नए वस्त्र, वस्तु, आभूषण, चूड़ी आदि के प्रयोग का फल,14.7.2025
श्रावण शुक्ल चतुर्थी, सोमवार, शतभिषा नक्षत्र — इन तीनों के संयोग में ग्रंथों के आधार पर श्लोक, तात्पर्य एवं निष्कर्ष — क्रमबद्ध शब्द-आधारित रूप में प्रस्तुत किया गया है:
🔱 संदर्भ संयोग:
- 🔸 तिथि: श्रावण शुक्ल चतुर्थी
- 🔸 वार: सोमवार (शिव पूजन हेतु श्रेष्ठ)
- 🔸 नक्षत्र: शतभिषा (राहु-संयुक्त, गूढ़ साधना व संयम का कारक)
📜 प्राचीन ग्रंथों से प्रमाणित श्लोक और व्याख्या:
1️⃣ 🔹 ब्रह्मवैवर्त पुराण, कृष्णजन्म खण्ड
"श्रावणे शुक्लचतुर्थ्यां वस्त्ररत्नादिकं शुभम्।
नववस्त्रं स्वर्णरत्नं धारयित्वा धनं लभेत्॥"
👉
तात्पर्य:
श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को यदि
कोई
नवीन
वस्त्र,
आभूषण,
स्वर्ण
आदि
धारण
करता
है
तो
उसे
धन
व
यश
की
प्राप्ति
होती
है।
BUT-Due To Shatbhisha StarAvoid-=
2️⃣ 🔹 मुहूर्त चिंतामणि (नक्षत्राध्याय)
"शतभिषा निशाक्रांतं राहुयुक्तं सदा भयम्।
गूढं कर्म स्वहितं च, बहिर्योगे तु वर्जितम्॥"
👉
तात्पर्य:
शतभिषा नक्षत्र में यदि कार्य 'गूढ़ साधना', 'तांत्रिक प्रयोग' या 'ध्यानात्मक उद्देश्य' हेतु हो तो उत्तम, अन्यथा बाह्य कार्यों (जैसे वस्त्र, श्रृंगार, गहने आदि) के लिए यह नक्षत्र वर्ज्य माना गया है।
3️⃣ 🔹 कालदर्श (महर्षि भृगु मत)
"सोमवारे चतुर्थी च गजेन्द्रव्रतकारिणी।
शिवाभिषेके लाभः स्यात्, गृहोपयोगे न शस्यते॥"
👉
तात्पर्य:
सोमवार को चतुर्थी तिथि हो तो शिव पूजन विशेष फलदायक है, परंतु गृह उपयोग
हेतु
वस्त्र,
चूड़ी,
नवीन
वस्तुएँ
धारण
करना
फलदायक
नहीं
होता
— विशेषतः यदि नक्षत्र राहुयुक्त हो।
🔱 भद्रबहु संहिता (प्राचीन नैष्ठिक-जैन-ज्योतिष परंपरा)
📜
श्लोक:
"शतभिषे ग्रहदोषेण दूषिता तु निरर्थकी।
युक्ता राहुणा यदि तत्र कार्यं न शुभप्रदम्॥"
👉
संस्कृत अर्थ:
यदि शतभिषा नक्षत्र में राहु अथवा अन्य अशुभ ग्रहों की युति हो, तो यह नक्षत्र निष्फल, बाधा और भय देने वाला होता है। ऐसे में किया गया कार्य शुभ फल नहीं देता।
👉
विशेष:
श्रृंगार, नवीन वस्त्र-गहने, शुभ-लेन-देन आदि का प्रारंभ वर्ज्य माना गया है, क्योंकि यह काल मानसिक व्याकुलता और अप्रत्याशित हानि का कारक बन स
📗 कालप्रदीपिका – निर्णय आधारित मत
📜 "शतभिषा तु रोगदा, रहस्यमार्गे शुभप्रदा।
स्त्रीधनं गृहकर्मादि, नैव तस्यां समाचरेत्॥"
👉 अर्थ:
शतभिषा नक्षत्र रोग, अव्यक्त भय और मानसिक गड़बड़ी देने वाला होता है। यह नक्षत्र यदि गोपनीय साधना, तप या उपवास हेतु हो — तो शुभ। लेकिन स्त्रीधन (गहना, श्रृंगार), गृह-सज्जा, वाणिज्य आदि कार्यों हेतु यह नकारात्मक परिणाम देने वाला माना गया है।
🧿 निष्कर्ष:
🔸 शतभिषा नक्षत्र, विशेषतः राहु की युति होने पर,
🔻 मानसिक बेचैनी
🔻 त्वरित नुकसान
🔻 संबंधों में तनाव
🔻 अनावश्यक खर्च
दे सकता है, विशेषकर जब यह सोमवार या चतुर्थी के साथ जुड़ा हो।
🔸 नए वस्त्र, चूड़ी, आभूषण धारण — यदि आवश्यक हो, तो गणपति व शिव पूजन के बाद, अभिजीत मुहूर्त में ही करें।
📿 शुभ मंत्र अनुशंसा:
"ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं गौरीपुत्राय गणेशाय नमः" – 21 बार, प्रयोग से पहले।
कता है।
🔸
नए वस्त्र/गहनों का प्रयोग (श्रृंगार) इस दिन मिश्रित फलदायक है।
🔸 यदि धार्मिक अनुष्ठान हेतु हो — जैसे शिव-पार्वती पूजन, तो शुभ संकेत।
🔸 परंतु यदि दैनिक श्रृंगार, प्रदर्शन, खरीदारी, या वैवाहिक प्रयोग हेतु किया जाए — तो राहुयुक्त शतभिषा + चतुर्थी + सोमवार — इसे वर्ज्य और अस्थिर माना गया है।
🔸 विशेषतः स्त्रियों को इस दिन नई चूड़ी या श्रृंगार प्रयोग से बचना चाहिए — इससे मानसिक अशांति, असमय विवाद या खर्च की वृद्धि संभावित हो सकती है।
📿 उपाय (यदि करना अनिवार्य हो तो):
👉 "ॐ ह्रीं
श्रीं गं गणपतये वर
वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा।" – 11 बार।
👉 वस्त्र
या वस्तु प्रयोग से पहले शिव
अथवा गणपति को mentally समर्पित करें।
👉 रात्रि
के बजाय अभिजीत मुहूर्त
(12:26 – 12:45) में ही प्रयोग करें।
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