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सितंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

श्राद्ध शब्द वैदिक नहीं परन्तु पितृ कर्म कल्याणकारी अवश्य है |

  श्राद्ध शब्द वैदिक नहीं परन्तु पितृ कर्म कल्याणकारी अवश्य है |                             (अनेकानेक ग्रथो में हजारो वर्ष से वर्णित ) (आज सोशल साईट पर अनर्गल टीका,टिप्पणी, व्यग्य ,उपहास घटना,कथा,चुटकुले बना कर परोसने का प्रमुख विषय - श्राद्ध कर्म विषय है | नास्तिक,धर्म-संस्कार हीन विचार के उत्प्रेरक ,सामाजिक (परम्परा,रीति-रिवाज ) कर्तव्य विहीन वर्ग ,विश्व के विश्व का प्राचीनतम एवं   एक मात्र एसे धर्म जो (विज्ञानं सम्मत भी है ) ग्रह ,नक्षत्रो पर आधारित है (जिनके प्रभाव से चर अचर समस्त जगत प्रभावित है “सनातन धर्म “ ) पर व्यग्य लिख कर अपने अल्प ज्ञान का प्रदर्शन करने में लगा है | उनको ज्ञात नहीं है कि उच्च कोटि के   विज्ञानं सम्मत धर्म में ‘श्राद्ध कर्म “ मृत्यु उपरांत आत्मा की स्थति का ज्ञान प्रदान करता है | विज्ञानं भी आत्मा जैसा कुछ है जो निष्प्राण होने पर निकल जाता है ,मानता है | -श्राद्ध कर्म –पितरों के लिए उनकी तृप्ति,संतुष्टि के लिए वर्णित है परन्तु इसके मूल में महत्वपूर्ण है इस कर्म के द्वारा ,श्राद्ध कर्ता अपनी अनेक -अनेक आपत्ति,विपत्ति,संकट से मुक्ति प्राप्त करता है |

अंगूठे के पास से जल तर्पण (पितरों को) का रहस्य क्या है ?

  अंगूठे के पास से जल तर्पण (पितरों को) का रहस्य क्या है  ? (संदर्भ ग्रन्थ –नित्य कर्म पूजा प्रकाश ) हमारी हथेली में देव,.पितृ,ऋषि आदि 5 प्रकार के पूज्य वर्ग के  नियत स्थान है | तर्पण(तिलक,यव.जल) कार्य दोनों हाथो से किया जाता है |यह दैनिक रूप से पित्री,देवता,एवं ऋषि वर्ग को दिया जाता है |उनके प्रति श्रद्ध एवं आभार  स्वरूप ,अपने भावी कल्याण के लिए | - श्राद्ध कर्म के समय पितरों का तर्पण भी किया जाता है “ पिंडों पर अंगूठे के माध्यम से जलांजलि” दी जाती है। -क्योकि पौराणिक निदेश- पितृ तीर्थ से होता हुआ जल जब अंगूठे के माध्यम से पिंडों तक पहुंचता है तो पितरों की पूर्ण तृप्ति होती है। -क्योकि तर्जनी (पहली उंगली) और अंगूठे के बीच के स्थान को पितृतीर्थ (पितरों का निवास ,आश्रय स्थल )कहते हैं। इस स्थान से  पितरों को जल अर्पित किया जाता है। पितृ तीर्थ( पितरों की प्रतीकात्मक उपस्थिति ) दक्षिण दिशा की और मुख कर तर्पण कार्य पितरों की प्रसन्नता के लिए किया जाता है | इसलिए पितरों का तर्पण करते समय अंगूठे के माध्यम से जल देने का नियमन किया गया  है। अंगूठे से पितरों को जल देने से उनकी

देवव्रत भीष्म से उनके पिता शांतनु ने पिंड माँगा -

  देवव्रत भीष्म से उनके पिता शांतनु ने पिंड माँगा - श्राद्ध :त्रेता(द्वापर:श्राद्ध   - 864000वर्ष+ :त्रेता 1296,000वर्ष=20,60,000 पूर्व ) में भी प्रचलित था |   (नारद पुराण) भगवान श्रीराम जब पितृ तीर्थ गया जी के रुद्र पद में गए थे | भगवान श्रीराम जब पितृ , मनु /कालान्तर दशरथ   जी   को पिंडदान करने लगे । गोलोक वासी महाराजा दशरथ स्वर्ग से उपस्थित हुए “भगवान श्रीराम से हाथ फैलाए हुए कहा “मेरे हाथो में ये पिंड दो “ | श्री राम ने अनसुना करते हुए हाथो में पिंडदान नहीं किया | दशरथ रोकते रहे परन्तु श्री राम ने उस पिंड को रुद्रपद पर ही रख दिया। महा राजा दशरथ जी ने कहा ‘है पुत्र तुम्हारे इस कार्य से मोह्वाशत पितृलोक से अब मेरा उद्धार हो गया एवं मुझे रुद्रलोक की प्राप्ति हुई है। मैं तुमको आशीर्वाद देताहूँ की-तुम अनंत काल तक राज्य , प्रजा का पालन करोगे तथा जीवन काल में यज्ञों का अनुष्ठान करने से विष्णु लोक को में रहोगे । अयोध्या के सभी नागरिक , पशु पक्षी विष्णु लोक जाएंगे। -सर्वप्रथम श्राद्ध कर्म ज्ञान किसे हुआ ? ( महाभारत-अनुशाशन पर्व) ऋषि अत्रि के नाम का उल्लेख मिलता है | -किसके द्व

श्राद्ध पक्ष: कौवों के रूप में आते हैं पितर,भगवन श्री राम का वरदान ?

  श्राद्ध पक्ष: कौवों के रूप में आते हैं पितर,भगवन श्री राम का वरदान   ? त्रेता काल में एक कौवे (देवराज इंद्र के पुत्र जयंत) ने सीता देवी   के पैर में चोंच मार कर   उनके पैर से रुधिर प्रवाह   प्रारंभ कर दिया था |यह देखकर रुष्ट श्रीराम ने अपने बाण से उस कौवे की आंख फोड़ दी थी। देवराज इंद्र के पुत्र जयंत ने अपना परिचय देते हुए ( कौवे केरूप में   )पश्चाताप , खेद एवं क्षमा याचना की ,मर्यादा पुरुषोत्तम   श्रीराम ने वरदान   दिया - ” तुमको जो भोजन देगा उसके पितृ तृप्त होंगे।“ इस घटना के पश्चात् से   कौवों को भोजन खिलाने का प्रचलन   बढ़ गया। -कौओं की विशेषता होती है – 1-हमारी तरह ही दुःख मनाता है , जिस दिन किसी कौए की मृत्यु होती है उस दिन उसका कोई कौआ भोजन नहीं करता है 2- अकेले भोजन कभी नहीं कर , किसी साथी के साथ ही भोजन ग्रहण करता है।एक से अधिक तीन पीढ़ी के पितरो को भी हम आमंत्रित करते है |वे भी एक साथ ही शरद्ध भोजन ग्रहण करते हैं |   -अर्थात कौए को भोजन कराने से पितृ और कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है। पौराणिक कथन के अनुसार कौए पक्षी को अमृत का अंश मि