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13.6.2025- नये वस्त्र / वस्तु / निर्माण / प्रयोग / परिवर्तन निषेध ?Pt V.K.tiwari 9424446706

 

3.6.2025 पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र ,शुक्रवार, द्वितीया तिथि, के संयोग में नये वस्त्र / वस्तु / निर्माण / प्रयोग / परिवर्तन आदि की अनुमति या निषेध 

पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र.द्वितीया  विशेष विवरण – 13.6.2025 निषेध भद्राकाल  में नए वस्त्र पहनना, गृहप्रवेश, वाहन, विवाह, प्रतिष्ठा, दान, या शुभारंभ वर्जित.

पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र का स्वामीजल तत्वयुक्त शुक्र, युद्धप्रियता एवं दंभ से युक्त ऊर्जा।
इन तीनों के संयुक्त योग का विश्लेषण दीपक संख्या, वार्तोका संख्या, दिशा, रंग, और नये वस्त्र/वस्तु/चूड़ी/आभूषण प्रयोग के प्रभावों सहित प्राचीन ग्रंथों के प्रमाणों के साथ।

Aपूर्वाषाढा नक्षत्र में विवाह, वस्त्र-अभूषण धारण, घर में नई वस्तु लाना या शुभ प्रयोग करना विशेषतया शुभ फल देता है। यह नक्षत्र जयप्रद और उत्कर्षदायक माना गया है।

B- भद्रा काल में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। यदि भद्रा में शुभ कार्य किया जाए तो शस्त्र का भय, रोग, और विघ्न उत्पन्न होता है।

यह स्पष्ट निषेध है कि भद्रायां (यानी भद्राकाल) में नए वस्त्र पहनना, गृहप्रवेश, वाहन, विवाह, प्रतिष्ठा, दान, या शुभारंभ वर्जित माने गए हैं।

C-   भद्राकाल का विवरण

पक्ष

भद्रा का समय

 

कृष्ण पक्ष

प्रायः द्वितीया, सप्तमी, दशमी, त्रयोदशी तिथियों में

शुक्ल पक्ष

प्रायः चतुर्थी, नवमी, द्वादशी आदि में

भद्रा काल में जो मनुष्य कोई कार्य करता है, उसे निश्चित रूप से धन, वस्त्र या संपत्ति का नाश, धोखा और रोग का कष्ट सहना पड़ता है।

He who performs any task during Bhadra Kala faces certain loss of wealth, betrayal, and suffering from illness.

  A.

1. तिथि संदर्भ द्वितीया तिथि:

📜 निरण्यसिन्धु, व्रतकाण्ड, तिथ्यधिकारे

"द्वितीया शुक्लपक्षे तु शुभा सर्वार्थसिद्धिदा।"

शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि सभी कार्यों के लिए शुभफलदायिनी होती है। विशेषतः शुभारंभ, नवीन वस्त्र धारण, घर में नए निर्माण, लेन-देन आदि के लिए उत्तम मानी गई है।


2. वार संदर्भ शुक्रवार:

📜 स्कन्द पुराण, नागरखण्ड, वारविचार

"शुक्रवासरे शुभं दानं, वस्त्रधारणमुत्तमम्।"

शुक्रवार को दान, वस्त्रधारण, सुगंध प्रयोग, आभूषण, और सभी भोग-संबंधित क्रियाएं शुभ मानी जाती हैं।


3. नक्षत्र संदर्भ पूर्वाषाढा नक्षत्र:

📜 जातक पारिजात, अध्याय 8, नक्षत्र फल

"पूर्वाषाढायां विवाहे च वस्त्राभरणधारणे च शुभम्।"

पूर्वाषाढा नक्षत्र में विवाह, वस्त्र-अभूषण धारण, घर में नई वस्तु लाना या शुभ प्रयोग करना विशेषतया शुभ फल देता है। यह नक्षत्र जयप्रद और उत्कर्षदायक माना गया है।


4. नए वस्त्र / वास्तु प्रयोग हेतु पूर्ण योग विचार:

यदि कोई कार्य शुक्रवार + द्वितीया तिथि + पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के दिन करना चाह रहा हो, जैसे:

  • नवीन वस्त्र पहनना
  • नया वाहन, भूमि, संपत्ति खरीदना
  • गृह निर्माण या शिलान्यास
  • नया व्यापार आरंभ

तो यह संयोग पूर्णतः शुभ और यश वर्धक है।


5. संयुक्त निर्णय (संहिता मत):

📜 मूहूर्त चिंतामणि, चूडामणि प्रकरण

"शुक्रे द्वितीयायुक्ते पूर्वाषाढायां शुभं शुभं।
वस्त्राणां धारणं श्रेष्ठं गृहप्रवेशादिकं शुभम्॥"

जब शुक्रवार द्वितीया तिथि और पूर्वाषाढा नक्षत्र का संयोग हो, तब नए वस्त्र धारण, गृह प्रवेश, वास्तु प्रयोग, और नये कार्यों की शुरुआत सर्वथा शुभ मानी जाती है।

निष्कर्ष (Conclusion):

तत्व

निर्णय

वार

शुक्रवार शुभ

तिथि

द्वितीया शुभफलदायिनी

नक्षत्र

पूर्वाषाढा जयदायक, उन्नतिकारक

कुल योग

नवीन वस्त्र / वस्तु / निर्माण के लिए पूर्णतः शुभ


B-But Under Specific condition

DUE To BHADRA -+ भद्र (अशुभ) समय वर्जन से संबंधित "बाहुसंहिता" और "ज्योतिष सार" जैसे ग्रंथों से प्रमाण सहित श्लोक और अर्थ देना, विशेषतः नये वस्त्र, वास्तु प्रयोग या कार्य आरंभ के संदर्भ

भद्राकाल का विवरण

पक्ष

भद्रा का समय

 

कृष्ण पक्ष

प्रायः द्वितीया, सप्तमी, दशमी, त्रयोदशी तिथियों में

शुक्ल पक्ष

प्रायः चतुर्थी, नवमी, द्वादशी आदि में

1. बाहुसंहिता से श्लोक (Bāhusamhitā Grantha)

📜 बाहुसंहिता, अध्याय 9, मुहूर्त विचार:

"न भद्रायां शुभं कार्यं, न च क्रूरगते शुभम्।
भद्रायां शस्त्रवर्षाश्च रोगाश्च जायते ध्रुवम्॥"

भद्रा काल में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। यदि भद्रा में शुभ कार्य किया जाए तो शस्त्र का भय, रोग, और विघ्न उत्पन्न होता है।

यह स्पष्ट निषेध है कि भद्रायां (यानी भद्राकाल) में नए वस्त्र पहनना, गृहप्रवेश, वाहन, विवाह, प्रतिष्ठा, दान, या शुभारंभ वर्जित माने गए हैं।


✅ 2. ज्योतिष सार ग्रंथ से श्लोक (Jyotiṣa Sāra)

📜 ज्योतिष सार, काल निर्णयाध्यायः

"भद्रा पृष्ठगता क्रूरा, पूर्वे तिष्ठति भीषणम्।
तया कार्यं विनाशं यान्ति, जीवनं च विनश्यति॥"

जब भद्रा पूर्वमुखी (पूर्वभाग) में होती है, तब वह अत्यंत भयावह फल देती है। यदि उस समय में कोई भी कार्य किया जाए तो वह कार्य नष्ट होता है, और हानि अथवा जीवन को भी संकट में डाल देता है।

विशेषतः भद्रा के पृष्ठभाग (पीछे) में यात्रा करना शुभ, किंतु मुख या अग्रभाग में कोई भी नया कार्य करना पूर्णतः निषिद्ध है।

🔷 1. भद्र बाहुसंहिता (Bhadra Bāhusamhitā) – भद्राकाल वर्जन

📜 अध्याय कालविचार, श्लोक:

"भद्रायां कर्म कुर्वाणो, द्रव्यनाशं लभेत् ध्रुवम्।
नरो वञ्च्यते नित्यं, व्याधिभिः पीड्यते श्लथम्॥"
भद्रा काल में जो मनुष्य कोई कार्य करता है, उसे निश्चित रूप से धन, वस्त्र या संपत्ति का नाश, धोखा और रोग का कष्ट सहना पड़ता है।

🔸 English Translation:
He who performs any task during Bhadra Kala faces certain loss of wealth, betrayal, and suffering from illness.


🔷 2. ज्योतिष सार (Jyotiṣa Sāra) – दान वर्जन

📜 दानविचार अध्याय:

"अशुद्धे दिने दत्तं तु, फलहीनं प्रकीर्तितम्।
भद्रायां च विशेषेण, दानं दुःखाय केवलम्॥"
जो दान अशुद्ध दिन (जैसे भद्रा में) किया जाता है, वह फलहीन होता है। विशेषतः भद्राकाल में किया गया दान दुःख और हानि को ही जन्म देता है।

🔸 English Translation:
Charity done on impure days (like during Bhadra) yields no merit and leads to sorrow and misfortune.


🔷 3. बृहत्जातक (Bṛhat Jātaka) – नक्षत्र विचार (पूर्वाषाढा)

📜 नक्षत्रविचार, श्लोक:

"पूर्वाषाढा जयायुक्ता, विवाहे दानकर्मणि।
वस्त्राभरणधारणे च, शास्त्रज्ञैः शुभदा स्मृता॥"
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र को विजय, विवाह, दान, वस्त्र पहनने और गहने प्रयोग में उपयोगी व शुभ फलदायी बताया गया है।

🔸 English Translation:
The Purva Ashadha Nakshatra is considered auspicious for victory, marriage, charity, wearing clothes and ornaments, as per sages.

यदि भद्राकाल न हो, तो यह नक्षत्र नवीन वस्त्र-वस्तु प्रयोग के लिए उत्तम है।


🔷 4. सारावली (Sārāvalī) – मुहूर्त का प्रभाव

📜 मूहूर्ताध्याय:

"शुभे मुहूर्ते यः कुर्यात् कर्म, तत् समृद्ध्यै सदा भवेत्।
विपरीते तु यत् कर्म, नश्यति सत्त्वतः क्षणात्॥"
जो कार्य शुभ मुहूर्त में किया जाता है, वह सदा सफलता व समृद्धि देता है।
परंतु अशुभ मुहूर्त (जैसे भद्रा या दानवर्ज्य दिन) में किया गया कार्य शीघ्र ही विनष्ट हो जाता है

🔸 English Translation:
Work done in an auspicious muhurta leads to success and prosperity.
The same, if done in inauspicious times, leads to instant failure.


🔷 5. मूहूर्त चिंतामणि (Muhūrta Chintāmaṇi) – वस्त्र व वास्तु प्रयोग

"वस्त्रधारणं सुपर्वण्यां, शुभे च नक्षत्रसंयुते।
पूर्वाषाढायां च विशेषेण, यशो वृद्धिं सदा लभेत्॥"
यदि कोई व्यक्ति शुभ वार व नक्षत्र में वस्त्र धारण करे, और वह पूर्वाषाढा नक्षत्र हो, तो उसे यश, मान-सम्मान और समृद्धि प्राप्त होती है।

🔸 English Translation:
Wearing new clothes or starting auspicious tasks during Purva Ashadha Nakshatra leads to fame, prosperity, and recognition.


🔷 6. मूहूर्त मार्तण्ड (Muhūrta Mārtaṇḍa) – भद्रा में दान वर्जन

📜 दाननिषेधविचार, श्लोक:

"दानं यत्र निषिद्धं स्यात्, तत्र धारणमेव न।
भद्रायां च विशेषेण, सर्वकर्मप्रणाशकः॥"
जहाँ दान निषिद्ध होता है, वहाँ वस्त्र या अन्य वस्तु का प्रयोग भी वर्जित होता है। भद्राकाल में किया गया कोई भी कार्य विनाशक होता है।

🔸 English Translation:
Where charity is prohibited, even wearing or using new items is discouraged. All deeds during Bhadra Kala are destructive.

 


प्रमुख निषेध सतर्कताएँ

नूतन वस्त्र, चूड़ी, आभूषण का प्रयोग करें
पूर्व दिशा में यात्रा या नया आरंभ करें
नीला, चमकीला रंग पहनें
ध्यान करें, विशेषकर स्त्रियां: यह योग कलह, अशांति अपयश दे सकता है।

🪔 दीपदान फल

शुभ दीपदान से शुक्र दोष की शांति, पारिवारिक कलह में सुधार, विवाह संबंधित अड़चनों में राहत मिलती है।

वर्जित दान

🔻 वस्त्र, तिल, स्वर्ण, श्रृंगार या रत्नयुक्त वस्तुओं का दान करेंअनिष्टकारी फल प्राप्त होते हैं।

पूर्वाषाढायां शुक्रवासरे द्वितीयायां विशेषतः।
स्वर्णवस्त्रयुगं दत्तं, विपत्तिं जनयेद् ध्रुवम्॥” – नारद संहिता

  **********************************

 वर्जित वस्त्र-वस्तु प्रयोग

📌 शुक्रवार + द्वितीया + पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में निम्न वस्त्रों और वस्तुओं का प्रयोग वर्जित है, शास्त्रों में इसे अनिष्टकारी बताया गया है।
🔴 शास्त्रीय प्रमाण:
पूर्वाषाढायां शुक्रवासरे द्वितीयायां विशेषतः।
स्वर्णवस्त्रयुगं दत्तं, विपत्तिं जनयेद् ध्रुवम्॥” – नारद संहिता
📝 अर्थ:
सोना, वस्त्र, चूड़ियाँ, गहने, रत्नयुक्त वस्तुओं का दान या प्रयोग कष्टकारक होता है🔶 पूर्वाषाढ़ा में वर्जित वस्त्र-वस्तु-दान | Forbidden Items in Purvashada Nakshatra

📜 बृहत्संहिता, अध्याय 27

पूर्वाषाढायां न वस्त्राणि न धातूनि न भूषणम्। ग्रहपीडां प्रदद्याच्च रोगशोकार्तिमान् भवेत्॥

👉 अर्थ: पूर्वाषाढ़ा में नये वस्त्र, धातुएं (सोना-चांदी) या आभूषण धारण नहीं करेंइससे ग्रहदोष, रोग व मानसिक कष्ट हो सकता है।

📜 नक्षत्रचूड़ामणि

पूर्वाषाढायां तैलत्यागः, न देयं तण्डुलं घृतम्। न देयं फलमिष्टं च, न वस्त्रं, न सुवर्णकम्॥

👉 अर्थ: पूर्वाषाढ़ा में तेल, घी, चावल, प्रिय फल, वस्त्र और सोने का दान वर्जित हैये दान करने से पुण्य के बजाय दोष मिलता है।

📌 विशेष वर्जित वस्तुएं:

              वस्त्र (विशेषकर नये)

                  तेल-घी

                  चावल

            प्रिय फल

          सोना-चांदी

                 आभूषण

आज के कार्यों की प्राथमिकता | Priority Work of the Day

                  खुदाई कार्य, घर एवं कल्याणकारी गतिविधियाँ, गणित, ज्योतिष और खुदाई से जुड़े कार्य शुभ रहेंगे।

Excavation-related work, home or welfare activities, mathematics, astrology, and similar tasks will be favorable today.

🔶 नए वस्त्र पहनने का प्रभाव | Effect of Wearing New Clothes

                  नए वस्त्र पहनने से अचानक बीमारी या मानसिक तनाव उत्पन्न हो सकता हैइससे बचें।

Wearing new clothes today may result in sudden illness or mental stress – avoid it.

🔷 दान और सेवन का सुझाव | Donation & Food Recommendations

                     अनुकूल दान नमक, शक्कर, तिल।

Auspicious Donations – Salt, Sugar, Sesame Seeds.

           अनुकूल खाद्य पदार्थनींबू, आंवला, शक्कर, तिल, चावल।

Favorable Foods – Lemon, Indian Gooseberry (Amla), Sugar, Sesame, Rice.

                    त्यागने योग्य खाद्य पदार्थसिंघाड़ा, इलायची, मक्खन, स्वादिष्ट एवं भारी भोजन।

Avoidable Foods – Water Chestnut, Cardamom, Butter, Rich and Heavy Meals.

🔶 नववस्त्र आदि प्रयोगशास्त्रीय निषेध:

पूर्वाषाढायां न वस्त्राणि न रत्नं नालंकारिकम्।” — मुहूर्त चिंतामणिः, नक्षत्राध्यायः

अर्थ: पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में वस्त्र, रत्न, और आभूषण धारण नहीं करने चाहिए।

षष्ठ्यां न कर्म न व्रतं न दानं शस्तमादिशेत्।” — नारद संहिता

  🪔 दीपक दीपदान विधि

📜 दीपक की संख्या: 11 या 21
📍 दिशा: ईशान कोण में रखें
🪔
प्रकार: तिल के तेल का दीपक, दो बातियों वाला

🔴 दीप पूजन मंत्र:
शुभं करोति कल्याणं, आरोग्यं धनसंपदाम्।
शत्रुबुद्धिविनाशाय, दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते॥” – स्कन्द पुराण

🔴 वैदिक मंत्र:
तमसो मा ज्योतिर्गमय।” – बृहदारण्यक उपनिषद्

    वर्जित दान सामग्री

🔻 सोना / आभूषणविपत्ति यशहानि
🔻 वस्त्र (विशेषतः रेशमी) – रोग शत्रु वृद्धि
🔻 तिल / घृत / चूड़ीमानसिक क्लेश ग्रहबाधा
चूड़ीयुक्तं रत्न युक्तं, स्त्रीद्रव्यं यत् प्रदीयते।
शुक्रे द्वितीयायां पूर्वाषाढायां, सर्वनाशाय कल्पते॥” – देवीभागवत

(Conclusion Summary):

विषय

शास्त्रीय निर्णय

पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में

यदि भद्रा न हो तो वस्त्र, दान, गृहप्रवेश, शुभ प्रयोग अत्यंत शुभ

भद्राकाल में

कोई भी कार्य जैसे दान, वस्त्र धारण, नया प्रयोग, पूर्णतः वर्जित

दान वर्जित दिन में

दान करने पर पुण्य नहीं मिलता, हानि और रोग का भय

✅         संकल्प उपाय

📜 संकल्प मंत्र:
विष्णुर्वै सत्यं संकल्पोऽहमिदं कार्यं करिष्ये।
शुक्र दोष निवारणार्थं, दीपदानं करिष्ये।
🔆 व्रत: जलव्रत, फलाहार, श्वेतवस्त्र धारण करें
🔆 जाप: “ शुक्राय नमः” – 108 बार
🔆 स्तुति: त्रिपुरा देवी अथवा लक्ष्मी स्तोत्र

🌸 त्रिपुरा देवी अर्चना स्तोत्र

🔴 स्तोत्र:
त्रिपुरायै विद्महे, महात्रिपुरसुन्दर्यै धीमहि।
तन्नो देवी प्रचोदयात्॥” – त्रिपुरा गायत्री मंत्र

त्रैलोक्यजननीं देवीं त्रिपुरां परमेश्वरीम्।
नमामि भक्तनिलयां सौंदर्यार्णवसागराम्॥” – देवी उपासना तंत्र

क्लीं सौः ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुरे देवी नमोऽस्तु ते।
सर्वदुःखनिवारिणि, सर्वसंपत्प्रदायिनि॥

 

” – तन्त्रसार संहिता

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सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...