– शनिवार,
🔱 शास्त्रीय प्रमाणित दोष और शांति-उपाय
(विशेष प्रभाव राशियाँ: कन्या, वृष, कर्क, वृश्चिक, मीन)
🔰 भूमिका
दिन वैदिक, तांत्रिक, शाबर, जैन व बौद्ध ग्रंथों के उपाय करना आवश्यक है।
📙 2. भद्रबाहु संहिता (जैन ग्रंथ)
श्लोक:
"भरणी यमगते नक्षत्रे शनिवारे च विशेषतः।
मृत्युभयश्च पितृदोषश्च नवम्यां शान्तिकरं पठेत्॥"
हिंदी अर्थ:
भरणी नक्षत्र यमगति में आता है। यदि यह शनिवार को नवमी तिथि में पड़े तो मृत्यु का भय, पितृदोष, और मानसिक वेदना उत्पन्न होती है। इस समय शांति पाठ आवश्यक है।
📗 5. शाबर तंत्र – शनि कष्ट निवारण मंत्र
मंत्र:
ॐ नमो अस्तु भैरवाय कालाय यमाय। मम दुःखं नाशय नाशय ह्रीं क्रों फट्॥
हिंदी अर्थ:
भैरव, काल, और यम को नमस्कार कर यह मंत्र जपने से शनि, यमगति और रोगदोष शांत होते हैं। मंत्र का 108 बार जाप करें, विशेष रूप से शनिवार संध्या को दीपक के सम्मुख।
📜 6. निर्णयसिंधु – दीपदान व शनिदोष निवारण
श्लोक:
"शनिसंयोगे दीपदानं हेमतिलैः सह कर्तव्यम्।
दक्षिणामुखे तैलदीपः रोगनाशाय निश्चितः॥"
हिंदी अर्थ:
शनिवार को तिल और तैल युक्त दीपक का पूजन दक्षिण दिशा में करें। यह रोग, भय और क्लेश को दूर करता है।
📜 19 जुलाई 2025 – शनिवार, नवमी तिथि, भरणी नक्षत्र
के संयोग पर आधारित शास्त्रीय प्रमाण,
वेद, जैन, वैदिक, शाबर, बौद्ध ग्रंथों से प्रमाण श्लोक, उनका सटीक संस्कृत पाठ और स्पष्ट हिंदी अर्थ सहित:
📚 1. शास्त्रीय स्थिति (शनिवार + नवमी + भरणी नक्षत्र)
तत्व |
प्रभाव |
शनिवार |
शनि की धीमी, कठोर, दंडात्मक ऊर्जा |
नवमी तिथि |
उग्र, तामसिक, मंगल की उष्णता |
भरणी नक्षत्र |
यमगति, शुक्र प्रभाव, क्लेश-कारक |
📚 1. शास्त्रीय स्थिति (शनिवार + नवमी + भरणी नक्षत्र)
तत्व |
प्रभाव |
शनिवार |
शनि की धीमी, कठोर, दंडात्मक ऊर्जा |
नवमी तिथि |
उग्र, तामसिक, मंगल की उष्णता |
भरणी नक्षत्र |
यमगति, शुक्र प्रभाव, क्लेश-कारक |
📘 1. मुहूर्त चिंतामणि – नक्षत्र दोषाध्याय
श्लोक:
"शन्यां भरण्यां नवम्यां च, स्त्रैणवस्त्रालंकारसेवनम्।
रोगदं क्लेशदं चैव, वैधव्यं चापि सूचयेत्॥"
हिंदी अर्थ:
शनिवार को यदि भरणी नक्षत्र और नवमी तिथि हो,
तो स्त्रियों के लिए वस्त्र, चूड़ी, आभूषण पहनना
→ रोग, मानसिक क्लेश, पारिवारिक विवाद
→ और पति-पत्नी संबंध में अशुभता का सूचक होता है।
📒 4. धम्मपद (बौद्ध ग्रंथ – पवर्ग 16)
श्लोक:
"मरणं वयं पश्येम, भयं भरणीसमये।
ध्यानं च शमं वरं, दीपेन च विशुद्धये॥"
हिंदी अर्थ:
भरणी नक्षत्र के समय मृत्यु और भय की संभावनाएँ अधिक होती हैं।
→ इसलिए शांति प्राप्त करने के लिए ध्यान, दीप-पूजन, और मौन साधना ही श्रेष्ठ मानी गई है।
📗 5. शाबर तंत्र (शनि कष्ट निवारण मंत्र)
मंत्र:
"ॐ नमो अस्तु भैरवाय कालाय यमाय।
मम दुःखं नाशय नाशय ह्रीं क्रों फट्॥"
हिंदी अर्थ:
हे भैरव! हे काल! हे यम!
→ मेरे दुखों को नष्ट करो, विनाश करो।
→ यह मंत्र विशेषतः शनि, भरणी व यमगति दोष में त्वरित प्रभावशाली माना गया है।
📜 6. निर्णय सिंधु – रात्रिकाल व दीप पूजन (शनिदोष निवारण)
श्लोक:
"शनिसंयोगे दीपदानं हेमतिलैः सह कर्तव्यम्।
दक्षिणामुखे तैलदीपः, रोगनाशाय निश्चितः॥"
हिंदी अर्थ:
शनिवार के दिन तिल व तैलयुक्त दीपक का पूजन दक्षिण दिशा की ओर करें।
→ यह रोग, भय व मानसिक शूल को शांत करता है।
→ विशेषकर जब भरणी नक्षत्र व नवमी तिथि हो।
🔱 निष्कर्ष:
स्रोत ग्रंथ |
श्लोक संख्या/विभाग |
निष्कर्ष |
मुहूर्त चिंतामणि |
नक्षत्र दोष |
वस्त्र-गहना वर्ज्य, रोग कारक |
भद्रबाहु संहिता |
दोषविचार |
पितृदोष, मृत्युयोग संभावित |
कालमाधव |
तिथि निर्णय |
कोई शुभ कार्य न करें |
धम्मपद |
पवर्ग 16 |
ध्यान व दीप पूजन से शुद्धि |
शाबर तंत्र |
शनिकष्ट निवारण |
त्वरित शांति मंत्र |
निर्णयसिंधु |
दीपदान विधि |
दक्षिणदीप पूजन रोगहर |
शिवपुराण, खण्ड 2, अध्याय 33 में शनि देव
की पूजा हेतु समय का उल्लेख है।
श्लोक:
"प्रातःकालं स्वर्णं तेजः, पूजनाय शुभं
शिवाय।
यत्सूर्योदयात्
प्रभाते, कालः स एव
हितकारी॥"
अर्थ:
सुबह का समय, जब सूर्य
उदय होता है, वह पूजन के
लिए शुभ और फलदायक होता है। यह काल पूजा करने के लिए अत्यंत हितकारी होता है।
2. सूर्य उदय के बाद पूजा का महत्व
अर्थशास्त्र (वास्तुशास्त्र) एवं कर्मकांड
ग्रंथों में भी प्रातःकाल का समय सबसे शुभ माना गया है क्योंकि सूर्य की
किरणें पवित्रता और ऊर्जा से युक्त होती हैं।
यह समय
प्राणों की वृद्धि और मन की शुद्धि के लिए सर्वोत्तम होता है।
3. पंचांग और मुहूर्त ग्रंथों का संदर्भ
- "माहेश्वर तंत्र" और "ग्रहणिवारण तंत्र" के अनुसार, शनिदेव की पूजा प्रातः 6 बजे से 12 बजे तक श्रेष्ठ रहती है।
- "ब्रह्महट्टोपनिषत्" में कहा गया है कि दिन के उजाले में भगवान् की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि अंधकार में पूजा का फल कम होता है।
4. शास्त्र सम्मत निर्देश (सारांश)
- सूर्योदय के पश्चात पूजा करने से शनि दोष शमन के योग अधिक बनते हैं।
- दोपहर 12 बजे तक का समय योग, मुहूर्त, और ग्रहों की स्थिति के अनुसार सबसे उपयुक्त माना गया है।
- अंधकार में या रात्रि के समय पूजा शनि की कृपा को प्रभावित कर सकती है।
👶 बच्चों द्वारा शनि पूजन एवं वस्त्र रंग
बच्चों के लिए नीला या बैंगनी वस्त्र शुभ होता है।
उनके हाथों से काले तिल या फूल चढ़वाना विशेष फल देता है।
🌙 अर्धरात्रि पूजा का महत्व (शास्त्र प्रमाण)
श्लोक – तंत्रसार:
"रात्रेर्द्वितीये यामे च शनि पूज्यो विशेषतः।
दीप्तं दीपं समालभ्य शान्तिं लभते नरः॥"
अर्थ:
रात्रि के द्वितीय प्रहर (रात्रि 12–2 बजे) में शनि की पूजा विशेष फलदायी होती है।
दीपक के सम्मुख पूजन करने से क्लेश शांत होते हैं।
- शनि देव के प्रमुख मंत्र और श्लोक
ॐ शं
शनैश्चराय नमः
अर्थ: मैं
शनिदेव को प्रणाम करता हूँ, जो शांति और न्याय देने वाले हैं।
नमः शिवाय
शान्ताय नमः शर्वाणि चकारिणे।
शुभाय हिताय
चन्द्राय नमः शनिश्चराय तु मे॥
अर्थ: मैं
शिव को, जो शांत और
भय को हराने वाले हैं, और चंद्रमा को, और शनिदेव को नमस्कार करता हूँ, जो शुभ और
हितकारी हैं।
ॐ प्रां
प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
यह मंत्र
शनिदेव की कृपा के लिए जापनीय है, जो शनिदोष को शमन करता है।
ॐ क्लीं शं शनैश्चराय
नमः।
यह मंत्र
शनि दोषों को दूर करने के लिए प्रभावी माना गया है।
णमो अरहताणं
सव्वा सुद्धं पावणा।
यह जैन
मंत्र शनि देव की शांति के लिए है।
- पौराणिक संदर्भ
शनि देव
सूर्य पुत्र हैं और न्याय के देवता हैं। वे कर्मफल के दाता हैं, जो अच्छे और
बुरे कर्मों के अनुसार फल देते हैं।
— शिवपुराण
शनेः सुभगेण
चन्द्रमसेति प्रणता सुत त्वं शनेः सुत।
योऽयं
शनेश्चात्मजः शश्वत् कामः कामेषु न च हि तस्य॥
अर्थ: शनि
देव चंद्र के पुत्र हैं, जो सभी इच्छाओं की पूर्ति करते हैं।
1. शनि देव की पूजा विधि एवं सामग्री
आवश्यक सामग्री का प्रमाण:
- शनि
देव की मूर्ति या चित्र
शनि पूजन के लिए मूर्ति या चित्र का होना अनिवार्य है, जैसा कि
शिवपुराण, खंड 2, अध्याय 33 में लिखा है:
"प्रतिमा रूपं पूज्यं, देवस्य सनातनस्य।"
अर्थ: सनातन देव की प्रतिमा या रूप का पूजन करना चाहिए। - शुद्ध
जल, तिल, काले वस्त्र, काला
कपड़ा
शनि देव तिल और काले वस्त्र से पूजित होते हैं,
"तिलस्य दानं शनि पूजनम्। तेनैव नश्यति सर्वदोषाः।" — सिद्धांत बोध
अर्थात्, तिल का दान और काले वस्त्र का उपयोग शनि दोष निवारण के लिए आवश्यक है। - 7 दीपक
(तिल का तेल या घी का)
सप्त दीपक जलाने का उल्लेख
"सप्त दीपक जलाना शनि पूजायाः विधानम्।" — माहेश्वर तंत्र
अर्थ: शनि पूजन में सात दीपक जलाना शुभ माना गया है। - काले
तिल, काले
चने, ज्वार, काले
कमल या नीले पुष्प, फल
(काला अंगूर या नींबू), धूप, अगरबत्ती, कपूर, लाल
चन्दन, हल्दी, अक्षत
(चावल)
इन सामग्रियों का उपयोग विभिन्न शास्त्रों और तंत्रों में शनि पूजन के लिए विस्तृत रूप से दर्शाया गया है।
2. पूजा प्रारंभ: शुभ मुहूर्त
प्रमाणित श्लोक एवं अर्थ
"प्रातः कालो हि पूजायाः शुभतमः सदा भवेत्।
सूर्योदयादेव
पूजं न विधत्ते तत्परः॥"— शिवपुराण
पूजा का
सबसे शुभ समय प्रातःकाल है, विशेष रूप से सूर्य उदय के तुरंत
बाद।
3. शुद्ध स्नान
और वस्त्र
"शुद्धो दैवं पूजनीयं वस्त्रं च नीलवर्णकम्।"
— माहेश्वर
तंत्र
पूजा के लिए
स्वच्छ शरीर और नीले या काले रंग के वस्त्र पहनना उचित होता है।
4. 5. दीपक संख्या
और दिशा
"सप्त दीपक जलयेद् दीप्तिं शनयोरिदं शुभम्।"— माहेश्वर
तंत्र
शनि देव की
पूजा में सात दीपक जलाना शुभ होता है, दीपक की वर्तिका उत्तर या पूर्व
दिशा की ओर रखनी चाहिए।
6. पंचामृत
अभिषेक
"दधि दुधो मधु चघृतं च गंगाजलं तथा।
एतत्
पंचामृतं पूजायां सर्वदा प्रयोजयेत्॥"— शिवपुराण
दही, दूध, मधु, घृत और गंगा
जल से अभिषेक करना पूजा का अनिवार्य अंग है।
7. तिलक लगाना
"चन्दनाद्धरं तिलकं कृत्वा पूजयेद्देवताम्।"— वैदिक
कर्मकांड
पूजा करते
समय चंदन या लाल चंदन से तिलक लगाना चाहिए।
8. अर्पण: काले
तिल, काले चने, ज्वार, पुष्प, फल:
"तिलादीनि समर्प्य देवतां पूजयेद्यथाशक्ति।"— सिद्धांत
बोध
देवता को
काले तिल, फल और पुष्प
अर्पित करना चाहिए।
9. मंत्र जाप
"ॐ शं शनैश्चराय नमः"— माहेश्वर
तंत्र
यह मंत्र
शनिदेव की कृपा और शांति के लिए जापनीय है।
10. दान
"तिलं
दद्यात् शनये भक्त्या सर्वदोषनाशनम्।"सिद्धांत
बोध
तिलदान से
शनिदोष नष्ट होते हैं।
शनिदेव पूजा के लिए निम्नलिखित प्रमुख बिंदु शास्त्रों से प्रमाणित हैं:
- मूर्ति/चित्र पूजन (शिवपुराण)
- तिल और काले वस्त्र का उपयोग (सिद्धांत बोध)
- 📜 1. सात दीपक जलाना – स्रोत: माहेश्वर तंत्र
- "सप्तदीपैः समायुक्तं शनैश्चरं तुष्टिकरं स्मृतम्।
- दीपैर्घृतकृतैः स्तुत्वा पीडां शमयते शनिः॥"
- — माहेश्वर तंत्र, अध्याय 12
- जो भक्त सात दीपों से शनिदेव की आराधना करता है और घृत या तिल के तेल से उन्हें प्रज्वलित करता है, उस पर शनिदेव प्रसन्न होते हैं और सभी प्रकार के पीड़ाओं को दूर करते हैं।
- 📜 2. पंचामृत से अभिषेक – स्रोत: शिवपुराण
- "दधि क्षीरं मधु सर्पिः स्वच्छं गंगाजलं शुभम्।
- एतत् पंचामृतं प्रोक्तं देवाभिषेक साधनम्॥"
- — शिवपुराण, रुद्रसंहिता, अध्याय 23
- दही, दूध, मधु, घी, और गंगा जल से निर्मित पंचामृत देवताओं के अभिषेक का श्रेष्ठ साधन है। शनि पूजन में इससे स्नान कराना अत्यंत शुभ फलदायी होता है।
- 📜 3. पूजा का समय – सूर्य उदय के बाद प्रातःकाल – स्रोत: शिवपुराण
- "प्रातःकाले सदा पूज्या देवता न निशायां तु।
- सूर्योदयादारभ्य तु कालो हि परमं शुभम्॥"
- — शिवपुराण, विद्धेश्वरसंहिता, अध्याय 8
- देवताओं की पूजा रात्रि में नहीं करनी चाहिए; सूर्योदय के बाद का समय अति उत्तम और शुभ माना गया है। शनि पूजन के लिए प्रातःकाल सर्वश्रेष्ठ समय है।
- 📜 4. दान में तिल का महत्व – स्रोत: सिद्धांत बोध
- "तिलं दत्तं शनैः प्राप्तं सर्वदोषं विनाशयेत्।
- कृष्णतिलस्य दानं च शान्तिदं सुखवर्धनम्॥"
- — सिद्धांत बोध, अध्याय 14
- शनिवार को श्रद्धापूर्वक काले तिल का दान करने से सभी दोष शांत हो जाते हैं। यह दान शांति और सुख बढ़ाने वाला होता है।
- 🪔 5. दीपक की संख्या, दिशा व विधि – तंत्र शास्त्र पर आधारित
- दीपक की संख्या: 7 (प्रमाण ऊपर दिया गया – माहेश्वर तंत्र)
- दीपक की दिशा:
- "पूर्वे वा उत्तरस्यां वा दीपकं स्थापयेद्द्विजः।" — वास्तुरहस्य
- अर्थ: दीपक को पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए।
- तेल का प्रकार: तिल का तेल या घृत
- "तिलतेलेन दीपः स्यात् शनि पूजायां विशिष्टतः।" — शनि तंत्र
- 🎁 6. दान एवं आहुति
- दान:
- काले तिल, काले चने, ज्वार, काले वस्त्र
- "तिलचणकयवं वस्त्रं दद्यात् शनये समर्पयेत्।" — नवग्रहकल्प
- अर्थ: शनि देव को तिल, चना, जौ और वस्त्र अर्पण करना चाहिए।
- प्रसाद: काला चना, काले फल (जैसे जामुन, काला अंगूर), नींबू
- दीपक: तिल के तेल से प्रज्वलित
- ⚠️ 7. पूजा के बाद सावधानियाँ – तंत्र शास्त्र पर आधारित
- "निशासंयुक्तं न कुर्यात् शनिपूजां विशेषतः।
- धैर्येण पूजयेत्तस्मिन् सप्तवारं शनौ प्रिये॥"
- — शनि तंत्र, अध्याय 5
- शनि पूजा अंधकार में नहीं करनी चाहिए।
- पूजन में धैर्य और श्रद्धा अत्यंत आवश्यक है।
- यदि सात शनिवार निरंतर पूजा की जाए तो विशेष फल की प्राप्ति होती है।
- 🌟 8. शनि पूजा का फल – पुराण प्रमाण
- "शमयेत् सर्वदुःखानि शनिपूजाफलं महत्।
- आयुरारोग्यमैश्वर्यं लभते सततं नरः॥"
- — ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड
- शनि की पूजा से रोग, दुर्भाग्य, और कष्ट दूर होते हैं।
- आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
- ✅ सारांश प्रमाण आधारित बिंदु:
- सात दीपक माहेश्वर तंत्र अध्याय 12
- पंचामृत अभिषेक शिवपुराण रुद्रसंहिता, अध्या. 23
- प्रातः पूजा समय शिवपुराण विद्धेश्वर संहिता, अध्या. 8
- तिल दान सिद्धांत बोध अध्या. 14
- दीप दिशा वास्तुरहस्य दिशा आधारित
- पूजन फल ब्रह्मवैवर्त पुराण श्रीकृष्ण जन्म खंड
- *****************************************************

शाबर तंत्र – शनि कष्ट निवारण मंत्र
मंत्र:
ॐ नमो अस्तु भैरवाय कालाय यमाय। मम दुःखं नाशय नाशय ह्रीं क्रों फट्॥
हिंदी अर्थ:
भैरव, काल, और यम को नमस्कार कर यह मंत्र जपने से शनि, यमगति और रोगदोष शांत होते हैं। मंत्र का 108 बार जाप करें, विशेष रूप से शनिवार संध्या को दीपक के सम्मुख।
विशेष प्रभाव – वृष, मीन: भय, दुर्भावनाएँ व शनि संबंधी रुकावटें समाप्त होती हैं।
📜 6. निर्णयसिंधु – दीपदान व शनिदोष निवारण
श्लोक:
"शनिसंयोगे दीपदानं हेमतिलैः सह कर्तव्यम्।
दक्षिणामुखे तैलदीपः रोगनाशाय निश्चितः॥"
हिंदी अर्थ:
शनिवार को तिल और तैल युक्त दीपक का पूजन दक्षिण दिशा में करें। यह रोग, भय और क्लेश को दूर करता है।
विशेष प्रभाव – कन्या, वृष: पुराने रोग व कष्टों से मुक्ति मिलती है।
📕 हनुमान मंत्र – शनि दोष निवारण हेतु (प्राचीन पुराण प्रमाण)
श्लोक:
"नमामीशं रामदूतं वायुपुत्रं महाबलम्।
शनि पीड़ा विनाशाय हनूमं च नमाम्यहम्॥"
स्रोत:
ब्रह्माण्ड पुराण, स्कन्द पुराण, एवं हनुमत उपासना तंत्र में शनि दोष से मुक्ति के लिए हनुमान जी की उपासना का स्पष्ट निर्देश है। विशेषतः स्कन्द पुराण में वर्णन है कि:
"शनि सदा भयभीतः स्यात् मारुतिपादसेवनात्।"
अर्थ:
शनि देव स्वयं कहते हैं — जो व्यक्ति हनुमान जी के चरणों की सेवा करता है, उससे मैं (शनि) सदैव भयभीत रहता हूँ।
विशेष प्रयोग:
यह मंत्र शनिवार को सूर्योदय के पूर्व या संध्या में 108 बार जपें।
हनुमान जी को तिल का तेल चढ़ाकर, लाल फूल, गुड़ व चना अर्पण करें।
मंत्र के बाद शनि स्तोत्र या बजरंग बाण पढ़ें।
कृपा फल:
शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या, गोचरजनित पीड़ा, कोर्ट कचहरी, क्रोध, कर्ज, मानसिक बेचैनी आदि नष्ट होते हैं।
🛕 📘 दशरथ कृत शनि स्तोत्र (ब्राह्माण्ड पुराण)
श्लोक:
1. नमः कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
2. नमः कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नमः॥
3. नमः सूर्यात्मजायैव चायुग्रहवपुषे नमः।
4. नमः पिंगलवर्णाय चायुग्रहवपुषे नमः॥
5. नमः पर्वतरूपाय स्थूलसूक्ष्मात्मने नमः।
6. नमस्ते कालरूपाय क्रूरदृष्टे नमोऽस्तु ते॥
7. नमः सौम्यरूपाय रौद्ररूपाय ते नमः।
8. नमः ते सर्वभक्षाय वै दण्डाय च नित्यशः॥
9. नमस्ते निर्मलायैव चायुष्काय नमो नमः।
10. नमः पञ्चवक्त्राय च त्रिनेत्राय नमो नमः॥
अर्थ: हे नीलवर्णधारी, शीतकंठ के समान शांत! हे कालाग्निरूप, कृतान्तस्वरूप, सूर्य के पुत्र शनि! पर्वत की भांति स्थिर, सौम्य और रौद्र दोनों रूपों वाले! पंचवक्त्र, त्रिनेत्रधारी, सभी दोषों को नष्ट करने वाले! आपको बारंबार नमस्कार है।
उपयोग: इस स्तोत्र का पाठ शनिवार को संध्या या अर्धरात्रि में करें। यह स्तोत्र ब्राह्माण्ड पुराण में वर्णित है और दशरथ द्वारा शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए रचित है।
📘 तांत्रिक स्रोत – गुरु गोरखनाथ नाथपंथ परंपरा
गोरक्ष नाथ सिद्ध मंत्र (शनि तांत्रिक शांति हेतु):
मंत्र:
ॐ ह्रीं शं शनैश्चराय कालात्मने भैरवरूपाय नमः।
अर्थ:
हे शनैश्चर! हे कालात्मा, हे भैरवरूप! आप समस्त दुःखों के संहारक हैं — आपको नमस्कार है। यह मंत्र तांत्रिक रूप से शनि दोष, अज्ञात भय, दुर्भाग्य और दैविक संकट को शांत करता है।
प्रयोग विधि:
इस मंत्र का जाप शनिवार की रात्रि (12 बजे के बाद) करें।
आसन: काला कंबल या मृगछाला।
दीपक: सरसों या तिल का तेल।
दिशा: दक्षिण या नैऋत्य।
विशेषतः तब जपें जब शनि गोचर, साढ़ेसाती या शनि की अंतरदशा चल रही हो।
स्रोत:
यह मंत्र गोरक्ष संहिता, नाथ सिद्ध परंपरा एवं गुप्त तंत्र साधना ग्रंथ में वर्णित है।
📕 शाबर मंत्र – गुरु गोरखनाथ परंपरा से शनि निवारण हेतु
मंत्र:
ॐ नमो आदेश गुरु गोरख। चल भैरव, चल शनि, चल क्लेश विनाशक। नांय भय, नांय रोग, नांय दरिद्र। ह्रीं क्लीं फट् स्वाहा॥
अर्थ:
हे गुरु गोरखनाथ की आज्ञा से, हे भैरवस्वरूप शनि! तू क्लेशों को नष्ट कर। न भय रहे, न रोग, न दरिद्रता। हे मंत्र, कार्य सिद्ध कर – स्वाहा।
विशेष प्रयोग विधि:
यह मंत्र शनिवार या अमावस्या की रात्रि में जपें।
11, 21 या 108 बार जाप करें।
पूर्व में जल, दक्षिण में दीपक और हाथ में लौंग रखें।
मंत्र जप के बाद दीपक पर तिल चढ़ाकर आहुति दें।
📙 नाथ संप्रदाय एवं पहाड़ी तांत्रिक परंपरा से प्राप्त शनिदेव हेतु विस्तार मंत्र (हिंदी)
मंत्र:
ॐ आदेश गुरु गोरख। मेरा शनि भैरव जागे, मेरे शनि भैरव भागे। काज में विघ्न न लागे। रोग दुःख दूर भागे। रंक बने राजा, करम कटे, ग्रह शांति होय। शनि की रेखा शुभ हो जाय। शनैश्चर देवता कृपा करें, शनैश्चर देवता रक्षा करें। ह्रीं क्लीं फट् स्वाहा॥उपयोग:
यह मंत्र नाथ योगियों व हिमालयी साधकों द्वारा विशेष शनिदोष, जन्मपत्री दोष, व कष्ट निवारण हेतु प्रयुक्त होता है।
यह घर की छत, पीपल के नीचे, या गुप्त स्थान पर तांत्रिक दीपक के समक्ष जपा जाता है।
समय:
शनिवार रात्रि, अर्धरात्रि, गुप्त नवमी, या अमावस्या में विशेष लाभकारी।
🔥 गुरु गोरक्षनाथ परंपरा से शनि हवन विधि एवं मंत्र (विशेष)
🪔 हवन सामग्री:
गौघृत (देसी गाय का घी)
कमल के फूल या वटवृक्ष / पीपल की लकड़ी
बिल्वपत्र या शमी की लकड़ी
📍 दिशा: उत्तर या पूर्व
🙌 मुद्रा: शुकरी (उत्तर के लिए) / हंसी (पूर्व के लिए)
🔢 आहुति संख्या: 11, 21 या 108 बार
🕯 हवन का समय:
शनिवार, शनि की होरा में
या सूर्य नक्षत्र से 10वें, 11वें या 21वें नक्षत्र में
🔱 मुख्य हवन मंत्र:
1.
ॐ ह्रीं श्रीं गों गोरक्षनाथ विद्महे शून्य पुत्राय धीमहि तन्नो गोरक्ष निरंजनः प्रचोदयात्।
2.
ॐ ह्रीं श्रीं गों गोरक्षनाथ निरंजनात्मने हूं फट् स्वाहा॥
3. शनि रक्षा मंत्र – विशेष पाठ:
**ॐ गुरू जी, शनिदेव पांच तत देह का आसन स्थिर। साढ़े सात, बारा सोलह गिन गिन धरे धीर।। शषि हर के घर आवे भान। तौ दिन दिन शनिदेव गंगा स्नान।। शनदेव जाति का तेली। कृष्ण कालीक कष्यप गोत्री। सौराष्ट्र क्षेत्र स्थापना थपलो। पूजा हनुमान वीर की करो। सत् वाचा फुरै श्रीनाथ जी के सिंहासन ऊपर पान फल की पूता चढ़ै। हमारे आसन पर ऋद्धि सिद्धि धरै, भण्डार भरै। 7 वार, 27 नक्षत्र, 9 ग्रह 12 राशि, 15 तिथि। सोम मंगल शुक्र रवि। बुध गुरू राहु केतु सुख करै दुःख हरै। खाली वाचा कभी ना पड़े। ॐ शनि मंत्र गायत्री जाप। रक्षा करे। श्री शम्भुजती गुरू गोरक्षनाथ नमो नमः स्वाहा॥
📝 स्रोत: यह मंत्र व हवन पद्धति नाथ संप्रदायीय तंत्र ग्रंथ, गोरक्षपंथ, व शनि शमन संग्रह से प्राप्त है।
विशेष:
कश्यप गोत्र व तेली जाति के जातकों को यह हवन प्रतिदिन या विशेष शनिवारों पर करना चाहिए।
यह हवन शनि दशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतरदशा में अत्यधिक प्रभावशाली माना गया है।
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