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चार धाम तीर्थ यात्रा – जानी-अनजानी बातें Char Dham Pilgrimage – Known & Unknown Factsचार धाम यात्रा – संपूर्ण विवरण

 


चार धाम तीर्थ यात्रा – जानी-अनजानी बातें

Char Dham Pilgrimage – Known & Unknown Facts

1. चार धाम क्या हैं? | What are the Char Dhams?

2. चार धाम यात्रा का धार्मिक महत्व | Religious Significance of Char Dham Yatra

3. यात्रा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि | Historical Background of the Pilgrimage

4. यात्रा कब और कैसे शुरू हुई? | When & How Did the Pilgrimage Begin?

5. चार धाम से जुड़ी पौराणिक कथाएँ | Mythological Stories Related to Char Dham

6. चार धाम यात्रा के दौरान विशेष रीति-रिवाज | Special Rituals During the Pilgrimage

7. चार धाम यात्रा में जल अर्पण का महत्व | Significance of Water Offering in Char Dham

8. रामेश्वरम में चार धामों का जल अर्पण क्यों? | Why Offer Water from the Char Dhams at Rameshwaram?

9. कौन-सा धाम किस देवता को समर्पित है? | Which Dham is Dedicated to Which Deity?

10. चार धाम यात्रा से जुड़े रोचक तथ्य | Interesting Facts About the Pilgrimage

🚩 चार धाम यात्रा केवल धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और आत्मशुद्धि की यात्रा भी है।
🚩 Char Dham Yatra is not just a religious journey but also a path to spiritual awakening and self-purification.

चार धाम यात्रा संपूर्ण विवरण

1. चार धाम क्या हैं?

2. चार धाम यात्रा क्यों करें?

3. चार धाम यात्रा कब शुरू करें?

  • यात्रा का शुभ काल

4. चार धाम यात्रा का महत्व

5. चार धाम यात्रा का क्रम

6. पूजा विधि (प्रत्येक धाम में विशेष पूजा)

  • बद्रीनाथ (विष्णु मंदिर) पूजन विधि
  • द्वारका (कृष्ण मंदिर) पूजन विधि
  • जगन्नाथ पुरी (जगन्नाथ मंदिर) पूजन विधि
  • रामेश्वरम (शिव मंदिर) पूजन विधि

7. दीपक, तेल-घी एवं अर्पण वस्तु विवरण

8. परिक्रमा विधि

9. सारांश


1. चार धाम तीर्थ यात्रा का परिचय

चार धाम यात्रा हिंदू धर्म की एक अत्यंत पवित्र तीर्थ यात्रा मानी जाती है। यह भारत के चार कोनों में स्थित चार प्रमुख धामों की यात्रा है। आदि शंकराचार्य ने इन तीर्थों को विशेष रूप से प्रतिष्ठित किया। यह यात्रा जीवन को मोक्ष की ओर ले जाने वाली मानी जाती है।

चार धाम मंदिरों की स्थापना, काल, और संबंधित राजा

चार धाम – बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी, और रामेश्वरम – का उल्लेख विभिन्न हिंदू ग्रंथों में मिलता है। हालांकि, इन मंदिरों की स्थापना अलग-अलग युगों और राजाओं के शासनकाल में हुई थी। आदि शंकराचार्य ने इन चार धामों को विशेष तीर्थ यात्रा के रूप में प्रतिष्ठित किया था।


1️⃣ बद्रीनाथ धाम (उत्तराखंड) – सत्ययुग

📌 स्थापना काल: सत्ययुग
📌 संस्थापक: भगवान विष्णु (श्री नारायण) ने स्वयं इस स्थान को तपस्या के लिए चुना।
📌 राजा: मानव इतिहास में सबसे पहले बद्रीनाथ क्षेत्र का उल्लेख सतयुग में पाया जाता है। 

 द्वापर युग में पांडवों ने इस स्थान की यात्रा की थी
📌 आधुनिक मंदिर: 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने पुनः इस मंदिर की स्थापना की।
📌 महाभारत में उल्लेख:
👉 श्लोक (महाभारत, वनपर्व, 188.27):
"नरनारायणौ देवौ तपः कुरुत नित्यशः।
बदरिकाश्रमे पुण्ये सर्वलोक नमस्कृते॥"

🔹 महत्व:
बद्रीनाथ को भगवान विष्णु का निवास स्थान माना जाता है। यहाँ नर-नारायण ऋषि ने तपस्या की थी और यह मोक्ष प्राप्ति का प्रमुख स्थान है।


2️⃣ द्वारका धाम (गुजरात) – द्वापरयुग

📌 स्थापना काल: द्वापरयुग
📌 संस्थापक: भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका को अपनी राजधानी बनाया।
📌 राजा: भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा से आकर द्वारका बसाई। द्वारका पर यदुवंश का शासन था।
📌 आधुनिक मंदिर: 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने मंदिर का पुनरुद्धार किया।
📌 महाभारत में उल्लेख:
👉 श्लोक (महाभारत, सभा पर्व, 38.24):
"ततोऽर्णवं समासाद्य, पुरीं द्वारवतीं शुभाम्।
वासुदेवस्य वसतिं, यदूनां निवसः सदा॥"

🔹 महत्व:
द्वारका श्रीकृष्ण की नगरी थी। समुद्र के भीतर चली गई द्वारका को बाद में खोजा गया और 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने मंदिर को पुनर्स्थापित किया।


3️⃣ जगन्नाथ पुरी (ओडिशा) – कलियुग

📌 स्थापना काल: द्वापर युग के अंत और कलियुग के प्रारंभ में
📌 संस्थापक: राजा इन्द्रद्युम्न (उज्जैन के मालवा क्षेत्र के राजा)
📌 राजा: इन्द्रद्युम्न ने स्वप्न में भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर मंदिर बनवाया।
📌 आधुनिक मंदिर: 12वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग ने वर्तमान मंदिर का निर्माण कराया।
📌 स्कंद पुराण में उल्लेख:
👉 श्लोक:
"कृतयुगे बदरीस्रेष्ठा, त्रेतायां राघवेश्वरः।
द्वापरे द्वारवती प्रोक्ता, कलौ पुरी जगन्नाथः॥"

🔹 महत्व:
पुरी में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा विराजमान हैं। यह कलियुग में मोक्षदायी तीर्थ माना गया है।


4️⃣ रामेश्वरम (तमिलनाडु) – त्रेता युग

📌 स्थापना काल: त्रेता युग
📌 संस्थापक: भगवान श्रीराम ने स्वयं रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना की।
📌 राजा: श्रीराम (अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र)
📌 आधुनिक मंदिर: पांड्य राजाओं ने 12वीं शताब्दी में इसे भव्य मंदिर का रूप दिया।
📌 वाल्मीकि रामायण में उल्लेख:
👉 श्लोक (युद्ध कांड, 123.24):
"रामेश्वरं महादेवम्, पूजयामास राघवः।
तस्य पूजार्थं तत्सर्वं, समुद्रः समुपाहरत्॥"

🔹 महत्व:
भगवान राम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद यहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी। यह हिंदू धर्म का प्रमुख शिवधाम भी है।


🔹 चार धाम की स्थापना किसके समय हुई?

धामयुगसंस्थापकराजा (उस समय)आधुनिक पुनर्निर्माण
बद्रीनाथसत्ययुगभगवान विष्णु (नर-नारायण)पांडवों ने पूजा की8वीं शताब्दी - आदि शंकराचार्य
द्वारकाद्वापरयुगभगवान श्रीकृष्णयदुवंशीय राजा (श्रीकृष्ण)8वीं शताब्दी - आदि शंकराचार्य
जगन्नाथ पुरीकलियुगराजा इन्द्रद्युम्नराजा इन्द्रद्युम्न12वीं शताब्दी - राजा अनंतवर्मन चोडगंग
रामेश्वरमत्रेता युगभगवान श्रीरामश्रीराम (अयोध्या के राजा)12वीं शताब्दी - पांड्य राजाओं द्वारा पुनर्निर्माण

🔹 निष्कर्ष

✔ चार धामों की स्थापना विष्णु, कृष्ण, राम और शिव से संबंधित है
आदि शंकराचार्य (8वीं शताब्दी) ने चारों धामों को हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ के रूप में स्थापित किया।
✔ आधुनिक मंदिरों का पुनर्निर्माण गुप्त काल, चोल वंश, पांड्य वंश और गंग वंश के शासकों द्वारा किया गया।
चारों धामों का मूल युग भले ही अलग-अलग हो, लेकिन ये मोक्ष प्राप्ति के तीर्थ हैं। 🚩

चार धाम की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी, और ये हिंदू धर्म के चार प्रमुख तीर्थ हैं। हालाँकि, इन धामों का संबंध विभिन्न युगों से जोड़ा जाता है

चार धाम और उनके युगों का संबंध:

  1. द्वारका (गुजरात) - द्वापर युग
    • भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में द्वारका नगरी की स्थापना की थी।
  2. बद्रीनाथ (उत्तराखंड) - सत्य युग
    • इसे भगवान विष्णु की तपस्या स्थली माना जाता है, और इसका संबंध नारायण-नारद संवाद से भी है।
  3. जगन्नाथ पुरी (ओडिशा) - कलियुग
    • कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) कलियुग में भक्तों का उद्धार करने के लिए विशेष रूप से प्रकट हुए।
  4. रामेश्वरम (तमिलनाडु) - त्रेता युग
    • यहाँ भगवान राम ने रावण वध के बाद शिवलिंग की स्थापना की थी।

संक्षेप में:

  • सत्य युग - बद्रीनाथ
  • त्रेता युग - रामेश्वरम
  • द्वापर युग - द्वारका
  • कलियुग - जगन्नाथ पुरी

इस प्रकार, चार धाम पूरे चारों युगों से जुड़े हुए हैं और हिंदू धर्म में मोक्ष प्राप्ति के लिए इनकी यात्रा का विशेष महत्व है।

चार धाम (बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी और रामेश्वरम) का उल्लेख विभिन्न हिंदू ग्रंथों में मिलता है, विशेष रूप से स्कंद पुराण, पद्म पुराण, श्रीमद्भागवत महापुराण, और महाभारत में। आदि शंकराचार्य ने इन चार धामों को विशेष तीर्थ यात्रा के रूप में प्रतिष्ठित किया था।


1       बद्रीनाथ (उत्तराखंड) सत्य युग

📜 श्रीमद्भागवत महापुराण (कैंतो 3, अध्याय 4, श्लोक 22)
श्लोक:
"
सिद्धोऽसि बदरीष्वथ, तपोवनगतो ह्यसि।
तत्र त्वां द्रष्टुमिच्छामि, परमेश्ठ्यं परायणम्॥"

अर्थ:
हे भगवान! आप बदरीनाथ क्षेत्र में स्थित हैं, जहाँ तपस्वियों और ऋषियों का वास है। हम आपको देखने की इच्छा रखते हैं क्योंकि आप ही परम कल्याण स्वरूप हैं।

🔹 महत्व:
बद्रीनाथ को भगवान विष्णु का निवास स्थान माना जाता है। यहाँ नर-नारायण ऋषि ने तपस्या की थी, और यह मोक्ष प्राप्ति का तीर्थ माना जाता है।


2️       द्वारका (गुजरात) द्वापर युग

📜 महाभारत (सभा पर्व, अध्याय 38, श्लोक 24)
श्लोक:
"
ततोऽर्णवं समासाद्य, पुरीं द्वारवतीं शुभाम्।
वासुदेवस्य वसतिं, यदूनां निवसः सदा॥"

अर्थ:
तब वे पवित्र समुद्र के पास स्थित शुभ द्वारका नगरी पहुँचे, जो वासुदेव (श्रीकृष्ण) का निवास स्थान और यदुवंशियों की स्थायी नगरी थी।

🔹 महत्व:
द्वारका भगवान श्रीकृष्ण की राजधानी थी। इसे "मोक्षपुरी" भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ भगवान ने द्वारकाधीश के रूप में धर्म की स्थापना की थी।


3     जगन्नाथ पुरी (ओडिशा) कलियुग

📜 स्कंद पुराण (उत्तरार्द्ध, पुरुषोत्तम माहात्म्य, अध्याय 5, श्लोक 60-61)
श्लोक:
"
कृतयुगे बदरीस्रेष्ठा, त्रेतायां राघवेश्वरः।
द्वापरे द्वारवती प्रोक्ता, कलौ पुरी जगन्नाथः॥"

अर्थ:
सत्ययुग में बद्रीनाथ श्रेष्ठ तीर्थ है, त्रेतायुग में रामेश्वर, द्वापरयुग में द्वारका और कलियुग में जगन्नाथ पुरी मुख्य तीर्थ है।

🔹 महत्व:
पुरी में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा विराजमान हैं। यह कलियुग में मोक्षदायी तीर्थ माना गया है।


4️     रामेश्वरम (तमिलनाडु) त्रेता युग

📜 रामायण (युद्ध कांड, 123.24)
श्लोक:
"
रामेश्वरं महादेवम्, पूजयामास राघवः।
तस्य पूजार्थं तत्सर्वं, समुद्रः समुपाहरत्॥"

अर्थ:
भगवान श्रीराम ने महादेव की आराधना के लिए रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की, और समुद्र ने उनकी पूजा के लिए आवश्यक सामग्री प्रस्तुत की।

🔹 महत्व:
भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद यहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी। यह हिंदू धर्म का प्रमुख शिवधाम भी है।


🔹 निष्कर्ष:

चार धामों का उल्लेख श्रीमद्भागवत महापुराण, स्कंद पुराण, महाभारत और रामायण में मिलता है। इनमें स्नान और दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और यह चारों युगों से जुड़े हुए हैं।

📜 संक्षिप्त श्लोक (स्कंद पुराण):
"
कृतयुगे बदरीस्रेष्ठा, त्रेतायां राघवेश्वरः।
द्वापरे द्वारवती प्रोक्ता, कलौ पुरी जगन्नाथः॥"

अर्थ:
चारों युगों में चार धाम प्रमुख तीर्थ माने गए हैं
सत्ययुग में बद्रीनाथ,
त्रेतायुग में रामेश्वरम,
द्वापरयुग में द्वारका,
कलियुग में जगन्नाथ पुरी।

🔹 इसलिए चार धाम यात्रा को मोक्ष यात्रा भी कहा जाता है।


2. चार धामों के नाम और स्थान

धाम

स्थान

सम्बंधित देवता

बद्रीनाथ

उत्तराखंड

भगवान विष्णु

द्वारका

गुजरात

भगवान कृष्ण

जगन्नाथ

ओडिशा

भगवान जगन्नाथ

रामेश्वरम

तमिलनाडु

भगवान शिव

 






3. यात्रा क्रम और मार्ग

चार धाम यात्रा सामान्यतः उत्तर से शुरू होती है और दक्षिण में समाप्त होती है। यात्रा का पारंपरिक क्रम इस प्रकार है:

  1. बद्रीनाथ धाम (उत्तराखंड) - अलकनंदा नदी के तट पर स्थित, यह भगवान विष्णु का धाम है।
  2. जगन्नाथ पुरी (ओडिशा) - यह भगवान श्रीकृष्ण (जगन्नाथ) का प्रमुख धाम है।
  3. द्वारका धाम (गुजरात) - भगवान श्रीकृष्ण की कर्मभूमि और द्वारकाधीश मंदिर स्थित है।
  4. रामेश्वरम (तमिलनाडु) - यह भगवान शिव का प्रमुख ज्योतिर्लिंग मंदिर है, जो रामायण काल से जुड़ा हुआ है।

4. चार धाम यात्रा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

  • विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि जो व्यक्ति चार धाम की यात्रा करता है, उसे जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।
  • स्कंद पुराण के अनुसार चार धामों के दर्शन से समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं।
  • पद्म पुराण में कहा गया है कि चार धाम यात्रा करने से व्यक्ति को वैकुंठ प्राप्त होता है।
  • विष्णु पुराण में उल्लेख है कि इन तीर्थों की यात्रा करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

5. चार धाम यात्रा किस माह से प्रारंभ होती है?

  • बद्रीनाथ धाम: अक्षय तृतीया (मई) से कार्तिक माह (अक्टूबर-नवंबर) तक खुला रहता है।
  • जगन्नाथ पुरी: पूरे वर्ष खुला रहता है। विशेष रूप से रथ यात्रा का महत्व है।
  • द्वारका धाम: पूरे वर्ष दर्शन किए जा सकते हैं।
  • रामेश्वरम धाम: पूरे वर्ष श्रद्धालु दर्शन कर सकते हैं।

चार धाम यात्रा के फल और महत्व

शास्त्रीय प्रमाण:

स्कंद पुराण: "चतुर्धामानि यः पश्च्यात् स सर्वपापैः प्रमुच्यते।" (जो व्यक्ति चार धाम यात्रा करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।)

गरुड़ पुराण: "चारधाम यात्रा से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति होती है।"

धर्मसिंधु: "चार धाम यात्रा का पालन करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल होता है और मृत्यु के पश्चात मोक्ष प्राप्त करता है।"

3. चार धा यात्रा किस माह से प्रारंभ होती है?

बद्रीनाथ धाम: अक्षय तृतीया (मई) से कार्तिक माह (अक्टूबर-नवंबर) तक खुला रहता है।

जगन्नाथ पुरी: पूरे वर्ष खुला रहता है। विशेष रूप से रथ यात्रा का महत्व है।

द्वारका धाम: पूरे वर्ष दर्शन किए जा सकते हैं।

रामेश्वरम धाम: पूरे वर्ष श्रद्धालु दर्शन कर सकते हैं।

 यात्रा क्रम और मार्ग

चार धाम यात्रा सामान्यतः उत्तर से शुरू होती है और दक्षिण में समाप्त होती है। यात्रा का पारंपरिक क्रम इस प्रकार है:

बद्रीनाथ धाम (उत्तराखंड) - अलकनंदा नदी के तट पर स्थित, यह भगवान विष्णु का धाम है।

जगन्नाथ पुरी (ओडिशा) - यह भगवान श्रीकृष्ण (जगन्नाथ) का प्रमुख धाम है।

द्वारका धाम (गुजरात) - भगवान श्रीकृष्ण की कर्मभूमि और द्वारकाधीश मंदिर स्थित है।

रामेश्वरम (तमिलनाडु) - यह भगवान शिव का प्रमुख ज्योतिर्लिंग मंदिर है, जो रामायण काल से जुड़ा हुआ है।

चार धाम यात्रा के दौरान पूजा विधि और अनुष्ठान

बद्री. चार धाम में पूजा विधि

चर धामों में प्रत्येक धाम की अपनी विशिष्ट पूजा विधियाँ होती हैं।

सामान्य रूप से निम्नलिखित चरणों में पूजा की जाती है:

स्नान एवं शुद्धि तीर्थ स्थल के पवित्र जल में स्नान करना अनिवार्य है।

ध्यान एवं संकल्प भगवान का ध्यान करते हुए संकल्प लेना।

मंत्र जाप प्रत्येक धाम के प्रधान देवता के मंत्रों का जाप करना।

अर्चना एवं अभिषेक फूल, जल, दूध, चंदन से अभिषेक करना।

आरती एवं दीपदान घी या तिल के तेल का दीप जलाकर आरती करना।

प्रसाद अर्पण फल, पंचामृत, और विशेष प्रसाद चढ़ाना।

परिक्रमा मंदिर के चारों ओर नियमानुसार परिक्रमा करना।

3. चार धाम के मंत्र

बद्रीनाथ – "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय"

द्वारका – "ॐ श्रीकृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने नमः"

जगन्नाथ पुरी – "ॐ जगन्नाथाय स्वाहा"

रामेश्वरम – "ॐ नमः शिवाय"

4. पूजा का समय एवं दिशा

बद्रीनाथ सूर्योदय से पूर्व ब्रह्ममुहूर्त में पूजा शुभ होती है।

द्वारका प्रातः और सायंकाल दोनों समय पूजा की जाती है।

जगन्नाथ पुरी मुख्य पूजा दोपहर 12 बजे होती है।

रामेश्वरम रात्रि के समय अभिषेक करने का विशेष महत्व है।

पूजा दिशा पूर्वमुखी होकर पूजा करना शुभ माना जाता है।

5. दीपक की दिशा एवं सामग्री

दीपक की दिशा पूर्व और उत्तर दिशा में दीपक जलाना श्रेष्ठ माना जाता है।

दीपक की बाती गाय के घी की बाती मोक्षदायी मानी जाती है, जबकि तिल के तेल की बाती पाप नाश करने वाली होती है।

घी या तेल का दीपक

बद्रीनाथ गाय के घी का दीपक

द्वारका तिल के तेल का दीपक

जगन्नाथ पुरी मिश्रित तेल (सरसों और तिल)

रामेश्वरम तिल के तेल का दीपक श्रेष्ठ माना जाता है।

6. परिक्रमा क्रमविधि

बद्रीनाथ चारों ओर से परिक्रमा, पंचशिला दर्शन सहित।

द्वारका मंदिर के साथ गोमती नदी की परिक्रमा।

जगन्नाथ पुरी तीन परिक्रमा अनिवार्य (गर्भगृह, मुख्य मंदिर और नगर परिक्रमा)।

रामेश्वरम शिवलिंग की एक ही बार परिक्रमा करनी चाहिए।

नाथ धाम: विष्णु सहस्रनाम का पाठ, तुलसी अर्पण, पंचामृत स्नान।

जगन्नाथ पुरी: महाप्रसाद ग्रहण, श्रीमद्भागवत पाठ, रथ यात्रा उत्सव।

द्वारका धाम: गीता पाठ, गोसेवा, तुलसी दल अर्पण।

रामेश्वरम: अभिषेक, रुद्राभिषेक, जल अर्पण अनुष्ठान।


 दीपक, तेल-घी एवं अर्पण वस्तु विवरण

धामदीपक की दिशातेल/घीअर्पण सामग्री
बद्रीनाथउत्तर दिशागाय का घीतुलसी, चना दाल, खिचड़ी
द्वारकापश्चिम दिशातिल का तेलमाखन, मिश्री, पंजीरी
जगन्नाथ पुरीपूर्व दिशासरसों तेलमहाप्रसाद, 56 भोग
रामेश्वरमदक्षिण दिशातिल का तेलबेलपत्र, पंचामृत, जल

🚶‍♂️ परिक्रमा विधि

  1. बद्रीनाथ – पंचशिला परिक्रमा (नरसिंह शिला, उर्वशी शिला, गरुड़ शिला आदि)

  2. द्वारका – गोमती तट एवं द्वारकाधीश मंदिर की तीन परिक्रमा

  3. जगन्नाथ पुरी – मंदिर के तीन मुख्य परिक्रमा पथ

  4. रामेश्वरम – 22 कुओं में स्नान और मंदिर परिक्रमा


चार धाम -विशेषताएँ

बद्रीनाथ धाम (उत्तराखंड)

मुख्य देवताश्री हरि विष्णु (बद्रीविशाल)

विशेषतानर-नारायण पर्वत के बीच स्थित, तपस्यास्थली।

महत्वपूर्ण पूजातुलसी, शालिग्राम पूजा एवं नरसिंह आराधना।

विशेष पर्वबद्री-केदार उत्सव, अन्नकूट, दीपावली।

2. द्वारका धाम (गुजरात)

मुख्य देवताश्रीकृष्ण (द्वारकाधीश)

विशेषतासमुद्र तट पर स्थित, श्रीकृष्ण की नगरी।

महत्वपूर्ण पूजाचंदन अभिषेक, पंचामृत स्नान।

विशेष पर्वजन्माष्टमी, रथयात्रा, अन्नकूट।

3. जगन्नाथ पुरी (ओडिशा)

मुख्य देवताश्री जगन्नाथ (बलभद्र और सुभद्रा सहित)

विशेषता महाप्रसाद का भोग, रथयात्रा का भव्य आयोजन।

महत्वपूर्ण पूजाश्रीहरि का स्नान पूर्णिमा, रथयात्रा सेवा।

विशेष पर्वरथयात्रा, चंदन यात्रा, मकर संक्रांति।

4. रामेश्वरम धाम (तमिलनाडु)

मुख्य देवताभगवान शिव (रामनाथस्वामी)

विशेषतास्वयं श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग।

महत्वपूर्ण पूजाअभिषेक, जलाभिषेक, रुद्राभिषेक।

विशेष पर्वमहाशिवरात्रि, कार्तिक पूर्णिमा, दीपावली।

चार धाम यात्रा मोक्षदायी मानी जाती है और यह प्रत्येक हिंदू के जीवन में एक बार अवश्य करनी चाहिए। 🚩

विशेष अनुष्ठान:

रामेश्वरम में पंच स्नान (अग्नितीर्थ, कुंभकोणम, धनुषकोडि, रामकुंड, लक्ष्मणकुंड)।

 चार धाम से संबंधित ग्रंथ, श्लोक एवं अर्थ

चार धाम यात्रा का महत्व वेदों, पुराणों और अन्य हिंदू धर्मग्रंथों में बताया गया है। यहाँ चार धाम से जुड़े प्रमुख ग्रंथों, उनके श्लोकों और उनके अर्थ का वर्णन किया गया है।


1. बद्रीनाथ धाम (उत्तराखंड) से संबंधित ग्रंथ एवं श्लोक

📖 ग्रंथ - विष्णु पुराण

🔹 श्लोक:
"असित गिरिसंकाशं पीतवस्त्रं द्विजोत्तमम्।
बद्रीनाथं समाश्रित्य तपस्तेपे महामुनिः।।"

🔹 अर्थ:
जो महान मुनि हैं, वे असित पर्वत के समान दीप्तिमान बद्रीनाथ धाम में तपस्या करते हैं, जहाँ भगवान विष्णु पीताम्बर धारण किए हुए विराजमान हैं।


2. द्वारका धाम (गुजरात) से संबंधित ग्रंथ एवं श्लोक

📖 ग्रंथ - महाभारत (सभा पर्व, 38.50)

🔹 श्लोक:
"द्वारकायां सदा कृष्णः सान्निध्यं कुरुते स्वयम्।
तस्मात् सर्वेषु लोकेषु पूज्यते मधुसूदनः।।"

🔹 अर्थ:
श्रीकृष्ण स्वयं सदैव द्वारका में निवास करते हैं, इसलिए मधुसूदन (भगवान कृष्ण) संपूर्ण लोकों में पूजनीय हैं।


3. जगन्नाथ पुरी (ओडिशा) से संबंधित ग्रंथ एवं श्लोक

📖 ग्रंथ - स्कंद पुराण (उत्तरार्द्ध, पुरुषोत्तम माहात्म्य 22.37) 

🔹 श्लोक:

"नित्यं संनिहितोऽत्रैव साक्षान्मधुसूदनः।
पुरुषोत्तम क्षेत्रेऽस्मिन् दत्तं पुण्यं सनातनम्।।"

🔹 अर्थ:
श्रीहरि (मधुसूदन) सदैव इस पुरुषोत्तम क्षेत्र (जगन्नाथ पुरी) में निवास करते हैं। यहाँ दान और सेवा करने से शाश्वत पुण्य प्राप्त होता है।


4. रामेश्वरम (तमिलनाडु) से संबंधित ग्रंथ एवं श्लोक

📖 ग्रंथ - रामायण (युद्ध कांड, 123.19)

🔹 श्लोक:
"रामेश्वरम महापुण्यं सर्वपापप्रणाशनम्।
तत्र संस्थाप्य लिङ्गं वै पूजयित्वा यथाविधि।।"

🔹 अर्थ:
रामेश्वरम अत्यंत पुण्यदायी और सभी पापों को नष्ट करने वाला स्थान है। यहाँ भगवान राम ने शिवलिंग की स्थापना कर विधिपूर्वक पूजन किया था।


✨ सारांश:

धामग्रंथश्लोक सार
बद्रीनाथविष्णु पुराणभगवान विष्णु तपस्वियों के संरक्षक हैं।
द्वारकामहाभारतश्रीकृष्ण स्वयं द्वारका में निवास करते हैं।
जगन्नाथ पुरीस्कंद पुराणभगवान जगन्नाथ सदैव पुरी में स्थित हैं।
रामेश्वरमरामायणराम द्वारा स्थापित शिवलिंग पाप नाशक है।

चार धाम यात्रा का हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व है, और इनसे जुड़े ग्रंथों में इसका प्रमाण स्पष्ट रूप से मिलता है। 

 रामेश्वरम में अर्पित जल एवं पूजन सामग्री का ग्रंथों में वर्णन

1. रामेश्वरम में किस-किस धाम का जल अर्पित किया जाता है?

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की पूजा के लिए चार धाम (बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी) सहित गंगा जल अर्पित किया जाता है।

  • गंगा जल (हरिद्वार/काशी से लाया गया जल)
  • बद्रीनाथ धाम का जल
  • द्वारका धाम का जल
  • जगन्नाथ पुरी का जल
  • स्थानीय 22 तीर्थ कुंडों का जल

2. रामेश्वरम में जल अर्पण का ग्रंथों में वर्णन एवं श्लोक

📖 स्कंद पुराण (सेतु माहात्म्य, 2.1.12-14)
🔹 श्लोक:
"
बद्री द्वारावती गंगां जगन्नाथं च भारत।
एषां तोयं समानीय रामेशे वरदायिनि।।"

🔹 अर्थ:
बद्रीनाथ, द्वारका, गंगा और जगन्नाथ पुरी के पवित्र जल को रामेश्वरम शिवलिंग पर अर्पित करने से परम फल की प्राप्ति होती है।

📖 रामायण (युद्ध कांड, 123.19)
🔹 श्लोक:
"
रामेश्वरं महापुण्यं सर्वपापप्रणाशनम्।
तत्र संस्थाप्य लिङ्गं वै पूजयित्वा यथाविधि।।"

🔹 अर्थ:
रामेश्वरम महान पुण्य देने वाला और समस्त पापों को नष्ट करने वाला स्थान है। यहाँ शिवलिंग की स्थापना कर पूजन करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

3. रामेश्वरम की पूजा किए बिना चार धाम यात्रा अधूरी क्यों मानी जाती है?

📖 स्कंद पुराण (सेतु माहात्म्य, 2.22.45)
🔹 श्लोक:
"
रामेश्वरं न गत्वा तु यः कुर्याद् द्विज सेवया।
न तस्य फलमाप्नोति यावत् सेतुं न पश्यति।।"

🔹 अर्थ:
जो व्यक्ति रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजन के बिना चार धाम यात्रा पूरी करता है, उसे यात्रा का पूर्ण फल नहीं प्राप्त होता।

🔹 कारण:

  • भगवान राम ने स्वयं रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की थी।
  • चार धाम की यात्रा के बाद रामेश्वरम में जल अर्पित करने से ही तीर्थ यात्रा पूर्ण होती है।
  • यह स्थान मोक्ष प्रदायक और सभी तीर्थों में श्रेष्ठ माना जाता है।

🚩 अतः चार धाम यात्रा के बाद रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग पर चारों धामों के जल का अभिषेक करना अनिवार्य माना गया है।

रामेश्वरम में विभिन्न तीर्थों के जल अर्पण और पूजन से संबंधित विस्तृत जानकारी प्राचीन ग्रंथों में उपलब्ध है। यदि आप इन विषयों पर और गहराई से अध्ययन करना चाहते हैं, तो निम्नलिखित ग्रंथ सहायक हो सकते हैं:​

  1. स्कंद पुराण: इस पुराण के "सेतु माहात्म्य" खंड में रामेश्वरम तीर्थ की महिमा, वहां के जल स्रोतों, और पूजन विधियों का विस्तार से वर्णन मिलता है।
  2. रामायण: विशेषकर "युद्ध कांड" में, भगवान राम द्वारा रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना और पूजन का उल्लेख है, जो इस तीर्थ के महत्व को दर्शाता है।
  3. शिव पुराण: इस ग्रंथ में द्वादश ज्योतिर्लिंगों की महिमा का वर्णन है, जिसमें रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना और पूजन विधि की जानकारी मिलती है।
  4. महाभारत: "वन पर्व" में तीर्थयात्रा के संदर्भ में रामेश्वरम का उल्लेख मिलता है, जो इसके धार्मिक महत्व को रेखांकित करता है।
  5.  

चार धाम यात्रा -पूजा विधि और अनुष्ठान

बद्रीनाथ धाम: विष्णु सहस्रनाम का पाठ, तुलसी अर्पण, पंचामृत स्नान।

जगन्नाथ पुरी: महाप्रसाद ग्रहण, श्रीमद्भागवत पाठ, रथ यात्रा उत्सव।

द्वारका धाम: गीता पाठ, गोसेवा, तुलसी दल अर्पण।

रामेश्वरम: अभिषेक, रुद्राभिषेक, जल अर्पण अनुष्ठान।

 

रामेश्वरम के 22 कुण्ड: नाम, महत्व, विधि और ग्रंथों में उल्लेख

रामेश्वरम में स्थित 22 पवित्र तीर्थ कुण्डों का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह तीर्थ कुंड समुद्र के पवित्र जल से जुड़े हैं और श्रद्धालुओं के लिए आत्मिक शुद्धि का प्रमुख साधन माने जाते हैं। इन कुण्डों में स्नान करने से समस्त पापों का नाश होता है और चार धाम यात्रा की पूर्णता होती है।


🔹 22 कुण्डों के नाम और उनका महत्व

क्र.सं.

कुण्ड का नाम

महत्व

1

महालक्ष्मी तीर्थ

दरिद्रता का नाश करता है, धन-वैभव देता है।

2

सावित्री तीर्थ

बुद्धि और विवेक का विकास करता है।

3

गायत्री तीर्थ

आध्यात्मिक उन्नति के लिए शुभ माना जाता है।

4

सरस्वती तीर्थ

वाणी में मधुरता लाता है, ज्ञान बढ़ाता है।

5

सत्य तीर्थ

सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

6

गंगा तीर्थ

समस्त पापों को नष्ट करता है, मोक्षदायी।

7

यमुना तीर्थ

स्वास्थ्य लाभ और शुद्धि के लिए लाभकारी।

8

नर्मदा तीर्थ

तपस्या और ध्यान के लिए श्रेष्ठ।

9

गोदावरी तीर्थ

जीवन में शांति और सद्गुण बढ़ाता है।

10

कृष्णा तीर्थ

समस्त मानसिक दोषों का नाश करता है।

11

कौशिकी तीर्थ

ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति कराता है।

12

सप्त गंगा तीर्थ

यह सप्त गंगा जल के समान पुण्यफल देता है।

13

सर्व तीर्थ

संपूर्ण तीर्थों के दर्शन का फल देता है।

14

गंधमादन तीर्थ

आत्मिक उन्नति और आध्यात्मिक शक्ति देता है।

15

शिव तीर्थ

भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।

16

सत्यमृत तीर्थ

आयु वृद्धि और स्वास्थ्य लाभ देता है।

17

पंपा तीर्थ

श्रद्धा और भक्ति में वृद्धि करता है।

18

चक्र तीर्थ

शत्रु भय से मुक्ति मिलती है।

19

शंख तीर्थ

धन और ऐश्वर्य बढ़ाता है।

20

सरस्वती तीर्थ

ज्ञान और विद्या का विकास करता है।

21

कवच तीर्थ

आत्मरक्षा और साहस प्रदान करता है।

22

राम तीर्थ

मोक्ष प्राप्ति और पूर्णता प्रदान करता है।


🔹 क्या करना चाहिए? (स्नान विधि और पूजन प्रक्रिया)

🔹 तीर्थयात्रियों को रामेश्वरम में प्रवेश करने के बाद सबसे पहले अग्नि तीर्थ (समुद्र स्नान) करना चाहिए।
🔹 इसके बाद इन 22 कुण्डों में एक-एक कर स्नान किया जाता है।
🔹 हर कुण्ड में तीन बार जल अंजलि अर्पित करना चाहिए।
🔹 स्नान के बाद रामनाथस्वामी (शिवलिंग) के दर्शन करने चाहिए।

विशेष नियम:

पुरुषों को धोतक (धोती) पहनकर स्नान करना चाहिए।
महिलाओं को शालीन वस्त्र पहनकर स्नान करना चाहिए।
जल को बर्बाद न करें, केवल आचमन और स्नान करें।


🔹 इन कुण्डों में क्या अर्पण करें?

👉 गंगा जलपवित्रता के लिए।
👉 तुलसी पत्रभगवान विष्णु की कृपा के लिए।
👉 चंदनमानसिक शांति और तपस्या के लिए।
👉 कुमकुम और हल्दीसौभाग्य और समृद्धि के लिए।
👉 दूर्वा घासगणेश कृपा के लिए।
👉 सफेद पुष्पशिव पूजन के लिए।


🔹 ग्रंथों में इनका प्रमाण

1️ स्कंद पुराण (सेतु महात्म्य, अध्याय 25, श्लोक 12-13)

📜 श्लोक:
"रामेश्वरं महादेवं स्नात्वा पापैः प्रमुच्यते।
सर्वतीर्थेषु यत्पुण्यं तत्फलं लभते नरः॥"

🔹 अर्थ:
जो व्यक्ति रामेश्वरम के इन पवित्र जलकुण्डों में स्नान करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और समस्त तीर्थों का पुण्य प्राप्त करता है।


2️     वाल्मीकि रामायण (युद्ध कांड, 123.24)

📜 श्लोक:
"
रामेश्वरं महादेवम्, पूजयामास राघवः।
तस्य पूजार्थं तत्सर्वं, समुद्रः समुपाहरत्॥"

🔹 अर्थ:
भगवान श्रीराम ने रावण वध के पश्चात रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना कर पूजन किया। समुद्र ने उनके पूजन के लिए सामग्री प्रस्तुत की।


🔹 22 कुण्डों के बिना चार धाम यात्रा अधूरी क्यों?

चार धाम यात्रा की पूर्णता के लिए आत्मिक शुद्धि आवश्यक है, जो रामेश्वरम के इन 22 कुण्डों में स्नान के बिना अधूरी रहती है। इसके मुख्य कारण:

पवित्रता की प्राप्ति: यह कुण्ड व्यक्ति के पापों को धोते हैं, जिससे वह अन्य तीर्थों के योग्य बनता है।
शास्त्र सम्मत नियम: स्कंद पुराण में बताया गया है कि जब तक यात्री इन कुण्डों में स्नान नहीं करता, तब तक उसकी यात्रा अधूरी रहती है।
मोक्ष प्राप्ति का मार्ग: श्रीराम ने स्वयं यहाँ स्नान करके शिवलिंग की स्थापना की थी, जिससे यह स्थान अत्यंत पुण्यदायी बन गया।
तीनों प्रमुख शक्तियों का समावेश: विष्णु (जगन्नाथ पुरी), ब्रह्मा (द्वारका), और शिव (बद्रीनाथ) की यात्रा के बाद रामेश्वरम में स्नान के द्वारा शिव कृपा मिलती है, जिससे चार धाम यात्रा पूर्ण होती है।


रामेश्वरम के 22 कुण्डों का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यहाँ स्नान करना चार धाम यात्रा की पूर्णता के लिए अनिवार्य माना जाता है। इसका उल्लेख स्कंद पुराण, वाल्मीकि रामायण और विभिन्न पुराणों में मिलता है।

📜 संक्षिप्त श्लोक (स्कंद पुराण):
"
रामेश्वरं महादेवं स्नात्वा पापैः प्रमुच्यते।
सर्वतीर्थेषु यत्पुण्यं तत्फलं लभते नरः॥"

🔹 इसलिए, रामेश्वरम के बिना चार धाम यात्रा अधूरी मानी जाती है। 🚩

 🔹 22 कुण्डों के बिना चार धाम यात्रा अधूरी क्यों?

चार धाम यात्रा की पूर्णता के लिए आत्मिक शुद्धि आवश्यक है, जो रामेश्वरम के इन 22 कुण्डों में स्नान के बिना अधूरी रहती है। इसके मुख्य कारण:

पवित्रता की प्राप्ति: यह कुण्ड व्यक्ति के पापों को धोते हैं, जिससे वह अन्य तीर्थों के योग्य बनता है।
शास्त्र सम्मत नियम: स्कंद पुराण में बताया गया है कि जब तक यात्री इन कुण्डों में स्नान नहीं करता, तब तक उसकी यात्रा अधूरी रहती है।
मोक्ष प्राप्ति का मार्ग: श्रीराम ने स्वयं यहाँ स्नान करके शिवलिंग की स्थापना की थी, जिससे यह स्थान अत्यंत पुण्यदायी बन गया।
तीनों प्रमुख शक्तियों का समावेश: विष्णु (जगन्नाथ पुरी), ब्रह्मा (द्वारका), और शिव (बद्रीनाथ) की यात्रा के बाद रामेश्वरम में स्नान के द्वारा शिव कृपा मिलती है, जिससे चार धाम यात्रा पूर्ण होती है।


रामेश्वरम के 22 कुण्डों का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यहाँ स्नान करना चार धाम यात्रा की पूर्णता के लिए अनिवार्य माना जाता है। इसका उल्लेख स्कंद पुराण, वाल्मीकि रामायण और विभिन्न पुराणों में मिलता है।

📜 संक्षिप्त श्लोक (स्कंद पुराण):
"
रामेश्वरं महादेवं स्नात्वा पापैः प्रमुच्यते।
सर्वतीर्थेषु यत्पुण्यं तत्फलं लभते नरः॥"

🔹 इसलिए, रामेश्वरम के बिना चार धाम यात्रा अधूरी मानी जाती है। 🚩

 

शास्त्रीय प्रमाण:

  1. स्कंद पुराण में उल्लेख है कि चारों धाम का जल रामेश्वरम में अर्पित करने से समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं।
  2. कर्मकांड दीपिका के अनुसार रामेश्वरम में गंगाजल अर्पण करने का विशेष महत्व बताया गया है।
  3. धर्मसिंधु में उल्लेख है कि जो यात्री बद्रीनाथ, जगन्नाथ, द्वारका और रामेश्वरम की यात्रा पूरी करता है, उसे रामेश्वरम में जल अर्पण करना चाहिए।

विधान:

  • बद्रीनाथ से गंगाजल, जगन्नाथ से समुद्र जल, द्वारका से गोमती जल और रामेश्वरम के कुंडों का जल मिलाकर अभिषेक करना चाहिए।
  • श्रीराम ने स्वयं इस जल को अर्पित कर शिवलिंग की पूजा की थी।
  • इस प्रक्रिया से यात्रा पूर्ण होती है और मोक्ष प्राप्ति का पुण्य मिलता है।
  • रामेश्वरम में पंच स्नान (अग्नितीर्थ, कुंभकोणम, धनुषकोडि, रामकुंड, लक्ष्मणकुंड)।
  • बद्रीनाथ में नारायण पूजा और तुलसी अर्पण।
  • द्वारका में कृष्ण जन्मोत्सव और राजभोग दर्शन।

पुरी में रथ यात्रा और महाप्रसाद का भोग। 

-----------------------------------------------

बद्री क्या चारों धाम का जल रामेश्वरम में अर्पित किया जाता है?

शास्त्रीय प्रमाण:

  1. स्कंद पुराण में उल्लेख है कि चारों धाम का जल रामेश्वरम में अर्पित करने से समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं।
  2. कर्मकांड दीपिका के अनुसार रामेश्वरम में गंगाजल अर्पण करने का विशेष महत्व बताया गया है।
  3. धर्मसिंधु में उल्लेख है कि जो यात्री बद्रीनाथ, जगन्नाथ, द्वारका और रामेश्वरम की यात्रा पूरी करता है, उसे रामेश्वरम में जल अर्पण करना चाहिए।

6. चार धाम यात्रा के फल और महत्व

शास्त्रीय प्रमाण:

  1. स्कंद पुराण: "चतुर्धामानि यः पश्च्यात् स सर्वपापैः प्रमुच्यते।" (जो व्यक्ति चार धाम यात्रा करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।)
  2. गरुड़ पुराण: "चारधाम यात्रा से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति होती है।"
  3. धर्मसिंधु: "चार धाम यात्रा का पालन करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल होता है और मृत्यु के पश्चात मोक्ष प्राप्त करता है।"

निष्कर्ष

📌 सारांश

विषयविवरण
चार धामबद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम
महत्वमोक्ष प्राप्ति, पापों से मुक्ति
यात्रा का समयअक्षय तृतीया से कार्तिक पूर्णिमा
पूजा विधिअभिषेक, परिक्रमा, मंत्र जाप
दीपक और तेलबद्रीनाथ (घी), द्वारका (तिल तेल), जगन्नाथ पुरी (सरसों तेल), रामेश्वरम (तिल तेल)
परिक्रमापंचशिला, गोमती तट, मंदिर क्षेत्र, 22 कुंड

🚩 चार धाम यात्रा का विशेष महत्व है और इसे जीवन में एक बार अवश्य करना चाहिए।

चार धाम यात्रा एक अत्यंत पवित्र तीर्थ यात्रा है, जिसे करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह यात्रा शास्त्रों और पुराणों में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी गई है। जो भक्त श्रद्धा और विश्वास के साथ इस यात्रा को संपन्न करता है, उसे सभी पापों से मुक्ति और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। विशेष रूप से रामेश्वरम में चारों धाम के जल को अर्पित करने से यात्रा का संपूर्ण फल प्राप्त होता है।













 

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विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

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हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...