ऐन्द्रि पूजा- 4 जुलाई 2025
🔷 1. देवी एन्द्रि कौन हैं? | Who is Devi Aindri?
संक्षेप परिचय:
देवी
एन्द्रि (इन्द्राणी) नवदुर्गा की एक विशेष उग्र-शक्ति हैं जो इन्द्रदेव की
शक्तिस्वरूपा मानी जाती हैं। ये श्वेत वस्त्रधारी, ऐरावत (सफेद हाथी) पर विराजमान, रजोगुण
प्रकृति की अधिष्ठात्री शक्ति हैं। इनका पूजन विशेष रूप से शक्ति रक्षा, राजकीय
कार्यों में सफलता, एवं शत्रु संहार हेतु किया जाता है।
🔸 स्कंद पुराण, देवीभागवत, भास्य उत्तर पुराण तथा दुर्गा सप्तशती में देवी
एन्द्रि का महत्त्वपूर्ण उल्लेख है।
1. देवी ऐन्द्रि का परिचय (Devi Aindri – Introduction)
देवी ऐन्द्रि सप्तमातृकाओं एवं नवशक्तियों में एक शक्ति हैं जो इन्द्रदेव की तेजोमयी शक्ति से उत्पन्न हुईं। ये दैत्यों के विनाश के लिए शक्ति का रजोगुण स्वरूप हैं। इनकी आराधना तांत्रिक साधकों के लिए उच्च फलदायी होती है, विशेषतः शक्ति, रक्षा, राजसत्ता और शत्रु-विजय के लिए।
2. देवी ऐन्द्रि की कथा (Scriptural Story)
जब महिषासुर और शुंभ-निशुंभ जैसे दानवों ने तीनों लोकों को आतंकित किया, तब सभी देवताओं ने अपनी शक्तियों को प्रकट किया। इन्द्रदेव की शक्ति से उत्पन्न हुईं देवी ऐन्द्रि। इनके वाहन ऐरावत हैं, जो आकाशीय सफेद हाथी है। देवी ने वज्र से अनेक दानवों का वध किया।
इन्द्रशक्तिर्जया देवी रजसा संप्रवर्तिता।
वज्रायुधधरा श्वेता ऐरावते समासिता॥
— देवीभागवत पुराण 5.18.44
अर्थ: इन्द्र की शक्ति रूप जया देवी रजोगुण से प्रकट हुईं, वज्रधारिणी होकर श्वेत ऐरावत पर विराजित हैं।
🔷 2. पूजा आरम्भ का समय व नियम | When & How to Begin Aindri
Puja
📅 शुभ समय:
- अष्टमी
/ नवमी / शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि
- मंगलवार, रविवार, अथवा चंद्रग्रहण काल
में विशेष फलदायी
- रात्रि
या ब्रह्म मुहूर्त में पूजन विशेष रूप से सिद्धिप्रद
📜 प्रारंभ विधि (Stepwise):
- शुद्ध
स्नान, श्वेत वस्त्र धारण करें।
- पूर्व
दिशा में आसन लगाएं; ऐरावत या उसके प्रतीक पर देवी का चित्र/मूर्ति
रखें।
- सप्तम्यादि
न्यास एवं बीज मंत्रों से देवी का आवाहन करें।
- दीपक, धूप, नैवेद्य, पुष्प, गंध, चन्दन
से षोडशोपचार पूजन करें।
- दुर्गा
सप्तशती के "नारायणी स्तुति", "रात्रि सूक्त", और
"देवी अर्गला स्तोत्र" का पाठ करें।
- 108 बार 'ॐ ऐं
इन्द्रायै नमः' मंत्र का जप करें।
- अंत
में आरती व क्षमाप्रार्थना करें।
🔷 3. महत्त्व व लाभ | Importance & Benefits
📚 शास्त्रीय प्रमाण:
देवीभागवत महापुराण 5.18.44:
"इन्द्रशक्तिर्जया देवी, रजसा संप्रवर्तिता।
वज्रायुधधरा
श्वेता,
ऐरावते
समासिता॥"
भावार्थ: इन्द्र की
शक्ति स्वरूपा जया देवी (एन्द्रि), रजोगुण से उत्पन्न होकर श्वेत वस्त्रधारण कर ऐरावत
हाथी पर विराजती हैं।
🔶 लाभ:
- शत्रु
बाधा, कोर्ट
केस, राजनीति
में सफलता
- आत्मविश्वास
और नेतृत्व में वृद्धि
- तेज, प्रभाव
और मान-सम्मान की प्राप्ति
- ग्रहण
व पीड़ा निवारण हेतु उत्तम
- गर्भधारण
व संतान प्राप्ति में भी लाभकारी
🔷 4. देवी का स्वरूप | Iconography of Aindri Devi
- वाहन: श्वेत
ऐरावत हाथी
- वस्त्र: पूर्ण
श्वेत – शुद्धता
व तेज का प्रतीक
- अभय
मुद्रा, वज्र व अंकुश धारण
- सिर पर
मुकुट, नेत्रों से तेजस्विता
- दिव्य
गंधयुक्त पुष्पों से अलंकृत
🔷 5. दीपक, आरती, वस्त्र, रंग
- दीपक: गाय के
घी का दीया, 3 मुखी, पीली
बाती
- वस्त्र: पूर्ण
श्वेत – सिल्क, सूती
या चंद्रकला अंकित
- पुष्प: श्वेत
कमल, शंखपुष्पी, सफेद
जूही
- धूप: लोहबान
या गुग्गुलु
- आरती
मंत्र:
"जय ऐन्द्रि देवी, रजोगुण धारिणी।
श्वेतारूढ़ा, तेजस्विनी, महाशक्ति धारिणी॥"
(स्वरचित आरती)
🔷 6. बीज मंत्र व अनुष्ठानिक श्लोक
📿 मुख्य मंत्र:
"ॐ ऐं इन्द्रायै नमः।" (108 बार)
📖 श्लोक – देवीमाहात्म्य (सप्तशती):
"नमस्तेऽस्तु
महामाये, शक्ति रूपे
सनातनि।
ऐन्द्रि
त्वं च महाशक्ते, रक्ष मां सततं शुभे॥"
(देवीमाहात्म्य, 11.5)
भावार्थ: हे
देवी एन्द्रि! सनातनी शक्ति रूपा! तुम्हें नमस्कार है, तुम सदैव मेरी
रक्षा करो।
🔷 7. किसे करनी चाहिए? | Who Should Worship
- राजनीति
में कार्यरत व्यक्ति
- अधिकारियों, प्रशासकों, सैन्य
कर्मियों
- शत्रु
बाधा या कोर्ट केस में फंसे लोग
- जिनका
स्वाभाविक तेज व आत्मबल कम हो गया हो
- जो
ग्रहण/राहु-केतु दोष से पीड़ित हों
- विवाह
में रुकावट वाले व्यक्ति (विशेष रूप से शनि-दोष पीड़ित)
🔷 8. देवी एन्द्रि – नवदुर्गा में स्थान
- देवी
एन्द्रि अष्टमी/नवमी तिथि
को पूज्य हैं
- इन्हें "सिद्धिदात्री" व "महेश्वरी" के मध्य एक उग्र शक्ति रूप माना गया है
3. तांत्रिक पूजन विधि (Tantri Puja Vidhi)
शुद्ध स्नान कर पूर्व दिशा की ओर मुख कर पूजा करें। श्वेत वस्त्र धारण करें,
सफेद पुष्प और गाय के घी का दीपक प्रयोग करें।
मुख्य मंत्र (Main Mantras)
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ऐन्द्र्यै नमः॥
ॐ श्री ऐन्द्र्यै च विद्महे वज्र शक्त्यै धीमहि तन्नो इन्द्रि प्रचोदयात्॥
4. ऐन्द्रि यंत्र
(Aindri Yantra)
त्रिकोण यंत्र जिसमें मध्य में बीजाक्षर 'ऐं', चारों ओर कमलदल और वज्र का प्रतीक।
5. लाभ (Benefits)
✔️ शत्रु नाश व न्यायिक विजय
✔️ आत्मबल, तेज, प्रशासनिक सफलता
✔️ ग्रहण दोष शांति
✔️ साधनाओं में सफलता
🔱 देवी ऐन्द्रि (इन्द्राणी) की पौराणिक कथा – तांत्रिक, पुराणिक, एवं सप्तशती आधारित विस्तृत विवरण
(Scriptural Story of Devi Aindri – With Purana, Tantrik & Saptashati references)
📖 1. उत्पत्ति की पृष्ठभूमि – महिषासुर व ध्वस्त धर्म
महाभयानक असुर महिषासुर ने तीनों लोकों में आतंक मचाया। देवताओं को पराजित कर वह स्वर्ग के सिंहासन पर बैठ गया। ब्रह्मा से अमरता का वर प्राप्त कर उसने किसी पुरुष द्वारा न मारे जाने की शर्त से सुरक्षा प्राप्त कर ली। इस कारण देवता विचलित हो उठे।
🕉️ तब ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने अपनी शक्तियाँ मिलाकर देवी चण्डिका (दुर्गा) को प्रकट किया, और प्रत्येक देवता ने अपनी-अपनी शक्ति को अलग कर देवी को सहायक रूप में सौंपा। इन शक्तियों को "सप्तमातृकाएँ" कहा गया।
📿 2. देवी ऐन्द्रि की उत्पत्ति (Birth of Aindri Devi)
📚 स्रोत: मार्कण्डेय पुराण – दुर्गा सप्तशती, अध्याय 8-10; देवीभागवत महापुराण; कालिका पुराण
🔹 इन्द्रदेव ने अपनी शक्ति को प्रकट कर एक रजोगुणी, उज्जवल तेजोमयी शक्ति का आवाहन किया, जो "एन्द्रि" (या इन्द्राणी) नाम से प्रसिद्ध हुईं।
🔹 वह देवी श्वेत ऐरावत हाथी पर आरूढ़ थीं, उनके हाथों में वज्र, अंकुश, और कमल थे, और उनके वस्त्र भी पूर्ण श्वेत थे।
🔹 उनका मुख उग्र किंतु शांतिदायिनी था। इन्द्र की समस्त शक्ति, तेज, और आकाशीय प्रभाव उनमें समाहित था।
📜 श्लोक – देवीभागवत 5.18.44:
"इन्द्रशक्तिर्जया देवी रजसा संप्रवर्तिता।
वज्रायुधधरा श्वेता, ऐरावते समासिता॥"
भावार्थ: इन्द्र की शक्ति जया देवी, रजोगुण से उत्पन्न हुईं, वज्रधारी व ऐरावत पर आरूढ़ थीं।
🗡️ 3. शुम्भ-निशुम्भ, चण्ड-मुण्ड व रक्तबीज वध में भूमिका
असुर सेनापति शुम्भ-निशुम्भ जब देवी चण्डिका को बंदी बनाने आये, तब सप्तमातृकाओं को बुलाया गया। ऐन्द्रि देवी ने चण्ड और मुण्ड नामक दो उग्र असुरों को वज्र से मार गिराया।
कालिका पुराण, अध्याय 42:
"श्वेतवस्त्रधरा देवी, वज्रपाणिः सुरेश्वरी।
चण्डमुण्डं समुद्धर्तुं ययौ संक्रुद्धलोचना॥"
❗ विशेष युद्ध:
रक्तबीज जैसे असुर को हर देवशक्ति विफल रही, क्योंकि उसकी प्रत्येक बूँद से नया असुर उत्पन्न होता था।
ऐन्द्रि देवी ने अपने वज्र से उसे घायल कर रक्त बहाया, और कालिका (एक अन्य शक्ति) ने रक्त को पीकर उसका वध किया।
💫 4. ऐन्द्रि की तांत्रिक महत्ता (Tantric Significance)
-
ऐन्द्रि शक्ति राज्य शक्ति (Administrative Power) का प्रतीक है।
-
यह शक्ति सत्ताधारियों की रक्षा, निर्णय क्षमता, और शत्रु पर जय प्रदान करती है।
-
तंत्र में इन्हें दक्षिण दिशा की अधिष्ठात्री माना गया है, और इनके यंत्र का प्रयोग वशीकरण, शत्रु शमन, तांत्रिक रक्षण के लिए किया जाता है।
📜 5. काव्यात्मक अभिव्यक्ति – सप्तशती स्तुति
"या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"
— देवी महात्म्यम्, 11.4
"नमस्तेऽस्तु महामाये शक्तिरूपे सनातनि।
ऐन्द्रि त्वं च महाशक्ते, रक्ष मां सततं शुभे॥"
✅ सारांश
तत्व | विवरण |
---|---|
उत्पत्ति | इन्द्रदेव की शक्ति से, देवी चण्डिका की सहायता हेतु |
वाहन | ऐरावत (श्वेत गजराज) |
अस्त्र | वज्र, अंकुश |
स्वरूप | श्वेत वस्त्रधारिणी, चार/आठ भुजाएँ |
भूमिका | चण्ड-मुण्ड वध, रक्तबीज से युद्ध, रजोगुण रूप |
तांत्रिक क्षेत्र | शत्रुहंता, तेजप्रदायिनी, राजयोगकारिणी |
📘 उल्लेखनीय ग्रंथ:
- देवी
भागवत महापुराण
- ब्रह्मवैवर्त
पुराण (प्रकृति खण्ड)
- भास्य
उत्तर पुराण
- दुर्गा
सप्तशती (अर्गला, कीलक, कवच सहित)
- तंत्रसार, रुद्रयामल
- कलिका
पुराण – शक्ति
उपासना खण्ड
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