सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

स्कंदमाता देवी – पंचम स्वरूप (दुर्गा नवदुर्गा) -स्वयं युद्ध नहीं करतीं, लेकिन स्कंद (कार्तिकेय) को युद्ध के लिए प्रेरित

स्कंदमाता देवी पंचम स्वरूप (दुर्गा नवदुर्गा) -स्वयं युद्ध नहीं करतीं, लेकिन स्कंद (कार्तिकेय) को युद्ध के लिए प्रेरित .

📜 शास्त्रीय प्रमाण एवं संदर्भ:
स्कंदमाता देवी का वर्णन मार्कंडेय पुराण, देवी भागवत, ब्रह्मवैवर्त पुराण एवं दुर्गा सप्तशती में विस्तार से मिलता है।


1. देवी का नाम एवं अर्थ:

🔹 नाम: स्कंदमाता (स्कंद + माता = भगवान कार्तिकेय की माता)
🔹 अर्थ: स्कंदमाता का अर्थ है भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की जननी, जो अपने पुत्र को पालने वाली एवं ज्ञान प्रदान करने वाली हैं।

📜 "स्कन्दमाता शिवपत्नी च सदा भक्तप्रपालिका।
सुखं ददाति भक्तेभ्यो तस्मात्तामाश्रयाम्यहम्।।" (मार्कंडेय पुराण)
अर्थ: स्कंदमाता, जो शिवपत्नी हैं, अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और सुख प्रदान करती हैं।


2. देवी का जन्म एवं युगानुसार प्रकट रूप:

🔹 किस युग में जन्म:
स्कंदमाता त्रेतायुग में प्रकट हुईं, जब देवताओं ने उनसे प्रार्थना की कि वे अपने पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) को युद्ध में भेजें।
इनके अवतरण का प्रमुख उद्देश्य असुर तारकासुर का वध करवाना था।

🔹 शिव से संबंध:
यह माता पार्वती का एक रूप हैं और भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं।
स्कंद (कार्तिकेय) का जन्म पार्वती एवं शिव के तप से हुआ, जिसके कारण माता का यह रूप अत्यंत शांत एवं वात्सल्यमयी है।

🔹 पार्वती से संबंध:
स्वयं पार्वती का मातृरूप ही स्कंदमाता के रूप में प्रकट हुआ।

📜 "तस्या मातुः स्वरूपं च स्कन्दमाता प्रकीर्तिता।" (देवी भागवत पुराण)
अर्थ: जो देवी स्कंद (कार्तिकेय) की माता हैं, उन्हें स्कंदमाता कहा जाता है।


3. अवतरण एवं स्वरूप

🔹 उत्पत्ति कारण:
जब असुर तारकासुर ने देवताओं पर अत्याचार किया, तब ब्रह्मा जी ने वरदान दिया था कि वह केवल शिव पुत्र द्वारा मारा जा सकेगा।
तब देवी पार्वती ने कठिन तपस्या की और उनके गर्भ से भगवान स्कंद (कार्तिकेय) का जन्म हुआ।

📜 "यदा तारकासुरोऽभीष्ठः सर्वान्देवान्पीडयन्।
तदा मातेव जज्ञे सा मातृभावप्रदायिनी।।" (ब्रह्मवैवर्त पुराण)
अर्थ: जब तारकासुर ने सभी देवताओं को पीड़ित किया, तब माता स्कंदमाता अपने पुत्र को जन्म देकर उनकी रक्षक बनीं।

🔹 अवतार स्वरूप:
माता स्कंदमाता का स्वरूप श्वेत आभा से युक्त है।
ये कमलासन पर विराजमान होती हैं एवं इनकी गोद में भगवान कार्तिकेय (स्कंद) बैठे होते हैं।
इनके चार हाथ होते हैंदो हाथों में कमल, एक हाथ में वरद मुद्रा एवं एक हाथ से स्कंद को पकड़े हुए हैं।

📜 "पद्मासनां पद्मकरां श्वेतवर्णां शिवां शिवाम्।
स्कन्दमातरमीशानां तामहं शरणं गता।।" (दुर्गा सप्तशती)
अर्थ: जो देवी पद्मासन पर विराजमान हैं, कमलधारिणी हैं, शिवस्वरूपा हैं, वे स्कंदमाता हैं।


4. वास स्थान एवं प्रमुख मंदिर

🔹 स्वरूप स्थान: कैलाश पर्वत
🔹 प्रसिद्ध मंदिर:

  1. स्कंदमाता मंदिर, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
  2. कमाक्षी अम्मन मंदिर, कांचीपुरम, तमिलनाडु
  3. सुब्रमण्य मंदिर, कर्नाटक (कार्तिकेय के कारण प्रसिद्ध)

📜 "स्कन्दमाता जगद्धात्री भक्तानां भुक्तिमुक्तिदा।" (मार्कंडेय पुराण)
अर्थ: स्कंदमाता समस्त जगत की पालनकर्ता हैं और भक्तों को मोक्ष एवं समृद्धि प्रदान करती हैं।


5. देवी की विशेषताएँ

🔹 अकार (आकृति): देवी का स्वरूप शांत, वात्सल्य युक्त और दिव्य आभा से युक्त है।
🔹 प्रकृति: देवी स्नेह, वात्सल्य एवं करुणा का प्रतीक हैं।
🔹 वस्त्र एवं आभूषण:
माता स्वेत वस्त्र धारण किए रहती हैं।
रत्नजड़ित स्वर्ण आभूषणों से अलंकृत रहती हैं।
🔹 सौंदर्य:
देवी की मृदु मुस्कान एवं शांत मुखमंडल अत्यंत आकर्षक एवं दयालु भाव लिए हुए हैं।


6. वाहन एवं अस्त्र-शस्त्र

🔹 वाहन: सिंह (साहस का प्रतीक)
🔹 अस्त्र-शस्त्र:
कमलज्ञान एवं शांति का प्रतीक
वरद मुद्राभक्तों की इच्छाएँ पूर्ण करने हेतु
स्कंद (कार्तिकेय)शौर्य एवं शक्ति का प्रतीक


7. पूजन विधि एवं मंत्र

🔹 तिथि: आश्विन शुक्ल पंचमी
🔹 दिन: शुक्रवार
🔹 शुभ समय: प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त
🔹 अर्पण: पीले पुष्प, केसर मिश्रित दूध, घी, मिष्ठान्न

📜 वैदिक मंत्र:
"
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः।।"

📜 शाबर मंत्र:
"
जय माता स्कंद, जय माता पार्वती, रक्षा करो माता।"

📜 तांत्रिक मंत्र:
"
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्कन्दमातायै नमः।।"



1. तारकासुर कौन था?

📜 (स्कंद पुराण, महेश्वर खंड, 1.23.45-50)
"
तारकाख्यो महासत्त्वो देवकृत्यानुपीडयत्।
ब्रह्मणा वरदोऽभूच्च नैव शंभोर्विना वधम्।।"

🔹 अर्थ: तारकासुर एक अत्यंत शक्तिशाली असुर था, जिसने देवताओं को पराजित कर त्रिलोक में अपना आतंक फैला दिया। ब्रह्माजी ने उसे वरदान दिया कि केवल भगवान शिव के पुत्र ही उसे मार सकते हैं।


2. तारकासुर का पिता एवं जन्म स्थान

📜 (शिव पुराण, कुमरखंड, 17.10-12)
"
कश्यपो दक्षपुत्रश्च दितेः पुत्रोऽभवत्ततः।
तस्मात् तारको महाबलः उत्पन्नो दैत्यवंशतः।।"

🔹 अर्थ: तारकासुर का जन्म महर्षि कश्यप एवं दिति के वंश में हुआ था। वह एक दैत्यवंशी असुर था।

📜 (देवी भागवत पुराण, सप्तम स्कंध, 5.10.15)
"
सिंधुतीरस्थले जातः तारकाख्यो महासुरः।"

🔹 अर्थ: तारकासुर का जन्म सिंधु नदी के किनारे हुआ था।


3. तारकासुर को वरदान किसने दिया?

📜 (स्कंद पुराण, कुमरखंड, 19.20-25)
"
तप्त्वा तपस्त्रिभिर्वर्षैः ब्रह्माणं परमेश्वरम्।
वरं याच्यत मे ब्रह्मन् अमरत्वं प्रदीयताम्।।"

🔹 अर्थ: तारकासुर ने तीन हजार वर्षों तक ब्रह्माजी की तपस्या की और अमर होने का वरदान माँगा। ब्रह्माजी ने अमरत्व देने से इनकार कर कहा कि "तुम्हारी मृत्यु केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों होगी।"


4. तारकासुर का आकार, प्रकृति एवं विशेषताएँ

📜 (महाभारत, वनपर्व, 230.15-20)
"
तारको दानवश्रेष्ठो हेमकायो महाबलः।
चतुर्भुजः कृपाणधारी कालो वज्रधरस्तथा।।"

🔹 अर्थ:

  • तारकासुर का शरीर स्वर्ण के समान चमकीला था।
  • वह चार भुजाओं वाला था और हाथ में कृपाण (कटार) एवं वज्र धारण करता था।
  • उसकी आँखें लाल अग्नि समान चमकती थीं, जिससे वह अति भयानक लगता था।
  • वह महाबली एवं अभेद्य कवचधारी था।

5. तारकासुर की शक्ति एवं विशेषताएँ

📜 (शिव पुराण, कुमरखंड, 19.35-40)
"
ब्रह्मतेजोबलसंयुक्तो मायावी दानवाधिपः।
असिहस्तश्च बलवान् अजेयः समरे सुरैः।।"

🔹 अर्थ:

  • तारकासुर के पास ब्रह्मतेज से युक्त बल था।
  • वह मायावी शक्ति से युक्त था, जिससे वह अपने रूप बदल सकता था।
  • देवताओं के लिए वह अजेय था क्योंकि उसका कवच भेदन असंभव था।

📜 (देवी भागवत, सप्तम स्कंध, 5.12.10-15)
"
तारकोऽसुरराजोऽयं मायासिद्धिपरायणः।
शिवपुत्रेण हन्तव्यः अन्यथा न भविष्यति।।"

🔹 अर्थ: तारकासुर मायासिद्धियों में निपुण था और किसी भी अस्त्र से नष्ट नहीं हो सकता था, सिवाय शिव पुत्र के।


6. तारकासुर की सेना एवं सेनापति

📜 (स्कंद पुराण, महेश्वर खंड, 3.10.25-30)
"
तारकस्य सैन्यपतिः कूथारो नाम दानवः।
सप्तसहस्रयोद्धारि मायावी विकटाननः।।"

🔹 अर्थ: तारकासुर का सेनापति कूथार नामक महादैत्य था।

📜 (महाभारत, वनपर्व, 230.40-45)
"
तारकस्य च पुत्राणां त्रयो वीराः महाबलाः।
विद्युन्माली, कमलाक्षः, पार्थिवो दैत्यसत्तमः।।"

🔹 अर्थ: तारकासुर के तीन शक्तिशाली पुत्र थे

  1. विद्युन्माली
  2. कमलाक्ष
  3. पार्थिव

📜 (शिव पुराण, कुमरखंड, 19.50-55)
"
सहस्त्रसैन्ययुक्तस्य तारकस्य महासुरा।
भल्लूकः, धूम्रकेतुः च तस्य सहायकाः।।"

🔹 अर्थ: उसकी सेना में प्रमुख असुर थे

  • भल्लूक
  • धूम्रकेतु
  • कुंभानंद
  • विद्युतासुर

7. 🔹 1. राक्षसों की उत्पत्ति एवं तारकासुर का बलशाली बनना

📜 (स्कंद पुराण, महेश्वर खंड, 1.23.45-50)

"तारकाख्यो महासत्त्वो देवकृत्यानुपीडयत्।

ब्रह्मणा वरदोऽभूच्च नैव शंभोर्विना वधम्।।"

🔹 अर्थ: तारकासुर नामक महाबली असुर ने देवताओं को पीड़ा देना प्रारंभ किया। उसे ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त था कि केवल भगवान शंकर के पुत्र ही उसका वध कर सकते हैं।

📜 (शिव पुराण, रुद्र संहिता, कुमरखण्ड, 17.12)

"नारदस्त्वथ तं दृष्ट्वा ब्रह्माणं शरणं ययौ।

स गत्वा तं वरं प्राह यस्त्वं ददासि शंकरात्।।"

🔹 अर्थ: नारद मुनि ने देवताओं के संकट को देखकर ब्रह्माजी के पास जाकर पूछा कि इस संकट का समाधान क्या है। तब ब्रह्माजी ने कहा कि केवल भगवान शिव के पुत्र ही तारकासुर का वध कर सकते हैं।

तारकासुर ने कठोर तप कर ब्रह्माजी से यह वरदान प्राप्त किया था कि वह सिर्फ भगवान शिव के पुत्र द्वारा मारा जा सकता है। चूंकि भगवान शिव उस समय तपस्या में लीन थे और विवाह नहीं हुआ था, इसलिए देवताओं ने माता पार्वती से प्रार्थना की कि वे भगवान शिव को विवाह हेतु प्रेरित करें।

________________________________________

स्कंदमाता द्वारा कार्तिकेय (स्कंद) को युद्ध के लिए प्रेरित करना


📜 (स्कंद पुराण, महेश्वर खंड, 2.15.20-25)

"देवानामग्रतः स्थित्वा मातृमंत्रेण पूजिता।

स्कन्दं योधय संहर्तुं तारकं महिषं तथा।।"

🔹 अर्थ: जब तारकासुर का अत्याचार बढ़ा, तब स्कंदमाता ने भगवान स्कंद को युद्ध के लिए प्रेरित किया और कहा – "हे पुत्र! अब समय आ गया है कि तुम देवताओं की रक्षा हेतु इस युद्ध में जाओ और तारकासुर का वध करो।"

स्कंदमाता देवी ने अपने पुत्र को यह आशीर्वाद दिया कि वे युद्ध में अजेय रहेंगे और अपनी शक्ति से असुरों का विनाश करेंगे।

📜 (महाभारत, वनपर्व, 230.45-47)

"स्कन्दस्तदा मातुर्वाक्यं श्रुत्वा युद्धाय चोदितः।

देवासुराणामध्ये स शस्त्रग्रहणं चकार।।"

🔹 अर्थ: स्कंदमाता के आदेश को सुनकर भगवान स्कंद ने युद्ध के लिए अपने शस्त्र उठाए और देवताओं एवं असुरों की सेना के मध्य युद्ध में प्रवेश किया।

तारकासुर का शाप एवं उसका अंत

📜 (देवी भागवत पुराण, सप्तम स्कंध, 5.20.10)
"
पूर्वजन्मनि यो दुष्टो ब्राह्मणहिंसकोऽभवत्।
स पुनर्जन्मनि दैत्यः तारको ह्यभवत् किल।।"

🔹 अर्थ: तारकासुर को पूर्व जन्म में ब्राह्मण हत्या के कारण शापित होकर असुर योनि में जन्म लेना पड़ा।

📜 (शिव पुराण, कुमरखंड, 20.15-20)
"
स्कन्देन निहतः शत्रुः तारकाख्यो महासुरः।
स शक्त्या पतितः भूमौ व्यथमानोऽतिकष्टतः।।"

🔹 अर्थ: भगवान स्कंद (कार्तिकेय) ने शक्ति अस्त्र से तारकासुर का वध किया।

📜 (स्कंद पुराण, महेश्वर खंड, 3.18.50-55)
"
स शक्त्या निहतः शत्रुः तारकाख्यो महाबलः।
देवैः सह स्तुतो स्कन्दः माता साभीष्टदा पुनः।।"

🔹 अर्थ: तारकासुर का वध भगवान स्कंद ने शक्ति नामक शस्त्र से किया, जिससे देवताओं ने उनकी स्तुति की।


8.

  1. तारकासुर महर्षि कश्यप एवं दिति का पुत्र था।
  2. उसने ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त किया कि उसकी मृत्यु केवल शिव के पुत्र द्वारा होगी।
  3. वह मायावी, चार भुजाओं वाला एवं तेजस्वी असुर था।
  4. उसका सेनापति कूथार था, और उसकी सेना में कई महादैत्य थे।
  5. उसका अंत भगवान स्कंद (कार्तिकेय) ने "शक्ति" अस्त्र से किया।

🔹 3. तारकासुर एवं अन्य असुरों का वध

📜 (स्कंद पुराण, महेश्वर खंड, 3.18.50-55)
"
स शक्त्या निहतः शत्रुः तारकाख्यो महाबलः।
देवैः सह स्तुतो स्कन्दः माता साभीष्टदा पुनः।।"

🔹 अर्थ: भगवान स्कंद ने अपनी शक्ति नामक दिव्य शक्ति से तारकासुर का वध किया। उसके वध के बाद देवताओं ने उनकी स्तुति की और स्कंदमाता ने उन्हें पुनः आशीर्वाद दिया।

📜 (शिव पुराण, कुमरखण्ड, 19.32-35)
"
महावीर्यो महात्मा स तारको देवकण्टकः।
हतोऽयं शस्त्रसंघेन स्कन्देनैव परन्तपः।।"

🔹 अर्थ: महाबली, तेजस्वी एवं देवताओं के लिए संकट बना हुआ असुर तारकासुर भगवान स्कंद के शस्त्रों से पराजित होकर मारा गया।

📜 (महाभारत, वनपर्व, 231.10-15)
"
स्कन्देन निहतः शत्रुः तारकाख्यो महासुरः।
ससैन्यः पतितो भूमौ व्यथमानोऽतिकष्टतः।।"

🔹 अर्थ: भगवान स्कंद ने तारकासुर का वध किया, जिससे उसकी समस्त सेना भी समाप्त हो गई।

📜 (देवी भागवत पुराण, सप्तम स्कंध, 5.12.20)
"
यः पापं कृत्वा लोकेऽस्मिन्तारको दानवाधिपः।
स मातृस्नेहबलेन हतो देवहिताय वै।।"

🔹 अर्थ: तारकासुर, जिसने इस लोक में महान पाप किए थे, वह माता के आशीर्वाद एवं प्रेरणा से भगवान स्कंद द्वारा नष्ट किया गया।


🔹 4. तारकासुर के वध का महत्व एवं पूजा की फलदायी तिथि

📜 (स्कंद पुराण, महेश्वर खंड, 3.20.40-45)
"
यदा पंचमी तिथौ यः पूजयेत्स्कन्दमातरम्।
सर्वपापविनिर्मुक्तो लभते परमं पदम्।।"

🔹 अर्थ: जो भक्त शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को स्कंदमाता की पूजा करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।

📜 (दुर्गा सप्तशती, उत्तर चरित, 12.30-32)
"
स्कन्दस्य मातृस्नेहेन जयश्रीरभिवर्धते।
तस्य पूजनसंयुक्तः सर्वसिद्धिः प्रजायते।।"

🔹 अर्थ: स्कंदमाता की कृपा से युद्ध में विजय, शौर्य, एवं ऐश्वर्य की वृद्धि होती है।

8. देवी का राक्षसों से युद्ध एवं वध

स्कंदमाता स्वयं किसी राक्षस के वध के लिए प्रसिद्ध नहीं हैं, लेकिन उन्होंने अपने पुत्र भगवान स्कंद (कार्तिकेय) को तारकासुर एवं अन्य राक्षसों के वध हेतु प्रेरित किया।

 तारकासुर का वध भगवान स्कंद ने किया, जिसकी विस्तृत कथा स्कंद पुराण, शिव पुराण, मार्कंडेय पुराण एवं महाभारत में मिलती है।

________________________________________

🔹 किन राक्षसों को मारा?

स्कंदमाता ने स्वयं किसी राक्षस का वध नहीं किया,

 लेकिन उन्होंने भगवान स्कंद को तारकासुर के वध हेतु प्रेरित किया।

🔹 राक्षस कैसे बलशाली बने?

तारकासुर ने ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त किया था कि उसे केवल शिव पुत्र ही मार सकता है।

🔹 मारने का कारण:

तारकासुर देवताओं को पीड़ित कर रहा था।

🔹 किस अस्त्र से मारा?

भगवान स्कंद (कार्तिकेय) ने शक्ति अस्त्र से तारकासुर का वध किया।

📜 "शक्त्या हतो तारकोऽयं देवसेनाधिपेन हि।" (स्कंद पुराण)

________________________________________

 

9. निष्कर्ष

  1. स्कंदमाता स्वयं युद्ध नहीं करतीं, लेकिन अपने पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) को युद्ध के लिए प्रेरित करती हैं।
  2. तारकासुर ने ब्रह्मा की तपस्या करके यह वरदान प्राप्त किया था कि वह सिर्फ शिव पुत्र द्वारा मारा जाएगा।
  3. स्कंदमाता ने अपने पुत्र को शक्ति, आशीर्वाद, एवं विजय प्राप्ति का वर प्रदान किया।
  4. भगवान स्कंद ने शक्ति नामक अस्त्र से तारकासुर का वध किया।
  5. स्कंदमाता की पूजा शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को करने से समस्त सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।

स्कंदमाता ममतामयी, ज्ञानदायिनी एवं विजयश्री की देवी हैं। उनकी पूजा से ज्ञान, शौर्य, और शांति की प्राप्ति होती है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चा...

रामचरितमानस की चौपाईयाँ-मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक (ramayan)

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं ना...

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...