एकादशी -निर्जला भीमसेनी , पांडव एकादशी,6.6.2025 व्रत कथा (Pandit V.k.Tiwari -jyotish ,vastu,Hastrekha.9424446706)
निर्जला एकादशी विशेष विवरण – शास्त्रीय प्रमाण, पूजन विधि, कथा व मंत्र –
🔷 🔱 व्रत नाम: निर्जला एकादशी (भीमसेनी एकादशी / पाण्डव एकादशी)
📅 तिथि: ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी
📚 शास्त्रीय स्रोत:
- ब्रह्मवैवर्त पुराण, पद्म पुराण, स्कन्द पुराण (वैष्णव खंड), व्रतराज, धर्मसिंधु, निरनय सिंधु, संवत्सर-चंद्रिका
🔹 व्रत का अर्थ व महत्व (पौराणिक व शास्त्रीय प्रमाण सहित)
🔸 निर्जला = जल के बिना; यह एकादशी अत्यंत कठिन व्रत है, जिसमें जल का भी
सेवन वर्जित होता है।
🔸 भीमसेन ने यह व्रत किया था, क्योंकि वे
भोजन के बिना नहीं रह सकते थे, अतः महर्षि व्यास के आदेश से
उन्होंने सालभर की
सभी एकादशियों का फल इस एक व्रत द्वारा प्राप्त किया।
🔸 अतः इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता
है।
🔖 श्लोक – स्कन्द पुराण (वैष्णव खंड):
"ज्येष्ठ शुक्ला एकादशी निर्जला नाम कीर्तिता।
सर्वपापहरं
पुण्यं सर्वव्रतानुत्तमं॥"
🔸 अर्थ: ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की यह निर्जला एकादशी सर्वव्रतों
में उत्तम है, जो सम्पूर्ण
पापों को हरनेवाली है।
🔹 व्रत कथा (प्रमाणित विवरण)
📖 स्कंद पुराण व पद्म पुराण के अनुसार —
पाण्डवों
में केवल भीम व्रत नहीं
कर पाते थे, क्योंकि
उनका पाचन तंत्र अत्यंत प्रबल था।
महर्षि व्यास जी के कहने पर
उन्होंने ज्येष्ठ
शुक्ल एकादशी को बिना जल के व्रत किया।
व्यासजी ने
कहा:
"सर्व एकादशी
व्रतानां फलं लभ्यं भवेद् ध्रुवम्।
एकव्रतेनैव
व्रतेन निर्जलैकादशी शुभा॥"
🔸 अर्थ: इस एक निर्जला व्रत से समस्त एकादशी व्रतों का फल निश्चित रूप से प्राप्त होता है।
🔹 व्रत पूजन विधि (Scripturally Validated Puja Vidhi)
🔸 पूजा का समय:
– ब्रह्म
मुहूर्त में उठकर स्नान कर लें।
– व्रत का
संकल्प करें: "आज मैं
भगवान विष्णु की कृपा हेतु निर्जला एकादशी व्रत रखता हूँ।"
– दिनभर अन्न, जल, फल सब
त्यागें, सिर्फ मन, वाणी, और शरीर से
उपवास रखें।
🔸 पूजा सामग्री:
- पीला वस्त्र, तुलसी पत्र, गंध, चंदन, धूप, दीप, पुष्प, शंख, घंटा
- दीपक: शुद्ध देसी घी का दीपक।
- दीप दिशा: पूर्व दिशा में दीप जलाना श्रेष्ठ।
- वर्तिका संख्या: 1 अथवा 4 मुखी (शास्त्रीय रूप से विष्णुपूजन हेतु)।
🔸 दान:
- जल, वस्त्र, छाता, पंखा, घड़ा, जूते, मिठाई, सोना, चांदी — ब्राह्मण
को देना शुभ।
"व्रतेन फलमाप्नोति दानं तत्र विशिष्यते।" (स्कन्द पुराण)
🔸 पात्र: विद्वान विष्णुभक्त ब्राह्मण को।
🔹 व्रत विशेष मंत्र (Bold Font Only)
🔸 विष्णु पूजन मंत्र:
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय"
"ॐ विष्णवे नमः"
🔸 एकादशी पूजन मंत्र:
"ॐ पुण्यदायै पुण्यपुष्पप्रदायै नमः। निर्जलायै
नमः।"
🔸 तर्पण मंत्र:
"ॐ विष्णवे एकादश्यै च नमः। एष तर्पणं।"
🔹 भजन व पाठ
🔹 "श्री विष्णु सहस्रनाम
स्तोत्रं" का पाठ श्रेष्ठ।
🔹 "गोविन्द दामोदर माधवेति" भजन गाना
चाहिए।
🔹 "हरि स्तोत्र", नारायण कवच एवं गजेन्द्र
मोक्ष स्तोत्र विशेष पुण्यदायक।
🔹 वस्त्र व आहार नियमन
🔸 नये वस्त्र: इस दिन नये
वस्त्र धारण नहीं करने चाहिए (क्योंकि व्रत की गंभीरता बनी रहे)।
🔸 भोजन: निर्जल रहें। अगर अस्वस्थ हों तो फलाहार भी सीमित
मात्रा में।
🔸 स्नान जल में तुलसी पत्र मिलाएं — पापनाशक
प्रभाव होता है।
🔹 महापुण्य काल व पारणा (Breaking the Fast)
🔸 पारणा समय: अगले दिन
द्वादशी को प्रातः सूर्योदय से पूर्व या सूर्योदय के तुरन्त बाद।
🔸 पारणा विधि: सबसे पहले
भगवान विष्णु को भोग लगाकर तुलसीपत्र जल में डालकर सेवन करें।
🟨 📖 विस्तृत कथा: महर्षि वेदव्यास एवं भीमसेन संवाद
पाण्डवों में सबसे बलवान भीमसेन को उपवास करना अत्यंत कठिन लगता था। माता कुंती और द्रौपदी तथा अन्य चारों पाण्डव – युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव – भगवान श्रीहरि विष्णु की कृपा प्राप्त करने हेतु प्रत्येक मास की एकादशी का व्रत करते थे, परंतु भीमसेन भोजन के बिना नहीं रह पाते थे।
भीम ने एक दिन महर्षि वेदव्यास से निवेदन किया:
भीमसेन बोले:
"भगवन्! मेरी जठराग्नि बड़ी तीव्र है। मैं व्रत नहीं कर सकता, फिर भी मैं
श्रीविष्णु की कृपा प्राप्त करना चाहता हूँ। कोई उपाय बताइए जिससे मुझे व्रतों का
पुण्य भी मिल जाए और मेरी भोजन की आवश्यकता भी बनी रहे।"
🟪 📜 व्यासजी का उत्तर (संवाद):
व्यास जी बोले:
"हे वत्स! यदि तुम पूरे वर्ष में केवल एक बार – ज्येष्ठ
शुक्ल एकादशी को निर्जल उपवास करो, तो वह सभी 24 एकादशियों के व्रतों के बराबर फलदायक होगी।"
"इस दिन जल, अन्न, फल, जलपान कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। इस व्रत का पालन
कर लेने से सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और अंत में विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।"
📜 श्लोक – ब्रह्मवैवर्त पुराण (प्रकृतिखण्ड 23. 121–123):
"एकादश्यां
निर्जलः स्यात् ततो योग्यं फलं लभेत्।
यः करोति
विशेषेण तस्य पुण्यं न संशयः॥"
"सर्वेषां
एकादशी व्रतानां फलं स्यात् विशेषतः।
निर्जलैकादशी
या तु व्रतानां राजसंज्ञिता॥"
🔸 अर्थ: निर्जल रहकर एकादशी व्रत करनेवाला मनुष्य सभी व्रतों के पुण्य का अधिकारी होता है। यह निर्जला एकादशी व्रत समस्त व्रतों का राजा (श्रेष्ठ) कहा गया है।
🟨 भीमसेन की परीक्षा
महर्षि व्यासजी ने कहा कि यदि तुम व्रत के दिन जल भी ग्रहण करते हो तो व्रत
निष्फल होगा।
भीम ने वचन
दिया कि वे सिर्फ एक बार इस निर्जला एकादशी को व्रत करेंगे।
व्यासजी की
आज्ञा से उन्होंने भूख, प्यास सहकर भी निर्जल व्रत किया।
उस दिन भीमसेन ने
– कोई अन्न
नहीं लिया,
– जल तक नहीं
पिया,
– व्रत रखकर
श्रीविष्णु का पूजन किया,
– द्वादशी को
विधिपूर्वक पारण किया।
व्यासजी अत्यंत प्रसन्न हुए और बोले:
"हे भीम! आज के इस निर्जल व्रत से तुमने सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त कर लिया है। यह व्रत अब ‘भीमसेनी एकादशी’ नाम से प्रसिद्ध होगा।"
🔱 विस्तृत कथा: भीमसेन और निर्जला एकादशी
(प्रमाण: ब्रह्मवैवर्त पुराण, स्कन्द पुराण, व्रतराज, धर्मसिंधु आदि से)
📚 संदर्भग्रंथ:
ब्रह्मवैवर्त पुराण – प्रकृतिखण्ड, अध्याय 23, श्लोक 121–123,
स्कन्द
पुराण – वैष्णव खण्ड,
व्रतराज – निर्जला
एकादशी व्रत माहात्म्य,
धर्मसिंधु
निरनय सिंधु
🟨 कथा विस्तार (संवाद व प्रसंग सहित)
महारथी भीमसेन अत्यंत बलवान थे, परंतु उनकी जठराग्नि (भोजन की इच्छा) इतनी तीव्र थी कि वे एक दिन भी भोजन त्याग नहीं सकते थे। माता कुंती, भाई युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव और पत्नी द्रौपदी – सभी प्रत्येक मास की एकादशी व्रत को नियमपूर्वक रखते थे और भगवान विष्णु की आराधना करते थे।
भीम की स्थिति यह थी कि वह उपवास नहीं कर सकते थे, परंतु धार्मिक कर्तव्य और मोक्ष की इच्छा उनके भीतर भी उतनी ही तीव्र थी। यह देखकर भीम एक दिन महर्षि वेदव्यास के पास पहुँचे और हाथ जोड़कर निवेदन किया—
🟪 भीमसेन बोले:
"भगवन्! मेरा
मन श्रीहरि की भक्ति में है, पर मेरी अग्नि इतनी तीव्र है कि मैं एक
दिन भी भोजन के बिना नहीं रह सकता।
फिर भी मैं
चाहता हूँ कि मुझे भी व्रतों का फल, धर्म और मोक्ष प्राप्त हो।
क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे मुझे सभी एकादशियों का फल एक साथ मिल जाए?"
🟩 व्यासजी ने उत्तर दिया:
"*हे भीम! यदि
तुम वर्ष भर की सभी एकादशियों का फल पाना चाहते हो, तो केवल एक दिन – ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जल रहकर उपवास करो।
इस दिन न जल, न फल, न अन्न, न मिष्ठान्न, कुछ भी
ग्रहण मत करना। यह व्रत इतना प्रभावशाली है कि सभी 24 एकादशियों
का फल एक साथ देता है।
यह निर्जला
एकादशी कहलाती है, और इसका
पालन करनेवाला पापमुक्त होकर विष्णुलोक को जाता है।"
🟦 भीम का संकल्प एवं व्रत की कठिन परीक्षा:
भीम ने साहसपूर्वक यह व्रत स्वीकार किया।
निर्धारित
दिन उन्होंने प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प किया –
"मैं आज निर्जल एकादशी का व्रत करूँगा, विष्णु कृपा
प्राप्त करूँगा।"
दिन जैसे-जैसे बीतता गया –
– सूर्य की
तीव्रता बढ़ी,
– भीम को
पसीना, चक्कर और
कमजोरी महसूस होने लगी।
– उनकी तीव्र भूख
और प्यास ने शरीर को दुर्बल कर दिया।
व्रत के अंतिम समय में भीम मूर्छित हो गए।
उनकी दशा
देखकर भाई युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव और
द्रौपदी चिंतित हो उठे।
🟧 भीम की रक्षा: चरणामृत, तुलसी व पवित्र जल द्वारा
भाइयों और द्रौपदी ने मिलकर
– भगवान
विष्णु का चरणामृत,
– तुलसी
मिश्रित जल,
– पवित्र
गंगाजल लेकर
भीम के मुख
में थोड़ी मात्रा डाली।
तत्क्षण भीम की चेतना लौट आई।
यह दृश्य
स्वयं महर्षि वेदव्यास ने देखा।
वे अत्यंत
प्रसन्न हुए और बोले:
"हे वत्स!
तुमने आज अत्यंत कठिन व्रत का पालन कर सभी एकादशियों का पुण्य अर्जित किया है।
यह व्रत आज
से ‘भीमसेनी एकादशी’ के नाम से
प्रसिद्ध होगा।"
📜 ब्राह्मवैवर्त पुराण – प्रकृतिखण्ड (23.121–123):
"सर्वेषां
एकादशी व्रतानां फलं लभ्यं भवेद् ध्रुवम्।
एकव्रतेनैव
व्रतेन निर्जलैकादशी शुभा॥"
"सर्वपापहरं
पुण्यं सर्वव्रतानुत्तमं।
निर्जला नाम
सा ख्याता वैष्णवैः परमादरात्॥"
🔸 अर्थ: यह निर्जला एकादशी समस्त एकादशियों का फल देती है, पापों का नाश करती है और व्रतों में उत्तम है।
🟩 व्रत का प्रभाव:
इस घटना के बाद
– अन्य
पाण्डवों ने भी इस व्रत को और अधिक श्रद्धा से अपनाया।
– भीमसेन ने न
केवल स्वयं व्रत रखा बल्कि दूसरों को भी प्रेरित किया।
– यह व्रत आध्यात्मिक
परिवर्तन, संयम और
मोक्ष की दिशा में
बड़ा साधन माना गया।
📌 कथा का सार:
🔹 यह कथा दर्शाती है कि इच्छाशक्ति, श्रद्धा और
संकल्प से किसी भी
कठिन मार्ग को पार किया जा सकता है।
🔹 भीमसेन जैसे महान योद्धा ने तप और संयम द्वारा
समस्त व्रतों का पुण्य प्राप्त किया।
🔹 निर्जला एकादशी आध्यात्मिक
उत्थान और विष्णु भक्ति की चरम अभिव्यक्ति है।
🔹 यह व्रत मोक्ष का साधन माना जाता है और भीमसेनी
एकादशी के रूप में
यश प्राप्त करता है।
🟪 शास्त्रीय फलश्रुति (मूल श्लोक)
"यः करोति
जलेनापि निर्जलैकादशीं नरः।
सर्वपापविनिर्मुक्तः
विष्णुलोकं स गच्छति॥"
📖 (स्कन्द पुराण)
🔸 अर्थ: जो मनुष्य जल भी न लेकर निर्जला एकादशी का व्रत करता
है, वह समस्त
पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक को प्राप्त करता है।
🔸 विशेष तथ्य:
🟡
यह व्रत
विशेषतः क्षत्रिय, गृहस्थ पुरुषों के लिए अनिवार्य बताया गया है, जो किसी
कारणवश अन्य एकादशियों का पालन नहीं कर पाते।
🟢 इस एक व्रत से संपूर्ण वर्ष के सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है।
🔴 इसे "व्रतों का राजा (व्रताधिराज)" भी कहा गया
है।
🔸 यदि असमर्थ हों तो क्या करें?
यदि कोई व्यक्ति निर्जल नहीं रह सकता तो कम से कम फलाहार से रहें, परंतु फल पूर्ण फल नहीं देता। निर्जल का महात्म्य सर्वाधिक है।
🔹 फलश्रुति – लाभ
📜 व्रतराज, धर्मसिंधु में कहा गया:
"सर्वेषां एकादशी व्रतानां फलं लभ्यते ध्रुवम्।
येन किं
चिदपि जातं पापं तदपि नश्यति॥"
🔸 अर्थ: समस्त एकादशियों का पुण्य व फल प्राप्त होता है।
🔸 पूर्वज तृप्त होते हैं, रोग, दरिद्रता, दोष समाप्त होते हैं।
🔸 विष्णुलोक की प्राप्ति निश्चित होती है।
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🟨 १. हरि स्तोत्रम्
(ब्रह्मवैवर्त पुराण / पौराणिक स्तोत्र)
(श्रीमद्भागवत महापुराण – स्कंध ६, अध्याय ८)
श्लोक १:
ॐ नमो नारायणाय।
🔸 हिन्दी: नारायण को नमस्कार है।
🔸 English: I bow to Narayana.
श्लोक २:
अथ नारायण कवचं प्रवक्ष्यामि।
🔸 हिन्दी: अब मैं नारायण कवच का वर्णन करता हूँ।
🔸 English: Now I shall describe the Narayana Kavach (armor of Lord Narayana).
श्लोक:
ॐ हृषीकेशोऽङ्गानि में रक्षेत्।
🔸 हिन्दी: हृषीकेश मेरे अंगों की रक्षा करें।
🔸 English: May Hrishikesha protect my limbs.
श्लोक:
ऊर्ध्वं पातु उपेन्द्रश्च अधः केशव आत्मनः।
🔸 हिन्दी: ऊपर की ओर उपेन्द्र (वामन) मेरी रक्षा करें, नीचे की ओर केशव मेरी आत्मा की रक्षा करें।
🔸 English: May Upendra (Vamana) protect me from above, and Keshava protect my soul from below.
श्लोक:
दिशो मे रक्षतु माधवो मां माधवोऽवतु।
🔸 हिन्दी: दिशाओं से मेरी रक्षा माधव करें, माधव मुझे समस्त ओर से सुरक्षित करें।
🔸 English: May Madhava guard me from all directions.
श्लोक:
सर्वत: पातु गोविन्दो गोप्ता य: सर्वतो भवेत्॥
🔸 हिन्दी: गोविन्द मुझे चारों ओर से सुरक्षित रखें, जो सबका रक्षक है।
🔸 English: May Govinda, the protector of all, guard me from every side.
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