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वामन अवतार- पूजा ओणम (Onam) वामन द्वादशी मंत्र

 

वामन अवतार की पूजा के विशेष दिन और तिथियां

भगवान वामन की पूजा मुख्य रूप से वामन द्वादशी और अन्य विशिष्ट अवसरों पर की जाती है।


1️ वामन द्वादशी (भाद्रपद शुक्ल द्वादशी) प्रमुख पर्व

📅 तिथि: भाद्रपद मास, शुक्ल पक्ष की द्वादशी
🔹 महत्व:

  • इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है।
  • व्रत करने से दान-पुण्य की प्राप्ति होती है और सभी पापों का नाश होता है।
  • राजा बलि और वामन अवतार की कथा सुनने का विशेष महत्व है।
  • इस दिन दान, व्रत, और भगवान विष्णु की विशेष पूजा का विधान है।

2️ देवउठनी एकादशी (कार्तिक शुक्ल एकादशी)

📅 तिथि: कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष की एकादशी
🔹 महत्व:

  • यह दिन भगवान विष्णु के योगनिद्रा से जागने का दिन माना जाता है।
  • इस दिन विष्णु पूजन के साथ वामन अवतार की कथा भी सुननी चाहिए।
  • इस दिन से विवाह और अन्य शुभ कार्य पुनः प्रारंभ होते हैं।

3️ पयस्विनी अमावस्या (चातुर्मास्य व्रत का समापन)

📅 तिथि: श्रावण अमावस्या
🔹 महत्व:

  • इस दिन भगवान वामन की पूजा करके चातुर्मास्य व्रत का समापन किया जाता है।
  • दान और ब्राह्मण भोज कराने का विशेष महत्व है।

4️ अन्य महत्वपूर्ण तिथियां:

🔹 अक्षय तृतीया: इस दिन वामन अवतार से जुड़ी दान-पुण्य परंपरा का पालन किया जाता है।
🔹 गुरुवार के दिन विशेष पूजन: भगवान वामन विष्णु का ही अवतार हैं, इसलिए गुरुवार को उनकी पूजा शुभ मानी जाती है।
🔹 रक्षाबंधन: इस दिन लक्ष्मी और बलि के भाई-बहन संबंध की कथा सुनने का महत्व है।


🔱 विशेष पर्व (Important Festivals Related to Vamana Avatar)

📅 कामदा एकादशीवामन अवतार की विशेष पूजा का दिन।
📅 वामन द्वादशीभाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को

 भगवान वामन का विशेष पूजन होता है।
📅 ओणम (Onam)यह पर्व विशेष रूप से केरल में मनाया जाता है, जो राजा बलि और वामन अवतार से जुड़ा हुआ है।

 वामन अवतार मंत्र, पूजा विधि, लाभ एवं पुराण संदर्भ | Vamana Avatar Mantra, Puja Benefits & Puranic References


🔱 वामन अवतार का महत्व (Significance of Vamana Avatar)


भगवान वामन, भगवान विष्णु के दस अवतारों (दशावतार) में से पाँचवें अवतार हैं। यह अवतार त्रेता युग में दैत्यराज बलि के अहंकार को नष्ट करने एवं धर्म की पुनर्स्थापना के लिए हुआ था। वामन अवतार ने तीन पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और पाताल को नापकर राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया।


🕉️ वामन अवतार मंत्र (Vamana Avatar Mantras)

1. मूल मंत्र (Mool Mantra)

🌿 ॐ नमो भगवते वामनाय।
🔹 Om Namo Bhagavate Vamanaya.



(भगवान वामन को नमन।)

2. ध्यान मंत्र (Dhyana Mantra)

शङ्खचक्रगदापद्मविभ्रतं करयुग्मकम्।
उपवीतधरं वामनं बालसूर्यसमप्रभम्॥

🔹 Shankha-Chakra-Gada-Padma-Vibhratam Karayugmakam,
🔹 Upaveet-Dharam Vamanam Bal-Surya-Sama-Prabham.

(शंख, चक्र, गदा, और पद्म धारण किए हुए, यज्ञोपवीत पहने हुए, बाल सूर्य के समान चमकने वाले भगवान वामन को प्रणाम।)

3. स्तुति मंत्र (Stuti Mantra)

वामनं चन्द्रसङ्काशं श्रियं कान्तिं शिवप्रियम्।
वन्देऽहं विष्णुवीर्यं तं ब्रह्मणः प्रियदर्शनम्॥

🔹 Vamanam Chandrasankasham Shriyam Kantim Shiva-Priyam,
🔹 Vande'ham Vishnu-Viryam Tam Brahmanah Priya-Darshanam.

(चंद्रमा के समान सुंदर, शिवप्रिय, ब्राह्मण रूपधारी वामन भगवान को मैं नमन करता हूँ।)

4. वामन गायत्री मंत्र (Vamana Gayatri Mantra)

ॐ त्रिविक्रमाय विद्महे वामनाय धीमहि।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥

🔹 Om Trivikramaya Vidmahe Vamanaya Dhimahi,
🔹 Tanno Vishnuh Prachodayat.

(हम त्रिविक्रम भगवान को जानते हैं, वामन रूप में ध्यान करते हैं, वे हमें सत्य की राह पर प्रेरित करें।)

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📜 पुराणों में वामन अवतार का संदर्भ (Puranic References to Vamana Avatar)

📖 श्रीमद्भागवत पुराण (भागवत महापुराण)स्कंध 8, अध्याय 18-23 में भगवान वामन के अवतार का विस्तार से वर्णन है।

📖 विष्णु पुराणवामन अवतार का वर्णन राजा बलि और गुरु शुक्राचार्य के साथ संवाद में मिलता है।

📖 महाभारतआदिपर्व और वनपर्व में वामन अवतार की कथा का संक्षिप्त उल्लेख है।

📖 पद्म पुराणइसमें वामन अवतार की पूजा विधि और महिमा का विस्तृत वर्णन किया गया है।


📜📖 वामन अवतार की कथा (Story of Vamana Avatar)

🔸 राजा बलि का उदय (Rise of King Bali)

दैत्य गुरु शुक्राचार्य के नेतृत्व में राजा बलि ने कठोर तपस्या और युद्ध कौशल से देवताओं को हराकर स्वर्ग लोक पर अधिकार कर लिया। देवताओं के राजा इंद्र को अपने सिंहासन से हाथ धोना पड़ा। बलि एक धार्मिक और दानी राजा थे, इसलिए सभी लोकों में उनकी ख्याति फैल गई।

🔸 देवताओं की प्रार्थना (Prayer of the Devas)

स्वर्ग से निष्कासित देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान ने माता अदिति के गर्भ से वामन अवतार लिया। वे एक छोटे ब्राह्मण (बालक) के रूप में प्रकट हुए और यज्ञोपवीत धारण किए हुए थे।

🔸 वामन अवतार और बलि से भिक्षा (Vamana Asks for Alms)

राजा बलि अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे, तभी भगवान वामन एक तेजस्वी ब्राह्मण के रूप में यज्ञशाला में पहुंचे। बलि ने आदरपूर्वक उनका स्वागत किया और कोई भी दान मांगने का वचन दिया। वामन ने मात्र तीन पग भूमि मांगी।

बलि ने हँसते हुए यह दान स्वीकार कर लिया, लेकिन शुक्राचार्य ने चेतावनी दी कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं, स्वयं विष्णु हैं। फिर भी, बलि अपने वचन से पीछे नहीं हटे और संकल्प ले लिया।

🔸 भगवान का विराट स्वरूप (Lord Expands to Trivikrama Form)

जैसे ही बलि ने दान का संकल्प लिया, भगवान वामन ने विराट रूप (त्रिविक्रम रूप) धारण कर लिया।
पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी और पाताल लोक नाप लिया।
दूसरे पग में स्वर्ग लोक को नाप लिया।
अब तीसरे पग के लिए कोई स्थान नहीं बचा, तब बलि ने अपने सिर को भगवान के चरणों में रख दिया।

भगवान ने बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर पाताल लोक का स्वामी बना दिया और उसे अमरत्व का आशीर्वाद दिया।


🌟 वामन अवतार की शिक्षा (Moral & Teachings of Vamana Avatar)

1️ अहंकार का नाश अवश्यंभावी है।
2️
सच्चे दानवीर को दान का फल अवश्य मिलता है।
3️
धर्म और भक्ति से भगवान को प्रसन्न किया जा सकता है।
4️
जो भी भगवान की शरण में जाता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।


🛕 वामन अवतार से जुड़े पर्व एवं अनुष्ठान (Festivals & Worship Related to Vamana Avatar)

📅 वामन द्वादशीभाद्रपद शुक्ल द्वादशी (Onam पर्व)
📅 कामदा एकादशीविशेष व्रत एवं पूजन का दिन
📅 गुरुवार विष्णु पूजनवामन अवतार की आराधना का शुभ दिन


🛕 विशेष उपाय (Special Remedies for Blessings of Vamana Bhagwan)

वामन द्वादशी के दिन भगवान वामन का पूजन करें।
पीले रंग के वस्त्र और पीले पुष्प अर्पित करें।
श्री विष्णु सहस्रनाम और वामन गायत्री मंत्र का जाप करें।
गरीब और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
तुलसी जी की सेवा करें और तुलसी पत्र से विष्णु पूजा करें।



📖 वामन अवतार की कथा (Story of Vmana Avatar)

🔸 राजा बलि का उदय (Rise of King Bali)

दैत्य गुरु शुक्राचार्य के नेतृत्व में राजा बलि ने कठोर तपस्या और युद्ध कौशल से देवताओं को हराकर स्वर्ग लोक पर अधिकार कर लिया। देवताओं के राजा इंद्र को अपने सिंहासन से हाथ धोना पड़ा। बलि एक धार्मिक और दानी राजा थे, इसलिए सभी लोकों में उनकी ख्याति फैल गई।

🔸 देवताओं की प्रार्थना (Prayer of the Devas)

स्वर्ग से निष्कासित देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान ने माता अदिति के गर्भ से वामन अवतार लिया। वे एक छोटे ब्राह्मण (बालक) के रूप में प्रकट हुए और यज्ञोपवीत धारण किए हुए थे।

वामन अवतार के बाद विष्णु का राजा बलि के द्वारपाल बनना और लक्ष्मी द्वारा मुक्ति

जब बलि ने गुरु शुक्राचार्य के निर्देश पर 100 अश्वमेध यज्ञ पूरे करने का संकल्प लिया, तो देवताओं को डर हुआ कि अगर यह यज्ञ पूरा हो गया, तो बलि इंद्र पद प्राप्त कर लेंगे। तब भगवान विष्णु ने वामन (बौने ब्राह्मण) के रूप में जन्म लिया और राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी।


🌿 वामन अवतार और राजा बलि की परीक्षा

राजा बलि, जो दानवीरता के लिए प्रसिद्ध थे, वामन के इस छोटे-से अनुरोध को देखकर प्रसन्न हो गए और कहा
"हे ब्राह्मणदेव! मैं आपको संपूर्ण पृथ्वी भी दे सकता हूँ, आप केवल तीन पग भूमि ही क्यों मांग रहे हैं?"

भगवान वामन ने मुस्कुराते हुए कहा
"राजन, एक ब्राह्मण को जितना चाहिए, उतना ही लेना चाहिए। मुझे केवल तीन पग भूमि पर्याप्त है।"

राजा बलि ने सहर्ष स्वीकृति दी। लेकिन जब उन्होंने जल लेकर संकल्प लेने का प्रयास किया, तो उनके गुरु शुक्राचार्य ने उन्हें सावधान करते हुए कहा
"राजन! यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं, स्वयं भगवान विष्णु हैं। यदि तुमने इन्हें यह दान दिया, तो तुम्हारा संपूर्ण साम्राज्य नष्ट हो जाएगा।"

बलि ने उत्तर दिया
"हे गुरुदेव! यदि यह विष्णु ही हैं, तो इन्हें दान देने से बढ़कर और कौन-सा पुण्य होगा? मैं अपने वचन से पीछे नहीं हट सकता।"

उन्होंने तुरंत जल अर्पण करके संकल्प लिया।


🔸 वामन अवतार और बलि से भिक्षा (Vamana Asks for Alms)

राजा बलि अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे, तभी भगवान वामन एक तेजस्वी ब्राह्मण के रूप में यज्ञशाला में पहुंचे। बलि ने आदरपूर्वक उनका स्वागत किया और कोई भी दान मांगने का वचन दिया। वामन ने मात्र तीन पग भूमि मांगी।

बलि ने हँसते हुए यह दान स्वीकार कर लिया, लेकिन शुक्राचार्य ने चेतावनी दी कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं, स्वयं विष्णु हैं। फिर भी, बलि अपने वचन से पीछे नहीं हटे और संकल्प ले लिया।

🔸 🌍 विष्णु का विराट रूप और बलि का पाताल गमन

जैसे ही बलि ने दान का संकल्प लिया, भगवान वामन ने विराट रूप (त्रिविक्रम रूप) धारण कर लिया।

तभी भगवान वामन ने अपना विराट स्वरूप धारण कर लिया। उनके पहले पग से संपूर्ण पृथ्वी और स्वर्गलोक नाप लिया गया। दूसरे पग से समस्त अंतरिक्ष और नर्क लोक आच्छादित हो गया। जब तीसरा पग रखने की बारी आई, तो राजा बलि ने बड़ी श्रद्धा से अपना मस्तक झुका दिया और कहा
"हे प्रभु! आपने संपूर्ण जगत को अपने चरणों में समेट लिया, अब तीसरा पग मेरे सिर पर रख दीजिए।"

भगवान ने बलि के मस्तक पर अपना पैर रखकर उसे पाताल लोक में भेज दिया।

पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी और पाताल लोक नाप लिया।
दूसरे पग में स्वर्ग लोक को नाप लिया।
अब तीसरे पग के लिए कोई स्थान नहीं बचा, तब बलि ने अपने सिर को भगवान के चरणों में रख दिया।

भगवान ने बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर पाताल लोक का स्वामी बना दिया और उसे अमरत्व का आशीर्वाद दिया।

 🔱 बलि की भक्ति और विष्णु का द्वारपाल बनना

जब बलि पाताल लोक में पहुंचे, तब उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की
"हे प्रभु! यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं, तो कृपा करके मेरे साथ रहें और मेरी रक्षा करें।"

भगवान विष्णु, अपने भक्त की निष्ठा और समर्पण से अत्यंत प्रसन्न थे। उन्होंने बलि को वरदान दिया

1.       तुम पाताल लोक के स्वामी बनोगे।

2.      तुम्हें अमरता का आशीर्वाद मिलेगा।

3.      मैं स्वयं तुम्हारे द्वारपाल के रूप में उपस्थित रहूंगा।

इस प्रकार, भगवान विष्णु ने स्वयं राजा बलि के महल के द्वार पर प्रहरी (द्वारपाल) के रूप में रहना स्वीकार कर लिया।


🌺 लक्ष्मी द्वारा बलि की मुक्ति: रक्षा बंधन की कथा

जब भगवान विष्णु ने राजा बलि से किया हुआ वचन निभाने के लिए पाताल लोक में निवास करना आरंभ कर दिया, तब माता लक्ष्मी को अत्यंत चिंता हुई। उन्होंने सोचा
"यदि मेरे स्वामी विष्णु पाताल में ही रह जाएंगे, तो मैं उनसे कैसे मिलूंगी?"

तब उन्होंने एक युक्ति बनाई और एक गरीब ब्राह्मणी के वेश में पाताल लोक में पहुँची। उन्होंने राजा बलि के पास जाकर कहा
"राजन! मैं बहुत दुखी हूँ। मेरा कोई भाई नहीं है, क्या आप मुझे अपना भाई स्वीकार करेंगे?"

राजा बलि ने स्नेहपूर्वक उत्तर दिया
"देवी! मैं आपको अपनी बहन के रूप में स्वीकार करता हूँ।"

इसके बाद लक्ष्मी जी ने बलि को रक्षा सूत्र (राखी) बांधी। बलि इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने लक्ष्मी जी से कहा
"बहन! मैं तुम्हें उपहार स्वरूप कुछ देना चाहता हूँ। जो भी मांगोगी, वह तुम्हें मिलेगा।"

लक्ष्मी जी मुस्कुराईं और कहा
"राजन! मुझे अपने पति विष्णु को लौटा दो।"

राजा बलि यह सुनकर चौंक गए, लेकिन उन्होंने अपने वचन का पालन किया और भगवान विष्णु को वैष्णव लोक (वैकुंठ) वापस जाने दिया।

इस प्रकार, राजा बलि और लक्ष्मी के बीच भाई-बहन का पवित्र रिश्ता स्थापित हुआ, और इसे ही रक्षाबंधन का एक महत्वपूर्ण पौराणिक आधार माना जाता है।






🌺 लक्ष्मी द्वारा बलि की मुक्ति: रक्षा बंधन की कथा

जब भगवान विष्णु ने राजा बलि से किया हुआ वचन निभाने के लिए पाताल लोक में निवास करना आरंभ कर दिया, तब माता लक्ष्मी को अत्यंत चिंता हुई। उन्होंने सोचा
"
यदि मेरे स्वामी विष्णु पाताल में ही रह जाएंगे, तो मैं उनसे कैसे मिलूंगी?"

तब उन्होंने एक युक्ति बनाई और एक गरीब ब्राह्मणी के वेश में पाताल लोक में पहुँची। उन्होंने राजा बलि के पास जाकर कहा
"
राजन! मैं बहुत दुखी हूँ। मेरा कोई भाई नहीं है, क्या आप मुझे अपना भाई स्वीकार करेंगे?"

राजा बलि ने स्नेहपूर्वक उत्तर दिया
"
देवी! मैं आपको अपनी बहन के रूप में स्वीकार करता हूँ।"

इसके बाद लक्ष्मी जी ने बलि को रक्षा सूत्र (राखी) बांधी। बलि इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने लक्ष्मी जी से कहा
"बहन! मैं तुम्हें उपहार स्वरूप कुछ देना चाहता हूँ। जो भी मांगोगी, वह तुम्हें मिलेगा।"

लक्ष्मी जी मुस्कुराईं और कहा
"
राजन! मुझे अपने पति विष्णु को लौटा दो।"

राजा बलि यह सुनकर चौंक गए, लेकिन उन्होंने अपने वचन का पालन किया और भगवान विष्णु को वैष्णव लोक (वैकुंठ) वापस जाने दिया।

इस प्रकार, राजा बलि और लक्ष्मी के बीच भाई-बहन का पवित्र रिश्ता स्थापित हुआ, और इसे ही रक्षाबंधन का एक महत्वपूर्ण पौराणिक आधार माना जाता है।

 🔔 निष्कर्ष

यह कथा भगवान विष्णु और राजा बलि की भक्ति, दानशीलता और वचनबद्धता को दर्शाती है। राजा बलि की परीक्षा के बाद विष्णु ने उनके साथ न्याय किया और स्वयं उनके द्वारपाल बने। लक्ष्मी जी ने अपनी चतुराई से अपने पति को वापस पाया और रक्षाबंधन पर्व की स्थापना हुई। इस कथा का संदेश यह है कि धर्म, सत्य, भक्ति, और वचनबद्धता ही जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है। 🙏


  कथा का सार और संदेश

  • दानवीरता और भक्ति: राजा बलि ने अपने संपूर्ण साम्राज्य का दान देकर धर्म और सत्य का सर्वोच्च उदाहरण प्रस्तुत किया।
  • भगवान का भक्त प्रेम: विष्णु ने अपने परम भक्त बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाकर उनकी भक्ति का सम्मान किया।
  • रक्षाबंधन का संदेश: इस कथा से यह भी पता चलता है कि भाई-बहन के रिश्ते में प्रेम, सम्मान और समर्पण कितना महत्वपूर्ण है।
  • वचन का पालन: चाहे बलि हो या विष्णु, दोनों ने अपने-अपने वचन का पालन किया, जिससे यह सिद्ध होता है कि धर्म में वचनबद्धता का कितना महत्व है।

    🌟 कथा का सार और संदेश

    1. दानवीरता और भक्ति: राजा बलि ने अपने संपूर्ण साम्राज्य का दान देकर धर्म और सत्य का सर्वोच्च उदाहरण प्रस्तुत किया।
    2. भगवान का भक्त प्रेम: विष्णु ने अपने परम भक्त बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाकर उनकी भक्ति का सम्मान किया।
    3. रक्षाबंधन का संदेश: इस कथा से यह भी पता चलता है कि भाई-बहन के रिश्ते में प्रेम, सम्मान और समर्पण कितना महत्वपूर्ण है।
    4. वचन का पालन: चाहे बलि हो या विष्णु, दोनों ने अपने-अपने वचन का पालन किया, जिससे यह सिद्ध होता है कि धर्म में वचनबद्धता का कितना महत्व है।
    1. देवी भागवत पुराणरक्षाबंधन का ऐतिहासिक संदर्भ।

    🛕 विशेष उपाय (Special Remedies for Blessings of Vamana Bhagwan)

    वामन द्वादशी के दिन भगवान वामन का पूजन करें।
    पीले रंग के वस्त्र और पीले पुष्प अर्पित करें।
    श्री विष्णु सहस्रनाम और वामन गायत्री मंत्र का जाप करें।
    गरीब और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
    तुलसी जी की सेवा करें और तुलसी पत्र से विष्णु पूजा करें।


    🙏 जय वामन भगवान 🙏
    (May Lord Vamana bless you with wisdom, prosperity, and success!)

    Lord Vamana bless you with wisdom, prosperity, and success!)

    🔱 वामन अवतार से जुड़े प्रमुख पुराणों और उनकी संबंधित बातें 🔱

    1️ श्रीमद्भागवत महापुराण (8.18-8.23 अध्याय)वामन अवतार का विस्तार से वर्णन, त्रिविक्रम रूप धारण कर बलि से स्वर्ग वापस लेना, बलि को पाताल लोक का राजा बनाना।

    2️ विष्णु पुराण (1.17-1.20 अध्याय)वामन अवतार के माध्यम से दैत्यों के बढ़ते प्रभाव को रोककर धर्म की पुनः स्थापना।

    3️ पद्म पुराण (उत्तर खंड)वामन भगवान के उपदेश और बलि की भक्ति को दर्शाया गया है, जिसमें उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान मिलता है।

    4️ ब्रह्मांड पुराणबलि की दानशीलता और वामन अवतार की कथा के महत्व को दर्शाया गया है, विशेष रूप से व्रत और पूजन की विधि का उल्लेख।

    5️ स्कंद पुराण वामन द्वादशी व्रत की महिमा और इसे करने से दान, धर्म एवं मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख।

    6️ अग्नि पुराणवामन अवतार के माध्यम से भक्ति और दानशीलता की सर्वोच्चता को बताया गया है।

    📖 निष्कर्षवामन अवतार का उद्देश्य केवल बलि को पराजित करना नहीं था, बल्कि धर्म की पुनः स्थापना, अहंकार का नाश, और सच्ची भक्ति व दानशीलता की महिमा को प्रकट करना था। 🙏

    स्कंद पुराण में वामन द्वादशी व्रत की महिमा 📜

    1️ वामन द्वादशी व्रत करने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्त होता है।

    2️ इस दिन व्रत, उपवास और वामन भगवान की पूजा करने से दान, धर्म और पुण्यफल की वृद्धि होती है।

    3️ व्रती को ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र और जलदान करना चाहिए, जिससे समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

    4️ जो भक्त श्रद्धा से इस व्रत का पालन करता है, उसे श्रीहरि की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

    5️ स्कंद पुराण में कहा गया है कि वामन द्वादशी का व्रत करने से स्वर्ग, यश और धन की प्राप्ति होती है तथा अंत में विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। 🙏

    🔔 निष्कर्ष

    यह कथा भगवान विष्णु और राजा बलि की भक्ति, दानशीलता और वचनबद्धता को दर्शाती है। राजा बलि की परीक्षा के बाद विष्णु ने उनके साथ न्याय किया और स्वयं उनके द्वारपाल बने। लक्ष्मी जी ने अपनी चतुराई से अपने पति को वापस पाया और रक्षाबंधन पर्व की स्थापना हुई। इस कथा का संदेश यह है कि धर्म, सत्य, भक्ति, और वचनबद्धता ही जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है। 🙏 जय वामन भगवान 🙏 

    🔱 वामन अवतार से जुड़े प्रमुख पुराणों और उनकी संबंधित बातें 🔱

    1️⃣ श्रीमद्भागवत महापुराण (8.18-8.23 अध्याय) – वामन अवतार का विस्तार से वर्णन, त्रिविक्रम रूप धारण कर बलि से स्वर्ग वापस लेना, बलि को पाताल लोक का राजा बनाना।

    2️⃣ विष्णु पुराण (1.17-1.20 अध्याय) – वामन अवतार के माध्यम से दैत्यों के बढ़ते प्रभाव को रोककर धर्म की पुनः स्थापना।

    3️⃣ पद्म पुराण (उत्तर खंड) – वामन भगवान के उपदेश और बलि की भक्ति को दर्शाया गया है, जिसमें उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान मिलता है।

    4️⃣ ब्रह्मांड पुराण – बलि की दानशीलता और वामन अवतार की कथा के महत्व को दर्शाया गया है, विशेष रूप से व्रत और पूजन की विधि का उल्लेख।

    5️⃣ स्कंद पुराण – वामन द्वादशी व्रत की महिमा और इसे करने से दान, धर्म एवं मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख।

    6️⃣ अग्नि पुराण – वामन अवतार के माध्यम से भक्ति और दानशीलता की सर्वोच्चता को बताया गया है।

    (May वामन पूजा के लाभ (Benefits of Worshiping Vamana Avatar)

    धन, समृद्धि और व्यापार में वृद्धि
    भ्रष्टाचार, दंभ और अहंकार नाश
    संतान सुख और वैवाहिक जीवन में शांति
    सभी प्रकार के ऋणों से मुक्ति
    अकाल मृत्यु और शारीरिक कष्टों से रक्षा



     

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    *****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं ना...

    दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

    दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

    श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

    श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

    श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

    संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

    गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

    28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

    गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

    सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

    श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

    श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

    विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

    विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

    कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

    हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...