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बलराम जयंती14.8.2025

 


लराम जयंती

पारंपरिक परिचय, अर्थ, कथा एवं पूजन-विधि

जयंती" शब्द संस्कृत श्लोकों में कई अर्थों में आता है — कभी जन्मदिन के रूप में, कभी विजयी देवी के रूप में।

सबसे प्रसिद्ध संदर्भ चण्डीपाठ (देवी माहात्म्य) में मिलता है:

या देवी सर्वभूतेषु जयंती रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

अर्थ: जो देवी सभी प्राणियों में "जयंती" (विजय प्रदान करने वाली) रूप में स्थित हैं, उन्हें मेरा बारंबार नमस्कार है।

यहाँ "जयंती" का अर्थ है — विजय देने वाली शक्ति
जबकि बलराम जयंती में "जयंती" का अर्थ है — जन्मदिवस का उत्सव

📜 परिचय एवं अर्थ
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान बलराम का अवतार दिवस मनाया जाता है। भगवान बलराम, श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता और शेषनाग के अवतार माने जाते हैं। वे बल, पराक्रम और धर्मरक्षा के प्रतीक हैं। "बल" का अर्थ है शक्ति और "राम" का अर्थ है आनन्दअतः बलराम का शाब्दिक अर्थ है "शक्ति और आनन्द से युक्त"
प्राचीन प्रमाणमहाभारत, भागवत पुराण (दशम स्कंध), हरिवंश पुराण में बलराम अवतार का विस्तार से वर्णन है।

📖 कथा
भागवत पुराण के अनुसार, कंस के अत्याचार से बचाने हेतु भगवान विष्णु ने वसुदेव और देवकी के गर्भ से होने वाले सप्तम बालक को योगमाया के प्रभाव से रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित किया। 

 रोहिणी नंदग्राम में निवास कर रही थीं। भाद्रपद कृष्ण षष्ठी को उनका जन्म हुआ। जन्म के समय धरती पर श्वेत आभा छा गई और देवताओं ने पुष्पवृष्टि की। 

 वे शारीरिक बल और शत्रु-विनाश में अद्वितीय थे, हल और मूसल उनके अस्त्र थे। 

इन्होंने दुर्योधन को गदा-युद्ध सिखाया, परन्तु धर्म के विपरीत कार्य में कभी साथ नहीं दिया। महाभारत युद्ध में वे तटस्थ रहे।

बलराम जयंतीकथा (महाभारत एवं भागवत पुराण के आधार पर)

📜 ग्रंथ संदर्भ:

  • महाभारतआदिपर्व भीष्मपर्व
  • श्रीमद्भागवत महापुराणदशम स्कंध, अध्याय 1, 35, 41 एवं 65
  • हरिवंश पुराणविष्णुपर्व, अध्याय 1-3

📖 कथा:
द्वापर युग में जब पृथ्वी पाप और अत्याचार से व्याकुल हो उठी, तब देवताओं ने भगवान विष्णु से अवतार लेने की प्रार्थना की। श्रीकृष्ण के अग्रज के रूप में अनंत शेष ने अवतार लिया, जिन्हें बलराम या बलदेव के नाम से जाना जाता है।

कंस के आतंक से बचाने हेतु देवकी के सातवें गर्भ को योगमाया ने रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित किया। इस प्रकार भगवान बलराम का जन्म श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को, मध्याह्न समय में, गोकुल में हुआ। उनकी त्वचा का रंग उज्ज्वल श्वेत था, इसलिए उन्हेंहलधरऔरबलभद्रभी कहा गया।

महाभारत में वर्णन है कि बलराम ने दुर्योधन और भीम को गदा-विद्या सिखाई। वे सत्यप्रिय, क्षत्रिय धर्मपालक और कृषि के प्रतीक माने जाते हैं। हल और मूसल उनके अस्त्र थे, जो धरती की उर्वरता और धर्म के संरक्षण का प्रतीक हैं।

 कथा 1 – हलधर बलराम जन्म कथा

(महाभारत एवं श्रीमद्भागवत पुराण पर आधारित)

स्रोत:

  • महाभारतआदिपर्व भीष्मपर्व
  • श्रीमद्भागवत महापुराणदशम स्कंध, अध्याय 1-2
  • लोकमान्यता अनुसार ग्रामीण अंचलों में हलषष्ठी पर इसी कथा का पाठ प्रचलित है।

प्रसंग:
द्वापर युग के उत्तरार्ध में, जब मथुरा का अत्याचारी राजा कंस अपनी बहन देवकी और बहनोई वसुदेव को कारागार में बंद करके उनके प्रत्येक संतान का वध कर रहा था, तब भगवान विष्णु ने देवकी के गर्भ में अवतार लेने का संकल्प किया।

देवकी के गर्भ में सातवीं संतान रूप में शेषनाग (अनंत) स्वयं अवतरित हुए, जिन्हें बाद में संसार बलराम के रूप में जानता है। कंस से उनके प्राण बचाने हेतु भगवान की आज्ञा से योगमाया ने यह अद्भुत कार्य कियादेवकी के गर्भ से भ्रूण को निकालकर वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया। उस समय रोहिणी, कंस के भय से, नंदगाँव में व्रजवास कर रही थीं।

इस अद्भुत गर्भ-संस्थान के कारण बलराम को संस्थानु या संकर्षण भी कहा जाता है, क्योंकि वे एक गर्भ से खींचकर दूसरे में स्थानांतरित हुए थे। चूँकि रोहिणी का पालन-पोषण गोकुल में हो रहा था, वहीं बलराम का जन्म भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हुआ। उस दिन रोहिणी ने गाय के गोबर का लीपापन, हल-डोरी से पूजा, और गौमाता के चारों ओर दीप प्रज्वलित कर पुत्र-जन्म का उत्सव मनाया। इसी से इस पर्व को हलषष्ठी या हरछठ कहा जाने लगा, जहाँ हल अर्थात हलधर (बलराम) और षष्ठी अर्थात उनके जन्म की तिथि।

बलराम का शिशुकाल नंदगाँव में बीता। वे किशोरावस्था से ही हल (हलधर) और मूसल (गदा) धारण करते थे, जिससे कृषक संस्कृति का गौरव बढ़ा। वे धरती को हल से जोतने और अधर्म का उन्मूलन करने वाले माने जाते हैं। हलषष्ठी पर हल चलाए गए खेत का अन्न, अनाज या फल पूर्ण वर्जित होते हैं, क्योंकि यह दिन कृषि-यंत्र हल की पूजा का है, कि उससे उपजे अन्न के उपभोग का।

भागवत पुराण में वर्णित है कि उन्होंने अपने जीवन में अनेक दैत्यों का वध कियाप्रलंबासुर, द्विविद वानर, मुष्टिक, चाणूर आदि। महाभारत युद्ध में वे तटस्थ रहे, किन्तु कृष्ण के सभी प्रमुख कार्यों में सहयोगी थे।
कृष्ण के द्वारका वास के समय बलराम ने रेवती से विवाह किया और निष्कर्ष में समुद्र तट पर ध्यानस्थ होकर योग द्वारा अपने अनंत स्वरूप को प्रकट किया।


🔱 पूजन-विधि:

  1. प्रातः स्नान के बाद भगवान बलराम की प्रतिमा या चित्र को गंध, चंदन, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य से पूजें।
  2. हल और मूसल का प्रतीक पूजन में रखें।
  3. दूध, दही, घी, मूंग, चावल और सत्तू का भोग लगाएं।
  4. बलराम मंत्र का जप करें

मंत्र:
बलभद्राय नमः

हलायुधाय नमः


🍃 व्रत-भोजन नियम:

  • इस दिन जौ, गेंहूं, चना, मूंग आदि सात्त्विक अन्न का सेवन करें।
  • प्याज, लहसुन, मांस, मद्य और तामसिक पदार्थ वर्जित हैं।
  • उपवास रखने वाले केवल फलाहार कर सकते हैं।

🌟 महत्त्व एवं लाभ:
बलराम जयंती व्रत से बल, बुद्धि, साहस और कृषिकार्य में सफलता मिलती है। संतान-सुख, रोग-निवारण और पारिवारिक कल्याण की प्राप्ति होती है। कृषक वर्ग, पहलवान, योद्धा और भूमि संबंधी कार्य करने वाले विशेष रूप से इस व्रत का पालन करें।


 

🪔 पूजन-विधि (पारंपरिक)

·         प्रातः स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण करें।

·         पूजास्थल पर बलरामजी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

·         हल, मूसल, श्वेत चावल, दूध, दही, चंदन, अक्षत, तुलसी पत्र अर्पित करें।

·         बलराम जी को श्वेत वस्त्र, दही, गन्ना और मूली प्रिय हैं, इन्हें अर्पित करें।

·         दीप प्रज्वलित कर निम्न मंत्र से आवाहन करें
" बलभद्राय नमः"

·         धूप, दीप, नैवेद्य, आरती कर भक्तिगान करें।

·         बलरामजी को हल्दी-मिश्रित दूध का अभिषेक विशेष पुण्य देता है।

🍽भोजन एवं वर्जनाएँ

·         इस दिन लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा का पूर्ण त्याग करें।

·         सात्त्विक भोजन जैसे दूध, दही, मक्खन, गन्ना, मूली, चावल, मूंग की दाल सेवन करें।

·         व्रतधारी प्रायः केवल फलाहार करते हैं।

🌟 महत्व एवं लाभ

·         बलराम जयंती का व्रत बल, स्वास्थ्य और आयु में वृद्धि करता है।

·         पारिवारिक विवाद दूर होते हैं और कृषि, भूमि व्यवसाय में वृद्धि होती है।

·         संतान की रक्षा और संतान-प्राप्ति की इच्छा पूरी होती है।

·         हरिवंश पुराण में कहा गया है कि बलराम-जन्म के दिन जो श्रद्धापूर्वक व्रत करता है, उसे जीवन में कभी पराजय का सामना नहीं करना पड़ता।

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