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16.8.2025-कृष्ण जन्माष्टमी पूजन विधि शुभ समय

 

16.8.2025-श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजन विधि एवं शुभ समय - ग्रंथ प्रमाण सहित

अष्टमी व्याप्ते दिने पूजां गृहस्थो दिनकाले ।(धर्मसिंधु) :
गृहस्थ वर्ग दिन में अष्टमी व्याप्त रहते (21:34 tak ashtmi; ) पूजन करे; गृहस्थ के लिए दिन में शुभ लग्न पर अष्टमी तिथि में पूजन ही सर्वोत्तम है।

 🔶 ग्रंथ प्रमाण :
निर्णय सिंधु, धर्मसिंधु, मुहूर्त चिंतामणि, व्रत परिचय (गीताप्रेस), पद्म पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण में स्पष्ट उल्लेख है कि गृहस्थ वर्ग के लिए पूजन **उदय व्याप्त अष्टमी तिथि** में करना श्रेष्ठ है। निशीथकाल पूजन केवल वैष्णव संन्यासियों और दीक्षित जनों के लिए विशेष है।
📜 श्लोक (धर्मसिंधु) :
"अष्टमी व्याप्ते दिने पूजां गृहस्थो दिनकाले ।
वैष्णवस्तु तथा कुर्यात् रात्रौ जन्म महोत्सवे
॥"
अर्थ: गृहस्थ वर्ग दिन में अष्टमी व्याप्त रहते (21:34 tak ashtmi; )

पूजन करे, जबकि वैष्णव रात्रि में जन्मोत्सव करें।
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गृहस्थ के लिए दिन में शुभ लग्न पर अष्टमी तिथि में पूजन ही सर्वोत्तम है।

निशीथकाल केवल विशेष वैष्णव आचार्यों के लिए उपयुक्त है।

🚫 वर्जित लग्न :
मेष, तुला, मकर लग्न में पूजन त्याज्य है क्योंकि इन्हें शास्त्रों में **विष लग्न** कहा गया है।
🕑 दिन में पूजन के समय (शुभ लग्न): शुद्ध समय-सूची ()

ब्रह्म मुहूर्त 04:36 – 05:22
प्रातः सन्ध्या 04:59 – 06:07
मध्याह्न शुभ 01:39 – 02:30
विजय मुहूर्त 02:30 – 03:20
सायाह्न शुभ 05:06 – 06:06
गोधूलि मुहूर्त 06:41 – 07:03

 प्रतिपदा, चतुर्थी, अष्टमी, द्वादशीचर लग्न वर्जित (यानी मेष, कर्क, तुला, मकर से बचें)

प्रतिपद्यां चतुर्थ्यां अष्टम्यां द्वादश्यां चरा वर्ज्या।
द्वितीयायां पञ्चम्यां नवम्यां त्रयोदश्यां स्थिराः श्रेष्ठाः॥
तृतीयायां षष्ठ्यां दशम्यां चतुर्दश्यां द्विस्वभावाः।
एकादश्यां पञ्चदश्यां सर्वलग्नाः समाचर्याः॥

(स्थानवार दिन में पूजन शुभ लग्न 16 अगस्त 2025)
- दिल्ली : प्रातः 04:59 – 06:07;13:20-14:40:19:15-20:010;
- भोपाल : प्रातः
04:59 – 06:07;13:00-14:50;18:50-20:05;
- बेंगलुरु : प्रातः
04:59 – 06:07; 13:10 – 15:00;19:05-20:19
- रायपुर : प्रातः
04:59 – 06:07;12:40-14:40;18:40-19:40;

 कानपुर : प्रातः 07:10 – 09:24, 13:50 – 16:08
- पटना : प्रातः 06:52 – 09:10, 13:40 – 15:58
- जबलपुर : प्रातः 07:00 – 09:15, 13:45 – 16:00
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🪔 दीपक व पूजन सामग्री :
- दीपक: पंचमुखी घी का दीपक, पीतल या मिट्टी का
- वर्तिका (बाती) रंग: लाल या पीला सूती कपास
- पुष्प: पीला-नीला (गेंदे, अपराजिता)
- धूप: गुग्गुल, चंदन
- नैवेद्य: माखन-मिश्री, पंचामृत, धनिया पंजीरी
- हवन: "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" अथवा "कृष्णाय वासुदेवाय" मंत्र से 108 आहुतियाँ
👆 पूजनकर्ता का मुख:
- निशीथकाल पूजन में: पूरब दिशा की ओर
- दिन में पूजन: उत्तर या पूर्व दिशा की ओर

🕉 संक्षिप्त पूजन-विधि (दिवा-काल)

(स्थान, तिथि, नाम, गोत्र आदि बोलकर संकल्प लें)

  श्रीकृष्णाय नमः, मम सर्वपापक्षयपूर्वक श्रीकृष्ण-प्रसादसिद्ध्यर्थं

श्रीकृष्णजन्माष्टमीव्रत-पूजनं करिष्ये।

·         गृहस्थ हेतु श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजन विधि (16 अगस्त 2025 — दिवा-काल / गोधूलि)

·         ..."श्रीकृष्ण जन्माष्टमी दिवा-कालीन गृहस्थ पूजन-विधि

·         1. पूजन-स्थान की तैयारी
स्थान स्वच्छ, शांत और पवित्र हो। भगवान श्रीकृष्ण की बालरूप प्रतिमा या चित्र को रजत, पीतल या लकड़ी के झूले में रखें। पीताम्बर वस्त्र, मौर, वनमाला, तुलसी दल, फूल, चंदन से सजाएँ। पृष्ठभूमि में अगर संभव हो तो रोली, हल्दी और पुष्प से सुंदर मंडप बनाएँ।

·         आचमन" केशवाय नमः", " नारायणाय नमः", " माधवाय नमः" (प्रत्येक के बाद जल पिएँ)
प्राणायाम मंत्र" भूः भुवः स्वः महः जनः तपः सत्यम्। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्। आपो ज्योती रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ।"
ध्यान2. आचमन और संकल्प
आचमन करके कहें"ममोपात्त समस्त दुरित क्षयद्वारा श्रीकृष्णस्य प्रीत्यर्थं जन्माष्टमी व्रत पूजनं करिष्ये।""मम सर्व पाप क्षय पूर्वक श्रीकृष्ण प्रसाद सिद्ध्यर्थे दोलोत्सव पूजनं करिष्ये।"


3. ध्यान मंत्र
"शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं,
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं,
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥"


·          

·         4. आवाहन और पूजन क्रम (षोडशोपचार या पंचोपचार)
गंध अर्पण — " गन्धं समर्पयामि"
अक्षत अर्पण — " अक्षतान् समर्पयामि"
पुष्प अर्पण — " पुष्पं समर्पयामि"
धूप — " धूपं समर्पयामि"
दीप — " दीपं समर्पयामि"
नैवेद्य — " नैवेद्यं निवेदयामि"
आचमन — " आचमनीयं समर्पयामि"
वस्त्र — " वासांसि समर्पयामि"
तुलसी दल — " तुलसीदलं समर्पयामि"

·         5. श्रीकृष्ण जन्मकथा (संक्षेप)
मथुरा में कंस ने आकाशवाणी सुनी कि देवकी का आठवाँ पुत्र उसका वध करेगा।

·         उसने देवकी और वसुदेव को बंदी बना लिया और उनके पहले छह पुत्रों का वध किया। सातवें गर्भ में बलराम थे जिन्हें रोहिणी को दे दिया गया।

·          अष्टमी, रोहिणी नक्षत्र, मध्यरात्रि में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।

·         वसुदेव ने उन्हें यमुना पार कर गोकुल में नंद-यशोदा के घर पहुँचा दिया, जहाँ उनका पालन-पोषण हुआ।

·         आगे चलकर श्रीकृष्ण ने कंस का वध कर धर्म की स्थापना की।

·         5. दशम स्कंध का संक्षिप्त पाठ
भागवत महापुराण के दशम स्कंध का कृष्ण जन्म प्रसंग संक्षेप में पढ़ें
देवकी-वसुदेव का विवाह, कंस का भय, छह पुत्रों का वध, बलराम का रोहिणी को स्थानांतरण, अष्टमी-रोहिणी पर जन्म, कारागार का द्वार खुलना, वसुदेव का यमुना पार करना, नंदगांव पहुँचना, यशोदा के यहाँ पालन।

दशम स्कंध का संक्षिप्त पाठमंत्र कथा सहित

1. मंगलाचरण
"
नमो भगवते वासुदेवाय" ( बार)
"
श्रीकृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणतः क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः॥"

2. कथा क्रम (भागवत महापुराण दशम स्कंध)

·         देवकी-वसुदेव विवाह
"
श्रीशुक उवाचअथ देवक्याः कंसेन सह परिकल्पिते विवाहे, दैवयोगेन गर्भस्थानां संहारायास्य चित्तं विक्षिप्तम्।"
(
संक्षेप: देवकी का विवाह वसुदेव से हुआ, कंस स्वयं रथ चला रहा था।)

·         कंस का भय आकाशवाणी
"
अथाश्रुतं दिव्यम्तवाष्टमो गर्भः त्वां हन्ता, हे कंस!"
(कंस ने तलवार उठाई, वसुदेव ने समझाया, वचन लिया।)

·         छः पुत्रों का वध
"
कालेन गर्भः प्रादुरासीद्, कंस ने जन्म पर उन्हें मार डाला।"

·         बलराम का रोहिणी को स्थानांतरण
"
योगमायायाः प्रेरणया सप्तम गर्भः रोहिण्याः उदरे न्यवेशित।"

·         अष्टमी-रोहिणी पर श्रीकृष्ण जन्म
"
निशीथसमये देवकी के कारागार में भगवान का प्रादुर्भावश्याम वर्ण, चार भुजाएँ, पीताम्बर, वज्र, शंख, गदा, चक्रधारी।"

·         वसुदेव का यशोदा के घर जाना
"
कारागार के द्वार खुल गए, पहरेदार सो गए, शेषनाग छाया कर रहे थे, यमुना मार्ग दी। वसुदेव ने कृष्ण को गोद में लेकर गोकुल पहुँचाया और यशोदा के पुत्र को ले आए।"

·         गोकुल पालन
"
यशोदा-नंद के यहाँ कृष्ण का पालन हुआ, सबने आनंद मनाया।"

कथा के अंत में
"
इति श्रीमद्भागवते महा पुराणे पारमहंस्यां संहितायामेकादश स्कन्धे दशम स्कन्धे श्रीकृष्ण जन्मनामाध्यायः सम्पूर्णः॥"

दीप आरतीदीप घुमाने का क्रम

  1. दाहिने हाथ में घी का दीप लें।
  2. पहले श्रीकृष्ण की प्रतिमा/झूले के चारों ओर तीन बार दीप घुमाएँ (घड़ी की दिशा में)
  3. शंख-घंटी बजाएँ, ताली बजाएँ।
  4. अंत में दीप को सभी उपस्थित भक्तों के सामने ले जाएँ, ताकि वे आरती लें।

" श्रीकृष्ण दीप आरती मंत्र

जय कन्हैया लाल की, जय कन्हैया लाल की।
पद कमलन में वन्दन करूँ, सेवा करूँ तन मन की॥

मोर मुकुट सिर शोभित, गले वैजयंती माला।
कटि पीताम्बर शोभित, कर में मधुर बंसी वाला॥
जय कन्हैया लाल की, जय कन्हैया लाल की॥

कान्हा तेरी मूरत प्यारी, नयन बने मदभरे।
ग्वाल-बाल संग खेलन को, निकसत घर घर तेरे॥
जय कन्हैया लाल की, जय कन्हैया लाल की॥

नंद के आनन्द नन्दन, वासुदेव के प्यारे।
सुखदाता जग के स्वामी, भक्त जनों के सहारे॥
जय कन्हैया लाल की, जय कन्हैया लाल की॥

 वैदिक दीप-श्लोक (श्रीकृष्ण नाम-संयुक्त)

दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते, दीप देवाय ते नमः।
सर्वपाप क्षयोपाय, दीप ज्योतिर्नमोऽस्तु ते॥

शुभं करोतु कल्याणं, आरोग्यं धनसंपदः।
शत्रु बुद्धि विनाशाय, दीप ज्योतिर्नमोऽस्तु ते॥

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीकृष्ण गुरवे नमः॥


श्रीकृष्ण नाम सहित दीप-स्तुति

कृष्णाय वासुदेवाय, हरये परमात्मने।
प्रणतः क्लेश नाशाय, गोविन्दाय नमो नमः॥

वासुदेव सुतं देवं, कंस चाणूर मर्दनम्।
देवकी परमानन्दं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥

7. समापन शांति मंत्र
"
स्वस्ति प्रजाभ्यः परिपालयन्तां न्यायेन् मार्गेण महीं महीशाः।
गोब्राह्मणेभ्यः शुभमस्तु नित्यं लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु॥"


·        
भोग-निवेदन (मंत्र सहित)

भोग मेंमाखन-मिश्री, पंचामृत, फल, खीर, मेवा, पंजीरी, लड्डू, मिश्री-पानी अर्पित करें।

अर्पण मंत्र:
"
नैवेद्यं निवेदयामि।

अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा।

अमृतापिधानमसि स्वाहा।

सत्यं त्वर्तेन परिसिंचामि स्वाहा।"

फिर जल अर्पण करते हुए
"
आचमनीयं समर्पयामि"


7. आरती जय कन्हैया लाल की" आरती के।


जय कन्हैया लाल की, जय कन्हैया लाल की।
सदगुणमंडित, सुंदर वदन, नंदलाल की।।
गोकुल में बजी बंसी, ब्रज में उठी खुशी।
ग्वाल-बाल संग खेलत, चितवन करि हँसी।।
जय कन्हैया लाल की, जय कन्हैया लाल की।

मोर मुकुट सिर शोभित, कंठ वैजयंती माला।
कटि पीताम्बर शोभित, कर में मधुर बंसी वाला।।
जय कन्हैया लाल की, जय कन्हैया लाल की।

जगमग ज्योति विराट, करि भक्तन का उद्धार।
माखन मिश्री लुटावत, प्रेम सुधा भरि अपार।।
जय कन्हैया लाल की, जय कन्हैया लाल की।

ब्रज की रज है प्यारी, राधा संग बिहारी।
करुणा सागर दीनदयाल, ब्रजजन के रखवाली।।
जय कन्हैया लाल की, जय कन्हैया लाल की।


·          

दोलन (झूला झुलाने की विधि)

1. तैयारी

  • श्रीकृष्ण की प्रतिमा/शिशु रूप को रजत, पीतल, लकड़ी या सजाए हुए झूले में रखें।
  • झूले को पुष्प, मोरपंख, बंदनवार और रेशमी वस्त्र से सजाएँ।
  • पास में घंटी, शंख, धूप-दीप और भोग रखें।

4. दोलन मंत्र (झूला झुलाते समय)
"
दोलायमानं चन्द्राभं चन्द्रकोटिसमप्रभम्।
गोपवेषधरं देवम् वन्दे व्रजजनप्रियम्॥"

या लोकप्रिय भक्ति मंत्र
"
लल्ला जी को झुलाएँ, मीठे मीठे गीत सुनाएँ।
जय कन्हैया लाल की, जय कन्हैया लाल की॥"


5. झूला झुलाते समय की क्रिया

  • दाएँ-बाएँ धीरे से झुलाएँ।
  • शंख बजाएँ, ताली बजाएँ, भजन गाएँ।
  • गोपिकाओं की तरहहरे के कृष्ण, कन्हैया लाल की जयबोलें।

6. भोग अर्पण और प्रसाद वितरण
झूला झुलाने के बाद
"
नैवेद्यं निवेदयामि" कहकर माखन-मिश्री, पंचामृत, फल, लड्डू आदि अर्पित करें।
फिर प्रसाद सभी को बाँटें।


7. समापन शांति मंत्र
" स्वस्ति प्रजाभ्यः परिपालयन्तां न्यायेन् मार्गेण महीं महीशाः।
गोब्राह्मणेभ्यः शुभमस्तु नित्यं लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु॥"


·         : 6. समापन
क्षमा प्रार्थना मंत्र

·         "यदत्र दोषं कृतं मे प्रार्थनापूर्वकं हरे। तत्सर्वं क्षम्यतां देव प्रसीद पुरुषोत्तम।"
इसके बाद आरती करें, प्रसाद बाँटें और बालकृष्ण को झूला झुलाएँ।

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16अगस्त 2025 को गृहस्थों के लिए दिन में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजन का संक्षिप्त, शास्त्रसम्मतजिसमें रात्री-कालीन (निशीथकाल) पूजन हो, बल्कि दिन में विधि हो।


📜 श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के संदर्भ में गृहस्थ वर्ग के लिए दिन में पूजन के शास्त्रीय प्रमाण, श्लोक, - साथ ही रात्रि निशीथकाल पूजन को केवल वैष्णव/संन्यासी/मंदिर परंपरा के लिए बताया गया है।


📜 1. धर्मसिन्धु (Janmashtami Vidhi)

अष्टमी व्याप्ते दिने पूजां गृहस्थो दिनकाले।
वैष्णवस्तु तथा कुर्यात् रात्रौ जन्ममहोत्सवे॥

हिंदी अर्थ:
यदि अष्टमी तिथि दिन में हो, तो गृहस्थजन दिन में पूजन करें।
वैष्णवजन (विशेषकर मंदिर के आचार्य, संन्यासी) रात्रि में जन्म-महोत्सव करें।

English meaning:
When Ashtami Tithi occurs during the day, householders should perform the worship in daytime.
Vaishnavas (monks, temple priests) may conduct the Janma Mahotsava at night.


📜 2. निर्णयसिन्धु (Vrat Khanda, Janmashtami)

गृहस्थानां दिने पूजाऽष्टम्यां प्रशस्यते।
संन्यासिनां तु रात्रौ स्यात् जन्मोत्सवविधिर्विधिः॥

हिंदी: गृहस्थों के लिए अष्टमी पर दिन में पूजन प्रशस्त है, संन्यासियों के लिए रात्री में जन्मोत्सव का विधान है।
English: For householders, daytime worship on Ashtami is commendable, while night celebration is prescribed for ascetics.


📜 3. भविष्यपुराण (उत्तरपर्व, श्रीकृष्ण जन्म वर्णन)

गृहस्थो दिवसे कुर्यात् पूजनं सर्वकामदम्।
रात्रौ चतुर्भुजो भक्त्या संन्यासी समुपाचरेत्॥

हिंदी: गृहस्थ दिन में पूजन करे, जो सर्वकामदायक है; संन्यासी रात्री में भगवान चतुर्भुज का भक्ति से पूजन करें।
English: The householder should worship during the day, bringing all desired blessings; the ascetic should worship the four-armed Lord at night with devotion.


📜 4. महाभारत (अनुशासन पर्व, वैष्णवव्रत महिमा)

गृहिणां दिवसे श्रेष्ठं वैष्णवानां निशामुखम्।

हिंदी: गृहस्थ के लिए दिन में पूजन श्रेष्ठ है, वैष्णव/संन्यासी के लिए रात्रि।
English: For householders, day worship is best; for Vaishnavas/monastics, night worship is proper.


📜 5. उपनिषद-भाव / वैष्णव तात्त्विक मत

वैष्णव तात्त्विक मत में

  • गृहस्थ आश्रम का मुख्य साधन दिवा-कालीन अर्चन और संध्या है, क्योंकि यह सात्त्विक प्रकाशकाल है।
  • रात्रि जागरण एक नैमित्तिक उत्सव है, जो मुख्यतः मठ/मंदिर परंपरा में आता है।

🔍 सारांश (Summary)

  • गृहस्थ वर्गअष्टमी दिन में हो तो पूजन दिवा-काल में करें।
  • वैष्णव संन्यासी / मंदिर परंपराअष्टमी की रात, निशीथकाल में जन्म-महोत्सव।
  • यह सिद्धांत धर्मसिन्धु, निर्णयसिन्धु, भविष्यपुराण, महाभारत आदि में एकमत से पाया जाता है।

 16 अगस्त 2025 को अष्टमी तिथि 21:34 (रात 9:34) तक ही है, तो शास्त्रीय नियमों के अनुसार गृहस्थ को अष्टमी के भीतर ही पूजन पूरा कर लेना चाहिए, और वह भी दिवा-काल में


शास्त्रीय आधार

  • धर्मसिन्धु: “अष्टमी व्याप्ते दिने पूजां गृहस्थो दिनकाले” → अष्टमी तिथि के भीतर दिन में पूजन करना ही गृहस्थ के लिए प्रशस्त।
  • निर्णयसिन्धु: गृहस्थों के लिए निशीथकाल की अपेक्षा नहींमुख्य नियम है अष्टमी समाप्ति से पहले पूजन
  • भविष्यपुराण: दिन में अष्टमी होने पर दिन में पूजन सर्वकामदायक।

व्यावहारिक सुझाव (16 अगस्त 2025)

  • चूँकि अष्टमी रात 9:34 तक है, गृहस्थजन को संध्याकाल या गोधूलि से पहले ही पूजन कर लेना चाहिए।
  • गोधूलि बेला (सूर्यास्त से 20-30 मिनट पूर्व/पश्चात) अत्यंत शुभ मानी जाती है, और यह दिवा-कालीन अष्टमी में आती है।
  • राहुकाल यमगण्ड से बचकर लग्न या चन्द्रबल अनुसार समय चुनें।

🔹 मतलबआपके लिए अधिकतम उत्तम यही होगा कि 16 अगस्त 2025 को शाम के आरंभिक समय या गोधूलि में पूजन पूरा कर लें, अष्टमी समाप्ति (21:34) से पहले।


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श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...