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सप्तमी : द्वार पूजा विधि बिल्व शाखा, पत्ते

सप्तमी :बिल्व शाखा , पत्ते एवं   द्वार पूजा विधि (विजेंद्र तिवारी –प्रस्तुत jyotish9999@gmail.com-9424446706 ) नवदिन के कार्य नवरात्र में प्रथम दिन घट स्थापना ,  द्वितीय को पुस्तक पूजन , तृतीया को खडगपूजा , चतुर्थी को केस शोधन , पंचमी को सूर्य में दुर्गा देवी की कल्पना कर पूजा , षष्ठी को बेल वृक्ष की जड़ में पूजा , सप्तमी को नबपत्रिका पूजा , अष्टमी को मूर्ति पूजा एवं नवमी को बलिदान नारियल तोड़ना एवं दशमी को विसर्जन करना चाहिए। सप्तमी को बेल शाखा एवम 09 पत्तो की पूजा सप्तमी तिथि को 9 पत्तों की पूजा का विशेष महत्व है।   द्वार पूजा करना चाहिए। समय-सूर्योदय से पहले घंटे ,8वे या गोधुली बेला,सूर्यास्त से 24 मिनट पूर्व से 24 मिनट पशचात तक श्रेष्ठ| यदि 9 पत्ते वृक्ष विशेष के प्राप्त ना हो तो कम से कम तीन प्रकार के पत्ते या जो भी उपलब्ध हो उनकी पूजा करना चाहिए। विधि प्रक्रिया- सर्वप्रथम बेल वृक्ष की 6 या 12 अंगुल लंबी शाखा काटे। काटते समय का मंत्र है - ओम छिन्दि छिन्दि छेदय छेदय ओम स्वाहा। उसको स्नान एवम पूजा कर वस्त्र लपेटे। 09 वृक्षों के पत्ते- हल्दी, मेहंदी, बे

स्वस्तिक कैसे बनाये

    स्वस्तिक कैसे बनाये स्वास्तिक शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के सु उपसर्ग और अस धातु को मिलाकर हुई है। सु का अर्थ है श्रेष्ठ या मंगल , वहीं अस का अर्थ है सत्ता या अस्तित्व स्वास्तिक नाम संस्कृत शब्द स्वास्तिका से बना है जिसका अर्थ होता है– सु + अस + क से बना है। सु का अर्थ अच्छा , अस का अर्थ सत्ता या अस्तित्व और क का अर्थ कर्ता या करने वाले से है। इस प्रकार स्वास्तिक शब्द का अर्थ अच्छा या मंगल करने वाला है। अमरकोश में स्वास्तिष्क का अर्थ आशीर्वाद , मंगल या पुण्यकार्य करना लिखा है। अमरकोश के शब्द स्वास्तिक सर्वतोऋद्व अर्थात् सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो। श्रेष्ठ विजय के अर्ह के रूप में प्रयुक्त | -स्वास्तिक का चिह्न आर्य युग और सिंधु घाटी सभ्यता से भी पुराना है। 2. स्वास्तिक अपनी शुभता की वजह से जाना जाता है और यह शांति एवं निरंतरता का प्रतीक है। -आकृति- 04 समबाहु कटान वाला , जिसमें चार भुजाएं 90 डिग्री पर मुड़े होते हैं। सनातन तंत्र / धर्म - दक्षिणमुखी स्वास्तिक विष्णु का प्रतीक है | र वाममुखी स्वास्तिक काली देवी संहारक शक्ति का प्रतीक | रंग- - लाल और पीले रंग के स्वास्तिक श्रेष