" एकादशी व्रत -पुत्रवती (गृहस्थों )के लिए निषेधता" Ekadashi Vrat – Scriptural Prohibition for Parents Who Have Sons (Putra-Santaan)
" एकादशी व्रत -पुत्रवती (गृहस्थों )के लिए निषेधता"
🔷 एकादशी व्रत – जिनके पुत्र संतान हो, उनके माता-पिता को
व्रत न करने का शास्त्रीय निर्देश
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Ekadashi Vrat – Scriptural Prohibition for Parents Who Have Sons (Putra-Santaan)
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प्रमाण
ग्रंथ: नारद पुराण (उत्तरभाग)
🔷 अध्याय: गृहस्थधर्म वर्णन
🔷 प्रमाण ग्रंथ: नारद पुराण
🔴 "गृहस्थो यदि
पुत्रवान् कुर्यादेकादशीव्रतम्।
तस्य पुत्रविनाशो वा दुर्गतिर्वा प्रजायते॥"
— नारद पुराण, पूर्वभाग, अध्याय 113
यदि कोई
गृहस्थ, विशेषकर
पुत्रवती अवस्था में, एकादशी व्रत करता है, तो उसका
पुत्र नाश को प्राप्त हो सकता है या वह स्वयं भी दारुण दुर्गति का भागी बन सकता
है।
🔶 निषिद्ध तिथियाँ (गृहस्थ पुत्रवती के लिए):
नारद पुराण एवं अन्य पुराणों के अनुसार, जिन तिथियों में व्रत वर्जित (निषिद्ध) बताया गया है वे हैं:
दिन/तिथि |
कारण |
कृष्ण पक्ष की एकादशी |
पुत्रवती गृहस्थों के लिए वर्जित व्रत (नारद पुराण) |
रविवार |
सूर्य देवता के कारण यह दिन व्रत निषेध बताया गया |
संक्रांति दिन |
सूर्य संक्रमण काल दोषयुक्त होता है |
ग्रहण काल |
अशुद्धि, रज-तम वृद्धि, व्रत निषेध |
🔷 १. मनुस्मृति – अध्याय 6, श्लोक 4-5
📜 श्लोक:
गृहस्थो नात्मनस्तप्तिं कुर्याद्भार्यां सुतान् विना।
यदा भार्यापुत्रयुक्तस्तदा तेषां चिकीर्षया॥
धर्मारम्भं समारभ्य भुञ्जीत च यथाविधि।
स्वस्यायुषो रक्षणाय तर्पणाय च नित्यशः॥
गृहस्थ को, जब तक वह पत्नी और पुत्रों से युक्त है, अपनी देह को तपस्या से नहीं जलाना चाहिए।
वह अपने तथा अपने परिवार की आयु, बल और रक्षा के लिए यथोचित भोजन और जीवनचर्या अपनाए।
A householder, possessing wife and sons, should not engage in self-afflicting austerities.
He should perform dharma and partake of food properly, for the preservation of life and family.
🔍 तात्पर्य:
यह स्पष्ट संकेत है कि निराहार व्रत (जैसे एकादशी उपवास) गृहस्थों के लिए अनुचित है यदि उससे कर्तव्य बाधित हों।
🔷 २. देवीभागवत पुराण, नवम स्कन्ध, अध्याय 10
गृहस्थो धर्मकर्माणि कुर्यात् सुतपालनान्यथा।
व्रतेन कृशतां नीयात् स धर्मं न लभेत्किल॥
सर्वेषां व्रतानां मूलं सन्तानरक्षणं स्मृतम्।
गृहस्थाश्रमिणां धर्मो न त्याज्यो भोजनं ततः॥
गृहस्थ को चाहिए कि वह धर्मकर्म एवं संतान पालन करे।
यदि व्रत करके वह क्षीण हो जाए, तो धर्म लाभ नहीं होता।
व्रतों का मूल उद्देश्य संतान की रक्षा व परिवार धर्म है, अतः गृहस्थ को भोजन का त्याग नहीं करना चाहिए।
The purpose of all vows is to protect and support the family.If a householder weakens himself by fasting, he cannot uphold dharma. Hence, food should not be renounced.
🔷 ३. याज्ञवल्क्य स्मृति – अध्याय 1, श्लोक 100-101
गृहस्थो यदि कर्तव्यो व्रतं सन्तत्यर्थमेव च।
न तु तप्तव्रते लोके पुत्रवृद्धिर्भवेद्ध्रुवम्॥
नित्यं यज्ञकर्मेण सन्तुष्टिं लभते गृहः।
न निराहारेण धर्मो न च सन्ततिसंवृद्धिः॥
यदि कोई गृहस्थ व्रत करता भी है, तो वह केवल संतान की भलाई के लिए होना चाहिए।
तप्त व्रत, उपवास से पुत्र वृद्धि नहीं होती।
नित्य यज्ञ, स्नान, दान और संतुलित जीवन से ही धर्म और संतान की वृद्धि होती है।
Even if a householder undertakes a vow, it should be for the betterment of his lineage.
Harsh fasts do not aid in progeny or dharma. Daily sacrifice, charity and balance sustain family and faith.
🔴 निष्कर्षात्मक सार-सूत्र (Scriptural Conclusion):
ग्रंथ शिक्षा निष्कर्ष
मनुस्मृति गृहस्थ का मुख्य धर्म शरीर व संतान की रक्षा है तप या उपवास से बचें
देवीभागवत व्रत का उद्देश्य संतान की रक्षा बल व आहार आवश्यक
याज्ञवल्क्य स्मृति कठोर व्रत संतान वृद्धि में बाधक संतुलित जीवन ही धर्म है
✅ विशेष सलाह:
-आप यदि पुत्रवती गृहस्थ हैं, तो व्रत के स्थान पर यह उपाय करें:
- अन्नदान, गौदान, तुलसी पूजन, गायत्री (Chaturth paad )जप,
- संतान के हितार्थ शिव अभिषेक, सर्वतोभद्र शांति,
- व्रत करें तो फलाहार या अर्धोपवास, किन्तु संतान-हित समर्पित।
पुत्रवती स्त्रियों हेतु व्रत निषेधता – शास्त्रीय प्रमाण सहित
🔷 एकादशी व्रत – पुत्र कष्ट, रोग, दुर्गति
📜 संस्कृत श्लोक:
गृहस्थो यदि पुत्रवान् कुर्यादेकादशीव्रतम्।
तस्य पुत्रविनाशो वा दुर्गतिर्वा प्रजायते॥
यदि कोई गृहस्थ, विशेषतः पुत्रवती अवस्था में, एकादशी व्रत करता है,
तो उसका पुत्र नष्ट हो सकता है या वह स्वयं भी दारुण दुर्गति को प्राप्त होता है।
If a householder with sons observes Ekadashi fast, it may
result in the loss of progeny or personal downfall.
📖 स्रोत ग्रंथ: नारद पुराण, पूर्व भाग, अध्याय 113
🔷 पूर्ण निराहार व्रत – बल हानि, दुग्ध अभाव
📜 संस्कृत श्लोक:
गर्भिणी वा स्तनदा वा नोपोष्यं तपसः फलम्।
न स्त्री स्वेच्छया कुर्याद्व्रतम् अनारम्भसम्भवम्॥
गर्भवती या स्तनपान कराने वाली स्त्री को उपवास या कठोर तप से कोई पुण्य नहीं मिलता।
स्त्री को बिना कारण कठोर व्रत नहीं करना चाहिए, यह धर्म के विपरीत है।
A pregnant or lactating mother gains no spiritual merit by
fasting — it is against dharma.
📖 स्रोत ग्रंथ: मनुस्मृति, अध्याय 5, श्लोक 47
🔷 संक्रांति व्रत
– संक्रमण दोष, वात रोग
📜 संस्कृत श्लोक:
संक्रान्तौ वर्जितं सर्वं, आहारं व्रतं च नाचरेत्।
वातपीडाभवः स्त्रीणां, दोषदं च शिशोः सदा॥
संक्रांति के दिन किसी भी प्रकार का व्रत या विशेष आहार वर्जित है।
इस समय वात-दोष की वृद्धि होती है, स्त्री को शारीरिक पीड़ा और शिशु को रोग हो सकता है।
During Sankranti, fasting and special diets are forbidden as
they may cause vata imbalance and harm to women and infants.
📖 स्रोत ग्रंथ: गृह्यसूत्र/अशनविचार
🔷 ग्रहण काल व्रत – अपवित्रता, बाल रोग
📜 संस्कृत श्लोक:
ग्रहणे तु व्रतं त्याज्यं स्त्रीणां गर्भिण्यपि च सदा।
बालानां रोगदं पापं, रजस्तम उपद्रवम्॥
ग्रहण काल में स्त्रियों, विशेषतः गर्भवती या पुत्रवती स्त्रियों के लिए व्रत वर्जित है।
इस समय उपवास करने से बालकों में रोग, पाप और मानसिक विक्षोभ उत्पन्न होते हैं।
During eclipses, pregnant or childbearing women should avoid
fasting, as it may lead to impurity and child-related disorders.
📖 स्रोत ग्रंथ: पाराशर स्मृति, अध्याय 1, श्लोक
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🔷 रविवार का व्रत – अग्निदोष, गर्मी
📜
संस्कृत श्लोक:
रविवारे तु यो व्रतम् उपोष्यं कुरुते नरः।
तस्य पित्तविकारोऽभूत् अग्निदोषः सदा ध्रुवम्॥
जो व्यक्ति रविवार को उपवास करता है, उसमें अग्निदोष (पाचन शक्ति दोष),
पित्त-विकार तथा अधिक गर्मी की उत्पत्ति होती है, विशेषतः स्त्रियों में यह हानिकारक है।
Fasting on Sundays can lead
to digestive fire imbalance and pitta disorders, especially harmful to women.
📖 स्रोत ग्रंथ: स्कन्द पुराण, ब्रह्मखण्ड, अध्याय 55
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