व्रत उपवास क्या? क्यों? प्रकार?
व्रत एवं पर्वों का प्राचीन आधार
भारत के ऋषि-मुनियों तथा तत्कालीन प्राचीन विद्वानों ने अपनी उच्च कोटि की ज्ञान क्षमता से शोध करके मनुष्य को प्रारब्धजन्य कष्टों, पापों से बचाने तथा जीवन को सरल व सुखद बनाने के लिए व्रत एवं पर्वों का निर्माण किया।
व्रत एवं पर्वों का उद्देश्य
- आत्मशुद्धि एवं आत्मसंयम।
- प्रारब्ध व कर्मजनित कष्टों से मुक्ति।
- मानसिक, शारीरिक एवं आत्मिक शुद्धि।
- धार्मिक व आध्यात्मिक उन्नति।
- समाज में नैतिकता एवं सद्भावना को बढ़ावा देना।
ऋषियों द्वारा रचित व्रतों एवं पर्वों के पालन से मनुष्य का जीवन संतुलित, पवित्र एवं आनंदमय बनता है।
जीवन को सरल, सुखद, सफल बनाने के माध्यम
निर्हार या अल्प भोजन द्वारा शरीर को तपाना, कष्ट देना ही तप है।
व्रत
इसमें भोजन करने की अनुमति होती है।
उपवास
निर्हार अर्थात बिना कोई पदार्थ लिए या बिना भोजन के रहना।
व्रत-उपवास के तीन प्रकार
- कायिक - अहिंसक दैनिक व्यवहार।
- वाचिक - केवल सत्य ही बोलना।
- मानसिक - मन शांत, प्रसन्न, क्रोध रहित।
व्रत-उपवास की सफलता के मूल स्तंभ
- उद्देश्यपूर्ण व्रत - पुण्य संचय (एकादशी), पाप क्षय (चंद्रायण व्रत)।
- काम्य व्रत - सुख-सौभाग्यवृद्धि (वट सावित्री व्रत)।
विशेष व्रत-उपवास नियम (भोजन संबंधी शब्द)
- एकभुक्त - दिन-रात में एक समय भोजन।
- नक्त व्रत - रात में भोजन, दिन में नहीं (गृहस्थ)।
- संन्यासी, विधवा - सूर्यास्त से पूर्व भोजन।
- अयाचित - एक बार परंतु बिना माँगे जितना और जो मिले, वही भोजन।
- मितभुक्त - केवल 10 बार मुख में भोजन डालना (सिद्धि प्रद माना गया है)।
व्रतों के विभिन्न प्रकार
- पक्ष व्रत - पक्ष, वार, तिथि, दिन, माह जैसे
- मास व्रत - वैशाख, कार्तिक, भाद्रपद, माघ।
- पक्ष व्रत - कुछ शुक्ल, कुछ कृष्ण पक्ष।
- तिथि व्रत - चतुर्थी, एकादशी, अमावस्या व्रत।
- दिन व्रत - रविवार, सोमवार आदि।
- नक्षत्र व्रत - श्रावण, अनुराधा, रोहिणी व्रत।
- योग व्रत - व्यतीपात आदि।
- करण व्रत - भद्रा।
- तिथि+दिन व्रत
- बुधाष्टमी (बुधवार + अष्टमी)
- सोम, भौम, शनि प्रदोष व्रत
भानु सप्तमी (दिन एवं तिथि एक साथ हो)
ग्रह व्रत - चंद्र की कृपा व प्रसन्नता के लिए
ग्रह व्रत का उद्देश्य
- पाप नाश एवं प्रारब्धजन्य कष्ट कम करने के लिए ग्रह व्रत किया जाता है।
चंद्र व्रत
- शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होता है।
- प्रतिपदा को केवल एक बार मुख में अन्न या भोजन ग्रहण करें।
- इसके बाद प्रत्येक तिथि को चंद्रमा की तरह एक-एक ग्रास बढ़ाते हुए, 15वें दिन (पूर्णिमा) को 15 ग्रास भोजन करें।
- कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा से भोजन या ग्रास की संख्या घटाते हुए, अमावस्या को निराहार (बिना भोजन) रहें।
- यह विधि चंद्रायण व्रत कहलाती है, जिसमें चंद्र पूजन आवश्यक होता है।
प्राजापत्य व्रत (12 दिन का व्रत)
- पहले तीन दिन - 22 ग्रास भोजन।
- चौथे से छठे दिन - 26 ग्रास भोजन।
- सातवें से नौवें दिन - अपचित (पूर्ण रूप से पका हुआ अन्न) भोजन, 24 ग्रास।
- दसवें से बारहवें दिन - निराहार (अन्न वर्जित)।
यह प्राजापत्य व्रत शुद्धिकरण व आध्यात्मिक साधना के लिए किया जाता है।
1. नवरात्र व्रत (09 दिन)
- देवी पूजा के लिए किया जाता है।
- महत्वपूर्ण माह एवं पक्ष: चैत्र, आषाढ़, अश्विन, माघ में शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से आरंभ।
2. संक्रांति व्रत
- सूर्य के राशि परिवर्तन के दिन मनाया जाता है।
- इसमें प्रमुख तत्त्व: माह, दिन, तिथि, योग, करण आदि होते हैं।
3. अधिक मास व्रत (पुरुषोत्तम मास व्रत / मलमास व्रत)
- इसमें किसी तिथि का विशेष महत्व नहीं होता।
4. उत्तरायण व्रत
- जिस दिन सूर्य उत्तरायण होता है, उस दिन यह व्रत किया जाता है।
- इसमें तिथि या दिन का कोई बंधन नहीं होता।
5. व्रतों के प्रमुख प्रकार
- मास व्रत
- पक्ष व्रत
- तिथि व्रत
- दिन व्रत
- योग व्रत
- करण व्रत
- संक्रांति व्रत
इनमें से कुछ व्रतों में दिन, तिथि, योग, करण आदि आवश्यक नहीं होते, केवल माह महत्वपूर्ण होता है।
6. प्रायश्चित व्रत
- पाप के दुष्प्रभाव से मुक्ति दिलाने वाले व्रत होते हैं।
पाप क्या है?
- पाप का फल अशुभ और कष्टदायक होता है।
प्रायश्चित क्या है?
- किसी कार्य या व्यवहार के पश्चात् पश्चाताप व उससे मुक्ति का उपाय।
- किसी की आत्मा को अनावश्यक, निरुद्देश्य या कल्याण भावना से परे कष्ट देना पाप है।
- पुण्य – उपकार करना, सहायता करना।
- पाप – किसी को पीड़ा देना।
7. अन्य विशेष व्रत
- मौन व्रत – वाणी संयम के लिए।
- नक्षत्र व्रत – शत्रुनाश के लिए (भरणी नक्षत्र में किया जाता है)।
- तुलसी अर्पण व्रत – कार्तिक, माघ, वैशाख माह में किया जाता है।
- देवशयन व्रत, देव प्रबोधिनी व्रत आदि।
- पद्मकृच्छ्र व्रत – कमल के पत्तों को उबालकर एक माह तक उसका सेवन।
इनमें माह, तिथि, दिन, नक्षत्र का विशेष महत्व नहीं होता।
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