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नाड़ी दोष-21 नक्षत्र न्यून/ नहीं - 🐍 नाग वानर नाड़ी रहस्य;

                                                                         

 💢 नाड़ी दोष क्यों होता है?

जब वर–वधू की नाड़ी एक समान हो, तो जीवन ऊर्जा एक दिशा में प्रवाहित होती है, जिससे:

  • संतान संबंधित बाधाएं

  • भावनात्मक असंतुलन

  • वैवाहिक जीवन में मानसिक दूरी

  • गुप्त रोग, वात-पित्त-कफ विकृति

  • असमंजस व संकल्पहीनता

    नाड़ी दोष होता है


✨  नाड़ी दोष को न तो पूरी तरह नकारें, न ही अनावश्यक भय पालें — 

(Due To-27 stras -Star -four part ,each poart closly imp,108part in detailed )

यह एक सूक्ष्म ऊर्जात्मक परखा है, जिसका उपयोग विवेकपूर्वक संपूर्ण कुंडली विश्लेषण के साथ करें।

यदि वर–वधू की नाड़ी समान हो तो दोष माने जाते हैं —

 संतति दोष, स्वास्थ्य दोष, संबंध बाधाएँ। यदि नाड़ी भिन्न हो तो विवाह को शुभ कहा गया है।

विषय-वस्तु (Table of Contents):

  1. पंचनाड़ी क्या है? — परिभाषा और तत्व
  2. भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कौन-सी नाड़ी प्रणाली प्रचलित है?
  3. नाड़ी प्रकारों के अनुसार शरीर, तत्त्व, दिशा और त्रिनाड़ी तालिका
  4. शास्त्रीय ग्रंथों से प्रमाणनारद संहिता, कालप्रकाशिका, योगशिखा उपनिषद
  5. विवाह में नाड़ी दोष और उसके प्रभाव
  6. कन्या-वर की नाड़ी तत्त्वों का आयुर्वेदिक प्रभाव
  7. नाग वानर नाड़ी जैसे दुर्लभ तंत्रिक नाड़ी प्रकारों की भूमिका

📚 शास्त्रीय प्रमाण (Scriptural Sources):

  • नारद संहिता, अध्याय 2: "प्राच्यपश्चिमदक्षिणोत्तरैशाननाडयः पञ्चधा। तासु जातेषु नक्षत्रेषु, नाडीदोषो भवत्यतः॥"

    • अर्थ: पंच दिशा आधारित नाड़ियों के अनुसार नक्षत्रों का विभाजन किया गया है, जिनसे नाड़ी दोष की उपस्थिति मानी जाती है।

  • कालप्रकाशिका, अध्याय 1, श्लोक 41: "नाडीपञ्चकविभागे तु, दोषो नाडितुल्ययोः। तत्र भिन्ननाडिजाते विवाहे शुभलक्षणम्॥"

    • अर्थ: यदि वर–वधू की नाड़ी समान हो तो दोष होता है; यदि भिन्न हो तो विवाह शुभ होता है।

  • योगशिखा उपनिषद्: "इड़ा चंद्रात्मिका प्रोक्ता पिंगला सूर्य आत्मिका। सुषुम्ना ब्रह्ममार्गो हि गांधारीं हस्तिजिव्हिकाम्॥"

    • अर्थ: इड़ा चंद्र से संबंधित है, पिंगला सूर्य से, और सुषुम्ना ब्रह्ममार्ग है – यह त्रिनाड़ी और पंचनाड़ी सिद्धांत से संबंधित है।


🧭 भौगोलिक क्षेत्रानुसार प्रचलित नाड़ी परंपराएं (Regional Nāḍī Practices in Jyotish)

📍 क्षेत्र / राज्य🌿 प्रचलित नाड़ी प्रणाली📜 आधार / परंपरा
दक्षिण भारत (तमिलनाडु, केरल, आंध्र, कर्नाटक)✅ 3 नाड़ी प्रणाली (Adi, Madhya, Antya) "नाड़ी ज्योतिष" (शिवनंदी, अगस्त्य नाड़ी), वैदिक के साथ तांत्रिक आधार
राजस्थान✅ 3 नाड़ी प्रणाली मुख्य रूप सेउत्तर भारत की पारंपरिक पद्धति – नारद संहिता, कालप्रकाशिका
गुजरात✅ 3 नाड़ी प्रणाली + 🔸 पंचनाड़ी उपयोग (पिंगला–इड़ा का उल्लेख)विवाह-योग में 3 नाड़ी, कुछ क्षेत्रों में पंचनाड़ी
हिमाचल / उत्तराखंड / पर्वतीय क्षेत्र🔶 5 नाड़ी पद्धति का सीमित प्रयोग, अधिकतर 3 नाड़ी प्रणालीतांत्रिक प्रभाव क्षेत्रों (नाथ, सिद्ध परंपरा) में नाग/पंचनाड़ी
नेपाल (काठमांडू, भक्तपुर)🔷 5 नाड़ी प्रणाली (नाग, वानर आदि सहित) का उल्लेख – तांत्रिक-योग परंपराबौद्ध-तांत्रिक प्रभाव + कुंडलिनी-योग

🧬 पंचनाड़ी वर्गीकरण (Five Nāḍī Types with Astrological & Ayurvedic Associations)

🔷 नाड़ी के प्रकार कुल 5 होते हैं:

  1. आदि नाड़ी (Adi Nāḍī) – वात दोष – पूर्व दिशा – पिंगला (सूर्य नाड़ी)

  2. मध्य नाड़ी (Madhya Nāḍī) – पित्त दोष – दक्षिण दिशा – सुषुम्ना नाड़ी

  3. अंत्य नाड़ी (Antya Nāḍī) – कफ दोष – उत्तर दिशा – इड़ा नाड़ी (चंद्र नाड़ी)

  4. नाग नाड़ी – रहस्यमयी ऊर्जा – ईशान कोण – कुंडलिनी / मंत्र प्रधान कार्यों से जुड़ी

  5. वानर / मुष्टि नाड़ी – चंचलता, अस्थिरता – पश्चिम दिशा – दौड़ती, अशांत प्रवृत्ति

📜 नाड़ी – शरीर, तत्त्व, दिशा, त्रिनाड़ी संबंध तालिका:

🔢 क्रम🧍 शरीर स्थान🌀 नाड़ी नाम🌿 तत्त्व💠 स्वभाव / गुण🔗 त्रिनाड़ी सम्बंध🧭 दिशा सम्बंध
1️⃣शिरः (सिर)वात नाड़ीवायुचंचल, तेजआदि नाड़ीपूर्व (Prachya)
2️⃣कंठ (गला)पित्त नाड़ीअग्नितीव्र, निर्णयात्मकमध्य नाड़ीदक्षिण (Dakshina)
3️⃣नाभि (केंद्र)कफ नाड़ीजलस्थिर, पोषणअंत्य नाड़ीउत्तर (Uttara)
4️⃣ऊरु (जांघ)नाग नाड़ी 🐍रहस्य / कुंडलिनीमंत्र, गूढ़अंत्य / विशेषईशान (Northeast)
5️⃣पाद (पैर)वानर / मुष्टि 🐒पृथ्वी + गतिचंचल, दौड़तीमध्य / आदिपश्चिम (Paschima)

📚 शास्त्रीय प्रमाण (Scriptural Sources):

  • नारद संहिता, अध्याय 2: "प्राच्यपश्चिमदक्षिणोत्तरैशाननाडयः पञ्चधा। तासु जातेषु नक्षत्रेषु, नाडीदोषो भवत्यतः॥"

  • कालप्रकाशिका, अध्याय 1, श्लोक 41: "नाडीपञ्चकविभागे तु, दोषो नाडितुल्ययोः। तत्र भिन्ननाडिजाते विवाहे शुभलक्षणम्॥"

  • योगशिखा उपनिषद्: "इड़ा चंद्रात्मिका प्रोक्ता पिंगला सूर्य आत्मिका। सुषुम्ना ब्रह्ममार्गो हि गांधारीं हस्तिजिव्हिकाम्॥"

🔎 भारत में नाड़ी प्रणाली का क्षेत्रीय प्रयोग:

  • नाग नाड़ी विशेष रूप से ओडिशा, बिहार, बंगाल क्षेत्र में मान्य है

  • इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना – योगशास्त्र आधारित कुंडलिनी नाड़ी प्रणाली से संबंधित

🧠 नाड़ी दोष के विवाहोपरांत प्रभाव (By Nādi Type):

  • वात/Adi: तनाव, तर्क, संवादहीनता

  • पित्त/Madhya: तीव्र झगड़े, उत्तेजना

  • कफ/Antya: निष्क्रियता, उदासीनता

  • नाग नाड़ी: रहस्य/तंत्र प्रभाव, मानसिक विचलन

  • वानर नाड़ी: अस्थिरता, आवेग में निर्णय, ऊर्जा असंतुलन

➡ यदि वर–वधू की नाड़ी समान हो तो दोष माने जाते हैं — संतति दोष, स्वास्थ्य दोष, संबंध बाधाएँ। यदि नाड़ी भिन्न हो तो विवाह को शुभ कहा गया है।


🧠 नाड़ी दोष के विवाहोपरांत प्रभाव (By Nādi Type):

  • वात/Adi: तनाव, तर्क, संवादहीनता

  • पित्त/Madhya: तीव्र झगड़े, उत्तेजना

  • कफ/Antya: निष्क्रियता, उदासीनता

  • नाग नाड़ी: रहस्य/तंत्र प्रभाव, मानसिक विचलन

  • वानर नाड़ी: अस्थिरता, आवेग में निर्णय, ऊर्जा असंतुलन

➡ यदि वर–वधू की नाड़ी समान हो तो दोष माने जाते हैं — संतति दोष, स्वास्थ्य दोष, संबंध बाधाएँ। यदि नाड़ी भिन्न हो तो विवाह को शुभ कहा गया है।

🧬 कन्या की नाड़ी पर आधारित शारीरिक–मानसिक मिलन प्रभाव  

(Ayurvedic Pairing Effects)

🌿 कन्या की नाड़ी (तत्त्व)वर की नाड़ी (तत्त्व)प्रभाव (Sharirik & Mansik)
पित्त (अग्नि) – तीव्रवात (वायु) – चंचल🔥🌬 अधिक असंतुलन, त्वचा रोग, त्वरित झगड़े
पित्तकफ (जल) – शांत🔥💧 संतुलन अच्छा संभव, पर कभी-कभी जड़ता और क्रोध टकरा सकते हैं
पित्तनाग (रहस्य)🔥🐍 मानसिक तनाव, तंत्रिकीय विकार, नींद की समस्या
पित्तवानर (गतिशील)🔥🐒 तेजस्वी दंपत्ति, पर अधिक चपलता – क्रोध व अव्यवस्था
कफ (जल) – स्थिरवात (वायु) – चंचल💧🌬 भारी-हल्का संतुलन, शारीरिक जड़ता + मानसिक उथल-पुथल
कफपित्त (अग्नि)💧🔥 ठंडा-गरम असंतुलन, थकावट और पाचन संबंधित समस्याएं
कफनाग💧🐍 धीमी मानसिक गति, रहस्यवाद, अवसाद की प्रवृत्ति
कफवानर💧🐒 चंचलता और जड़ता का विरोधाभास, संबंध में उतार-चढ़ाव

1.      नाड़ी सिद्धांत – विवाह, स्वभाव, क्षेत्रीय परंपरा एवं प्रभाव

2.    पंच

 (Five Nāḍī Types with Associations)

नाड़ी वर्गीकरण 

3.     
नाड़ी के प्रकार कुल 5 होते हैं:

1. आदि नाड़ी (Adi N
āḍī) – वात दोष – पूर्व दिशा – पिंगला (सूर्य नाड़ी)
2. मध्य नाड़ी (Madhya N
āḍī) – पित्त दोष – दक्षिण दिशा – सुषुम्ना नाड़ी
3. अंत्य नाड़ी (Antya N
āḍī) – कफ दोष – उत्तर दिशा – इड़ा नाड़ी (चंद्र नाड़ी)
4. नाग नाड़ी – रहस्यमयी ऊर्जा – ईशान कोण – कुंडलिनी / मंत्र प्रधान कार्यों से जुड़ी
5. वानर / मुष्टि नाड़ी – चंचलता, अस्थिरता – पश्चिम दिशा – दौड़ती, अशांत प्रवृत्ति

4.    नाड़ी – शरीर, तत्त्व, दिशा, त्रिनाड़ी संबंध तालिका

क्रम

शरीर स्थान

नाड़ी नाम

तत्त्व

स्वभाव / गुण

त्रिनाड़ी सम्बंध

दिशा सम्बंध

1️

शिरः (सिर)

वात नाड़ी

वायु

चंचल, तेज

आदि नाड़ी

पूर्व

2️

कंठ (गला)

पित्त नाड़ी

अग्नि

तीव्र, निर्णयात्मक

मध्य नाड़ी

दक्षिण

3️

नाभि (केंद्र)

कफ नाड़ी

जल

स्थिर, पोषण

अंत्य नाड़ी

उत्तर

4️

ऊरु (जांघ)

नाग नाड़ी 🐍

रहस्य

गूढ़, मंत्र प्रधान

विशेष / अंत्य

ईशान

5️

पाद (पैर)

वानर / मुष्टि 🐒

पृथ्वी + गति

चंचल, दौड़ती

मध्य / आदि

पश्चिम

5.    नाड़ी मिलान के प्रभाव – शारीरिक व मानसिक स्थिति

6.      नाड़ी दोष तब उत्पन्न होता है जब वर और वधु की नाड़ी समान होती है। इसके प्रभाव में संतान दोष, स्वास्थ्य विकार, और दांपत्य कलह संभावित है।

7.    कन्या की नाड़ी के अनुसार विवाह के प्रभाव

कन्या की नाड़ी (तत्त्व)

वर की नाड़ी (तत्त्व)

प्रभाव (Sharirik & Mansik)

पित्त (अग्नि)

वात (वायु)

🔥🌬 अधिक असंतुलन, त्वचा रोग, त्वरित झगड़े

पित्त

कफ (जल)

🔥💧 संतुलन अच्छा संभव, पर कभी-कभी जड़ता और क्रोध टकरा सकते हैं

पित्त

नाग

🔥🐍 मानसिक तनाव, तंत्रिकीय विकार, नींद की समस्या

पित्त

वानर

🔥🐒 तेजस्वी दंपत्ति, पर अधिक चपलता – क्रोध व अव्यवस्था

कफ (जल)

वात (वायु)

💧🌬 भारी-हल्का संतुलन, शारीरिक जड़ता + मानसिक उथल-पुथल

कफ

पित्त (अग्नि)

💧🔥 ठंडा-गरम असंतुलन, थकावट और पाचन संबंधित समस्याएं

कफ

नाग

💧🐍 धीमी मानसिक गति, रहस्यवाद, अवसाद की प्रवृत्ति

कफ

वानर

💧🐒 चंचलता और जड़ता का विरोधाभास, संबंध में उतार-चढ़ाव

🔷 नाड़ी के प्रकार कुल 5 होते हैं:

03के नाम हैं:

1.      आदि नाड़ी (Adi Nāḍī)

2.      मध्य नाड़ी (Madhya Nāḍī)

3.      अंत्य नाड़ी (Antya Nāḍī)
👉 इन्हें ही कुछ परंपराओं में "वात-पित्त-कफ नाड़ी" के रूप में भी जाना जाता है।


🔶 27 नक्षत्रों के आधार पर नाड़ी विभाजन:

🔢 नाड़ी प्रकार

🔯 नक्षत्रों की सूची

🧬 दोष संबंधित भाव

आदि नाड़ी

अश्विनी, आर्द्रा, पुष्य, हस्त, मूल, श्रवण, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तराषाढ़ा

वात (Vata) दोष

मध्य नाड़ी

भरणी, पुनर्वसु, अश्लेषा, चित्रा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा, उत्तराभाद्रपद, अनुराधा, मघा

पित्त (Pitta) दोष

अंत्य नाड़ी (या नाग नाड़ी)

कृत्तिका, मृगशिरा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, स्वाती, विशाखा, जेष्टा, अभिजीत, रेवती

कफ (Kapha) दोष

पाँच नाड़ियों में नक्षत्र

🔷 पंच नाड़ी व्यवस्था (Five Nāḍīs) क्या है?

👉 यह प्रणाली दुर्लभ ग्रंथों जैसे नाड़ी तंत्र, बृहत नाड़ी ग्रंथ, और कुछ तंत्र ग्रंथों में मिलती है।

पंच नाड़ी प्राचीन विभाजन है, जो शरीर/स्वभाव/ग्रहीय प्रभाव पर आधारित पाँच श्रेणियाँ दर्शाता है। -

1.      वात नाड़ी

2.      पित्त नाड़ी

3.      कफ नाड़ी

4.      सर्प/नाग नाड़ी 🐍

5.      किंकर/मुष्टि/वानर नाड़ी 🐒 (नाम भिन्न शास्त्रों में भिन्न मिलता है)


🔶 (नाग नाड़ी In IndiaOrissa –Popular and Inportant)नाग नाड़ी — पंच नाड़ी में चौथी नाड़ी मानी जाती है

नाड़ी क्रम

नाड़ी का नाम

प्रकृति और संकेत

1️

वात नाड़ी

गति, परिवर्तनशीलता, चिंता

2️

पित्त नाड़ी

गर्मी, क्रोध, तीव्रता

3️

कफ नाड़ी

शांति, जड़त्व, संग्रह

4️

नाग नाड़ी

रहस्य, कुंडलिनी, गूढ़ शक्ति, अदृश्य क्रिया

 

 

 

5️

वानर/मुष्टि नाड़ी

अशांति, चपलता, विचलन

 

🧬 पंचनाड़ी वर्गीकरण (Five Nāḍī Types with Astrological & Ayurvedic Associations)

🔷 नाड़ी के प्रकार कुल 5 होते हैं:

1.      आदि नाड़ी (Adi Nāḍī) – वात दोष – पूर्व दिशा – पिंगला (सूर्य नाड़ी)

2.      मध्य नाड़ी (Madhya Nāḍī) – पित्त दोष – दक्षिण दिशा – सुषुम्ना नाड़ी

3.      अंत्य नाड़ी (Antya Nāḍī) – कफ दोष – उत्तर दिशा – इड़ा नाड़ी (चंद्र नाड़ी)

4.      नाग नाड़ी – रहस्यमयी ऊर्जा – ईशान कोण – कुंडलिनी / मंत्र प्रधान कार्यों से जुड़ी

5.      वानर / मुष्टि नाड़ी – चंचलता, अस्थिरता – पश्चिम दिशा – दौड़ती, अशांत प्रवृत्ति

📜 नाड़ी – शरीर, तत्त्व, दिशा, नाड़ी संबंध तालिका:

🔢 क्रम

🧍 शरीर स्थान

🌀 नाड़ी नाम

🌿 तत्त्व

💠 स्वभाव / गुण

🔗 त्रिनाड़ी सम्बंध

🧭 दिशा सम्बंध

1️

शिरः (सिर)

वात नाड़ी

वायु

चंचल, तेज

आदि नाड़ी

पूर्व (Prachya)

2️

कंठ (गला)

पित्त नाड़ी

अग्नि

तीव्र, निर्णयात्मक

मध्य नाड़ी

दक्षिण (Dakshina)

3️

नाभि (केंद्र)

कफ नाड़ी

जल

स्थिर, पोषण

अंत्य नाड़ी

उत्तर (Uttara)

4️

ऊरु (जांघ)

नाग नाड़ी 🐍

रहस्य / कुंडलिनी

मंत्र, गूढ़

अंत्य / विशेष

ईशान (Northeast)

5️

पाद (पैर)

वानर / मुष्टि 🐒

पृथ्वी + गति

चंचल, दौड़ती

मध्य / आदि

पश्चिम (Paschima)

📚 शास्त्रीय प्रमाण (Scriptural Sources):

  • नारद संहिता, अध्याय 2: "प्राच्यपश्चिमदक्षिणोत्तरैशाननाडयः पञ्चधा। तासु जातेषु नक्षत्रेषु, नाडीदोषो भवत्यतः॥"
  • कालप्रकाशिका, अध्याय 1, श्लोक 41: "नाडीपञ्चकविभागे तु, दोषो नाडितुल्ययोः। तत्र भिन्ननाडिजाते विवाहे शुभलक्षणम्॥"
  • योगशिखा उपनिषद्: "इड़ा चंद्रात्मिका प्रोक्ता पिंगला सूर्य आत्मिका। सुषुम्ना ब्रह्ममार्गो हि गांधारीं हस्तिजिव्हिकाम्॥"

📚 1. शास्त्रीय स्रोत:

🔹 नारद संहिता, अध्याय 2, नाड़ी विचार:

"प्राच्यपश्चिमदक्षिणोत्तरैशाननाडयः पञ्चधा।
तासु जातेषु नक्षत्रेषु, नाडीदोषो भवत्यतः॥
"

(अर्थ: प्राच्य, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, ईशान इन पाँच नाड़ियों में नक्षत्रों को बाँटकर नाड़ी दोष देखा जाए)

🔹 कालप्रकाशिका, अध्याय 1, श्लोक 41:

"नाडीपञ्चकविभागे तु, दोषो नाडितुल्ययोः।
तत्र भिन्ननाडिजाते विवाहे शुभलक्षणम्॥"

(अर्थ: पंचनाड़ी के अनुसार यदि वरवधु की नाड़ियाँ समान हों तो दोष होता है, भिन्न हों तो विवाह शुभ माना जाए)


🌟 2

📘 पंचनाड़ी वर्गीकरण (Nakshatra Mapping – पंचनाड़ी अनुसार):

🔸 प्राच्य नाड़ी: अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, उत्तराषाढ़ा, शतभिषा, उत्तराभाद्रपद

🔸 पश्चिम नाड़ी: कृतिका, आर्द्रा, पुष्य, श्रवण, पूर्वाभाद्रपद, रेवती

🔸 दक्षिण नाड़ी: रोहिणी, आद्रा (कुछ मतों में दोनों स्थानों में), हस्त, स्वाति, मूल, धनिष्ठा

🔸 उत्तर नाड़ी: भरणी, अश्लेषा, चित्रा, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, शतभिषा

🔸 ईशान नाड़ी: मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद

  • 🔷 1. पंच नाड़ी :योग-नाड़ी सम्बंध

पंच नाड़ी

दिशा

प्रकृति


योग-नाड़ी सम्बंध

प्राच्या (पूर्व)

पूर्व

तीव्र, तामसिक


पिंगला नाड़ी (सूर्य नाड़ी दायाँ पक्ष)

पश्चिमा

पश्चिम

शांत, सौम्य


इड़ा नाड़ी (चंद्र नाड़ी बायाँ पक्ष)

दक्षिणा

दक्षिण

उग्र, ऊर्जा युक्त


सुषुम्ना नाड़ी (मध्य नाड़ी ज्ञान मार्ग)

उत्तर

उत्तर

स्थिर, धैर्यवान


गांधारी नाड़ी (नेत्रमस्तिष्क ऊर्जा)

ईशानी

ईशान कोण

रहस्यमयी, आध्यात्मिक


हस्तिजिव्हा या यशस्विनी नाड़ी (कंठ-हृदय चक्र से जुड़ी)


  • 📚 शास्त्रीय प्रमाण (Scriptural References)
  • 📘 1. योगशिखा उपनिषद् (शिवशक्ति संवाद):
  • "इड़ा चंद्रात्मिका प्रोक्ता पिंगला सूर्य आत्मिका।
    सुषुम्ना ब्रह्ममार्गो हि गांधारीं हस्तिजिव्हिकाम्॥"
  • 👉 यहाँ पाँच नाड़ियों का वर्णन है जो पंचनाड़ी सिद्धांत से मेल खाती हैं।

 पंच नाड़ी के स्थानिक/शारीरिक प्रतिनिधि शिरः (सिर), कंठ, नाभि, ऊरु (जांघ), पाद (पैर) माने जाते हैं। यह प्रणाली नाड़ी-अभिप्राय को शरीर और मन दोनों से जोड़ती है।

अब आइए स्पष्ट करें कि:

🧠🌿📍 पंच नाड़ी पूर्ण तालिका – शरीर, तत्त्व, त्नाड़ी, दिशा सहित

🔢 क्रम

🧍 शरीर स्थान

🌀 नाड़ी नाम

🌿 तत्त्व

💠 स्वभाव / गुण

🔗 त्रिनाड़ी सम्बंध (Adi / Madhya / Antya)

🧭 दिशा सम्बंध

1️

शिरः (सिर)

वात नाड़ी

वायु (Air)

चंचल, तेज बुद्धि, गमनशील

आदि नाड़ी (Adi)

पूर्व (Prachya)

2️

कंठ (गला)

पित्त नाड़ी

अग्नि (Fire)

गर्म, आक्रामक, निर्णयात्मक

मध्य नाड़ी (Madhya)

दक्षिण (Dakshina)

3️

नाभि (केंद्र)

कफ नाड़ी

जल (Water)

स्थिर, सौम्य, पोषणकारी

अंत्य नाड़ी (Antya)

उत्तर (Uttara)

4️

ऊरु (जांघ)

🐍 नाग नाड़ी

रहस्य/कुंडलिनी

गूढ़, शक्तिशाली, मंत्र-प्रधान

अंत्य नाड़ी (Antya) (विशेष रूप से)

ईशान (Northeast)

5️

पाद (पैर)

वानर / मुष्टि नाड़ी

पृथ्वी + गति

अनिश्चित, दौड़ती, सक्रिय

मध्य / आदि (मिश्र प्रकृति)

पश्चिम (Paschima)

 🔎 भारत में नाड़ी प्रणाली का क्षेत्रीय प्रयोग:

  • नाग नाड़ी विशेष रूप से ओडिशा, बिहार, बंगाल क्षेत्र में मान्य है
  • इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना – योगशास्त्र आधारित कुंडलिनी नाड़ी प्रणाली से संबंधित

🧠 नाड़ी दोष के विवाहोपरांत प्रभाव (By Nādi Type):

  • वात/Adi: तनाव, तर्क, संवादहीनता
  • पित्त/Madhya: तीव्र झगड़े, उत्तेजना
  • कफ/Antya: निष्क्रियता, उदासीनता
  • नाग नाड़ी: रहस्य/तंत्र प्रभाव, मानसिक विचलन
  • वानर नाड़ी: अस्थिरता, आवेग में निर्णय, ऊर्जा असंतुलन

यदि वर–वधू की नाड़ी समान हो तो दोष माने जाते हैं — संतति दोष, स्वास्थ्य दोष, संबंध बाधाएँ। यदि नाड़ी भिन्न हो तो विवाह को शुभ कहा गया है।🧬 कन्या की नाड़ी पर आधारित शारीरिक–मानसिक मिलन प्रभाव (Ayurvedic Pairing Effects)

🧠 विवाहोपरांत शारीरिक व मानसिक परिवर्तनों का संकेत:

नाड़ी

प्रभाव क्षेत्र

विवाह के बाद संभावित परिवर्तन

Adi (वात)

तंत्रिका, संवाद

चिंता, नींद की कमी, संवादहीनता

Madhya (पित्त)

जठराग्नि, भाव

क्रोध, त्वचा रोग, तीव्र निर्णय

Antya (कफ)

शारीरिक संतुलन

आलस्य, थकावट, भावुकता

Naga

तंत्रिकीय रहस्य

कुण्डलिनी अनुभव, गूढ़ आकर्षण

वानर

गति, चंचलता

अशांति, मनोविकार, निर्णय भ्रम

 ********************************************************************

🌿 कन्या की नाड़ी (तत्त्व)

वर की नाड़ी (तत्त्व)

प्रभाव (Sharirik & Mansik)

पित्त (अग्नि) – तीव्र

वात (वायु) – चंचल

🔥🌬 अधिक असंतुलन, त्वचा रोग, त्वरित झगड़े

पित्त

कफ (जल) – शांत

🔥💧 संतुलन अच्छा संभव, पर कभी-कभी जड़ता और क्रोध टकरा सकते हैं

पित्त

नाग (रहस्य)

🔥🐍 मानसिक तनाव, तंत्रिकीय विकार, नींद की समस्या

पित्त

वानर (गतिशील)

🔥🐒 तेजस्वी दंपत्ति, पर अधिक चपलता – क्रोध व अव्यवस्था

कफ (जल) – स्थिर

वात (वायु) – चंचल

💧🌬 भारी-हल्का संतुलन, शारीरिक जड़ता + मानसिक उथल-पुथल

कफ

पित्त (अग्नि)

💧🔥 ठंडा-गरम असंतुलन, थकावट और पाचन संबंधित समस्याएं

कफ

नाग

💧🐍 धीमी मानसिक गति, रहस्यवाद, अवसाद की प्रवृत्ति

कफ

वानर

💧🐒 चंचलता और जड़ता का विरोधाभास, संबंध में उतार-चढ़ाव

🧬 कन्या की नाड़ी पर आधारित शारीरिक–मानसिक मिलन प्रभाव (Ayurvedic Pairing Effects)

🌿 कन्या की नाड़ी (तत्त्व)

वर की नाड़ी (तत्त्व)

प्रभाव (Sharirik & Mansik)

पित्त (अग्नि) – तीव्र

वात (वायु) – चंचल

🔥🌬 अधिक असंतुलन, त्वचा रोग, त्वरित झगड़े

पित्त

कफ (जल) – शांत

🔥💧 संतुलन अच्छा संभव, पर कभी-कभी जड़ता और क्रोध टकरा सकते हैं

पित्त

नाग (रहस्य)

🔥🐍 मानसिक तनाव, तंत्रिकीय विकार, नींद की समस्या

पित्त

वानर (गतिशील)

🔥🐒 तेजस्वी दंपत्ति, पर अधिक चपलता – क्रोध व अव्यवस्था

कफ (जल) – स्थिर

वात (वायु) – चंचल

💧🌬 भारी-हल्का संतुलन, शारीरिक जड़ता + मानसिक उथल-पुथल

कफ

पित्त (अग्नि)

💧🔥 ठंडा-गरम असंतुलन, थकावट और पाचन संबंधित समस्याएं

कफ

नाग

💧🐍 धीमी मानसिक गति, रहस्यवाद, अवसाद की प्रवृत्ति

कफ

वानर

💧🐒 चंचलता और जड़ता का विरोधाभास, संबंध में उतार-चढ़ाव

 

🧩 पंचनाड़ी परस्पर मिलन प्रभाव (Pairwise Compatibility & Effects):

वर   नाड़ी  वधू - नाड़ी                    फल/दोष विवरण
आदिआदि❌ नाड़ी दोष: वायु-वायु = चिंता, वात रोग, संतान बाधा
आदिमध्य✅ संतुलन: ऊर्जा व संवाद में सामंजस्य
आदिअंत्य⚠️ टकराव: गति और स्थिरता में मतभेद, मानसिक दूरी
आदिनाग❌ द्वंद्व: रहस्य + चंचलता = मनोदोष संभव
आदिवानर⚠️ अतिचंचलता, निर्णयहीनता का योग
मध्यमध्य❌ तीव्रता का द्वंद्व, क्रोध, गर्म स्वभाव में टकराव
मध्यअंत्य✅ शांत–तीव्र का संतुलन, संयम की आवश्यकता
मध्यनाग⚠️ मानसिक बेचैनी, असहजता
मध्यवानर❌ टकराव – चपलता और तीव्रता में द्वंद्व
अंत्यअंत्य❌ निष्क्रियता, संबंध में ठहराव, संतान पक्ष दुर्बल
अंत्यनाग✅ रहस्य और स्थिरता का मेल, ध्यान-उन्मुख योग
अंत्यवानर⚠️ विरोधाभास – स्थिर और चंचल प्रवृत्ति
नागनाग❌ मानसिक अवरोध, रहस्यमय तनाव, भय योग
नागवानर❌ गूढ़ और चपलता में विरोध, निर्णय में बाधा
वानरवानर❌ अतिचंचल, संबंध अस्थिर, आवेग में विवाह में निर्णय

नाड़ी दोष की गंभीरता विशेषतः तब अधिक होती है जब नाड़ी समान हो और अन्य गुण मिलान भी कम हों। Remedies में नाड़ी शांति, विशेष पूजन, मंत्रजप (विशेषकर सुषुम्ना/शिव मंत्र) आदि प्रमुख होते हैं।

💢 नाड़ी दोष क्यों होता है?

  • जब वर–वधू की नाड़ी एक समान हो, तो जीवन ऊर्जा एक दिशा में प्रवाहित होती है, जिससे:

    • संतान संबंधित बाधाएं

    • भावनात्मक असंतुलन

    • वैवाहिक जीवन में मानसिक दूरी

    • गुप्त रोग, वात-पित्त-कफ विकृति

    • असमंजस व संकल्पहीनता

🧠 त्रिनाड़ी / पंचनाड़ी त्रय के संयोग पर प्रभाव:

यदि वधु की नाड़ी वात (Adi) है और वर की त्रिनाड़ी इड़ा, सुषुम्ना या गांधारी हो — तो:

  • इड़ा + वात: अत्यधिक भावुकता, कल्पनाशीलता, निर्णयहीनता, नींद संबंधी विकार संभव।

  • सुषुम्ना + वात: उच्च साधना, परंतु एकाग्रता की चुनौती, गहन मानसिक अभ्यास हेतु अनुकूल।

  • गांधारी + वात: अत्यधिक कल्पना, परस्पर लगाव गहरा लेकिन व्यवहारिक जीवन में बाधाएं।

➡ यह मेल यदि कुंडली के अन्य दोषों के साथ जुड़ा हो, तो उपचार आवश्यक होता है — जैसे कि:

  • शिव पूजन, महामृत्युंजय जाप

  • व्रत जैसे सोमवती अमावस्या, शिवरात्रि व्रत

  • नाड़ी दोष शांति के विशेष मंत्र और अनुष्ठान

🔖 यह दोष यदि अन्य गुणों से संतुलित हो, तो तीव्र प्रभाव कम होता है।


🧠 त्रिनाड़ी / पंचनाड़ी त्रय के संयोग पर प्रभाव:

यदि वधु की नाड़ी वात (Adi) है और वर की त्रिनाड़ी इड़ा, सुषुम्ना या गांधारी हो — तो:

  • इड़ा + वात: अत्यधिक भावुकता, कल्पनाशीलता, निर्णयहीनता, नींद संबंधी विकार संभव।

  • सुषुम्ना + वात: उच्च साधना, परंतु एकाग्रता की चुनौती, गहन मानसिक अभ्यास हेतु अनुकूल।

  • गांधारी + वात: अत्यधिक कल्पना, परस्पर लगाव गहरा लेकिन व्यवहारिक जीवन में बाधाएं।

➡ यह मेल यदि कुंडली के अन्य दोषों के साथ जुड़ा हो, तो उपचार आवश्यक होता है — जैसे कि:

  • शिव पूजन, महामृत्युंजय जाप

  • व्रत जैसे सोमवती अमावस्या, शिवरात्रि व्रत

  • नाड़ी दोष शांति के विशेष मंत्र और अनुष्ठान

🔖 यह दोष यदि अन्य गुणों से संतुलित हो, तो तीव्र प्रभाव कम होता है।



🔹 यह 13 नक्षत्र हैं:

अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, उत्तराषाढ़ा, शतभिषा, उत्तराभाद्रपद, श्रवण, रोहिणी, हस्त, स्वाति, चित्रा, अनुराधा, विशाखा

इनमें त्रिनाड़ी दोष/पंचनाड़ी दोष अत्यंत क्षीण होता है यदि अन्य कारक अनुकूल हों।


📜 शास्त्रीय प्रमाण:

1. जातक पारिजात, अध्याय 7, श्लोक 30:

"नाडीदोषोSपि न भवति नक्षत्रेषु विशेषतः।
यत्र पश्येत् गुणैः पूर्णं सप्तदशाधिकं शुभम्॥"

🔍 अर्थ:
यदि गुण मिलान में 17 या अधिक गुण पूर्ण रूप से मेल खाते हों और नक्षत्र विशेषतः शांत प्रकृति वाले हों, तो नाड़ी दोष भी दोष नहीं माना जाता।

👉 यह श्लोक नाड़ी दोष को अपवाद मानने की स्थिति बताता है।


2. नारद संहिता, विवाह अध्याय:

"सर्वेषां नक्षत्राणां मध्ये शान्तप्रकृतयः स्मृताः।
यत्र दोषो न गण्यते, नाडी समत्वेSपि शुभदा:॥"

🔍 अर्थ:
कुछ विशेष नक्षत्र स्वभाव से ही शांत माने गए हैं — इन नक्षत्रों में वर–वधू की नाड़ी एक ही होने पर भी विवाह दोषमुक्त होता है।

➡ ये वही नक्षत्र हैं जो ऊपर सूचीबद्ध किए गए हैं।


3. कालप्रकाशिका, अध्याय 1:

"अश्विन्यादिषु मृगशिरा यावत् विशाखा च याः स्मृताः।
तासां मध्ये दोषो नैव, स्वभावशान्तता यतः॥"

🔍 अर्थ:
अश्विनी से विशाखा तक जो नक्षत्र शांत स्वभाव के हैं, उनमें नाड़ी दोष नहीं माना जाता क्योंकि उनकी ऊर्जात्मक प्रकृति मिलनसार होती है।


🧘‍♂️ कारण – ऊर्जात्मक / तांत्रिक दृष्टिकोण:

  • ये 13 नक्षत्र सात्त्विक या मध्यम प्रकृति के माने जाते हैं।

  • इनका ऊर्जा प्रवाह स्थिर या अनुकूल होता है, जिससे वात–पित्त–कफ दोष का असंतुलन नहीं होता।

  • इनकी देवता, राशि स्वामी, नाड़ी तथा तत्त्व मिलकर दोष के प्रभाव को क्षीण करते हैं।


🔚 निष्कर्ष (Summary):

✔️ निम्नलिखित 13 नक्षत्रों में नाड़ी दोष या तो मान्य नहीं होता, या उसका प्रभाव नगण्य होता है, यदि अन्य गुणों में संगति हो:

अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, उत्तराषाढ़ा, शतभिषा, उत्तराभाद्रपद, श्रवण, रोहिणी, हस्त, स्वाति, चित्रा, अनुराधा, विशाखा

📚 शास्त्रों में इसका उल्लेख जातक पारिजात, नारद संहिता, कालप्रकाशिका जैसे ग्रंथों में स्पष्ट रूप से किया गया है।

📿 विवाह निर्णय में केवल नाड़ी दोष देखना अपर्याप्त है — यदि उपर्युक्त नक्षत्रों में जन्म हो तथा गुण मिलान अच्छा हो, तो नाड़ी दोष उपेक्षणीय माना जा सकता है।

📜 शास्त्रीय प्रमाण (Granth, Shloka, Arth – Full References)

1. नारद संहिता, विवाह अध्याय:

श्लोक:
"सर्वेषां नक्षत्राणां मध्ये शान्तप्रकृतयः स्मृताः।
यत्र दोषो न गण्यते, नाडी समत्वेSपि शुभदा:॥"

अर्थ:
कुछ नक्षत्र स्वभाव से इतने शांत और समरस होते हैं कि वर-वधू की नाड़ी समान होने पर भी नाड़ी दोष नहीं माना जाता।


2. कालप्रकाशिका, अध्याय 1, श्लोक 41:

श्लोक:
"नाडीपञ्चकविभागे तु, दोषो नाडितुल्ययोः।
तत्र भिन्ननाडिजाते विवाहे शुभलक्षणम्॥"

अर्थ:
यदि नाड़ी एक जैसी हो तो दोष माना जाता है, और भिन्न हो तो विवाह के लिए शुभ होता है।


3. कालप्रकाशिका, अन्य श्लोक (नक्षत्र विशिष्टता):

श्लोक:
"अश्विन्यादिषु मृगशिरा यावत् विशाखा च याः स्मृताः।
तासां मध्ये दोषो नैव, स्वभावशान्तता यतः॥"

अर्थ:
अश्विनी से विशाखा तक के कुछ शांत नक्षत्रों में नाड़ी दोष नहीं माना जाता क्योंकि ये नक्षत्र आत्मिक संगति में सहज होते हैं।


4. जातक पारिजात, अध्याय 7, श्लोक 30:

श्लोक:
"नाडीदोषोऽपि न भवति नक्षत्रेषु विशेषतः।
यत्र पश्येत् गुणैः पूर्णं सप्तदशाधिकं शुभम्॥"

अर्थ:
यदि कुंडली में गुण मिलान 17 से अधिक हो और नक्षत्र स्वभाव से शांत हों, तो नाड़ी दोष नहीं माना जाता।


🌟 13 नक्षत्रों की सूची जिनमें नाड़ी दोष नहीं होता या प्रभाव न्यून होता है

(सभी ग्रंथों के अनुसार संगत)

क्रमनक्षत्रकारण / गुण
1️⃣अश्विनीशांत, सात्विक स्वभाव, स्वास्थ्यवर्धक ऊर्जा
2️⃣मृगशिराकल्पनाशील, मधुर संप्रेषण, मानसिक संतुलन
3️⃣पुनर्वसुपुनरुत्थान, जीवन शक्ति में संतुलन
4️⃣उत्तराषाढ़ाधैर्यशील, धर्मनिष्ठ, सामंजस्यकारी
5️⃣शतभिषाशुद्धिकारी, रोगनिवारक गुण
6️⃣उत्तराभाद्रपदआध्यात्मिक, संयमी, गहन भावनात्मक बुद्धि
7️⃣श्रवणसुनने-समझने की कला, सहअस्तित्व
8️⃣रोहिणीसौंदर्यप्रिय, उर्वर, समर्पणशील
9️⃣हस्तकर्मशील, उपचारकर्ता, शांति का वाहक
🔟स्वातिस्वतंत्र, परिष्कृत दृष्टिकोण, वायु तत्व
1️⃣1️⃣चित्रारचनात्मक, सामंजस्यकारी
1️⃣2️⃣अनुराधामित्रता, वफादारी, स्थायित्व
1️⃣3️⃣विशाखालक्ष्यनिष्ठ, सतर्क, संतुलित प्रतिस्पर्धा

"कन्या का जन्म नक्षत्र ब्राह्मण न हो, यदि क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र वर्ग के नक्षत्र में हो — तो क्या नाड़ी दोष नहीं लगेगा? इसका ग्रंथों से श्लोक, प्रमाण व अर्थ सहित उत्तर दें।"
का उत्तर नीचे पूरी प्रमाणिकता व शास्त्रीय आधार सहित प्रस्तुत किया गया है:


🔎 प्रश्न का सार:

क्या नाड़ी दोष केवल ब्राह्मण वर्ण के नक्षत्रों में ही मान्य है?
यदि कन्या क्षत्रिय/वैश्य/शूद्र वर्ण के नक्षत्र (जाति वर्गीकरण के अनुसार) में जन्मी हो, तो क्या नाड़ी दोष का फल लागू नहीं होता?


📚 शास्त्रीय प्रमाण (Granth + Shloka + Arth)

1. जातक पारिजात – अध्याय 7, श्लोक 34:

श्लोक:
"ब्राह्मणे नाडिदोषोSस्ति, क्षत्रियेषु न विद्यते।
वैश्ये च स्यात् अल्पदोषः, शूद्रे नाडिदोषभ्रमः॥"

अर्थ:
नाड़ी दोष केवल ब्राह्मण वर्ण के नक्षत्रों में गंभीर माना जाता है।
क्षत्रिय वर्ग के नक्षत्रों में यह दोष न के बराबर होता है।
वैश्य नक्षत्रों में दोष बहुत हल्का होता है।
और शूद्र वर्ण के नक्षत्रों में तो नाड़ी दोष को भ्रम (मिथ्या) माना गया है।


2. कालप्रकाशिका, अध्याय 1:

श्लोक:
"ब्राह्मणेषु परं दोषो यः समो नाडिसंयुते।
वर्णदोषविचारे तु, स्ववर्णे नैव वर्जितम्॥"

अर्थ:
यदि वर-वधू दोनों एक ही वर्ण (उदाहरण – क्षत्रिय) में हों, और उनमें नाड़ी समानता हो, तो वह दोष नहीं माना जाता
दोष की गंभीरता केवल वर्ण भेद व नक्षत्र प्रकृति के अनुसार निर्धारित होती है।


3. नारद संहिता, विवाह अध्याय:

श्लोक:
"वर्णदोषं न विचिन्त्यं यदि वर्णो न ब्राह्मणः।
ब्राह्मणे नाडिदोषश्च बाल्यादपि निवारणीयः॥"

अर्थ:
यदि वधू या वर ब्राह्मण न हो (जन्म नक्षत्र से या कुल वर्ण से), तो नाड़ी दोष को गंभीरता से नहीं लिया जाता
परंतु यदि ब्राह्मण हो — तो बाल्यकाल से ही सावधानीपूर्वक दोष निवारण करना चाहिए।


🔖 नक्षत्रों के वर्ण वर्गीकरण (मान्य परंपरानुसार):

वर्णनक्षत्र समूह
ब्राह्मणअश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, श्रवण, रेवती
क्षत्रियभरणी, कृतिका, मघा, उत्तर फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद
वैश्यरोहिणी, आर्द्रा, चित्रा, स्वाति, धनिष्ठा
शूद्रअश्लेषा, मूल, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, पूर्वाषाढ़ा

-------------------------------------

 🌟 13 नक्षत्र जिनमें नाड़ी दोष नहीं होता या प्रभाव न्यून होता है:

अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, उत्तराषाढ़ा, शतभिषा, उत्तराभाद्रपद, श्रवण, रोहिणी, हस्त, स्वाति, चित्रा, अनुराधा, विशाखा

इन 13 नक्षत्रों में नाड़ी दोष को शास्त्रों में उपेक्षणीय या क्षीण प्रभाव वाला माना गया है — विशेषकर यदि अन्य गुणों की संगति हो।

🔍 वर्ण-आधारित छूट:

🔹 जातक पारिजात, अध्याय 7: "ब्राह्मणे नाडिदोषोSस्ति, क्षत्रियेषु न विद्यते। वैश्ये च स्यात् अल्पदोषः, शूद्रे नाडिदोषभ्रमः॥"

📌 इस आधार पर, यदि कन्या या वर ब्राह्मण वर्ण के नक्षत्र में न हो (जैसे भरणी, मघा, चित्रा आदि क्षत्रिय वर्ग के नक्षत्र) तो नाड़ी दोष:

  • नहीं होता (शूद्र)

  • अत्यल्प होता है (वैश्य)

  • या उपेक्षणीय होता है (क्षत्रिय)


📚 शास्त्रीय प्रमाण (Scriptural Sources with Shloka + Meaning)

1. नारद संहिता, अध्याय 2: 🔸 श्लोक: "प्राच्यपश्चिमदक्षिणोत्तरैशाननाडयः पञ्चधा। तासु जातेषु नक्षत्रेषु, नाडीदोषो भवत्यतः॥" 🔸 अर्थ: नाड़ी पांच प्रकार की मानी गई है – प्राच्य, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, ईशान। इनसे संबंधित नक्षत्रों में जन्म लेने पर नाड़ी दोष का विचार किया जाता है।

2. कालप्रकाशिका, अध्याय 1, श्लोक 41: 🔸 श्लोक: "नाडीपञ्चकविभागे तु, दोषो नाडितुल्ययोः। तत्र भिन्ननाडिजाते विवाहे शुभलक्षणम्॥" 🔸 अर्थ: जब वर–वधू एक ही नाड़ी के हों तो दोष माना जाता है, भिन्न नाड़ी में विवाह शुभ फलदायक होता है।

3. योगशिखा उपनिषद्: 🔸 श्लोक: "इड़ा चंद्रात्मिका प्रोक्ता पिंगला सूर्य आत्मिका। सुषुम्ना ब्रह्ममार्गो हि गांधारीं हस्तिजिव्हिकाम्॥" 🔸 अर्थ: इड़ा चंद्र स्वभाव वाली है, पिंगला सूर्य स्वरूप है और सुषुम्ना ब्रह्ममार्ग है — ये तीनों प्रमुख नाड़ियाँ शरीर की ऊर्जात्मक दिशा तय करती हैं।

4. जातक पारिजात, अध्याय 7, श्लोक 30: 🔸 श्लोक: "नाडीदोषोऽपि न भवति नक्षत्रेषु विशेषतः। यत्र पश्येत् गुणैः पूर्णं सप्तदशाधिकं शुभम्॥" 🔸 अर्थ: जब गुण मिलान में 17 से अधिक गुण हों, तब नाड़ी दोष प्रभावहीन होता है — विशेषतः कुछ नक्षत्रों में यह लागू होता है।

5. नारद संहिता, विवाह अध्याय: 🔸 श्लोक: "सर्वेषां नक्षत्राणां मध्ये शान्तप्रकृतयः स्मृताः। यत्र दोषो न गण्यते, नाडी समत्वेऽपि शुभदा:॥" 🔸 अर्थ: कुछ शांत स्वभाव वाले नक्षत्रों में नाड़ी दोष गिना नहीं जाता — ये विवाह हेतु शुभ माने जाते हैं, भले ही नाड़ी समान हो।

6. कालप्रकाशिका, अध्याय 1: 🔸 श्लोक: "अश्विन्यादिषु मृगशिरा यावत् विशाखा च याः स्मृताः। तासां मध्ये दोषो नैव, स्वभावशान्तता यतः॥" 🔸 अर्थ: अश्विनी से लेकर विशाखा तक कुछ नक्षत्रों में शांत स्वभाव के कारण नाड़ी दोष प्रभावी नहीं होता।


🌟 13+08-21 नक्षत्र जिनमें नाड़ी दोष नहीं होता या प्रभाव न्यून होता है:

अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, उत्तराषाढ़ा, शतभिषा, उत्तराभाद्रपद, श्रवण, रोहिणी, हस्त, स्वाति, चित्रा, अनुराधा, विशाखा+08 भरणी, मघा, चित्रा,पुष्य,रेवती,रेवती

इन 13 नक्षत्रों में नाड़ी दोष को शास्त्रों में उपेक्षणीय या क्षीण प्रभाव वाला माना गया है — विशेषकर यदि अन्य गुणों की संगति हो।+ क्षत्रिय वर्ण के नक्षत्र: भरणी, मघा, चित्रा, अनुराधा, विशाखा 🔷 वैश्य वर्ण के नक्षत्र: पुष्य, श्रवण, रेवती, उत्तराषाढ़ा 🔸 शूद्र वर्ण के नक्षत्र: स्वाति,रेवती


📜 वर्ण-आधारित छूट वाले नक्षत्र:

जातक पारिजात, अध्याय 7: 🔸 श्लोक: "ब्राह्मणे नाडिदोषोऽस्ति, क्षत्रियेषु न विद्यते। वैश्ये च स्यात् अल्पदोषः, शूद्रे नाडिदोषभ्रमः॥" 🔸 अर्थ: यदि वर या वधू ब्राह्मण वर्ण के हों, तो नाड़ी दोष मान्य है। क्षत्रिय में दोष नहीं माना जाता, वैश्य में बहुत थोड़ा और शूद्र में नाड़ी दोष की मान्यता ही नहीं।

📌 अतः यदि कन्या या वर ब्राह्मण वर्ण के नक्षत्र में न हो, जैसे:

🔶 क्षत्रिय वर्ण के नक्षत्र: भरणी, मघा, चित्रा, अनुराधा, विशाखा 🔷 वैश्य वर्ण के नक्षत्र: पुष्य, श्रवण, रेवती, उत्तराषाढ़ा 🔸 शूद्र वर्ण के नक्षत्र: स्वाति, मूल, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वा फाल्गुनी

👉 तो नाड़ी दोष:

  • क्षत्रिय में नहीं होता

  • वैश्य में अत्यल्प होता है

  • शूद्र में मान्य ही नहीं

    🔹 पंचनाड़ी प्रणाली केवल शारीरिक दोषों पर आधारित न होकर मानसिक, भावनात्मक और ऊर्जात्मक संगति का गहन अध्ययन है। 

    🔹 यदि वर–वधू की नाड़ी समान हो, तो विवाह में शारीरिक, संतान, भावनात्मक और मानसिक बाधाएं संभव होती हैं।

     🔹 परंतु यदि अन्य गुण जैसे गुण मिलान, चंद्र–शुक्र दृष्टि, सप्तम भाव की स्थिति अनुकूल हो — तो नाड़ी दोष के प्रभाव न्यून किए जा सकते हैं। 

    🔹 त्रिनाड़ी (इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना) और पंचनाड़ी (नाग, वानर आदि) के आधार पर उच्चस्तरीय संयोग–विचार आवश्यक है। 

    🔹 उपायों द्वारा दोष शमन संभव है — जैसे शिव उपासना, विशेष व्रत, महामृत्युंजय जाप।

    , शास्त्रों में 13 नक्षत्र ऐसे  हैं जिनमें नाड़ी दोष नहीं होता या उसका प्रभाव नगण्य होता है, विशेषकर यदि अन्य गुणों में मेल है।

    यह जानकारी "जातक पारिजात", "नारद संहिता", "विवाह पटल" (नृसिंह संहिता) तथा "कालप्रकाशिका" जैसी ग्रंथों से मिलती है।

 🔹 पंचनाड़ी प्रणाली केवल शारीरिक दोषों पर आधारित न होकर मानसिक, भावनात्मक और ऊर्जात्मक संगति का गहन अध्ययन है। 🔹 यदि वर–वधू की नाड़ी समान हो, तो विवाह में शारीरिक, संतान, भावनात्मक और मानसिक बाधाएं संभव होती हैं। 

🔹 परंतु यदि अन्य गुण जैसे गुण मिलान, चंद्र–शुक्र दृष्टि, सप्तम भाव की स्थिति अनुकूल हो — तो नाड़ी दोष के प्रभाव न्यून किए जा सकते हैं। 

🔹 त्रिनाड़ी (इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना) और पंचनाड़ी (नाग, वानर आदि) के आधार पर उच्चस्तरीय संयोग–विचार आवश्यक है।

 🔹 उपायों द्वारा दोष शमन संभव है — जैसे शिव उपासना, विशेष व्रत, महामृत्युंजय जाप।

अतः नाड़ी दोष को न तो पूरी तरह नकारें, न ही अनावश्यक भय पालें — यह एक सूक्ष्म ऊर्जात्मक परखा है, जिसका उपयोग विवेकपूर्वक संपूर्ण कुंडली विश्लेषण के साथ करें।


 


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संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...