स्कंदमाता देवी – पंचम स्वरूप (दुर्गा नवदुर्गा) -स्वयं युद्ध नहीं करतीं, लेकिन स्कंद (कार्तिकेय) को युद्ध के लिए प्रेरित
स्कंदमाता देवी – पंचम स्वरूप (दुर्गा नवदुर्गा) -स्वयं युद्ध नहीं करतीं, लेकिन स्कंद (कार्तिकेय) को युद्ध के लिए प्रेरित .
📜 शास्त्रीय प्रमाण एवं संदर्भ:
स्कंदमाता
देवी का वर्णन मार्कंडेय पुराण, देवी भागवत, ब्रह्मवैवर्त पुराण एवं दुर्गा
सप्तशती में विस्तार
से मिलता है।
1. देवी का नाम एवं अर्थ:
🔹 नाम: स्कंदमाता (स्कंद + माता = भगवान कार्तिकेय की माता)
🔹 अर्थ: स्कंदमाता का अर्थ है भगवान स्कंद
(कार्तिकेय) की जननी, जो अपने पुत्र को पालने वाली एवं ज्ञान प्रदान करने
वाली हैं।
📜 "स्कन्दमाता शिवपत्नी च सदा
भक्तप्रपालिका।
सुखं ददाति
भक्तेभ्यो तस्मात्तामाश्रयाम्यहम्।।" (मार्कंडेय पुराण)
अर्थ: स्कंदमाता, जो शिवपत्नी
हैं, अपने भक्तों
की रक्षा करती हैं और सुख प्रदान करती हैं।
2. देवी का जन्म एवं युगानुसार प्रकट रूप:
🔹 किस युग में जन्म:
➤ स्कंदमाता
त्रेतायुग में प्रकट हुईं, जब देवताओं ने उनसे प्रार्थना की कि वे अपने पुत्र स्कंद
(कार्तिकेय) को युद्ध में भेजें।
➤ इनके अवतरण
का प्रमुख उद्देश्य असुर तारकासुर का वध करवाना था।
🔹 शिव से संबंध:
➤ यह माता
पार्वती का एक रूप हैं और भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं।
➤ स्कंद
(कार्तिकेय) का जन्म पार्वती एवं शिव के तप से हुआ, जिसके कारण माता का यह रूप अत्यंत शांत एवं
वात्सल्यमयी है।
🔹 पार्वती से संबंध:
➤ स्वयं
पार्वती का मातृरूप ही स्कंदमाता के रूप में प्रकट हुआ।
📜 "तस्या मातुः स्वरूपं च स्कन्दमाता
प्रकीर्तिता।" (देवी भागवत पुराण)
अर्थ: जो देवी
स्कंद (कार्तिकेय) की माता हैं, उन्हें स्कंदमाता कहा जाता है।
3. अवतरण एवं स्वरूप
🔹 उत्पत्ति कारण:
➤ जब असुर
तारकासुर ने देवताओं
पर अत्याचार किया, तब ब्रह्मा
जी ने वरदान दिया था कि वह केवल शिव पुत्र द्वारा मारा जा सकेगा।
➤ तब देवी
पार्वती ने कठिन तपस्या की और उनके गर्भ से भगवान स्कंद (कार्तिकेय) का जन्म हुआ।
📜 "यदा तारकासुरोऽभीष्ठः
सर्वान्देवान्पीडयन्।
तदा मातेव
जज्ञे सा मातृभावप्रदायिनी।।" (ब्रह्मवैवर्त पुराण)
अर्थ: जब तारकासुर
ने सभी देवताओं को पीड़ित किया, तब माता स्कंदमाता अपने पुत्र को जन्म देकर उनकी
रक्षक बनीं।
🔹 अवतार स्वरूप:
➤ माता
स्कंदमाता का स्वरूप श्वेत आभा से युक्त है।
➤ ये कमलासन पर
विराजमान होती हैं
एवं इनकी गोद में भगवान कार्तिकेय (स्कंद) बैठे होते हैं।
➤ इनके चार हाथ
होते हैं – दो हाथों
में कमल, एक हाथ में
वरद मुद्रा एवं एक हाथ से स्कंद को पकड़े हुए हैं।
📜 "पद्मासनां पद्मकरां श्वेतवर्णां
शिवां शिवाम्।
स्कन्दमातरमीशानां
तामहं शरणं गता।।" (दुर्गा सप्तशती)
अर्थ: जो देवी
पद्मासन पर विराजमान हैं, कमलधारिणी हैं, शिवस्वरूपा हैं, वे स्कंदमाता हैं।
4. वास स्थान एवं प्रमुख मंदिर
🔹 स्वरूप स्थान: कैलाश पर्वत
🔹 प्रसिद्ध मंदिर:
- स्कंदमाता मंदिर, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
- कमाक्षी अम्मन मंदिर, कांचीपुरम, तमिलनाडु
- सुब्रमण्य मंदिर, कर्नाटक (कार्तिकेय के कारण प्रसिद्ध)
📜 "स्कन्दमाता जगद्धात्री भक्तानां
भुक्तिमुक्तिदा।" (मार्कंडेय पुराण)
अर्थ: स्कंदमाता
समस्त जगत की पालनकर्ता हैं और भक्तों को मोक्ष एवं समृद्धि प्रदान करती हैं।
5. देवी की विशेषताएँ
🔹 अकार (आकृति): देवी का
स्वरूप शांत, वात्सल्य
युक्त और दिव्य आभा से युक्त है।
🔹 प्रकृति: देवी स्नेह, वात्सल्य एवं करुणा का प्रतीक हैं।
🔹 वस्त्र एवं आभूषण:
➤ माता स्वेत
वस्त्र धारण किए रहती हैं।
➤ रत्नजड़ित
स्वर्ण आभूषणों से अलंकृत रहती हैं।
🔹 सौंदर्य:
➤ देवी की मृदु
मुस्कान एवं शांत
मुखमंडल अत्यंत
आकर्षक एवं दयालु भाव लिए हुए हैं।
6. वाहन एवं अस्त्र-शस्त्र
🔹 वाहन: सिंह (साहस का प्रतीक)
🔹 अस्त्र-शस्त्र:
➤ कमल – ज्ञान एवं
शांति का प्रतीक
➤ वरद मुद्रा – भक्तों की
इच्छाएँ पूर्ण करने हेतु
➤ स्कंद
(कार्तिकेय) – शौर्य एवं
शक्ति का प्रतीक
7. पूजन विधि एवं मंत्र
🔹 तिथि: आश्विन शुक्ल पंचमी
🔹 दिन: शुक्रवार
🔹 शुभ समय: प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त
🔹 अर्पण: पीले पुष्प, केसर मिश्रित दूध, घी, मिष्ठान्न
📜 वैदिक मंत्र:
"ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः।।"
📜 शाबर मंत्र:
"जय माता स्कंद, जय माता पार्वती, रक्षा करो
माता।"
📜 तांत्रिक मंत्र:
"ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्कन्दमातायै नमः।।"
1. तारकासुर कौन था?
📜 (स्कंद पुराण, महेश्वर खंड, 1.23.45-50)
"तारकाख्यो महासत्त्वो देवकृत्यानुपीडयत्।
ब्रह्मणा
वरदोऽभूच्च नैव शंभोर्विना वधम्।।"
🔹 अर्थ: तारकासुर एक अत्यंत शक्तिशाली असुर था, जिसने देवताओं को पराजित कर त्रिलोक में अपना आतंक फैला दिया। ब्रह्माजी ने उसे वरदान दिया कि केवल भगवान शिव के पुत्र ही उसे मार सकते हैं।
2. तारकासुर का पिता एवं जन्म स्थान
📜 (शिव पुराण, कुमरखंड, 17.10-12)
"कश्यपो दक्षपुत्रश्च दितेः पुत्रोऽभवत्ततः।
तस्मात्
तारको महाबलः उत्पन्नो दैत्यवंशतः।।"
🔹 अर्थ: तारकासुर का जन्म महर्षि कश्यप एवं दिति के वंश में हुआ था। वह एक दैत्यवंशी असुर था।
📜 (देवी भागवत पुराण, सप्तम स्कंध, 5.10.15)
"सिंधुतीरस्थले जातः तारकाख्यो महासुरः।"
🔹 अर्थ: तारकासुर का जन्म सिंधु नदी के किनारे हुआ था।
3. तारकासुर को वरदान किसने दिया?
📜 (स्कंद पुराण, कुमरखंड, 19.20-25)
"तप्त्वा तपस्त्रिभिर्वर्षैः ब्रह्माणं परमेश्वरम्।
वरं याच्यत
मे ब्रह्मन् अमरत्वं प्रदीयताम्।।"
🔹 अर्थ: तारकासुर ने तीन हजार वर्षों तक ब्रह्माजी की तपस्या की और अमर होने का वरदान माँगा। ब्रह्माजी ने अमरत्व देने से इनकार कर कहा कि "तुम्हारी मृत्यु केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों होगी।"
4. तारकासुर का आकार, प्रकृति एवं विशेषताएँ
📜 (महाभारत, वनपर्व, 230.15-20)
"तारको दानवश्रेष्ठो हेमकायो महाबलः।
चतुर्भुजः
कृपाणधारी कालो वज्रधरस्तथा।।"
🔹 अर्थ:
- तारकासुर का शरीर स्वर्ण के समान चमकीला था।
- वह चार भुजाओं वाला था और हाथ में कृपाण (कटार) एवं वज्र धारण करता था।
- उसकी आँखें लाल अग्नि समान चमकती थीं, जिससे वह अति भयानक लगता था।
- वह महाबली एवं अभेद्य कवचधारी था।
5. तारकासुर की शक्ति एवं विशेषताएँ
📜 (शिव पुराण, कुमरखंड, 19.35-40)
"ब्रह्मतेजोबलसंयुक्तो मायावी दानवाधिपः।
असिहस्तश्च
बलवान् अजेयः समरे सुरैः।।"
🔹 अर्थ:
- तारकासुर के पास ब्रह्मतेज से युक्त बल था।
- वह मायावी शक्ति से युक्त था, जिससे वह अपने रूप बदल सकता था।
- देवताओं के लिए वह अजेय था क्योंकि उसका कवच भेदन असंभव था।
📜 (देवी भागवत, सप्तम स्कंध, 5.12.10-15)
"तारकोऽसुरराजोऽयं मायासिद्धिपरायणः।
शिवपुत्रेण
हन्तव्यः अन्यथा न भविष्यति।।"
🔹 अर्थ: तारकासुर मायासिद्धियों में निपुण था और किसी भी अस्त्र से नष्ट नहीं हो सकता था, सिवाय शिव पुत्र के।
6. तारकासुर की सेना एवं सेनापति
📜 (स्कंद पुराण, महेश्वर खंड, 3.10.25-30)
"तारकस्य सैन्यपतिः कूथारो नाम दानवः।
सप्तसहस्रयोद्धारि
मायावी विकटाननः।।"
🔹 अर्थ: तारकासुर का सेनापति कूथार नामक महादैत्य था।
📜 (महाभारत, वनपर्व, 230.40-45)
"तारकस्य च पुत्राणां त्रयो वीराः महाबलाः।
विद्युन्माली, कमलाक्षः, पार्थिवो
दैत्यसत्तमः।।"
🔹 अर्थ: तारकासुर के तीन शक्तिशाली पुत्र थे –
- विद्युन्माली
- कमलाक्ष
- पार्थिव
📜 (शिव पुराण, कुमरखंड, 19.50-55)
"सहस्त्रसैन्ययुक्तस्य तारकस्य महासुरा।
भल्लूकः, धूम्रकेतुः
च तस्य सहायकाः।।"
🔹 अर्थ: उसकी सेना में प्रमुख असुर थे –
- भल्लूक
- धूम्रकेतु
- कुंभानंद
- विद्युतासुर
7. 🔹 1. राक्षसों की उत्पत्ति एवं तारकासुर का बलशाली बनना
📜 (स्कंद पुराण, महेश्वर खंड, 1.23.45-50)
"तारकाख्यो महासत्त्वो देवकृत्यानुपीडयत्।
ब्रह्मणा वरदोऽभूच्च नैव शंभोर्विना वधम्।।"
🔹 अर्थ: तारकासुर नामक महाबली असुर ने देवताओं को पीड़ा देना प्रारंभ किया। उसे ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त था कि केवल भगवान शंकर के पुत्र ही उसका वध कर सकते हैं।
📜 (शिव पुराण, रुद्र संहिता, कुमरखण्ड, 17.12)
"नारदस्त्वथ तं दृष्ट्वा ब्रह्माणं शरणं ययौ।
स गत्वा तं वरं प्राह यस्त्वं ददासि शंकरात्।।"
🔹 अर्थ: नारद मुनि ने देवताओं के संकट को देखकर ब्रह्माजी के पास जाकर पूछा कि इस संकट का समाधान क्या है। तब ब्रह्माजी ने कहा कि केवल भगवान शिव के पुत्र ही तारकासुर का वध कर सकते हैं।
तारकासुर ने कठोर तप कर ब्रह्माजी से यह वरदान प्राप्त किया था कि वह सिर्फ भगवान शिव के पुत्र द्वारा मारा जा सकता है। चूंकि भगवान शिव उस समय तपस्या में लीन थे और विवाह नहीं हुआ था, इसलिए देवताओं ने माता पार्वती से प्रार्थना की कि वे भगवान शिव को विवाह हेतु प्रेरित करें।
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स्कंदमाता द्वारा कार्तिकेय (स्कंद) को युद्ध के लिए प्रेरित करना
📜 (स्कंद पुराण, महेश्वर खंड, 2.15.20-25)
"देवानामग्रतः स्थित्वा मातृमंत्रेण पूजिता।
स्कन्दं योधय संहर्तुं तारकं महिषं तथा।।"
🔹 अर्थ: जब तारकासुर का अत्याचार बढ़ा, तब स्कंदमाता ने भगवान स्कंद को युद्ध के लिए प्रेरित किया और कहा – "हे पुत्र! अब समय आ गया है कि तुम देवताओं की रक्षा हेतु इस युद्ध में जाओ और तारकासुर का वध करो।"
स्कंदमाता देवी ने अपने पुत्र को यह आशीर्वाद दिया कि वे युद्ध में अजेय रहेंगे और अपनी शक्ति से असुरों का विनाश करेंगे।
📜 (महाभारत, वनपर्व, 230.45-47)
"स्कन्दस्तदा मातुर्वाक्यं श्रुत्वा युद्धाय चोदितः।
देवासुराणामध्ये स शस्त्रग्रहणं चकार।।"
🔹 अर्थ: स्कंदमाता के आदेश को सुनकर भगवान स्कंद ने युद्ध के लिए अपने शस्त्र उठाए और देवताओं एवं असुरों की सेना के मध्य युद्ध में प्रवेश किया।
तारकासुर का शाप एवं उसका अंत
📜 (देवी भागवत पुराण, सप्तम स्कंध,
5.20.10)
"पूर्वजन्मनि यो दुष्टो ब्राह्मणहिंसकोऽभवत्।
स
पुनर्जन्मनि दैत्यः तारको ह्यभवत् किल।।"
🔹 अर्थ: तारकासुर को पूर्व जन्म में ब्राह्मण हत्या के कारण शापित होकर असुर योनि में जन्म लेना पड़ा।
📜 (शिव पुराण, कुमरखंड, 20.15-20)
"स्कन्देन निहतः शत्रुः तारकाख्यो महासुरः।
स शक्त्या
पतितः भूमौ व्यथमानोऽतिकष्टतः।।"
🔹 अर्थ: भगवान स्कंद (कार्तिकेय) ने शक्ति अस्त्र से तारकासुर का वध किया।
📜 (स्कंद पुराण, महेश्वर खंड, 3.18.50-55)
"स शक्त्या निहतः शत्रुः तारकाख्यो महाबलः।
देवैः सह
स्तुतो स्कन्दः माता साभीष्टदा पुनः।।"
🔹 अर्थ: तारकासुर का वध भगवान स्कंद ने शक्ति नामक शस्त्र से किया, जिससे देवताओं ने उनकी स्तुति की।
8.
- तारकासुर महर्षि कश्यप एवं दिति का पुत्र था।
- उसने ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त किया कि उसकी मृत्यु केवल शिव के पुत्र द्वारा होगी।
- वह मायावी, चार भुजाओं वाला एवं तेजस्वी असुर था।
- उसका सेनापति कूथार था, और उसकी सेना में कई महादैत्य थे।
- उसका अंत भगवान स्कंद (कार्तिकेय) ने "शक्ति" अस्त्र से किया।
🔹 3. तारकासुर एवं अन्य असुरों का वध
📜 (स्कंद पुराण, महेश्वर खंड, 3.18.50-55)
"स शक्त्या निहतः शत्रुः तारकाख्यो महाबलः।
देवैः सह
स्तुतो स्कन्दः माता साभीष्टदा पुनः।।"
🔹 अर्थ: भगवान स्कंद ने अपनी शक्ति नामक दिव्य शक्ति से तारकासुर का वध किया। उसके वध के बाद देवताओं ने उनकी स्तुति की और स्कंदमाता ने उन्हें पुनः आशीर्वाद दिया।
📜 (शिव पुराण, कुमरखण्ड, 19.32-35)
"महावीर्यो महात्मा स तारको देवकण्टकः।
हतोऽयं
शस्त्रसंघेन स्कन्देनैव परन्तपः।।"
🔹 अर्थ: महाबली, तेजस्वी एवं देवताओं के लिए संकट बना हुआ असुर तारकासुर भगवान स्कंद के शस्त्रों से पराजित होकर मारा गया।
📜 (महाभारत, वनपर्व, 231.10-15)
"स्कन्देन निहतः शत्रुः तारकाख्यो महासुरः।
ससैन्यः
पतितो भूमौ व्यथमानोऽतिकष्टतः।।"
🔹 अर्थ: भगवान स्कंद ने तारकासुर का वध किया, जिससे उसकी समस्त सेना भी समाप्त हो गई।
📜 (देवी भागवत पुराण, सप्तम स्कंध,
5.12.20)
"यः पापं कृत्वा लोकेऽस्मिन्तारको दानवाधिपः।
स
मातृस्नेहबलेन हतो देवहिताय वै।।"
🔹 अर्थ: तारकासुर, जिसने इस लोक में महान पाप किए थे, वह माता के आशीर्वाद एवं प्रेरणा से भगवान स्कंद द्वारा नष्ट किया गया।
🔹 4. तारकासुर के वध का महत्व एवं पूजा की फलदायी तिथि
📜 (स्कंद पुराण, महेश्वर खंड, 3.20.40-45)
"यदा पंचमी तिथौ यः पूजयेत्स्कन्दमातरम्।
सर्वपापविनिर्मुक्तो
लभते परमं पदम्।।"
🔹 अर्थ: जो भक्त शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को स्कंदमाता की पूजा करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।
📜 (दुर्गा सप्तशती, उत्तर चरित, 12.30-32)
"स्कन्दस्य मातृस्नेहेन जयश्रीरभिवर्धते।
तस्य
पूजनसंयुक्तः सर्वसिद्धिः प्रजायते।।"
🔹 अर्थ: स्कंदमाता की कृपा से युद्ध में विजय, शौर्य, एवं ऐश्वर्य की वृद्धि होती है।
8. देवी का राक्षसों से युद्ध एवं वध
स्कंदमाता स्वयं किसी राक्षस के वध के लिए प्रसिद्ध नहीं हैं, लेकिन उन्होंने अपने पुत्र भगवान स्कंद (कार्तिकेय) को तारकासुर एवं अन्य राक्षसों के वध हेतु प्रेरित किया।
तारकासुर का वध भगवान स्कंद ने किया, जिसकी विस्तृत कथा स्कंद पुराण, शिव पुराण, मार्कंडेय पुराण एवं महाभारत में मिलती है।
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🔹 किन राक्षसों को मारा?
➤ स्कंदमाता ने स्वयं किसी राक्षस का वध नहीं किया,
लेकिन उन्होंने भगवान स्कंद को तारकासुर के वध हेतु प्रेरित किया।
🔹 राक्षस कैसे बलशाली बने?
➤ तारकासुर ने ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त किया था कि उसे केवल शिव पुत्र ही मार सकता है।
🔹 मारने का कारण:
➤ तारकासुर देवताओं को पीड़ित कर रहा था।
🔹 किस अस्त्र से मारा?
➤ भगवान स्कंद (कार्तिकेय) ने शक्ति अस्त्र से तारकासुर का वध किया।
📜 "शक्त्या हतो तारकोऽयं देवसेनाधिपेन हि।" (स्कंद पुराण)
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9. निष्कर्ष
- स्कंदमाता स्वयं युद्ध नहीं करतीं, लेकिन अपने पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) को युद्ध के लिए प्रेरित करती हैं।
- तारकासुर ने ब्रह्मा की तपस्या करके यह वरदान प्राप्त किया था कि वह सिर्फ शिव पुत्र द्वारा मारा जाएगा।
- स्कंदमाता ने अपने पुत्र को शक्ति, आशीर्वाद, एवं विजय प्राप्ति का वर प्रदान किया।
- भगवान स्कंद ने शक्ति नामक अस्त्र से तारकासुर का वध किया।
- स्कंदमाता की पूजा शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को करने से समस्त सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
स्कंदमाता ममतामयी, ज्ञानदायिनी एवं विजयश्री की देवी हैं। उनकी पूजा से ज्ञान, शौर्य, और शांति की प्राप्ति होती है।
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