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पंचक दोष की महत्वपूर्ण जानकारियाँ-– भ्रांति और वास्तविकता पर प्रकाश (Misconceptions vs Reality about Panchak Dosha –

   

  • 🔷 प्रस्तावना – पंचक से जुड़ी भ्रांतियों का निरसन (Panchak Bhranti-Nirmoolan) 🔷

    पंचक का नाम सुनते ही कई लोगों के मन में भय या भ्रांति उत्पन्न होती है कि यह काल केवल अशुभ है और किसी भी शुभ कार्य या योजना की शुरुआत नहीं करनी चाहिए। किंतु यह धारणा पूरी तरह शास्त्रसम्मत नहीं है।

    🔶 पंचक का तात्पर्य:
    पंचक वह काल होता है जब चंद्रमा क्रमशः धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती — इन पाँच नक्षत्रों में भ्रमण करता है। इसे 'अग्नि पंचक', 'मृत्यु पंचक', 'राज पंचक' आदि नामों से भी जाना जाता है, जो विशेष ग्रह स्थिति के अनुसार प्रभाव डालते हैं।


    🌟 भ्रांति:

    क्या-क्या भ्रांतियाँ फैली हुई हैं पंचक को लेकर?

    भ्रांतिवास्तविकता
    🔴 कोई भी कार्य न करेंसभी कार्य नहीं वर्जित हैं, केवल 5 विशिष्ट कर्मों में सावधानी चाहिए
    🔴 यात्रा अशुभ✅ 🚗 यात्रा निषेध नहीं है, दिशा और तिथि देखकर करना चाहिए
    🔴 विवाह, सौदा, नौकरी आवेदन न करें✅ 💼 धन, व्यापार, प्रेम, बैंक कार्य आदि में कोई बाधा नहीं
    🔴 गृह प्रवेश, मशीनरी, भवन निर्माण न करें✅ 🏠 कुछ निर्माण कार्यों में विशेष योग का ध्यान हो

    🔴 पंचक में कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए — विवाह, यात्रा, निर्माण, वस्तु-क्रय, व्यापार, वसीयत, मित्रता, प्रेम आदि।

    शास्त्रीय निवारण व यथार्थ:

    सिर्फ कुछ विशेष कार्य ही पंचक में वर्जित माने गए हैं — वो भी केवल विशेष योग (तिथि + वार + ग्रह स्थिति) में। अन्य सामान्य एवं शुभ कार्य पंचक में पूरी सावधानी से किए जा सकते हैं।

    🌈 ✅ पंचक में पूर्णतः अनुमति प्राप्त कार्य – शास्त्रीय रूप से:

  • व्यापार का आरंभ (Business Initiation)
    📜 फलदीपिका, धर्मसिन्धु, मुहूर्त चिंतामणि आदि में स्पष्ट उल्लेख है कि यदि बुध, गुरु, शुक्र शुभ हो तो पंचक काल में व्यापार प्रारंभ किया जा सकता है।

  • धार्मिक कार्य जैसे जप, तप, पाठ, दान आदि
    👉 पंचक काल में मंत्र सिद्धि व उपासना विशेष फलदायक होती है क्योंकि यह जल, वायु, आकाश तत्व प्रधान काल होता है।

  • मित्रता व प्रेम सम्बन्धों की शुरुआत
    ❤️ पंचक का यह तत्विक प्रभाव मानसिक भावनाओं को प्रबल करता है। यदि चंद्रमा शुभ दृष्ट में हो, तो यह काल मित्रता व भावनात्मक रिश्तों के लिए अनुकूल है।

  • नौकरी या साक्षात्कार में जाना (Interview/Joining)
    🔔 यदि वार व नक्षत्र के अनुसार गुरुवार/शुक्रवार के दिन शुभ योग/लग्न हो, तो कोई बाधा नहीं। सफलता की संभावना रहती है।

  • घर-भूमि क्रय, वाहन क्रय आदि
    ग्रह स्थिति अनुकूल हो तो पंचक काल में क्रय विक्रय करना अशुभ नहीं माना गया। बस पंचक में "उत्तराषाढ़ा + शनिवार" का संयोग वर्जित माना गया है।

  • विदेश यात्रा, विमर्श, मीटिंग्स, कोर्स आदि
    🌍 पंचक में चंद्रमा यदि लग्न या लाभ स्थान में शुभ दृष्ट हो, तो मानसिक, वैचारिक व योजना संबंधी कार्य अत्यंत सफल होते हैं।

    🔏 प्रमाण ग्रंथ

  • धर्मसिन्धु: "पञ्चक स्थिते पंच कर्माणि वर्ज्यन्ते विशेषतः।"

  • कालप्रदीप: "पञ्चकं न हि सर्वत्र वर्ज्यं, बुद्धिमान् विचारयेत्।"

  • निर्णयसिन्धु: कार्य विशेष के हेतु मंत्र व हवन द्वारा शमन संभव।


  • *******************************************************

    🕉 विशेष मंत्र:
    🔸 ॐ पञ्चकदोष शमनाय नमः – 108 बार पंचक आरंभ में जप करें।
    🔸 पंचक की शांति हेतु "शिव-पार्वती पूजन", "अश्विनीकुमार मंत्र", और "गायत्री मंत्र" जप भी लाभकारी।

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 शास्त्रीय प्रमाण:
  • मुहूर्त चिन्तामणि:
    "पंचकं नैव सर्वासु क्रियासु प्रतिषेधकः।

     विशेषेण कार्येषु, दोषे तत्र निवृत्तये॥"
    पंचक सभी कार्यों में वर्जन नहीं करता, केवल विशेष कार्यों में दोष होता है।

  • निर्णय सिन्धु (पृष्ठ २२८):
    "पंचकं केवलं लकडादिके कार्ये निषिद्धं, 

    अन्यत्र यत्नेन शुद्धे योगे कार्यं करोति शुभम्।"


  • 🔴 पंचक दोष की महत्वपूर्ण जानकारियाँ

  • (By-Renowned  Astrologer,Palmist,Vaastu & Muhurt-Pt.V.K.Tiwari,(since the 1972)&-Dr S.tiwari & Dr.R Dixit-tiwaridixitastro@gmail.com-Bangalore-560102-9424446706)
  • 📜 **पंचक की उत्पत्ति (पौराणिक कथा)**:
    एक पौराणिक मान्यता के अनुसार जब पिपीलिक ऋषि की मृत्यु धनिष्ठा नक्षत्र में हुई और उसके बाद लगातार 5 दिन मृत्यु के सिलसिले से पूरे गाँव में शोक छा गया। तब से इन 5 नक्षत्रों को ‘पंचक’ दोष कहा गया।

  • 🕯️ **समय व दिशा**:
    🔹 पंचक काल के दौरान दक्षिण दिशा की ओर यात्रा, लकड़ी, बांस या दाह संस्कार सामग्री का संग्रह, दक्षिणाभिमुख अग्निहोत्र, या दक्षिण दिशा में सिर करके सोना वर्जित होता है।

  • 🛕 **पूजा विधि व व्रतिका रंग**:
    🔹 पूजा में सफेद वस्त्र धारण करें।
    🔹 पीले या हल्के रंग की व्रतिका (धागा/सूत्र) पहनें।
    🔹 दक्षिण की ओर दीप प्रज्वलित करें और ‘ॐ मृत्युंजयाय नमः’ का जाप करें।

  • 📘 **ग्रहण/तिथि/वार का प्रभाव**:
    🔹 यदि पंचक अमावस्या, पूर्णिमा, ग्रहण, संक्रांति या शनिवार/मंगलवार के दिन पड़े तो यह और भी अशुभ फलदायी मानी जाती है।
    🔹 विशेषकर जब पंचक शनिवार को प्रारंभ हो तो अग्निपंचक का विशेष ध्यान रखें।

  • 🔻 **अत्यधिक अशुभ प्रभाव**:
    🔹 पंचक काल में मृत्यु, अग्नि कार्य, छत निर्माण, लकड़ी काटना, दक्षिण यात्रा आदि से विशेष हानि होती है।
    🔹 यदि जन्म नक्षत्र पंचक के किसी नक्षत्र में हो, तो यह समय विशेष रूप से कष्टकारी हो सकता है।

  • ⏳ **पंचक की स्थिति अनुसार प्रभाव**:
    🔹 प्रारंभ में हो तो — रोग/विवाद का भय
    🔹 मध्य में — आर्थिक हानि/दुर्घटना
    🔹 अंत में — पारिवारिक संकट
    🔹 पंचक पूरे समय में हो — दीर्घकालिक कष्ट

  • 📅 **जिन तिथियों को पंचक दोष नहीं होता**:
    🔹 जब पंचक वाले नक्षत्र संक्रांति से टकरा जाएँ या तिथि का प्रभाव अधिक हो, तब पंचक प्रभाव मंद पड़ जाता है।
    🔹 उदाहरण: यदि रेवती नक्षत्र हो पर दशमी तिथि या गुरु-पुष्य योग भी साथ हो तो दोष में कमी  है।

  • 📚 **शास्त्रीय प्रमाण/श्लोक**:
    📖 *‘धनिष्ठा शतभिषा पूर्वाभाद्रां च उत्तरां तथा।*
    *रेवती च पंचकं ज्ञेयं कर्म निषिद्धकं शुभे॥’*
    — धर्मसिन्धु
    📖 *‘पंचक योगे मृतं त्याज्यं, गृह निर्माणं निषिद्धकम्।*
    *अग्निकर्म न कर्तव्यं, दोषशांति विधिर्भवेत्॥’*
    — निर्णयसिन्धु
  • पंचक दोष चार्ट: निषेध, उपाय (मंत्र, दान, वस्त्र) - 
  •  
  • निम्नलिखित पंचक दोषों में प्रत्येक दोष एक विशिष्ट नक्षत्र से जुड़ा है।
  •  प्रत्येक दोष के लिए: श्लोक, अर्थ, निषेध (पाथनीय), 5 उपाय (मंत्र, दान, वस्त्र आदि) क्रमबद्ध रूप से दिए गए हैं।

    🔱 Panchak Nakshatra Details with Deities & Mantras

    Panchak DoshaNakshatra Name (Sanskrit / English)Associated DeityDevata (देवता)Shanti Mantra (Peace Mantra / Chant)
    🏛️ Raj PanchakDhanishta (धनिष्ठा) – DelphiniVasusवसुगणॐ वासवाय नमः
    🔥 Agni PanchakShatabhisha (शतभिषा) – AquariiVarunaवरुणॐ वरुणाय नमः
    🪦 Mrityu PanchakPurva Bhadrapada (पूर्वभाद्रपदा) – PegasiAjaikapadaअजैकपादॐ अजे कपादाय नमः
    🛑 Chor PanchakUttara Bhadrapada (उत्तरभाद्रपदा) – PegasiAhirbudhnyaअहिर्बुध्न्यॐ अहिर्बुध्न्याय नमः
    📢 Vaan PanchakRevati (रेवती) – PisciumPushanपूषन्ॐ पूष्णे नमः

  • 1-चोर पंचक - (धनिष्ठा)

  • श्लोक और अर्थ:

  • श्लोक: धनिष्ठायां च चौर्यं स्यात्

  • अर्थ: धनिष्ठा नक्षत्र में पंचक होने पर चोरी, धन की हानि, वस्तुओं का गुम होना या प्रतिष्ठा में कमी का भय रहता है।

  • निषिद्ध कार्य (पाथनीय):

  • ·         नए व्यापार या सार्वजनिक धन संबंधी निर्णय प्रारम्भ न करें।

  • ·         बड़े नकद लेन-देन न करें।

  • ·         यात्रा के समय कीमती सामान साथ न रखें।

  • ·         कागजी कार्य (बैंक, लोन्स आदि) बिना जांच के न करें।

  • ·         महत्त्वपूर्ण दस्तावेज खोने से बचें।

  • 5 उपाय (मंत्र, दान, वस्त्र, पूजा/अन्य, रक्षा):

  • ·         मंत्र: ॐ ह्रीं चोराय नमः / या 'ॐ राहवे नमः' 108 बार जप।

  • ·         दान: काले तिल, सिक्के, या छोटा ताला गरीब को दान करें।

  • ·         वस्त्र: काले वस्त्र (कपास) ब्राह्मण को दान करें।

  • ·         पूजा/अन्य: भगवान भैरव की पूजा करें, भैरव स्तोत्र पढ़ें।

  • ·         रक्षा: संकट से बचने के लिए गुप्त रूप से नींबू-मिर्च का ताबीज लगाएं।

  •  2-वान पंचक - (शतभिषा)

  • श्लोक और अर्थ:

  • श्लोक: शतभिषायां च भ्रंशकम्

  • अर्थ: शतभिषा नक्षत्र में पंचक होने पर वानस्पतिक कार्य, लकड़ी/छत/फर्नीचर संबंधी कर्मों में विघ्न, नुकसान, या दुर्घटना का भय रहता है।

  • निषिद्ध कार्य (पाथनीय):

  • ·         लकड़ी, बांस, फर्नीचर का निर्माण या मरम्मत न करें।

  • ·         छत से जुड़ा कोई नया कार्य प्रारम्भ न करें।

  • ·         बांस/ईंधन इकट्ठा करना टालें।

  • ·         हवन के लिए आग की तैयारी (लकड़ी का संचय) न करें।

  • ·         काष्ठ से संबंधित व्यापार में निवेश न करें।

  • 5 उपाय (मंत्र, दान, वस्त्र, पूजा/अन्य, रक्षा):

  • ·         मंत्र: ॐ वनस्पतये नमः 108 बार जप।

  • ·         दान: शमी की पत्तियाँ या शमी के वृक्ष के पास भोजन दान करें।

  • ·         वस्त्र: भूरे या हरे रंग के वस्त्र ब्राह्मण को दान करें।

  • ·         पूजा/अन्य: शिव जी को पंचामृत अभिषेक करें, विशेषकर सोमवार को।

  • ·         रक्षा: घर के चारों कोनों में हल्दी-लौंग का चूर्ण रखें।

  •  3-मृत्यु पंचक - (पूर्वाभाद्रपद)

  • श्लोक और अर्थ:

  • श्लोक: पूर्वे तु भद्रपदे मृत्युरुत्तरायां च रोगदः।

  • अर्थ: पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में पंचक होने पर मृत्यु, गंभीर रोग, दुर्घटना या अंतिम संस्कार संबंधी अशुभता रहती है।

  • निषिद्ध कार्य (पाथनीय):

  • ·         अंत्येष्टि/शव संस्कार टालें जब तक अत्यावश्यक न हो।

  • ·         गंभीर रोगी का ऑपरेशन या अस्पताल में भर्ती करना बिना विशेष पूजन के न करें।

  • ·         लंबी यात्रा, विशेषकर जोखिम भरी यात्रा न करें।

  • ·         मृत्यु से संबंधित सामग्री (शव यात्रा की तैयारी) जल्दबाजी में न करें।

  • ·         पारिवारिक शोक सम्बन्धी निर्णय तत्काल न लें।

  • 5 उपाय (मंत्र, दान, वस्त्र, पूजा/अन्य, रक्षा):

  • ·         मंत्र: महामृत्युंजय मंत्र 'ॐ त्र्यम्बकं यजामहे...' 108 बार जप।

  • ·         दान: काले कंबल, काले तिल, और भोजन गरीब ब्राह्मण को दें।

  • ·         वस्त्र: काले वस्त्र जो गर्मी न दें, वृद्धों को दान करें।

  • ·         पूजा/अन्य: पिंडदान और पंच शव शांति विधि करें।

  • ·         रक्षा: गृह में तुलसी का पौधा रखें और उस पर जल छिड़कें।

  •  अग्नि/रोग पंचक - (उत्तराभाद्रपद)

  • श्लोक और अर्थ:

  • श्लोक: उत्तरायां च रोगदः

  • अर्थ: उत्तराभाद्रपद में पंचक होने पर रोग, अग्नि दुर्घटना, स्वास्थ्य समस्या, शारीरिक अशांति या आग से क्षति की संभावना रहती है।

  • निषिद्ध कार्य (पाथनीय):

  • ·         रसोई, गैस, सीमेन्ट या इलेक्ट्रिकल कार्यों को शुरू न करें।

  • ·         हवन, दीपदान, अग्नि संबंधित यज्ञ बिना सुरक्षा के न करें।

  • ·         किसी प्रकार की नई आग से जुड़ी व्यवस्था (जैसे बॉयलर, वेल्डिंग) न लगाएँ।

  • ·         स्वास्थ्य संबंधी नई दवा/ट्रीटमेंट बिना परामर्श न लें।

  • ·         ज्वलनशील पदार्थ इकट्ठा करने से बचें।

  • 5 उपाय (मंत्र, दान, वस्त्र, पूजा/अन्य, रक्षा):

  • ·         मंत्र: ॐ अग्नये स्वाहा 108 बार, 'ॐ रुद्राय नमः' 11 बार।

  • ·         दान: लाल चंदन, देसी घी, और तांबे के बर्तन दान करें।

  • ·         वस्त्र: लाल या सफेद वस्त्र वृद्धों या साधुओं को दान करें।

  • ·         पूजा/अन्य: अग्निदेव का दीपक जलाएं, हवन करें।

  • ·         रक्षा: घर के मुख्य द्वार पर गोमय से शुद्धि करें।

  •  राज पंचक - (रेवती)

  • श्लोक और अर्थ:

  • श्लोक: रेवत्यां राजकार्याणां निषेधः स्यादिति श्रुतिः

  • अर्थ: रेवती नक्षत्र में पंचक होने पर शासकीय, प्रशासनिक, राजनीतिक कार्यों में बाधा, अपमान, या निर्णयों में असफलता हो सकती है, यदि उचित उपाय न किए जाएँ।

  • निषिद्ध कार्य (पाथनीय):

  • ·         नए सरकारी या राजनीतिक निर्णय घोषित न करें।

  • ·         कोर्ट, नियुक्ति, पदोन्नति संबंधी कार्य बिना विचार के न लें।

  • ·         बड़े सार्वजनिक कार्यक्रमों को आरंभ न करें।

  • ·         हस्ताक्षर, अनुबंध आदि महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बिना पूजा के न करें।

  • ·         शासकीय यात्रा विशेषकर विपक्षी या संवेदनशील माहौल में टालें।

  • 5 उपाय (मंत्र, दान, वस्त्र, पूजा/अन्य, रक्षा):

  • ·         मंत्र: ॐ बृहस्पतये नमः 108 बार, 'ॐ नमो राजाधिराजाय नमः'।

  • ·         दान: पीले वस्त्र, हल्दी, या चने दान करें।

  • ·         वस्त्र: पीले या सुनहरे वस्त्र ब्राह्मण को दान करें।

  • ·         पूजा/अन्य: विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें, शंख जल से स्नान।

  • ·         रक्षा: उत्तर दिशा में तांबे का सिंहासक रखें।

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सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...