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एकादशी -निर्जला भीमसेनी , पांडव एकादशी,6.6.2025 व्रत कथा (Pandit V.k.Tiwari -jyotish ,vastu,Hastrekha.9424446706)

 

एकादशी निर्जला भीमसेनी , पांडव एकादशी

 निर्जला एकादशी विशेष विवरण शास्त्रीय प्रमाण, पूजन विधि, कथा व मंत्र

🔷 🔱 व्रत नाम: निर्जला एकादशी (भीमसेनी एकादशी / पाण्डव एकादशी)

📅 तिथि: ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी
📚 शास्त्रीय स्रोत:

  • ब्रह्मवैवर्त पुराण, पद्म पुराण, स्कन्द पुराण (वैष्णव खंड), व्रतराज, धर्मसिंधु, निरनय सिंधु, संवत्सर-चंद्रिका

🔹 व्रत का अर्थ व महत्व (पौराणिक व शास्त्रीय प्रमाण सहित)

🔸 निर्जला = जल के बिना; यह एकादशी अत्यंत कठिन व्रत है, जिसमें जल का भी सेवन वर्जित होता है।
🔸 भीमसेन ने यह व्रत किया था, क्योंकि वे भोजन के बिना नहीं रह सकते थे, अतः महर्षि व्यास के आदेश से उन्होंने सालभर की सभी एकादशियों का फल इस एक व्रत द्वारा प्राप्त किया।
🔸 अतः इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

🔖 श्लोक स्कन्द पुराण (वैष्णव खंड):
"
ज्येष्ठ शुक्ला एकादशी निर्जला नाम कीर्तिता।
सर्वपापहरं पुण्यं सर्वव्रतानुत्तमं॥"
🔸 अर्थ: ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की यह निर्जला एकादशी सर्वव्रतों में उत्तम है, जो सम्पूर्ण पापों को हरनेवाली है।


 


🔹 व्रत कथा (प्रमाणित विवरण)

📖 स्कंद पुराण व पद्म पुराण के अनुसार
पाण्डवों में केवल भीम व्रत नहीं कर पाते थे, क्योंकि उनका पाचन तंत्र अत्यंत प्रबल था।
महर्षि व्यास जी के कहने पर उन्होंने ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को बिना जल के व्रत किया।
व्यासजी ने कहा:

"सर्व एकादशी व्रतानां फलं लभ्यं भवेद् ध्रुवम्।
एकव्रतेनैव व्रतेन निर्जलैकादशी शुभा॥"

🔸 अर्थ: इस एक निर्जला व्रत से समस्त एकादशी व्रतों का फल निश्चित रूप से प्राप्त होता है।


🔹 व्रत पूजन विधि (Scripturally Validated Puja Vidhi)

🔸 पूजा का समय:
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर लें।
व्रत का संकल्प करें: "आज मैं भगवान विष्णु की कृपा हेतु निर्जला एकादशी व्रत रखता हूँ।"
दिनभर अन्न, जल, फल सब त्यागें, सिर्फ मन, वाणी, और शरीर से उपवास रखें।

🔸 पूजा सामग्री:

  • पीला वस्त्र, तुलसी पत्र, गंध, चंदन, धूप, दीप, पुष्प, शंख, घंटा
  • दीपक: शुद्ध देसी घी का दीपक।
  • दीप दिशा: पूर्व दिशा में दीप जलाना श्रेष्ठ
  • वर्तिका संख्या: 1 अथवा 4 मुखी (शास्त्रीय रूप से विष्णुपूजन हेतु)।

🔸 दान:

  • जल, वस्त्र, छाता, पंखा, घड़ा, जूते, मिठाई, सोना, चांदी ब्राह्मण को देना शुभ।
    "
    व्रतेन फलमाप्नोति दानं तत्र विशिष्यते।" (स्कन्द पुराण)
    🔸 पात्र: विद्वान विष्णुभक्त ब्राह्मण को।

🔹 व्रत विशेष मंत्र (Bold Font Only)

🔸 विष्णु पूजन मंत्र:
"
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय"
"
ॐ विष्णवे नमः"

🔸 एकादशी पूजन मंत्र:
"
ॐ पुण्यदायै पुण्यपुष्पप्रदायै नमः। निर्जलायै नमः।"

🔸 तर्पण मंत्र:
"
ॐ विष्णवे एकादश्यै च नमः। एष तर्पणं।"


🔹 भजन व पाठ

🔹 "श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्रं" का पाठ श्रेष्ठ।
🔹 "गोविन्द दामोदर माधवेति" भजन गाना चाहिए।
🔹 "हरि स्तोत्र", नारायण कवच एवं गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र विशेष पुण्यदायक।


🔹 वस्त्र व आहार नियमन

🔸 नये वस्त्र: इस दिन नये वस्त्र धारण नहीं करने चाहिए (क्योंकि व्रत की गंभीरता बनी रहे)।
🔸 भोजन: निर्जल रहें। अगर अस्वस्थ हों तो फलाहार भी सीमित मात्रा में।
🔸 स्नान जल में तुलसी पत्र मिलाएंपापनाशक प्रभाव होता है।


🔹 महापुण्य काल व पारणा (Breaking the Fast)

🔸 पारणा समय: अगले दिन द्वादशी को प्रातः सूर्योदय से पूर्व या सूर्योदय के तुरन्त बाद
🔸 पारणा विधि: सबसे पहले भगवान विष्णु को भोग लगाकर तुलसीपत्र जल में डालकर सेवन करें।


 

🟨 📖 विस्तृत कथा: महर्षि वेदव्यास एवं भीमसेन संवाद

पाण्डवों में सबसे बलवान भीमसेन को उपवास करना अत्यंत कठिन लगता था। माता कुंती और द्रौपदी तथा अन्य चारों पाण्डव युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव भगवान श्रीहरि विष्णु की कृपा प्राप्त करने हेतु प्रत्येक मास की एकादशी का व्रत करते थे, परंतु भीमसेन भोजन के बिना नहीं रह पाते थे।

भीम ने एक दिन महर्षि वेदव्यास से निवेदन किया:

भीमसेन बोले:
"
भगवन्! मेरी जठराग्नि बड़ी तीव्र है। मैं व्रत नहीं कर सकता, फिर भी मैं श्रीविष्णु की कृपा प्राप्त करना चाहता हूँ। कोई उपाय बताइए जिससे मुझे व्रतों का पुण्य भी मिल जाए और मेरी भोजन की आवश्यकता भी बनी रहे।"


🟪 📜 व्यासजी का उत्तर (संवाद):

व्यास जी बोले:
"
हे वत्स! यदि तुम पूरे वर्ष में केवल एक बार ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जल उपवास करो, तो वह सभी 24 एकादशियों के व्रतों के बराबर फलदायक होगी।"
"
इस दिन जल, अन्न, फल, जलपान कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। इस व्रत का पालन कर लेने से सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और अंत में विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।"


📜 श्लोक ब्रह्मवैवर्त पुराण (प्रकृतिखण्ड 23. 121–123):

"एकादश्यां निर्जलः स्यात् ततो योग्यं फलं लभेत्।
यः करोति विशेषेण तस्य पुण्यं न संशयः॥"

"सर्वेषां एकादशी व्रतानां फलं स्यात् विशेषतः।
निर्जलैकादशी या तु व्रतानां राजसंज्ञिता॥"

🔸 अर्थ: निर्जल रहकर एकादशी व्रत करनेवाला मनुष्य सभी व्रतों के पुण्य का अधिकारी होता है। यह निर्जला एकादशी व्रत समस्त व्रतों का राजा (श्रेष्ठ) कहा गया है।


🟨 भीमसेन की परीक्षा

महर्षि व्यासजी ने कहा कि यदि तुम व्रत के दिन जल भी ग्रहण करते हो तो व्रत निष्फल होगा।
भीम ने वचन दिया कि वे सिर्फ एक बार इस निर्जला एकादशी को व्रत करेंगे
व्यासजी की आज्ञा से उन्होंने भूख, प्यास सहकर भी निर्जल व्रत किया।

उस दिन भीमसेन ने
कोई अन्न नहीं लिया,
जल तक नहीं पिया,
व्रत रखकर श्रीविष्णु का पूजन किया,
द्वादशी को विधिपूर्वक पारण किया।

व्यासजी अत्यंत प्रसन्न हुए और बोले:

"हे भीम! आज के इस निर्जल व्रत से तुमने सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त कर लिया है। यह व्रत अब भीमसेनी एकादशीनाम से प्रसिद्ध होगा।"


🔱 विस्तृत कथा: भीमसेन और निर्जला एकादशी
(
प्रमाण: ब्रह्मवैवर्त पुराण, स्कन्द पुराण, व्रतराज, धर्मसिंधु आदि से)


📚 संदर्भग्रंथ:

ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृतिखण्ड, अध्याय 23, श्लोक 121–123,
स्कन्द पुराण वैष्णव खण्ड,
व्रतराज निर्जला एकादशी व्रत माहात्म्य,
धर्मसिंधु
निरनय सिंधु


🟨 कथा विस्तार (संवाद व प्रसंग सहित)

महारथी भीमसेन अत्यंत बलवान थे, परंतु उनकी जठराग्नि (भोजन की इच्छा) इतनी तीव्र थी कि वे एक दिन भी भोजन त्याग नहीं सकते थे। माता कुंती, भाई युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव और पत्नी द्रौपदीसभी प्रत्येक मास की एकादशी व्रत को नियमपूर्वक रखते थे और भगवान विष्णु की आराधना करते थे।

भीम की स्थिति यह थी कि वह उपवास नहीं कर सकते थे, परंतु धार्मिक कर्तव्य और मोक्ष की इच्छा उनके भीतर भी उतनी ही तीव्र थी। यह देखकर भीम एक दिन महर्षि वेदव्यास के पास पहुँचे और हाथ जोड़कर निवेदन किया


🟪 भीमसेन बोले:

"भगवन्! मेरा मन श्रीहरि की भक्ति में है, पर मेरी अग्नि इतनी तीव्र है कि मैं एक दिन भी भोजन के बिना नहीं रह सकता।
फिर भी मैं चाहता हूँ कि मुझे भी व्रतों का फल, धर्म और मोक्ष प्राप्त हो। क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे मुझे सभी एकादशियों का फल एक साथ मिल जाए?"


🟩 व्यासजी ने उत्तर दिया:

"*हे भीम! यदि तुम वर्ष भर की सभी एकादशियों का फल पाना चाहते हो, तो केवल एक दिन ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जल रहकर उपवास करो।
इस दिन न जल, न फल, न अन्न, न मिष्ठान्न, कुछ भी ग्रहण मत करना। यह व्रत इतना प्रभावशाली है कि सभी 24 एकादशियों का फल एक साथ देता है।
यह निर्जला एकादशी कहलाती है, और इसका पालन करनेवाला पापमुक्त होकर विष्णुलोक को जाता है।"


🟦 भीम का संकल्प एवं व्रत की कठिन परीक्षा:

भीम ने साहसपूर्वक यह व्रत स्वीकार किया
निर्धारित दिन उन्होंने प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प किया
"
मैं आज निर्जल एकादशी का व्रत करूँगा, विष्णु कृपा प्राप्त करूँगा।"

दिन जैसे-जैसे बीतता गया
सूर्य की तीव्रता बढ़ी,
भीम को पसीना, चक्कर और कमजोरी महसूस होने लगी।
उनकी तीव्र भूख और प्यास ने शरीर को दुर्बल कर दिया।

व्रत के अंतिम समय में भीम मूर्छित हो गए।
उनकी दशा देखकर भाई युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव और द्रौपदी चिंतित हो उठे।


🟧 भीम की रक्षा: चरणामृत, तुलसी व पवित्र जल द्वारा

भाइयों और द्रौपदी ने मिलकर
भगवान विष्णु का चरणामृत,
तुलसी मिश्रित जल,
पवित्र गंगाजल लेकर
भीम के मुख में थोड़ी मात्रा डाली।

तत्क्षण भीम की चेतना लौट आई।
यह दृश्य स्वयं महर्षि वेदव्यास ने देखा।
वे अत्यंत प्रसन्न हुए और बोले:

"हे वत्स! तुमने आज अत्यंत कठिन व्रत का पालन कर सभी एकादशियों का पुण्य अर्जित किया है।
यह व्रत आज से भीमसेनी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध होगा।"


📜 ब्राह्मवैवर्त पुराण प्रकृतिखण्ड (23.121–123):

"सर्वेषां एकादशी व्रतानां फलं लभ्यं भवेद् ध्रुवम्।
एकव्रतेनैव व्रतेन निर्जलैकादशी शुभा॥"

"सर्वपापहरं पुण्यं सर्वव्रतानुत्तमं।
निर्जला नाम सा ख्याता वैष्णवैः परमादरात्॥"

🔸 अर्थ: यह निर्जला एकादशी समस्त एकादशियों का फल देती है, पापों का नाश करती है और व्रतों में उत्तम है।


🟩 व्रत का प्रभाव:

इस घटना के बाद
अन्य पाण्डवों ने भी इस व्रत को और अधिक श्रद्धा से अपनाया।
भीमसेन ने न केवल स्वयं व्रत रखा बल्कि दूसरों को भी प्रेरित किया।
यह व्रत आध्यात्मिक परिवर्तन, संयम और मोक्ष की दिशा में बड़ा साधन माना गया।


📌 कथा का सार:

🔹 यह कथा दर्शाती है कि इच्छाशक्ति, श्रद्धा और संकल्प से किसी भी कठिन मार्ग को पार किया जा सकता है।
🔹 भीमसेन जैसे महान योद्धा ने तप और संयम द्वारा समस्त व्रतों का पुण्य प्राप्त किया।
🔹 निर्जला एकादशी आध्यात्मिक उत्थान और विष्णु भक्ति की चरम अभिव्यक्ति है।
🔹 यह व्रत मोक्ष का साधन माना जाता है और भीमसेनी एकादशी के रूप में यश प्राप्त करता है।


🟪 शास्त्रीय फलश्रुति (मूल श्लोक)

"यः करोति जलेनापि निर्जलैकादशीं नरः।
सर्वपापविनिर्मुक्तः विष्णुलोकं स गच्छति॥"
📖 (स्कन्द पुराण)
🔸 अर्थ: जो मनुष्य जल भी न लेकर निर्जला एकादशी का व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक को प्राप्त करता है।


🔸 विशेष तथ्य:

🟡 यह व्रत विशेषतः क्षत्रिय, गृहस्थ पुरुषों के लिए अनिवार्य बताया गया है, जो किसी कारणवश अन्य एकादशियों का पालन नहीं कर पाते।
🟢
इस एक व्रत से संपूर्ण वर्ष के सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है।
🔴 इसे "व्रतों का राजा (व्रताधिराज)" भी कहा गया है।


🔸 यदि असमर्थ हों तो क्या करें?

यदि कोई व्यक्ति निर्जल नहीं रह सकता तो कम से कम फलाहार से रहें, परंतु फल पूर्ण फल नहीं देता। निर्जल का महात्म्य सर्वाधिक है।

 🔹 फलश्रुति लाभ

📜 व्रतराज, धर्मसिंधु में कहा गया:
"
सर्वेषां एकादशी व्रतानां फलं लभ्यते ध्रुवम्।
येन किं चिदपि जातं पापं तदपि नश्यति॥"

🔸 अर्थ: समस्त एकादशियों का पुण्य व फल प्राप्त होता है।
🔸 पूर्वज तृप्त होते हैं, रोग, दरिद्रता, दोष समाप्त होते हैं।
🔸 विष्णुलोक की प्राप्ति निश्चित होती है।

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 🟨 १. हरि स्तोत्रम्

(ब्रह्मवैवर्त पुराण / पौराणिक स्तोत्र)


🔸 श्लोक १

शान्ता कारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं।
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघ वर्णं शुभाङ्गम्
जो शांत प्रकृति वाले हैं, शेषनाग पर शयन करते हैं, जिनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है, जो देवताओं के स्वामी हैं;
जो समस्त जगत के आधार हैं, आकाश के समान व्यापक, मेघ के समान श्यामवर्ण और सुंदर अंगों से युक्त हैं।

🔸 English:
Who has a peaceful form, rests on the serpent Ananta, has a lotus in his navel, Lord of the gods;
He is the support of the universe, vast like the sky, cloud-complexioned, with auspicious limbs.


🔸 श्लोक २

लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभिर्ध्या नगम्यम्।
वन्दे विष्णुं भव भय हरं सर्व लोकैक नाथम्॥

जो लक्ष्मीपति हैं, कमल जैसे नेत्रों वाले हैं, योगियों द्वारा ध्यान में प्राप्त होते हैं,
जो संसार के भय को हरते हैं और समस्त लोकों के एकमात्र स्वामी हैं – उन विष्णु की मैं वंदना करता हूँ।

🔸 English:
The consort of Lakshmi, with lotus eyes, approachable through meditation by yogis,
Destroyer of the fear of samsara, and sole Lord of all the worlds – I bow to Vishnu.


🔸 श्लोक ३

मेघ श्यामं पीत कौशेय वासं श्रीवत्स ङ्कं कौस्तुभोद्धासित ङ्गम्।
पुण्योपेतं पुण्डरी कायताक्षं विष्णुं वन्दे सर्वलोकैक नाथम्॥

मेघ के समान श्यामवर्ण, पीताम्बर धारी, श्रीवत्स चिन्ह से युक्त, कौस्तुभ मणि से प्रकाशित अंग वाले,
पुण्य से सम्पन्न, कमल-नेत्रधारी – उन विष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ जो सभी लोकों के एकमात्र नाथ हैं।

🔸 English:
Dark as a cloud, dressed in yellow silk, marked with the Shrivatsa and glowing with the Kaustubha gem,
Filled with merit, with lotus-like eyes – I bow to Vishnu, the sole Lord of all worlds.


🔸 श्लोक ४

नमः समस्त भक्तानां नाथाय भक्त वत्सल।
भव बन्ध विमुक्ताय नमो नन्ताय ते नमः॥
समस्त भक्तों के नाथ, भक्त वत्सल, भव बंधन से मुक्त कराने वाले अनंत भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ।

🔸 English:
Salutations to You, O Lord of all devotees, compassionate to the devoted, Liberator from the bondage of existence, Infinite One.


🔸 श्लोक ५

नमो वेद विनोदाय वेद वेद्याय विष्णवे।
नरसिंहाय भीमाय प्रलय च्छादनाय च॥

जो वेदों के क्रीड़ा रूप हैं, वेदों द्वारा जानने योग्य हैं, जो नरसिंह के रूप में भीम हैं और प्रलयकाल में रक्षक हैं – उन विष्णु को नमस्कार।

🔸 English:
Salutations to Vishnu, the sport of the Vedas, known through the Vedas, fierce as Narasimha, and the protector during dissolution.


🔸 श्लोक ६

सुप्रसन्नाय देवाय त्रिलोकी मङ्गलाय च।
स्वात्म रामाय शान्ताय स्वाभाव न्याय ते नमः॥

सदैव प्रसन्न, देवों में श्रेष्ठ, त्रिलोकी के कल्याणकारक, आत्मा में रमण करने वाले, स्वभाव से शांत – उन विष्णु को नमस्कार।

🔸 English:
Ever-pleased, divine, the auspicious one of all the three worlds, Self-rejoicing, tranquil by nature – I bow to You.


🔸 श्लोक ७

सत्य व्रताय सत्याय सत्य रूपाय विष्णवे।
नमो वेदान्त वेद्याय गुरवे बुद्धि साक्षिणे॥

सत्यव्रतधारी, सत्यस्वरूप, वेदान्त से जानने योग्य, गुरु और बुद्धि के साक्षी स्वरूप विष्णु को नमस्कार।

🔸 English:
To the One with the vow of truth, embodiment of truth, knowable through Vedanta, the Guru and witness of all intellect – Salutations.


🔸 श्लोक ८

साक्षात्कारण रूपाय नमस्त्रि गुण वर्तिने।
निर्गुणाय च नित्याय नमो चिन्त्याय वेधसे॥

जो साक्षात कारण रूप हैं, तीनों गुणों में कार्य करते हुए भी उनसे परे हैं, निर्गुण, नित्य और अचिन्त्य – ऐसे सृष्टिकर्ता विष्णु को नमस्कार।

🔸 English:
To the direct cause of all, who dwells in the three gunas yet remains beyond them, attribute-less, eternal, and inconceivable Creator – I bow to You.


🔸 श्लोक ९

नमो नमस्ते गोविन्द मङ्गलाय नमोऽस्तु ते।
सहस्र नाम्ने पुरुषोत्तमाय नमो नमः॥
हे गोविन्द! आपको बार-बार नमस्कार है, आप सभी कल्याण के स्वरूप हैं।
हे सहस्रनामधारी पुरुषोत्तम, आपको बारम्बार नमस्कार है।

🔸 English:
O Govinda! Salutations to You again and again, You are the embodiment of all auspiciousness.
O Supreme Being, bearer of a thousand names – Salutations unto You repeatedly.


🔸 श्लोक १०

इति स्तवं महामन्त्रो यं भक्त्या पठति नरः।
स ब्रह्म पदमेवाप्तो विष्णु लोकं स गच्छति॥
जो मनुष्य श्रद्धा से इस महामंत्र स्वरूप स्तोत्र का पाठ करता है,
वह ब्रह्मपद प्राप्त करता है और अंत में विष्णुलोक को जाता है।

🔸 English:
He who recites this great mantra-like hymn with devotion,
Attains the state of Brahman and ultimately reaches the abode of Vishnu.



कवच

(श्रीमद्भागवत महापुराण – स्कंध ६, अध्याय ८)

श्लोक १:
ॐ नमो नारायणाय।
🔸 हिन्दी: नारायण को नमस्कार है।
🔸 English: I bow to Narayana.

श्लोक २:
अथ नारायण कवचं प्रवक्ष्यामि।
🔸 हिन्दी: अब मैं नारायण कवच का वर्णन करता हूँ।
🔸 English: Now I shall describe the Narayana Kavach (armor of Lord Narayana).


श्लोक:
ॐ हृषीकेशोऽङ्गानि में रक्षेत्।
🔸 हिन्दी: हृषीकेश मेरे अंगों की रक्षा करें।
🔸 English: May Hrishikesha protect my limbs.

श्लोक:
ऊर्ध्वं पातु उपेन्द्रश्च अधः केशव आत्मनः।
🔸 हिन्दी: ऊपर की ओर उपेन्द्र (वामन) मेरी रक्षा करें, नीचे की ओर केशव मेरी आत्मा की रक्षा करें।
🔸 English: May Upendra (Vamana) protect me from above, and Keshava protect my soul from below.


श्लोक:
दिशो मे रक्षतु माधवो मां माधवोऽवतु।
🔸 हिन्दी: दिशाओं से मेरी रक्षा माधव करें, माधव मुझे समस्त ओर से सुरक्षित करें।
🔸 English: May Madhava guard me from all directions.


श्लोक:
सर्वत: पातु गोविन्दो गोप्ता य: सर्वतो भवेत्॥
🔸 हिन्दी: गोविन्द मुझे चारों ओर से सुरक्षित रखें, जो सबका रक्षक है।
🔸 English: May Govinda, the protector of all, guard me from every side.

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श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...