गणेश (संकष्टी )पूजन: 12 व्रत कथाएँ, मंत्र, दीपक, विधि✨ कौन करें और कैसे करें?
Who Should and How?
🪔 शुभता के लिए शरण गणेश की — विघ्नों का नाश, जीवन में प्रकाश।
🪔 For peace and prosperity — seek
Ganesha’s grace to erase every obstacle
🌺 संकष्टी
चतुर्थी - आदिदेव गणेश व्रत एवं पूजन विधि (बिलिंग्वल हिंदी-इंग्लिश में)
Sankashti Chaturthi - Aadidev Ganesh Vrat & Puja Ritual (Bilingual
Hindi-English)
🚫 गणेश (संकष्टी )पूजन - राशियाँ/नक्षत्र एवं उपाय
चंद्र राशियाँ: कर्क, सिंह, धनु, मीन🌠 नक्षत्र: पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, कृतिका, आश्लेषा
के लिए कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (विशेषतः संकष्टी गणेश व्रत) अशुभ मानी गई है, उन जातकों को चैत्र से फाल्गुन तक प्रत्येक मास में विशेष गणेश मंत्र एवं दीपक प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
🔷 उद्देश्य:यह प्रयोग जीवन में आने वाली विघ्न-बाधा, मानसिक अशांति, रोग, चिंता और हानि से रक्षा करता है।
📿 प्रभावित जातक क्या करें?
- संबंधित मास में दिए गए विशिष्ट गणेश मंत्र का जप करें।
- उस मास के अनुसार निर्देशित दीपक की दिशा, रंग और बत्तियाँ अनिवार्य रूप से अर्पित करें।
✅ यह साधना उनके लिए निवारक कवच का कार्य करेगी।
📌 In English:
Description:
For individuals whose Moon sign or birth star (Nakshatra) falls under the inauspicious
or restricted category during Krishna Paksha Chaturthi (especially
Sankashti Chaturthi), it is essential to perform Ganesh mantra
chanting and offer the designated lamp (deepak) every month from Chaitra
to Phalguna.
🔷 Purpose:
This practice protects against obstacles, losses, diseases, mental stress, and
misfortunes in life.
🔔 Inauspicious Moon Signs:
- Cancer, Leo, Sagittarius, Pisces
🌠 Inauspicious Nakshatras:
- Purvashadha, Uttarashadha, Kritika, Ashlesha
📿 What Should Affected Natives Do?
- Chant the specific monthly Ganesh mantra provided for each month.
- Strictly follow the lamp direction, color, and wick count as advised.
✅ This becomes a protective spiritual shield for those under negative lunar influences。
🔆 तिथि महत्व | Significance of the Date
🔸 संकष्टी
चतुर्थी हर
महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को आती है, और यह दिन भगवान श्रीगणेश को समर्पित होता है।
🔸 Sankashti Chaturthi falls on the 4th day of the
waning phase (Krishna Paksha) and is dedicated to Lord Ganesha, the
remover of obstacles.
🔸 जब यह चतुर्थी मंगलवार को आती
है, तो इसे
"अंगारकी संकष्टी" कहा जाता है और विशेष फलदायी मानी जाती है।
🔸 When this Chaturthi falls on a Tuesday, it is
called "Angarki Sankashti" and is considered especially
auspicious.
🕉️ व्रत नियम | Vrat (Fasting) Rules
🔹 इस दिन भक्त सूर्योदय
से चंद्रमा दर्शन तक उपवास रखते हैं।
🔹 Devotees observe a fast from sunrise till moonrise
on this day.
🔹 केवल फलाहार, दूध, या
गणेश जी को प्रिय दूर्वा, मोदक
आदि का सेवन किया जाता है।
🔹 Only fruits, milk, and items like Durva grass,
Modak, which are dear to Ganesha, are consumed.
🔹 रात्रि
में चंद्रमा के दर्शन के बाद व्रत पूर्ण होता है।
🔹 The fast is broken after sighting the moon at night.
🪔 पूजन विधि | Puja Vidhi (Worship Method)
🌟 लाभ | Benefits
🔸 समस्त विघ्नों की शांति
होती है।
🔸 All obstacles are removed.
🔸 इच्छित कार्यों में सफलता
मिलती है।
🔸 Desired tasks are fulfilled successfully.
🔸 मानसिक शांति, धन-समृद्धि
की प्राप्ति होती है।
🔸 Mental peace and prosperity are attained.
🔱 संकष्टी गणेश पूजन का महत्त्व एवं पुराणों में वर्णन
गणेश पुराण:
ॐ
नमो
गणाधिपायै
विद्नविनाशिने
स्वाहा।
अर्थ: मैं विघ्नों को हरने वाले गणेश को नमस्कार करता हूँ।
मुद्गल
पुराण:
नमो
विघ्नविनाशाय,
सुराध्यक्षाय
धीमहे।
सर्वसिद्धिप्रदातारं,
गणेशं
प्रणम्यहम्॥
अर्थ: विघ्नों के नाशक, देवों के अधिपति और सिद्धि प्रदान करने वाले गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ।
गणपति
उपनिषद:
त्वमेव
प्रत्यक्षं
तत्त्वमसि।
त्वमेव
केवलं
कर्ताऽसि।
अर्थ: आप ही प्रत्यक्ष ब्रह्म हैं, आप ही सृष्टि के कर्ता हैं।
🔮 तांत्रिक
ग्रंथ
व
शाबर
मंत्र
शारदा तिलक तंत्र:
ॐ
गं
गणपतये
नमः
अर्थ: यह गणेश का बीज मंत्र है जो तंत्र साधना में विघ्न विनाश हेतु उपयोग होता है।
गणेश
शाबर
मंत्र:
ॐ
नमो
अस्थि
चर्म
मांस
मज्जा
खिंच
खिंच
गणेश
आगच्छ
स्वाहा॥
अर्थ: यह शाबर मंत्र तांत्रिक साधना में संकटों को दूर करने हेतु जपा जाता है।
🪔 प्राचीन सिद्ध गणेश पूजन विधि एवं समय (लग्न)
• प्रातःकाल स्नान कर, स्वच्छ लाल वस्त्र धारण करें।
• गणेश मूर्ति को स्नान कराकर दूर्वा, शुद्ध जल, पुष्प, मोदक अर्पण करें।
• ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र का 108 बार जाप करें।
• अथर्वशीर्ष का पाठ करें और अंत में दीप-धूप से आरती करें।
• चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन के बाद व्रत पूर्ण करें।
🔭 श्रेष्ठ पूजन लग्न:
• प्रातः ब्रह्ममुहूर्त: 4:30 AM – 6:00 AM
• पूर्वाह्न मुहूर्त: 10:00 AM – 12:00 PM
• सायंकाल मुहूर्त: 5:30 PM – 7:00 PM (विशेष चंद्र पूजन हेतु)
1️⃣ संकल्प | Sankalp (Vow)
🔸 पूजा की शुरुआत में
संकल्प लें – "मैं
भगवान गणेश को प्रसन्न करने हेतु संकष्टी चतुर्थी का व्रत व पूजा करता/करती
हूँ।"
🔸 Begin with a vow: "I undertake the Sankashti
Chaturthi vrat to please Lord Ganesha."
2️⃣ पूजन सामग्री | Puja Items
🔹 श्रीगणेश प्रतिमा, लाल
फूल, दूर्वा, रोली, अक्षत, मोदक, नैवेद्य, धूप, दीप, कपूर, जल कलश, पंचामृत।
🔹 Idol of Shri Ganesh, red flowers, Durva grass,
vermilion, rice, Modak sweets, incense, lamp, camphor, water pot, and
Panchamrit.
3️⃣ पूजा विधि | Ritual Steps
🔸 गणेश जी को स्नान कराएं, वस्त्र
अर्पण करें।
🔸 Bathe the idol and offer fresh clothes.
🔸 रोली-अक्षत, दूर्वा, फूल, मोदक
अर्पित करें।
🔸 Offer vermilion-rice, Durva, flowers, and Modaks.
🪔 गणेश पूजन सामग्री सूची
• लाल वस्त्र व आसन
• गणेश प्रतिमा या चित्र
• दूर्वा (21 गुच्छे)
• मोदक या लड्डू
• शुद्ध जल, पंचामृत
• सिंदूर, अक्षत, रोली
• अगरबत्ती, दीपक, कपूर
• लाल फूल, बेलपत्र
• नारियल, पान, सुपारी
• गंध-चंदन, धूप
• पुस्तक/मंत्र पुस्तिका
🔆 विशेष संकष्टी मंत्र
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
अर्थ: हे विशालाकार वक्रतुण्ड गणेश! सूर्य के समान तेजस्वी! मेरे सभी कार्य बिना विघ्न के पूर्ण करें।
ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥
अर्थ: हम एकदन्त को जानें, वक्रतुण्ड का ध्यान करें, वह बुद्धि प्रदान करें।
गणाध्यक्षाय नमः। गणेशाय नमः। विघ्नेश्वराय नमः।
अर्थ: गणों के अध्यक्ष, विघ्नों के नाशक श्री गणेश को नमन।
🔸 गणपति अथर्वशीर्ष, संकटनाशन
स्तोत्र, या
"ॐ गं गणपतये नमः" मंत्र का जाप करें।
🔸 Recite Ganapati Atharvashirsha, Sankatnashan Stotra, or
chant “Om Gam Ganapataye Namah”.
🔸 अंत में आरती करें – “जय
गणेश जय गणेश देवा...”
🔸 Conclude with Aarti – “Jai Ganesh Jai Ganesh Deva…”
🌙 चंद्रदर्शन एवं अर्घ्य | Moonrise & Arghya Offering
🔸 रात्रि में चंद्रमा
के उदय के समय चांदी
या तांबे के पात्र में जल, अक्षत, दूर्वा, फूल
लेकर अर्घ्य
अर्पित करें।
🔸 At moonrise, offer water mixed with rice, Durva, and
flowers to the moon as Arghya in a copper/silver vessel.
🔸 फिर चंद्रमा को देखकर
व्रत पूर्ण करें और प्रसाद ग्रहण करें।
🔸 Then break the fast after moon darshan and partake of
prasad.
📜 शास्त्रीय श्लोक | Scriptural Shloka
🔹 "वक्रतुंड
महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभः।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥"
🔹 “Vakratunda Mahakaya Suryakoti Samaprabha,
Nirvighnam Kuru Me Deva Sarva Karyeshu Sarvada.”
📖 संदर्भ:
मुद्गल पुराण एवं गणेश पुराण
📖 Reference: Mudgala Purana & Ganesha Purana
🌙 मासिक संकष्टी चतुर्थी विवरण व चंद्रदर्शन समय
• माघ संकष्टी (प्रत्येक वर्ष जनवरी–फरवरी में) – चंद्रदर्शन समय: रात्रि 8:45 – 9:30
• फाल्गुन संकष्टी (फरवरी–मार्च) – चंद्रदर्शन समय: रात्रि 9:00 – 9:45
• चैत्र संकष्टी (मार्च–अप्रैल) – चंद्रदर्शन समय: रात्रि 9:15 – 10:00
• वैशाख संकष्टी (अप्रैल–मई) – चंद्रदर्शन समय: रात्रि 9:30 – 10:15
• ज्येष्ठ संकष्टी (मई–जून) – चंद्रदर्शन समय: रात्रि 9:45 – 10:30
• आषाढ़ संकष्टी (जून–जुलाई) – चंद्रदर्शन समय: रात्रि 10:00 – 10:45
• श्रावण संकष्टी (जुलाई–अगस्त) – चंद्रदर्शन समय: रात्रि 8:15 – 9:00
• भाद्रपद संकष्टी (अगस्त–सितम्बर) – चंद्रदर्शन समय: रात्रि 8:30 – 9:15
• आश्विन संकष्टी (सितम्बर–अक्टूबर) – चंद्रदर्शन समय: रात्रि 8:45 – 9:30
• कार्तिक संकष्टी (अक्टूबर–नवम्बर) – चंद्रदर्शन समय: रात्रि 9:00 – 9:45
• मार्गशीर्ष संकष्टी (नवम्बर–दिसम्बर) – चंद्रदर्शन समय: रात्रि 9:15 – 10:00
• पौष संकष्टी (दिसम्बर–जनवरी) – चंद्रदर्शन समय: रात्रि 9:30 – 10:15
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📘 मासिक संकष्टी गणेश व्रत कथाएँ, मंत्र, दीपक विधान सहित
🗓 1. चैत्र संकष्टी व्रत कथा – ब्रह्मवैवर्त पुराण
📚 स्रोत
ग्रंथ: ब्रह्मवैवर्त
पुराण, श्रीकृष्णजन्मखण्ड
🔱 मंत्र: ॐ
एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥
🪔 दीपक दिशा: पूर्व
(East)
🎨 दीपक
रंग: केसरिया
🪔 बत्ती संख्या: 5
📖 कथा
- राजा युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से व्रतों का तत्त्व पूछा।
- श्रीकृष्ण ने चैत्र कृष्ण चतुर्थी की महिमा बताई।
- काशी में ब्राह्मणकन्या उमा रहती थी।
- पिता के निधन से वह दरिद्र हो गई।
- उसने एक महात्मा से संकष्टी व्रत की विधि जानी।
- उसने पूर्ण निष्ठा से व्रत का पालन किया।
- गणेशजी को मोदक, दूर्वा, लाल पुष्प अर्पित किए।
- रात्रि में चंद्रदर्शन कर अर्घ्य दिया।
- स्वप्न में गणेशजी ने दर्शन देकर कहा – "तू प्रसन्न की गई।"
- अगले दिन एक राजकुमार आया।
- उसने उमा को देखा और विवाह प्रस्ताव भेजा।
- विवाह के पश्चात वह रानी बनी।
- गणेश कृपा से राज्य में धर्म और समृद्धि बढ़ी।
- उमा ने संकष्टी को राजकीय व्रत घोषित किया।
- नागरिकों ने भी इस व्रत से लाभ उठाया।
- श्रीकृष्ण बोले – "संकष्टी व्रत तीनों लोकों में यश देता है।"
- यह व्रत बाधा, दरिद्रता, संताप को हरता है।
- पूजन में दूर्वा, सिंदूर, मोदक आवश्यक हैं।
- मंत्र-जप, कथा श्रवण, चंद्रदर्शन – यह विधि है।
- चैत्र व्रत से मनोकामना पूर्ण होती है।
🗓 2. बैशाख संकष्टी व्रत कथा – नारद पुराण
📚 ग्रंथ: नारद
पुराण, गणेशखण्ड
🔱 मंत्र: ॐ
वक्रतुण्डाय हुं॥
🪔 दीपक दिशा: दक्षिण
(South)
🎨 दीपक
रंग: लाल
🪔 बत्ती संख्या: 7
📖 कथा
- विदिशा के राजा गणक निःसंतान थे।
- उन्होंने अनेक यज्ञ, व्रत किए पर संतान नहीं हुई।
- एक ऋषि ने उन्हें संकष्टी व्रत की सलाह दी।
- राजा और रानी ने बैशाख कृष्ण चतुर्थी का व्रत किया।
- उपवास रखा, गणेश पूजन विधिपूर्वक किया।
- मोदक, दूर्वा, लाल पुष्प अर्पित किए।
- रात्रि में चंद्रदर्शन कर अर्घ्य दिया।
- स्वप्न में गणेशजी ने कहा – "तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा।"
- कुछ माह में रानी ने पुत्र को जन्म दिया।
- वह पुत्र तेजस्वी और धर्मात्मा हुआ।
- राजा ने संकष्टी को राजकीय पर्व घोषित किया।
- सम्पूर्ण प्रजा ने यह व्रत अपनाया।
- राज्य में अकाल, रोग, क्लेश समाप्त हुए।
- इस व्रत से संतान-सुख की प्राप्ति होती है।
- रक्तदोष, ग्रहदोष, पितृदोष निवारण होता है।
- मंत्र – ॐ वक्रतुण्डाय हुं – का जप लाभदायक है।
- दीपक लाल रंग का, दक्षिण दिशा में जलाएँ।
- बत्तियाँ 7 होनी चाहिए।
- यह व्रत स्त्रियों और पुरुषों दोनों के लिए है।
- संतान प्राप्ति हेतु यह व्रत अचूक है।
🗓 3. ज्येष्ठ संकष्टी व्रत कथा – पद्म पुराण
📚 ग्रंथ: पद्म
पुराण, उत्तर
खंड
🔱 मंत्र: ॐ
क्षिप्रप्रसादाय नमः॥
🪔 दीपक दिशा: पश्चिम
(West)
🎨 दीपक
रंग: पीला
🪔 बत्ती संख्या: 6
📖 कथा
- ज्येष्ठ मास में एक ब्राह्मणी अत्यंत दरिद्र थी।
- उसका जीवन अन्न-वस्त्र के अभाव में कटता था।
- एक दिन एक महात्मा उसके द्वार आए।
- उन्होंने संकष्टी व्रत की महिमा बताई।
- ब्राह्मणी ने अगले ही चतुर्थी को व्रत करना आरंभ किया।
- गणेश पूजन कर उसने मोदक, दूर्वा अर्पित की।
- दिन भर उपवास कर रात्रि में चंद्रदर्शन किया।
- स्वप्न में गणेशजी ने कहा – "तेरा कष्ट दूर होगा।"
- अगले दिन ग्राम का सेठ उसे अन्न-वस्त्र दान में दे गया।
- कुछ ही समय में वह सुखी और सम्मानित हुई।
- उसने प्रति मास यह व्रत करना आरंभ किया।
- उसका घर धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।
- गाँव की स्त्रियाँ भी यह व्रत करने लगीं।
- इस व्रत से दरिद्रता और अपमान दूर होते हैं।
- मन को शांति और समाज में प्रतिष्ठा मिलती है।
- मंत्र – ॐ क्षिप्रप्रसादाय नमः – से शीघ्र सिद्धि मिलती है।
- दीपक पीले रंग का हो, पश्चिम दिशा में रखें।
- बत्ती की संख्या 6 हो।
- यह व्रत गृहिणियों हेतु विशेष शुभदायक माना गया है।
- पद्म पुराण में इस व्रत का महात्म्य विशेष रूप से वर्णित है।
🗓 4. आषाढ़ संकष्टी व्रत कथा – स्कन्द पुराण
📚 ग्रंथ: स्कन्द
पुराण, काशीखण्ड
🔱 मंत्र: ॐ
गणाध्यक्षाय नमः॥
🪔 दीपक दिशा: ईशान (Northeast)
🎨 दीपक
रंग: नीला
🪔 बत्ती संख्या: 4
📖 कथा
- काशी में महर्षि कात्यायन तपस्या में लीन थे।
- उन्हें एक बार भयंकर ग्रहदोष ने आ घेरा।
- कई प्रयासों के बावजूद समस्या नहीं मिटी।
- अंततः उन्होंने आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी का व्रत आरंभ किया।
- यह व्रत उन्होंने स्कन्द पुराण के उपदेश से किया।
- गणेशजी की मूर्ति बनाकर पूजन किया गया।
- नीले वस्त्र, नीला पुष्प, दूर्वा, मोदक से अर्पण हुआ।
- रात्रि में चंद्रदर्शन के समय अर्घ्य दिया।
- मंत्र – ॐ गणाध्यक्षाय नमः – से 108 जप किए।
- उस रात्रि स्वप्न में गणेशजी ने दर्शन दिया।
- उन्होंने कहा – “तेरा ग्रहबाधा समाप्त होगी।”
- दूसरे दिन आश्रम में सुख-शांति लौट आई।
- सभी शिष्य प्रसन्न हुए और पूजन किया।
- महर्षि ने यह व्रत सभी ऋषियों को बताया।
- तब से आषाढ़ संकष्टी को ऋषि परम्परा में स्थान मिला।
- ग्रहबाधा, पितृदोष, वास्तुदोष में यह व्रत लाभप्रद है।
- नीला दीपक ईशान दिशा में रखें।
- बत्ती की संख्या 4 रखें।
- विशेष रूप से बुधवार को यह व्रत शुभ फलदायक होता है।
- स्कन्द पुराण में यह व्रत तपस्वियों हेतु अनिवार्य कहा गया है।
🗓 5. श्रावण संकष्टी व्रत कथा – गणेश पुराण
📚 ग्रंथ: गणेश
पुराण, उपासनाखण्ड
🔱 मंत्र: ॐ
गजवक्त्राय नमः॥
🪔 दीपक दिशा: उत्तर
(North)
🎨 दीपक
रंग: सफेद
🪔 बत्ती संख्या: 9
📖 कथा
- प्राचीन काल में हिमालय की तराई में एक वृद्ध दंपत्ति रहता था।
- वे अत्यंत धर्मनिष्ठ थे पर संतानहीनता से दुखी थे।
- एक दिन एक सिद्ध महात्मा उनके घर पधारे।
- उन्होंने श्रावण मास की संकष्टी व्रत करने का उपदेश दिया।
- वृद्धा ने पूर्ण नियमपूर्वक उपवास रखा।
- गणेश पूजन कर सफेद पुष्प, दूर्वा, और मोदक अर्पित किए।
- रात्रि में चंद्रदर्शन कर अर्घ्य अर्पित किया।
- मंत्र – ॐ गजवक्त्राय नमः – से जाप किया।
- स्वप्न में गणेशजी ने कहा – "तू धन्य है।"
- कुछ ही समय में उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
- वह पुत्र वृद्धावस्था में सहारा बना।
- परिवार में सुख-शांति का संचार हुआ।
- गणेशजी की महिमा गाँव भर में फैली।
- सबने संकष्टी व्रत को स्वीकार किया।
- व्रत से वंशवृद्धि और सौभाग्य प्राप्त होता है।
- उत्तर दिशा में सफेद दीपक रखें।
- बत्ती की संख्या 9 रखें।
- यह व्रत पुत्र-प्राप्ति, गृहशांति और सौभाग्य के लिए श्रेष्ठ है।
- गणेश पुराण में इस व्रत को 'कल्याणव्रत' कहा गया है।
- श्रद्धा से किया गया श्रावण व्रत शीघ्र फलदायक होता है।
🗓 6. भाद्रपद संकष्टी व्रत कथा – ब्रह्मवैवर्त पुराण
📚 ग्रंथ: ब्रह्मवैवर्त
पुराण, श्रीकृष्णजन्मखण्ड
🔱 मंत्र: ॐ
विघ्नराजाय नमः॥
🪔 दीपक दिशा: पूर्व
(East)
🎨 दीपक
रंग: पीला
🪔 बत्ती संख्या: 5
📖 कथा
- द्वारका में एक वैश्य दंपत्ति धन में समृद्ध पर निःसंतान थे।
- श्रीकृष्ण ने उन्हें भाद्रपद संकष्टी व्रत का उपदेश दिया।
- यह व्रत गणेशजी के विघ्नहर स्वरूप का पूजन है।
- दंपत्ति ने पीले वस्त्र, पीला दीपक पूर्व दिशा में रखा।
- गणेश को 21 दूर्वा, मोदक, और चंपा पुष्प अर्पित किए।
- चंद्रदर्शन पर मंत्र – ॐ विघ्नराजाय नमः – से जप किया।
- रात्रि में गणेशजी ने दर्शन देकर कहा – "संकल्प पूर्ण होगा।"
- एक वर्ष के भीतर उन्हें पुत्र प्राप्ति हुई।
- पुत्र बहुत बुद्धिमान निकला।
- उन्होंने मंदिर बनवाकर संकष्टी को सामाजिक पर्व बनाया।
- भाद्रपद में यह व्रत बुद्धि और संतान प्राप्ति हेतु श्रेष्ठ है।
- श्रीकृष्ण ने इसे स्वयं भी गोकुल में मनाया।
- यह व्रत रोगों से रक्षा करता है।
- गणेशजी की कृपा से जीवन में स्थिरता आती है।
- पूर्व दिशा में पीला दीपक रखें।
- बत्ती की संख्या 5 रखें।
- श्रीकृष्ण ने इसे “संपत्ति व्रत” कहा है।
- चंपा और दूर्वा विशेष माने गए हैं।
- संतानहीनों को यह व्रत अनिवार्य रूप से करना चाहिए।
- ब्रह्मवैवर्त पुराण में इसकी महिमा विस्तार से वर्णित है।
🗓 7. आश्विन संकष्टी व्रत कथा – मुद्गल पुराण
📚 ग्रंथ: मुद्गल
पुराण
🔱 मंत्र: ॐ
उमापुत्राय नमः॥
🪔 दीपक दिशा: पश्चिम
(West)
🎨 दीपक
रंग: केसरिया
🪔 बत्ती संख्या: 7
📖 कथा
- प्राचीनकाल में उज्जयिनी में एक निर्धन ब्राह्मण निवास करता था।
- वह अत्यंत धर्मपरायण था परन्तु अनेक कष्टों से घिरा हुआ था।
- आश्विन मास में किसी साधु ने उसे संकष्टी व्रत करने की प्रेरणा दी।
- उसने व्रत कर गणेश पूजन आरंभ किया।
- केसरिया वस्त्र, दूर्वा, मोदक, और अशोक पुष्प अर्पित किए।
- दीपक पश्चिम दिशा में जलाकर सात बत्तियाँ रखीं।
- मंत्र – ॐ उमापुत्राय नमः – का जाप किया।
- रात्रि को चंद्रदर्शन कर अर्घ्य अर्पण किया।
- गणेशजी ने स्वप्न में प्रकट होकर कहा – "तू अब समृद्ध होगा।"
- अगले दिन से उसकी आय में वृद्धि होने लगी।
- राजा ने उसे राजपुरोहित बना दिया।
- उसका जीवन सुख-शांति से भर गया।
- उसने नगर में गणेश मंदिर का निर्माण कराया।
- आश्विन मास में यह व्रत कर्ज मुक्ति और मान-सम्मान हेतु विशेष माना गया।
- यह व्रत निर्धनों को धन, रोगियों को स्वास्थ्य देता है।
- दीपक की दिशा पश्चिम और रंग केसरिया अनिवार्य है।
- सात बत्तियों से पूजा सम्पूर्ण मानी जाती है।
- मुद्गल पुराण में गणेशजी का यह स्वरूप “अभयदायक” कहा गया है।
- इस व्रत से संकट टलते हैं और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
- यह कथा सभी वर्णों और वर्गों के लिए कल्याणकारी मानी गई है।
🗓 8. कार्तिक संकष्टी व्रत कथा – नारद पुराण
📚 ग्रंथ: नारद पुराण
🔱 मंत्र: ॐ वरदाय नमः॥
🪔 दीपक दिशा: आग्नेय (Southeast)
🎨 दीपक रंग: लाल
🪔 बत्ती संख्या: 8
📖 कथा
1. कार्तिक मास में काशी नगरी में एक वृद्धा रहती थी।
2. वह निःसंतान थी और सदैव दुःख में रहती थी।
3. एक बार नारद मुनि उसके द्वार आए।
4. उन्होंने उसे कार्तिक मास में संकष्टी व्रत करने की सलाह दी।
5. वृद्धा ने व्रत आरंभ किया – लाल वस्त्र धारण कर पूजन किया।
6. दीपक आग्नेय दिशा में रखा और आठ बत्तियाँ जलाईं।
7. गणेशजी को अनार, लाल पुष्प और मोदक अर्पित किए।
8. मंत्र – ॐ वरदाय नमः – का जाप किया।
9. रात्रि में चंद्रदर्शन कर अर्घ्य अर्पित किया।
10. गणेशजी ने स्वप्न में कहा – "तेरी गोद भरेगी।"
11. वृद्धा को अल्प समय में ही एक अनाथ बालक मिल गया।
12. उसने उसे पुत्र रूप में अपनाया।
13. वह बालक विद्वान और पुण्यात्मा निकला।
14. वृद्धा का जीवन धन और भक्ति से परिपूर्ण हुआ।
15. कार्तिक मास का यह व्रत दत्तक संतान के लिए विशेष माना गया है।
16. लाल दीपक, लाल पुष्प और अनार इस मास में अत्यंत शुभ माने जाते हैं।
17. आठ बत्तियाँ विधिपूर्वक जलाई जाएं।
18. नारद पुराण में इसे “संतति प्रदायक व्रत” कहा गया है।
19. इस व्रत से वंश वृद्धि, प्रतिष्ठा और संपत्ति की प्राप्ति होती है।
20. श्रद्धा से किया गया यह व्रत अनंत फलदायक है।
🗓 9. मार्गशीर्ष संकष्टी व्रत कथा – स्कन्द पुराण
📚 ग्रंथ: स्कन्द
पुराण, कुमारिकाखण्ड
🔱 मंत्र: ॐ
सिद्धिविनायकाय नमः॥
🪔 दीपक दिशा: वायव्य
(Northwest)
🎨 दीपक
रंग: पीताभ (हल्का
पीला)
🪔 बत्ती संख्या: 3
📖 कथा
- कुरुक्षेत्र में एक तपस्वी ब्राह्मण मार्गशीर्ष मास में एकांत साधना करता था।
- वह भोजन व जल का त्याग कर गणेशजी की आराधना करता था।
- एक दिन आकाशवाणी हुई – “तू संकष्टी व्रत कर।”
- उसने वायव्य दिशा में पीताभ दीपक जलाकर व्रत आरंभ किया।
- तीन बत्तियाँ रखकर मंत्र – ॐ सिद्धिविनायकाय नमः – का जप किया।
- चंद्रदर्शन कर अर्घ्य दिया।
- रात्रि को गणेशजी ने स्वप्न में आकर कहा – “तू सिद्ध होगा।”
- अगले दिन से उसकी साधना में सिद्धियाँ प्रकट होने लगीं।
- अनेक रोगी उसके पास आरोग्य हेतु आने लगे।
- वह एक योगी और साधक के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
- मार्गशीर्ष मास में यह व्रत साधकों के लिए विशेष माना गया है।
- दीपक की दिशा वायव्य और रंग पीताभ निश्चित किया गया है।
- मंत्र जाप से मानसिक बल प्राप्त होता है।
- यह व्रत ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति कराता है।
- ब्राह्मणों व योगियों को इसे अवश्य करना चाहिए।
- इस व्रत से साधना में एकाग्रता आती है।
- गणेशजी का यह स्वरूप ध्यानयोगी कहलाता है।
- यह व्रत मुक्ति मार्ग में सहायक माना गया है।
- स्कन्द पुराण में इसकी महिमा विस्तार से वर्णित है।
- यह व्रत अज्ञानी को ज्ञान, और ज्ञानी को आत्मबल देता है।
🗓 10. पौष संकष्टी व्रत कथा – गणेश गीता
📚 ग्रंथ: गणेश
गीता (शिव संहिता के अनुबंध)
🔱 मंत्र: ॐ
एकदन्ताय नमः॥
🪔 दीपक दिशा: दक्षिण
(South)
🎨 दीपक
रंग: धूम्रवर्ण
(Smoke-grey)
🪔 बत्ती संख्या: 6
📖 कथा
- हिमालय की तलहटी में एक ग्वाला अपनी गायों को लेकर रहता था।
- अत्यंत सरल स्वभाव का वह व्यक्ति सदैव संकट में रहता था।
- शिवभक्त होने के कारण वह शिवजी का ध्यान करता रहता।
- एक रात्रि उसे स्वप्न हुआ – “गणेशजी को धूम्रवर्ण दीपक से पूजो।”
- पौष मास में उसने व्रत आरंभ किया।
- दक्षिण दिशा में दीपक रख 6 बत्तियाँ जलाईं।
- मंत्र – ॐ एकदन्ताय नमः – का जाप किया।
- रात्रि में चंद्रदर्शन कर अर्घ्य अर्पण किया।
- अगले दिन उसकी गायों की संख्या दोगुनी हो गई।
- धीरे-धीरे वह समृद्ध हो गया।
- उसने एक गौशाला बनवाई।
- यह व्रत पशुधन और कृषि वृद्धि हेतु श्रेष्ठ है।
- धूम्रवर्ण दीपक, दक्षिण दिशा व छह बत्तियाँ आवश्यक मानी गई हैं।
- इस व्रत से शत्रु बाधा भी दूर होती है।
- गणेश गीता में इसका वर्णन विशेष रूप से हुआ है।
- यह व्रत कृषकों, पशुपालकों और व्यापारियों हेतु फलदायक है।
- भगवान गणेश को अनाज और घी अर्पित करना लाभकारी होता है।
- यह व्रत निरंतर तीन वर्षों तक किया जाए तो विशेष फल मिलता है।
- संकष्टी व्रत साधारण नहीं, शिवप्रेरित तप है।
- इससे विपत्ति, दरिद्रता व क्लेशों से मुक्ति होती है।
🗓 11. माघ संकष्टी व्रत कथा – गणेश तन्त्र
📚 ग्रंथ: गणेश
तन्त्र (गणपत्यक्ष)
🔱 मंत्र: ॐ
हरिद्रगणपतये नमः॥
🪔 दीपक दिशा: ईशान (Northeast)
🎨 दीपक
रंग: हल्दी
पीला
🪔 बत्ती संख्या: 2
📖 कथा
- विदर्भ देश में एक महिला थी जो संतानहीन थी।
- वह प्रतिदिन हरिद्रा (हल्दी) से शिवलिंग पूजन करती थी।
- एक दिन एक साधु ने उसे हरिद्रगणपति पूजन का उपदेश दिया।
- माघ मास की संकष्टी तिथि को उसने व्रत आरंभ किया।
- ईशान दिशा में हल्दी पीले रंग का दीपक जलाया।
- मंत्र – ॐ हरिद्रगणपतये नमः – का जप किया।
- दो बत्तियाँ रखकर चंद्रदर्शन पर अर्घ्य दिया।
- गणेशजी ने उसे पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया।
- उसके घर शीघ्र ही पुत्र जन्मा।
- वह पुत्र विद्वान, तेजस्वी व धर्मनिष्ठ निकला।
- इस व्रत को स्त्रियाँ संतान प्राप्ति हेतु करती हैं।
- हल्दी, दूर्वा व चंपा पुष्प अर्पण करना अनिवार्य है।
- यह व्रत स्त्रियों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करता है।
- गणेश तन्त्र में हरिद्रगणपति को विशेष रूप से पूजनीय कहा गया है।
- यह व्रत स्त्रियों के गर्भस्थ शिशु की रक्षा भी करता है।
- हल्दी का दीपक स्त्री शक्ति का प्रतीक है।
- ईशान दिशा शुभ फल देने वाली है।
- दो बत्तियाँ नारीत्व की युगल शक्तियाँ दर्शाती हैं।
- यह व्रत घर में सुख, संपन्नता व संतोष लाता है।
- माघ की संकष्टी तिथि को यह विशेष रूप से फलदायक है।
🗓 12. फाल्गुन संकष्टी व्रत कथा – वराह पुराण
📚 ग्रंथ: वराह
पुराण
🔱 मंत्र: ॐ
धूम्रकेतवे नमः॥
🪔 दीपक दिशा: नैऋत्य
(Southwest)
🎨 दीपक
रंग: धूसर
🪔 बत्ती संख्या: 1
📖 कथा
- फाल्गुन मास में एक राजकुमार युद्ध में पराजित होकर वन में भटक रहा था।
- वह भूखा-प्यासा और निराश था।
- एक वनवासी ने उसे संकष्टी व्रत करने को कहा।
- राजकुमार ने नैऋत्य दिशा में धूसर दीपक जलाया।
- एक बत्ती रखकर मंत्र – ॐ धूम्रकेतवे नमः – का जाप किया।
- रात्रि को चंद्रदर्शन कर अर्घ्य अर्पण किया।
- उसी रात्रि वह स्वप्न में गणेशजी से मिला।
- गणेशजी ने कहा – "तेरा भाग्य फिर से उदित होगा।"
- कुछ दिनों में वह सेना सहित लौटा और विजयी हुआ।
- उसने राजगद्दी पर बैठकर संकष्टी व्रत को राजकीय पर्व घोषित किया।
- यह व्रत पराजित जनों को पुनः प्रतिष्ठा देता है।
- एक बत्ती आत्मबल का प्रतीक है।
- धूसर दीपक संकट को शांत करता है।
- नैऋत्य दिशा पार्थिव बल बढ़ाने वाली होती है।
- वराह पुराण में इसे विजयप्रद व्रत कहा गया है।
- यह व्रत आत्मविश्वास और राज्यलाभ देता है। JOB ;Post.Political Progress
- धूम्रकेतु स्वरूप संकटहरण के रूप में पूजनीय है।
- यह व्रत साधारण जनों को भी राजा जैसा फल देता है।
- आत्मबल और विजय प्राप्ति इसका प्रमुख फल है।
- फाल्गुन मास की यह संकष्टी अंधकार को दूर करने वाली है।
1-🔍 प्रश्न:
"क्या स्कन्द पुराण या किसी भी
प्रमुख पुराण/संहिताग्रंथ में संकष्टी व्रत के दीपक की संख्या, दिशा, या रंग का उल्लेख है?"
❌ उत्तर (संक्षेप में):
नहीं। स्कन्द पुराण सहित किसी भी प्रमुख वैदिक, पौराणिक या तांत्रिक ग्रंथ में संकष्टी चतुर्थी व्रत के लिए दीपक की रंग, दिशा या बत्ती संख्या का प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं मिलता।
2-📜 प्रमाणिक स्रोत परीक्षण:
- स्कन्द पुराण (काशी खंड):
- केवल गणेश व्रत, स्थान विशेष (काशी, महेश्वर क्षेत्र), या पूजन फल का उल्लेख है।
- कोई दीपक संख्या, दिशा, रंग वर्णन नहीं।
- गणेश पुराण (उपासनाखंड):
- दीपदान की महिमा का वर्णन तो है, परंतु रंग, दिशा, या संख्या का उल्लेख नहीं मिलता।
- रुद्रयामल, कालिकापुराण, गृृह्यसूत्र (व्रत विधियों में):
- कुछ तांत्रिक प्रभावों हेतु दीपक दिशा या विशेष प्रकार के तिल/तेल, धूप आदि का निर्देश मिलता है, परंतु संकष्टी गणेश व्रत हेतु नहीं।
3- ✅ तो दिशा, रंग, बत्ती की संख्या कहाँ से आई?
यह निर्देश आमतौर पर लोकपरंपरा, संस्थानिक परंपराओं (जैसे सिद्धपीठों) तथा गृहस्थ तंत्र साधनाओं में विकसित हुए हैं, जिनमें—
- दीपक की दिशा (पूर्व, ईशान आदि): शुभता, ब्रह्मस्थान या ग्रहों से सम्बद्ध मान्यताओं पर आधारित।
- रंग (लाल, नीला, पीला): पंचतत्त्व, ग्रह या विशेष देवता की उर्जाओं पर केंद्रित।
- बत्तियाँ (1, 3, 4 आदि): यह यंत्र, मंत्र अथवा तांत्रिक अनुष्ठान के नियमों से जुड़ी संख्या है। उदाहरणतः—
🕯️ चार बत्तियाँ = चतुर्थी तिथि, चतुर्भुज गणपति, और चार दिशाओं की शुद्धि हेतु।
पर यह लोक मान्यता है, शास्त्र नहीं।
4-📝 निष्कर्ष (Conclusion):
- ✳️ स्कन्द पुराण या अन्य प्राचीन शास्त्रों में दीपक दिशा, रंग, बत्ती संख्या का कोई प्रत्यक्ष श्लोक प्रमाण नहीं है।
- ✅ ये नियम लोक परंपरा, तांत्रिक पद्धति (गृह अनुष्ठान) या आध्यात्मिक संस्थानों (जैसे शारदा पीठ, सिद्ध गणपति मठ) द्वारा स्वीकार्य परंपराएं हैं।
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