🔔 प्रस्तावना: संध्या समय घण्टी-ध्वनि के विषय में भ्रम, आपत्ति और शास्त्रीय निष्कर्ष
🌅 भ्रम / आपत्ति / संदेह:
कई बार यह भ्रांति सुनी जाती है कि संध्या के समय, विशेषतः सूर्यास्त के बाद, घर या मंदिर में घंटी या शंख नहीं बजाना चाहिए, क्योंकि यह रात्रि काल है और शोर से “शांति भंग” होती है या “नकारात्मक प्रभाव” होता है।
📜 शास्त्रसम्मत उत्तर एवं निष्कर्ष:
-
धर्मसिन्धु ग्रंथ स्पष्ट करता है कि:
"सायंप्रात: समयो यः सन्ध्याकाले विशेषतः । तत्र पूजाविधानं तु सन्ध्यायाः संप्रदायतः ॥"
अर्थ: संध्या के समय पूजन, मंत्र और ध्वनि—परंपरा से अनुमोदित और विशेष रूप से आवश्यक माने गए हैं। -
“Aagamārdham tu devānām, gamanārtham tu rakṣasām…”
— इस वैदिक वाक्य में कहा गया है कि घंटी की ध्वनि देवताओं को आमंत्रण और राक्षसी ऊर्जा के नाश के लिए होती है। -
बौद्ध तंत्र, विशेषतः नालंदा परंपरा, और जैन “तत्त्वार्थ सूत्र”, दोनों में संध्या पूजा में घण्टी-वादन आवश्यक माना गया है, ताकि चित्त की चंचलता मिटे और आध्यात्मिक एकाग्रता बने।
-
वैज्ञानिक रूप से, ध्वनि कंपन से स्थूल और सूक्ष्म वातावरण में शुद्धि होती है; यह ध्यान, प्राणायाम और पूजा में सहायक होती है।
घंटी (घण्टा) और शंख – संध्या - पूजा में? क्यों ?
संध्या - पूजा कार्य में. घण्टा (घंटी) क्यों पहले बजाना चाहिए
घंटी ध्वनि देवताह को आमंत्रित और राक्षस (अशुभ शक्तियों) को दूर
शंख एवं घंटी की ध्वनि का महत्व, संध्या उपरांत पूजा कार्य में शंख-घंटा बजाने का कल्याणकारी कारण, साथ ही इस विधि के शास्त्रीय प्रमाण, श्लोक, भावार्थ और लाभ -
1. घण्टा (घंटी) का महत्व
- घंटी का स्वर उच्च और क्लियर होता है, जो मन में देवत्व के प्रति ग्रहणशीलता जगाता है और वातावरण को पवित्र करता है। यह विद्वानों के अनुसार आकाशतत्व (आकाश तत्त्व) की चेतना फैला देता है।
- स्कंद पुराण में उल्लिखित है कि घंटी बजाने से पूजा स्थल पर देवत्व की उपस्थिति मजबूत होती है और भक्त की आत्मा सजग रहती है।
2. शंख (Conch) का विशेष प्रभाव
·
शंख
को विजय,
सत्य,
मंगल
और
धर्म
का
प्रतीक
माना गया है। विष्णु भगवान इसकी मुद्रा धारण करते हैं, और महाभारत में
कृष्ण ने ‘पंचजन्य’ का उच्चारण किया
था।
·
वेदों
में
वर्णित
है
कि शंख से निकलने वाला
ध्वनि ‘ॐ’ का प्रतीक
है – यह परम शक्तियों
का मूल आधार है।
शंख की ध्वनि तामस (अशुभ) और राजस (उत्कंठित) आवृत्तियों को नष्ट कर सुरक्षात्मक और सकारात्मक सत्त्विक ऊर्जा का आवरण बनाती है।
3-संध्या -. घण्टा (घंटी) क्यों
पहले
बजाना
चाहिए
– महत्त्व, लाभ
और
उपयोग
- समय विशेष: संध्या समय (प्रातः से संध्या तक संरचित पूजा) का आध्यात्मिक प्रभाव अधिक होता है क्योंकि दिन के कामकाज समाप्त हो चुके हैं और वातावरण शांत होता है।
- शुद्धता एवं सुरक्षा: संध्या उपरांत शंख-घंटी बजाने से पूजा के स्थान से नकारात्मक ऊर्जा हटती है, और सकारात्मक शक्तियाँ आकर्षित होती हैं।
- शास्त्रीय समर्थन: धर्मसिन्धु जैसे ग्रंथों में पूजा के आरंभ से पूर्व प्रथम उपाचार के रूप में घंटी व शंख बजाने की अनिवार्यता स्पष्ट है।
· 4-श्लोक प्रमाण और अर्थ:
· 1. शंख के लिए वैदिक गायत्री मंत्र:
·
"Panchajanyaya
vidmahe padma garbhaya dheemahi tanno Shankha prachodayaat"
— वैदिक शंख-गायत्री
"हम पंचजन्य (शंख) को जानते हैं,
उसका हृदय (भाव) समझते हैं, जय हो उस
शंख की, जो हमें प्रेरित
करे।"
· 2. घण्टा की पूजा विधि का श्लोक (स्कंद पुराण/घण्टा पूजा संदर्भ):
·
"घण्टावाद्ये
भवति
पूजायां
प्रथमोऽप्येति
देवता।"
— (घण्टा पूजा संदर्भ)
·
भावार्थ:
"घंटी पूजा के प्रारंभ में
बजाई जाती है; देवता को आमंत्रित करने
का यह प्रथम साधन
है।"
· सारांश – एक नज़र में:
ध्वनि यंत्र |
समय |
प्रभाव |
शास्त्रीय संदर्भ |
घण्टा (घंटी) |
संध्या उपरांत |
वातावरण को शुद्ध करें, देवत्व को आमंत्रित करें |
स्कंद पुराण, हिंदुविज्ञान स्रोत |
शंख (Conch) |
संध्या उपरांत |
अशुभ ऊर्जा हटाएं, विजय व सत्त्व ऊर्जा पैदा करें |
वैदिक धर्मग्रंथ, पुराण |
शास्त्रसमर्थित महत्व और लाभ: घंटी एवं शंख ध्वनि द्वारा संध्या पूजा पूर्व (पूर्व-पूजा)
1. वैदिक एवं पुराणिक प्रमाण
- घंटी (Ghanta) बजाने का श्लोक:
"आगमार्थं तु देवानां, गमनार्थं तु रक्षसाम्।
घण्टारवं करोम्यादौ, देवताह्वानलाञ्छनम्॥"
—संदर्भ
अर्थ: “मैं इस घंटी की ध्वनि से देवताओं को आमंत्रित करता हूँ और राक्षसों को दूर भगाता हूँ।”
- शंख वादन का शास्त्रीय महत्त्व:
- Hindu Janajagruti Samiti के अनुसार, शंख बजाने से वातावरण में मौजूद रोगजनक जीवाणु नष्ट होते हैं। यह शारीरिक एवं मानसिक विशुद्धि में सहायक है। Wikipedia के अनुसार, शंख को विष्णु का प्रतीक माना गया है और यह मांगलिकता, दीर्घायु, धन-समृद्धि, एवं पापशोधन का प्रतीक है।
2. वैज्ञानिक और मानसिक-शारीरिक लाभ
- घंटा बजाने के प्रभाव:
- IJCRT (2025) के अनुसार, घंटी की ध्वनि मस्तिष्क को तंत्रिकात्मक रूप से शांत करती है, अल्फा और थीटा वेव्स के माध्यम से मानसिक फोकस और विश्राम को बढ़ाती है। यह ध्यान और सुरति को केंद्रित करती है।
- एक अध्ययन में ज्ञात हुआ कि घंटी की ध्वनि उच्च आत्मिक ऊर्जा (ब्रह्मांडीय अनुकम्पा) को आमंत्रित करती है।
- शंख वादन के लाभ:
- उल्लेख है कि शंख बजाना वातावरण को पवित्र बनाता है, नकारात्मक ऊर्जा को दूर करके मानसिक शांति प्रदान करता है।
- अध्ययन के अनुसार, शंख की ध्वनि से EEG में सकारात्मक परिवर्तन होते हैं, जिससे ध्यान, स्वास्थ्य, और तनाव में उल्लेखनीय सुधार होता है। विशेषत: ह्रदय और श्वसन तंत्र पर लाभ होता है।
- -, शंख वादन फुफ्फुसीय क्षमता (lung capacity) और मानसिक निर्मलता दोनों को बढ़ाता है।
लाभ – संक्षेपण तालिका
श्रेणी |
घंटी (घण्टा) लाभ |
शंख (Conch) लाभ |
आध्यात्मिक |
देवता आमंत्रण, अशुभता नाश, मन को स्थिर बनाना |
मंगलकारक ध्वनि, पवित्रता, देवराज व्योम-संकेत |
मानसिक |
ध्यान-संवेदना बढ़ाता, फोकस व संकल्प में वृद्धि |
तनाव में कमी, भावनात्मक शांति |
शारीरिक |
मस्तिष्क-तरंग (Alpha, Theta) संतुलन, शरीर-मानसिक |
फुफ्फुसीय क्षमता में सुधार, शारीरिक मुद्रा (Posture) निखार |
सामाजिक |
सामूहिक पूजा में ऊर्जा संवेदना, सांस्कृतिक श्रृद्धा |
परंपरा, आजीवन सांस्कृतिक-आध्यात्मिक संवर्धन |
. वेदिक–हिंदू परंपरा
- शंख (Conch)
- यह पंचजन्य शंख विष्णु का प्रतीक है, जिसे सम्मान, समृद्धि, पाप शोधन और महागुणोन्मेष का साधन माना जाता है।
- वरााहपुराण के मतानुसार, पूजा शुरू करने से पहले शंख फूँकना अनिवार्य है – इससे सतोगुणात्मक ऊर्जा व दिव्य शक्ति आकर्षित होती, और अशुभ (राजस–तामस) प्रभावों का नाश होता है।
- घंटी (Bell)
- पूजा के आरंभ में घंटी बजाने से देवताओं की उपस्थिति का निमंत्रण, नकारात्मक शक्तियों का विमोचन, और मन की एकाग्रता सुनिश्चित होती है।
- प्रसिद्ध मंत्र:
“Aagamārdham tu devānām gamanārtham tu rakṣasām / Kurve ghaṇṭāravam tatra devatāhva-anā lakṣaṇam”
अर्थ: मैं इस घंटी की ध्वनि द्वारा देवताओं को आमंत्रित करता हूं और अशुभ शक्तियों को निष्कासित करता हूं।
2. बौद्ध धर्म (तिब्बती लामा संप्रदाय)
- घंटी (Bell / Drilbu)
- यह प्रज्ञा (wisdom) का प्रतीक है और शून्यता (emptiness) के ज्ञान को उजागर करता है।
- वज्र (Vajra या Dorje) के साथ मिलकर यह पूजा में बुद्धत्व, करुणा और प्रज्ञा का एकात्म प्रतीक बनता है।
- इसकी ध्वनि बुद्ध के उपदेश (धर्म) का प्रतीक मानी जाती है और यह आध्यात्मिक जागृति एवं ध्यान की गहराई को बढ़ाती है।
- शंग (Shang – तिब्बती घंटी)
- यह एक विशेष प्रकार की हाथबजी घंटी है, जिसका उपयोग मंत्र, आत्म-जागृति, आध्यात्मिक सुरक्षा और ऊर्जा संचार हेतु होता है।
3. जैन धर्म
- घंटी बजाना – जैन मंदिरों या पूजा के दौरान तीन-, चौथी और बारहवीं बार घण्टी बजाने के विशेष अर्थ होते हैं:
- पहले तीन बार बजाने से भौतिक मोह से आत्मविलग्नता का संकल्प व्यक्त होता है।
- अभिषेक पूजा पूर्व एक बार।
- भावपूजा (चैत्य-वंदन) से पूर्व 27 बार, जो 27 विशेष गुणों वाले जैन साधु की प्रशंसा है।
- संघर्ष की समाप्ति पर मंदिर से बाहर निकलते समय 7 बार बजाना, जिससे सात प्रकार के भय से मुक्ति का संकेत मिलता है।
4. सारांश तालिका
धर्म/परंपरा |
यंत्र |
प्रभाव एवं उद्देश्य |
वैदिक–हिंदू |
शंख |
पवित्रता, दिव्य शक्ति अभिनिवेशन, अशुभ ऊर्जा का नाश |
घंटी |
देवता-आगमन, मानसिक एकाग्रता, नकारात्मक हटना |
|
तिब्बती बौद्ध |
घंटी + वज्र |
प्रज्ञा (स्त्री), करुणा (पुंरश), शून्यता, ध्यान, आध्यात्मिक शक्ति |
शंग |
ऊर्जा संचरण, पूजा के विशिष्ट अनुष्ठानों में उपयोग |
|
जैन |
घंटी |
सांसारिक मोह का त्याग, साधु गुणों की स्मृति, भय से मुक्ति |
1. वैदिक–हिंदू परंपरा
- घंटी (Ghanta / घंटी)
- श्लोक (संज्ञा):
"आगमार्थं तु देवानां, गमनार्थं तु रक्षसाम्। - घण्टारवं करोम्यादौ, देवताह्वानलाञ्छनम्॥"
(यह श्लोक कहते हैं कि मैं इस घंटी की ध्वनि द्वारा देवतासमूह को आमंत्रित करता हूँ और राक्षस (अशुभ शक्तियों) को दूर भगाता हूँ।)
अर्थ और लाभ:
यह ध्वनि आध्यात्मिक रूप से वंदनीय शक्ति का उद्घोष करती है, मन को केन्द्रित करती है, नकारात्मक ऊर्जा को दूर भगाती है, और दिव्य उपस्थिति का निमंत्रण करती है। - शंख (Conch / शंख)
- ग्रंथीय वर्णन:
शंख को पवित्रता, समृद्धि, दीर्घायु, पापशोधन और लक्ष्मी-शक्ति का वाहक माना गया है। यह विष्णु का प्रतीक और देवी लक्ष्मी का निवास हैं।
- विधित्त अर्थ:
धार्मिक अनुष्ठान में शंख फूँकने से वातावरण पवित्र होता है, अशुभ तत्वों का विनाश होता है, और दिव्य ऊर्जा का आवाहन होता है।
2. तिब्बती बौद्ध संप्रदाय (वज्रयान)
- घंटी (Ghanta) एवं वज्र (Vajra / Dorje) संयोजन
- प्रमाण:
वज्रयान बौद्ध अनुष्ठानों में घंटी बुद्धत्व (प्रज्ञा) का प्रतीक है और वज्र करुणा/कर्तव्य (उपाय) का। ये दोनों अविभाज्य रूप से जुड़े हैं।
- वे विवरण:
घंटी अद्वैत और शून्यता (emptiness) का साझा रूप है—यह 'प्रज्ञा' का प्रतिरूप है। वज्र 'करुणा' और उपाय‑मार्ग की साधना का प्रतीक। इनका संयुक्त प्रयोग ध्यान और धर्म‑अनुष्ठान में दर्शन व पद्धति की एकता दर्शाता है।
3. जैन धर्म
- घंटी वादन का क्रमबद्ध अर्थ और शास्त्रीय उपयोग
- ग्रंथ/सन्दर्भ:
जैन पूजा‑विधि में घंटी घंटाना संध्या या पूजा से पूर्व क्रमबद्ध और अर्थपूर्ण होता है: - 3 बार बजाना → सांसारिक क्रियाओं से दूर कर, शारीरिक‑मनो‑वाणी से पूर्ण पूजा हेतु संकल्प।
- अभिषेक पूजा से पूर्व एक बार।
- भाविपूजा (चैत्य‑वंदन) से पूर्व 27 बार — साधु गुण‑संख्या के प्रतीक।
- मंदिर से बाहर निकलते समय 7 बार घंटी वादन — भय से मुक्ति का प्रतीक।
अर्थ:
ये क्रम दर्शाते हैं—उत्सर्ग, शुद्धता, साधु‑गुणसम्मान और भय‑निवारण की आध्यात्मिक यात्रा।
सारांशात्मक तालिका: ध्वनि यंत्रों का धर्मानुसार उपयोग और उद्देश्य
धर्म/परंपरा |
यंत्र |
शास्त्रीय प्रमाण |
उद्देश्य एवं लाभ |
वैदिक‑हिंदू |
घंटी |
"आगमार्थं ..." श्लोक |
देव्‑आगमन, अशुभ उन्मूलन, मानसिक एकाग्रता |
शंख |
विष्णु‑शंख, लक्ष्मी निवास स्मृति |
पवित्रता, सकारात्मक ऊर्जा, शुभता, उत्सव की शुरुआत |
|
बौद्ध (तिब्बती) |
घंटी + वज्र |
लामा परंपरा विवरण |
प्रज्ञा व करुणा का एकत्व, मनो‑ध्यान स्थिरता, आध्यात्मिक समृद्धि |
जैन |
घंटी श्रृंखला |
जैन पूजाविधि विवरण |
सांसारिक तटस्थता, गुण‑गणना, भय‑मोक्ष, साधु‑सम्मान |
·
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