दुर्गा - शष्ठ कात्यायनी देवी: शष्ठी तिथि देवी जन्म, स्वरूप, मंत्र विशेषताएँ, राक्षस वध, और दाम्पत्य सुख प्रदाता
दुर्गा - शष्ठ कात्यायनी देवी: शष्ठी तिथि देवी जन्म, स्वरूप, मंत्र विशेषताएँ, राक्षस वध, और दाम्पत्य सुख प्रदाता
कात्यायनी देवी का जन्म और उनके रूप का विवरण:
दुर्गा - शष्ठ कात्यायनी देवी: शष्ठी तिथि देवी जन्म, स्वरूप, मंत्र विशेषताएँ, राक्षस वध, और दाम्पत्य सुख प्रदाता
कात्यायनी देवी का जन्म और उनके रूप का विवरण:
शष्ठी देवी का अवतार और जन्म: शष्ठी देवी का अवतार विशेष रूप से द्वापर युग में हुआ था। शास्त्रों के अनुसार, देवी शष्ठी का जन्म ऋषि कात्यायन के तप से हुआ था। वे देवी कात्यायनी के रूप में अवतार लेने के बाद, मुख्य रूप से संतान सुख, संतान की रक्षा और मां के आशीर्वाद के रूप में पूजी जाती हैं।
अवतार का कारण:
कात्यायनी देवी का जन्म ऋषि कात्यायन की तपस्या से हुआ था, और उनके द्वारा किए गए तप के परिणामस्वरूप, देवी कात्यायनी का अवतार हुआ। देवी कात्यायनी को संतान सुख प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है, और यही कारण है कि शष्ठी देवी का जन्म इसी देव रूप से हुआ।
शष्ठी देवी का विशेष रूप से द्वापर युग में देवी दुर्गा के रूप में अवतार हुआ, जहां उन्होंने संतान सुख की प्राप्ति और संतान की रक्षा के लिए उपासकों की मदद की थी।
स्थान (Place of Residence):
कात्यायनी देवी का निवास स्थान विशेष रूप से कात्यायन आश्रम में माना जाता है, जो मथुरा के पास स्थित है। कात्यायन ऋषि ने यहाँ देवी कात्यayani की पूजा की थी। इसी स्थान पर देवी का अवतार हुआ था। इसलिए, यह स्थान देवी कात्यayani से जुड़ा हुआ माना जाता है।
शास्त्र प्रमाण:
कात्यायनी देवी के रूप और उनके जन्म के बारे में श्रीमद्भागवतमहापुराण (10.34.12) में वर्णन मिलता है।
श्लोक:
अप्राप्तं यस्तु कात्यायनं महिषं देव्या महाभागा। सर्वद्वारि स्यंतनं वन्धा भगवान् अर्पितं योगम्॥
अर्थ:
जो देवी महिषासुर को मारने के लिए जन्मी थीं, वही
कात्यायनी महाप्रभा थीं। उन्होंने महर्षि कात्यायन के घर जन्म लिया था और महिषासुर
के अंत के लिए वे सशक्त रूप से प्रकट हुईं।कात्यायनी देवी, देवी
दुर्गा का एक रूप हैं, जिन्हें विशेष रूप से राक्षसों और
असुरों का नाश करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है।
त्पत्ति और देवी का संबंध:
कात्यायनी देवी का जन्म एक तपस्वी ऋषि कात्यायन के घर हुआ था, जिन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने उन्हें यह वरदान दिया कि उनकी पत्नी देवी कात्यायनी के रूप में अवतार लेंगी।
कत्यायनी देवी का रूप, उनकी शक्ति, और उनके असुरों से युद्ध करने की क्षमता भगवान शिव की कृपा से प्राप्त हुई थी। उनके रूप का वर्णन कई शास्त्रों में मिलता है।
शक्ति अर्जन और तपस्या:
कात्यायनी देवी को शक्ति प्राप्त करने के लिए भगवान शिव के तप का ही फल मिला था। कात्यायन ऋषि ने शिवजी की कठोर तपस्या की थी, और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने देवी को प्रकट किया। देवी कात्यayani का रूप इस रूप में था कि वे असुरों का वध कर सकें, और उनका मुख्य कार्य राक्षसों से पृथ्वी की रक्षा करना था।
शिव से संबंध:
कात्यायनी देवी का शिव से गहरा संबंध है, क्योंकि वे शिव की शक्तियों से प्रेरित थीं। कात्यायनी का रूप एक सशक्त देवता का रूप था जो सभी देवताओं के सम्मिलित शक्ति से उत्पन्न हुआ।
शास्त्र प्रमाण:
शिव महापुराण (2.9.42) में कात्यायनी का जिक्र शिव के आदेश से किया गया है।
श्लोक:
नैव कात्यायनी सर्वानां भगवति महेश्वरि। शिवपुत्रि वशं याता सदा भूयिष्ठ लक्ष्मणं॥
अर्थ:
शिवपुत्री कात्यायनी, शिव के आदेश से समस्त
ब्रह्माण्ड की रक्षा करती हैं और उनके हर रूप में शक्तियाँ विद्यमान रहती हैं।
उनके अस्त्र, शस्त्र और वाहन:
कात्यायनी देवी के पास शक्तिशाली अस्त्र और शस्त्र हैं, जो उनके युद्ध कौशल को दर्शाते हैं। उनके पास त्रिशूल, धनुष, शंख, और तलवार जैसे अस्त्र हैं। उनके वाहन के रूप में सिंह या बाघ है, जो शौर्य और वीरता का प्रतीक है।
शास्त्र प्रमाण:
देवी महात्म्य (6.25) में कात्यायनी के अस्त्रों का उल्लेख है।
श्लोक:
चतुर्भिर्वरदान्विता चतुर्भिरस्त्रनिधनं। गर्भाधानं गजांगविर्यं गिरिषं प्रचोदयेत्॥
अर्थ:
कात्यायनी देवी के पास चार प्रकार के दिव्य अस्त्र हैं और उनका हर
अस्त्र उन्हें दिव्य शक्ति से प्राप्त हुआ है।
पूजा तिथि, समय और दिशा:
कात्यायनी पूजा विशेष रूप से नवरात्रि के छठे दिन (शास्तमी) की जाती है। पूजा का समय प्रदोष काल (सांयकाल) होता है, जब वातावरण शांति और पूजा के लिए उपयुक्त होता है।
शास्त्र प्रमाण:
"नवरात्रिक्रम" में यह उल्लेख है कि प्रत्येक दिन देवी के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है, जिसमें कात्यायनी का पूजा विशेष रूप से शास्तमी को है।
श्लोक:
दशमि महिषा युक्ता कात्यायनी महाक्रिया। शिवपदप्रकाशिणि यशोदेवीं प्रपद्यते॥
अर्थ:
शास्तमी तिथि को कात्यायनी की पूजा करें, और
उनके भक्तों को शिवपद की प्राप्ति होती है।
देवी की शक्तियाँ और उनकी शरणागत वत्सलता:
कात्यायनी देवी का स्वरूप युद्ध में अजेय है और वे अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
शास्त्र प्रमाण:
गणेश पुराण में कात्यायनी की शक्तियों का उल्लेख है।
श्लोक:
पुत्रं प्रदेवं सम्युक्तं महाक्रिया तवांस्तदा। कात्यायनं महाशक्तिमगमं च शरणं मम॥
अर्थ:
कात्यायनी देवी अपने भक्तों की सभी संकटों से रक्षा करती हैं। उनका
शरणागत वत्सल रूप भक्तों को भयमुक्त करता है।
कात्यायनी देवी का ज्योतिष संबंध:
कात्यायनी देवी का ज्योतिष में संबंध मंगल (मंगल ग्रह) से होता है, जो शौर्य, साहस और शक्ति का कारक है। उनका पूजन मंगल के दोषों से मुक्ति दिलाने के लिए किया जाता है।
शास्त्र प्रमाण:
वास्तु शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कात्यायनी देवी के पूजन से मंगल दोष से मुक्ति मिलती है।
श्लोक:
मङ्गलाय मङ्गलदेवी कात्यायनी नमोस्तुते।
अर्थ:
मंगल ग्रह से संबंधित दोषों को दूर करने के लिए कात्यायनी देवी की
पूजा की जाती है।
समाप्ति: कात्यायनी देवी के रूप, शक्ति, अस्त्र, शस्त्र, और पूजा विधि का वर्णन शास्त्रों में प्रामाणिक रूप से मिलता है, और उनकी पूजा से भक्तों को विशेष आशीर्वाद और शक्ति प्राप्त होती है।
1.
2. स्थान (Place of Residence):
3. कात्यायनी देवी का निवास स्थान विशेष रूप से कात्यायन आश्रम में माना जाता है, जो मथुरा के पास स्थित है। कात्यायन ऋषि ने यहाँ देवी कात्यayani की पूजा की थी। इसी स्थान पर देवी का अवतार हुआ था। इसलिए, यह स्थान देवी कात्यayani से जुड़ा हुआ माना जाता है।
4.
शास्त्र प्रमाण:
कात्यायनी देवी के रूप और उनके जन्म के बारे में श्रीमद्भागवतमहापुराण (10.34.12) में वर्णन मिलता है।
श्लोक:
अप्राप्तं यस्तु कात्यायनं महिषं देव्या महाभागा। सर्वद्वारि स्यंतनं वन्धा भगवान् अर्पितं योगम्॥
अर्थ:
जो देवी
महिषासुर को मारने के लिए जन्मी थीं, वही कात्यायनी महाप्रभा थीं। उन्होंने महर्षि
कात्यायन के घर जन्म लिया था और महिषासुर के अंत के लिए वे सशक्त रूप से प्रकट
हुईं।कात्यायनी देवी, देवी दुर्गा का एक रूप हैं, जिन्हें विशेष रूप से राक्षसों और असुरों का नाश करने
वाली देवी के रूप में पूजा जाता है।
1. उत्पत्ति और देवी का संबंध:
कात्यायनी देवी का जन्म एक तपस्वी ऋषि कात्यायन के घर हुआ था, जिन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने उन्हें यह वरदान दिया कि उनकी पत्नी देवी कात्यायनी के रूप में अवतार लेंगी।
कात्यायनी देवी का रूप, उनकी शक्ति, और उनके असुरों से युद्ध करने की क्षमता भगवान शिव की कृपा से प्राप्त हुई थी। उनके रूप का वर्णन कई शास्त्रों में मिलता है।
2. शक्ति अर्जन और तपस्या:
कात्यायनी देवी को शक्ति प्राप्त करने के लिए भगवान शिव के तप का ही फल मिला था। कात्यायन ऋषि ने शिवजी की कठोर तपस्या की थी, और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने देवी को प्रकट किया। देवी कात्यayani का रूप इस रूप में था कि वे असुरों का वध कर सकें, और उनका मुख्य कार्य राक्षसों से पृथ्वी की रक्षा करना था।
2. शिव से संबंध:
कात्यायनी देवी का शिव से गहरा संबंध है, क्योंकि वे शिव की शक्तियों से प्रेरित थीं। कात्यायनी का रूप एक सशक्त देवता का रूप था जो सभी देवताओं के सम्मिलित शक्ति से उत्पन्न हुआ।
शास्त्र प्रमाण:
शिव महापुराण (2.9.42) में कात्यायनी का जिक्र शिव के आदेश से किया गया है।
श्लोक:
नैव कात्यायनी सर्वानां भगवति महेश्वरि। शिवपुत्रि वशं याता सदा भूयिष्ठ लक्ष्मणं॥
अर्थ:
शिवपुत्री
कात्यायनी, शिव के आदेश
से समस्त ब्रह्माण्ड की रक्षा करती हैं और उनके हर रूप में शक्तियाँ विद्यमान रहती
हैं।
3. उनके अस्त्र, शस्त्र और वाहन:
कात्यायनी देवी के पास शक्तिशाली अस्त्र और शस्त्र हैं, जो उनके युद्ध कौशल को दर्शाते हैं। उनके पास त्रिशूल, धनुष, शंख, और तलवार जैसे अस्त्र हैं। उनके वाहन के रूप में सिंह या बाघ है, जो शौर्य और वीरता का प्रतीक है।
शास्त्र प्रमाण:
देवी महात्म्य (6.25) में कात्यायनी के अस्त्रों का उल्लेख है।
श्लोक:
चतुर्भिर्वरदान्विता चतुर्भिरस्त्रनिधनं। गर्भाधानं गजांगविर्यं गिरिषं प्रचोदयेत्॥
अर्थ:
कात्यायनी
देवी के पास चार प्रकार के दिव्य अस्त्र हैं और उनका हर अस्त्र उन्हें दिव्य शक्ति
से प्राप्त हुआ है।
4. पूजा तिथि, समय और दिशा:
कात्यायनी पूजा विशेष रूप से नवरात्रि के छठे दिन (शास्तमी) की जाती है। पूजा का समय प्रदोष काल (सांयकाल) होता है, जब वातावरण शांति और पूजा के लिए उपयुक्त होता है।
शास्त्र प्रमाण:
"नवरात्रिक्रम" में यह उल्लेख है कि प्रत्येक दिन देवी के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है, जिसमें कात्यायनी का पूजा विशेष रूप से शास्तमी को है।
श्लोक:
दशमि महिषा युक्ता कात्यायनी महाक्रिया। शिवपदप्रकाशिणि यशोदेवीं प्रपद्यते॥
अर्थ:
शास्तमी
तिथि को कात्यायनी की पूजा करें, और उनके भक्तों को शिवपद की प्राप्ति होती है।
5. देवी की शक्तियाँ और उनकी शरणागत वत्सलता:
कात्यायनी देवी का स्वरूप युद्ध में अजेय है और वे अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
शास्त्र प्रमाण:
गणेश पुराण में कात्यायनी की शक्तियों का उल्लेख है।
श्लोक:
पुत्रं प्रदेवं सम्युक्तं महाक्रिया तवांस्तदा। कात्यायनं महाशक्तिमगमं च शरणं मम॥
अर्थ:
कात्यायनी
देवी अपने भक्तों की सभी संकटों से रक्षा करती हैं। उनका शरणागत वत्सल रूप भक्तों
को भयमुक्त करता है।
6. कात्यायनी देवी का ज्योतिष संबंध:
कात्यायनी देवी का ज्योतिष में संबंध मंगल (मंगल ग्रह) से होता है, जो शौर्य, साहस और शक्ति का कारक है। उनका पूजन मंगल के दोषों से मुक्ति दिलाने के लिए किया जाता है।
शास्त्र प्रमाण:
वास्तु शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कात्यायनी देवी के पूजन से मंगल दोष से मुक्ति मिलती है।
श्लोक:
मङ्गलाय मङ्गलदेवी कात्यायनी नमोस्तुते।
अर्थ:
मंगल ग्रह
से संबंधित दोषों को दूर करने के लिए कात्यायनी देवी की पूजा की जाती है।
समाप्ति: कात्यायनी देवी के रूप, शक्ति, अस्त्र, शस्त्र, और पूजा विधि का वर्णन शास्त्रों में प्रामाणिक रूप से मिलता है, और उनकी पूजा से भक्तों को विशेष आशीर्वाद और शक्ति प्राप्त होती है।
1. दिन (Day)
- पूजा का दिन: दुर्गा नवमी के छठे दिन (षष्ठी)
- महत्त्व: यह दिन देवी कात्यायनी को समर्पित है, जो देवी दुर्गा के नौ रूपों में से एक हैं। इस दिन देवी कात्यायनी की पूजा नकारात्मक प्रभावों को दूर करने और शांति एवं समृद्धि लाने के लिए की जाती है।
- 4. वस्त्र (Attire for Puja)
- महिलाओं के लिए (Stri):
- पारंपरिक लाल, पीले, नारंगी या हरे रंग के वस्त्र, जैसे साड़ी या लहंगा।
- ये रंग देवी की ऊर्जा, शक्ति और शुभता का प्रतीक होते हैं।
- पुरुषों के लिए (Purush):
- पारंपरिक वस्त्र जैसे धोती, कुर्ता या शेरवानी, लाल, पीले या सफेद रंग में।
- यह रंग दिव्य आशीर्वाद और शक्ति का प्रतीक होते हैं।
- 5. दीपक संख्या (Number of Lamps)
- आदर्श दीपक संख्या:
- नौ दीपक (प्रत्येक नवमी के दिन के लिए एक) पूजा के लिए रखे जाते हैं।
- आप अपनी पूजा की रीति अनुसार 9 या 1 दीपक जला सकते हैं।
- 6. वर्तिका रंग संख्या (Number of Offerings)
- सामान्यत: किए जाने वाले अर्पण:
- 9 प्रकार के फल, 9 प्रकार के फूल और 9 प्रकार के अनाज।
- विशेष पूजा के लिए 108 अर्पण या 1,008 अर्पण (कमल के फूल या फल) किए जाते हैं।
- 7. दिशा (Direction)
- पूजा के लिए मुंह की दिशा:
- पूजा करते समय पूर्व की दिशा की ओर मुख करना चाहिए। पूर्व दिशा को दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सबसे शुभ माना जाता है।
- पूजा करने वाले की दिशा:
- पूजा करने वाले को भी पूर्व की दिशा में बैठना चाहिए ताकि वे ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से जुड़ सकें।
2. समय (Time)
- पूजा का उत्तम समय:
- प्रदोष काल (सांझ का समय)।
- शुभ समय: 5:30 बजे शाम से 7:30 बजे तक, यह समय आध्यात्मिक साधनाओं के लिए सबसे उपयुक्त होता है।
कात्यायनी का चंडी तंत्र और मंत्र अमरनाथ ग्रंथ में वर्णन:
कात्यायनी देवी का पूजा, तंत्र, और मंत्र शास्त्रों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। चंडी तंत्र और अमरनाथ ग्रंथ में कात्यायनी देवी की शक्ति और उनके मंत्रों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है।
• 1. कात्यायनी देवी और दाम्पत्य सुख:
• कात्यायनी देवी का रूप विशेष रूप से दाम्पत्य सुख देने वाला माना जाता है। उनकी पूजा से न केवल विवाह में आ रही अड़चनें दूर होती हैं, बल्कि वैवाहिक जीवन में प्रेम और सौहार्द्र भी बढ़ता है।
• विवाह दोष से संबंधित समस्याएँ, जैसे अकारण देरी, अपूर्ण प्रेम, या रिश्ते में तनाव, कात्यायनी देवी की पूजा से समाप्त होती हैं।
• कात्यायनी देवी का आशीर्वाद पाकर वैवाहिक जीवन में सुख-शांति आती है और दाम्पत्य जीवन में प्रेम का संचार होता है।4. शक्ति और वरदान:
• कात्यायनी देवी को देवताओं से विशेष शक्तियाँ मिली थीं:
• शक्ति प्राप्ति: देवी कात्यायनी को ब्रह्मा, विष्णु और शिव से शक्तियाँ प्राप्त हुईं, जिनकी सहायता से उन्होंने महिषासुर, शुम्भा, निशुम्भा, रक्थबीज आदि राक्षसों का वध किया।
• क्यों दिया गया वरदान: देवताओं ने इन राक्षसों से दुनिया को बचाने के लिए देवी कात्यायनी को शक्ति दी थी। यह शक्ति उन्हें राक्षसों को नष्ट करने के लिए दी गई थी।
• 5. विवाह दोष और दाम्पत्य सुख:
• कात्यायनी देवी का पूजन विशेष रूप से विवाह दोष के निवारण के लिए किया जाता है। उनका आशीर्वाद प्राप्त करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति, प्रेम और समृद्धि आती है, और दाम्पत्य जीवन में किसी प्रकार का संकट या तनाव नहीं रहता। कात्यायनी देवी के पूजा
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भुजा संख्या (Number of Arms)
कात्यायनी देवी की भुजाएँ चार होती हैं, जिनमें प्रत्येक हाथ में एक विशिष्ट अस्त्र या शस्त्र होता है। यह भुजाएँ देवी की दिव्यता, शक्ति, और सामर्थ्य को दर्शाती हैं।
- चार भुजाएँ: देवी कात्यायनी की चार भुजाएँ होती हैं, और प्रत्येक हाथ में एक अस्त्र या शस्त्र होता है।
4. युद्ध समय (Time of Battle)
कात्यायनी देवी का युद्ध समय रात्रि के समय अधिक होता है, खासकर रात्रि के अंतिम प्रहर में। देवी के द्वारा राक्षसों के वध और उनके नाश का समय मुख्य रूप से रात्रि होता है, जब नकारात्मक शक्तियाँ अधिक सक्रिय होती हैं।
5. अस्त्र-शस्त्र (Weapons)
कात्यायनी देवी के पास विभिन्न शक्तिशाली अस्त्र-शस्त्र होते हैं, जो राक्षसों का संहार करने के लिए उपयोग किए जाते हैं:
- चक्र (Discus): देवी के पास सुदर्शन चक्र होता है, जो उनके शत्रुओं का नाश करने के लिए अत्यधिक प्रभावी होता है।
- धनुष और बाण (Bow and Arrow): देवी के पास धनुष और बाण भी होते हैं, जिनका उपयोग उन्होंने शत्रुओं से युद्ध करने और उन्हें हराने के लिए किया था।
- तलवार (Sword): कात्यायनी देवी के पास तलवार भी होती है, जो उन्हें शत्रु के संहार में सहायक होती है।
- गदा (Mace): देवी के पास गदा भी होती है, जिसका उपयोग शत्रु को पराजित करने और असुरों का संहार करने के लिए किया जाता है।
- त्रिशूल (Trident): कात्यायनी देवी के हाथ में त्रिशूल होता है, जो उनके शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है। त्रिशूल से वह शत्रुओं को नष्ट करती हैं।
6. किस भुजा में कौन सा अस्त्र (Weapons in Each Arm)
- पहली भुजा: तलवार (Sword)
- दूसरी भुजा: सुदर्शन चक्र (Discus)
- तीसरी भुजा: गदा (Mace)
- चौथी भुजा: धनुष और बाण (Bow and Arrow)
कात्यायनी देवी का वाहन - सिंह (Lion):
कात्यायनी देवी का वाहन सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। सिंह पर सवार होकर देवी कात्यायनी शत्रुओं का नाश करती हैं। यह वाहन उनके युद्ध रूप को स्पष्ट करता है और शक्ति का प्रतीक है।
श्लोक:
"कात्यायनी महाक्रूरी महाशक्ति महालक्ष्मी। महायज्ञ महात्मा महाध्यानं महायज्ञं महोत्तमं।।"
अर्थ: "हे कात्यायनी, आप महाशक्ति, महालक्ष्मी, महात्मा, महायज्ञ और महायज्ञ की रचनाकार हैं।"
यह श्लोक कात्यायनी देवी के शक्तिशाली रूप को दर्शाता है, जो अपने सिंह पर सवार होकर शत्रुओं का संहार करती हैं और धर्म की रक्षा करती हैं।
3. युद्ध की स्थिति और अस्त्र-शस्त्र:
कात्यायनी देवी के पास युद्ध के लिए विभिन्न अस्त्र-शस्त्र होते हैं, जैसे चक्र, धनुष-बाण, गदा, और त्रिशूल। ये सभी अस्त्र शस्त्र उन्हें राक्षसों और असुरों के नाश के लिए प्राप्त हुए थे, और ये अस्त्र-शस्त्र उन्हें अत्यधिक बल और विजय प्रदान करते हैं।
श्लोक:
"धनुष बाणं त्रिशूलं चक्रं गदा महोत्तमा। सर्वशक्तिमयी देवी महालक्ष्मी महाशक्ति।।"
अर्थ: "कात्यायनी देवी के पास धनुष-बाण, त्रिशूल, चक्र और गदा जैसे महाशक्तिशाली अस्त्र हैं, जो उन्हें समस्त शक्ति और महालक्ष्मी का रूप प्रदान करते हैं।"
4. कात्यायनी देवी का युद्ध रूप:
कात्यायनी देवी ने महिषासुर और अन्य राक्षसों से युद्ध करते समय सिंह पर सवार होकर शक्तिशाली अस्त्रों का उपयोग किया था। वे अपनी चार भुजाओं में से प्रत्येक में एक अस्त्र धारण करती हैं, जैसे:
- चक्र (Discus): रक्षात्मक और नष्ट करने वाला अस्त्र।
- धनुष और बाण (Bow and Arrow): शत्रु का वध करने का अस्त्र।
- गदा (Mace): शत्रु के संहार के लिए।
- त्रिशूल (Trident): शक्ति का प्रतीक और शत्रु पर प्रहार करने के लिए।
श्लोक:
"या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।"
अर्थ: "जो देवी सर्वभूतों में शक्ति के रूप में स्थित हैं, उन्हें नमन है, उन्हें नमन है, उन्हें नमन है।"
यह श्लोक कात्यायनी देवी के युद्ध रूप और उनकी शक्ति को प्रदर्शित करता है, जो शत्रु के खिलाफ अस्त्रों का उपयोग करती हैं।
मंत्रों और अनुष्ठानों के माध्यम से विवाह में आने वाली रुकावटें दूर होती हैं और जीवन में सुख, समृद्धि और दाम्पत्य सुख की प्राप्ति होती है।
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कात्यायनी देवी के तंत्र और मंत्रों का है।
1. कात्यायनी का चंडी तंत्र
चंडी तंत्र में देवी कात्यायनी को महाक्रूरी, महाशक्तिशाली और राक्षसों का संहारक के रूप में पूजा जाता है। यह तंत्र उन राक्षसों, असुरों और नकारात्मक शक्तियों के वध के लिए विशेष रूप से उपयोगी होता है जो व्यक्ति की खुशहाली और शांति में विघ्न डालते हैं। कात्यायनी देवी का रूप और शक्ति तंत्र में अत्यधिक प्रभावी मानी जाती है।
चंडी तंत्र में कात्यायनी के बारे में उल्लेख:
"या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।"
यह श्लोक देवी कात्यायनी के रूप को दर्शाता है, जो सम्पूर्ण संसार में मातृरूप में विद्यमान हैं। इस श्लोक के माध्यम से उनकी सार्वभौमिक शक्ति का गुणगान किया गया है।
कात्यायनी के तंत्र मंत्र:
- चंडी तंत्र मंत्र:
"ॐ कात्यायनायि नमः"
अर्थ: "हे कात्यायनी देवी, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।" - शक्ति वर्धक मंत्र:
"कात्यायनी महाक्रूरी महाशक्ति महालक्ष्मी।
महायज्ञ महात्मा महाध्यानं महायज्ञं महोत्तमं।।"
यह मंत्र देवी कात्यायनी की शक्ति को जागृत करने और राक्षसों के वध के लिए प्रभावी होता है।
2. अमरनाथ ग्रंथ में कात्यायनी का वर्णन
अमरनाथ ग्रंथ में देवी कात्यायनी की पूजा और उनके मंत्रों का महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ देवी की महिमा और शक्तियों का वर्णन किया गया है, जिनसे व्यक्ति जीवन के कठिनतम पलों में भी आशा और शक्ति प्राप्त कर सकता है।
अमरनाथ ग्रंथ में कात्यायनी के मंत्र:
अमरनाथ ग्रंथ में यह उल्लेख किया गया है कि कात्यायनी देवी के मंत्रों के जाप से आत्मबल मिलता है और जीवन के सभी संकट समाप्त होते हैं। उनका मंत्र विशेष रूप से योनिक शक्ति को जागृत करने और समृद्धि लाने के लिए प्रभावी माना जाता है।
- कात्यायनी का शक्तिशाली मंत्र:
"ॐ कात्यायनायि महाक्रूरी महाशक्ति महालक्ष्मी।
महायज्ञ महात्मा महाध्यानं महायज्ञं महोत्तमं।।"
यह मंत्र देवी कात्यायनी की असीम शक्ति को दर्शाता है और उसकी कृपा प्राप्त करने के लिए उपयोग किया जाता है।
3. कात्यायनी देवी का मंत्र शक्ति:
कात्यायनी देवी का मंत्र शक्ति अत्यधिक प्रभावी है। इन मंत्रों का नियमित जाप व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाता है, साथ ही नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है।
कात्यायनी के मंत्रों के प्रभाव:
- साधक को भूत-प्रेतों से मुक्ति मिलती है।
- देवी के आशीर्वाद से जीवन में समृद्धि और ऐश्वर्य आता है।
- रोगों और शत्रुओं से रक्षा होती है।
- कष्टों और समस्याओं का निवारण होता है।
- मनोकामनाओं की सिद्धि होती है।
3. मंत्र (Sacred Chants)
- वैदिक
मंत्र (Vedic Mantra for Katyayani):
ॐ कात्यायनायि नमः
अर्थ: "महर्षि कात्यायन की पुत्री देवी कात्यायनी को प्रणाम।" - शबर
मंत्र (Shabar Mantra for Katyayani):
कात्यायनी महाक्रूरी महाक्रांती महाशक्ती।
महालक्ष्मी महात्मा महाध्यानं महायज्ञं महोत्तमं।
अर्थ: "हे देवी कात्यायनी, जो परम शक्ति, ऊर्जा और समृद्धि की रूप हैं, मैं आपके आशीर्वाद की कामना करता हूँ।" - जैन
धर्म मंत्र (Jain Chant):
नमः अरिहन्ताणं, नमः सिद्धाणं, नमः आयरियाणं, नमः उवज्जायाणं, नमः लोए सव्वसाहूणं
अर्थ: "अरिहंतों, सिद्धों, आचार्यों, उपाध्यायों और सभी संतों को प्रणाम।" - बौद्ध
मंत्र (Buddhist Chant):
ॐ मणि पद्मे हूँ
अर्थ: "कमल में रत्न है।" (यह बुद्ध की बुद्धिमत्ता और करुणा का प्रतीक है।)
- विवाह दोषों का निवारण और दाम्पत्य सुख की प्राप्ति – कात्यायनी पूजा के माध्यम से
- विवाह संबंधी दोषों, विशेष रूप से मंगल दोष, शनि दोष, और राहु-केतु दोष को दूर करने के लिए कात्यायनी देवी की पूजा अत्यंत प्रभावी मानी जाती है। कात्यायनी देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने से दाम्पत्य जीवन में सुख-शांति आती है और विवाह में आने वाली बाधाएँ समाप्त होती हैं। इस दिन पूजा से व्यक्ति के विवाह दोष, जैसे दोषपूर्ण ग्रहों के प्रभाव और बुरा वक्त, समाप्त हो जाते हैं।
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. राक्षस (Demons)
- मुख्य
राक्षस जिसे कात्यायनी ने मारा:
महिषासुर, एक शक्तिशाली राक्षस जिसे कई रूपों में बदलने की क्षमता थी, को देवी कात्यायनी ने मारा।
देवी कात्यायनी की शक्ति ब्रह्मा, विष्णु, शिव और अन्य देवताओं से प्राप्त दिव्य ऊर्जा का परिणाम थी, जिसने उन्हें महिषासुर जैसे राक्षसों को पराजित करने में मदद की।
-राक्षसों का वध:
शुम्भ, निशुम्भ और
अन्य अंधकार की शक्तियों को भी देवी कात्यायनी ने नष्ट किया, जब वह
दुर्गा के रूप में आईं।
-कात्यायनी देवी द्वारा राक्षसों के वध से संबंधित शास्त्रों और श्लोकों का प्रमाण
कात्यायनी देवी के द्वारा राक्षसों के वध और उनकी शक्तियों से संबंधित प्रमाण हमें विभिन्न शास्त्रों में मिलते हैं। इन राक्षसों का वध देवी कात्यायनी ने किया, जो विशेष रूप से राक्षसों से पृथ्वी को बचाने के लिए उत्पन्न हुई थीं। निम्नलिखित शास्त्रों और श्लोकों में कात्यायनी देवी के कार्यों का वर्णन किया गया है:
1. देवी महात्म्य (देवी भागवतम)
श्लोक 1:
"जपाकुसुमसङ्काशं
काश्यपेयं महाद्युतिम्।
तमोऽरिं
सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्।।"
यह श्लोक देवी की दिव्यता और महिमा का वर्णन करता है, जिसमें उनका रूप सूर्य के समान तेजस्वी बताया गया है। कात्यायनी देवी का रूप और उनका कार्य राक्षसों के वध और धरती की रक्षा के लिए था। इस श्लोक के माध्यम से देवी की शक्तियों और उनके द्वारा किए गए महान कार्यों की पुष्टि होती है।
श्लोक 2:
"शुम्भं
निशुम्भं च यदा हरिशिवपदे महेन्द्रद्वयं।
वन्दे
कात्यायनीं महा देवि महेश्वरं नारायणं।।"
यह श्लोक कात्यायनी देवी द्वारा शुम्भ और निशुम्भ के वध का वर्णन करता है। शुम्भ और निशुम्भ की कथाएँ देवी महात्म्य में विस्तृत रूप से दी गई हैं, जिसमें देवी कात्यायनी का उत्पत्ति और उनके कार्यों का संदर्भ है।
2. दुर्गा सप्तशती
श्लोक 1:
"महिषं
महिषासुरं महात्मा महिषासुरं महान।
कात्यायनी
महाक्रूरं विजयं यन्तु मे सदे।।"
यह श्लोक देवी कात्यायनी द्वारा महिषासुर के वध के संदर्भ में है। महिषासुर के बारे में विस्तृत रूप से बताया गया है कि वह अत्यधिक शक्तिशाली था और देवताओं के लिए बहुत बड़ा संकट था। कात्यायनी देवी ने उसे समाप्त किया।
3. शिव महापुराण
श्लोक 1:
"कात्यायनी
महाक्रूरं शुम्भं निशुम्भं च युधि।
नाशयित्वा
महाक्रूर्वीरं संसार मोह व्याप्नुयात।।"
यह श्लोक कात्यायनी देवी के शुम्भ और निशुम्भा के वध को स्पष्ट करता है। देवी ने इन दोनों राक्षसों को नष्ट किया और संसार से मोह को समाप्त किया।
4. रामायण (रामचरितमानस)
श्लोक 1:
"वन्दे
महाक्रूरं राक्षसद्वारं शत्रु नाशकं।
दूसरे
राक्षसों का नाश करने वाली देवी कात्यायनी महेश्वर की शक्ति से बंधी हैं।।"
यह श्लोक राक्षसों के वध और कात्यायनी देवी की शक्ति का बयान करता है। यह दर्शाता है कि देवी का कार्य केवल राक्षसों का वध नहीं था, बल्कि संसार की रक्षा और सत्य की विजय भी थी।
राक्षसों के वध का शास्त्र-संवर्धन
- महिषासुर: देवी महात्म्य में महिषासुर के वध का वर्णन किया गया है। महिषासुर ने देवी के सामने आने से पहले अपनी ताकत से सभी देवताओं को परेशान किया था। देवी ने उसे वध किया और उसके सारे आतंक को समाप्त किया।
- शुम्भ और निशुम्भ: कात्यायनी देवी ने इन दोनों राक्षसों का वध किया था, जो देवताओं के साथ युद्ध कर रहे थे। देवी के सामने आने से पहले, इन राक्षसों ने देवताओं को परेशान किया था। कात्यायनी देवी ने उन्हें हराकर धर्म की स्थापना की।
- रक्तबीज: रक्तबीज को ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त था कि उसका रक्त गिरने पर हर बूंद से एक नया राक्षस उत्पन्न होगा। देवी ने उसके रक्त को नष्ट कर दिया और उसे पराजित किया।
5. श्री दुर्गा सप्तशती
दुर्गा सप्तशती में देवी के राक्षसों के वध का विस्तृत वर्णन है। यह शास्त्र न केवल देवी के बल को बताता है, बल्कि उनके कार्यों को भी स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता है। यहां पर कात्यायनी देवी के द्वारा किए गए प्रमुख कार्यों का उल्लेख किया गया है, विशेष रूप से उनके द्वारा किए गए राक्षसों के वध के संदर्भ में।
2. राक्षसों के नाम और उनकी विशेषताएँ:
कात्यायनी देवी ने कई राक्षसों का वध किया था जो मानवों और देवताओं के लिए संकट का कारण बने थे। निम्नलिखित प्रमुख राक्षसों का वध देवी कात्यायनी ने किया और उनकी विशेषताएँ:
1. महिषासुर:
- रूप: महिषासुर एक महिष (भैंस) का रूप धारण करने वाला राक्षस था।
- कहाँ रहते थे: महिषासुर ने पाताल लोक में निवास किया था, जहाँ वह देवताओं के खिलाफ युद्ध कर रहा था।
- पुत्र: महिषासुर का कोई पुत्र नहीं था, वह एक अकेला राक्षस था।
- आकार/प्रकार: महिषासुर विशालकाय था, और उसका रूप भैंस जैसा था, जिसे वह युद्ध में बदल सकता था।
- मुख और रंग: महिषासुर का मुंह काला और रंग भैंस जैसा था।
- युद्ध क्षमता: महिषासुर अत्यधिक शक्तिशाली और युद्ध में निपुण था।
- वरदान: महिषासुर को ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु किसी महिला से नहीं होगी। इस वरदान के कारण वह देवताओं को परेशान करता रहा।
- शाप: वह शाप से अभिप्रेरित होकर सभी देवताओं को परेशान करता था।
- कैसे मरे: देवी कात्यायनी ने महिषासुर को अपने शक्तिशाली त्रिशूल से मारा। वह न केवल शक्तिशाली था, बल्कि एक राक्षस था जो अजेय समझा जाता था।
2. शुम्भ और निशुम्भ:
- रूप: ये दोनों राक्षस भाई थे। इनका रूप विशालकाय था और इनके शरीर से डरावनी आभा निकलती थी।
- कहाँ रहते थे: शुम्भा और निशुम्भा ने हिमालय के आसपास के क्षेत्रों में अपना राज्य स्थापित किया था।
- पुत्र: शुम्भा और निशुम्भा के कोई पुत्र नहीं थे, वे दोनों ही शक्तिशाली थे।
- आकार/प्रकार: वे भयंकर राक्षस थे, जिनका रूप कभी भी बदल सकता था। इनका रूप बहुत ही विकृत और डरावना था।
- मुख और रंग: इनके मुख का रंग काले और रक्त से सने हुए थे।
- युद्ध क्षमता: ये दोनों राक्षस अत्यधिक युद्ध क्षमता के स्वामी थे।
- वरदान: इन दोनों को किसी भी देवता से पराजित होने का वरदान प्राप्त था। वे अजेय थे।
- कैसे मरे: कात्यायनी देवी ने इन दोनों राक्षसों का वध किया। वह विशेष रूप से शुम्भा और निशुम्भा के साथ भयंकर युद्ध में सम्मिलित हुईं और दोनों को पराजित किया।
3. रक्थबीज:
- रूप: रक्थबीज का रूप एक राक्षस का था, जिसका शरीर खून से सना हुआ था। यह एक असाधारण राक्षस था, जिसे हर बार जब उसका खून गिरता था, तो और अधिक राक्षस उत्पन्न होते थे।
- कहाँ रहते थे: रक्थबीज ने सप्त लोक में निवास किया था।
- पुत्र: रक्थबीज का कोई पुत्र नहीं था, लेकिन उसके खून से उत्पन्न राक्षसों के बल पर वह युद्ध करता था।
- मुख और रंग: उसका मुख बहुत भयंकर था और उसका रंग रक्त के समान लाल था।
- युद्ध क्षमता: रक्थबीज अत्यधिक शक्तिशाली था और उसका हर रक्त कण एक नया राक्षस उत्पन्न करता था।
- वरदान: उसे ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त था कि उसकी मौत केवल किसी देवी के हाथों हो सकती है।
- कैसे मरे: कात्यायनी देवी ने रक्थबीज का वध किया। उनके खून के कणों को देवी ने नष्ट किया, जिससे राक्षसों का उत्पन्न होना रुक गया और रक्थबीज का वध हुआ।
पूजा स्थल और प्रसिद्ध मन्दिर (Famous Temples of Katyayani Devi):
भारत में देवी के प्रमुख मन्दिर हैं, जहाँ उनकी पूजा विशेष रूप से होती है। इनमें से कुछ प्रमुख मन्दिर हैं:
- कात्यायनी मंदिर (Mathura, Uttar Pradesh): यह मन्दिर कात्यायनी देवी के प्रसिद्ध मन्दिरों में से एक है। यह मन्दिर मथुरा के पास स्थित है और यहाँ विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान देवी की पूजा होती है।
- कात्यायनी मन्दिर (सोनाली, उत्तर प्रदेश): यह मन्दिर कात्यायनी देवी के प्रमुख मन्दिरों में से एक है। यहाँ हर साल बड़े उत्सव आयोजित होते हैं, खासकर नवरात्रि के समय।
- कात्यायनी मन्दिर (हरिद्वार, उत्तराखंड): यह मन्दिर भी कात्यायनी देवी की पूजा के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ भक्त अपने कष्टों के निवारण के लिए देवी की पूजा करते हैं।
- कात्यायनी मन्दिर (हरियाणा): हरियाणा के झज्जर जिले में कात्यायनी मन्दिर स्थित है, जहाँ विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान बड़े स्तर पर पूजा होती है। इस मन्दिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है।
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1. दिन (Day)
- पूजा का दिन: दुर्गा नवमी के छठे दिन (षष्ठी)
- महत्त्व: यह दिन देवी कात्यायनी को समर्पित है, जो देवी दुर्गा के नौ रूपों में से एक हैं। इस दिन देवी कात्यायनी की पूजा नकारात्मक प्रभावों को दूर करने और शांति एवं समृद्धि लाने के लिए की जाती है।
- 4. वस्त्र (Attire for Puja)
- महिलाओं के लिए (Stri):
- पारंपरिक लाल, पीले, नारंगी या हरे रंग के वस्त्र, जैसे साड़ी या लहंगा।
- ये रंग देवी की ऊर्जा, शक्ति और शुभता का प्रतीक होते हैं।
- पुरुषों के लिए (Purush):
- पारंपरिक वस्त्र जैसे धोती, कुर्ता या शेरवानी, लाल, पीले या सफेद रंग में।
- यह रंग दिव्य आशीर्वाद और शक्ति का प्रतीक होते हैं।
- 5. दीपक संख्या (Number of Lamps)
- आदर्श दीपक संख्या:
- नौ दीपक (प्रत्येक नवमी के दिन के लिए एक) पूजा के लिए रखे जाते हैं।
- आप अपनी पूजा की रीति अनुसार 9 या 1 दीपक जला सकते हैं।
- 6. वर्तिका रंग संख्या (Number of Offerings)
- सामान्यत: किए जाने वाले अर्पण:
- 9 प्रकार के फल, 9 प्रकार के फूल और 9 प्रकार के अनाज।
- विशेष पूजा के लिए 108 अर्पण या 1,008 अर्पण (कमल के फूल या फल) किए जाते हैं।
- 7. दिशा (Direction)
- पूजा के लिए मुंह की दिशा:
- पूजा करते समय पूर्व की दिशा की ओर मुख करना चाहिए। पूर्व दिशा को दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सबसे शुभ माना जाता है।
- पूजा करने वाले की दिशा:
- पूजा करने वाले को भी पूर्व की दिशा में बैठना चाहिए ताकि वे ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से जुड़ सकें।
2. समय (Time)
- पूजा का उत्तम समय:
- प्रदोष काल (सांझ का समय)।
- शुभ समय: 5:30 बजे शाम से 7:30 बजे तक, यह समय आध्यात्मिक साधनाओं के लिए सबसे उपयुक्त होता है।
कात्यायनी का चंडी तंत्र और मंत्र अमरनाथ ग्रंथ में वर्णन:
कात्यायनी देवी का पूजा, तंत्र, और मंत्र शास्त्रों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। चंडी तंत्र और अमरनाथ ग्रंथ में कात्यायनी देवी की शक्ति और उनके मंत्रों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है।
• 1. कात्यायनी देवी और दाम्पत्य सुख:
• कात्यायनी देवी का रूप विशेष रूप से दाम्पत्य सुख देने वाला माना जाता है। उनकी पूजा से न केवल विवाह में आ रही अड़चनें दूर होती हैं, बल्कि वैवाहिक जीवन में प्रेम और सौहार्द्र भी बढ़ता है।
• विवाह दोष से संबंधित समस्याएँ, जैसे अकारण देरी, अपूर्ण प्रेम, या रिश्ते में तनाव, कात्यायनी देवी की पूजा से समाप्त होती हैं।
• कात्यायनी देवी का आशीर्वाद पाकर वैवाहिक जीवन में सुख-शांति आती है और दाम्पत्य जीवन में प्रेम का संचार होता है।4. शक्ति और वरदान:
• कात्यायनी देवी को देवताओं से विशेष शक्तियाँ मिली थीं:
• शक्ति प्राप्ति: देवी कात्यायनी को ब्रह्मा, विष्णु और शिव से शक्तियाँ प्राप्त हुईं, जिनकी सहायता से उन्होंने महिषासुर, शुम्भा, निशुम्भा, रक्थबीज आदि राक्षसों का वध किया।
• क्यों दिया गया वरदान: देवताओं ने इन राक्षसों से दुनिया को बचाने के लिए देवी कात्यायनी को शक्ति दी थी। यह शक्ति उन्हें राक्षसों को नष्ट करने के लिए दी गई थी।
• 5. विवाह दोष और दाम्पत्य सुख:
• कात्यायनी देवी का पूजन विशेष रूप से विवाह दोष के निवारण के लिए किया जाता है। उनका आशीर्वाद प्राप्त करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति, प्रेम और समृद्धि आती है, और दाम्पत्य जीवन में किसी प्रकार का संकट या तनाव नहीं रहता। कात्यायनी देवी के पूजा
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भुजा संख्या (Number of Arms)
कात्यायनी देवी की भुजाएँ चार होती हैं, जिनमें प्रत्येक हाथ में एक विशिष्ट अस्त्र या शस्त्र होता है। यह भुजाएँ देवी की दिव्यता, शक्ति, और सामर्थ्य को दर्शाती हैं।
- चार भुजाएँ: देवी कात्यायनी की चार भुजाएँ होती हैं, और प्रत्येक हाथ में एक अस्त्र या शस्त्र होता है।
4. युद्ध समय (Time of Battle)
कात्यायनी देवी का युद्ध समय रात्रि के समय अधिक होता है, खासकर रात्रि के अंतिम प्रहर में। देवी के द्वारा राक्षसों के वध और उनके नाश का समय मुख्य रूप से रात्रि होता है, जब नकारात्मक शक्तियाँ अधिक सक्रिय होती हैं।
5. अस्त्र-शस्त्र (Weapons)
कात्यायनी देवी के पास विभिन्न शक्तिशाली अस्त्र-शस्त्र होते हैं, जो राक्षसों का संहार करने के लिए उपयोग किए जाते हैं:
- चक्र (Discus): देवी के पास सुदर्शन चक्र होता है, जो उनके शत्रुओं का नाश करने के लिए अत्यधिक प्रभावी होता है।
- धनुष और बाण (Bow and Arrow): देवी के पास धनुष और बाण भी होते हैं, जिनका उपयोग उन्होंने शत्रुओं से युद्ध करने और उन्हें हराने के लिए किया था।
- तलवार (Sword): कात्यायनी देवी के पास तलवार भी होती है, जो उन्हें शत्रु के संहार में सहायक होती है।
- गदा (Mace): देवी के पास गदा भी होती है, जिसका उपयोग शत्रु को पराजित करने और असुरों का संहार करने के लिए किया जाता है।
- त्रिशूल (Trident): कात्यायनी देवी के हाथ में त्रिशूल होता है, जो उनके शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है। त्रिशूल से वह शत्रुओं को नष्ट करती हैं।
6. किस भुजा में कौन सा अस्त्र (Weapons in Each Arm)
- पहली भुजा: तलवार (Sword)
- दूसरी भुजा: सुदर्शन चक्र (Discus)
- तीसरी भुजा: गदा (Mace)
- चौथी भुजा: धनुष और बाण (Bow and Arrow)
कात्यायनी देवी का वाहन - सिंह (Lion):
कात्यायनी देवी का वाहन सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। सिंह पर सवार होकर देवी कात्यायनी शत्रुओं का नाश करती हैं। यह वाहन उनके युद्ध रूप को स्पष्ट करता है और शक्ति का प्रतीक है।
श्लोक:
"कात्यायनी महाक्रूरी महाशक्ति महालक्ष्मी। महायज्ञ महात्मा महाध्यानं महायज्ञं महोत्तमं।।"
अर्थ: "हे कात्यायनी, आप महाशक्ति, महालक्ष्मी, महात्मा, महायज्ञ और महायज्ञ की रचनाकार हैं।"
यह श्लोक कात्यायनी देवी के शक्तिशाली रूप को दर्शाता है, जो अपने सिंह पर सवार होकर शत्रुओं का संहार करती हैं और धर्म की रक्षा करती हैं।
3. युद्ध की स्थिति और अस्त्र-शस्त्र:
कात्यायनी देवी के पास युद्ध के लिए विभिन्न अस्त्र-शस्त्र होते हैं, जैसे चक्र, धनुष-बाण, गदा, और त्रिशूल। ये सभी अस्त्र शस्त्र उन्हें राक्षसों और असुरों के नाश के लिए प्राप्त हुए थे, और ये अस्त्र-शस्त्र उन्हें अत्यधिक बल और विजय प्रदान करते हैं।
श्लोक:
"धनुष बाणं त्रिशूलं चक्रं गदा महोत्तमा। सर्वशक्तिमयी देवी महालक्ष्मी महाशक्ति।।"
अर्थ: "कात्यायनी देवी के पास धनुष-बाण, त्रिशूल, चक्र और गदा जैसे महाशक्तिशाली अस्त्र हैं, जो उन्हें समस्त शक्ति और महालक्ष्मी का रूप प्रदान करते हैं।"
4. कात्यायनी देवी का युद्ध रूप:
कात्यायनी देवी ने महिषासुर और अन्य राक्षसों से युद्ध करते समय सिंह पर सवार होकर शक्तिशाली अस्त्रों का उपयोग किया था। वे अपनी चार भुजाओं में से प्रत्येक में एक अस्त्र धारण करती हैं, जैसे:
- चक्र (Discus): रक्षात्मक और नष्ट करने वाला अस्त्र।
- धनुष और बाण (Bow and Arrow): शत्रु का वध करने का अस्त्र।
- गदा (Mace): शत्रु के संहार के लिए।
- त्रिशूल (Trident): शक्ति का प्रतीक और शत्रु पर प्रहार करने के लिए।
श्लोक:
"या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।"
अर्थ: "जो देवी सर्वभूतों में शक्ति के रूप में स्थित हैं, उन्हें नमन है, उन्हें नमन है, उन्हें नमन है।"
यह श्लोक कात्यायनी देवी के युद्ध रूप और उनकी शक्ति को प्रदर्शित करता है, जो शत्रु के खिलाफ अस्त्रों का उपयोग करती हैं।
मंत्रों और अनुष्ठानों के माध्यम से विवाह में आने वाली रुकावटें दूर होती हैं और जीवन में सुख, समृद्धि और दाम्पत्य सुख की प्राप्ति होती है।
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कात्यायनी देवी के तंत्र और मंत्रों का है।
1. कात्यायनी का चंडी तंत्र
चंडी तंत्र में देवी कात्यायनी को महाक्रूरी, महाशक्तिशाली और राक्षसों का संहारक के रूप में पूजा जाता है। यह तंत्र उन राक्षसों, असुरों और नकारात्मक शक्तियों के वध के लिए विशेष रूप से उपयोगी होता है जो व्यक्ति की खुशहाली और शांति में विघ्न डालते हैं। कात्यायनी देवी का रूप और शक्ति तंत्र में अत्यधिक प्रभावी मानी जाती है।
चंडी तंत्र में कात्यायनी के बारे में उल्लेख:
"या देवी
सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।"
यह श्लोक देवी कात्यायनी के रूप को दर्शाता है, जो सम्पूर्ण संसार में मातृरूप में विद्यमान हैं। इस श्लोक के माध्यम से उनकी सार्वभौमिक शक्ति का गुणगान किया गया है।
कात्यायनी के तंत्र मंत्र:
- चंडी
तंत्र मंत्र:
"ॐ कात्यायनायि नमः"
अर्थ: "हे कात्यायनी देवी, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।" - शक्ति
वर्धक मंत्र:
"कात्यायनी महाक्रूरी महाशक्ति महालक्ष्मी।
महायज्ञ महात्मा महाध्यानं महायज्ञं महोत्तमं।।"
यह मंत्र देवी कात्यायनी की शक्ति को जागृत करने और राक्षसों के वध के लिए प्रभावी होता है।
2. अमरनाथ ग्रंथ में कात्यायनी का वर्णन
अमरनाथ ग्रंथ में देवी कात्यायनी की पूजा और उनके मंत्रों का महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ देवी की महिमा और शक्तियों का वर्णन किया गया है, जिनसे व्यक्ति जीवन के कठिनतम पलों में भी आशा और शक्ति प्राप्त कर सकता है।
अमरनाथ ग्रंथ में कात्यायनी के मंत्र:
अमरनाथ ग्रंथ में यह उल्लेख किया गया है कि कात्यायनी देवी के मंत्रों के जाप से आत्मबल मिलता है और जीवन के सभी संकट समाप्त होते हैं। उनका मंत्र विशेष रूप से योनिक शक्ति को जागृत करने और समृद्धि लाने के लिए प्रभावी माना जाता है।
- कात्यायनी
का शक्तिशाली मंत्र:
"ॐ कात्यायनायि महाक्रूरी महाशक्ति महालक्ष्मी।
महायज्ञ महात्मा महाध्यानं महायज्ञं महोत्तमं।।"
यह मंत्र देवी कात्यायनी की असीम शक्ति को दर्शाता है और उसकी कृपा प्राप्त करने के लिए उपयोग किया जाता है।
3. कात्यायनी देवी का मंत्र शक्ति:
कात्यायनी देवी का मंत्र शक्ति अत्यधिक प्रभावी है। इन मंत्रों का नियमित जाप व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाता है, साथ ही नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है।
कात्यायनी के मंत्रों के प्रभाव:
- साधक को भूत-प्रेतों से मुक्ति मिलती है।
- देवी के आशीर्वाद से जीवन में समृद्धि और ऐश्वर्य आता है।
- रोगों और शत्रुओं से रक्षा होती है।
- कष्टों और समस्याओं का निवारण होता है।
- मनोकामनाओं की सिद्धि होती है।
3. मंत्र (Sacred Chants)
- वैदिक मंत्र (Vedic
Mantra for Katyayani):
ॐ कात्यायनायि नमः
अर्थ: "महर्षि कात्यायन की पुत्री देवी कात्यायनी को प्रणाम।" - शबर मंत्र (Shabar
Mantra for Katyayani):
कात्यायनी महाक्रूरी महाक्रांती महाशक्ती।
महालक्ष्मी महात्मा महाध्यानं महायज्ञं महोत्तमं।
अर्थ: "हे देवी कात्यायनी, जो परम शक्ति, ऊर्जा और समृद्धि की रूप हैं, मैं आपके आशीर्वाद की कामना करता हूँ।" - जैन धर्म मंत्र (Jain
Chant):
नमः अरिहन्ताणं, नमः सिद्धाणं, नमः आयरियाणं, नमः उवज्जायाणं, नमः लोए सव्वसाहूणं
अर्थ: "अरिहंतों, सिद्धों, आचार्यों, उपाध्यायों और सभी संतों को प्रणाम।" - बौद्ध मंत्र (Buddhist
Chant):
ॐ मणि पद्मे हूँ
अर्थ: "कमल में रत्न है।" (यह बुद्ध की बुद्धिमत्ता और करुणा का प्रतीक है।)
- विवाह दोषों का निवारण और दाम्पत्य सुख की प्राप्ति – कात्यायनी पूजा के माध्यम से
- विवाह संबंधी दोषों, विशेष रूप से मंगल दोष, शनि दोष, और राहु-केतु दोष को दूर करने के लिए कात्यायनी देवी की पूजा अत्यंत प्रभावी मानी जाती है। कात्यायनी देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने से दाम्पत्य जीवन में सुख-शांति आती है और विवाह में आने वाली बाधाएँ समाप्त होती हैं। इस दिन पूजा से व्यक्ति के विवाह दोष, जैसे दोषपूर्ण ग्रहों के प्रभाव और बुरा वक्त, समाप्त हो जाते हैं।
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. राक्षस (Demons)
- मुख्य राक्षस जिसे कात्यायनी
ने मारा:
महिषासुर, एक शक्तिशाली राक्षस जिसे कई रूपों में बदलने की क्षमता थी, को देवी कात्यायनी ने मारा।
देवी कात्यायनी की शक्ति ब्रह्मा, विष्णु, शिव और अन्य देवताओं से प्राप्त दिव्य ऊर्जा का परिणाम थी, जिसने उन्हें महिषासुर जैसे राक्षसों को पराजित करने में मदद की।
-राक्षसों
का वध:
शुम्भ, निशुम्भ और
अन्य अंधकार की शक्तियों को भी देवी कात्यायनी ने नष्ट किया, जब वह
दुर्गा के रूप में आईं।
-कात्यायनी देवी द्वारा राक्षसों के वध से संबंधित शास्त्रों और श्लोकों का प्रमाण
कात्यायनी देवी के द्वारा राक्षसों के वध और उनकी शक्तियों से संबंधित प्रमाण हमें विभिन्न शास्त्रों में मिलते हैं। इन राक्षसों का वध देवी कात्यायनी ने किया, जो विशेष रूप से राक्षसों से पृथ्वी को बचाने के लिए उत्पन्न हुई थीं। निम्नलिखित शास्त्रों और श्लोकों में कात्यायनी देवी के कार्यों का वर्णन किया गया है:
1. देवी महात्म्य (देवी भागवतम)
श्लोक 1:
"जपाकुसुमसङ्काशं
काश्यपेयं महाद्युतिम्।
तमोऽरिं
सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्।।"
यह श्लोक देवी की दिव्यता और महिमा का वर्णन करता है, जिसमें उनका रूप सूर्य के समान तेजस्वी बताया गया है। कात्यायनी देवी का रूप और उनका कार्य राक्षसों के वध और धरती की रक्षा के लिए था। इस श्लोक के माध्यम से देवी की शक्तियों और उनके द्वारा किए गए महान कार्यों की पुष्टि होती है।
श्लोक 2:
"शुम्भं
निशुम्भं च यदा हरिशिवपदे महेन्द्रद्वयं।
वन्दे
कात्यायनीं महा देवि महेश्वरं नारायणं।।"
यह श्लोक कात्यायनी देवी द्वारा शुम्भ और निशुम्भ के वध का वर्णन करता है। शुम्भ और निशुम्भ की कथाएँ देवी महात्म्य में विस्तृत रूप से दी गई हैं, जिसमें देवी कात्यायनी का उत्पत्ति और उनके कार्यों का संदर्भ है।
2. दुर्गा सप्तशती
श्लोक 1:
"महिषं
महिषासुरं महात्मा महिषासुरं महान।
कात्यायनी
महाक्रूरं विजयं यन्तु मे सदे।।"
यह श्लोक देवी कात्यायनी द्वारा महिषासुर के वध के संदर्भ में है। महिषासुर के बारे में विस्तृत रूप से बताया गया है कि वह अत्यधिक शक्तिशाली था और देवताओं के लिए बहुत बड़ा संकट था। कात्यायनी देवी ने उसे समाप्त किया।
3. शिव महापुराण
श्लोक 1:
"कात्यायनी
महाक्रूरं शुम्भं निशुम्भं च युधि।
नाशयित्वा
महाक्रूर्वीरं संसार मोह व्याप्नुयात।।"
यह श्लोक कात्यायनी देवी के शुम्भ और निशुम्भा के वध को स्पष्ट करता है। देवी ने इन दोनों राक्षसों को नष्ट किया और संसार से मोह को समाप्त किया।
4. रामायण (रामचरितमानस)
श्लोक 1:
"वन्दे
महाक्रूरं राक्षसद्वारं शत्रु नाशकं।
दूसरे
राक्षसों का नाश करने वाली देवी कात्यायनी महेश्वर की शक्ति से बंधी हैं।।"
यह श्लोक राक्षसों के वध और कात्यायनी देवी की शक्ति का बयान करता है। यह दर्शाता है कि देवी का कार्य केवल राक्षसों का वध नहीं था, बल्कि संसार की रक्षा और सत्य की विजय भी थी।
राक्षसों के वध का शास्त्र-संवर्धन
- महिषासुर: देवी महात्म्य में महिषासुर के वध का वर्णन किया गया है। महिषासुर ने देवी के सामने आने से पहले अपनी ताकत से सभी देवताओं को परेशान किया था। देवी ने उसे वध किया और उसके सारे आतंक को समाप्त किया।
- शुम्भ और निशुम्भ: कात्यायनी देवी ने इन दोनों राक्षसों का वध किया था, जो देवताओं के साथ युद्ध कर रहे थे। देवी के सामने आने से पहले, इन राक्षसों ने देवताओं को परेशान किया था। कात्यायनी देवी ने उन्हें हराकर धर्म की स्थापना की।
- रक्तबीज: रक्तबीज को ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त था कि उसका रक्त गिरने पर हर बूंद से एक नया राक्षस उत्पन्न होगा। देवी ने उसके रक्त को नष्ट कर दिया और उसे पराजित किया।
5. श्री दुर्गा सप्तशती
दुर्गा सप्तशती में देवी के राक्षसों के वध का विस्तृत वर्णन है। यह शास्त्र न केवल देवी के बल को बताता है, बल्कि उनके कार्यों को भी स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता है। यहां पर कात्यायनी देवी के द्वारा किए गए प्रमुख कार्यों का उल्लेख किया गया है, विशेष रूप से उनके द्वारा किए गए राक्षसों के वध के संदर्भ में।
2. राक्षसों के नाम और उनकी विशेषताएँ:
कात्यायनी देवी ने कई राक्षसों का वध किया था जो मानवों और देवताओं के लिए संकट का कारण बने थे। निम्नलिखित प्रमुख राक्षसों का वध देवी कात्यायनी ने किया और उनकी विशेषताएँ:
1. महिषासुर:
- रूप: महिषासुर एक महिष (भैंस) का रूप धारण करने वाला राक्षस था।
- कहाँ रहते थे: महिषासुर ने पाताल लोक में निवास किया था, जहाँ वह देवताओं के खिलाफ युद्ध कर रहा था।
- पुत्र: महिषासुर का कोई पुत्र नहीं था, वह एक अकेला राक्षस था।
- आकार/प्रकार: महिषासुर विशालकाय था, और उसका रूप भैंस जैसा था, जिसे वह युद्ध में बदल सकता था।
- मुख और रंग: महिषासुर का मुंह काला और रंग भैंस जैसा था।
- युद्ध क्षमता: महिषासुर अत्यधिक शक्तिशाली और युद्ध में निपुण था।
- वरदान: महिषासुर को ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु किसी महिला से नहीं होगी। इस वरदान के कारण वह देवताओं को परेशान करता रहा।
- शाप: वह शाप से अभिप्रेरित होकर सभी देवताओं को परेशान करता था।
- कैसे मरे: देवी कात्यायनी ने महिषासुर को अपने शक्तिशाली त्रिशूल से मारा। वह न केवल शक्तिशाली था, बल्कि एक राक्षस था जो अजेय समझा जाता था।
2. शुम्भ और निशुम्भ:
- रूप: ये दोनों राक्षस भाई थे। इनका रूप विशालकाय था और इनके शरीर से डरावनी आभा निकलती थी।
- कहाँ रहते थे: शुम्भा और निशुम्भा ने हिमालय के आसपास के क्षेत्रों में अपना राज्य स्थापित किया था।
- पुत्र: शुम्भा और निशुम्भा के कोई पुत्र नहीं थे, वे दोनों ही शक्तिशाली थे।
- आकार/प्रकार: वे भयंकर राक्षस थे, जिनका रूप कभी भी बदल सकता था। इनका रूप बहुत ही विकृत और डरावना था।
- मुख और रंग: इनके मुख का रंग काले और रक्त से सने हुए थे।
- युद्ध क्षमता: ये दोनों राक्षस अत्यधिक युद्ध क्षमता के स्वामी थे।
- वरदान: इन दोनों को किसी भी देवता से पराजित होने का वरदान प्राप्त था। वे अजेय थे।
- कैसे मरे: कात्यायनी देवी ने इन दोनों राक्षसों का वध किया। वह विशेष रूप से शुम्भा और निशुम्भा के साथ भयंकर युद्ध में सम्मिलित हुईं और दोनों को पराजित किया।
3. रक्थबीज:
- रूप: रक्थबीज का रूप एक राक्षस का था, जिसका शरीर खून से सना हुआ था। यह एक असाधारण राक्षस था, जिसे हर बार जब उसका खून गिरता था, तो और अधिक राक्षस उत्पन्न होते थे।
- कहाँ रहते थे: रक्थबीज ने सप्त लोक में निवास किया था।
- पुत्र: रक्थबीज का कोई पुत्र नहीं था, लेकिन उसके खून से उत्पन्न राक्षसों के बल पर वह युद्ध करता था।
- मुख और रंग: उसका मुख बहुत भयंकर था और उसका रंग रक्त के समान लाल था।
- युद्ध क्षमता: रक्थबीज अत्यधिक शक्तिशाली था और उसका हर रक्त कण एक नया राक्षस उत्पन्न करता था।
- वरदान: उसे ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त था कि उसकी मौत केवल किसी देवी के हाथों हो सकती है।
- कैसे मरे: कात्यायनी देवी ने रक्थबीज का वध किया। उनके खून के कणों को देवी ने नष्ट किया, जिससे राक्षसों का उत्पन्न होना रुक गया और रक्थबीज का वध हुआ।
पूजा स्थल और प्रसिद्ध मन्दिर (Famous Temples of Katyayani Devi):
भारत में देवी के प्रमुख मन्दिर हैं, जहाँ उनकी पूजा विशेष रूप से होती है। इनमें से कुछ प्रमुख मन्दिर हैं:
- कात्यायनी मंदिर (Mathura, Uttar Pradesh): यह मन्दिर कात्यायनी देवी के प्रसिद्ध मन्दिरों में से एक है। यह मन्दिर मथुरा के पास स्थित है और यहाँ विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान देवी की पूजा होती है।
- कात्यायनी मन्दिर (सोनाली, उत्तर प्रदेश): यह मन्दिर कात्यायनी देवी के प्रमुख मन्दिरों में से एक है। यहाँ हर साल बड़े उत्सव आयोजित होते हैं, खासकर नवरात्रि के समय।
- कात्यायनी मन्दिर (हरिद्वार, उत्तराखंड): यह मन्दिर भी कात्यायनी देवी की पूजा के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ भक्त अपने कष्टों के निवारण के लिए देवी की पूजा करते हैं।
- कात्यायनी मन्दिर (हरियाणा): हरियाणा के झज्जर जिले में कात्यायनी मन्दिर स्थित है, जहाँ विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान बड़े स्तर पर पूजा होती है। इस मन्दिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है।
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