🔍(25 जून 2025 -नवीन वस्त्र, आभूषण, चूड़ी आदि प्रयोग का विश्लेषण; निवारण(बुधवार + अमावस्या + नक्षत्र संधि (विशेष रूप से मृगशिरा से आर्द्रा की संधि) में
🕓 मृगशिरा नक्षत्र (प्रातः 10:40 बजे तक):
- नक्षत्र स्वभाव: सौम्य
- उपयुक्त कार्य: वस्त्र, गहने, सौंदर्य प्रसाधन, वाहन, शिक्षा, कला संबंधित नए कार्य
- शुभता:
✔️ नवीन वस्त्र, चूड़ी, आभूषण इत्यादि के प्रयोग/धारण के लिए अत्यंत शुभ
✔️ दीर्घकालिक लाभ: सम्मान, मानसिक संतुलन, सौंदर्य वृद्धि, गृहकल्याण
✅ 10:00–10:40 AM तक का समय उत्तम था नई चीज़ों के प्रयोग के लिए।
🕓 आर्द्रा नक्षत्र (10:41 AM से आगे):
- नक्षत्र स्वभाव: उग्र/तीव्र
- देवता: रुद्र
- प्रभाव: मन में अस्थिरता, अनावश्यक विवाद, अस्थायी निर्णय
- शुभता:
❌ नई वस्तुएँ धारण करने, शुभारंभ, मांगलिक कार्य, गृह प्रवेश आदि हेतु वर्जित या अशुभ
❌ चूड़ी/वस्त्र जैसे सौंदर्य से जुड़े प्रयोग अवांछनीय परिणाम ला सकते हैं (शास्त्रसम्मत निषेध)
❗ 10:41 AM के बाद ऐसी वस्तुओं का प्रयोग दीर्घकाल में मानसिक और पारिवारिक कलह का कारण बन सकता है।
📚 शास्त्र प्रमाण एवं संदर्भ
शास्त्र/ग्रंथ |
संदर्भ |
अर्थ |
धर्मसिंधु |
नक्षत्र अनुसार कर्म-विचार |
आर्द्रा में शुभ वस्तु प्रयोग निषिद्ध |
निर्णयसिंधु |
मुहूर्त-चिंतन |
सौम्य नक्षत्र में शुभारंभ श्रेष्ठ |
मुहूर्तमार्तण्ड |
नक्षत्र लक्षण |
मृगशिरा – सौंदर्य, वस्त्र आदि के लिए उत्तम |
महाभारत (अनुशासन पर्व) |
दान, पूजा और कर्म अनुसार फल |
समय अनुसार वस्त्र व आभूषण प्रयोग से दीर्घ सुख-दुख तय होता है |
🔯 ज्योतिष सार (संक्षिप्त शास्त्रीय विश्लेषण)
घटक |
विवरण |
फल |
वार |
बुधवार |
बुध ग्रह का दिन – वाणी, व्यापार, बुद्धि संबंधी कार्य शुभ; किंतु सौंदर्य सामग्री हेतु मध्यम फलदायी |
तिथि |
अमावस्या |
सर्वसामान्यतः शुभ कार्यों के लिए वर्जित, विशेषकर नई वस्तुओं के प्रयोग के लिए |
नक्षत्र संधि |
मृगशिरा → आर्द्रा (10:40 AM) |
संधिकाल में नवीन वस्तुओं का प्रयोग शास्त्रों में निषिद्ध माना गया है |
- ✅ मृगशिरा नक्षत्र (शुभ काल) हेतु
- शुभ रंग,
- नक्षत्र मंत्र,
- सिद्ध प्रयोग विधि
- ❌ आर्द्रा (रुद्र नक्षत्र) हेतु
- शांतिपाठ / निवारण मंत्र
- कर्म-नियमन विधि
🔶 भाग 1: मृगशिरा नक्षत्र में शुभ प्रयोग विधि
🔷 शुभ रंग (मृगशिरा नक्षत्र में वस्त्र/आभूषण हेतु)
भद्रबाहु संहिता व ज्योतिष आधार पर:
तत्व |
रंग |
चंद्र (नक्षत्र स्वामी) |
सफ़ेद, चांदी-रंग, हल्का नीला |
वृषभ/मिथुन (राशि प्रभाव) |
गुलाबी, हल्का पीला, हरा |
🔴 भाग 2: आर्द्रा (रुद्र नक्षत्र) में निवारण / शांति
⚠️ समस्या:
आर्द्रा रुद्र नक्षत्र है – उग्र, चित्तदोषक, विवादवर्धक
भद्रबाहु व
अन्य शास्त्रों ने इसे "वस्त्र-ग्रहण वर्ज्य" कहा है।
🔷 शांतिपाठ / निवारण मंत्र
🔸 रुद्रनक्षत्र शांतिपाठ (अवश्य जपें यदि वस्त्र/गहना भूलवश धारण हो गया हो):
रुद्रनक्षत्र शांतिपाठ (अवश्य जपें यदि वस्त्र/गहना भूलवश धारण हो गया हो):
🌑 यदि भूलवश किसी अशुभ काल (ग्रहण, पंचक, रुद्र नक्षत्र, मृत्युनक्षत्र आदि) में वस्त्र, आभूषण, या नई वस्तु धारण हो गई हो, तो उसे शुद्ध करने के लिए ‘रुद्रनक्षत्र शांतिपाठ’ अवश्य करना चाहिए। यह शांति वैदिक मंत्रों एवं पुराणोक्त विधियों से समर्थित है।
🔱 रुद्रनक्षत्र शांतिपाठ मंत्रावली
(यदि रुद्रनक्षत्र में भूलवश कुछ धारण कर लिया हो तो यह पाठ जपें)
🔹 1. प्रारंभिक शुद्धि मंत्र
ॐ अपवित्रः
पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत्
पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥
Om
apavitraḥ pavitro vā sarvāvasthāṁ gato'pi vā,
yaḥ smaret puṇḍarīkākṣaṁ sa bāhyābhyantaraḥ śuciḥ॥
✴ अर्थ: चाहे कोई अपवित्र हो या पवित्र, यदि वह पुण्डरीकाक्ष (विष्णु) का स्मरण करता है तो वह बाहर और भीतर दोनों से शुद्ध हो जाता है।
🔹 2. रुद्रनक्षत्र शमन हेतु शांति मंत्र
ॐ नमो भगवते
रुद्राय।
ॐ नमो भगवते
नीलकण्ठाय।
ॐ
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव
बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
✴ यह महामृत्युंजय मंत्र रुद्र के उन उग्र प्रभावों को शांत करता है जो रुद्र नक्षत्र में किसी वस्तु को धारण करने से उत्पन्न होते हैं।
🔹 3. वैदिक रुद्रशांति सूक्ति (यजुर्वेद
से)
ॐ शं नो
मित्रः शं वरुणः।
शं नो
भवत्वर्यमा।
शं न
इन्द्रो बृहस्पतिः।
शं नो
विष्णुरुरुक्रमः॥
(यजुर्वेद – शांति सूक्त)
✴ यह मंत्र समस्त दिशाओं और देवताओं से शांति की प्रार्थना करता है, जिससे कोई अनजानी अशांति समाप्त हो।
🔹 4. नक्षत्र-दोष निवारण मंत्र
ॐ
नक्षत्राणां पतये नमः।
ॐ सोमाय
नमः।
ॐ राहवे
केतवे च नमः।
ॐ ब्रह्मणे
नमः।
✴ यदि रुद्र नक्षत्र जैसे अशुभ समय में भूलवश कोई वस्त्र, आभूषण आदि प्रयोग में आ गया हो, तो इस मंत्र से उसका दोष निवारण होता है।
✅ जप विधि (संक्षेप में):
- शुद्ध आसन पर उत्तर दिशा की ओर बैठें।
- दीपक, गंध, पुष्प से भगवान शिव का पूजन करें।
- ऊपर दिए मंत्रों का क्रम से 3, 5 या 11 बार जप करें।
- अंत में क्षमा प्रार्थना करें:
"हे शिव! यदि मुझसे अनजाने में रुद्रनक्षत्र में कोई दोष हुआ हो, तो उसे अपने करुणा से क्षमा करें और शुद्ध करें।"
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