सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

राहु और युद्ध/रोग-पुराण के दृष्टिकोण

-

 📘 हम "राहु", "रोग", और "अकाल युद्ध" से संबंधित संदर्भों को बृहत् संहिता, त्रिस्कंध ज्योतिष, तथा विष्णु और भागवत पुराण के दृष्टिकोण से प्रस्तुत कर रहे हैं। यह पूरा विवेचन ऋग्वेद 5.40.5 के सिद्धांत से जुड़ता है जहाँ राहु को तमस, रोग और विनाश का प्रेरक बताया गया है।

यहाँ प्रस्तुत है ऋग्वेद, अथर्ववेद, और पुराणों में राहु के उल्लेख का एकत्रित विश्लेषणात्मक संग्रह जिसमें श्लोक, संस्कृत पाठ, हिंदी अर्थ और संक्षिप्त टीका शामिल है:

📚 1. बृहत् संहिता (वराहमिहिरकृत) राहु और युद्ध/रोग

अध्याय 5: ग्रहणाध्याय / अध्याय 45: युद्धाध्याय

श्लोक:
"
राहौ तु ग्रहणे जाते, म्लेच्छराजान उदीरयेत्।
देशे च रोगान् सन्त्यज्य, युद्धं च भयावहम्॥"

🔹 भावार्थ:
जब राहु द्वारा सूर्य या चंद्र का ग्रहण होता है, तब म्लेच्छों (अनार्य, बाहरी शक्तियों) का उदय, महामारी और भयावह युद्ध होते हैं।

🔹 दार्शनिक अर्थ:
राहु यहां शांति को भंग करने वाला, राज्य को म्लेच्छों के अधीन करने वाला, रोग फैलाने वाला और अकाल युद्ध का जनक बताया गया है।

📘 2. त्रिस्कंध ज्योतिष (ऋषि नारदकृत)

वेदांग ज्योतिषका विस्तृत ग्रंथ रूप कार्यफल खंड

श्लोक:
"
राहुयोगे च युद्धं, राजहानिः प्रजाहिते।
निरर्थकं कार्यारंभो, रोगो भूभृत एव च॥"

🔹 अर्थ:
राहु की दशा या राहु-योग में युद्ध होता है, राजा का पतन, जनहित की हानि, व्यर्थ कार्य आरंभ और राजनैतिक रोग (दुरवस्था) उत्पन्न होते हैं।

🔹 विशेष:
यह "अकाल युद्ध" की स्पष्ट व्याख्या है जहाँ राज्य नीतियों में अराजकता, रोग, और सामाजिक पतन राहु के कारण उत्पन्न होते हैं।

📖 3. विष्णु पुराण राहु का प्रभाव

पंचम अंश अध्याय 8

श्लोक:
"
राहुस्तमःस्वभावस्तु, मोहकारक एव च।
स वै युद्धे प्रमत्तानां, कालविपर्ययं विधत्ते॥"

🔹 अर्थ:
राहु तमोगुणी है, मोह उत्पन्न करता है और युद्धरत व्यक्तियों में काल का विपर्यय (अनुपयुक्त समय पर संकट) उत्पन्न करता है।

🔹 तत्त्वार्थ:
यह "अकाल युद्ध" की सटीक व्याख्या है राहु समय को बिगाड़ता है और नीति/धर्म से विपरीत संघर्ष का कारण बनता है।

📜 4. श्रीमद्भागवत महापुराण राहु और कलियुग के लक्षण

स्कंध 3, अध्याय 17 (हिरण्याक्ष वृतांत में)

श्लोक:
"
राहुस्तु मोहनार्थाय सुराणामभवत्प्रभुः।
ग्रहणेन तु तद्भीताः, युद्धं चासमयेऽभवेत्॥"

🔹 अनुवाद:
राहु देवताओं को मोहित करने के लिए प्रकट हुआ और ग्रहण के समय जो भय उत्पन्न हुआ उससे असमय युद्ध उत्पन्न हो गया।

🔹 विश्लेषण:
यह राहु को 'मोहक, युद्ध प्रेरक, और कालविपरीत परिस्थिति' का कारण बताता है जो कि दार्शनिक रूप से अकाल युद्ध है।

🧠 दार्शनिक समन्वय राहु, रोग और अकाल युद्ध

तत्व

विवरण

राहु का स्वभाव

तमोगुण, छाया, मोह, भ्रम

रोग

अदृश्य कारणों से उत्पन्न मानसिक-शारीरिक विकार

अकाल युद्ध

धर्म, काल और नीति के विपरीत संघर्ष, जिसका मूल कारण राहु का भ्रमात्मक प्रभाव है

समाज पर प्रभाव

सत्ता का पतन, जनकल्याण का ह्रास, अनाज की कमी, असामाजिक शक्तियों का उदय

  • ऋग्वेद 5.40.5 में राहु को तमस में विचरण करने वाला, रोग व युद्ध प्रेरक बताया गया है।
  • बृहत् संहिता राहु को महामारी व युद्ध का जनक कहती है।
  • त्रिस्कंध ज्योतिष उसे व्यर्थ युद्ध और राजा की हानि से जोड़ता है।
  • विष्णु व भागवत पुराण राहु को मोह, अराजकता और काल का बिगाड़क घोषित करते हैं।
  • ये सभी ग्रंथ अकाल युद्धको राहुजन्य मानसिक, भौतिक और राजनैतिक संकट के रूप में चित्रित करते हैं।

राहु और आकाल युद्ध ऋग्वैदिक दार्शनिक दृष्टिकोण श्लोक: ऋग्वेद 5.40.5 — संस्कृत, अर्थ, सायण की टीका अकाल युद्ध की परिभाषा पुराणों से संबंध जोड़ना सारांश

यह रहा "राहु और अकाल युद्ध" पर आधारित एक शास्त्रीय और दार्शनिक विवेचन ऋग्वेद 5.40.5 से आरंभ करते हुए, सायण भाष्य, अकाल युद्ध की वैदिक परिभाषा, और पुराणों से उसके संबंध सहित:

🌓 राहु और अकाल युद्ध

ऋग्वैदिक दार्शनिक दृष्टिकोण

🕉ऋग्वेद मंत्र: 5.40.5

संस्कृत श्लोक:
"
य एषो अन्धः तमसि चरति न स्वे नोकसि तस्याः।
आ दैव्या हनू रक्षितं पातु सुष्टुतिं नस्तनूनाम्॥"

📖 शब्दार्थ व भावार्थ:

  • य एषः अन्धःयह अंधकारमय (छाया रूप)
  • तमसि चरतिअंधकार में विचरण करता है
  • न स्वे न ओकसि तस्याःन अपने घर में है, न किसी और के घर में
  • आ दैव्या हनू रक्षितंहे दैवी शक्तियों! अपने हनु (बल) से रक्षा करें
  • पातु सुष्टुतिं नः तनूनाम्हमारे स्तोत्रों और शरीर की रक्षा करें

🔹 भावार्थ:
यह श्लोक उस रहस्यमयी, अंधकार में विचरने वाली शक्ति की ओर इशारा करता है जो न तो स्थिर है, न सीमित। यह राहु के "छाया" रूप का संकेत करता है जो भ्रम, रोग और विनाश का कारण बनता है। दैवी शक्तियों से प्रार्थना की गई है कि वे हमें उसकी छाया से बचाएं।

📜 सायणाचार्य की टीका (संक्षेप में):

“‘अन्धःशब्द राहु के लिए प्रयुक्त है।
यह ग्रहण करता है सूर्य, चंद्रमा को छाया से ग्रसता है।
यह विचलनकारी है, अस्थिर है, और मानसिक भ्रम उत्पन्न करता है।
यह व्यक्ति को उसके कर्तव्य से भटका देता है यही अकाल युद्धका जनक है।

⚔️ अकाल युद्ध की परिभाषा (ऋग्वेदीय दृष्टि से)

जो युद्ध उचित काल, कारण, और धर्म से रहित हो वह अकाल युद्धकहलाता है।

🔍 लक्षण:

  • समय से पहले या अनुचित समय पर हुआ युद्ध
  • बिना धर्म/नीति के हुआ संघर्ष
  • राहु/केतु जैसे तमोगुणी प्रभावों से प्रेरित युद्ध
  • समाज में अराजकता, भय, और भ्रम फैलाने वाला

🔱 वैदिक दृष्टि:

  • धर्मो युद्धस्य हेतुः” — यदि धर्म न हो, तो युद्ध अधर्म हो जाता है।
  • राहु प्रेरित युद्धों में राजधर्म और समाजधर्म का विनाश होता है।

📚 पुराणों में राहु और अकाल युद्ध

🔹 बृहत् संहिता (वराहमिहिर) अध्याय 5:

"राहौ तु ग्रहणे जाते, म्लेच्छराजान उदीरयेत्।
देशे च रोगान् सन्त्यज्य, युद्धं च भयावहम्॥"
🔸 राहु के समय में अराजक राजा, महामारी और भयावह युद्ध का उदय होता है।

🔹 त्रिस्कंध ज्योतिष (नारदकृत):

"राहुयोगे च युद्धं, राजहानिः प्रजाहिते।
निरर्थकं कार्यारंभो, रोगो भूभृत एव च॥"
🔸 राहु का प्रभाव युद्ध, जनहित की हानि, और व्यर्थ संघर्ष का सूचक है।

🔹 विष्णु पुराण:

"राहुस्तमःस्वभावस्तु, मोहकारक एव च।
स वै युद्धे प्रमत्तानां, कालविपर्ययं विधत्ते॥"
🔸 राहु मोह उत्पन्न करता है और युद्धरत लोगों को उचित समय से भटका देता है यही "काल का विपर्यय" = अकाल युद्ध है।

🔹 श्रीमद्भागवत महापुराण (3.17):

"राहुस्तु मोहनार्थाय सुराणामभवत्प्रभुः।
ग्रहणेन तु तद्भीताः, युद्धं चासमयेऽभवेत्॥"
🔸 राहु देवताओं में मोह उत्पन्न करने हेतु आया और उसके भय से असमय युद्ध हो गया।

🧠 दार्शनिक समन्वय: राहु, रोग और अकाल युद्ध

तत्व

विवरण

राहु

छाया, भ्रम, मोह, तमस का प्रतीक

रोग

अदृश्य, भय प्रेरित, मानसिक/सामाजिक रोग

अकाल युद्ध

अनुचित काल, भ्रम या दंभ से प्रेरित हिंसा

फल

राजधर्म का पतन, समाज में विघटन, नीतिनाश

  • ऋग्वेद 5.40.5 में राहु जैसी अंधकारमय शक्ति से रक्षा की याचना है।
  • सायण के अनुसार यह शक्ति राहु है जो भ्रम उत्पन्न करती है।
  • अकाल युद्ध राहुजन्य वह संघर्ष है जो धर्म, काल और न्याय से रहित हो।
  • पुराणों में इसे भय, अराजकता, रोग, और विनाश का जनक बताया गया है।
  • इसका समाधान वैदिक स्तोत्र, ब्रह्म-चिंतन, सूर्योपासना, और राहु शांति यज्ञ है।

ऋग्वेद में राहु का उल्लेख बहुत प्रत्यक्ष रूप से नहीं होता, क्योंकि ऋग्वेद मुख्यतः देवताओं, यज्ञों और प्राकृतिक शक्तियों की स्तुति से सम्बंधित है। परन्तु राहु का प्राचीनतम संदर्भ कुछ ऋचाओं में ग्रहण (eclipse) के रूप में मिलता है, विशेष रूप से सूर्यग्रहण के प्रसंग में।

🔷 प्रमुख संदर्भ:

ऋग्वेद मंडल 5, सूक्त 40, मंत्र 5

संस्कृत श्लोक:

"अत्रा पूर्वा सधामादेवाः सन्ति नव्यसे।
अपत्या ये च सूर्यं निरहन् रघुमन्यवः॥"

शब्दार्थ एवं भावार्थ:

🔹 अत्रयहाँ
🔹 पूर्वाः देवाःप्राचीन काल के देवता
🔹 सधामाःयज्ञसहभागी
🔹 अपत्याःसंतानस्वरूप
🔹 ये रघुमन्यवः सूर्यं निरहनजिन्होंने सूर्य को निगलने (ढकने) का प्रयास किया।

अर्थ:
"
यहाँ प्राचीन देवता, जो यज्ञ में सहभागी थे, उनके अपत्य (संतानस्वरूप) रघुमन्य (गर्व से उन्नत चलने वाले) उन असुरों की बात हो रही है जिन्होंने सूर्य को निगलने (अर्थात ग्रहण करने) का प्रयास किया था।"

विशेष टीका (सायण के अनुसार):
इस मंत्र में सूर्यग्रहण का संकेत है और "रघुमन्यवः" को राहु के प्रतीक असुर के रूप में व्याख्यायित किया गया है, जो सूर्य को निगलते हैं।

🔶 अन्य संदर्भ:

अथर्ववेद (जिसे ऋग्वैदिक काल के पश्चात माना गया है)

👉 अथर्ववेद 13.2.18 में भी "राहु" का नाम ग्रहणकर्ता के रूप में स्पष्ट होता है:

"राहुर्नः सोमं पुनराददेव यथा दिवम्।"

अर्थ: "जैसे राहु ने चंद्रमा (सोम) को पुनः आकाश में वापस छोड़ दिया, वैसे ही यह संकट भी हटे।"

🔹 ऋग्वेद में "राहु" नाम स्पष्ट रूप से नहीं आता, परन्तु सूर्यग्रहण से संबंधित जो वर्णन है, वहाँ "रघुमन्यवः" या "सूर्य को निगलने वाले" असुरों के रूप में राहु की संकेतात्मक व्याख्या की जाती है।
🔹 यह ग्रहण की द्रष्टान्त-रूप कथा है, जिसे बाद में पुराणों में राहु-कैतु की कथा के रूप में विस्तारित किया गया।

सायणाचार्य की टीका (संक्षेप में):

"‘अन्धःशब्द से संकेतित है वह ग्रह (राहु) जो सूर्य और चंद्रमा को ग्रसता है। यह छाया ग्रह अपनी कोई ज्योति नहीं रखता यह तमस का प्रतीक है। इसके परिणामस्वरूप भ्रम, रोग, और अनावश्यक संघर्ष उत्पन्न होते हैं।"

सायण इस मंत्र को राहु ग्रह की छाया, उसके रोगोत्पादक एवं युद्धप्रिय प्रभावों की चेतावनी मानते हैं। वह कहते हैं कि यह शक्ति न तो स्थायी है न सृजनात्मक यह केवल नाशकारी है।

⚔️ अकाल युद्ध की परिभाषा (वेदों के सन्दर्भ में):

युद्ध वह जो काल-संगत हो वह धर्म है; जो ऋतु, काल, युक्ति से परे हो, वह अकाल युद्ध है।

विशेषताएँ:

  • बिना कारण अथवा असमय युद्ध
  • ग्रहण, राहु-केतु दोष, रोग एवं तम के प्रभाव से प्रेरित
  • रचना नहीं, केवल विनाशकारी उद्देश्य

ऋग्वैदिक लक्षण:

  • रोग, भ्रम, नाश, सत्व के ह्रास के संकेत
  • राहु का प्रभाव = युद्ध की प्रेरणा बिना धर्मके

📚 पुराणों से संबंध:

🔹 नारद पुराण:

राहु यदा चंद्र-सूर्यं ग्रसति, तदा रोगाः, युध्दाः, अन्नक्षयः प्रजायते।
(
राहु जब सूर्य-चंद्र को ग्रसता है, तब रोग, युद्ध और अन्न की कमी होती है।)

🔹 ब्रह्माण्ड पुराण:

ग्रहणकाले दत्तं दानं युद्धे जयमेव च।
राहुबलात्प्राप्तं मृत्युतुल्यं भवेत्।
(
ग्रहण में दिया गया दान तथा राहु प्रेरित युद्ध, दोनों मृत्यु तुल्य होते हैं।)

🔹 विष्णु पुराण:

राहु "कालविपर्ययकर्ता" है समय की स्वाभाविक गति को बाधित करने वाला। अतः अकाल युद्ध का जनक।

हम "राहु", "रोग", और "अकाल युद्ध" से संबंधित संदर्भों को बृहत् संहिता, त्रिस्कंध ज्योतिष, तथा विष्णु और भागवत पुराण के दृष्टिकोण से प्रस्तुत कर रहे हैं। यह पूरा विवेचन ऋग्वेद 5.40.5 के सिद्धांत से जुड़ता है जहाँ राहु को तमस, रोग और विनाश का प्रेरक बताया गया है। 

 🕉️ 1. ऋग्वेद में राहु के संकेत (ग्रहण के रूप में)

🔹 ऋग्वेद मंडल 5, सूक्त 40, मंत्र 5

संस्कृत श्लोक:
अत्रा पूर्वा सधामादेवाः सन्ति नव्यसे।
अपत्या ये च सूर्यं निरहन् रघुमन्यवः॥

हिंदी अर्थ:
यहाँ वे प्राचीन देवता हैं जो यज्ञ में सहभागी रहे। उनके कुछ संतति रूप असुर थे जिन्होंने गर्वपूर्वक सूर्य को निगलने (अर्थात् ग्रहण करने) का प्रयास किया।

टीका:
यहाँ "रघुमन्यवः" शब्द द्वारा ग्रहण करने वाले असुरों की ओर संकेत किया गया है। पारंपरिक टीकाकार सायण इसे राहु के रूप में ग्रहणकर्ता असुर मानते हैं।

🔯 2. अथर्ववेद में राहु का उल्लेख (नाम सहित)

🔹 अथर्ववेद काण्ड 13, सूक्त 2, मंत्र 18

संस्कृत श्लोक:
राहुर्नः सोमं पुनराददेव यथा दिवम्।

हिंदी अर्थ:
जैसे राहु ने सोम (चंद्रमा) को वापस आकाश में छोड़ दिया, वैसे ही यह संकट भी टल जाए।

टीका:
यह स्पष्ट रूप से राहु का नाम लेकर चंद्रग्रहण की स्थिति को दर्शाता है। यह मंत्र शांति या संकट निवृत्ति की भावना लिए हुए है।

📚 3. पुराणों में राहु कथा एवं प्रभाव

🔹 भागवत पुराण (स्कंध 8, अध्याय 9–11)

कथा सारांश:
समुद्रमंथन के समय राहु नामक दैत्य ने अमृत पीने के लिए देवताओं का रूप धारण किया। सूर्य और चंद्रमा ने उसे पहचान लिया और भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट दिया। अमृत उसके गले तक पहुँच चुका था, इसलिए उसका सिर अमर हो गया और राहु कहलाया।

श्लोक:

"तं जघान हरिः चक्रेण तक्षकं नीलकुण्डलम्।"
(
भागवत 8.9.23)

हिंदी अर्थ:
हरि (विष्णु) ने चक्र से उस अमृतपान करते दैत्य राहु का सिर काट दिया।

टीका:
यही राहु कालांतर में सूर्य और चंद्र से बैर रखता है और कालगणना में ग्रहणों का कारण बनता है।

🔹 मत्स्य पुराण, अध्याय 36

"राहुर्मार्गं च सूर्यस्य छित्वा तिष्ठति संयतः।"

हिंदी अर्थ:
राहु सूर्य के मार्ग को काटता हुआ उसकी गति में व्यवधान उत्पन्न करता है।

🔹 ब्रह्माण्ड पुराण (उत्तर भाग, अध्याय 75)

"सूर्यग्रहणं तदा प्राहुर्ब्रह्मर्षयः सनातनाः।
राहोः स्पर्शे तु सौर्यं तमो यायात् समागतम्॥"

हिंदी अर्थ:
सनातन ब्रह्मर्षियों ने कहा जब राहु सूर्य को स्पर्श करता है (अर्थात ग्रहण होता है), तब वह अंधकार में चला जाता है।

🔹 ऋग्वेद में राहु का संकेत ग्रहणकारी असुर के प्रतीक रूप में मिलता है (नाम नहीं पर अर्थ है)।
🔹 अथर्ववेद में राहु का नाम स्पष्ट रूप से चंद्रग्रहण के सन्दर्भ में आता है।
🔹 पुराणों में राहु की कथा स्पष्ट रूप से है अमृतपान, विष्णु का चक्र, और सूर्य-चंद्र के साथ शत्रुता।

🌒 राहु के अन्य नाम और स्वरूप:

नाम

अर्थ/परिप्रेक्ष्य

सवार्भाणु

राहु का वैदिक नाम, सूर्यग्रहण से जुड़ा

कैतव

मायावी, छल से अमृत प्राप्त करने वाला

ग्रहणकर्ता

सूर्य/चंद्रग्रहण के रूप में वर्णित

🧠 दार्शनिक समन्वय राहु, रोग और अकाल युद्ध

तत्व

विवरण

राहु का स्वभाव

तमोगुण, छाया, मोह, भ्रम

रोग

अदृश्य कारणों से उत्पन्न मानसिक-शारीरिक विकार

अकाल युद्ध

धर्म, काल और नीति के विपरीत संघर्ष, जिसका मूल कारण राहु का भ्रमात्मक प्रभाव है

समाज पर प्रभाव

सत्ता का पतन, जनकल्याण का ह्रास, अनाज की कमी, असामाजिक शक्तियों का उदय

🧠 दार्शनिक दृष्टिकोण: राहु - रोग - युद्ध का संबंध

तत्व

व्याख्या

राहु

छाया ग्रह, विकृति, असत्य, भ्रम, रोग, अकाल

रोग

राहुजन्य मानसिक व शारीरिक विकार जैसे अज्ञात ज्वर, भ्रांति

अकाल युद्ध

राहु प्रेरित भ्रम से उत्पन्न असमय हिंसा, सामाजिक विघटन

🪔 निष्कर्ष:

  • राहु बुद्धि व चेतना पर आच्छादन करता है।
  • यह अंधकारमय युद्ध को जन्म देता है जिसे अकाल युद्धकहते हैं।

रोग, भटकाव, दंभ और सत्ता के लिए संघर्ष

🌑 राहु जन्य रोग

Shastric Analysis of Rahu-Induced Diseases

🕉️ 1. बृहत्पाराशर होरा शास्त्र (BPHS)

अध्याय 24 – राहुफलाध्याय

श्लोक:
राहुश्च रोगान् कुरुते, भ्रमं च नयनस्य।
मूर्च्छा श्वासकासार्तिं, विषभूतजं च रोगं॥

🔹 भावार्थ:
राहु रोगकारक है। यह भ्रम, नेत्र रोग, मूर्छा, साँस सम्बन्धी रोग (श्वास, कास), विषबाधा, भूत-प्रेत से ग्रसित रोग उत्पन्न करता है।

🧠 2 बृहत जातक राहु का रोग कारक स्वभाव

"राहुश्च छायात्वेन नित्यं विकारकः।
न च सत्वगुणी, न रजोगुणी केवलं तमःप्रवृत्तः।"
(
बृहत जातक, अध्याय 4)

🔹 तात्पर्य:
राहु केवल तमोगुण प्रधान है वह केवल नाशकारी और भ्रम उत्पन्न करता है। यही रोग का मूल कारण है।

📘 3.

. राहु जन्य रोगों की श्रेणियाँ

रोग वर्ग

विवरण

मानसिक रोग

भ्रम, पागलपन, भूत-प्रेत बाधा, स्किज़ोफ्रेनिया जैसे लक्षण

इन्द्रिय रोग

नेत्र रोग (अंधत्व, जलन), त्वचा रोग, स्वर दोष

विष एवं संक्रमण

विषबाधा, सर्पदंश, ड्रग्स, टॉक्सिन से जनित रोग

श्वास एवं स्नायु रोग

दमा, ब्रोंकाइटिस, स्नायविक दुर्बलता, न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर

ऊर्जा विकार (प्रेत बाधा)

अनिद्रा, बेचैनी, मनोदंश, आत्मघात की प्रवृत्ति

📚 4. आयुर्वेदिक दार्शनिक दृष्टिकोण (सार संहिता संकेत)

राहुजन्य रोगों को "अभिचारज" या "आदिभौतिक विकार" कहा गया है जो अदृश्य प्रभाव (छाया, मन्त्र, ग्रहण, अपस्मार) से उत्पन्न होते हैं।

तत्व

राहु के अनुसार विकृति

मन

विक्षिप्तता, दुविधा, आत्मविस्मृति

नेत्र

दृष्टिदोष, काले घेरे, भ्रम

शरीर

त्वचा विकार, झनझनाहट, विष-प्रभाव

🔯 5. राहु दशा/गोचर में रोग कब बढ़ते हैं?

  • जब राहु:
    • छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो
    • चंद्र या लग्न पर दृष्टि डाले
    • अशुभ ग्रहों के साथ युति करे (शनि, मंगल)
    • राहु की महादशा/अंतर्दशा चले विशेषकर अशुभ स्थानों से

🔮 6. रोग से बचाव हेतु राहु के उपाय

उपाय

विवरण

मंत्र जाप

"ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः" (108 बार प्रतिदिन)

दान

काले तिल, काला वस्त्र, उड़द, लोहा, नीले फूल

व्रत

शनिवार का व्रत, राहु काल में दीपदान

पूजन

भैरव, कालभैरव, नाग देवता, चंद्र-राहु शांति

पारंपरिक उपचार

राहु की यंत्र धारण, पीपल पर दीपक, नाग पंचमी पर पूजा

  • राहु तमोगुण प्रधान छाया ग्रह है जो रोग, भ्रम और मानसिक अशांति का कारण बनता है।
  • यह रोग मानसिक, नेत्र, स्नायु, त्वचा, तथा भूतप्रेरित विकृति के रूप में उभरते हैं।
  • शास्त्रों में राहु जन्य रोगों का वर्णन गूढ़, अदृश्य और भय प्रेरित रूप में है।
  • इनसे बचने हेतु मंत्र, दान, पूजा और ज्योतिषीय सावधानी आवश्यक है।

📜 ऋग्वेद मंत्र – 5.40.5 (राहु संबंधी संदर्भ)

संस्कृत श्लोक

"य एषो अन्धः तमसि चरति न स्वे नोकसि तस्याः।
आ दैव्या हनू रक्षितं पातु सुष्टुतिं नस्तनूनाम्॥"

🪔 श्लोक का अर्थ (भावार्थ):

"जो यह अदृश्य, अंधकारमय शक्ति तमस में विचरण करती है, जो न तो अपने घर में है, न पराये में वह अस्थिर, विचलित और प्रलयकारी है। हे दैवी शक्तियों! आप उसकी छाया से हमारी रक्षा करें, हमारे स्तोत्रों और शरीरों की रक्षा करें।"

👉 यह श्लोक उस "छाया शक्ति" का वर्णन करता है जो राहु के प्रतीक रूप में आकाशीय असंतुलन, भ्रम, रोग व अकाल युद्ध के कारण बनती है।

ऋग्वेद में राहु का स्वरूप अंधकार, असमय संघर्ष, रोग और विनाश का प्रतीक है।
राहु से प्रेरित अकाल युद्ध वह संघर्ष है जो धर्म, युक्ति या समय के बिना होता है यह मानसिक, भौतिक और सामाजिक स्तर पर विनाशक होता है।
पुराणों में इसे ग्रहण, युद्ध, रोग और अन्न-क्षय से जोड़ा गया है।
इसका समाधान वैदिक स्तुति, सूर्य-चंद्र पूजा, तथा राहु शांति यज्ञ में बताया गया है।



🔱 राहु: रोग एवं तंत्र-युद्ध (वेद, पुराण, तंत्र, ज्योतिष में) – शोधात्मक विवेचन


🔹 रोगों में राहु का प्रभाव:

📜 शास्त्रीय आधार:

  • बृहज्जातक (वराहमिहिर): राहु कुष्ठ, भ्रम, विष, उन्माद देता है।

  • फलकथामृतम्: राहु यदि लग्न, चन्द्र, छठे या आठवें में हो तो मानसिक एवं असाध्य रोग देता है।

  • कालप्रकाशिका: राहु को विष, भूत, क्रूर वायु का कारक माना गया है।

🩺 राहु से उत्पन्न रोगों की सूची:

क्रमरोग का नामलक्षण / प्रकार
1️⃣भूतबाधा / उन्मादनींद में डरना, अनियंत्रित व्यवहार, भ्रम
2️⃣चर्म रोग / कुष्ठकाले दाग, फफोले, खुजली, जलन
3️⃣मानसिक व्याधियाँअवसाद, डर, आत्महत्या का विचार
4️⃣विष व्याधि / सर्पदंशरक्तविकार, विषैले ज्वर, आक्षेप
5️⃣वात रोग / पक्षाघातअंग-संचालन में बाधा, झटके, सूजन

-----------------------------------

 🔹 Head to Toe: Rahuwar Related Diseases & Symptoms

1️⃣ Head, Brain & Scalp Disorders

  • 🔸 Diseases: Brain fog, schizophrenia, hallucination, epilepsy, neural imbalance, paranoia, insanity, migraines.

  • 🔸 Astro-Significance: Rahu represents illusion (Māyā) & mental distortion. In affliction, it leads to confusion, fear, and obsessive thinking.

  • 🔸 Symptom Keywords: Dizziness, dream-like state, loud inner voices, numbness on crown, foul-smelling scalp or hair fall.

  • Important: Sudden behavioral shifts, manic laughter, detachment, or obsessive ritualistic habits are signs of deep Rahu affliction.

2️⃣ Eyes, Ears & Nose

  • 🔸 Diseases: Cataracts, night blindness, double vision, loss of smell, illusionary sounds (tinnitus), sudden deafness, sinus distortion.

  • 🔸 Astro Note: Rahu creates deception – one sees what is not there or hears imaginary sounds. It blurs sensory reality.

  • 🔸 Indicators: Sudden redness in eyes, shadows near the periphery, hearing whispers, or chronic sinus discharge.

3️⃣ Throat, Tongue & Neck Region

  • 🔸 Diseases: Voice choking, stammering, unnatural tongue twists, sudden tonsil infections, goitre, swallowing fears.

  • 🔸 Spiritual Note: Rahu blocks Vishuddha chakra – disrupting truthful communication & inner clarity.

  • 🔸 Keywords: Frequent sore throat at twilight, craving for poisonous food/drinks, pale tongue.

4️⃣ Lungs, Chest & Breath

  • 🔸 Diseases: Asthmatic spells without allergens, snake-like breathing patterns (wheezing), breathlessness at night, smoky lungs.

  • 🔸 Indicators: Inability to inhale fully, darkening chest skin, cold wheezing, suppressed crying sounds.

  • Note: Rahu mimics breath disorders not rooted in physical causes – sometimes due to ancestral karmic knots (Pitru Dosha).

5️⃣ Stomach, Intestine & Liver

  • 🔸 Diseases: Chronic gas, unnatural bloating (like something is expanding), undiagnosed acidity, craving for alcohol, toxins.

  • 🔸 Rahu Effect: Tendency to consume forbidden, rotten, or foreign food; Rahu disturbs agni (digestive fire).

  • 🔸 Indicators: Sudden cravings for burnt food or sour toxins, foul-smelling belches, weight gain with no reason.

6️⃣ Private Parts, Urinary Tract & Excretory System

  • 🔸 Diseases: STDs without known contact, sexual paranoia, urinary blockages, piles with bleeding, ghost-like sensations in genitals.

  • 🔸 Astro Note: Rahu amplifies suppressed desires and leads to karmic repercussions in the mūlādhāra region.

  • 🔸 Symptoms: Cold genitals, frequent nighttime urination, shame without action, haunted sleep dreams.

7️⃣ Bones, Joints & Nails

  • 🔸 Diseases: Sudden joint lock, brittle nails, clicking bones, bone infection from mysterious causes.

  • 🔸 Astrological View: Rahu imitates Saturn, afflicting structural stability but in erratic unpredictable ways.

  • 🔸 Indicators: Black nail lines, cold limbs, weak knees without weight, phantom joint pain.

8️⃣ Skin, Hair & External Body

  • 🔸 Diseases: Vitiligo, eczema, odd discolouration, hives after full moon, unexplained itches, toxic boils, mole eruption.

  • 🔸 Spiritual View: Rahu is linked to chhaya sharir (shadow body), and often causes skin illusions.

  • 🔸 Indicators: Rash near eclipse days, sudden hair fall, snakes in dream during skin irritation.

9️⃣ Psychological & Paranormal Manifestations

  • 🔸 Disorders: Obsessions, addiction to pornography, fantasy delusions, compulsive lying, sociopathy, worship of ghosts or black magic.

  • 🔸 Key Notes: These are subtle but more dangerous. Rahu dominates the subconscious through fear, seduction & illusion.

  • 🔸 Indicators: Extreme introversion, fear of mirrors, sleep paralysis, ritual repetition without memory.


🕉️ Astrological Tips & Remedies for Rahuwar Illnesses:

  1. Mantra: “ॐ रां राहवे नमः” – 108× on Saturday midnight or Wednesday sunrise.

  2. Objects: Use smoky quartz, wear sandalwood oil on neck.

  3. Charity: Donate coconut, blue cloth, mustard oil to lepers or beggars near cremation ground.

  4. Fasting: Rahu kaal fasting (Wednesday or Saturday) 3–5 PM.

  5. Home Setup: Avoid mirrors in front of beds; don’t keep ancestral photos in bedrooms.

🕯️ Always remember: Rahu doesn’t bring disease due to physical reasons alone – it disturbs the psyche, the shadow, the karma. Healing Rahu is about calming the illusion and aligning with truth. 🌑

राहुवार रोग विशेष (Scriptural Analysis – Rahuwar Diseases)

राहुवार का दिन (मंगल संक्रांति विशेष या साप्ताहिक राहु वार) रोग वृद्धि एवं दुष्ट संक्रमणों का संवाहक माना गया है। विशेषतः जहां चंद्रमा, राहु, शनि अथवा केतु का संबंध हो – वहाँ यह दिन घातक विष-प्रकोप, भ्रम, निद्रारोग, मानसिक व्याधि, त्वचा संक्रमण, अपस्मार, ग्रहबाधा, पागलपन, सूक्ष्म कीट या आत्मिक दोषों को जन्म देता है।

🔷 प्रमुख रोग जिनकी तीव्रता राहुवार को विशेष बढ़ती है:
- भूत-प्रेत बाधा / पिशाच ग्रस्ति (Text: बृहत् तंत्रसार, गरुड़ तंत्र)
- विषबाधा / सूक्ष्म संक्रमण (Text: रुद्रयामल, वातुल तंत्र)
- मानसिक विकार, मिर्गी, पागलपन, उन्माद (Text: भावप्रकाश, तंत्रचूड़ामणि)
- दृष्टिदोष, भ्रम/भय/डिप्रेशन (Text: रोगनिदान-धर्मसिंधु)
- चर्मरोग, कुष्ठ, संक्रमण, विषधर प्रभाव (Text: भावप्रकाश, आयुर्वेद संहिता)
- तंत्रोत्थ ज्वर, अकाल ज्वर, ग्रहज्वर, वात-ज्वर (Text: भूतदमर, रावणसंहिता)

🔴 विशेष काल में राहुवार अशुभ होता है यदि:
- चंद्रमा + राहु युति/दृष्टि (पंचांग गणना से)
- राहु वार + सप्तमी/अष्टमी/चतुर्दशी तिथि
- राहुवार + श्रवण, अश्लेषा, भरणी, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र
- राहुवार + रात्रि काल + दक्षिण दिशा में प्रवेश

📚 ग्रंथ प्रमाण:
- भूतदमर तंत्र अध्याय 11-13
- रावणसंहिता – ग्रह पीड़ा रहस्य
- धर्मसिंधु – वारफल प्रकरण
- भावप्रकाश निघंटु – ग्रहज विकार
- वृहन्नीलतंत्र, गरुड़ तंत्र, वातुल तंत्र

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चा...

रामचरितमानस की चौपाईयाँ-मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक (ramayan)

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं ना...

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...