हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं ,क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया ,विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है ।
नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया |यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है ।
नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए।
कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ?
अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए ,उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै
प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय, तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम
अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए
कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए (पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए )तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है
* (कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष ,अपयश ,चिंता,हानि ,सहज हैशत्रु या विरोधी तन,मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है )
उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै
कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा ऊपर की ओर रखा जाए तो उससे रोग वृद्धि होगी
*( अन्य मानसिक शारीरिक प्रगति सुख-सुविधाएं संपन्नता आदि प्रभावित होती है रोग के कारण व्यय ,असुविधा ,समय अपव्यय ,आर्थिक कष्ट होने ही )
प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय,
कलश पर - पूर्व की ओर मुख करके नारियल रखा जाए तो वित्त नाश होगा
*(धन नाश,हानि होती है धन या वित्त आज सर्वाधिक उपयोगी आवश्यक महत्वपूर्ण है *पूजा करने वाले को पूजा करने केलिए भी धन अपरिहार्यहै होता है* धनाभाव सर्व सुख सुविधाओं में कमी करता है*)
तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम
कलश पर - नारियल को अपने सम्मुख रखना चाहिए अर्थात जो पूजा कर रहा है उसे नारियल का बड़ा हिस्सा अपनी ओर एवं जो पूछ वाला हिस्सा है या पतला भाग है वह भगवान या इष्टदेव की आयर रखना चाहिए *(एसा क्यो रखना चाहिए सामान्यता है पूजा करते समय ईश्वर याद एवम इष्ट देव की प्रतिमा को पूर्व में रखते हैं और उनका मुंह पश्चिम में होता है इसलिए ऐसी स्थिति नहीं बनती की पूर्व की ओर नारियल का मुख हो केवल देवी लक्ष्मी पूजा पश्चिम मुख होकर करते समय एसा हो सकता है )
*मेरे संज्ञान में कलश में उल्टा सीधा नारियल (फ़साने ,टिकाने ,घुसाने )रखने की विधि (अब तक किसी पुस्तक में) नहीं आई अतः किसी विद्वान को यदि कलश में नारियल फस कर या उल्टा सीधा रखने के पुराण वेद आदि में उल्लेख मिले तो अवश्य जानकारी दीजिये में धन्य हो जाऊंगा
*मेरा केवल इतना कथन है कि पूजा करना, प्रार्थना करना आवश्यक उपयोगी है यह आस्था ,श्रद्धा, समर्पण है -
यह आदि ऋषि मुनि वर्ग ने हमारे संघर्ष को कम करने, बाधाओं को दूर करने ,सुख ,शांति , संपन्नता में वृद्धि करने ,पूर्व जन्म कृतं कार्यों के अनिष्ट प्रभाव को दूर करने के, लिए प्रक्रिया /विधि /ज्ञान प्रदत्त वरदान स्वरुप है है परंतु इस में छोटी 2 बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक है जिनकी हम प्रायः सुविधाभोगी उपेक्षा करते है एवं न केवल स्वयं अन्य का भी अहित प्रतिपादित करते हैं .
*संदर्भित पुस्तक (यज्ञ मीमांसा के पृष्ठ346-लेखक वेद अध्यापाक वेद यज्ञ पंडित वेणीराम शर्मा गौड़ जोकि संस्कृत कॉलेज वाराणसी के प्राध्यापक १९३९ से रहे हैं)
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