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22 जून 2025 - नई वस्तुएं प्रयोग का भविष्य ? 🔱 देवता एवं मंत्र – सौभाग्यवर्धक.Remedy Deities and Mantras – Enhancers of Auspicious Fortune

 

22 जून 2025 -नए वस्त्र, चूड़ी, आभूषण या नई वस्तुएं प्रयोग/धारण करें, तो उसका भविष्य फल क्या होगा? 🔱 देवता एवं मंत्र –  सौभाग्यवर्धक.Remedy Deities and Mantras – Enhancers of Auspicious Fortune

प्रयोग उचित (Use is appropriate):

📚 धर्मसिंधु – "द्वादश्यां शुभकर्मणि वस्त्राभरणधारणम्"
📚 निरण्यसिन्धुरविवार में यदि द्वादशी हो और सूर्य प्रदोष से पूर्व हो, तो नए वस्त्र, चूड़ी, वस्तु प्रयोग कर सकते हैं।
भरणी नक्षत्र में रक्तवर्ण हो, तो स्त्रियों हेतु चूड़ी प्रयोग अधिक शुभ, पुरुषों हेतु सावधानीपूर्वक

New clothes, bangles, and items may be used today. Dwadashi tithi is favorable (Dharmasindhu), and as long as Sunday daytime is auspicious, usage is permitted. Bharani Nakshatra permits the use of reddish /orange things, Dress Ornaments, especially for women; men should exercise caution unless it’s a ritual day.

Auspicious Time as per your zodiac sign- 

https://ptvktiwari.blogspot.com/2025/06/june-20212223-victory-hours-conquer.html

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 "वस्त्र-वस्तु प्रयोग सुख का संचार या संकट का कारण"

" Use of Clothes and Objects — A Source of Fortune or a Cause of Loss"

"Used at the Wrong Time – Steals Peace; At the Right Time – Builds Destiny"

"Using Objects Against Time – A Blocker of Good Fortune"

A New Cloth or Object —It Helps Create Future,"

  1. "काल के प्रतिकूल वस्तु का प्रयोग सौभाग्य का अवरोधक"
    "Using Objects Against Time – A Blocker of Good Fortune"

“गलत समय में प्रयोग सुख-शांति का हरण; सही समय भविष्य का सृजन"
"Used at the Wrong Time – Steals Peace; At the Right Time – Builds Destiny" "वस्तु का समयानुकूल प्रयोग: कल्पना से अधिक सुखद भविष्य का प्रवेशद्वार"
"Timely Use of Objects: Gateway to a Future More Fortunate Than Imagined"

🌸 शुभ प्रयोग हेतु प्रश्न:
यदि 21 जून 2025 को - नए वस्त्र, चूड़ी, आभूषण या नई वस्तुएं प्रयोग/धारण करें, तो उसका भविष्यफल क्या होगा?

भविष्य में सौभाग्य, सफलता और मानसिक संतुलन कैसे देगा यह हम नीचे बाइलिंग्वल (हिंदीअंग्रेज़ी) रूप में शास्त्रसम्मत ढंग से प्रस्तुत कर रहे हैं:

🌟 जब वही वस्त्र या वस्तु दुबारा प्रयोग की जाए, तो फल:

🌟 यदि कोई वस्त्र, वस्तु, आभूषण या चूड़ी शुभ दिन + शुभ तिथि + शुभ नक्षत्र + शुभ समय (मुहूर्त) में प्रयोग की गई हो, तो उसका प्रभाव अत्यंत शुभकारी और दीर्घकालिक होता है।

📿 वस्त्र/वस्तु यदि शुभ समय में प्रयोग हो, तो वह "चिरकालिक शुभफलदायिनी" बन जाती है।Such items used in sacred timing become carriers of lasting auspicious impact.

पुनः प्रयोग किए गए वस्त्र/वस्तु के शुभ-

(Effects of reusing auspiciously introduced clothes/objects)

शुभ प्रभाव (Auspicious Effects):

🔸 1. “यत्र यत्र शुभद्रव्यं तत्र तत्र शुभस्पन्दनम्” — (धर्मसिन्धु)

जब वही वस्त्र या वस्तु दुबारा प्रयोग की जाती हैजैसे परीक्षा, साक्षात्कार, या उत्सव में वह पहले की शुभता को पुनः जागृत करती है।
✨ It reactivates the vibrations of the moment when it was first used under auspicious timing.

🔸 2. “दृष्टं वस्त्रं शुभे क्षणे, पुनर्दर्शनं सौख्यकारणम्” — (गृह्यसूत्र सार)

ऐसा वस्त्र वाणी, आत्मबल और व्यवहारिक सौम्यता को बढ़ाता है।
🎤 It improves clarity in communication and self-expression.

🔸 3. स्निग्धवस्तुना पुनःस्पर्शे आत्मानं प्रेरयेत्” — (नारद स्मृति)

विशेष अवसरों पर, यह वस्तु मानसिक सकारात्मकता व साहस प्रदान करती है।
🧘 It helps build calm determination in tough decision-making moments.

 

  1. जब वह वस्तु दुबारा प्रयोग की जाएगी जैसे किसी परीक्षा, साक्षात्कार, या महत्वपूर्ण उत्सव में यह भाग्य को सक्रिय करती है।
  2. यह वस्तु या वस्त्र वाणी, व्यवहार और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।
  3. यह वस्तु भविष्य में सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है, विशेषकर किसी निर्णायक क्षण में।

1.     When the same item is used again — like during exams, interviews, or celebrations — it activates good fortune.

2.     The cloth or object enhances speech, behavior, and confidence.

3.     It emits positive vibrations especially during critical or decision-making moments.

🏡 यदि वह वस्तु घर में रखी जाए:

🏡 वस्त्र/वस्तु का घर में स्थापन प्रभाव

(Effects when kept in home):

  शुभ प्रभाव:

🔸 1. “गृहे स्थाप्यं शुभद्रव्यं सदा सुखमावहति” — (मुहूर्त चिन्तामणि)

जब वस्त्र/वस्तु को घर में सजाया जाता है, विशेषकर पूजा-स्थान या पूर्व दिशा में, तो वह शांति, संतुलन और सात्त्विक ऊर्जा प्रदान करती है।

🔸 2. “गृहस्थधर्मे शुभद्रव्यं लक्ष्म्याधानं करोति” — (धर्मसिन्धु)

यह वस्तु गृहलक्ष्मी की ऊर्जा को आकर्षित करती है, जिससे गृहस्थ जीवन में समृद्धि आती है।

🔸 3. “स्मरणं शुभक्षणस्य, वस्तुनि स्थितमस्ति” — (ज्योतिषसार)

वस्तु के माध्यम से उस शुभ मुहूर्त का स्मरण बारंबार होता है, जिससे घर में आनंद और संतोष बना रहता है।

  • वस्तु यदि घर में स्थापित रहे, तो वह घर के वातावरण में संतुलन, पोषण और सुख का संचार करती है।
  • वह वस्तु गृहलक्ष्मी और पारिवारिक संबंधों को मज़बूत करती है।
  • If such an object remains in the home, it infuses the space with balance, nourishment, and peace.
  • It also strengthens family bonding and household harmony.

  अशुभ प्रभाव (InauspiciousConditions):

🔹 1. “कालेऽकाले च वस्तूनां प्रयोगो दुःखहेतवः” — (मनुस्मृति)

यदि वह वस्त्र रोग, क्रोध, या शोक की स्थिति में भी पहना गया हो तो दुबारा प्रयोग करने पर वह स्मृति नकारात्मक ऊर्जा पुनः ला सकती है।

🔹 2.शवदृष्टं, क्रुद्धदृष्टं वस्त्रं दोषकरम्” — (याज्ञवल्क्य स्मृति)

किसी मृत्यु, झगड़े या शोक के समय उपयोग हुआ वस्त्र घर में रखने से मानसिक अवसाद उत्पन्न हो सकता है।

🔹 3. “वस्तूनां स्पर्शः स्थितिं सूचयति” — (भद्रबाहु संहिता)

यदि वह वस्तु फटी, टूटी या खंडित हो चुकी हो, तो उसका प्रभाव हानिकर माना गया है।


 

अशुभ प्रभाव (Inauspicious Effects):

🔹 यदि वह वस्त्र या वस्तु किसी अशुभ तिथि, नक्षत्र या दिन में प्रयुक्त हुई हो, अथवा
दक्षिण दिशा में, जूठी, गंदी या उपेक्षित अवस्था में घर में रखी गई हो,
तो उसकी ऊर्जा मंद हो जाती है और वह तमसिक प्रभाव उत्पन्न करती है।

🔸 शास्त्र: "दक्षिणायां द्रव्यसंस्थानं तमोवृद्धिकरं स्मृतम्" धर्मसिंधु

अर्थ: दक्षिण दिशा में स्थापित वस्तु तमोगुण बढ़ाने वाली मानी गई है।

🛑 If a cloth or object was used during an inauspicious day, tithi, or nakshatra,
or kept in the south direction, dirty, unclean, or neglected —
then its energy becomes stagnant and begins to emit tamasic (inert, negative) vibrations.

🔸 Scripture: “Dakshinayam dravyasansthanam tamovriddhikaram smritam” — Dharmasindhu

Meaning: Objects placed in the southern direction increase tamasic qualities.

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विषय: रविवार, द्वादशी व भरणी नक्षत्रनवीन वस्त्र, वस्तु, चूड़ी प्रयोग व देवता, दीपक-वर्तिका, मन्त्र और शास्त्रीय प्रमाण
(Bilingual: Each point in Hindi followed by English)
🔍 शास्त्रसिद्ध प्रमाण सहित उपयोग/निषेध विवेचन (Scripture-based Justification)


22.5.2025🔶 1. तिथि व नक्षत्र की स्थिति:

🗓दिन: रविवार (Ravivaar – Sunday)
🌙 तिथि: द्वादशी (Dwadashi – 12th lunar day)
🔯 नक्षत्र: भरणी (Bharani Nakshatra)

शास्त्र अनुसार तिथि-नक्षत्र का योग:
🔸 भरणी + द्वादशी + रविवारमिश्रित फलदायक। शुभता विशेषतः दोपहर पूर्व व रात्रि में मानी गई है।
🔸 नारद स्मृति: “द्वादशी शुभदा तिथिर्नववस्त्र प्रदायिनीद्वादशी तिथि में नए वस्त्रादि का प्रयोग शुभदायक माना गया है।
🔸 भरणी नक्षत्रयमगात्रं इति कथ्यते। (विष्णुधर्मोत्तर) अनुसार यह नक्षत्र तीव्र, क्रूर, परंतु क्रियात्मक कार्यों हेतु उत्तम है।
According to scriptures, Dwadashi tithi with Bharani Nakshatra on Sunday gives mixed but generally favorable results, especially in the early day and night. Dwadashi is auspicious for new clothes/items (Narada Smriti), and Bharani Nakshatra, being fierce, is good for tasks needing assertiveness.


🧣 2. नवीन वस्त्र, वस्तु, चूड़ी प्रयोग: उपयोग या निषेध?

प्रयोग उचित (Use is appropriate):

📚 धर्मसिंधु – "द्वादश्यां शुभकर्मणि वस्त्राभरणधारणम्"
📚 निरण्यसिन्धुरविवार में यदि द्वादशी हो और सूर्य प्रदोष से पूर्व हो, तो नए वस्त्र, चूड़ी, वस्तु प्रयोग कर सकते हैं।
भरणी नक्षत्र में यदि रक्तवर्ण हो, तो स्त्रियों हेतु चूड़ी प्रयोग अधिक शुभ, पुरुषों हेतु सावधानीपूर्वक
New clothes, bangles, and items may be used today. Dwadashi tithi is favorable (Dharmasindhu), and as long as Sunday daytime is auspicious, usage is permitted. Bharani Nakshatra allows use of reddish ornaments especially for women; men should be cautious unless it’s a ritual day.


🔱 3. प्रमुख देवता व अधिदेवता (Main Deities):

📌 भरणी अधिदेवता: यम (Yama – god of discipline & dharma)
📌 रविवार देवता: सूर्यदेव (Surya – Sun god)
📌 द्वादशी तिथि देवता: विष्णु (Vishnu – the sustainer)

🔆 इसलिए आज का उपास्य संयोजन:
"
ॐ आदित्याय नमः", "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय", "ॐ यमाय नमः"
Today’s deities include Surya (Sun), Vishnu (for Dwadashi), and Yama (Bharani’s deity). Mantras suitable for the day include:
🔅 Om Adityaya Namah
🔅 Om Namo Bhagavate Vasudevaya
🔅 Om Yamaya Namah


🪔 4. दीपक व वर्तिका रंग, संख्या (Lamp, Wick Color & Number):

📖 वेद व गृह्यसूत्रों अनुसार:

🔹 दीपक ताम्र पात्र में तिल के तेल का दीप
🔹 वर्तिका पीली या लाल रुई की बाती (सूर्य व यम दोनों के प्रतीक)
🔹 संख्या 3 दीपक, त्रिदेव या त्रिसंख्या की मान्यता अनुसार

📜 स्कन्द पुराण (नवरात्रि खंड)
"दीपत्रयं प्रदीप्तं तु सर्वपाप प्रणाशनम्।"
Use a copper lamp with sesame oil. The wick should be yellow or red, symbolizing Surya and Yama. Use 3 lamps, as per Trideva symbolism. Scriptural support from Skanda Purana promotes three-lamp setup for destruction of sins.


📖 5. वास्तविक शास्त्रीय प्रमाण (Scriptural References):

शास्त्र/ग्रंथ

श्लोक/संदर्भ

अर्थ (Meaning)

नारद स्मृति

"द्वादशी शुभदा तिथिः"

Dwadashi is inherently auspicious

धर्मसिंधु

द्वादश्यां वस्त्रधारणम्

Wearing new clothes on Dwadashi is permitted

विष्णुधर्मोत्तर

भरणी क्रूरा...

Bharani is fierce but fit for tasks

ज्योतिष निर्णयसिन्धु

रविवार+द्वादशी=मंगलदायक

This combination is generally good

गृह्यसूत्र

दीपं ताम्रकुपे स्थापयेत

Copper oil lamp for Surya

📌 1. पश्चिम दिशा में वस्तु रखने के प्रभाव

Shastra View on Keeping Items in the West Direction


पश्चिम दिशा में वस्त्र, चूड़ी, आभूषण या नयी वस्तु रखने से स्थायित्व तो मिलता है, परंतु उसका विस्तार या पुण्य फल सीमित हो जाता है। यह दिशा सूर्यास्त की ओर इंगित करती है, इसलिए ऊर्जा क्षीण हो सकती है।

"पश्चिमे स्थाप्यं स्थायिनं, न तु वृद्धिकरं कदाचन"वास्तुशास्त्र पारिजात

पश्चिम दिशा में वस्तु स्थायित्व देती है, लेकिन विकास नहीं।

Keeping items in the West offers stability, but not expansion or enhancement. It is a direction of sunset, symbolizing decline of energy.


📌 2. टूटी या खंडित वस्तु का प्रयोग

Use of Broken or Damaged Objects

टूटी, फटी, खंडित या आंशिक रूप से नष्ट वस्तु का प्रयोग करना अपवित्र, अशुभ और धनहानिकारक होता है।

"छिन्नं भिन्नं च यद्द्रव्यं, तन्न पातव्यं शुभे काले"मनुस्मृति

टूटी-फूटी वस्तु शुभ कार्य में उपयोग नहीं करनी चाहिए।

Using broken or cracked items is considered impure and inauspicious, especially during sacred rituals or personal milestones.


📌 3. शोककाल में प्रयुक्त वस्त्र का पुनः प्रयोग

Reusing Clothes Worn During Mourning

शोककाल या मृत्यु-दर्शन के समय पहना गया वस्त्र दुखद स्मृति एवं गृह में दैन्य ऊर्जा को पुनः जागृत करता है।

"शवसंस्पृष्टवस्त्राणि न पुनः धर्मकार्येषु"याज्ञवल्क्य स्मृति

मृत्यु-दर्शन में पहने वस्त्रों का पुनः धार्मिक प्रयोग वर्जित है।

Clothes worn during mourning or while attending a death should not be reused for spiritual or auspicious purposes, as they carry sorrowful vibrations.


📌 4. ग्रहण-दोष युक्त वस्त्र का प्रभाव

Effect of Items Used During Eclipse (Grahan)

ग्रहण के समय पहनी गई वस्तुएँ या वस्त्र ग्रह-पीड़ा, मानसिक बाधा, और दैविक दोष का कारण बन सकते हैं। उनका पुनः प्रयोग वर्जनीय है।

"ग्रहणकाले यद्वस्त्रं, तन्मुच्यं प्रायशः शुभे"निर्णयसिन्धु

ग्रहण काल में प्रयोग हुआ वस्त्र त्यागना श्रेयस्कर होता है।

Items or clothes used during eclipses are believed to absorb planetary afflictions and should be discarded rather than reused.


🔚 निष्कर्ष (Conclusion):

स्थिति (Condition)

प्रभाव (Effect)

शास्त्रीय संकेत (Scriptural Note)

पश्चिम दिशा

स्थायित्व, परंतु धीमी वृद्धि

वास्तुशास्त्र

टूटी वस्तु

अपवित्र, धनहानिकर

मनुस्मृति

शोककाल वस्त्र

दुःख स्मृति, ऊर्जा ह्रास

याज्ञवल्क्य स्मृति

ग्रहण युक्त वस्त्र

ग्रह दोष, मानसिक बाधा

निर्णयसिन्धु

·  "Auspicious Objects: Gateways to Success, Not Conflict"

  "The Power of Auspicious Use: Seeds of Good Fortune"

  "New Clothes or Items: Tools of Destiny, Not Disruption"

  "Sacred Use Leads to Sustainable Success"

  "Public Advisory: The Lasting Energy of Mindful Usage"

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Pt.V.K.Tiwari- Palmist, Astrologer,Vastu.Muhurt & Match making Expert(No where else such informative ..)9424446706; tiwaridixitastro@gmail.com;jyotish9999@gmail.com;India Karnatak.Bangalore

 

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श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...