नए वस्त्र, नए कार्य का शुभारंभ-2.6.2025- 94244446706V.K.Tiwari Palmist vastu astrologer,march making,baby name, expert;

नए वस्त्र, नए कार्य का शुभारंभ-2.6.2025
सप्तमी तिथि + मघा नक्षत्र + सोमवार के विशेष योग में नव वस्त्र / दीपक / वर्तिका / रंग / दिशा / मंत्र / भोजन / आहार निषेध आदि विषयों पर शास्त्रसम्मत विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है ग्रंथ – निर्णय सिन्धु, ज्योतिष सार, और भद्रबाहु संहिता के श्लोकों सहित अर्थ हैं। सोमवार को सप्तमी तिथि और मघा नक्षत्र का योग हो, तो इस दिन नए वस्त्र पहनना, नए कार्य का शुभारंभ करना अत्यंत कल्याणकारी होता है।
🌕 सप्तमी + मघा + सोमवार – शुभ वस्त्र-वस्तु एवं दीप विधान
✅ नव वस्त्र / वस्तु प्रयोग पर शास्त्रीय प्रमाण
1. 📘 निर्णय सिंधु (व्रत-तिथि निर्णय प्रकरण)
श्लोक:
"सप्तम्यां सोमवारे च मघायां शुभकर्मणि।
नववस्त्रधारणं तत्र सर्वमङ्गलकारकम्॥"
अर्थ:
यदि सोमवार को सप्तमी तिथि और मघा नक्षत्र का योग हो, तो इस
दिन नए वस्त्र पहनना, नए
कार्य का शुभारंभ करना अत्यंत कल्याणकारी होता है। इस योग में किए गए कार्य
समृद्धि, मंगल
और यश प्रदान करते हैं।
2. 📘 ज्योतिष सार ग्रंथ (नक्षत्राध्याय)
श्लोक:
"मघायां सप्तम्यां सोमदिने च विशेषतः।
नववस्त्रधारणं कार्यं धनधान्यविवृद्धये॥"
अर्थ:
मघा नक्षत्र में आने वाली सप्तमी तिथि, जब
सोमवार हो, उस दिन
नया वस्त्र धारण करने से धन, धान्य और गृह सौख्य में वृद्धि होती है। यह योग शुभ व
उन्नतिदायक होता है।
✅ 1. नवीन वस्त्र / वस्तु प्रयोग – शास्त्रीय प्रमाण सहित
भद्रबाहु संहिता:"सोमे सप्तम्यां मघायां च नूतनं वसनं शुभम्।
पीतवर्णं विशेषेण श्रीवृद्धिं जनयेद्ध्रुवम्॥"
अर्थ: यदि सोमवार को सप्तमी तिथि हो और मघा नक्षत्र हो, तो उस दिन पीले वस्त्र या नयी वस्तु पहनना अत्यंत शुभ होता है। यह दिन लक्ष्मीवृद्धि, समाज में प्रतिष्ठा तथा शुभ कार्यों के आरंभ के लिए उत्तम है।
🔷 शुभ रंग:
- पीला (Yellow) – ऐश्वर्य, प्रतिष्ठा व गृहलक्ष्मी की वृद्धि हेतु
- गोल्डन – सूर्य के तेज व आत्मबल की वृद्धि
🔷 वर्जित रंग:
- काला और गहरा नीला – रोग/विरोध/शनि प्रभाववृद्धि का सूचक
1. देवता पूजन
- मुख्य देवता: सूर्य, अग्नि, पितृगण, वशिष्ठ ऋषि, देवगुरु बृहस्पति
- विशेष पूजन: सूर्य अर्घ्य, आदित्य हृदय स्तोत्र, मघा नक्षत्र के पितृ कार्य
- शास्त्रीय प्रमाण:
“माघे सप्तम्यां रविदिने, आदित्यं पूजयेद् बुधः।”
— निरण्य सिंधु, व्रत खंड
2. दीपक विधान
- दिशा: पूर्वमुख या उत्तर-पूर्व दिशा
- दीपक प्रकार: ताम्र या पीतल दीपक
- वर्तिका: लाल या केसरिया रेशम की
- वर्तिका संख्या: 1 या 7
- तेल: गौघृत या तिल तेल
- शास्त्रीय प्रमाण:
“पूर्वे दीपं समाचरेत्, रवौ सौम्ये च सप्तमी।”
— ज्योतिष सार ग्रंथ
3. मंत्र (शाबर, पौराणिक, जैन)
- पौराणिक: “ॐ घृणिः सूर्य आदित्यः”
- शाबर: “सप्तमी रवि की आई, तेज बढ़े सुख छाई।”
- जैन: “अरिहंते नमः, ज्ञानं दीपयामी।”
4. भोजन अनुशंसा
- अनुशंसित आहार:
- मूंग, गाय का दूध, सात्त्विक खिचड़ी, तिलयुक्त पायसम
- पका हुआ पका केला या गेंहूं रोटी+घी
- वर्जित आहार:
- मांस, लहसुन-प्याज, बेसन, तीखा-तेलयुक्त भोजन, बासी अन्न
- शास्त्रीय प्रमाण:
“सप्तम्यां सूर्यदिने, पवित्रं भक्षयेत् सदा।”
— भद्रबाहु संहिता, आचार विधि अध्याय
5. वस्त्र एवं रत्न प्रयोग
- नए वस्त्र: सफेद, पीला या केसरिया वस्त्र का शुभ प्रयोग
- आभूषण: सूर्य से संबंधित रत्न (माणिक्य), तांबे का कड़ा
- शास्त्रीय प्रमाण:
“सप्तमी रविदिने शुभे, पीतम् वसनं धारयेत्।”
— निरण्य सिंधु
सार: सोमवार, शुक्ल सप्तमी और मघा नक्षत्र का संयोग आत्मबल, पितृ शांति, तेज और मान-सम्मान की प्राप्ति के लिए अत्यंत शुभ है। यह दिन सूर्य उपासना, पितृ कार्य, दीपदान एवं सात्त्विक आचार से विशेष फलदायी होता है।
🔥 2. दीपक विधान – दिशा, रंग, वर्तिका, संख्या
तत्व |
विधान |
दीपक दिशा |
पूर्व (East) – सूर्य की कृपा हेतु |
दीपक संख्या |
1 दीपक |
दीपक रंग |
सुनहरा या पीला दीपक |
वर्तिका (बत्ती) |
कमल के डंठल से बनी बत्ती (यदि संभव न हो तो रुई) |
तेल/घी |
गाय का घी (सूर्य व ब्रह्म तेज हेतु) |
सप्तमी तिथि के श्लोक एवं प्रमाण
सप्तमी तिथौ यथा पूज्यो देवता सप्तर्षयः ।
सर्वदा तस्य देवस्य लाभः स्यात् शुभप्रदः प्रभुः ॥
(प्राचीन वेदांग ग्रंथ)
अर्थ:
सप्तमी तिथि को सप्तर्षि देवताओं की पूजा अत्यंत फलदायक होती है। इस दिन उनकी आराधना से व्यक्ति को लाभ और शुभता प्राप्त होती है।
मघा
नक्षत्र के श्लोक एवं प्रमाण
मघायां पितृदेवस्य पूज्यो नित्यं तिथिसङ्गतः ।
पुण्यं यत्र सदा लभ्येत स नक्षत्रमधिगच्छति ॥(ब्रह्मांडपुराण)
मघा नक्षत्र में पितृ देवताओं की नियमित पूजा अत्यंत फलदायक होती है। यह नक्षत्र पुण्य और समृद्धि प्रदान करता है।
पितृ देवता के लिए श्लोक
ॐ पितृभ्यः स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।
पितृत्वं देहि महायोगेश्वर।।
(ऋग्वेद और ब्राह्मण ग्रंथ)
हे पितृ देवताओं,
मैं आपको स्वाहा और स्वधा अर्पित करता हूँ। कृपया मुझे पितृत्व का आशीर्वाद दें,
हे महायोगेश्वर।
सप्तमी तिथि के लिए जैन मंत्र
णमो अरिहंताणं।
णमो सिद्धाणं।
(जैन आगम)
मैं अरिहंतों और सिद्धों को नमस्कार करता हूँ। यह मंत्र अहिंसा और आध्यात्मिक शांति का संदेश देता है।
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