श्राद्ध रहस्य - क्यों करे ,न करे ? पिंड रहित ,महालय ?
किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित
करने पर ही मिलता है |
*श्राद्ध में गाय का ही दूध
प्रयोग करे |(विष्णु पुराण ) |श्राद्ध भोजन
में तिल अवश्य प्रयोग करे |
श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि-
श्राद्ध अपरिहार्य -अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत
अपेक्षा से कष्ट की स्थिति में जल,तिल
की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है|अन्यथा
दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं |श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से
पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि,दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है |
हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा
से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो ,पितर
एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं |
(भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र,तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार
को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत,सूर्य पूजा,
गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ |
- श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य
त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - कन्या के सूर्य
वर्षा ऋतू- अश्वनी माह की पंचमी शुक्ल
से कृष्ण पंचमी तक शाक से श्राद्ध करना
चाहिए | ,
. पुत्रवान
गृहस्थ कब श्राद्ध नहीं करे-
-१.६.११ तिथि,शुक्रवार,चतुर्दशी
तिथि एवं अपने,संतान के ,पत्नी के जबम नक्षत्र के दिन या जन्म नक्षत्र
से १०वे या १९ वे नक्षत्र के दिन या (गर्गमत) -रोहणी,रेवती,मघा
नक्षत्र के दिन श्राद्ध करने से धन एवं वंश नाश
होता है | (श्री दिवोदास का मतभेद है परन्तु अनुभूत एवं सन्दर्भ ग्रन्थ- पृथ्वी चंद्रोदय ,प्रयोग
पारिजात,वशिष्ठ )
-जिनके पिता जीवित हो उन का गया,महालय,तीर्थ,भद्रमाह,मघा
श्राद्ध -नहीं करना चाहिए|
-एक वर्ष तक श्राद्ध वर्जित- विवाह-के बाद एक वर्ष तक,जनेऊ,के
बाद ६
माह तक,चूड़ाकरण के बाद
तीन माह तक पिंडदान ,तिल तर्पण वर्जित |
श्राद्ध -नहीं करना चाहिए|
* बच्चो की मृत्यु पर विधान- ६ वर्ष तक के बालक एवं १० वर्ष तक की कन्या का
श्राद्ध नहीं किया जाना चाहिए |केवल मृत्यु के १० दिन में १६पिंड का दान (मलिन षोडशी)या की
जाना शास्त्रोक्त है |
पिंड रहित श्राद्ध कब करना चाहिए- समान्यतः पिंड सहित श्राद्ध करने का
विधान है |पिंड रहित श्राद्ध किन स्थितियों में किया जाना शास्त्रों के अनुसार करना
चाहिए ,यह जानना आवश्यक
है | श्राद्ध भद्रमाह के कृष्ण पक्ष में होता है
-भरणी नक्षत्र किसी भी दिन हो |
गाय दान श्रेष्ठ होता है |
-तृतीया तिथि को कृत्तिका नक्षत्र हो |
-षष्ठी को मंगलवार एवं व्यतिपात योग हो |
-अश्वनी कृष्ण ,चतुर्दशी को हस्त नक्षत्र में सूर्य या चंद्र
मघा नक्षत्र में हो |
-अश्वनी शुक्ल पक्ष.प्रतिपदा को मातामह का पार्वण श्राद्ध |
-अमावस्या को व्यतिपात एवं मृगशिरा,श्रवण,अश्वनी,धनिष्ठा,अश्लेषा,
नक्षत्र में हो | इसमें तर्पण श्राद्ध से पहले किया जाता
है |
-अमावस्या को -अनुराधा,विशाखा,स्वाति,पुष्य,आर्द्र,पुनर्वसु
नक्षत्र हो |इसमें तर्पण श्राद्ध से पहले किया जाता
है |)
ज्ञातव्य -महालय श्राद्ध-
-महालय माता श्राद्ध श्रेष्ठ |
गया,महालय,तीर्थ,भद्रमाह,मघा श्राद्ध में द्वादश देव (कुश १२ पितर देव
प्रतीक }श्राद्ध करना चाहिए |(Vishnu dharm )
-त्रयोदशी मृत तिथि हो उसको महालय श्राद्ध करने का दोष नहीं |
- -महालय के दिन यदि तिथि कम या अधिक हो तो २
श्राद्ध करने का विधान है |
-महालय तक या कार्तिक कृष्ण अमावस्या,या वृश्चिक
संक्रांति के प्रवेश के दिन कर सकते हैं |
-महालय अर्थात अंतिम दिन अमवस्या को किया जाने
वाला,श्राद्ध पके हुए अन्न से अर्थात तले हुए अन्न
से किया जाना चाहिए |
-
-महालय में पिंड दान नहीं किया हो तो
कार्तिक अमावस्या एवं पूर्णिमा को पिंड
दानकर ही देना चाहिए |क्योकि
वृश्चिक के सूर्य अर्थात १७ नवम्बर
से १६दिसंबर लगभग के पश्चात पितर पिंड न करने वाले को क्रोधित होकर श्राप देकर चले जाते हैं |
मोक्षदा श्री मदभगवद गीता - (पद्म पुराण )
*श्री मदभगवद गीता के तीसरे अध्याय का
पाठ पूर्वजो को मुक्ति प्रदान करता है |
मृत्यु
तिथि को श्राद्ध के दिन, पूर्वजो को मोक्षद .गीता के सातवे अध्याय का पाठ|
पूर्वजो के जन्म योनि मोक्ष के लिए आठवां अध्याय का पाठ कर एक ब्राह्मण को भोजन |
*श्राद्ध भोजन स्त्री को नहीं कराएं (बृहत्पराशरस्मृति)|सामान्य
ब्राह्मण की तुलना में एक या तीन भांजा ,वेदज्ञ या योगी श्राद्ध भोजन हेतु उत्तरोत्तर श्रेष्ठ |
श्राद्ध भोजन कराएं -नाना.मां,गुरु,दामाद ,यञं करता,
स्वसुर ,भाई कराना चाहिए
परन्तु सन्यासी जो गेरुए वस्त्र पहने हो ,उसे भोजन नहीं कराएं |नील
वस्त्रधारी भी वर्जित चाहे कोई हो|
Pandit vijendra kumar Tiwari “jyotish shiromani”
jyotish9999@gmail.com,
9424446706
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आपका लेख पढ़कर मुझे अच्छा लगा ।
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