखर शिवं भजति प्र modधन्यः॥


🔻 शिव तांडव स्तोत्रम्पद समाप्ति छंद (अंत्य पंक्तियाँ) 🔻

वदत्यनन्य भक्तितः शुचिः पुमान्
पठेत्स्तवं हि तण्डवं शिवस्य यः।
पुत्र पौत्र सौख्यमायुरर्व्ययं
भवेत्तथा मनोऽभिलषितं लभेत॥


📌 टिप:

यह छंदबद्ध स्वरूप शिखरिणी छंद के अनुसार है — 17-17 वर्णों की सम मात्रा पर आधारित, जिसमें वीर रस और तांडव लय प्रधान होती है। गायन के समय डम-डम-डम की ध्वनि और लयात्मक गति आवश्यक होती है।

 

 

 

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श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चा...

रामचरितमानस की चौपाईयाँ-मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक (ramayan)

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं ना...

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...