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नवदुर्गा चंद्रघंटा का तृतीय -निवास,दीपक, पूजा समय,रोग,सामग्री,vartika rang,कथा

 

1.      माँ

चंद्रघंटा नवदुर्गा का तृतीय स्वरूप हैं-

 माँ चंद्रघंटा शुक्र ग्रह (सौंदर्य और आकर्षण की देवी)

संकेत: माँ चंद्रघंटा का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और सौम्य है। इनका संबंध शुक्र ग्रह से है, जो भौतिक सुख-संपत्ति, आकर्षण और कला का कारक है।

शास्त्रीय प्रमाण:
🔹 "शुक्रो भार्याकरः प्रोक्तो भार्यालक्ष्मीप्रदायकः" (बृहत्पाराशर होरा शास्त्र 3.46)
(अर्थ: शुक्र विवाह, प्रेम और ऐश्वर्य देने वाला ग्रह है।)

👉 उपाय: माँ चंद्रघंटा की आराधना से शुक्र ग्रह के दोष दूर होते हैं, जिससे वैवाहिक जीवन सुखी होता है और विलासिता में वृद्धि होती है।

 धनु, मीन, सिंह, कर्क, मेष, वृश्चिक राशि एवं लग्न वालों के लिए विशेष उपयोगी: कष्ट, चिंता एवं विवाद पर नियंत्रण होगा।
For Sagittarius, Pisces, Leo, Cancer, Aries, and Scorpio zodiac signs and ascendants: Troubles, worries, and disputes will be controlled.

2.      परिचय (Introduction)

माँ चंद्रघंटा नवदुर्गा का तृतीय स्वरूप हैं। इनका यह नाम मस्तक पर अर्धचंद्र के कारण पड़ा, जो घंटे के समान प्रतीत होता है। देवी का यह रूप शांत और सौम्य होते हुए भी अत्यंत शक्तिशाली और दुष्टों का संहार करने वाला है।

🔹 मूल स्रोत: देवी भागवत महापुराण, मार्कंडेय पुराण, दुर्गा सप्तशती, श्रीमद्भागवत महापुराण आदि।

1. जन्म युग (Birth Era)

माँ चंद्रघंटा का प्राकट्य सतयुग में हुआ। यह रूप माता पार्वती का ही एक दिव्य स्वरूप है। जब भगवान शिव से विवाह हेतु माता ने घोर तपस्या की और फिर स्वयं शिव ने उन्हें इस रूप में दर्शन दिए, तब माता ने यह रूप धारण किया।

2. किसकी बेटी? (Whose Daughter?)

माँ चंद्रघंटा हिमालयराज की पुत्री हैं। वे स्वयं माता पार्वती का ही रूप हैं, जो भगवान शंकर की अर्धांगिनी बनीं।

3. कौन-सी सिद्धि प्रदान करती हैं? (Which Siddhi Do They Grant?)

माँ चंद्रघंटा साधकों को अभय (निर्भयता), अदृश्य शक्ति, और गूढ़ ज्ञान की सिद्धि प्रदान करती हैं। इनके साधक को अलौकिक दिव्य शक्तियाँ प्राप्त होती हैं, जिससे वह किसी भी बाधा को पार कर सकता है।

4. विशेषता (Special Characteristics)

  • इनके मस्तक पर अर्धचंद्र सुशोभित होता है, जो घंटा के आकार में दिखाई देता है, इसलिए इन्हें "चंद्रघंटा" कहा जाता है।
  • यह स्वरूप शांत, सौम्य और कल्याणकारी होते हुए भी रौद्र रूप धारण कर दुष्टों का संहार करने वाला है।
  • इनका वाहन सिंह है, जो पराक्रम और वीरता का प्रतीक है।
  • माँ के स्वरूप से सिंह गर्जना जैसी ध्वनि निकलती है, जिससे शत्रु भयभीत हो जाते हैं।

5. आकार प्रकार (Form & Appearance)

 

  • माँ चंद्रघंटा का रूप दशभुजा (दस भुजाओं वाली) है।
  • वे तीन नेत्रों से युक्त हैं, जो अतीत, वर्तमान और भविष्य को देखने की शक्ति रखते हैं।
  • इनके हाथों में अनेक अस्त्र-शस्त्र सुशोभित हैं, जिनमें तलवार, त्रिशूल, गदा, कमल और धनुष शामिल हैं।
  • माँ का स्वरूप स्वर्णमयी (सुनहरे रंग का) है।

6. वस्त्र, वाहन एवं रंग (Clothing, Vehicle & Color)

  • वस्त्र: स्वर्णिम (सोने के समान) आभायुक्त लाल व पीले रंग के वस्त्र।
  • वाहन: सिंह जो शक्ति और निर्भयता का प्रतीक है।
  • रंग: स्वर्ण और लाल रंग इनके पूजन में शुभ माने जाते हैं।

7. अस्त्र-शस्त्र और दैत्य संहार (Weapons & Demon Annihilation)

माँ चंद्रघंटा ने महिषासुर व अन्य दैत्यों का संहार किया था। उनके क्रोध से भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें माँ ने सिंह पर सवार होकर असुरों का नाश किया।

8. निवास स्थान (Residence Place)

माँ चंद्रघंटा का निवास सिद्धपीठों और पर्वतीय क्षेत्रों में माना जाता है। देवी का प्रमुख मंदिर वाराणसी, उत्तर प्रदेश में स्थित है

9. दीपक की संख्या, वर्तिका और पूजा सामग्री (Number of Lamps, Wick & Worship Materials)

  • दीपक संख्या: 9
  • वर्तिका (बत्ती का रंग): लाल और सफेद
  • पूजा करने वाले के वस्त्र: लाल या पीले रंग के शुभ माने जाते हैं।
  • दिशा: पूर्व दिशा में मुख करके पूजा करनी चाहिए।
  • दीपक की दिशा: उत्तर-पूर्व दिशा में रखना शुभ होता है।

10. मुख की दिशा (Face Direction of Worshipper)

पूजा करने वाले का मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।


📖 कथा (Legend) – श्रीराम के संदर्भ में

वाल्मीकि रामायण और अन्य ग्रंथों में माँ चंद्रघंटा का विशेष उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन यह माना जाता है कि जब श्रीराम ने रावण पर विजय प्राप्त करने हेतु माँ दुर्गा का पूजन किया, तब माँ के विभिन्न रूपों को प्रसन्न किया गया। श्रीराम ने माता चंद्रघंटा की कृपा से अद्भुत शक्ति प्राप्त की थी, जिससे वे युद्ध में अपराजेय रहे।

शास्त्रों के अनुसार, जब महिषासुर ने त्रिलोक पर आक्रमण किया, तब देवताओं की स्तुति से माँ प्रकट हुईं। उन्होंने घोर युद्ध किया और सिंह पर आरूढ़ होकर असुरों का संहार किया।


पूजा का समय (Best Time for Worship)

 माँ चंद्रघंटा की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है।
  • शुभ मुहूर्त: प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त या अभिजीत मुहूर्त में।(11:59-12:45)

चंद्रमा के प्रभाव से संबंधित होने के कारण रात्रि काल में भी इनकी पूजा फलदायी मानी जाती है 🌿 देवी चंद्रघंटा की महिमा (Glory of Maa Chandraghanta)

🔹 देवी भागवत महापुराण (स्कंध 3, अध्याय 5, श्लोक 16-18) में लिखा है

🔹 "या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"

👉 अर्थ: देवी समस्त संसार में शक्ति स्वरूप से स्थित हैं, और उनके पूजन से शक्ति एवं विजय की प्राप्ति होती है।


📖 3. माँ चंद्रघंटा के कार्य एवं सिद्धियाँ (Powers & Siddhis of Maa Chandraghanta)

🔹 1. अभयता एवं निर्भीकता प्रदान करना:
जो भक्त माता की उपासना करता है, उसे किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता। वह अदृश्य शक्तियों से भी रक्षा पाता है।

🔹 2. दिव्य चक्षु और गूढ़ ज्ञान:
देवी की कृपा से साधक को तीसरा नेत्र खुलने की अनुभूति होती है, जिससे वह दिव्य ज्ञान प्राप्त कर सकता है।

🔹 3. रोग एवं मानसिक शांति:
माँ के पूजन से मस्तिष्क रोग, मानसिक विकार, एवं तनाव समाप्त हो जाते हैं।

🔹 4. विजय और पराक्रम:
युद्ध क्षेत्र में जाने वाले योद्धाओं को माता की पूजा अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि माँ चंद्रघंटा उन्हें अपराजेय बनाती हैं।

🔹 5. कष्टों का नाश:
देवी का यह स्वरूप भक्तों के समस्त भूत-प्रेत बाधाओं, शनि दोष, और दुष्ट आत्माओं से रक्षा करता है।


📖 4. पूजा विधान एवं शुभ मुहूर्त (Worship Method & Auspicious Time)

🔹 नवरात्रि के तृतीय दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाती है।
🔹 अभिजीत मुहूर्त या ब्रह्म मुहूर्त में पूजा करना श्रेष्ठ होता है।
🔹 रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देना विशेष लाभकारी होता है।

📜 पूजा सामग्री (Worship Materials)

लाल व पीले फूल
शुद्ध घी का दीपक
गुड़ एवं दूध का प्रसाद
सिंदूर, रोली, अक्षत
घंटा और शंख ध्वनि अनिवार्य

🔹 मार्कंडेय पुराण (अध्याय 81, श्लोक 9-10) में वर्णन है

🔹 "सर्वे देवाः समायाता वाजिप्रभृति वाहना।
शंखघण्टा रवं कुर्वन्ति सिद्धचारण सेविताः॥"

👉 अर्थ: जब देवी पूजी जाती हैं, तब शंख और घंटा ध्वनि से समस्त वातावरण पवित्र हो जाता है।


📖 5. माँ चंद्रघंटा का अस्त्र-शस्त्र (Weapons of Maa Chandraghanta)

  • त्रिशूल: शत्रु विनाश हेतु।
  • गदा: बल व पराक्रम का प्रतीक।
  • तलवार: न्याय और धर्म का रक्षक।
  • धनुष-बाण: अचूक लक्ष्यसाधन का प्रतीक।
  • कमल: शांति और करुणा का प्रतीक।

🔹 श्रीमद्भागवत महापुराण (स्कंध 8, अध्याय 10, श्लोक 23) में कहा गया है

🔹 "शूलायुधेन चिक्षेप बाणानां च शतैः पृथक्।
सुरासुराणां प्राणाय धर्मरूपा च चंडिका॥"

👉 अर्थ: देवी ने अपने शूल, बाण और अन्य अस्त्रों से असुरों का संहार किया और धर्म की स्थापना की।


📖 6. दिशा, दीपक एवं साधक के वस्त्र (Direction, Lamps & Worshipper's Clothing)

  • पूजा की दिशा: पूर्व दिशा
  • दीपक की संख्या: 9 (नवग्रह संतुलन हेतु)
  • वस्त्र: लाल या पीले
  • दीपक की दिशा: उत्तर-पूर्व (ईशान कोण)
  • वर्तिका (बत्ती का रंग): लाल व सफेद

🔹 स्कंद पुराण (अध्याय 12, श्लोक 14-15) में उल्लेख है

🔹 "पूर्वेण पूजयेद् देवी समृद्धिं प्राप्नुयाद् ध्रुवम्।
दीपेन पूजनं श्रेष्ठं सर्वसिद्धिफलप्रदम्॥"

👉 अर्थ: देवी को पूर्व दिशा में पूजने से साधक को सिद्धि प्राप्त होती है, और दीपक जलाने से सर्वसिद्धि फल प्राप्त होता है।


🌸 मंत्र (Mantra)

ध्यान मंत्र:
🔹 पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्र कैर्युता।
🔹 प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघंटेति विश्रुता॥

बीज मंत्र:
🔹 ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः॥

स्तुति मंत्र:
🔹 या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
🔹 नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


📖 2. कथा (Legend with Scriptural Proofs)

🌿 देवी चंद्रघंटा और उनका प्राकट्य

माँ चंद्रघंटा का प्राकट्य तब हुआ जब माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने हेतु कठोर तपस्या की।

🔹 श्रीमद्भागवत महापुराण (स्कंध 4, अध्याय 6, श्लोक 44-45) में उल्लेख है

🔹 "सा तं विभान्तं वपुषा नवात्मना
सम्पूज्य देव्या सुमनोभिरात्मनः॥"

👉 अर्थ: जब माता पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न किया, तब उन्होंने सौम्य रूप धारण कर पार्वती को आशीर्वाद दिया।

💠 विवाह के समय, जब भगवान शिव अत्यंत रुद्र व भयंकर गणों के साथ कैलाश से पधारे, तब देवी ने उन्हें शांत करने हेतु यह चंद्रघंटा स्वरूप धारण किया। यह रूप सौम्यता और शक्ति का अद्भुत संगम था।


माँ चंद्रघंटा के द्वारा संहार किए गए दैत्यों का  विवरण
🌿 देवी चंद्रघंटा और महिषासुर –


 

🔹 1. महिषासुर भैंसे के रूप में महाबली दैत्य

(क) स्वरूप (Appearance)

  • महिषासुर एक महाबली राक्षस था, जिसका सिर एक भैंसे के समान था और शरीर विशालकाय।
  • उसकी आँखें रक्त के समान लाल थीं और उसका पूरा शरीर तेजस्वी काले रंग का था।
  • वह रूप बदलने में सक्षम था, इसलिए कभी वह मनुष्य तो कभी भैंसे का रूप धारण कर लेता था।

(ख) शक्ति एवं सिद्धियाँ (Powers & Abilities)

  • महिषासुर ने ब्रह्माजी की घोर तपस्या कर वरदान प्राप्त किया था कि कोई भी पुरुष उसे नहीं मार सकता
  • उसके पास अत्यंत कठोर चमड़ी थी, जिसे सामान्य अस्त्र-शस्त्र भेद नहीं सकते थे।
  • उसकी शक्ति इतनी अधिक थी कि उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया और देवताओं को पराजित कर दिया।
  • वह एक साथ हजारों योद्धाओं के बराबर बल रखता था

📖 प्रमाण दुर्गा सप्तशती (अध्याय 2, श्लोक 31-35)
🔹 "महिषासुर सेनानीः खंड-खंडं व्यशातयत्।
ततः शूलं च चिक्षेप चिच्छेदास्य च चंद्रिका॥"

👉 अर्थ: जब महिषासुर की सेना देवी से युद्ध करने आई, तब माँ चंद्रघंटा ने अपने शूल और तलवार से असुरों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।

(ग) युद्ध क्षमता (Battle Ability)

  • महिषासुर के पास एक विशाल सेना थी, जिसमें रथ, गज (हाथी), घुड़सवार, और पैदल सैनिक थे।
  • वह गदा, तलवार, और त्रिशूल से युद्ध करने में निपुण था।
  • उसकी मुख्य शक्ति शरीर परिवर्तन थी, जिससे वह देवताओं को भ्रमित करता था।

(घ) संहार का विवरण (Death by Maa Chandraghanta)

  • जब महिषासुर देवी से युद्ध करने आया, तब माँ चंद्रघंटा ने पहले त्रिशूल से उसके शरीर को भेद दिया
  • जब उसने भैंसे का रूप धारण कर सिंह पर आक्रमण किया, तब देवी ने तलवार से उसका सिर काट दिया

🔹 दुर्गा सप्तशती (मार्कंडेय पुराण, अध्याय 2, श्लोक 31-35) में लिखा है

🔹 "महिषासुर सेनानीः खंड-खंडं व्यशातयत्।
ततः शूलं च चिक्षेप चिच्छेदास्य च चंद्रिका॥"

👉 अर्थ: जब महिषासुर और उसकी सेना ने स्वर्ग पर आक्रमण किया, तब माँ चंद्रघंटा ने अपने त्रिशूल से असुरों का अंत कर दिया।

🔹 2. चिक्षुर महिषासुर का सेनापति

(क) स्वरूप

  • यह एक विशालकाय असुर था जिसका शरीर अत्यंत कठोर एवं लोहित वर्ण (लाल रंग) का था।
  • इसकी आँखें चमकती हुई अंगारों के समान थीं।
  • यह चार भुजाओं वाला था और प्रत्येक भुजा में धनुष, तलवार, गदा, और त्रिशूल धारण करता था।

(ख) शक्ति एवं सिद्धियाँ

  • यह महिषासुर का सबसे बड़ा सेनापति था और उसकी सेना का संचालन करता था।
  • यह एक ही साथ हजारों बाण छोड़ सकता था
  • इसे वरदान था कि इसके शरीर पर कोई भी साधारण हथियार प्रभावी नहीं होगा

📖 प्रमाण दुर्गा सप्तशती (अध्याय 2, श्लोक 37-41)
🔹 "ततो ग्रहीतवा धनुः सशरं च जगन्मयी।
शरैः शतशतोत्कृष्टैः चिक्षुरं समवारयत्॥"

👉 अर्थ: जब चिक्षुर नामक असुर देवी से युद्ध करने आया, तब माता ने धनुष उठाकर बाणों से उसका अंत कर दिया।

(ग) संहार

  • देवी चंद्रघंटा ने अपने बाणों से इसके शरीर को भेद दिया और जब यह मूर्छित होकर गिरा, तब देवी ने तलवार से इसका सिर काट दिया

🔹 3. चामर असुर योद्धा जो गदा धारण करता था

(क) स्वरूप

  • इसका शरीर गज (हाथी) के समान विशालकाय था।
  • यह हमेशा एक विशाल गदा धारण करता था।
  • इसकी चमड़ी कछुए की पीठ के समान कठोर थी।

(ख) शक्ति एवं सिद्धियाँ

  • इसे यह शक्ति प्राप्त थी कि कोई भी बाण इसे भेद नहीं सकता
  • यह एक ही प्रहार में 100 हाथियों की शक्ति से प्रहार कर सकता था

(ग) संहार

  • माँ चंद्रघंटा ने इसपर पहले त्रिशूल से वार किया, जिससे यह अर्धमूर्छित हो गया।
  • फिर देवी ने अपनी गदा से इसका सिर फोड़ दिया

🔹 4. उदग्र विशाल पर्वत के समान असुर

(क) स्वरूप

  • इसका शरीर एक बड़े पर्वत के समान विशाल था।
  • इसका रंग गहरा नीला था और यह दावानल (अग्नि) के समान प्रज्वलित दिखाई देता था।

(ख) शक्ति एवं सिद्धियाँ

  • इसकी शक्ति थी कि यह अपने शरीर को हजारों गुना बड़ा कर सकता था
  • यह भूकंप उत्पन्न करने में सक्षम था
  • इसे यह वरदान प्राप्त था कि जब तक यह क्रोधित रहेगा, तब तक इसे कोई पराजित नहीं कर सकता

(ग) संहार

  • माँ चंद्रघंटा ने इसे पहले अपने त्रिशूल से घायल किया
  • जब यह पर्वत के आकार का हुआ, तब देवी ने इसे अपनी गदा से कुचलकर समाप्त कर दिया

🔹 5. कराल भीषण दैत्य

(क) स्वरूप

  • यह राक्षसों का सबसे भयंकर योद्धा था।
  • इसका शरीर कई शस्त्रों से ढका हुआ था और इसका चेहरा एक भयानक सिंह के समान था।

(ख) शक्ति एवं सिद्धियाँ

  • इसे यह शक्ति थी कि यह अपने शरीर को अग्नि के समान प्रज्वलित कर सकता था
  • यह अपनी ज्वालाओं से किसी भी शत्रु को भस्म करने में सक्षम था

(ग) संहार

  • देवी ने अपने कमंडलु से अमृत जल का छिड़काव किया, जिससे इसकी अग्नि शांत हो गई।
  • फिर देवी ने अपनी तलवार से इसका सिर काट दिया

 संहार किया।

💠 इस युद्ध में माँ ने अपनी सिंह पर आरूढ़ होकर सिंह गर्जना की, जिससे असुर भयभीत हो गए।

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गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...