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श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |





श्राद्ध क्या है?
श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “
अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है |
अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है |

श्राद्ध क्यों करना चाहिए  ?
पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है|

श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ?
यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश (रक्त,जींस) है ,यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं, तो उनकी आत्मा  को कष्ट होता है, वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं | 

कब ,क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है ?
यदि हम 96 अवसर पर श्राद्ध नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह  भी कहा जाता है | पितृ पक्ष में अपने मित्रगण के मरण तिथि के दिन साथ अवश्य करना चाहिए|

वर्ष में  कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं  ?
वर्ष में श्राद्ध के 96 अवसर होते हैं,
जैसे 12 अमावस्या,
चार युग तिथि,
14 - मनुवादी तिथि ,
12 - संक्रांति 
12 - वैधृति
12 - व्यतीपात
16 - महालय
12 - अन्वष्टका
05 - पांच पर्ववेध |

यदि उक्त 96 श्राद्ध के अवसरों का प्रयोग नहीं कर सके तो प्रति वर्ष भाद्र माह की पूर्णिमा से  अश्विनी कृष्ण पक्ष जो पितृ पक्ष अर्थात सोलह दिन कहलता है| जिसमे  में माता पिता / पूर्वज के लिए उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध कर्म अवश्य किया जाना चाहिए 


पितृ पक्ष /श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध राहु दोष का निवारक होता है ?
मत्स्य पुराण (14 अध्याय): गृहस्थों को देवपूजा से पूर्व पितर पूजा करना चाहिए।
पितर - पूर्वज मनुष्योदेवोऋषियो के होेते है।यथा मारीच पुत्र देवताओ के पितर कहलाए।

देव या पितर पहले किसकी पूजा करे ?
ग्रहस्थ जीवन में पितर (पूर्वज) प्रथम पूज्य है। सूर्य ग्रह स्वधा के द्वारा पूर्वजो का (पितर) पोषण करते है।
मनुष्यानो स्नेह स्वधया च पितृ न |

श्राद्ध में दान करने एवं दान लेने योग्य महत्वपूर्ण वस्तु /व्यकित कौन है ?
दूधशहद  , कालेतिल, गंगाजल,तसर का कपड़ादान के लिए विशेष उपयोगी हैं |श्राद्ध के समय  कुतुप कालभांजातुलसीसफेद पुष्पतिल के पुष्पचंपाचमेलीभ्रंगराज ,शत पत्रिका ,अगस्तय पुष्प  पर महत्वपूर्ण है|

वृद्धाश्रम या बालिका आश्रम या भिखारी ,लंगर ,मंदिर में दान का श्राद्ध देने का  औचित्य नहीं है | भांजा ,दामाद ,बहनोई ,साधू सन्यासी को  देना चाहिए | | दूधशहद  , कालेतिल गंगाजल,तसर का कपड़ादान के लिए विशेष उपयोगी हैं |श्राद्ध के समय  कुतुप कालभांजातुलसीसफेद पुष्पतिल के पुष्पचंपाचमेलीभ्रंगराज ,शत पत्रिका ,अगस्तय पुष्प  पर महत्वपूर्ण है|

श्राद्ध किन स्थितियों में नहीं करना चाहिए ?
. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।
. पूर्वान्ह  (दोपहर पूर्व , समय में),शुक्ल्पक्ष में, रात्री में और अपने जन्म  तिथि में  श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।
. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध, तर्पण का विधान नहीं है ।
. चतुदर्शी तिथि को श्राद्ध नहीं करना चाहिएइस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है ।
. जिनके पितृ युद्ध ,एक्सीडेंट में, शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।

पितरों को जल देते समय मुंह किस दिशा में होना चाहिए ?
पितरों को जल देते समय हमारा मुंह दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए तथा अंगूठे एवं तर्जनी इंडेक्स फिंगर के मध्य उसे जलधार अर्पित की जाती है|

श्राद्ध के समय भोजन के लिए किस प्रकार के पात्र /बर्तनों का प्रयोग करना चाहिए ?
सोने चांदी कांसे तांबे के पात्र श्रेष्ठ माने गए हैं इनके अभाव में पलाश या अन्य वृक्ष के दोना पत्तल काम में ला सकते हैं परंतु यह ध्यान रखा जावे कि केले के पत्ते या मिट्टी या लोहे के बर्तन का प्रयोग श्राद्ध कार्य में वर्जित माना गया है|

श्राद्ध जानकारी संदर्भित ग्रंथ -मनुस्मृति ,विष्णु पुराणमत्स्य पुराणब्रह्मांड पुराणवायु पुराणकूर्म पुराणश्राद्ध कल्पमनुस्मृतिश्राद्ध चंद्रिका ,श्राद्ध संग्रहसाध्य विवेकपद्मपुराणश्रीमद् भागवत आदि ग्रंथों में उपलब्ध निर्देशों वचनों या बातों को संकलित कर जनहित में सर्वसामान्य के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है|

गया के अतिरिक्त, किन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है
श्राद्ध कर्म ,किसी भी नदी या तालाब के किनारे श्राद्ध कर्म किया जा सकता है | कलियुग में नर्मदा नदी के किनारे श्राद्ध कर्म किया जाना श्रेष्ठ है | श्राद्ध कर्म के अन्य प्रमुख स्थान -प्रयागपुष्करगयाकुशावर्त अर्थात हरिद्वार एवं बद्रीनाथ  है |

गया श्राद्ध के पश्चात किस स्थान पर श्राद्ध कर्म अपरिहार्य होता है ?
गया श्राद्ध के पश्चात ब्रम्हकापाली (बद्रीनाथ) श्राद्ध किया जाना विशेष आवश्यक है |यदि साधन संपन्नता है तो बद्रीनाथ मैं ब्रह्मा कपाली साथ किया जाना अनिवार्य जैसा है |

तर्पण- विधि
दोनों हाध से करें |तर्जनी व अंगूठे के मध्य कुश हो ।
दक्षिण दिशा की ओर मुंह हो |हाथ मैं कुशजौशहदजलकाले तिल एवं अनामिका में स्वर्ण अंगूठी हो ।
दाई अनामिका मे दो कुश पवित्रीबाई अनामिका में तीन कुश पवित्री पहने ।
जल दोनों हाथ मिलाकर तर्जनी एवं अंगूठे के मध्य छेत्र से निचे की ओर छोड़ना चाहिएतीन अंजलि छोड़े ।
हाथ जितना ऊपर (कम से कम ह्रदय तक) हो उतना ऊपर का जलकाले तिल छोड़े । संभव हो तो नाभि के बराबर पानी (जलाशयनदी आदि में खड़े होकर) पितरो का ध्यान करते हुए जो तिल व पानी छोड़ना चहिए ।
जनेऊ दाहिने कन्धे पर बाएं हाथ के निचे हो ।

तिल वर्जित
सप्तमी को श्राद्ध के दिन जन्म दिन हो तो तिल वर्जित ।

श्राद्ध की सर्व सरल विधि
श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय  ?
विभिन्न ग्रंथो में स्पष्ट उल्लेख है कि ,आर्थिक विपन्नता की स्थिति में गाय को घास खिलाना या कंधे से ऊपर दोनों हाथ कर, निवेंदन करना

हे पूर्वजों, मैं प्रत्येक प्रकार से आपका मनोवांछित श्राद्ध पूर्ण विधि -विधान से नहीं कर सकता हूँ | आप मेरे द्वारा दिए गए जलतिल को ग्रहण करिए | मुझे एवं मेरे परिवार को आप विघ्न-बाधाओं से रहित,सभी प्रकार के सुखों का आशीर्वाद दीजिये |” जल एवं तिल दक्षिण दिशा की और  मुंह   कर पृथ्वी पर छोड़ दे |



ॐ नमो  नारायणाय  - शुभमस्तु
ज्योतिष शिरोमणि – वि के तिवारी
jyotish9999@gmail.com, 9424446707

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