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27 अगस्त 2025 – गणेश स्थापना शुभ मुहूर्त एवं 10-दिन का संपूर्ण पूजन क्रम

 

27 अगस्त 2025 – गणेश स्थापना शुभ मुहूर्त एवं 10-दिन का संपूर्ण पूजन क्रम

 (Renowned AstrologerPalmist Vastu -V.K.Tiwari.(Since 1972),Dr S.Tiwari& dr R.Dixit-Bangalore560102  Suncity Aprtment-9424446706)

📅 तिथि समय

  • तिथि: 27 अगस्त 2025 (गणेश चतुर्थी)
  • समय (स्थापना मुहूर्त): 11:05 AM – 1:45 PM (अपने शहर के अनुसार - मिनट का अंतर मानें)
  • Best -11:15-12:10;

·         गणेश चतुर्थीमुख्य तिथि
गणेश चतुर्थी: 27 अगस्त 2025 (बुधवार) चतुर्थी तिथि का आरम्भ 26 अगस्त को दोपहर के बाद और समाप्ति 27 अगस्त शाम में है। स्थापना (मध्याह्न) — सामान्य शुभ विंडो (स्थानीय अंतर ± मिनट):
Bengaluru11:06 AM – 01:36 PM (Madhyahna sthapana muhurat) 

B Bhopal11:06 AM – 01:38 PM (Madhyahna muhurat)
Mumbai 11:24 AM – 01:55 PM (Madhyahna muhurat) 

·         📍 दिशा

  • गणेश जी की मूर्ति का मुख पूर्व या पश्चिम की ओर रहे
  • भक्त को मूर्ति के सामने बैठते समय उत्तर या पूर्व की ओर मुख रखना चाहिए संक्षिप्त पूर्ण विधि (स्थापना दिवस — 27 Aug 2025 के लिए)
  • घर की साफ़-सफाई, स्थान शुद्धि — धूप-दीप, गंगाजल से स्थान छिड़कें।
  • मंच/पाट पर पीला/लाल वस्त्र बिछाएँ; मूर्ति को अक्षत/चावल पर रखें; मुख पूर्व या पश्चिम की ओर रखें; भक्त का मुख उत्तर/पूर्व की ओर रहे।
  • आवाहन — गणेश आवाहन और बीज-मंत्र (उदाहरण): “ॐ गं गणपतये नमः” — 3×।
  • अभिषेक — जल/दूध/दही/घृत/शहद (अनुक्रम से) — प्रत्येक से हल्का अभिषेक।
  • दुर्वा-फूल-फळ-नैवेद्य अर्पण; 21 दुर्वा विशेष रूप से।
  • मंत्र-जप: ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे… (यदि आप पूरा पाठ करते हैं तो श्रेष्ठ) अथवा ॐ गम गजाननाय नमः 108×।
  • आरती — शाम को पारंपरिक आरती (जय गणेश, संकट मोचन आदि)।
  •  

🎨 रंग

  • मूर्ति का रंग:
    • सफेद गणेशशांति, सुख
    • लाल गणेशउर्जा, कार्यसिद्धि
    • पीला/सुनहराधन, समृद्धि
  • स्थापना स्थान पर पीला या लाल कपड़ा बिछाना शुभ माना जाता है

🪑 आसन स्थान

  • मूर्ति को लकड़ी के पाट पर लाल/पीले कपड़े पर स्थापित करें
  • नीचे थोड़ा सा चावल या अक्षत बिछाएँ

मूर्ति के चारों ओर फूल, दुर्वा, दीप, नैवेद्य रखें ·  स्नान, वस्त्र, गंध, पुष्प, दुर्वा, नैवेद्य अर्पण

·  21 दुर्वा अर्पण विशेष

 


. दोष निवारण मंत्र

उपयोग:

·         यह मंत्र तीन बार जपकर जल से आचमन करें

·         इससे मिथ्या दोष (गलती से हुई त्रुटि) दूर मानी जाती है

(स्थापना या पूजा में कोई भूल, दिशा-त्रुटि, उच्चारण दोष हो जाए तो अंत में जपें)

📜 मंत्र:

 सिंहः प्रसेनम वधीत्सिंहो जाम्बवता हतः।

सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः॥

10-दिन का संपूर्ण पूजन क्रम (दिनवार सार — Day 1 to Day 10 / विसर्जन Day 10 या Anant Chaturdashi पर)
(
हर दिनसुबह-शाम दीप, 3× ‘ गण गणपतये नमः’, 21 दुर्वायदि संभव हो, और दैनिक आरती)

Day 1 — स्थापना दिन (27 Aug): आवाहन, अभिषेक, मुख्य स्तोत्र/गणपति-उपमन (Ganapati Atharvashirsha या Ganesh Purana पाठ यदि हो सके), प्रथम आरती, प्रथम नैवेद्य। Prokerala

Day 2 — सूक्ष्म पूजन: मिट्टी/कपास-से बने बप्पा की सफाई, हल्का पुष्प-अर्पण, छोटी कथा या स्तोत्र। (उद्देश्यप्रतिमा की शुद्धता और भक्ति बनाए रखना)

Day 3 — शिक्षा/विद्या समर्पण: विद्यार्थियों के लिए विशेष मोती/लड्डू-भोग बुद्धि वृद्धि के लिए मंत्र (वाक्य: “ एकदन्ताय विद्महे…” 11×)

Day 4 — पारिवारिक समरसता: पारिवारिक आरती, वृद्धों का आशीर्वाद लेना, दान (चावल/दूध) करना

Day 5 — व्यवसाय/कर्मस्थल हेतु विशेष: कार्यालय-पूजा, धन समृद्धि हेतु हरिनाम-स्मरण, चंदन के साथ अभिषेक

Day 6 — आरोग्य दिवस: तिल/दूध से भोग, स्वास्थ्य-सम्बन्धी प्रार्थना, हेटु-दान (जरूरतमंद को भोजन)

Day 7 — शत्रु/बाधा निवारण: संकटमोचन स्तोत्र का पाठ, संध्याकाल आरती, नहीं तो शान्तिपाठ

Day 8 — संतान/परिवारिक सुख: बालकों के लिए आरोग्य-भोग, मनोकामना-प्रार्थना

Day 9 — विशेष स्तुति: Ganapati Atharvashirsha पूरे पढ़े (यदि संभव हो) या 108× ‘ गं गणपतये नमः

Day 10 — विसर्जन (Anant Chaturdashi / निर्धारित विसर्जन तिथि): विसर्जन हेतु शुभ चोघड़िया/दिन चुने; नदी/समुद्र पर शांत मन से विसर्जित करें; विसर्जन से पहले लघु-विसर्जन-पूजन और आरती। (विसर्जन हेतु भी कुछ शहरों में शुभ-विंडो DrikPanchang पर दी जाती है)

(नोट: पारंपरिक रूप से 10-दिन का उत्सव Anant Chaturdashi पर समाप्त होता हैविसर्जन हेतु स्थानीय muhurat देखें)


 


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शिवा चतुर्थीव्रत कथा (संक्षेप, हिंदी में)
एक प्राचीन कथा कहती है कि एक बार एक ब्राह्मण ने चतुर्थी को भगवान शिव की विधिपूर्वक सेवा की; परिणामतः उसके सारे पाप शमित हुए और उसका घर सुखी हुआ। स्कन्द-पुराण/शिव-पुराण में वर्णित है कि कृष्णपक्ष की चतुर्थी पर जो श्रद्धा से शिव-पूजन करे, वह मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर होता है। इस व्रत का प्रयोजन हैपापक्षय, दीर्घायु, स्वास्थ्य मानसिक शान्ति (ग्रंथ संदर्भ: शिव पुराण, स्कन्द पुराण में चतुर्थी व्रत का उल्लेख)

शिवा चतुर्थीपूजन मंत्र/विधि (सरल, घर पर करने योग्य)
स्नान के बाद शुद्ध वस्त्र धारण करें।
शिवलिंग पर अभिषेक: जलदूधदहीघृतशहद (यदि संभव हो)
बेलपत्र, धतूरा, अक्षत, फूल चढ़ाएँ।
प्रमुख मंत्र: नमः शिवाय (108× या कम से कम 11×)
लाभ-मंत्र (महा लाभ हेतु): तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् (शिव-गायत्री / महादेव ध्यान मंत्र) — 11×
महामृत्युंजय: स्वास्थ्य/आरोग्य हेतु त्र्यम्बकं यजामहे (7× / 21× / 108× क्रम से)

लाभ: रोगनिवारण, शनि/चंद्र दोषों में शांति, दीर्घायु मानसिक स्थिरता। 🚩 शिवा चतुर्थी व्रत कथा (Shiva Chaturthi Vrat Katha – विस्तृत रूप में)

🗓तिथि महत्व
प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को शिवा चतुर्थी कहा जाता है। यह भगवान शिव को समर्पित व्रत है और विशेष रूप से गणेश चतुर्थी के समान ही चतुर्थी व्रतों में अत्यंत फलदायी माना जाता है। भाद्रपद, माघ, श्रावण और फाल्गुन मास की शिवा चतुर्थी विशेष पुण्यदायी होती है।


📜 व्रत कथा (पुराणों से प्राप्त)

पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार

प्राचीन काल में महिष्मति नगरी में एक ब्राह्मण और उसकी धर्मपत्नी रहते थे। वे अत्यंत धार्मिक थे परंतु संतान-हीन होने के कारण हमेशा दुखी रहते थे। संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने कई यज्ञ, दान और उपवास किए, परंतु सफलता नहीं मिली।

एक दिन नगर में एक ऋषि आए। ब्राह्मण दंपत्ति ने उनका आदर सत्कार किया। भोजन के उपरांत ब्राह्मण ने संतान का कारण पूछा। ऋषि ने कहा

तुमने पूर्व जन्म में श्रावण मास की शिवा चतुर्थी का अपमान किया था। उस पाप के कारण तुम्हें संतान नहीं हो रही। अब यदि तुम श्रद्धा नियमपूर्वक शिवा चतुर्थी व्रत करोगे, तो निश्चय ही तुम्हें संतान सुख मिलेगा।

ऋषि की आज्ञा अनुसार ब्राह्मण दंपत्ति ने पूरे नियम और भक्ति से व्रत किया

  • चतुर्थी के दिन प्रातः स्नान कर के भगवान शिव का शुद्ध गंगाजल, दूध, दही, घृत, मधु और शक्कर से अभिषेक किया।
  • बिल्वपत्र, धतूरा, आक आदि अर्पित किए।
  • पूरे दिन उपवास रखा और रात्रि जागरण कर शिव की कथा भजन गाए।

व्रत के पुण्य प्रभाव से अगले वर्ष उन्हें एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई जो आगे चलकर महान विद्वान शिवभक्त बना।


🕉शिवा चतुर्थी व्रत विधि (संक्षेप में)

  1. व्रत संकल्पप्रातः स्नान कर के शिवलिंग के सम्मुख व्रत का संकल्प लें
    "
    मम सर्वपापक्षयपूर्वक आयुरारोग्यैश्वर्यलाभार्थं मासिक शिवा चतुर्थी व्रतं करिष्ये।"
  2. पूजनशिवलिंग को पंचामृत गंगाजल से स्नान कराएं, फिर चंदन, अक्षत, बिल्वपत्र, धतूरा, आक, पुष्प अर्पित करें।
  3. मंत्र जप – “ नमः शिवायया महादेवाय नमःका कम से कम 108 या 1008 बार जप करें।
  4. उपवास रात्रि जागरणदिनभर निर्जल या फलाहार उपवास रखें, रात में भजन-कीर्तन करें।
  5. अगले दिन पारणपंचामृत या मीठे जल का सेवन कर उपवास खोलें, ब्राह्मण को भोजन कराएं दक्षिणा दें।

🌟 फल एवं महत्व

  • सभी प्रकार के पाप नष्ट होते हैं।
  • संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  • आयु, आरोग्य ऐश्वर्य में वृद्धि होती है।

शिवलोक में स्थान और मोक्ष का लाभ मिलता है। 📜 शिवा चतुर्थी व्रतकथा महत्त्व

शास्त्रीय दृष्टि से शिवा चतुर्थी प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को आती है, और इसे शिव-पार्वती के पावन मिलन एवं भक्त कल्याण का प्रतीक माना गया है।
एक प्राचीन प्रसंग के अनुसार, पार्वती जी ने हिमालय पर तप कर इस व्रत को किया और भगवान शिव से कहा — “हे महेश्वर! यह व्रत आपके भक्तों को रोग, दुःख, ऋण, शत्रु और अकाल मृत्यु से बचाएगा।
इस व्रत की कथा में एक गरीब गृहस्थ का उल्लेख है, जो निरंतर विपत्तियों से घिरा था। किसी साधु ने उसे यह व्रत करने की सलाह दी। उसने स्नान, शिव पूजन, बेलपत्र अर्पण और रात्रि-जागरण के साथ चतुर्थी का व्रत किया। उसी रात स्वप्न में शिव ने आकर उसे आशीर्वाद दिया, और उसके जीवन के सभी संकट दूर हो गए।
अतः यह व्रत आयु, आरोग्य, सौभाग्य और पारिवारिक सुख देने वाला माना गया है।

📜 शिवा चतुर्थी व्रतपूजन-विधि, मंत्र दान-विधि

मासे मासे कृते कृष्णे चतुर्थ्यां शंकरप्रियाम्।

पार्वत्या पूजिता नित्यं वरदा सर्वकामदा॥ 

 

कस्मिंश्चिद् नगरस्यान्ते वसन् दीनो गृहाश्रमी।

साधुना दर्शितो मार्गः शिवचतुर्थ्युपासनम्॥ 

 

स्नात्वा शिवालये भक्त्या बिल्वपत्रं समर्पयन्।

जपन् नमः शिवायदुःखान्मुक्तोऽभवत् क्षणात्॥ 

 

तस्मात् सर्वैः प्रयत्नेन व्रतं एतत् समाचरेत्।

आयुः आरोग्यमैश्वर्यं लभते संशयः॥

कथा -

कहा जाता है कि प्राचीन काल में अनन्तपुर नामक नगरी के बाहरी हिस्से में एक निर्धन किंतु धर्मपरायण गृहस्थ रहता था। उसका जीवन निरंतर विपत्तियों से घिरा थाखेत सूख चुके थे, घर में अन्न का एक दाना नहीं था, और रोग ऋण ने उसे तोड़ दिया था। एक दिन, निराश होकर वह भोजन की तलाश में वन की ओर गया।

वन में उसे एक वृद्ध साधु मिले, जिनके मुख से निरंतर नमः शिवाय की ध्वनि निकल रही थी। गृहस्थ ने उन्हें अपनी सारी पीड़ा सुनाई। साधु ने करुणा-पूर्वक कहा

वत्स! तुम्हारे कष्टों का निवारण केवल शिवा चतुर्थी व्रत से होगा। प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को प्रातः स्नान कर, भगवान शिव का पूजन करो, बेलपत्र, जल, दुग्ध, धतूरा अर्पित करो, और रात्रि में शिव नाम का जप करते हुए जागरण करो। इससे केवल वर्तमान कष्ट दूर होंगे, बल्कि आने वाले संकट भी पास नहीं आएँगे।

गृहस्थ ने श्रद्धा से व्रत कियाउसने गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक किया, चंदन, पुष्प और बिल्वपत्र अर्पण किए, और रात्रि भर भजन मंत्रजप में लीन रहा।

रात्रि के अंतिम पहर में उसने स्वप्न में देखानीलकण्ठ भगवान शिव, गंगा-जटा से जलधारा बहाते हुए, मुस्कान के साथ प्रकट हुए और बोले

वत्स! तेरी भक्ति से प्रसन्न होकर मैं तुझे दीर्घायु, आरोग्य और संपन्नता का वरदान देता हूँ। तेरे समस्त ऋण कटेंगे, रोग मिटेंगे, और शत्रु स्वयं शांत हो जाएँगे।

जागने पर उसने अनुभव किया कि उसके जीवन की दिशा बदल चुकी हैखेतों में फसल लहलहा उठी, घर में सुख-शांति लौट आई, और उसके परिवार ने समृद्धि पाई। तभी से यह व्रत ऋणमुक्ति, रोग-नाश, शत्रु-विनाश, आयु और सौभाग्य देने वाला माना जाता है।


पूजन-विधि

  1. प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध पीले या सफेद वस्त्र धारण करें।
  2. पूजास्थान में कलश स्थापना कर, उसके ऊपर आम्रपल्लव और नारियल रखें।
  3. शिवलिंग को गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद शक्कर से पंचामृत स्नान कराएँ, फिर स्वच्छ जल से शुद्धि करें।
  4. बेलपत्र, धतूरा, आक-पुष्प, अक्षत, चंदन, भस्म अर्पित करें।
  5. धूप-दीप, नैवेद्य और फल अर्पित कर नमः शिवाय का 108 बार जप करें।
  6. कथा-पाठ करें और परिवार सहित श्रवण करें।
  7. रात्रि में भजन, कीर्तन और शिव-नाम स्मरण के साथ जागरण करें।
  8. अगले दिन पारण कर, ब्राह्मण अथवा जरूरतमंद को भोजन दान दें।

मुख्य मंत्र

  • बीज मंत्र:
    हौं नमः शिवाय
  • महामृत्युंजय मंत्र:
    त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥

दान-विधि

  • पूजन के बाद सफेद वस्त्र, चावल, गुड़, दही, बेलपत्र, और चंदन का दान करें।
  • जल से भरे कलश में सुपारी, अक्षत मुद्रा रखकर मंदिर या शिवालय में अर्पित करें।
  • गृहस्थ के लिए अन्नदान विशेष फलदायी माना गया है।

🕉 पूजन-विधि

  1. प्रातः स्नान कर स्वच्छ श्वेत या पीत वस्त्र धारण करें।
  2. घर के पूजास्थान या शिव मंदिर में पूर्वाभिमुख होकर आसन पर बैठें।
  3. कलश स्थापना कर उस पर नारियल, आम के पत्ते रखें और गंगा जल भरें।
  4. शिवलिंग को गंगाजल, पंचामृत से स्नान कराएँ।
  5. बेलपत्र, धतूरा, सफेद पुष्प, अक्षत, चंदन, भस्म अर्पित करें।
  6. धूप-दीप जलाकर नमः शिवाय का 108 बार जप करें।
  7. व्रत कथा का श्रवण/पाठ करें।
  8. रात्रि में शिव नाम-स्मरण और भजन करें, चतुर्थी तिथि पूर्ण होने पर व्रत का पारण करें।

🔱 मुख्य मंत्र

  • बीज मंत्र:
    हौं नमः शिवाय
  • महामृत्युंजय मंत्र:
    त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
  • पूजन श्लोक:
    बिल्वपत्रं समर्पयामि, भक्त्या शंकर पादयोः। त्रैलोक्यं त्रिपुरा हर्ता, त्रिपुण्ड्रधारी शंकरः॥

🎁 दान-विधि

  • दान सामग्री: सफेद वस्त्र, चावल, दही, चीनी, चंदन, बेलपत्र, श्वेत पुष्प, दीपक।
  • दान का समय: पूजन के पश्चात, ब्राह्मण या जरूरतमंद को।
  • विशेष दान: जलयुक्त कलश, जिसमें सुपारी, अक्षत सिक्का डालकर, मंदिर में अर्पित करें।

🌟 फलश्रुति (व्रत का फल)

  • व्रती को आयु, आरोग्य, ऋणमुक्ति, शत्रु-विनाश और संतान सुख प्राप्त होता है।
  • गृहकलह समाप्त होकर, घर में धन-धान्य और सौभाग्य की वृद्धि होती है।
  • शिव कृपा से भय, रोग और अशुभ ग्रह दोष दूर होते हैं।
  •  

💡 विशेषजैन परंपरा में
जैन मत में भीशिवा चतुर्थीके दिन अहिंसा, उपवास, ध्यान और स्वाध्याय का विशेष महत्व है। इसे आत्मशुद्धि का दिन माना जाता है, जब साधक कषायों (क्रोध, मान, माया, लोभ) पर विजय पाने का अभ्यास करता है।

 


·  शिव पुराण, स्कन्द पुराण, और पद्म पुराण में चतुर्थी तिथि के व्रत का महत्व बताया गया है।

·  शिव पुराण, विधेश्वर संहिता में कहा गया है चतुर्थ्यां कृष्णपक्षस्य कुर्याच्छिवसमर्चनम्।

सर्वपापक्षयः स्याद्धि मोक्षमार्गप्रदायकः॥

कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को शिव की पूजा करने से सभी पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष का मार्ग प्राप्त होता है)

शिव ध्यान श्लोक (महामृत्युंजय से पहले):

करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा।

श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्॥

विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व॥

जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो॥

. शिवा चतुर्थी

  • मासिक व्रत जो हर कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।
  • "शिवा" नाम यहाँ पार्वती जी का सूचक है, और इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी का पूजन होता है।

इसे मोक्षदायिनी चतुर्थी और पापमोचनी चतुर्थी भी कहते हैं। लाभ:

·         स्वास्थ्य और बल में वृद्धि

·         रोग-शोक का निवारण

·         चन्द्र, शनि, शुक्र दोष में भी सहायक

  •  

2. किसकी पूजा होती है

  • मुख्य रूप से भगवान शिव (लिंग स्वरूप)
  • साथ में माता पार्वती और गणेश जी
  • यह शिव और शक्ति के अविनाशी मिलन का प्रतीक माना जाता है। लाभ:
  • स्वास्थ्य और बल में वृद्धि
  • रोग-शोक का निवारण
  • चन्द्र, शनि, शुक्र दोष में भी सहायक
  •  

शि . शिवा चतुर्थी

मासिक व्रत जो हर कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।
"
शिवा" नाम पार्वती जी का सूचक है, और इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी का पूजन होता है।
इसे मोक्षदायिनी चतुर्थी और पापमोचनी चतुर्थी भी कहते हैं।

2. किसकी पूजा होती है

मुख्य रूप से भगवान शिव (लिंग स्वरूप)
साथ में माता पार्वती और गणेश जी।
यह शिव और शक्ति के अविनाशी मिलन का प्रतीक माना जाता है।

चतुर्थ्यां कृष्णपक्षस्य यः पूजेत्सदाशिवम्।

सर्वपापविनिर्मुक्तो गच्छेत्शिवपदं ध्रुवम्॥

कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को जो सदाशिव की पूजा करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर शिवलोक को प्राप्त करता है।)

3.

शिव पुराण, विधेश्वर संहिता
चतुर्थ्यां कृष्णपक्षस्य यः पूजेत्सदाशिवम्।
सर्वपापविनिर्मुक्तो गच्छेत्शिवपदं ध्रुवम्॥
(
अर्थ: कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को जो सदाशिव की पूजा करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर शिवलोक को प्राप्त करता है।)

स्कन्द पुराण, नागरखण्ड
शिवायाः चतुर्थ्यां तु कृत्वा शंकरपूजनम्।
दरिद्र्यं नाशमायाति सौभाग्यं जायते ध्रुवम्॥
(
अर्थ: शिवा चतुर्थी को शंकर की पूजा करने से दरिद्रता समाप्त होती है और स्थायी सौभाग्य की प्राप्ति होती है।)

4. पूजन विधि (संक्षेप)

स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
शिवलिंग का गंगाजल, दूध, दही, शहद से अभिषेक करें।
बेलपत्र, धतूरा, अक्षत, पुष्प चढ़ाएँ।
नमः शिवाय या महामृत्युंजय मंत्र का 108 जप करें।
कथा श्रवण और रात्रि जागरण करें।

5. विशेष लाभ

चंद्र और शनि दोष की शांति।
स्वास्थ्य, दीर्घायु और मानसिक स्थिरता।
पाप क्षय और मोक्ष मार्ग की प्राप्ति।

·  ग्रह दोष शांतिविशेषकर चंद्र और शनि का प्रभाव कम करता है।

·  स्वास्थ्य और दीर्घायु

·  मानसिक शांति और स्थिरता

🌸 जैन धर्म में तिथिवंदना (चतुर्थी व्रत सहित) — विस्तृत विवरण

1. तिथिवंदना का महत्त्व

  • जैन धर्म में मास की प्रत्येक तिथि को विशेष मान्यता दी गई है, जिसे तिथिवंदना कहा जाता है। यह तिथियाँ जीवों के कर्मों की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति की दिशा में सहायक होती हैं।
  • प्रत्येक तिथि पर व्रत, तप, जप और स्वाध्याय करने का विधान है। ये व्रत मोक्षमार्ग के लिए अनिवार्य आध्यात्मिक अनुशासन माने जाते हैं।
  • आचारांग सूत्र (अध्याय 1.17) में स्पष्ट है कि तिथिवंदना के पालन से संयम की प्राप्ति होती है और मोक्ष के द्वार खुलते हैं।

2. चतुर्थी व्रत पालन विधि

  • उद्देश्य: चतुर्थी व्रत से मनुष्य अपने मन, वचन और कर्मों को संयमित करता है तथा पुण्य की प्राप्ति करता है।
  • विधि:
    • चतुर्थी तिथि के दिन प्रातः उठकर शुद्ध स्नान करें।
    • स्वच्छ वस्त्र धारण कर शांत और एकांत स्थान पर ध्यान और प्राणायाम करें।
    • जैन धर्म के उपदेशों का स्वाध्याय करें, जैसे तुर्थंती आचार्यों के ग्रंथ
    • साधना करते हुए अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और तप का पालन करें।
    • दिन भर उपवास या अन्न से संयम करें (जैसे फलाहार या एक समय भोजन)
    • शान्तिपाठ, प्रार्थना और मंत्र जाप करें।
    • रात में ध्यान और स्वाध्याय करें, तथा अगली तिथि के लिए संकल्प लें।

3. प्रमुख मंत्र एवं प्रार्थना

  • त्रिपदा स्तोत्रभगवान आरहंतों का स्तुति मंत्र, शक्ति पुण्य वृद्धि हेतु।
  • तत्त्वज्ञान मंत्र:
    णमो अरहंताणं
    णमो सिद्धाणं
    णमो आयरियाणं
    णमो उवज्झायाणं
    णमो लोए सव्व साहूणं
  • चतुर्थी विशेष प्रार्थना:
    चतुर्थ्यां तिथौ व्रते कुर्वे संयमितात्मा।
    मोक्षपथे गच्छेति नित्यं सिद्धिं प्राप्नुयात्॥
    (
    अर्थ: संयमित मनुष्य मास की चतुर्थी तिथि को व्रत करता है, जो उसे नित्य सिद्धि और मोक्ष की ओर ले जाता है।)

4. दान-व्रत का महत्व

  • व्रत के साथ दान करना शुभ माना जाता है, जिसमें अन्नदान, वस्त्रदान, और जलदान प्रमुख हैं।
  • दान करते समय "सर्वे भवंतु सुखिनः" की भावना होनी चाहिए।
  • दान से कर्मों की शुद्धि होती है और आत्मा का उद्धार संभव होता है।

संक्षेप में, जैन धर्म में चतुर्थी व्रत सहित तिथिवंदना के ये नियम

  • जीवन को संयमित और शुद्ध बनाते हैं।
  • कर्मों के बंधन तोड़ने में सहायक होते हैं।
  • मोक्ष की प्राप्ति के लिए आवश्यक आधार तैयार करते हैं।

📿 1. त्रिपदा स्तोत्र

यह स्तोत्र भगवान आरहंतों, सिद्धों, और तीर्थंकरों की महिमा का वर्णन करता है। इसका जाप मन और कर्म की शुद्धि के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।

पाठ (प्रथम श्लोक)

 

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श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चा...

रामचरितमानस की चौपाईयाँ-मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक (ramayan)

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं ना...

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...