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26.6-3.8.2025 -गुप्त नवरात्रि (आषाढ़ मास में), शाकंभरी / शताक्षी देवी पूजन आषाढ़ गुप्त नवरात्रि शैव , दक्षिण ,माध्व , (हनुमान रूप), वैष्णव ,

 

26.6-3.8.2025 -गुप्त नवरात्रि (आषाढ़ मास में), शाकंभरी / शताक्षी देवी पूजन आषाढ़ या पौष गुप्त नवरात्रि में विशेष रूप से की जाती है।


🔴 शाकंभरी / शताक्षी देवी पूजन गुप्त नवरात्रि विधान (Bilingual Scriptural Procedure)


🪔 1. 🔰 देवी स्वरूप (Form of the Goddess)

🔸 संस्कृत श्लोक (शाकंभरी स्तोत्र, देवी भागवत पुराण):

"शताक्षी शाकंभरी च दुर्गा देवी च सर्वदा।
आपदा हर मे नित्यं, सौभाग्यं देहि मे शिवे॥"

🔹 भावार्थ (Meaning):
हे शताक्षी! हे शाकंभरी! हे दुर्गा! आप सदा रक्षक हैं, आपदा हरती हैं, सौभाग्य प्रदान करती हैं।


📿 2. 📖 गुप्त नवरात्रि में शाकंभरी देवी पूजन विधि (Shakambhari Devi Puja Vidhi)

🕉 काल / Timing:

🔹 आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से नवमी (26 जून – 3 जुलाई 2025)
🔹 अष्टमी तिथि (3 जुलाई 2025) को विशेष शाकंभरी पूजन करना सर्वोत्तम माना गया है।

 🌾 प्रत्येक दिन का मंत्र (9 Days)

(प्रत्येक मंत्र का शुद्ध उच्चारण, देवनागरी + Roman script में, अर्थ सहित)

🌺 दिन 1 (Day 1): आवाहन व मूल बीजमंत्र

🔸 मूल बीजमंत्र:
🔸 मंत्र:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शाकम्भर्यै नमः॥
Om Aim Hrīm Klīm Shākambharyai Namaḥ॥
भावार्थ: मैं ज्ञान, शक्ति और संवर्द्धन की अधिष्ठात्री देवी शाकम्भरी को प्रणाम करता हूँ।


🌺 दिन 2: फलप्रदायिनी रूप

🔸 मंत्र:
ॐ शाकम्भर्यै वरप्रदायै नमः॥
Om Shākambharyai Varapradāyai Namaḥ॥
भावार्थ: जो देवी सभी वांछित फलों की दात्री हैं, उन्हें नमस्कार है।


🌺 दिन 3: जलप्रदायिनी रूप

🔸 मंत्र:
ॐ अमृतरूपिण्यै शाकम्भर्यै नमः॥
Om Amṛtarūpiṇyai Shākambharyai Namaḥ॥
भावार्थ: जो अमृतस्वरूपा हैं और जीवों की रक्षक हैं, उन्हें प्रणाम है।


🌺 दिन 4: शाकारूपिणी (सब्ज़ी-फल दात्री)

🔸 मंत्र:
ॐ हरितपुष्पफलदायिन्यै नमः॥
Om Haritapuṣpaphaladāyinyai Namaḥ॥
भावार्थ: जो देवी हरित अन्न, फल और पुष्पों से जगत का पालन करती हैं।


🌺 दिन 5: अन्नप्रदायिनी

🔸 मंत्र:
ॐ अन्नपूर्णेश्वर्यै शाकम्भर्यै नमः॥
Om Annapūrṇeśvaryai Shākambharyai Namaḥ॥
भावार्थ: जो अन्न से पोषण करती हैं, अन्नरूपा हैं — उन्हें नमस्कार।


🌺 दिन 6: वनदुर्गा स्वरूप

🔸 मंत्र:
ॐ वनवासिनी दुर्गायै शाकम्भर्यै नमः॥
Om Vanavāsinī Durgāyai Shākambharyai Namaḥ॥
भावार्थ: जो वनों में निवास करती हैं और रक्षा करती हैं, उन्हें प्रणाम है।


🌺 दिन 7: महाशाकम्भरी रूप

🔸 मंत्र:
ॐ महाशाकम्भर्यै त्रैलोक्यपालिन्यै नमः॥
Om Mahāśākambharyai Trailokyapālīnyai Namaḥ॥
भावार्थ: जो तीनों लोकों की पालनकर्ता हैं, महान शाकम्भरी देवी को नमस्कार।


🌺 दिन 8: वीर्या-शक्ति रूप

🔸 मंत्र:
ॐ बलदायिन्यै शाकम्भर्यै नमः॥
Om Baladāyinyai Shākambharyai Namaḥ॥
भावार्थ: जो शक्ति, तेज और शौर्य प्रदान करती हैं।


🌺 दिन 9: सिद्धिदात्री रूप

🔸 मंत्र:
ॐ सिद्धिदात्र्यै शाकम्भर्यै नमः॥
Om Siddhidātryai Shākambharyai Namaḥ॥
भावार्थ: जो साधकों को सिद्धियाँ और चमत्कारी फल देती हैं।


📿 पूजन विधि (संक्षिप्त)

  1. स्थान शुद्धि और कलश स्थापना

    • कलश में जल भरकर आम्रपल्लव व नारियल रखें।

    • उसके समक्ष शाकम्भरी देवी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

  2. द्रव्य समर्पण:

    • पुष्प, फल, सब्ज़ियाँ, अनाज — विशेषकर 9 प्रकार की हरित सब्जियाँ अर्पित करें।

    • नैवेद्य में फल और जौ का लड्डू / सत्तू समर्पण श्रेष्ठ है।

  3. नैवेद्य मंत्र (हर दिन):

    ॐ नैवेद्यं गृहाणेदं शाकम्भर्यै नमो नमः॥
    Om Naivedyaṃ Gṛhāṇedaṃ Shākambharyai Namo Namaḥ॥

  4. दक्षिणा मंत्र:ॐ दक्षिणां गृहाणेदं ह्रीं ऐं क्लीं नमो नमः॥

  5. आरती:जय देवी शाकम्भरी माता, अन्नपूर्णा करुणा साता... (पूर्ण आरती यदि चाहिए तो कृपया कहें।)


📖 शास्त्रीय प्रमाण:

  • देवी भागवत महापुराण स्कंध 11, अध्याय 5-7

  • शाकम्भरी तन्त्र, कल्पद्रुम तन्त्र

  • मार्कण्डेय पुराण - अन्नपूर्णा खण्ड

  • तन्त्रसार व चतुर्भुज संहिता — शाकम्भरी उपासना विधान



 🌺 विशेष पूजन/अनुष्ठान हेतु
आप "शताक्षी देवी" या "शाकंभरी देवी" का स्मरण करके वस्त्र-आभूषण धारण करें, जिससे सुरक्षा और सौंदर्य का स्थायित्व प्राप्त होता है।
📜
"शताक्ष्याः कवचं यस्तु धारयेद्भूषणादिकम्।
सर्वरोगविनाशाय सौभाग्यवर्धनाय च॥"

🪔 पूजन सामग्री (Puja Samagri)

वस्तु

अर्थ/प्रयोग

नीले फूल, तुलसी, शाक-सब्जियाँ

देवी का प्रिय, देवी ने दुष्काल में शाक से संसार की रक्षा की थी

नीला वस्त्र

शनि संबंध, देवी का शांत रूप

नीले या काले धागे का त्रिकोण यंत्र

तांत्रिक सुरक्षा

🌿 १. शाकंभरी यंत्र (Shakambhari Yantra)

🧿 यंत्र स्वरूप:

  • आकार: त्रिकोण यंत्र (उर्ध्वमुखी त्रिकोण)
  • रंग: नीला या श्यामवर्णी
  • केंद्र में बीज मंत्र: "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शाकंभर्यै नमः"
  • चारों कोनों में अंकित: अन्न, पुष्प, जल, मूल

🔸 स्थापना विधि:

  • अष्टमी रात्रि या नवमी प्रातः
  • शुद्ध नीले वस्त्र पर
  • पूर्वमुखी होकर जप करें
  • तिल के तेल का दीपक जलाएं

📜 २. शाकंभरी देवी आरती (Aarti of Shakambhari Devi)

🔹 तांत्रिक परंपरा में प्रचलित, देवनागरी व Roman Script में:

🔆 आरती:

आरती शाकंभरी मात की, शाकों से जग पालन की।
अन्न जल की वर्षा करतीं, दुष्टों का संहारन की॥

नीलवर्णी भवानी मात, शत नेत्रों से रक्षण की।
रक्तबीज बिनाशिनि अम्बा, असुर वंश संहारन की॥

शाक-अन्न की देवी माता, शरणागत को तारन की।
**
संकट हर, कृपा बरसावे, भक्तों की उद्धारन की॥

Roman Script:

Aarti Shakambhari Maat ki, shaakon se jag paalan ki.
Ann jal ki varsha karti, dushton ka samhaaran ki.
Neelvarni Bhavani Maat, shat-netron se rakshan ki.
Raktabeej vinaashini Amba, asur vansh sanhaaran ki.


📚 ३. दुर्गा सप्तशती में शाकंभरी / शताक्षी / शुंभमर्दिनी स्वरूप

🔹 (i) शताक्षी वर्णनमार्कण्डेय पुराण, सप्तशती अध्याय ११

"ततो जगाम सकलां निन्ये सा शताक्षिका।
सा च शीतांशुनीकाशा शाकंभरी बभूव ह॥"

🔸 भावार्थ:
श्री दुर्गा ने जब दुष्काल और भूख के समय शत नेत्रों से जल बहाया, तब वे शताक्षी तथा शाकों की वर्षा करके शाकंभरी बन गईं।


🔹 (ii) शुंभासुर मर्दिनी / अष्टभुजा चण्डिका

"धूम्रलोचनमक्ष्णाभ्यां पतयिष्याम्यहं क्षणात्।
चण्डिकेति स्मृता लोके चण्डिका चण्डविग्रहा॥"

अष्टभुजा चण्डिका या महिषासुरमर्दिनी, शुंभ, निशुंभ, चण्ड, मुण्ड, रक्तबीज आदि दैत्यों का वध करती हैं।
यह शक्तियों का सामूहिक रूप है दुर्गा, लक्ष्मी, काली, ब्राह्मी, वैष्णवी, इन्द्राणी, कौमारी, महेश्वरी।


🪷 ४. सरस्वती पूजन का महत्व (Gyaan Shakti for Lakshmi Stability)

क्यों आवश्यक है?

  • लक्ष्मी की स्थिरता तभी संभव है जब ज्ञान, विवेक और नीति (सरस्वती) भी साथ हों।
  • केवल भोग से लक्ष्मी चंचला हो जाती है, गुणयुक्त व्यवहार और ज्ञान से वह स्थिर होती है

📜 शास्त्र प्रमाण:

"यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता।
यत्र त्वेतास्तु न पूज्यंते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः॥"
मनुस्मृति 3.56

"सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।
विद्यारंभं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा॥"


💰 ५. लक्ष्मी की स्थिरता हेतु तांत्रिक/वैदिक उपाय

उपाय

विवरण

📿 श्रीयंत्र स्थापना

स्थायित्व हेतु प्रत्येक शुक्रवार को कमल पर घी दीपक

🌾 धान्य लक्ष्मी पूजन

आषाढ़ अष्टमी को शाक, अनाज चढ़ाकर लक्ष्मी का ध्यान करें

🧘‍♀️ मंत्र:


"ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः लक्ष्म्यै नमः"

यह पंचाक्षरी लक्ष्मी मंत्र है स्थायी लक्ष्मी हेतु सिद्ध है

📘 ब्राह्मण भोजन / कन्या पूजन

विशेषकर गुप्त नवरात्रि में लक्ष्मी की स्थिरता का मूल उपाय

 26.6.-3.7.2025-Day wise Durga puja smaran

शैव, दक्षिण भारतीय, माध्व (हनुमान रूप), तथा वैष्णव

के अनुसार नवरात्रि के 9 दिन की देवी और मंत्रों का चार्ट-

"Navratri Mantra Chart"26june-3july 2025

🔊 गुप्त नवरात्रि - नवदिनों की पूजा विभिन्न सम्प्रदाय के अनुसार मंत्र चार्ट

🔹 दिन

शैव सम्प्रदाय

दक्षिण भारतीय परम्परा

माध्व सम्प्रदाय (हनुमान रूप)

वैष्णव सम्प्रदाय

1

ब्रह्मचारिणी – ' ह्रीं ब्रह्मचारिण्यै नमः'
📖 अर्थ: तप, संयम और ज्ञान की देवी

वन दुर्गा – ' ह्रीं वंदुर्गायै नमः'
📖 अर्थ: वनों की रक्षिका, उग्र स्वरूप

अश्रु हनुमान – ' रामदूताय नमः'
📖 अर्थ: समर्पण और भक्ति का प्रतीक

सहृदेवी – ' श्रीं सहृदेव्यै नमः'
📖 अर्थ: ममत्व और करुणा की देवी

2

कुष्मांडा – ' क्लीं कूष्माण्डायै नमः'
📖 अर्थ: सृष्टि की उत्पत्ति करने वाली

तुलजापुर भवानी – ' ह्रीं भवानीयै नमः'
📖 अर्थ: कुलदेवी, शक्ति का भंडार

उत्तरा हनुमान – ' रामप्रियाय नमः'
📖 अर्थ: भक्ति के उच्च भाव की प्रेरणा

लक्ष्मी – ' श्रीं महालक्ष्म्यै नमः'
📖 अर्थ: वैभव और सौभाग्य की देवी

3

रत्नमाला – ' श्रीं रत्नमालायै नमः'
📖 अर्थ: तेज, सौंदर्य और शक्ति

येलम्मा – ' क्लीं येलम्मायै नमः'
📖 अर्थ: लोकशक्ति का रूप

बुद्धि हनुमान – ' बुद्धिवर्धनाय नमः'
📖 अर्थ: बुद्धि और विवेक के कारक

श्रीशैलम देवी – ' श्रीशैलेश्वर्यै नमः'
📖 अर्थ: शक्तिपीठ रूपिणी देवी

4

कालकामिनी – ' कालकामिन्यै नमः'
📖 अर्थ: काल नियंत्रण करने वाली

चामुंडेश्वरी – ' चामुण्डेश्वर्यै नमः'
📖 अर्थ: रक्षा और युद्ध की देवी

आत्मदेव – ' आत्मरूपाय नमः'
📖 अर्थ: आत्मबल और साधना की शक्ति

चंडी – ' चण्डिकायै नमः'
📖 अर्थ: असुर संहारिणी शक्ति

5

मातंगी – ' ह्रीं मातङ्ग्यै नमः'
📖 अर्थ: वाणी, संगीत, कला की अधिष्ठात्री

रत्नगिरी महालक्ष्मी – ' श्रीं रत्न गिरि लक्ष्म्यै नमः'
📖 अर्थ: धन, ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री

कीर्ति हनुमान – ' कीर्तिनाथाय नमः'
📖 अर्थ: यश और प्रतिष्ठा की शक्ति

विष्णुप्रिया – ' विष्णुप्रियाय नमः'
📖 अर्थ: श्रीहरि की प्रिय देवी

6

कालरात्रि – ' क्रीं कालरात्र्यै नमः'
📖 अर्थ: अंधकार और भय विनाशिनी

कपालेश्वरी – ' हुं कपालेश्वर्यै नमः'
📖 अर्थ: भैरवी स्वरूपिणी

धैर्य हनुमान – ' धैर्यसागराय नमः'
📖 अर्थ: धैर्य और स्थिरता की शक्ति

महामाया – ' महामायायै नमः'
📖 अर्थ: संसारिक मोह से मुक्ति देने वाली

7

मेघेश्वरी – ' ऐं मेघेश्वर्यै नमः'
📖 अर्थ: जल, मेघ और भावनाओं की देवी

कनक दुर्गा – ' कनकदुर्गायै नमः'
📖 अर्थ: विजय और ऐश्वर्य की प्रतीक

आरोग्य हनुमान – ' आरोग्यदाय नमः'
📖 अर्थ: आरोग्यता और उपचार की शक्ति

हरिप्रिया – ' हरिप्रियायै नमः'
📖 अर्थ: भक्तिपूर्ण जीवन की देवी

8

महाशक्ति – ' ह्रीं महाशक्त्यै नमः'
📖 अर्थ: संपूर्ण शक्तियों की अधिष्ठात्री

रज्जराजेश्वरी – ' श्रीं रज्जराजेश्वर्यै नमः'
📖 अर्थ: राजराजेश्वरी, तांत्रिक स्वरूप

स्मृति हनुमान – ' स्मृतिवर्धनाय नमः'
📖 अर्थ: स्मरण और चैतन्य की शक्ति

पद्मा – ' पद्मायै नमः'
📖 अर्थ: शांति और लक्ष्मी स्वरूप

9

सिद्धिदात्री – ' श्रीं सिद्धिदात्र्यै नमः'
📖 अर्थ: सिद्धियाँ देने वाली देवी

मीनाक्षी – ' मिनाक्ष्यै नमः'
📖 अर्थ: त्रिनेत्रधारिणी ज्ञानमयी

साधक हनुमान – ' सिद्धिहेतवे नमः'
📖 अर्थ: सभी सिद्धियों की प्राप्ति हेतु

श्रीदेवी – ' श्रीदेव्यै नमः'
📖 अर्थ: सम्पूर्ण वैष्णवी शक्ति

 ✅

🔹 दिन

शैव सम्प्रदाय

दक्षिण भारतीय परम्परा

माध्व सम्प्रदाय (हनुमान रूप)

वैष्णव सम्प्रदाय

1️

ब्रह्मचारिणी – "ॐ ह्रीं ब्रह्मचारिण्यै नमः"

वन दुर्गा – "ॐ ह्रीं वंदुर्गायै नमः"

अश्रु हनुमान – "ॐ रामदूताय नमः"

सहृदेवी – "ॐ श्रीं सहृदेव्यै नमः"

2️

कुष्मांडा – "ॐ क्लीं कूष्माण्डायै नमः"

तुलजापुर भवानी – "ॐ ह्रीं भवानीयै नमः"

उत्तरा हनुमान – "ॐ रामप्रियाय नमः"

लक्ष्मी – "ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः"

3️

रत्नमाला – "ॐ श्रीं रत्नमालायै नमः"

येलम्मा – "ॐ क्लीं येलम्मायै नमः"

बुद्धि हनुमान – "ॐ बुद्धिवर्धनाय नमः"

श्रीशैलम देवी – "ॐ श्रीशैलेश्वर्यै नमः"

4️

कालकामिनी – "ॐ कालकामिन्यै नमः"

चामुंडेश्वरी – "ॐ चामुण्डेश्वर्यै नमः"

आत्मदेव – "ॐ आत्मरूपाय नमः"

चंडी – "ॐ चण्डिकायै नमः"

5️

मातंगी – "ॐ ह्रीं मातङ्ग्यै नमः"

रत्नगिरी महालक्ष्मी – "ॐ श्रीं रत्नगिरिलक्ष्म्यै नमः"

कीर्ति हनुमान – "ॐ कीर्तिनाथाय नमः"

विष्णुप्रिया – "ॐ विष्णुप्रियाय नमः"

6️

कालरात्रि – "ॐ क्रीं कालरात्र्यै नमः"

कपालेश्वरी – "ॐ हुं कपालेश्वर्यै नमः"

धैर्य हनुमान – "ॐ धैर्यसागराय नमः"

महामाया – "ॐ महामायायै नमः"

7️

मेघेश्वरी – "ॐ ऐं मेघेश्वर्यै नमः"

कनक दुर्गा – "ॐ कनकदुर्गायै नमः"

आरोग्य हनुमान – "ॐ आरोग्यदाय नमः"

हरिप्रिया – "ॐ हरिप्रियायै नमः"

8️

महाशक्ति – "ॐ ह्रीं महाशक्त्यै नमः"

रज्जराजेश्वरी – "ॐ श्रीं रज्जराजेश्वर्यै नमः"

स्मृति हनुमान – "ॐ स्मृतिवर्धनाय नमः"

पद्मा – "ॐ पद्मायै नमः"

9️

सिद्धिदात्री – "ॐ श्रीं सिद्धिदात्र्यै नमः"

मीनाक्षी – "ॐ मिनाक्ष्यै नमः"

साधक हनुमान – "ॐ सिद्धिहेतवे नमः"


 

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28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...