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प्रदोष व्रत-प्रदोष व्रत – जाने-अनजाने तथ्य (रहस्य) Pradosh Vrat – Known and Unknown Facts (Mysteries)Family Happiness, Peace, and Prosperity for Householders

 

प्रदोष व्रत – गृहस्थ वर्ग के लिए पारिवारिक सुख, शांति, समृद्धि हेतु विशेष महत्वपूर्ण

Pradosh Vrat – Especially Important for Family Happiness, Peace, and Prosperity for Householders

 शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष का प्रभाव प्रदोष व्रत में भिन्नता

प्रदोष व्रत हर पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है, अर्थात् शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों में। दोनों पक्षों में किए गए व्रत के प्रभाव अलग-अलग होते हैं, जिनका उल्लेख विभिन्न पुराणों में मिलता है।मुख्य अंतर शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष प्रदोष व्रत में

पक्ष

प्रभाव / लाभ

शुक्ल पक्ष

धन-वैभव, सौभाग्य, पारिवारिक सुख, शुभता, ज्ञान, और आध्यात्मिक उन्नति

कृष्ण पक्ष

पापों का नाश, रोग-शोक से मुक्ति, शत्रु और ग्रह दोष निवारण, पितृदोष शांति

शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत करने से धन, ऐश्वर्य, पारिवारिक सुख और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
कृष्ण पक्ष प्रदोष व्रत करने से पापों का नाश, रोगों से मुक्ति, ग्रह और शत्रु दोषों से राहत मिलती है।
दोनों ही व्रत भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत फलदायी हैं।


1. शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत का प्रभाव

🔹 शुक्ल पक्ष में प्रदोष व्रत करने से सकारात्मक ऊर्जा, ज्ञान, ऐश्वर्य और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
🔹 इस व्रत से धन-लक्ष्मी, शुभता, पारिवारिक सुख और सफलता मिलती है।
🔹 आध्यात्मिक उन्नति के लिए शुक्ल पक्ष का प्रदोष श्रेष्ठ माना गया है।

📖 संदर्भ: स्कंद पुराण
📜 श्लोक:
🔹 शुक्लपक्षे प्रदोषं तु यः कुर्याच्छिवपूजनम्।
🔹 स सर्वार्थान्वितो भूत्वा शिवलोकं स गच्छति॥
👉 अर्थ: जो व्यक्ति शुक्ल पक्ष में प्रदोष व्रत कर शिव की पूजा करता है, उसे सभी इच्छित फल मिलते हैं और अंत में शिवलोक की प्राप्ति होती है।


2. कृष्ण पक्ष प्रदोष व्रत का प्रभाव

🔹 कृष्ण पक्ष में प्रदोष व्रत करने से पापों का नाश, रोगों से मुक्ति, और कष्टों से राहत मिलती है।
🔹 यह व्रत पितृ दोष, ग्रह दोष और शत्रु बाधा दूर करने के लिए विशेष रूप से लाभकारी होता है।
🔹 राहु-केतु, शनि और मंगल दोष को शांति प्रदान करता है।

📖 संदर्भ: लिंग पुराण
📜 श्लोक:
🔹 कृष्णपक्षे प्रदोषं तु यः कुर्याद्भक्तिसंयुतः।
🔹 सर्वपापविनिर्मुक्तः शिवसायुज्यमाप्नुयात्॥
👉 अर्थ: जो व्यक्ति कृष्ण पक्ष में श्रद्धा से प्रदोष व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर शिव में लीन हो जाता है।

🔷 मुख्य अंतर शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष प्रदोष व्रत में

पक्ष

प्रभाव / लाभ

शुक्ल पक्ष

धन-वैभव, सौभाग्य, पारिवारिक सुख, शुभता, ज्ञान, और आध्यात्मिक उन्नति

कृष्ण पक्ष

पापों का नाश, रोग-शोक से मुक्ति, शत्रु और ग्रह दोष निवारण, पितृदोष शांति


शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत करने से धन, ऐश्वर्य, पारिवारिक सुख और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
कृष्ण पक्ष प्रदोष व्रत करने से पापों का नाश, रोगों से मुक्ति, ग्रह और शत्रु दोषों से राहत मिलती है।
दोनों ही व्रत भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत फलदायी हैं।

प्रदोष व्रत के दिन एवं फल - ग्रंथों के अनुसार (श्लोक सहित)

प्रदोष व्रत हिंदू धर्म में भगवान शिव की आराधना का विशेष दिन माना जाता है। यह हर पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। प्रदोष व्रत को करने से विभिन्न लाभ प्राप्त होते हैं, जो दिन के अनुसार भिन्न होते हैं।


🔹 प्रदोष व्रत प्रत्येक दिन भिन्न-भिन्न फल प्रदान करता है।
🔹 स्कंद पुराण, शिव पुराण, लिंग पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि ग्रंथों में इस व्रत की महिमा का वर्णन किया गया है।
🔹 यह व्रत सभी पापों का नाश कर शिव कृपा, आरोग्य, धन-धान्य एवं मोक्ष प्रदान करता है।
🔹 इस व्रत को संध्याकाल (प्रदोष काल) में करने से अधिक लाभ मिलता है।

1. विवार प्रदोष व्रत (Ravivar Pradosh Vrat)

👉 फल: दीर्घायु एवं आरोग्य की प्राप्ति। रोग और शोक का नाश होता है।
📜 श्लोक:
🔹 रविवारस्य प्रदोषे तु यः कुर्याच्छिवपूजनम्।
🔹
स दीर्घमायुरारोग्यं लभते नात्र संशयः॥
📖 संदर्भ: स्कंद पुराण


2. सोमवार प्रदोष व्रत (Somvar Pradosh Vrat)

👉 फल: मनोवांछित फल, मानसिक शांति एवं समस्त इच्छाओं की पूर्ति।
📜 श्लोक:
🔹 सोमवासरे प्रदोषे च भक्त्या यः शंकरं भजेत्।
🔹
सर्वाभीष्टं लभेद्देवि शिवलोकं स गच्छति॥
📖 संदर्भ: शिव पुराण


3. मंगलवार प्रदोष व्रत (Mangalvar Pradosh Vrat)

👉 फल: शत्रु नाश, ऋण मुक्ति एवं बल-पराक्रम की वृद्धि।
📜 श्लोक:
🔹 मंगलवासरे प्राप्ते प्रदोषं यः समाचरेत्।
🔹
स पापविनिर्मुक्तः शिवलोकं स गच्छति॥
📖 संदर्भ: लिंग पुराण


4. बुधवार प्रदोष व्रत (Budhvar Pradosh Vrat)

👉 फल: बुद्धि, वाणी में मधुरता, वाद-विवाद में विजय।
📜 श्लोक:
🔹 बुधवासरे प्रदोषे च यः कुर्याच्छिवसेवनम्।
🔹 स सर्वार्थान्वितः स्यात् च वाणी तस्य मधुर्यता॥
📖 संदर्भ: नारद पुराण


5. गुरुवार प्रदोष व्रत (Guruvar Pradosh Vrat)

👉 फल: धर्म, संतान सुख, गुरु कृपा एवं आध्यात्मिक उन्नति।
📜 श्लोक:
🔹 गुरुवासरे प्रदोषे च भक्त्या यः शंकरं भजेत्।
🔹 स पुत्रपौत्रवृद्धिश्च गुरुभक्त्या समायुतः॥
📖 संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण


6. शुक्रवार प्रदोष व्रत (Shukravar Pradosh Vrat)

👉 फल: धन-वैभव, सुख-समृद्धि एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति।
📜 श्लोक:
🔹 शुक्रवासरे प्रदोषे तु यः शंकरं भजेत्।
🔹 स सौभाग्यं धनं लक्ष्मीं लभते नात्र संशयः॥
📖 संदर्भ: पद्म पुराण


7. शनिवार प्रदोष व्रत (Shanivar Pradosh Vrat)

👉 फल: शनि दोष निवारण, सभी संकटों से मुक्ति, मोक्ष प्राप्ति।
📜 श्लोक:
🔹 शनिवासरे प्रदोषे तु यः शंकरं समर्चयेत्।
🔹 स कष्टविनिवृत्तिश्च मोक्षमाप्नोति शाश्वतम्॥
📖 संदर्भ: गरुड़ पुराण


1.       लाल रंग और शिव पूजा का संबंध

-प्रदोष व्रत में लाल रंग का उपयोग करने से शक्ति, सौभाग्य, और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। यह रंग शिव और शक्ति दोनों की कृपा दिलाने वाला होता है, इसलिए इसे पूजा सामग्री में प्रमुखता दी जाती है।

📜 शिव पुराण में वर्णन है कि लाल रंग सकारात्मक ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक है, जिससे शिव कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।
📖 श्लोक:
🔹 रक्तवर्णं तु यत् पुष्पं तत् शिवाय प्रदीयते।
🔹 सर्वान् कामानवाप्नोति शिवलोकं स गच्छति॥
👉 अर्थ: लाल रंग के पुष्प से शिव पूजन करने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और शिवलोक की प्राप्ति होती है।

2. लाल वस्त्र और ध्वजा का महत्व

  • लाल वस्त्रशिवलिंग पर चढ़ाने से आत्मबल और साहस की वृद्धि होती है।
  • लाल ध्वजा (झंडा)मंदिरों में लाल ध्वजा लगाने से संकट टलते हैं और शिव कृपा बनी रहती है

3. लाल चंदन और कुमकुम

  • लाल चंदनप्रदोष व्रत में शिवलिंग पर लगाने से मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं
  • कुमकुम तिलकशिवलिंग पर अर्पित करने से मंगल कार्यों में सफलता मिलती है।

4. लाल पुष्प और फल

  • लाल गुड़हल (hibiscus) पुष्पयह देवी शक्ति का प्रतीक है और इसे चढ़ाने से अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है
  • लाल अनार और सेबयह शिव को अर्पित करने से धन और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

5. लाल रंग और ग्रह दोष निवारण

  • लाल रंग विशेष रूप से मंगल दोष और शनि दोष को शांत करने में सहायक माना जाता है।
  • शनिवार प्रदोष व्रत में लाल वस्त्र और लाल पुष्प चढ़ाने से शनि और राहु-केतु के दोषों से मुक्ति मिलती है

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 By observing Pradosh Vrat and listening to its katha, devotees receive the divine blessings of Lord Shiva. This vrat helps in overcoming difficulties, achieving prosperity, and attaining spiritual enlightenment.

प्रदोष व्रत करने और इसकी कथा सुनने से भगवान शिव की दिव्य कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत सभी कठिनाइयों को दूर करने, समृद्धि प्राप्त करने और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत प्रभावी है।

Pradosh Vrat Katha | प्रदोष व्रत की कथा

The Story of a Poor Brahmin | एक गरीब ब्राह्मण की कथा

Once upon a time, in a small village, there lived a poor but devoted Brahmin. He was a great devotee of Lord Shiva and observed the Pradosh Vrat with complete faith and devotion. Despite his poverty, he never gave up his worship of Lord Shiva.

प्राचीन समय में, एक गाँव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह भगवान शिव का परम भक्त था और पूर्ण श्रद्धा के साथ प्रदोष व्रत करता था। गरीबी के बावजूद, उसने कभी भी भगवान शिव की पूजा करना नहीं छोड़ा।

One day, while performing his vrat, he saw a beautiful celestial chariot descend from the sky. Inside the chariot was a divine sage who smiled at him and asked about his devotion. The Brahmin humbly replied, "I have nothing in this world but my faith in Lord Shiva. He is my protector and guide."

एक दिन, जब वह व्रत कर रहा था, उसने देखा कि आकाश से एक दिव्य रथ उतरा। उस रथ में एक ऋषि बैठे थे, जिन्होंने मुस्कुराते हुए ब्राह्मण से उसकी भक्ति के बारे में पूछा। ब्राह्मण ने विनम्रता से उत्तर दिया, "मेरे पास इस संसार में कुछ भी नहीं है, केवल भगवान शिव में मेरी अटूट श्रद्धा है। वे ही मेरे रक्षक और मार्गदर्शक हैं।"

The sage was pleased with his devotion and revealed that he was a messenger of Lord Shiva. He blessed the Brahmin with immense wealth and prosperity. From that day forward, the Brahmin never faced poverty again and continued his worship with even greater faith.

ऋषि उसकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्होंने बताया कि वे भगवान शिव के दूत हैं। उन्होंने ब्राह्मण को अपार धन और समृद्धि का आशीर्वाद दिया। उस दिन के बाद, ब्राह्मण को कभी गरीबी का सामना नहीं करना पड़ा और वह और भी अधिक श्रद्धा से भगवान शिव की पूजा करने लगा।


Moral of the Story | कथा से मिलने वाली सीख

  1. Faith in Lord Shiva brings miraculous blessings.
    भगवान शिव में अटूट श्रद्धा रखने से चमत्कारी आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।
  2. Pradosh Vrat removes obstacles and grants prosperity.
    प्रदोष व्रत सभी बाधाओं को दूर करता है और समृद्धि प्रदान करता है।
  3. Sincerity and devotion are more powerful than material wealth.
    सच्ची भक्ति और श्रद्धा भौतिक संपत्ति से अधिक शक्तिशाली होती हैं।

Rituals of Pradosh Vrat | प्रदोष व्रत की विधि

  1. Wake up early and take a holy bath.
    सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करें।
  2. Observe a fast throughout the day.
    दिनभर उपवास रखें।
  3. During the evening (Pradosh Kaal), visit a Shiva temple or worship at home.
    शाम के समय (प्रदोष काल) में शिव मंदिर जाएं या घर पर पूजा करें।
  4. Offer Bel Patra, milk, curd, honey, and water to the Shivling.
    शिवलिंग पर बेल पत्र, दूध, दही, शहद और जल अर्पित करें।
  5. Chant "Om Namah Shivaya" and Maha Mrityunjaya Mantra.
    "ॐ नमः शिवाय" और "महा मृत्युंजय मंत्र" का जाप करें।
  6. Read or listen to the Pradosh Vrat Katha.
    प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें या सुनें।
  7. After sunset, break the fast by eating light and sattvic food.
    सूर्यास्त के बाद सात्विक भोजन करके व्रत खोलें। ONE TIME GRAIN fOOD ONLY.
  8. ***********************************

    8.     ग्रंथों के अनुसार विधि:गाने की अनुमति?

    📜 "ॐ नमः शिवाय"शिव पुराण, स्कंद पुराण, योगशिखा उपनिषद (गाने की छूट)
    📜 महामृत्युंजय मंत्रऋग्वेद, यजुर्वेद, शिव पुराण (गाने की मनाही)
    📜 गायत्री मंत्रऋग्वेद, तैत्तिरीय संहिता, मनुस्मृति (गाने की मनाही)

     गायत्री मंत्र गाने की अनुमति

     ॐ भूर्भुवः स्वः।तत्सवितुर्वरेण्यं।
    भर्गो देवस्य धीमहि।धियो यो नः प्रचोदयात्॥

     ❌ नहीं, गायत्री मंत्र को गाने की मनाही है।
    इसे केवल जप विधि में किया जाना चाहिए (सुर में नहीं गाया जाता)।
    रात में गायत्री मंत्र का उच्चारण वर्जित है।

    धीमी आवाज में या मानसिक रूप से जपना श्रेष्ठ
    गायत्री मंत्र के बाद "शांति पाठ" करें

    गायत्री मंत्र से बुद्धि का विकास, आध्यात्मिक शक्ति और आंतरिक शुद्धि होती है।
    रात में इस मंत्र का उच्चारण नहीं करना चाहिए

    --------------------------------------------------

     ॐ नमः शिवाय" –  गाने की अनुमति?

    👉 यदि भजन के रूप में गाना चाहते हैं, तो "ॐ नमः शिवाय" सर्वोत्तम है,

     योगशिखा उपनिषद (Yogashikha Upanishad)

  9. मानसिक जप (मौन रूप से) इस मंत्र का सर्वोत्तम तरीका बताया गया है।
  10.  तेज आवाज या लयबद्ध गायन के बजाय मानसिक जप श्रेष्ठ माना गया है।

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 महामृत्युंजय संजीवनी मंत्र ग्रंथ और गाने की अनुमति

🎶 क्या इसे गाना उचित है?

नहीं, महामृत्युंजय मंत्र को वैदिक मंत्रों की तरह शुद्ध उच्चारण के साथ जपना चाहिए।
गाने या लयबद्ध करने से इसका प्रभाव कम हो सकता है।
सही उच्चारण के साथ धीमी ध्वनि में जप करना उत्तम है।

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 ✅ जहां संगीतबद्ध पाठ की अनुमति मिलती है:

  1. सामवेद (Sama Veda)
    • यह वैदिक संगीत का मूल ग्रंथ है और इसमें वेद मंत्रों को विशेष सुरों में गाने की परंपरा है।
    • शिव भक्ति में सामवेद की ऋचाओं को गान शैली में गाना शुभ माना गया है।
  2. शिव महापुराण (Shiv Mahapuran)
    • इसमें बताया गया है कि स्तुति, आरती और भजन को संगीतबद्ध रूप में गाना भक्तों के लिए श्रेष्ठ होता है।
    • शिव तांडव स्तोत्र को विशेष लय में गाने की परंपरा भी इसी से प्रभावित है।
  3. स्कंद पुराण (Skanda Purana)
    • इसमें बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति भक्ति भाव से भगवान शिव की स्तुति संगीत में गाता है, तो वह पुण्य प्राप्त करता है
    • इसमें कहा गया है कि "गीतेन, वाद्येन, नृत्तेन वा शिवं संपूज्यते" (अर्थात गीत, वाद्य और नृत्य द्वारा भी शिव की पूजा हो सकती है)।
  4. तांडव रहस्य (Tandava Rahasya)
    • यह ग्रंथ शिव के तांडव नृत्य और स्तुति से संबंधित है, जिसमें संगीत द्वारा स्तुति गाने की विधि का वर्णन मिलता है।
    • इसमें बताया गया है कि भगवान शिव स्वयं तांडव करते समय लयबद्ध मंत्रों का उच्चारण करते हैं
  5. नाट्य शास्त्र (Natya Shastra – भरतमुनि)
    • इसमें बताया गया है कि संगीत, नृत्य और भक्ति का गहरा संबंध है।
    • इसमें यह भी उल्लेख है कि शिव को नटराज कहा जाता है, और उनकी उपासना में गीत वाद्य का प्रयोग शुभ माना गया है।
  6. विशेष नियम:

🔹 मंत्र जप हमेशा शुद्धता और ध्यान से करें।
🔹 किसी भी मंत्र का उच्चारण गलत नहीं होना चाहिए, अन्यथा लाभ नहीं मिलता।
🔹 मौन जप (मानसिक रूप से) अधिक शक्तिशाली होता है।
🔹 रुद्राभिषेक, दीपक, और शांत मन से जप करना फलदायी होता है।

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जहां गाने की मनाही है (विशेष रूप से वैदिक मंत्रों में):

  1. यजुर्वेद (Yajurveda)
    • इसमें बताया गया है कि रुद्राष्टाध्यायी और महामृत्युंजय मंत्र को शुद्ध उच्चारण के साथ बोलना चाहिए, न कि गाने की शैली में
  2. मनुस्मृति (Manusmriti)
    • इसमें कहा गया है कि वैदिक मंत्रों को स्पष्ट और नियमबद्ध उच्चारण के साथ बोलना चाहिए, अन्यथा वे अपना प्रभाव खो सकते हैं
  3. शिव संहिता (Shiva Samhita)
    • इसमें भी यह बताया गया है कि ध्यान और जप के समय गाने की बजाय एकाग्रता और सही उच्चारण पर ध्यान देना चाहिए

  1.   स्तुति, भजन और आरती को गाने की अनुमति सामवेद, शिव पुराण, स्कंद पुराण, तांडव रहस्य और नाट्य शास्त्र में दी गई है।
    वैदिक मंत्रों (रुद्राष्टाध्यायी, महामृत्युंजय मंत्र) को गाने की मनाही यजुर्वेद, मनुस्मृति और शिव संहिता में की गई है।

👉 तो यदि आप शिव भजन या स्तुति गाना चाहते हैं, तो यह शास्त्रसम्मत और शुभ है। लेकिन वेद मंत्रों का गान करने से बचना चाहिए।

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28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...