15.6.2025 -शुभ कार्य ,नए वस्त्र, गृहप्रवेश, विवाह आदि नहीं.
🔷 चतुर्थी तिथि (विशेषतः रविवार + श्रवण नक्षत्र) – प्रयोग का शास्त्रीय विचार
1. चतुर्थी का महत्व – व्रतकाल में प्रयोग की अनुमति 📚 स्कन्द पुराण (नागरखण्ड), अध्याय – गणेश व्रतकथा श्लोक: "श्रावणस्य तु मासेऽस्मिन् कृष्णे पक्षे चतुर्थिकाम्।
योऽर्चयेद् गजाननं सर्वकामसमृद्धिभाक्॥"
अर्थ: श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को जो व्यक्ति श्रीगणेश का पूजन करता है, वह समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करता है। ➡️ यह श्लोक श्रावण मास की विशेष स्थिति पर आधारित है, किन्तु सामान्य चतुर्थी (श्रवण नक्षत्र में) भी यदि शुभ मुहूर्त में हो, तो प्रयोग स्वीकार्य होता है।
2. चतुर्थी + रविवार = विशेष संयोजन (सायंकाल तक चतुर्थी) इस स्थिति में चतुर्थी तिथि 15:51 बजे तक है, उसके पश्चात पंचमी आरंभ होती है।
रविवार को चतुर्थी का सायं तक होना निर्णयसिन्धु के अनुसार दोषदायक हो सकता है:
📚 निर्णयसिन्धु – व्रत निर्णय खण्ड श्लोक: "चतुर्थी रविवासरे यदि सायं समागता। व्रते न कुर्यात् तद्रात्रौ दोषदं मुनिभिर्मतम्॥"
अर्थ: रविवार को यदि चतुर्थी तिथि सायंकाल में आती हो, तो उस दिन व्रत या नया प्रयोग करना दोषदायक माना गया है। ➡️ अतः 15:51 बजे तक का समय यदि शुभ योगों के साथ हो तो प्रयोग किया जा सकता है।
3. वैधृति योग + श्रवण नक्षत्र – मिश्रित प्रभाव 📚 मुहूर्त चिंतामणि एवं धर्मसिन्धु में वैधृति योग को शुभ कार्यों हेतु वर्जित बताया गया है:
श्लोक: "वैधृत्यां न करोत्यारम्भं विवाहं स्थापने शुभम्।"
अर्थ: वैधृति योग में शुभ कार्य जैसे नए वस्त्र, गृहप्रवेश, विवाह आदि नहीं करने चाहिए।
📚 बृहत्संहिता – अध्याय 27 (नक्षत्रविचार) में श्रवण नक्षत्र को मध्यम एवं धार्मिक प्रयोगों हेतु योग्य माना गया है:
श्लोक: "श्रवणं धर्मकार्येषु युक्तं ग्राह्यं विशेषतः।"
अर्थ: श्रवण नक्षत्र धर्म संबंधी कार्यों में विशेष रूप से स्वीकार्य है। ➡️ अतः यह नक्षत्र धार्मिक प्रयोगों जैसे पूजन, व्रत के लिए योग्य है लेकिन जब वैधृति योग हो, तो इसका फल बाधित हो सकता है। Durga puja shresth ;
🔸 पुष्टि: 📚 ज्योतिष सार (Jyotish Saar), अध्याय –
तिथि विशेष विवेचनम् "रवौ चतुर्थ्या युक्तायां न वस्त्रं न रत्नं न भूषणम्। कार्यं सायं न दातव्यं दोषो भृगुनरेश्वरैः कथितः॥" ➡️ रविवार को चतुर्थी में नया प्रयोग सायंकाल के बाद वर्जित है।
3. वैधृति योग + श्रवण नक्षत्र – मिश्रित प्रभाव 📚 मुहूर्त चिंतामणि एवं धर्मसिन्धु में वैधृति योग को शुभ कार्यों हेतु वर्जित बताया गया है:
श्लोक: "वैधृत्यां न करोत्यारम्भं विवाहं स्थापने शुभम्।"
अर्थ: वैधृति योग में शुभ कार्य जैसे नए वस्त्र, गृहप्रवेश, विवाह आदि नहीं करने चाहिए।
📚 बृहत्संहिता – अध्याय 27 (नक्षत्रविचार) में श्रवण नक्षत्र को मध्यम एवं धार्मिक प्रयोगों हेतु योग्य माना गया है: श्लोक: "श्रवणं धर्मकार्येषु युक्तं ग्राह्यं विशेषतः।"
अर्थ: श्रवण नक्षत्र धर्म संबंधी कार्यों में विशेष रूप से स्वीकार्य है। ➡️ अतः यह नक्षत्र धार्मिक प्रयोगों जैसे पूजन, व्रत के लिए योग्य है लेकिन जब वैधृति योग हो, तो इसका फल बाधित हो सकता है।
🔸 पुष्टि: 📚 तंत्रसार संहिता (Tantrasaar), अध्याय – योगदोष विवेचन: "वैधृत्यां ग्रहयोगेन शठे स्थाने तु यः क्रियेत्। तस्य नाशो भवेद्दृष्टो भोगहानिः प्रजाहतिः॥" ➡️ वैधृति योग में प्रयोग विशेष रूप से त्याज्य माना गया है, विशेषकर ग्रहों की बाधा होने पर।
सारणी
परिस्थिति |
प्रयोग (New Item Use) |
स्थिति |
सामान्य चतुर्थी (शुभ ग्रह योग) |
✔️ (व्रत/पूजन हेतु) |
भद्रबाहु संहिता |
चतुर्थी + रविवार (सायं तक) |
❌ (सायं प्रयोग वर्जित) |
निर्णयसिन्धु, ज्योतिष सार |
वैधृति योग |
❌ (शुभ प्रयोग वर्जित) |
मुहूर्त चिंतामणि, तंत्रसार |
श्रवण नक्षत्र |
✔️ (धार्मिक प्रयोग हेतु योग्य) |
बृहत्संहिता |
ग्रहदोष रहित + शुद्ध होरा |
✔️ |
प्रयोग स्वीकार्य |
उपाय (यदि प्रयोग आवश्यक हो):
- केवल प्रातःकाल (चतुर्थी काल समाप्ति पूर्व – 15:51 बजे से पहले), ग्रहशुद्धि एवं होरा शुद्धि अनिवार्य।
- मंत्र जप: "ॐ विघ्नराजाय नमः" – 108 बार।
- दूर्वा, लड्डू, अक्षत अर्पण करें।
- सूर्य अर्घ्य + गणेश पूजन रविवार दोष निवारण हेतु।
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