51शक्ति पीठ: महत्त्व, उत्पत्ति एवं शास्त्रीय संदर्भ
भगवान शिव सती के पार्थिव शरीर को लेकर अत्यंत शोकाकुल - शिव का तांडव1. शक्ति पीठ क्या है?
शक्ति पीठ (Shakti Peetha) माँ शक्ति के पवित्र तीर्थ स्थल हैं, जहाँ माता के अंग, आभूषण या वस्त्र गिरे थे। ये स्थान अत्यंत शक्तिशाली और दिव्य ऊर्जा केंद्र माने जाते हैं।
2. "शक्ति पीठ" का अर्थ
- "शक्ति" = देवी पार्वती, आदिशक्ति
- "पीठ"
= स्थान या आसन
अतः "शक्ति पीठ" का अर्थ है—वह स्थान जहाँ देवी की शक्ति विद्यमान हो।
3. शक्ति पीठ किस युग में स्थापित हुए?
सत्ययुग में, जब माता सती का शरीर खंडित हुआ, तभी ये शक्ति पीठ अस्तित्व में आए।
4. शक्ति पीठ की उत्पत्ति की कथा (शास्त्रीय संदर्भ)
शक्ति
पीठों की स्थापना का वर्णन कई ग्रंथों में मिलता है:
📖 शिव पुराण, 📖 देवी भागवत पुराण, 📖 कालिका पुराण, 📖 तंत्र चूड़ामणि
शक्ति पीठों की उत्पत्ति की कथा
🔱 शक्ति पीठ कैसे बने?
शक्ति पीठों की स्थापना देवी सती और भगवान शिव की कथा से जुड़ी हुई है, जो शिव पुराण, कालिका पुराण, देवी भागवत पुरा
सती का जन्म और विवाह
माता सती (या दक्षायणी) प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। वे भगवान शिव की घोर तपस्या कर उन्हें पति रूप में प्राप्त करना चाहती थीं। उनकी कठिन साधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया और दोनों का विवाह संपन्न हुआ।
शिव और सती कैलाश पर्वत पर सुखपूर्वक रहने लगे, लेकिन प्रजापति दक्ष को यह विवाह पसंद नहीं था। दक्ष शिव को तपस्वी, औघड़ और सामाजिक नियमों की परवाह न करने वाला योगी मानते थे। वे इस विवाह से अत्यंत क्रोधित थे और शिव से बैर रखने लगे।
दक्ष यज्ञ और सती का आत्मदाह
एक दिन प्रजापति दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया और सभी देवताओं, ऋषियों तथा मुनियों को निमंत्रण दिया, लेकिन भगवान शिव और माता सती को आमंत्रित नहीं किया।
जब माता सती को यह ज्ञात हुआ कि उनके पिता ने यज्ञ आयोजित किया है, तो उन्होंने शिवजी से वहाँ जाने की इच्छा प्रकट की। भगवान शिव ने उन्हें समझाया कि बिना निमंत्रण जाना उचित नहीं है, लेकिन सती ने कहा कि पिता के घर जाने के लिए आमंत्रण की आवश्यकता नहीं होती।
सती यज्ञस्थल पर पहुँचीं, लेकिन वहाँ उनका बहुत अपमान हुआ। उनके पिता दक्ष ने शिवजी के प्रति कठोर वचन कहे और उनका अपमान किया। यह देखकर सती अत्यंत व्यथित हो गईं। उन्होंने कहा—
"शिव ही समस्त जगत के स्वामी हैं, वे आदि और अनादि हैं। जिनके बिना ब्रह्मा, विष्णु और स्वयं तुम भी असहाय हो, उन महादेव का अपमान करने का अर्थ अपने विनाश को आमंत्रण देना है।"
लेकिन दक्ष ने उनका अपमान करना बंद नहीं किया। यह देखकर सती को अत्यंत क्रोध और दुःख हुआ। वे समझ गईं कि अब इस शरीर को धारण करना व्यर्थ है, क्योंकि यह शरीर उसी दक्ष का अंश है जो उनके प्रियतम शिव का अपमान कर रहा है।
उन्होंने तुरंत योगबल से अपनी प्राणाग्नि जाग्रत की और अपने ही शरीर को जला दिया। माता सती का यह दृश्य देखकर समस्त देवता और ऋषि स्तब्ध रह गए।
शिव का क्रोध और वीरभद्र का उत्पन्न होना
जब यह समाचार भगवान शिव को मिला, तो वे अत्यंत क्रोधित हो उठे। उन्होंने अपनी जटा से वीरभद्र और भद्रकाली को उत्पन्न किया और उन्हें आदेश दिया कि वे यज्ञ का विध्वंस कर दें।
वीरभद्र ने दक्ष के यज्ञ को तहस-नहस कर दिया और दक्ष का सिर काट दिया। इस विनाश से पूरा ब्रह्मांड कांप उठा। बाद में, देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने दक्ष को क्षमा कर दिया और उन्हें एक बकरे का सिर देकर पुनः जीवन प्रदान किया।
शिव का तांडव और विष्णु द्वारा सती के शरीर के टुकड़े करना
भगवान शिव सती के पार्थिव शरीर को लेकर अत्यंत शोकाकुल हो गए। वे उसे अपने कंधे पर उठाकर पूरे ब्रह्मांड में घूमने लगे और तांडव करने लगे।
इससे सृष्टि की व्यवस्था बिगड़ने लगी। देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे इस समस्या का समाधान करें। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया।
जहाँ-जहाँ माता सती के अंग गिरे, वहाँ-वहाँ शक्ति पीठों की स्थापना हुई। इन स्थानों को आज 51 शक्तिपीठ कहा जाता है, जहाँ माता सती विभिन्न स्वरूपों में पूजित होती हैं।
51 शक्तिपीठों का तांत्रिक महत्व (चण्डिका तंत्र के अनुसार)
चण्डिका तंत्र और तंत्र चूड़ामणि में कहा गया है कि ये शक्तिपीठ साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन स्थानों पर देवी के विभिन्न अंगों, आभूषणों या वस्त्रों के गिरने के कारण यहाँ विशेष ऊर्जा उत्पन्न हुई है।
शास्त्रीय प्रमाण (चण्डिका तंत्र से):
"शृणु देवि
प्रवक्ष्यामि पीठानां तत्त्वमुत्तमम्।
यत्र यत्र
पतित्वं तु सतीदेहस्य शक्तितः॥"
(अर्थ: हे देवी! मैं तुम्हें उन पीठों का तत्व बताने जा रहा हूँ, जहाँ-जहाँ सती के अंग शक्ति से युक्त होकर गिरे।)
प्रमुख शक्तिपीठों की सूची
51 शक्तिपीठों में से कुछ प्रमुख स्थान हैं:
- कामाख्या पीठ (असम) - योनि गिरी
- वैष्णो देवी (जम्मू) - दाहिना हाथ
- कालीघाट (पश्चिम बंगाल) - दाहिना पैर की उँगलियाँ
- त्रिपुरा सुंदरी (त्रिपुरा) - दाहिनी पैर की अंगुली
- ज्वालामुखी (हिमाचल) - जीभ
- हिंगलाज (पाकिस्तान) - सिर
- उज्जयिनी (मध्य प्रदेश) - ऊपरी होंठ
- पाटन (नेपाल) - बाँह
यह सभी शक्तिपीठ माँ सती के विभिन्न रूपों की आराधना के लिए प्रसिद्ध हैं।
📖 पौराणिक कथा:
1️⃣ दक्ष यज्ञ और सती का आत्मदाह
- राजा प्रजापति दक्ष, जो भगवान ब्रह्मा के पुत्र थे, ने एक महायज्ञ का आयोजन किया।
- उन्होंने अपने दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया क्योंकि वे उनसे नाराज थे।
- जब देवी सती (शिव की पत्नी) ने यह सुना, तो वे बिना बुलाए यज्ञ में पहुँचीं।
- वहाँ पर दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया, जिसे सहन न कर पाने के कारण सती ने यज्ञकुंड में आत्मदाह कर लिया।
2️⃣ भगवान शिव का तांडव और सती का अंग भंग
- जब भगवान शिव को यह समाचार मिला, तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए।
- उन्होंने विराट तांडव नृत्य किया और सती के जले हुए शरीर को कंधे पर उठाकर ब्रह्मांड में विचरण करने लगे।
- इससे सृष्टि में प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो गई।
3️⃣ भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र और शक्ति पीठों की स्थापना
- भगवान विष्णु ने सृष्टि को विनाश से बचाने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए।
- जहाँ-जहाँ माँ सती के शरीर के अंग, आभूषण या वस्त्र गिरे, वहाँ-वहाँ शक्ति पीठों की स्थापना हुई।
- इन स्थानों को ही 51 शक्ति पीठ कहा जाता है।
- प्रत्येक शक्ति पीठ पर देवी के साथ भगवान भैरव की भी पूजा होती है, जो वहाँ के रक्षक देवता होते हैं।
📜 शक्ति पीठों की संख्या और प्रमुखता
- 51 शक्ति पीठों की मान्यता अधिक प्रचलित है, जो कालिका पुराण और देवी भागवत पुराण में वर्णित हैं।
- अन्य ग्रंथों में 108, 64, और 18 शक्ति पीठों की भी चर्चा है।
- हर शक्ति पीठ का अपना अलग महत्त्व, देवी स्वरूप और भैरव होते हैं।
📌 निष्कर्ष
✔️ शक्ति पीठों की
स्थापना देवी सती के अंगों के गिरने से हुई।
✔️ भगवान शिव के
तांडव और भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से ये स्थान बने।
✔️ हर शक्ति पीठ
पर माँ सती के किसी न किसी अंग, आभूषण या शक्ति तत्व की पूजा
होती है।
✔️ यह स्थान शक्ति
साधना, तंत्र साधना और भक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं।
- भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता के शरीर के 51 भाग कर दिए, जो विभिन्न स्थानों पर गिरे और वहीं शक्ति पीठों की स्थापना हुई।
5. प्रमुख 51 शक्ति पीठों के नाम, राज्य एवं स्थान
📌 कुछ प्रमुख शक्ति पीठ:
शक्ति पीठ |
देवी का नाम |
भैरव |
स्थान (राज्य) |
कामाख्या पीठ |
देवी कामाख्या |
उमानन्द |
गुवाहाटी, असम |
वैष्णो देवी |
माता वैष्णवी |
भैरवनाथ |
जम्मू-कश्मीर |
कालीघाट |
देवी काली |
नकाशेश्वर |
कोलकाता, पश्चिम बंगाल |
अंबाजी पीठ |
देवी अंबाजी |
बटुक भैरव |
गुजरात |
त्रिपुरा सुंदरी |
देवी त्रिपुरासुंदरी |
त्रिपुरेश |
त्रिपुरा |
महाकालेश्वरी |
माता महाकाली |
काल भैरव |
उज्जैन, मध्य प्रदेश |
ज्वालामुखी |
माता ज्वालामुखी |
उन्मत्त भैरव |
हिमाचल प्रदेश |
👉 कुल 51 शक्ति पीठ भारत, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश व श्रीलंका में स्थित हैं।
6. शक्ति पीठों का महत्व
🔹 तंत्र साधना एवं शक्ति उपासना के सर्वोच्च केंद्र।
🔹 मुक्ति और मनोकामना पूर्ति के लिए शक्तिशाली स्थान।
🔹 शक्ति तंत्र, दुर्गा सप्तशती, एवं काली साधना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण।
7. वेद, पुराण और धर्म ग्रंथों में शक्ति पीठ का उल्लेख
📖 ऋग्वेद – "शक्ति ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड का आधार है।"
📖 शिव पुराण – "शक्ति पीठों में माता की उपासना करने से मोक्ष प्राप्ति संभव है।"
📖 कालिका पुराण –
"51 शक्ति पीठों की महिमा का संपूर्ण वर्णन।"
📖 महाभारत – "देवी दुर्गा की उपासना का महत्व पांडवों ने समझा।"
📖 गीता – "परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।" (शक्ति के विनाशकारी एवं
संरक्षक रूप का महत्व)
8. शक्ति पीठ पर प्रमुख पर्व एवं अनुष्ठान
📌 नवरात्रि – शक्ति साधना का सर्वोत्तम समय।
📌 महाशिवरात्रि – शिव-शक्ति के मिलन का पर्व।
📌 दुर्गाष्टमी, काली पूजा – शक्ति तंत्र की सिद्धि हेतु विशेष
पर्व।
9. "शक्ति पुराण" - गीताप्रेस विशेषांक
✅ प्रमुख श्लोक (हिन्दी अर्थ सहित)
📖 शक्ति का महत्व (देवी महात्म्य से)
"या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमो नमः॥"
👉 (जो देवी समस्त प्राणियों में
शक्ति रूप से विद्यमान हैं, उन्हें बारंबार नमस्कार है।)
📖 भगवती दुर्गा का आश्वासन (दुर्गा सप्तशती से)
"माँ कहती हैं - जो भी मेरा सच्चे मन से ध्यान करेगा, मैं उसकी समस्त बाधाओं का नाश करूंगी।"
📖 गीता में शक्ति का वर्णन
"माँ शक्ति ही मेरी योगमाया हैं, जिनसे सम्पूर्ण ब्रह्मांड का संचालन होता है।" (गीता, 7.14)
कालिका पुराण में वर्णित 51 शक्ति पीठों का श्लोक
📖 शक्ति पीठों का संपूर्ण श्लोक (कालिका पुराण से)
"अलंपुरं प्रयागं च पूर्णगिरिं तथा गयाम्।
काञ्ची चाम्बा वने देवी कालतीर्थं तथैव च॥
ज्वालामुख्यां च वै शक्तिः, कुरुक्षेत्रं तथैव च।
गौरी तीर्थं तथा शक्तिः, गन्धमादन पर्वते॥
विरजा क्षेत्रमित्युक्तं, महाकालं तथैव च।
भीमशंकरसंस्थाना, विश्वेश्वरी तथा स्मृता॥
वैद्यनाथं च वै शक्तिः, हिङ्गुलां किङ्किणी तथा।
जोषेश्वरी तथा देवी, मातृग्रामे च पञ्चमी॥
कटकं शक्तिपीठं च, चामुण्डी क्षेत्रमुत्तमम्।
नागरं कामरूपी च, स्थाण्वीश्वरं तथैव च॥
श्रीशैले गिरिकर्णाटं, लङ्कायां भद्रकालयम्।
विंध्याचले तथा शक्तिः, सर्वेश्वरी तथैव च॥
गौरी कुण्डं तथा शक्तिः, चित्रकूटे तथा परम्।
दक्षायण्या तथा शक्तिः, वाराणस्यां तथैव च॥
नेपालीयं तथा शक्तिः, सरस्वत्यां तथैव च।
कुरुक्षेत्रे तथा शक्तिः, भीमाशङ्कर एव च॥
भीमशङ्करं तथा शक्तिः, जगन्नाथे तथैव च॥"
श्लोक का हिंदी अर्थ:
"अलंपुर, प्रयाग, पूर्णगिरि और गया,
कांची, अंबा वन, देवी कालतीर्थ,
ज्वालामुखी, कुरुक्षेत्र, गौरी तीर्थ,
गंधमादन पर्वत, विरजा क्षेत्र, महाकाल,
भीमाशंकर, विश्वेश्वरी, वैद्यनाथ,
हिंगुला, किंकिणी, जोषेश्वरी,
मातृग्राम की पंचमी देवी, कटक शक्तिपीठ,
चामुंडी क्षेत्र, नागर, कामरूप,
स्थाण्वीश्वर, श्रीशैल, गिरिकर्णाट,
लंका में भद्रकाली, विंध्याचल में सर्वेश्वरी,
गौरीकुंड, चित्रकूट, दक्षायणी शक्तिपीठ,
वाराणसी, नेपाल में स्थित शक्तिपीठ,
सरस्वती क्षेत्र, भीमाशंकर, जगन्नाथ क्षेत्र।"
यह सभी स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हैं, जहाँ देवी के विभिन्न रूपों की उपासना की जाती है। ये स्थान देवी शक्ति के आशीर्वाद से पवित्र एवं दिव्य ऊर्जा के केंद्र माने जाते हैं।
English Translation:
"
All these places are renowned Shakti Peeths, where different manifestations of the Goddess are worshiped. These sites are considered sacred and powerful centers of divine energy blessed by Devi Shakti.
यह श्लोक कालिका पुराण में 51 शक्ति पीठों का उल्लेख करता है। इनमें अलंपुर, प्रयाग, कांची, ज्वालामुखी, वैद्यनाथ, श्रीशैल, लंका, विंध्याचल आदि प्रमुख हैं। ये सभी माँ सती के अंग, आभूषण या वस्त्र गिरने के स्थान हैं, जो आज भी शक्ति साधना के पावन तीर्थ माने जाते हैं।
1️⃣ शक्ति पीठों में देवी के विभिन्न स्वरूपों की पूजा होती है, जिससे आध्यात्मिक एवं सांसारिक लाभ प्राप्त होते हैं।
2️⃣ तंत्र, योग एवं साधना के लिए ये स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यहाँ की ऊर्जा विशेष शक्तिशाली होती है।
3️⃣ हर शक्ति पीठ के साथ एक भैरव स्थल भी होता है, जो देवी के रक्षक रूप में पूजे जाते हैं।
📜 51 शक्ति पीठों का सारांश (संक्षेप में) 📜
शक्ति पीठ वे पावन स्थल हैं, जहाँ माँ सती के अंग, वस्त्र या आभूषण गिरे थे। हर शक्ति पीठ का अपना विशेष महत्त्व, देवी का स्वरूप, और भैरव रक्षक होते हैं। इन स्थानों में शक्ति साधना, तंत्र क्रिया और सिद्धि प्राप्ति की विशेष मान्यता है।
माता सती के 51 शक्तिपीठों का विस्तृत विवरण
क्र. |
शक्तिपीठ का नाम |
स्थान |
गिरे हुए अंग |
देवी का नाम |
भैरव का नाम |
1 |
कालीघाट |
कोलकाता, पश्चिम बंगाल |
दाहिना पैर |
काली |
नक्तेश्वर |
2 |
तारापीठ |
बीरभूम, पश्चिम बंगाल |
नेत्र |
तारा |
चंड |
3 |
नलहती |
बीरभूम, पश्चिम बंगाल |
नाड़ी (अंतड़ियां) |
कुशमांडा |
योगेश |
4 |
अट्टाहास |
बीरभूम, पश्चिम बंगाल |
अधर (होठ) |
फुल्लरा |
विश्वेश |
5 |
बहुला |
बर्धमान, पश्चिम बंगाल |
बायां हाथ |
बहुला |
भैरव बिड्युत |
6 |
त्रिपुरा सुंदरी |
उदयपुर, त्रिपुरा |
दाहिनी पैर की उंगलियां |
त्रिपुरा सुंदरी |
त्रिपुरेश |
7 |
बसंती |
बांग्लादेश |
बायां पैर |
बसंती |
भैरव बिस्वेश्वर |
8 |
चंद्रनाथ |
बांग्लादेश |
दाहिना हाथ |
भवानी |
चंद्रनाथ |
9 |
माता सती मंदिर |
पाकिस्तान |
सिर |
हिंगलाज |
भीमलोचन |
10 |
देवीपत्थन |
नेपाल |
दोनों घुटने |
गुह्येश्वरी |
कपालीश्वर |
11 |
कामाख्या |
गुवाहाटी, असम |
योनि |
कामाख्या |
उमानंद |
12 |
माधवपुर |
गुजरात |
वक्ष |
माधवेश्वरी |
भैरव दक्ष |
13 |
अंबाजी |
बनासकांठा, गुजरात |
ह्रदय |
अंबा |
भैरवनाथ |
14 |
हरसिद्धि |
उज्जैन, मध्य प्रदेश |
ऊर्ध्व ओष्ठ |
हरसिद्धि |
काल भैरव |
15 |
चित्रकूट |
उत्तर प्रदेश |
दायां वक्षस्थल |
शिवानी |
चंद्रशेखर |
16 |
प्रयागराज |
उत्तर प्रदेश |
दाहिनी हस्तलता |
ललिता |
भैरवेश्वर |
17 |
वाराणसी |
उत्तर प्रदेश |
कर्णमणि (कान की मणि) |
विशालाक्षी |
काल भैरव |
18 |
नागेश्वरी |
नेपाल |
गर्दन |
महेश्वरी |
भैरव कराल |
19 |
तुंगभद्रा |
महाराष्ट्र |
कुंडल (कान का आभूषण) |
महालक्ष्मी |
कराल |
20 |
अष्टभुजा |
वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
बाहु |
अष्टभुजा |
भैरव शिव |
21 |
देवीपत्थन |
काठमांडू, नेपाल |
घुटना |
गुह्येश्वरी |
कपालीश्वर |
22 |
कांची कामाक्षी |
तमिलनाडु |
पीठ |
कामाक्षी |
भैरव काल भैरव |
23 |
श्रीशैल |
आंध्र प्रदेश |
नाभि |
ब्रह्मारंभा |
मल्लिकार्जुन |
24 |
कुरुक्षेत्र |
हरियाणा |
एड़ी |
देवी |
भैरव स्थाणु |
25 |
गिरिजा देवी |
कटक, ओडिशा |
नाल |
गिरिजा |
भैरव जगन्नाथ |
26 |
ज्वालामुखी |
हिमाचल प्रदेश |
जिह्वा (जीभ) |
ज्वाला |
अंनल |
27 |
नैना देवी |
हिमाचल प्रदेश |
नेत्र |
नैना देवी |
भैरव काल भैरव |
28 |
मनसा देवी |
हरिद्वार, उत्तराखंड |
मस्तक |
मनसा |
भैरव सिद्धनाथ |
29 |
कालिका |
पाटण, गुजरात |
ऊपरी होंठ |
कालिका |
भैरव मल्ल |
30 |
शर्वणी |
गोवा |
दांत |
शर्वणी |
खंडकपाल |
31 |
जयंतिया |
मणिपुर |
बायां स्तन |
देवी जयंतिया |
भैरव कंबल |
32 |
वृषभ तीर्थ |
बिहार |
बायां हाथ |
देवी |
भैरव वृषभ |
33 |
शिवरी |
झारखंड |
पलक |
शिवानी |
भैरव क्षेत्रपाल |
34 |
इन्द्रक्षी |
श्रीलंका |
पायल |
इन्द्रक्षी |
भैरव राक्षस |
35 |
लंका शक्तिपीठ |
श्रीलंका |
कलाई |
देवी |
भैरव संहार |
36 |
देवगढ़ |
झारखंड |
कर्ण |
देवी |
भैरव कराल |
37 |
काली माता मंदिर |
पाकिस्तान |
नाभि |
देवी |
भैरव करुण |
38 |
चंपा देवी |
महाराष्ट्र |
चंपा |
चंपा |
भैरव कपाली |
39 |
रामेश्वर |
तमिलनाडु |
घुटना |
देवी |
भैरव नीलकंठ |
40 |
दक्षिणेश्वर |
कोलकाता |
दायां अंगूठा |
देवी |
भैरव कालभैरव |
41 |
गंधमादन |
तमिलनाडु |
सिर का भाग |
देवी |
भैरव गंधेश |
42 |
महिषमर्दिनी |
कर्नाटक |
दाहिना नासिका |
महिषमर्दिनी |
भैरव रुद्राक्ष |
43 |
संतानेश्वरी |
नेपाल |
संतति |
संतानेश्वरी |
भैरव महाकाल |
44 |
कुष्मांडा |
हरिद्वार, उत्तराखंड |
हृदय |
कुष्मांडा |
भैरव कालभैरव |
45 |
कात्यायनी |
वृंदावन, उत्तर प्रदेश |
कर्ण |
कात्यायनी |
भैरव भूतनाथ |
46 |
विंध्यवासिनी |
विंध्याचल, उत्तर प्रदेश |
कमर |
विंध्यवासिनी |
भैरव महाकाल |
47 |
बलिपट्टनम |
केरल |
गला |
देवी |
भैरव अघोर |
48 |
रेणुका |
महाराष्ट्र |
होंठ |
रेणुका |
भैरव मल्लिकार्जुन |
49 |
महाकाली |
महाराष्ट्र |
पीठ |
महाकाली |
भैरव महाकाल |
50 |
मीनाक्षी |
मदुरै, तमिलनाडु |
नासिका |
मीनाक्षी |
भैरव सुंदरेश्वर |
51 |
दाक्षायणी |
कैलाश पर्वत, तिब्बत |
दाहिना हाथ |
दाक्षायणी |
महाकाल |
भारत और अन्य देशों में स्थित प्रमुख शक्तिपीठों का विवरण
1. पश्चिम बंगाल में स्थित शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल में सर्वाधिक शक्तिपीठ स्थित हैं।
- कालीघाट शक्तिपीठ (कोलकाता) – माता के बाएं पैर का अंगूठा गिरा था। देवी काली और भैरव नक्तेश्वर हैं।
- तारापीठ शक्तिपीठ (बीरभूम) – माता के नेत्र गिरे थे। देवी तारा और भैरव अखंडेश्वर हैं।
- नलहती शक्तिपीठ (बीरभूम) – माता की नाड़ी (अंतड़ियां) गिरी थीं। देवी कुशमांडा और भैरव योगेश हैं।
- अट्टाहास शक्तिपीठ (बीरभूम) – माता के अधर (ओष्ठ) गिरे थे। देवी फुल्लरा और भैरव विश्वेश हैं।
- बहुला शक्तिपीठ (बर्धमान) – माता का बायां हाथ गिरा था। देवी बहुला और भैरव बिड्युत हैं।
- जयंती शक्तिपीठ (बंगाल-त्रिपुरा सीमा) – माता का बायां जंघा (जांघ) गिरा था। देवी जयंती और भैरव कप्तेश्वर हैं।
2. असम में स्थित शक्तिपीठ
- कामाख्या शक्तिपीठ (गुवाहाटी) – माता की योनि गिरी थी। देवी कामाख्या और भैरव उमानंद हैं।
3. उत्तर प्रदेश में स्थित शक्तिपीठ
- वाराणसी (विशालाक्षी शक्तिपीठ) – माता की कर्णमणि (कान की मणि) गिरी थी। देवी विशालाक्षी और भैरव कालभैरव हैं।
- प्रयागराज (ललिता देवी शक्तिपीठ) – माता की दाहिनी हस्तलता गिरी थी। देवी ललिता और भैरव भैरवेश्वर हैं।
- विंध्यवासिनी शक्तिपीठ (विंध्याचल) – माता की कमर गिरी थी। देवी विंध्यवासिनी और भैरव महाकाल हैं।
4. मध्य प्रदेश में स्थित शक्तिपीठ
- उज्जैन (हरसिद्धि शक्तिपीठ) – माता के ऊर्ध्व ओष्ठ (ऊपरी होंठ) गिरे थे। देवी हरसिद्धि और भैरव भैरवनाथ हैं।
- चित्रकूट (शिवानी शक्तिपीठ) – माता का दायां वक्षस्थल गिरा था। देवी शिवानी और भैरव चंद्रशेखर हैं।
5. गुजरात में स्थित शक्तिपीठ
- अंबाजी शक्तिपीठ – माता का ह्रदय गिरा था। देवी अंबा और भैरव भैरवनाथ हैं।
- माधवपुर (गुजरात) – माता के वक्ष गिरे थे। देवी माधवेश्वरी और भैरव दक्ष हैं।
6. राजस्थान में स्थित शक्तिपीठ
- अजमेर (देवी गायत्री शक्तिपीठ) – माता की कलाई गिरी थी। देवी गायत्री और भैरव सर्वेश्वर हैं।
7. हिमाचल प्रदेश में स्थित शक्तिपीठ
- ज्वालामुखी शक्तिपीठ (कांगड़ा) – माता की जिह्वा (जीभ) गिरी थी। देवी ज्वाला और भैरव अंनल हैं।
- नैना देवी शक्तिपीठ (बिलासपुर) – माता की नेत्र गिरे थे। देवी नैना देवी और भैरव काल भैरव हैं।
8. महाराष्ट्र में स्थित शक्तिपीठ
- तुंगभद्रा शक्तिपीठ – माता का कुंडल (कान का आभूषण) गिरा था। देवी महालक्ष्मी और भैरव कराल हैं।
- रेणुका शक्तिपीठ – माता के होंठ गिरे थे। देवी रेणुका और भैरव मल्लिकार्जुन हैं।
9. नेपाल में स्थित शक्तिपीठ
- गुह्येश्वरी शक्तिपीठ (काठमांडू) – माता के घुटने गिरे थे। देवी गुह्येश्वरी और भैरव कपालीश्वर हैं।
10. पाकिस्तान में स्थित शक्तिपीठ
- हिंगलाज शक्तिपीठ (बलूचिस्तान) – माता का शिर (सिर) गिरा था। देवी हिंगलाज भवानी और भैरव भीमलोचन हैं।
11. श्रीलंका में स्थित शक्तिपीठ
- इन्द्रक्षी शक्तिपीठ – माता की पायल गिरी थी। देवी इन्द्रक्षी और भैरव राक्षस हैं।
12. तिब्बत में स्थित शक्तिपीठ
- कैलाश पर्वत (दाक्षायनी शक्तिपीठ) – माता का दाहिना हाथ गिरा था। देवी दाक्षायणी और भैरव महाकाल हैं।
पंचसागर शक्तिपीठ (बिहार) – माता के अधो ओष्ठ गिरे थे।
श्रीशैल शक्तिपीठ (आंध्र प्रदेश) – माता की कटी (कमर) गिरी थी।
कांचीपुरम शक्तिपीठ (तमिलनाडु) – माता की पीठ गिरी थी।
त्रिपुरा सुंदरी शक्तिपीठ (त्रिपुरा) – माता का दाहिना पैर गिरा था।
देवगढ़ शक्तिपीठ (झारखंड) – माता का हाथ गिरा था।
कांगड़ा शक्तिपीठ (हिमाचल प्रदेश) – माता के स्तन गिरे थे।
रामेश्वरम शक्तिपीठ (तमिलनाडु) – माता की हथेली गिरी थी।
31. मणिकर्णिका शक्तिपीठ (वाराणसी, उत्तर
प्रदेश)
- माता के कर्ण (कान) गिरे थे।
- देवी मणिकर्णिका और भैरव विश्वेश्वर हैं।
32. श्रीपरवता शक्तिपीठ (आंध्र प्रदेश)
- माता की दक्षिण जंघा (दाहिनी जांघ) गिरी थी।
- देवी श्रीपरवता वासिनी और भैरव श्रीपरवतेश्वर हैं।
33. गौरीकुंड शक्तिपीठ (उत्तराखंड)
- माता के निम्न दंत (निचले दांत) गिरे थे।
- देवी गौरीकुंडेश्वरी और भैरव त्र्यंबकेश्वर हैं।
34. देवकोटा शक्तिपीठ (ओडिशा)
- माता की नाभि गिरी थी।
- देवी देवकोटेयी और भैरव भैरवनाथ हैं।
35. कन्याकुमारी शक्तिपीठ (तमिलनाडु)
- माता की रीढ़ की हड्डी गिरी थी।
- देवी भागेश्वरी और भैरव नग्नेश्वर हैं।
36. करत्स्वर शक्तिपीठ (बंगाल - बांग्लादेश सीमा)
- माता की बायीं हथेली गिरी थी।
- देवी करत्स्वर और भैरव अमरेश हैं।
37. अष्टदश शक्तिपीठ (केरल)
- माता के दाएं पैर की अँगुली गिरी थी।
- देवी अष्टादशेश्वरी और भैरव भैरवेश्वर हैं।
38. वशिष्ठाश्रम शक्तिपीठ (अरुणाचल प्रदेश)
- माता के बाएं हाथ की उंगलियाँ गिरी थीं।
- देवी वशिष्ठेश्वरी और भैरव वशिष्ठनाथ हैं।
39. हिंगुलाज शक्तिपीठ (बलूचिस्तान, पाकिस्तान)
- माता का सिर गिरा था।
- देवी हिंगुलाज भवानी और भैरव भीमलोचन हैं।
40. करवीर शक्तिपीठ (कोल्हापुर, महाराष्ट्र)
- माता के तीन नेत्र गिरे थे।
- देवी महालक्ष्मी और भैरव किरातेश्वर हैं।
41. पुष्कर शक्तिपीठ (राजस्थान)
- माता की कलाइयाँ गिरी थीं।
- देवी सावित्री और भैरव अत्मेश्वर हैं।
42. रामगिरि शक्तिपीठ (छत्तीसगढ़)
- माता का दाहिना कंधा गिरा था।
- देवी कोटेश्वरी और भैरव विश्वरुपेश्वर हैं।
43. गिरनार शक्तिपीठ (गुजरात)
- माता की आँखें गिरी थीं।
- देवी अंबिका और भैरव दत्तात्रेय हैं।
44. शिवहर शक्तिपीठ (बिहार)
- माता का ह्रदय गिरा था।
- देवी शिवानी और भैरव चंद्रशेखर हैं।
45. पाटन शक्तिपीठ (नेपाल)
- माता का शरीर का एक भाग गिरा था।
- देवी भागेश्वरी और भैरव महादेव हैं।
46. गंधमादन पर्वत शक्तिपीठ (ओडिशा)
- माता का बाल गिरा था।
- देवी उग्रतारा और भैरव काल भैरव हैं।
47. सुगंधा शक्तिपीठ (बांग्लादेश)
- माता की नाक गिरी थी।
- देवी सुंदरी और भैरव त्र्यम्बकेश्वर हैं।
48. यमुनोत्री शक्तिपीठ (उत्तराखंड)
- माता के दांत गिरे थे।
- देवी यमुना देवी और भैरव दिव्यकेश्वर हैं।
49. तुंगनाथ शक्तिपीठ (उत्तराखंड)
- माता की रीढ़ की हड्डी गिरी थी।
- देवी तुंगेश्वरी और भैरव भूतनाथ हैं।
50. अमरकंटक शक्तिपीठ (मध्य प्रदेश)
- माता के बायें पैर की अंगुली गिरी थी।
- देवी कालिका और भैरव महेश्वर हैं।
51. रजतगिरि शक्तिपीठ (तिब्बत)
- माता का शरीर का रहस्यमय भाग गिरा था।
- देवी रजतगिरि वासिनी और भैरव कृष्णेश्वर हैं।
********V.K.Tiwari****************Bangalore************************************9424446706
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