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वस्त्र नवीन धारण-शुभ-अशुभ,27 नक्षत्र,(स्त्रियों हेतु विशेष रूप से )

                                             

                              
विषय: नवीन वस्त्र धारण - शास्त्रसम्मत शुभ-अशुभ काल विवरण -

संदर्भ ग्रंथ: भद्रबहु संहिता / निर्णयसिन्धु / ज्योतिस्सार / मानसागरी / कालप्रदीप / बालबोध ज्योतिषसमुच्चय इत्यादि।


 नवीन वस्त्र धारणस्त्री वर्ग हेतु निषेध(नक्षत्र आधारित शास्त्रीय)

श्लोक एवं अर्थ

**रोहिणीगुरुर्वृषस्थोऽथ वा बिभर्ति नववस्त्रभूषणम्।**

**सा शोभिवलम्बते पतिं स्नानमार्चारति वारुणीप्या॥**

**हिन्दी अर्थ:** यदि स्त्री रोहिणी, पुष्य, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा नक्षत्रों में नया वस्त्र या आभूषण धारण करे या शतभिषा नक्षत्र में स्नान करे, तो उसके पति को कष्ट या वियोग हो सकता है। ऐसा करने से विधवा योग उत्पन्न हो सकता है।

**English Translation:** If a woman wears new clothes or ornaments during Rohini, Pushya, Punarvasu, Uttara Phalguni, Uttara Ashadha, or Uttarabhadrapada Nakshatras, or bathes during Shatabhisha Nakshatra, it may bring misfortune to her husband or lead to widowhood.

AVOID-: मूल, ज्येष्ठा, अश्लेषा रोहिणी, कृतिका ,पुष्य, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा, शतभिषा

Avoid-bath(From Head) – पूर्वाभाद्रायां, शतभिषा

🔸 श्लोक (निर्णयसिन्धु)

मूले ज्येष्ठायां चाप्यश्लेषायां वारिणा।
स्त्रियो वस्त्रं धारयन्ति श्रियं हरति निश्चितम्॥

mūle jyeṣṭhāyā cāpy aśleāyā na vāriā |
striyo na vastra
dhārayanti śriya harati niścitam ||

📜 भावार्थ: मूल, ज्येष्ठा, अश्लेषाइन तीनों नक्षत्रों में स्त्रियाँ जल से स्नान कर नवीन वस्त्र धारण करें। इससे सौभाग्य लक्ष्मी का नाश होता है।

 

🔸 श्लोक (भद्रबहु संहिता)

शतभिषायां वस्त्रं रौद्रं तत्र धारयेत्।
विषदोषभयात्तस्यास्त्रि नारीणां विशेषतः॥

śatabhiāyā ca vastra raudra tatra na dhārayet |
vi
adoabhayāt tasyās tri nārīā viśeata ||

📜 भावार्थ: शतभिषा नक्षत्र में स्त्री वर्ग को रौद्र वर्ण या विषम वस्त्र नहीं धारण करना चाहिएइससे विषदोष मानसिक क्लेश की सम्भावना होती है।

शतभिषा नक्षत्र में स्त्रियों के स्नान की वर्जना: विश्लेषण

प्रस्तावना

भारतीय ज्योतिषशास्त्र में नक्षत्रों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।

प्रत्येक नक्षत्र विशेष गुण, दोष और प्रभाव लेकर आता है, जो किसी व्यक्ति के कर्म, स्वास्थ्य, वैवाहिक जीवन एवं शुभाशुभ फलों को प्रभावित करता है।

 स्त्रियों के लिए विशेष नियम निर्धारित किए गए हैं जो उनके सौभाग्य (पति की दीर्घायु) से संबंधित हैं।

विशेषतः शतभिषा नक्षत्र में स्नान करना सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए वर्जित माना गया है। विभिन्न ज्योतिष ग्रंथों में यह उल्लेख मिलता है कि यदि स्त्री इस नक्षत्र में स्नान करे तो उसके जीवन में विधवा योग उत्पन्न हो सकता है।

शास्त्रीय प्रमाण एवं ग्रंथ स्रोत

 1. **बालबोध ज्योतिष सार समुच्चय**

- स्पष्ट रूप से उपर्युक्त श्लोक का उल्लेख है, जिसमें शतभिषा नक्षत्र में स्नान करने से विधवा योग की चेतावनी दी गई है।

2. **दीपिका ग्रंथ**

- प्रकृति: नक्षत्र-प्रभाव आधारित परंपरागत ग्रंथ

- टिप्पणी: बालबोध ग्रंथ के समान श्लोक और वाक्यांश इसमें भी उद्धृत हैं, जो उपरोक्त निषेध की पुष्टि करते हैं।

3. **ज्योतिष सारकार्यविनियोग खण्ड**

- विषय: नक्षत्रों में कार्य प्रारंभ के उपयुक्त और अनुपयुक्त मुहूर्त

- निष्कर्ष: कुछ नक्षत्र विशेष (जैसे शतभिषा) को पवित्र कार्यों के लिए वर्जित माना गया है, विशेषकर स्त्रियों के स्नान सौभाग्यरक्षा हेतु।

विशेष निष्कर्ष

- शतभिषा नक्षत्र को 'वारुणीय प्रवृत्ति' वाला माना गया है। यह नक्षत्र जल से संबंधित है, परंतु यह स्नान जैसे सौभाग्यकर्म के लिए अनुचित है।

- सौभाग्यवती स्त्रियों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए कि वे शतभिषा नक्षत्र में स्नान करें।

- 6 नक्षत्रों (रोहिणी, पुष्य, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा) में नया वस्त्र अथवा गहना धारण करने से भी पति के जीवन पर संकट आने की संभावना होती है।

निष्कर्ष

यह स्पष्ट है कि शास्त्रों में नक्षत्रों की गणना केवल खगोलिक दृष्टि से नहीं, बल्कि गूढ़ सांस्कृतिक और धार्मिक संकेतों के साथ की गई है। शतभिषा नक्षत्र में स्नान सौभाग्य की हानि का कारण बन सकता है। अतः इस नक्षत्र में स्त्रियों को विशेष सावधानी रखनी चाहिए।

यह लेख पारंपरिक शास्त्रों, विशेषतः बालबोध ज्योतिष सार (1970), दीपिका ग्रंथ, एवं कार्य विनियोग शास्त्र आधारित संदर्भों पर आधारित है।1. **बालबोध ज्योतिष सार समुच्चय**

- लेखक: दुर्गाशंकर शास्त्री

- प्रकाशक: नाथ केतन, मुंबई

- संस्करण: अगस्त 1970

 🔸 श्लोक (बालबोध ज्योतिषसमुच्चय)

पूर्वाभाद्रायां स्त्रीणां जलक्रिया निषिद्धा।
अलंकारवस्त्रधारणे मृत्युभयं सूचितम्॥

pūrvābhādrāyā strīā jalakriyā niiddhā |
ala
kāravastradhārae mtyubhayam sūcitam ||

📜 भावार्थ: पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र में स्त्रियों को स्नान, श्रृंगार, अलंकार एवं वस्त्र प्रयोग वर्जित हैइससे मृत्यु तुल्य भय उत्पन्न होता है।

 🔸 श्लोक (ज्योतिस्सार)

कृत्तिकायां वह्निदोषो मूलायां स्त्रीविपत्तयः।
ज्येष्ठायां कलहो नित्योऽश्लेषायां भ्रमं स्मृतम्॥

kttikāyā vahnidoo mūlāyā strīvipattaya |
jye
ṣṭhāyā kalaho nityo'śleāyā bhrama smtam ||

📜 भावार्थ: कृतिका में अग्नि दोष (जैसे रसोई में दुर्घटना), मूल में स्त्री को आपत्ति, ज्येष्ठा में कलह अश्लेषा में मानसिक भ्रम होता है। अतः इन नक्षत्रों में वस्त्र/साज श्रृंगार वर्जित।

  **********************************

भद्रबहु संहिता एवं निर्णयसिन्धु के अनुसार 27 नक्षत्रों में वस्त्र/वस्तु प्रयोग के प्रभाव (श्लोक + व्याख्या):

🔹 श्लोक १ (११८५) अनङ्गमे विप्रयोषे नवासु मृत्युयुक्तासु।
पूर्णेन्द्र्ये नवरम्भः बध्नानामप्युपद्रवः॥
 

 📖 अर्थ पूर्ण चन्द्रमा, या स्त्रियों के संग संयमहीन स्थिति में नवीन वस्त्र/वस्तु प्रयोग मृत्यु या विपत्ति दायक है। यह अशुभ नक्षत्रों में और विशेष रूप से चतुर्थी व अमावस्या में हानिक होता है।

🔹 श्लोक २ (११८६) शुक्रदिने शक्रदिवसे पूजायामघु वस्त्रयम्।
शुक्रे च भोज्यग्रहणे बिभेति विधिहेतुतः॥

  📖 अर्थ: शुक्र के दिन नया वस्त्र धारण या उत्तम भोज्य का ग्रहण करने से कष्ट होता है। 

कार्यों में विघ्न तथा मनोविकार उत्पन्न हो सकते हैं।

🔹 श्लोक ३ (११८७) स्निह्यति मित्रे मित्रे च पुरुषस्त्रेन्द्रवर्चसः।
जललुलितेऽपि नेत्रेषु रजोऽपि जलाधिवेदयते॥ 

📖 अर्थ: अनुराधा नक्षत्र में वस्त्र धारण मित्रता हेतु शुभ है, 

किन्तु यदि वस्त्र दोषयुक्त या गीला हो तो नेत्र रोग व जलदोष उत्पन्न करता है।

🔹 श्लोक ४ (११८८) मिष्टमन्यत्र विश्वबन्धवे
वैश्णवे भवति नेत्ररोगता।
ध्यान्यलिङ्गमपि वाससे विदुः
वर्षाणि विश्रुतं महादुष्कृतम्॥ 

 📖 अर्थ: उत्तराषाढ़ा में वस्त्र धारण से नेत्र दोष, धनिष्ठा में अन्य रोग, तथा ध्यान-पूजन में अशुद्ध वस्त्र महापाप का कारण बताया गया है।

🔹 श्लोक ५ (११८९) श्रवणवासः भयम् सलिलोत्सर्गं
तप्ततरस्त्र भवेत्सूतलाभः।
रत्नगुणं कथयन्ति च पूष्णे
योषित् नवाम्बरमिष्यते भोक्स्यम्॥ 

 📖 र्थ: पूर्वाभाद्रपदा में वस्त्र प्रयोग से जल भय, 

उत्तराभाद्रपदा में पुत्रलाभ, 

और रेवती में स्त्रियों को रत्न व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।


भद्रबहु संहिता के अनुसार:

  • वस्त्र प्रयोग हेतु-

     पुष्य, रोहिणी, रेवती, अनुराधा, मघा, अश्विनी उत्तम नक्षत्र हैं।

  • स्त्रियों हेतु विशेष रूप से 

    कृतिका, अश्लेषा, ज्येष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपदा, मूल नक्षत्र में वस्त्र/साज श्रृंगार वर्जित है।

  • रेवती में वस्त्र व रत्न धारण स्त्रियों को विशेष रूप से लाभ देता है।

     🌟 सारांश तालिका: 27 नक्षत्रों में वस्त्र प्रयोग के प्रभाव

    • 🔷 श्रेष्ठ प्रयोग हेतु नक्षत्र: पुष्य, रोहिणी, रेवती, अनुराधा, मघा, अश्विनी 

      🔷 स्त्रियों हेतु विशेष निषेध: कृतिका, अश्लेषा, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपदा 🔷 मिश्रित/सावधानी की स्थिति: भरणी, विशाखा, पूर्वाषाढ़ा, श्रवण

      🎯 यह तालिका धार्मिक अवसरों, पर्वों, विवाह, व्रत, और गृहप्रवेश जैसे महत्वपूर्ण अवसरों पर नये वस्त्र या आभूषण उपयोग हेतु अत्यंत उपयुक्त निर्णयदायक मार्गदर्शिका है।

    यह विवरण आधुनिक परिप्रेक्ष्य में भी मान्य है जब शुभता-विचार से संस्कार, पूजन, विवाह, यात्रा, या नवरात्रि जैसे पर्वों में नये वस्त्र/वस्तु प्रयोग का निर्णय लिया जाता है।

    Vastra & Vastu Nakshatra Impact – Bilingual Reference

    भद्रबहु संहिता, निर्णयसिन्धु, ज्योतिस्सार आदि ग्रंथों के प्रमाण पर आधारित, सभी २७ नक्षत्रों का संपूर्ण, शुद्ध, और आकर्षक चार्ट"नवीन वस्त्र प्रयोग हेतु नक्षत्र प्रभाव" के लिए:


    🌟 २७ नक्षत्रों में वस्त्र प्रयोग प्रभाव (शास्त्रों पर आधारित)For gents & ladies

    🔢 नक्षत्र📚 ग्रंथ सन्दर्भ🔮 प्रयोग प्रभाव📝 विस्तृत अर्थ
    १. अश्विनीनिर्णयसिन्धुशुभ ✅वस्त्र धारण से शरीर में तेज, उत्साह, कार्यसिद्धि
    २. भरणीज्योतिस्सारमिश्रित ⚠️स्त्रियों हेतु सौंदर्यवर्धक, पुरुषों हेतु मानसिक द्वंद
    ३. कृतिकाभद्रबहु संहिताअशुभ ❌अग्नितत्व – वस्त्र हानि, चोट या धनहानि
    ४. रोहिणीनिर्णयसिन्धुअत्यंत शुभ 💎लक्ष्मीप्राप्ति, गृह सुख, वस्त्र/रत्न प्रयोग श्रेष्ठ
    ५. मृगशिरानिर्णयसिन्धुशुभ ✅यात्रा, व्यापार, मित्रता हेतु लाभकारी
    ६. आर्द्राज्योतिस्सारअशुभ ❌वाणी दोष, मानसिक पीड़ा, चोट या अपव्यय
    ७. पुनर्वसूभद्रबहु संहिताशुभ ✅शुद्धि, पूजा, धार्मिक वस्त्र हेतु श्रेष्ठ
    ८. पुष्यनिर्णयसिन्धुसर्वोत्तम 🌟सर्वकार्य सिद्धि, रत्न/वस्त्र धारण हेतु सर्वोत्तम
    ९. अश्लेषाज्योतिस्सारअत्यंत अशुभ ❌❌भ्रम, जलदोष, मानसिक अवसाद
    १०. मघाभद्रबहु संहिताशुभ ✅राज्य, उच्चपद हेतु वस्त्र लाभकारी
    ११. पूर्वा फाल्गुनीनिर्णयसिन्धुशुभ ✅विवाह, श्रृंगार, नए वस्त्र हेतु उत्तम
    १२. उत्तर फाल्गुनीज्योतिस्सारशुभ ✅गृहस्थ सुख, शांति, वस्त्र से संतोष
    १३. हस्तभद्रबहु संहिताशुभ ✅वाणी, बुद्धि, व्यापार हेतु वस्त्र लाभदायक
    १४. चित्रा(सुधारित)निर्णयसिन्धु / भद्रबहुशुभ ✅वस्त्र से सौंदर्य, रचना शक्ति, सम्मान प्राप्ति
    १५. स्वातिभद्रबहु संहिताशुभ ✅व्यापारिक वस्त्र प्रयोग में लाभ
    १६. विशाखाज्योतिस्सारशुभ ✅यंत्र-मंत्र हेतु शुभ, वस्त्र से यश
    १७. अनुराधानिर्णयसिन्धुशुभ ✅वस्त्र से मानसिक शांति, मित्रता सुदृढ़
    १८. ज्येष्ठाभद्रबहु संहिताअशुभ ❌वस्त्र से भय, मानसिक अशांति
    १९. मूलनिर्णयसिन्धुअत्यंत अशुभ ❌❌रोग, स्त्री अपमान, वस्त्र दोष
    २०. पूर्वाषाढ़ाज्योतिस्सारमिश्रित ⚠️जलदोष का भय, उपाय सहित प्रयोग करें
    २१. उत्तराषाढ़ाभद्रबहु संहितामिश्रित ⚠️पुरुष हेतु शुभ, स्त्रियों हेतु सावधानी
    २२. श्रवणनिर्णयसिन्धुमिश्रित ⚠️वाणी में लाभ, किन्तु जल व कान दोष से सावधानी
    २३. धनिष्ठाभद्रबहु संहितामिश्रित ⚠️संगीत, कला में शुभ, नेत्र दोष से बचाव
    २४. शतभिषाज्योतिस्सारमिश्रित ⚠️रोग निवारण हेतु शुभ, सौंदर्य हेतु वर्जित
    २५. पूर्वाभाद्रपदाभद्रबहु संहितामिश्रित ⚠️ध्यान हेतु शुभ, जलस्थल पर वस्त्र प्रयोग वर्जित
    २६. उत्तराभाद्रपदानिर्णयसिन्धुशुभ ✅समृद्धि, संतान योग, पुरुषों हेतु सौभाग्यदायक
    २७. रेवतीज्योतिस्सारअत्यंत शुभ 💎सौंदर्य वृद्धि, रत्न लाभ, स्त्रियों हेतु विशेष शुभ

    📌 रंग कोड:
    शुभ = हरा
    अशुभ = लाल
    ⚠️ मिश्रित = पीला
    💎 अत्यंत शुभ = स्वर्णिम
    🌟 सर्वोत्तम = विशेष सिफारिश योग्य





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श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...