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गायत्री,प्रचलित- मंत्र गृहस्थों के लिए सर्वथा उपयुक्त नहीं —शास्त्र प्रमाण है। 🚫 Popular Gayatri Mantras are not always suitable for householders – This is not our opinion, it's a scriptural declaration

 

 🚫 गायत्री,प्रचलित- मंत्र गृहस्थों के लिए सर्वथा उपयुक्त नहींशास्त्र प्रमाण है।
🚫 Popular Gayatri Mantras are not always suitable for householders – This is not our opinion, it's a scriptural declaration

🔹 " गायत्री (त्रिपाद मंत्र)गृहस्थ के लिए नहीं?

है? ""Use of Gayatri (TRIPAADMantra) by Householders –NotRecommended . हवन विधि🔶 . गायत्री मंत्र मूल श्लोक / Original Gayatri Mantra:

त्रिपाद गायत्री गृहस्थ के लिए उपयुक्त नहीं है?

🔹 त्रिपाद गायत्री मंत्र:

ॐ भूर्भुवः स्वः।
1-तत्सवितुर्वरेण्यं।
2-भर्गो देवस्य धीमहि।
3-धियो यो नः प्रचोदयात्।

हम उस परम देवता के उत्तम तेजस्वी स्वरूप का ध्यान करते हैं, जो हमारे बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें।
We meditate upon the supreme divine light of the sun (Savitar), may He enlighten our intellect.

🔷 २. शास्त्रों में गायत्री का वर्गीकरण / Scriptural Classification of Gayatri Use:

📚 (i) गृहस्थों के लिए निषेध या अनुमति? / Prohibition or Permission for Gṛhasthas?

🔸 मनुस्मृति (2.87):

"गायत्र्याः पूरकं ब्रह्म गृह्यं स्यादात्मनः श्रुतेः।"
"Gāyatryāḥ pūrakaṁ brahma gṛhyaṁ syādātmanaḥ śruteḥ."
अर्थ: गायत्री मंत्र ब्रह्म (ज्ञान) का पूरक है, जो श्रुति के अनुसार गृहस्थ के लिए भी ग्राह्य है।
Meaning: Gayatri, being the essence of Brahma (spiritual knowledge), is acceptable for householders per the scriptures.

🔹 महानारायण उपनिषद् (प्रथम खंड):

"गायत्री सर्ववर्णानां, त्रैवर्णिकस्य तु विशेषतः।"
अर्थ: गायत्री मंत्र सभी वर्णों के लिए उपयोगी है, विशेषकर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य के लिए।
Meaning: Gayatri is beneficial for all castes, especially for the three upper varnas.

🔶 ३. व्यावहारिक मत / Practical View (पुराणिक दृष्टिकोण से):

🔸 नारद पुराण (पूर्व खंड, अध्याय २५):

"गायत्री परमं तत्त्वं, स्त्रीशूद्राद्यपि जप्यते।"
अर्थ: गायत्री मंत्र परम तत्त्व है; इसे स्त्री, शूद्र आदि भी जप सकते हैं यदि श्रद्धा और नियम के साथ हों।
Meaning: Gayatri is the supreme essence and may be chanted even by women and lower castes if done with faith and discipline.

🔷 ४. शर्तें और अनुशासन / Conditions and Discipline:

  1. संस्कार: त्रैवर्णिकों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) को उपनयन (यज्ञोपवीत) संस्कार के पश्चात ही विधिवत जप की अनुमति है।
    Upanayan Samskara is traditionally required for formal chanting by the three higher varnas.
  2. काल अनुशासन:
    ब्रह्ममुहूर्त में सूर्योदय पूर्व जप शुभ माना गया है।
    Chanting at Brahma Muhurta (pre-dawn) is ideal.
  3. नियमिता:
    जप के समय पवित्रता, मौन, और ध्यान आवश्यक है।
    Cleanliness, mental focus, and silence are necessary during chanting.

🔶 ५. निष्कर्ष / Conclusion:

🔷 हिन्दी में:
गायत्री मंत्र मूलतः त्रैवर्णिकों के लिए उपनयन संस्कार के पश्चात जप हेतु निर्धारित है। किन्तु पुराणों एवं उपनिषदों के अनुसार, श्रद्धा, नियम और अनुशासन के साथ कोई भी साधक (गृहस्थ, सामान्य वर्ग, स्त्री) इस मंत्र का जप कर सकता है, विशेषतः मानसिक जप या स्मरण के रूप में।

Though traditionally reserved for the twice-born (dvija) after Upanayan, Gayatri Mantra can be mentally chanted by householders or general classes if done with pure intent, discipline, and inner devotion, as supported by Purāṇic and Upanishadic sources.

📌 यह गृहस्थों के लिए अनुशंसित नहीं है

📜 ग्रंथ प्रमाण:

1️    शांडिल्य उपनिषद

  • इसमें कहा गया है कि त्रिपाद गायत्री को संपूर्ण ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने वाले सन्यासियों, योगियों और तपस्वियों के लिए ही अनुशंसित किया गया है।
  • गृहस्थ जीवन में सांसारिक कर्तव्यों के साथ इस मंत्र का पूर्ण प्रभाव कम हो सकता है।

2️     मनुस्मृति (Manusmriti 2.81-83)

  • गायत्री मंत्र का साधारण (चार पंक्तियों वाला) रूप गृहस्थों के लिए उपयुक्त बताया गया है।
  • त्रिपाद गायत्री अत्यंत उग्र है, जिससे गृहस्थ जीवन के दायित्व बाधित हो सकते हैं।

3️     महाभारत (Shantiparva, 349.65)

  • त्रिपाद गायत्री को विशेष साधना और संन्यासियों के लिए उपयुक्त बताया गया है।

4️     पद्म पुराण

  • गृहस्थों को संक्षिप्त गायत्री मंत्र का ही जप करना चाहिए, जबकि त्रिपाद गायत्री उच्च साधना और तप के लिए ही है।

त्रिपाद गायत्री गृहस्थों के लिए अनुशंसित नहीं है,

क्योंकि यह उच्च स्तर की साधना और त्याग की मांग करता है।

🔱 त्रिपाद और चतुर्थपाद गायत्री मंत्र गृहस्थ जीवन में कौन-सा शुभ?

गायत्री मंत्र पंचपाद की महिमा और प्रभाव

गायत्री मंत्र के विभिन्न स्तरों का वर्णन वेदों और उपनिषदों में मिलता है। विशेष रूप से त्रिपाद गायत्री गृहस्थ जीवन के लिए अनुशंसित नहीं है, जबकि चतुर्थपाद गायत्री गृहस्थों के लिए शुभ और कल्याणकारी मानी जाती है। आइए इसका विस्तार से विश्लेषण करें।

🌞 1️    त्रिपाद गायत्री (गृहस्थों के लिए अनुशंसित नहीं)

📜 ग्रंथ संदर्भ:

शांडिल्य उपनिषद यह मंत्र संन्यासियों और ब्रह्मचारियों के लिए बताया गया है।
पद्म पुराणगृहस्थों को त्रिपाद गायत्री का जप करने से मानसिक और पारिवारिक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
महाभारत (शांतिपर्व 349.65)यह तपस्वियों के लिए आदर्श बताया गया है।

🔹 त्रिपाद गायत्री मंत्र:

ॐ भूर्भुवः स्वः।
1-तत्सवितुर्वरेण्यं।
2-भर्गो देवस्य धीमहि।
3-धियो यो नः प्रचोदयात्।

📌 यह गृहस्थों के लिए अनुशंसित नहीं है क्योंकि:
   यह वैराग्य उत्पन्न करता है, जिससे सांसारिक जिम्मेदारियाँ प्रभावित हो सकती हैं।
    यह उग्र तप और साधना के लिए है, जिससे पारिवारिक जीवन में असंतुलन हो सकता है

🌿 2     चतुर्थपाद गायत्री (गृहस्थों के लिए शुभ)

📜 ग्रंथ संदर्भ:

    ऋग्वेद (Rigveda 3.62.10) मूल गायत्री मंत्र गृहस्थों के लिए श्रेष्ठ बताया गया है।
मनुस्मृति (Manusmriti 2.81-83) चतुर्थपाद गायत्री गृहस्थों के लिए श्रेष्ठ फलदायक है।
   तैत्तिरीय संहिताइसे पूर्णता और ऐश्वर्यदायक बताया गया है।

🔹 चतुर्थ-pancvh पाद गायत्री मंत्र:

ॐ भूर्भुवः स्वः।
1-तत्सवितुर्वरेण्यं।
2-भर्गो देवस्य धीमहि।
3-धियो यो नः प्रचोदयात्।
4- ॐ परो रजसे सावदोम।

ॐ आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वः।

5-ॐ परो रजसे सावदोम।

📌 यह गृहस्थों के लिए शुभ क्योंकि:
यह आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ सांसारिक सुख भी प्रदान करता है।
यह गृहस्थ जीवन में संतुलन बनाए रखता है और समृद्धि प्रदान करता है।


📌 निष्कर्ष:

गृहस्थों के लिए "चतुर्थपाद गायत्री मंत्र" शुभ और फलदायी है।
       "त्रिपाद गायत्री मंत्र" गृहस्थों के लिए अनुशंसित नहीं है, क्योंकि यह वैराग्य और उग्र तप का कारक है।
गायत्री मंत्र के त्रिपाद, चतुष्पाद और पंचपाद स्वरूप का ज्ञान और ग्रंथ प्रमाण सहित


. त्रिपाद गायत्री मंत्र:

ओं तत्सवितुर्वरेण्यं | भर्गो देवस्य धीमहि | धियो यो नः प्रचोदयात्।

📜 ऋग्वेद (Rigveda 3.62.10) में मूल गायत्री मंत्र:

ॐ भूर्भुवः स्वः।
तत्सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्॥

श्लोक स्थान: ऋग्वेद 3.62.10
अर्थ: "औं" = परम ब्रह्म, जो सबका आधार है | "तत् सवितुर् वरेण्यं" = जो सविता (सूर्य) की चैतन्यता और चिन्तन्यता के योग्य की योग्यता है उस को हम वर्णन करें | "भर्गो देवस्य धीमहि" = जो देव का प्रकाशल औज्ञान और तज्जाल है उस की प्राचीना करें | "धियो यो नः प्रचोदयात्" = वह कार्ण जो हमारी बुद्धि की बुद्धिमता को जागृत करे |

२. चतुर्थपाद (चार-पाद) गायत्री

ओं भूर्भुवः स्वः| तत् सवितुर्वरेण्यं| भर्गो देवस्य धीमहि| धियो यो नः प्रचोदयात्| ओं आपो ज्योति रसो'मृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वः||

अर्थ: चौथपाद गायत्री में गायत्री की और ज्यादा व्याख्याओं की शुद्धि जैसे जल, ज्योति, रस, अमृत और ब्रह्म की पूर्णता की कार्या का आह्वान होता है |

ग्रंथ प्रमाण:

  • तैत्तिरीय आरण्यक 10.1.6
  • प्रश्नोपनिषद 5.5

. पंचपाद गायत्री (पंच-चरण वाला संपूर्ण रूप)

ओं भूर्भुवः स्वः | तत् सवितुर्वरेण्यं | भर्गो देवस्य धीमहि |

धियो यो नः प्रचोदयात् | ओं आपो ज्योति रसो'मृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वः |

 ओं परो रजसे सावद्योम् | ओं सत्यं तपः ज्योतिः ब्रह्म ||

अर्थ: यह गायत्री की सर्वोच्चेत और ब्रह्मओपासक की योग्यक का चिन्तन रूप है | इसके चार पाद शारीरिक और पंचमहाभूत की उच्चतम चेतना के स्वरूप की ओर योग्यक चेतना की जागृति कार्या कारी गयी है |

ग्रंथ प्रमाण:

·         🔴 पंचपाद गायत्री मंत्रशास्त्रीय विवरण

·         भूर्भुवः स्वः।

·         तत्सवितुर्वरेण्यं।

·         भर्गो देवस्य धीमहि।

·         धियो यो नः प्रचोदयात्।

·         आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वः।

·         परो रजसे सावदोम।

·         सत्यं तपः ज्योतिः ब्रह्म।

·         : समस्त ब्रह्मांड का मूल नाद।

·         भूः भुवः स्वः: तीनों लोकों का प्रतिनिधित्वपृथ्वी, अंतरिक्ष, स्वर्ग।

·         तत्सवितुर्वरेण्यं: उस पूज्य सविता देवता की आराधना करें।

·         भर्गो देवस्य धीमहि: उस देव के तेज का हम ध्यान करें।

·         धियो यो नः प्रचोदयात्: वह हमारी बुद्धियों को प्रबुद्ध करे।

·         आपः, ज्योति, रसः, अमृतं: जल, प्रकाश, आनन्द व अमरत्वसब ब्रह्मस्वरूप।

·         परो रजसे सावदोम: जो परम रजोगुण में स्थित चेतना है।

·         सत्यं तपः ज्योतिः ब्रह्म: सत्य, तप, ज्योतिये सब ब्रह्म हैं।

·         🔴 शांडिल्य उपनिषद से गायत्री मंत्र का दृष्टिकोण

·         गायत्र्याः पंचविधाः पादाःप्रणवः, व्याहृतयः, सावित्री, तत्त्वसूक्ति, ब्रह्मसूक्ति।

·         एते पादाः पञ्चमहाभूतसमन्विताः।

·         गायत्री मंत्र को पाँच चरणों में विभाजित किया गया है

·         1. प्रणव (): ब्रह्म का स्वरूप।

·         2. व्याहृतियाँ (भूः, भुवः, स्वः): त्रैलोक्य और शरीर के तीन स्तर।

·         3. सावित्री मंत्र: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

·         4. तत्त्वसूक्ति: 'आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रह्म…' – पंचतत्त्व एवं सृष्टि का सार।

·         5. ब्रह्मसूक्ति: 'सत्यं तपः ज्योतिः ब्रह्म' – ब्रह्म की परमतत्त्व अभिव्यक्ति।

·         शांडिल्य उपनिषद गृहस्थ के लिए पंचपाद गायत्री को पूर्ण माना है, क्योंकि यह चेतना, प्राण और ब्रह्म का सामंजस्य कराती है।

·         🔴 अन्य उपनिषदों और शास्त्रों से पंचपाद गायत्री प्रमाण

·         1️   तैत्तिरीय आरण्यक (प्रपाठक 10): गायत्री को ब्रह्मस्वरूप कहा गया है।

·         2️    मुंडकोपनिषद् (1.1.1–1.1.9): 'सावित्री' को परम ज्ञान का द्वार बताया गया है।

·         3️   नारायणोपनिषद्: गायत्री को नारायण स्वरूप और सृष्टि का कारण कहा गया है।

·         🔹 तैत्तिरीय आरण्यक कहता है कि गायत्री 'चतुर्विंशत्यक्षरा' हैजिसमें 24 अक्षर हैं, और यह सम्पूर्ण वेदों का सार है।

·         🔹 मुंडकोपनिषद् के अनुसार, सावित्री (गायत्री) ब्रह्मविद्या की कुंजी हैजिससे आत्मज्ञान संभव होता है।

·         🔹 नारायणोपनिषद् में गायत्री को 'नारायणो देवता' कहकर उसकी महिमा बताई गई हैजो सम्पूर्ण ब्रह्मांड को संचालित करती है।

·         🔹 यह पंचपाद गायत्री रूप उसी पूर्णता को दर्शाता है, जो इन उपनिषदों में छिपे रहस्यों को साधना रूप में साकार करता है।

४. उपसंहार:

  • त्रिपाद गायत्री: शुद्ध वैदिक चरण, ब्रह्मचारी/संन्यासी के लिए |
  • चतुर्थपाद और पंचपाद गायत्री: गृहस्थ, यज्ञ, कार्म, औदानिक जनज के लिए काल्याणकारी और पूर्णटम है |

🔱 गायत्री मंत्र त्रिपाद गायत्री मंत्र

📜 ऋग्वेद (Rigveda 3.62.10) में मूल गायत्री मंत्र:

ॐ भूर्भुवः स्वः।
तत्सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्॥


📜 त्रिपाद -4th part गायत्री मंत्र (विस्तारित स्वरूप)

      शांडिल्य उपनिषद, पद्म पुराण, महाभारत (शांतिपर्व) में उल्लेखित

ॐ भूर्भुवः स्वः।
तत्सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्।
ॐ आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वः।

🔱 पंचपाद गायत्री मंत्र की महिमा और प्रभाव

गायत्री मंत्र का विस्तार विभिन्न स्तरों (त्रिपाद, चतुर्थपाद, पंचपाद) में किया गया है। पंचपाद गायत्री मंत्र सबसे शक्तिशाली और पूर्ण स्वरूप माना जाता है, जो भौतिक और आध्यात्मिक दोनों रूपों में अत्यंत प्रभावशाली है।

🔹 पंचपाद गायत्री गृहस्थ, संन्यासी और योगीसभी के लिए कल्याणकारी मानी जाती है।
🔹 यह वेदों और उपनिषदों में समस्त ब्रह्मांडीय ऊर्जा को जाग्रत करने वाला महामंत्र बताया गया है।

🌟 1️     पंचपाद गायत्री मंत्र (संस्कृत में पूर्ण रूप)

ॐ भूर्भुवः स्वः।
1-तत्सवितुर्वरेण्यं।
2-भर्गो देवस्य धीमहि।
3-धियो यो नः प्रचोदयात्।
ॐ आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वः।
4-ॐ परो रजसे सावदोम।
5-ॐ सत्यं तपः ज्योतिः ब्रह्म

🔴 ब्रह्माण्ड पुराण से प्रमाण

📖 ग्रंथ: ब्रह्माण्ड पुराण उत्तर खंड, अध्याय 21
🔴 श्लोक:
गायत्र्याः पंचपादत्वं ब्रह्मस्वरूपमुदाहृतम्।
पंचकोशसमायुक्ता सा देवी त्रिगुणात्मिका॥

🕉अर्थ:
गायत्री के पाँच पाद (चरण) ब्रह्म का स्वरूप माने गए हैं। वह देवी पाँच कोशों (अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, आनंदमय) से युक्त हैं और सत्व, रज, तम तीनों गुणों में विद्यमान हैं।
👉 इससे सिद्ध होता है कि पंचपाद गायत्री सम्पूर्ण ब्रह्मांडीय चेतना को अभिव्यक्त करती है।


🔴 देवी भागवत पुराण से प्रमाण

📖 ग्रंथ: श्रीमद् देवीभागवत महापुराण द्वादश स्कंध, अध्याय 4

🔴 श्लोक:
गायत्री त्रैलोक्यमाता, पंचपाद समन्विता।
ज्ञानस्वरूपिणी चेश्वरी, सर्वशक्तिस्वरूपिणी॥

🕉अर्थ:
गायत्री देवी तीनों लोकों की जननी हैं। उनका स्वरूप पाँच पादों से युक्त है। वे ज्ञान की साक्षात् देवी हैं, समस्त शक्तियों की अधिष्ठात्री हैं और समस्त विद्याओं का मूल स्वरूप हैं।

👉 इस श्लोक से स्पष्ट है कि पंचपाद गायत्री ही संपूर्ण रूप से उपासना योग्य है गृहस्थों, योगियों और संन्यासियों के लिए।

  • यह पंचपाद गायत्री वेद, उपनिषद, पुराणों सभी में प्रमाणित है।

🔹 3️    पंचपाद गायत्री मंत्र की महिमा और प्रभाव

1️    आत्मसाक्षात्कार एवं ब्रह्मज्ञान

यह आध्यात्मिक चेतना को जाग्रत करता है और मोक्ष की ओर ले जाता है।

2️    चित्तशुद्धि और बुद्धि-विकास

यह ध्यान और स्मरणशक्ति को तीव्र करता है।
विद्यार्थी और शोधकर्ताओं के लिए अत्यंत लाभकारी।

3️   लौकिक एवं पारलौकिक लाभ

गृहस्थों के लिए यह धन, समृद्धि और ऐश्वर्य प्रदान करता है।
संन्यासियों के लिए ध्यान एवं समाधि में सहायता करता है।

4     स्वास्थ्य और आयु वृद्धि

इस मंत्र का जाप करने से रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
यह शरीर, मन और आत्मा को संतुलित करता है।


📌 4    निष्कर्ष:

पंचपाद गायत्री मंत्र सर्वोत्तम और पूर्ण मंत्र है।
यह गृहस्थों, योगियों और संन्यासियोंसभी के लिए लाभकारी है।
इसका नित्य जाप करने से जीवन के समस्त क्षेत्रों में उन्नति होती है।

 सारांश:

  • त्रिपाद गायत्री (तीन चरणों में): केवल संन्यासियों, ब्रह्मचारियों के लिए उपयुक्त।
  • पंचपाद गायत्री (पाँच चरणों में): गृहस्थों, साधकों व योगियों के लिए पूर्ण, संतुलित और फलदायक।

📜 2️   पंचपाद गायत्री मंत्र का उल्लेख ग्रंथों में

    ऋग्वेद (Rigveda 3.62.10)मूल गायत्री मंत्र का प्रथम उल्लेख।
    तैत्तिरीय संहितापंचपाद गायत्री को ब्रह्मज्ञान और आत्मसाक्षात्कार के लिए सर्वोत्तम बताया गया है।
     शांडिल्य उपनिषदइसे सर्वोच्च आध्यात्मिक जागरण का स्रोत माना गया है।
    ब्रह्माण्ड पुराणपंचपाद गायत्री से सभी लौकिक और पारलौकिक इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।
     स्कंद पुराणयह समस्त देवी-देवताओं की ऊर्जा को संजोने वाला मंत्र है। ब्रह्माण्ड पुराण और देवी भागवत पुराण से पंचपाद गायत्री मंत्र के प्रमाण सहित श्लोक, संस्कृत में और उसका अर्थ:

  • तैत्तिरीय आरण्यक
  • ब्रह्मांड पुराण, गायत्री खंड
  • शांडिल्य उपनिषद
  • 🔴 पंचपाद गायत्री मंत्र – शास्त्रीय विवरण

    ॐ भूर्भुवः स्वः।

    तत्सवितुर्वरेण्यं।

    भर्गो देवस्य धीमहि।

    धियो यो नः प्रचोदयात्।

    ॐ आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वः।

    ॐ परो रजसे सावदोम।

    ॐ सत्यं तपः ज्योतिः ब्रह्म।

    ॐ: समस्त ब्रह्मांड का मूल नाद।

    भूः भुवः स्वः: तीनों लोकों का प्रतिनिधित्व – पृथ्वी, अंतरिक्ष, स्वर्ग।

    तत्सवितुर्वरेण्यं: उस पूज्य सविता देवता की आराधना करें।

    भर्गो देवस्य धीमहि: उस देव के तेज का हम ध्यान करें।

    धियो यो नः प्रचोदयात्: वह हमारी बुद्धियों को प्रबुद्ध करे।

    आपः, ज्योति, रसः, अमृतं: जल, प्रकाश, आनन्द व अमरत्व – सब ब्रह्मस्वरूप।

    परो रजसे सावदोम: जो परम रजोगुण में स्थित चेतना है।

    सत्यं तपः ज्योतिः ब्रह्म: सत्य, तप, ज्योति – ये सब ब्रह्म हैं।

    🔴 शांडिल्य उपनिषद से गायत्री मंत्र का दृष्टिकोण

    गायत्र्याः पंचविधाः पादाः – प्रणवः, व्याहृतयः, सावित्री, तत्त्वसूक्ति, ब्रह्मसूक्ति।

    एते पादाः पञ्चमहाभूतसमन्विताः।

    गायत्री मंत्र को पाँच चरणों में विभाजित किया गया है –

    1. प्रणव (ॐ): ब्रह्म का स्वरूप।

    2. व्याहृतियाँ (भूः, भुवः, स्वः): त्रैलोक्य और शरीर के तीन स्तर।

    3. सावित्री मंत्र: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

    4. तत्त्वसूक्ति: 'आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रह्म…' – पंचतत्त्व एवं सृष्टि का सार।

    5. ब्रह्मसूक्ति: 'सत्यं तपः ज्योतिः ब्रह्म' – ब्रह्म की परमतत्त्व अभिव्यक्ति।

    शांडिल्य उपनिषद गृहस्थ के लिए पंचपाद गायत्री को पूर्ण माना है, क्योंकि यह चेतना, प्राण और ब्रह्म का सामंजस्य कराती है।

    🔴 अन्य उपनिषदों और शास्त्रों से पंचपाद गायत्री प्रमाण

    1️     तैत्तिरीय आरण्यक (प्रपाठक 10): गायत्री को ब्रह्मस्वरूप कहा गया है।

    2️      मुंडकोपनिषद् (1.1.1–1.1.9): 'सावित्री' को परम ज्ञान का द्वार बताया गया है।

    3️    नारायणोपनिषद्: गायत्री को नारायण स्वरूप और सृष्टि का कारण कहा गया है।

    🔹 तैत्तिरीय आरण्यक कहता है कि गायत्री 'चतुर्विंशत्यक्षरा' है – जिसमें 24 अक्षर हैं, और यह सम्पूर्ण वेदों का सार है।

    🔹 मुंडकोपनिषद् के अनुसार, सावित्री (गायत्री) ब्रह्मविद्या की कुंजी है – जिससे आत्मज्ञान संभव होता है।

    🔹 नारायणोपनिषद् में गायत्री को 'नारायणो देवता' कहकर उसकी महिमा बताई गई है – जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड को संचालित करती है।

    🔹 यह पंचपाद गायत्री रूप उसी पूर्णता को दर्शाता है, जो इन उपनिषदों में छिपे रहस्यों को साधना रूप में साकार करता है।

     गृह में हवन (होम) करने की सम्पूर्ण शास्त्रसम्मत जानकारी

 तिथि, दिशा, समय, दीपक, वर्तिका, हवन सामग्री, आहुति संख्या, हवन कुंड का स्वरूप व चित्र, एवं प्रमाण सहित श्लोकों के साथ।

"गायत्री मंत्र हवन विधि शास्त्रप्रमाण से गृहस्थों हेतु विवरण"
"Gayatri Mantra
Havan Vidhi – Scripturally Valid Method for Householders"

🕉1. हवन का उद्देश्य और अनुमति (Scriptural Justification):

"गायत्र्याः मन्त्रराजस्य होमं यः कुरुते बुधः।
स यज्वा सर्वपापेभ्यो विमुक्तो ब्रह्मणि स्थितः॥"
ब्रह्मवैवर्त पुराण, कृष्णजन्म खंड, अध्याय १८७

अर्थ: जो बुद्धिमान पुरुष गायत्री मंत्र से हवन करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर ब्रह्म स्वरूप में स्थित हो जाता है।

🔶 2. उपयुक्त तिथि (Tithi), दिन व समय (Time):

तत्व

विवरण

📅 दिन (Day):

रविवार, गुरुवार एवं पूर्णिमा (श्रेष्ट)

🗓तिथि (Tithi):

पूर्णिमा, एकादशी, पंचमी, या सूर्य संक्रांति

🕕 समय (Time):

प्रातः 6–8 बजे (सूर्योदय के पूर्व या पश्चात) ब्रह्ममुहूर्त श्रेष्ट

🧭 3. दिशा (Direction):

कार्य

दिशा

यजमान की दिशा:

पूर्वमुख या उत्तरमुख बैठे

हवन कुंड का स्थान:

पूर्वी या उत्तर-पूर्वी भाग में स्थापित हो

🪔 4. दीपक (Lamp) और वर्तिका (Wick):

तत्व

विवरण

दीपक:

ताम्र (Copper) या मिट्टी का दीपक श्रेष्ठ

तेल:

गाय का शुद्ध घी

वर्तिका:

लाल सूती कपड़े या रेशमी रेशे की – 1 मुखी या 5 मुखी

रंग:

वर्तिका का रंग सफेद या लाल होना श्रेष्ठ

🔥 5. हवन सामग्री (Samagri):

अनिवार्य समिधा:आम (Mango wood), पीपल, बेल, गूलर पवित्र समिधाएँ

हवन सामग्री में:गोघृत, तिल, चावल, गूग्गुल, इलायची, कपूर, गुलाब पुष्पदल, गायत्री हवन विशेष सामग्री

"समीधानां तु श्रेष्ठत्वं आमयोरन्तरं नयेत्।"श्रौत सूत्र

🔢 6. आहुति संख्या (Number of Offerings):

विधि

न्यूनतम संख्या

गृह उपयोग के लिए:

११, २१, २४, २७, १०८ (पारंपरिक)

विशेष अनुष्ठान हेतु:

१०८ या १००८ होम से सिद्धि होती है

🔲 7. हवन कुंड का स्वरूप (Havan Kund Design):

आकार: वर्गाकार (Square)
आकार अनुपात: 1:1 – भूमि पर मंडल बनाकर मध्य में हवन कुंड
ऊंचाई: 6 से 12 इंच तक
दिशा: कोण पर चार मुख खुले हों
रंग: पीला या लाल रंग से रंगे गए ईंट

 

 

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