संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए
श्राद्ध-पितरों
से वरदान लीजिये
पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी
jyotish9999@gmail.com, 9424446706
श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?
श्राद्ध से जुड़े
हर सवाल का जवाब |
पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए
श्राद्ध कब करे? किसको
भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण?
श्राद्ध क्या है?
श्राद्ध नहीं
करने के कुपरिणाम क्या संभावित है?
श्राद्ध नहीं
करने के कुपरिणाम क्या संभावित है?
श्राद्ध की
प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय?
श्राद्ध कब से
प्रारंभ होता है ?प्रथम श्राद्ध किसका होता है?
श्राद्ध, कृष्ण
पक्ष में ही क्यों किया जाता है
श्राद्ध किन२
शहरों में किया जा सकता है? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है?
तिथि अमावस्या
क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों?
कितने प्रकार के श्राद्ध होते हैं
वर्ष में कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं?
कब श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक होता है |
पितृ श्राद्ध किस देव से सम्बंधित है तथा
वर्ष में कब करना चाहिए –
श्राद्ध में
वर्जित पुष्प एवं वस्तु?
श्राद्ध पक्ष में
राहु दोष का निवारण होता है ?
श्राद्ध के लिए उपयोगी जानकारी के संदर्भित ग्रंथ
मनुस्मृति ,विष्णु
पुराण, मत्स्य
पुराण, ब्रह्मांड
पुराण, वायु पुराण, कूर्म पुराण, श्राद्ध कल्प, मनुस्मृति, श्राद्ध चंद्रिका ,श्राद्ध संग्रह, साध्य विवेक, पद्मपुराण, श्रीमद् भागवत आदि ग्रंथों में
उपलब्ध निर्देशों वचनों या बातों को संकलित कर जनहित में सर्वसामान्य के लिए
प्रस्तुत किया जा रहा है
श्राद्ध क्या है?
श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं| अर्थात श्रद्धा से किया जाने
वाला कर्म श्राद्ध है |
अपने माता पिता एवं पूर्वजो की संतुष्टि के लिए एवं उन के
द्वारा जो हमारे लिए किया गया उस ऋण से मुक्ति की विधि है |
श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है?
जिन पूर्वज या माता पिता के अंश (रक्त,जींस) यदि उनकी अतामा को
कष्ट होता है तो वे अपने अंश्जो को श्राप देते हैं |मानव योनी में समर्थ होते हुए
भी अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं |ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप
योग हैं, जो संतान में मंद बुद्धि से लेकर
सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं |
श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय?
विभिन्न ग्रंथो में स्पष्ट उल्लेख है कि आर्थिक विपन्नता की
स्थिति में घास गाय को खिलाना या ऊपर दोनों हाथ आकर–निवेंदन करना–हे पूर्वजों में
प्रत्येक प्रकार से आपका मनोवांछितश्राद्ध नहीं कर सकता हूँ ,मेरे द्वारा दिए गए
जल–तिल को ग्रहण करिए |मुझे एवं मेरे परिवार को सभी प्रकार के सुखों का आशीर्वाद
दीजिये |
श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है?
भाद्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा से पितरों का श्राद्ध प्रारंभ हो
जाता है |
प्रथम श्राद्ध नाना क्या कहलाता है |
श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है
शुक्ल पक्ष पितरों की रात्रि कही गई है| मनुष्य का कृष्ण पक्ष पितरों के
कर्म का दिन |शुक्ल पक्ष
पितरों के सोने के लिए रात्रि होता है| इसलिए अश्वनी मास के कृष्णपक्ष
में पितृ श्राद्ध करने का विधान है|
श्राद्धक्यों करना चाहिए
पितृ ऋण पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति
आवश्यक है|
श्राद्ध किन २ शहरों में किया जा सकता है ?
क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है?
क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है?
किसी भी नदी या तालाब के किनारे
अथवा प्रमुख स्थान है प्रयाग, पुष्कर, गया, कुशावर्त अर्थात हरिद्वार एवं
बद्रीनाथ|
गया श्राद्ध के पश्चात ब्रम्हकापाली (बद्रीनाथ) साध्य किया
जाना विशेष आवश्यक है |यदि साधन
संपन्नता है तो बद्रीनाथ मैं ब्रह्मा कपाली साथ किया जाना अनिवार्य जैसा है|
तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्ध कार्य ,में इसका महत्व क्यों?
स्वधा से उत्पन्नसोमपथ लोक में देव पितर रहते है। देव पितर अग्निवात नाम से प्रसिद्ध है। अमावसु नामक पितर पर मोहित होने के कारण योग भ्रष्ट होकर अच्छोद पृथ्वी लोक पर गिर गयी। अमावसु धेर्य के कारण पथभ्रष्ट नहीं हुआ अंतः वह तिथि अमावस्या कहलायी।अमावस्या पितरो की प्रिय तिथि है| इस दिन पितरो को दिया दान श्रेष्ठ फलदायी है।
स्वधा से उत्पन्नसोमपथ लोक में देव पितर रहते है। देव पितर अग्निवात नाम से प्रसिद्ध है। अमावसु नामक पितर पर मोहित होने के कारण योग भ्रष्ट होकर अच्छोद पृथ्वी लोक पर गिर गयी। अमावसु धेर्य के कारण पथभ्रष्ट नहीं हुआ अंतः वह तिथि अमावस्या कहलायी।अमावस्या पितरो की प्रिय तिथि है| इस दिन पितरो को दिया दान श्रेष्ठ फलदायी है।
अमावस्या पितरौ की पूजा:देव पितरो की मानस कन्या अच्छोदा है।
श्राद्ध के द्वारा प्रसन्न पितृगण परिवार को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख प्रदान करते है। अन्यथा
बाधक बने रहते हैं । पितरा का निवाश आकाश और दक्षिण दिशा होती है|
कितने प्रकार के श्राद्ध
होते हैं
मत्स्य पुराण के अनुसार 3 प्रकार के श्राद्ध
होते हैं |
नित्य, नैमित्तिक, काम्य |
यम स्मृति में पांच प्रकार के साथ बताए गए हैं |
नित्य, नैमित्तिक ,काम्य ,वृद्धि और पार्वण |
प्रतिदिन किए जाने वाले श्राद्ध नित्य कहलाते हैं
किसी मनोकामना की पूर्ति के लिए किए जाने वाले श्राद्ध काम्य श्राद्ध कहलाते हैं
पुत्र जन्म विवाह या मंगल कार्य के समय किए जाने वाले श्राद्ध वृद्धि या नांदी श्राद्ध कहलाते हैं
पितृ पक्ष अमावस्या या किसी पर्व युगादि तिथि आदि पर जो
विश्वेदेव सहित शादी किया जाता है वह पार्वण श्राद्ध कहलाता है
गृहस्थों
प्रेत पिंड का पित्र पिंड में सम्मेलन करना सपिंडन |
समूह में किया जानेवाला गोष्ठी श्राद्ध
शुद्धि के लिए ब्राह्मण भोज कराना शुद्धयर्थ श्राद्ध
गर्भाधान, उपनयन ,पुंसवन
संस्कारों के लिए जो शादी किए जाते हैं उन्हें कर्मांग
श्राद्ध कहते हैं
तिथियों में जैसे सप्तमी तिथि को विशिष्ट हविष्य के द्वारा
देवताओं के लिए जो श्राद्ध करते हैं वह देविक श्राद्ध कहलाता है |
यात्रा यात्रा मैं जाने के पूर्व किया जाने वाला भी द्वारा जो
शादी किया जाता है वह यात्रा श्राद्ध कहलाता है |
शारीरिक एवं मानसिक पुष्टि के लिए किया जाने वाला श्राद्ध पुष्टि अर्थ श्राद्ध कहलाता है | वर्ष में कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं?
वर्ष में श्राद्ध के 96 अवसर होते हैं जैसे 12 अमावस्या चार युग तिथि 14 मनुवादी तिथि 12 संक्रांति 12 , 05पांच पर्व
वेद्य |
कब श्राद्ध किया जाना
अति आवश्यक होता है |
यदि हम इन्हें 96 अवसर पर श्राद्ध नहीं कर सकते हैं तो
कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर
का माह भी कहा जाता है |पितृ पक्ष में अपने मित्रगण के मरण तिथि के दिन साथ अवश्य करना
चाहिए|
पितृ श्राद्ध किस देव से सम्बंधित
है तथा वर्ष में कब करना चाहिए
यह कार्य पूर्वजो के ऋणसे
मुक्ति तथा उनकी प्रसन्नता के लिए किया जाता है |सूर्य देव को पितर देव कहा गया है
|विष्णु जी से सम्बंधित है |
(1)
ग्रह आधार पर: सूर्य जब भ्रमण करते हुए आगामी राशि परिवर्तन =संक्रांति मकर, कर्क, तुला और मेष संक्राति की स्थिति
में हो।
(2)
सामान्यत: (प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी / 15 जनवरी, 14 अप्रैल, 16 जुलाई अक्टूबर प्रचलित परन्तु त्रुटि पूर्ण, सायन या खगोल विज्ञान के आधार पर
२१दिसंबर,२०मार्च,२१ जून विशेष प्रत्यक्ष संक्रांति हैं |श्राद्ध कार्य के लिए उपयोगी हैं | )को (श्राद्ध सूर्य ग्रह के आधार पर) करे।
२१दिसंबर,२०मार्च,२१ जून विशेष प्रत्यक्ष संक्रांति हैं |श्राद्ध कार्य के लिए उपयोगी हैं | )को (श्राद्ध सूर्य ग्रह के आधार पर) करे।
(3)
क्योंकि सूर्य को श्राद्ध / पितर देव माना गया है।
(2)
तिथि के
अनुसार श्राद्ध - सामान्यत अमावस्या पूर्णिमा के दिन।(3) श्राद्ध के अक्षय फल मिलते है। युगारंभ: - शुक्ल तृतीया (त्रेता युगारंभ)\:कार्तिक शुक्ल नवमी (सतयुग आरंभ):माघ पूर्णिमा (द्वापर युग आरंभ):श्रावण त्रयोदशी (कलियुग आरंभ) |इनमे श्राद्ध के अक्षय फल मिलते है।
(4) मन्वन्तर - (6) आश्वनि नवमी (7) कार्तिक पूर्णिमा शुक्ल दशमी (1) चेत्र पूर्णिमा शुक्ल तृतीया (4) ज्येष्ठ पूर्णिमा (9) भाद्र शुक्ल (10) फाल्गुन अमावस्या तोष शुक्ल श्रावस शुक्ल अष्टमी आषाढ पूर्णिमा व दशमली आर्दा, रोहणी, मधा, नक्षत्र विशिष्ट करण।
श्राद्ध पक्ष में राहु दोष का निवारण होता है ?
मत्स्य पुराण (14 अध्याय): गृहस्थों को देवपूजा से
पूर्व पितर पूजा करना चाहिए।
पितर - पूर्वज मनुष्यो, देवो, ऋषियो के होेते है।यथा मारीच पुत्र देवताओ के पितर कहलाए।
देव या पितर पहले
किसकी पूजा करे ?
ग्रहस्थ जीवन में
पितर (पूर्वज) प्रथम पूज्य है। सूर्य ग्रह स्वधा के द्वारा पूर्वजो का (पितर) पोषण
करते है।
मनुष्यानो स्नेह
स्वधया च पितृ न |
सूर्य की सुषम्न
किरण चंद्र ग्रह की चांदनी प्रदान करती है। अमावस्या चंद्र की किरणो से निकलने
वाली स्वधा को पी कर एक माह के लिये स्वस्थ / संतुष्ट हो जाते है।
निःसृत तदभावस्या
गमस्तिम्यः स्वधामृतय मासतृप्तिम वाप्यगमया पितरः सति निर्वृता।
पुराण-पितृ चंद्रमा की
सुधा नाम की कला को पीते है।
श्राद्ध के लिए उपयुक्त श्रेष्ठ समय कौन से होते हैं? समय बोधक शब्द एवं उनका समय क्या
होता है?
जल अर्पण के लिए यह श्राद्ध करने के लिए कुतुप काल दिन में 11: 36 बजे से लेकर 12:24 तक होता है|
अपराहन काल 1:12 से 3: 36 मिनट तक होता है
मध्यान काल दिन में 10:45 से 1:12 तक लगभग होता है
रोहिण काल दिन का नवा मुहूर्त 12:24 से 1:12 तक माना जाता है|
संगव काल दिन में 10:48 से पहले का समय|
श्राद्धमें विशेष महत्वपूर्ण उपयोगी वस्तु कौन 2 सी है?
काले तिल एवं कुश तथा चांदी का पात्र यह तीन चीजें महत्वपूर्ण आवश्यक हैं | तुलसी-पत्र
का भी विशेष महत्व है| कुश और
काले तिल भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुए हैं |यह श्राद्ध की रक्षा करते हैं| चांदी शिवजी से संबंधित है, इसलिए यह पितरों को परम प्रिय है |प्रतिदिन
पितरों को दिया जाने वाला जल चांदी के पात्र से दिया जाना श्रेष्ठ फलदाई
माना जाता है |
श्राद्ध में दान करने एवं दान लेने योग्य महत्वपूर्ण वस्तु
/व्यकित कौन है|
वृद्धाश्रम या बालिका आश्रम या भिखारी ,लंगर ,मंदिर में दान का श्राद्ध देने का औचित्य नहीं है |भांजा ,दामाद ,बहनोई ,साधू सन्यासी को देना चाहिए | |
दूध, शहद , कालेतिल, गंगाजल ,तसर का कपड़ा, दान के लिए विशेष उपयोगी हैं |श्राद्ध के समय कुतुप काल, भांजा, तुलसी, सफेद पुष्प, तिल के पुष्प, चंपा, चमेली, भ्रंगराज ,शत पत्रिका ,अगस्तय पुष्प पर महत्वपूर्ण है|
वृद्धाश्रम या बालिका आश्रम या भिखारी ,लंगर ,मंदिर में दान का श्राद्ध देने का औचित्य नहीं है |भांजा ,दामाद ,बहनोई ,साधू सन्यासी को देना चाहिए | |
दूध, शहद , कालेतिल, गंगाजल ,तसर का कपड़ा, दान के लिए विशेष उपयोगी हैं |श्राद्ध के समय कुतुप काल, भांजा, तुलसी, सफेद पुष्प, तिल के पुष्प, चंपा, चमेली, भ्रंगराज ,शत पत्रिका ,अगस्तय पुष्प पर महत्वपूर्ण है|
पितरों को जल देते समय मुंह किस दिशा में होना चाहिए|
पितरों को जल देते समय हमारा मुंह दक्षिण दिशा की ओर होना
चाहिए तथा अंगूठे एवं तर्जनी इंडेक्स फिंगर के मध्य उसे जलधार अर्पित की जाती है|
श्राद्धके समय भोजन के लिए किस प्रकार के पात्र /बर्तनों का
प्रयोग करना चाहिए|
सोने चांदी कांसे तांबे के पात्र श्रेष्ठ माने गए हैं इनके
अभाव में पलाश या अन्य वृक्ष के दोना पत्तल काम में ला सकते हैं परंतु यह ध्यान
रखा जावे कि केले के पत्ते या मिट्टी या लोहे के बर्तन का प्रयोग श्राद्ध कार्य
में वर्जित माना गया है|
श्राद्ध कार्य के समय पत्नी को किस दिशा में होना चाहिए?
इस कार्य के लिए पत्नी को हमेशा अपने दाहिनी ओर खड़ा किया जाना
चाहिए| वाम भाग मैं पत्नी को रखकर जल अर्पण देना या अतिथियों का स्वागत करना
अशुभ माना गया है |
श्राद्ध में वर्जित पुष्प एवं वस्तु?
श्राद्ध में लाल चंदन, गोरोचन, केवड़ा. कदंब , मौलश्री ,बेलपत्र ,कनेर, लाल तथा काले रंग के सभी फूल, तेज गंध वाले फूल या गंध रहित फूल
यह भी वर्जित है|
श्राद्ध में किस प्रकार के व्यकितियों को आमंत्रित नहीं करना
चाहिए?
चोर ,पतित, निष्कर्म ,नास्तिक, धूर्त ,मांस विक्रेता, व्यापारी
,नौकर, काले दांत व मसूड़े वाला ,गुरु विद्रोही, शुद्रा का पति ,अध्यापक, ज्योतिष,
काना व्यक्ति, ज्वारी अंधा ,पहलवानी सिखाने वाला, तथा पैसे लेकर पूजा कराने वाले
ब्राह्मण को भी आमंत्रित नहीं करना चाहिए|
भांजा ,दामाद ,बहनोई ,साधू
सन्यासी देना चाहिए |
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