भद्रा स्वरूप एवं राहुकाल की अधिष्ठात्री देवी . भद्रा एवं राहुकाल में दुर्गा पूजा – आपत्ति एवं विपत्ति दूर -01,4,5,8april vishesh,
गृह स्थापना एवं घट स्थापना के समय इस प्रकार हैं:
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सामान्य मुहूर्त: प्रातः 06:17 - 07:09
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उत्तम मुहूर्त: प्रातः 10:22 - 10:41
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सर्वोत्तम घट स्थापना मुहूर्त: दोपहर 12:24 - 12:49
भद्रा एवं राहुकाल में दुर्गा पूजा – आपत्ति एवं विपत्ति दूर करने का महत्व
भद्रा काल: भद्रा काल की तिथियां और समय पंचांग के अनुसार निर्धारित होते हैं। अप्रैल 2025 में भद्रा काल की तिथियां
अप्रैल 2025 में भद्रा काल एवं देवी पूजन 🚩
🔹 1 अप्रैल – 2 अप्रैल (भद्रा काल: 16:12 - 14:40)
✅ इस समय क्या करें?
✔️ माँ दुर्गा की विशेष आराधना करें।
✔️ "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे" मंत्र का जाप करें।
✔️ राहु-केतु दोष निवारण के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
✔️ हवन करें: काले तिल, गुड़ और घी से हवन करना विशेष फलदायी होगा।
📖 संदर्भ (देवी भागवत पुराण, सप्तम स्कंध, 38वां अध्याय):
"भद्रायां यः सदा पूज्येत देवी दुर्गा सदाशिवा।
स भवेत् मुक्तबन्धश्च राज्यम् प्राप्यते निश्चितम् ॥"
(भद्रा काल में जो भक्त दुर्गा की पूजा करता है, वह बंधनों से मुक्त होकर राजयोग प्राप्त करता है।)
🔹 4 अप्रैल (भद्रा विष्टि करण: 20:13 - 5 अप्रैल 07:45)
✅ विशेष:
✔️ रात्रि जागरण करके भगवती चंडिका का पूजन करें।
✔️ माँ दुर्गा के छिन्नमस्ता स्वरूप की पूजा करें।
✔️ रात्रि 12 बजे से पहले दुर्गा सप्तशती का पाठ पूर्ण कर लें।
✔️ संकटों को दूर करने के लिए "श्री सूक्त" और "कवच" का पाठ करें।
📖 संदर्भ (मार्कंडेय पुराण, दुर्गा सप्तशती, अध्याय 5, श्लोक 16):
"या देवी सर्वभूतेषु भद्रा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"
(भद्रा देवी स्वयं भगवती दुर्गा का ही स्वरूप है। जो इस समय पूजा करता है, वह सभी दोषों से मुक्त हो जाता है।)
🔹 8 अप्रैल (भद्रा विष्टि करण: 08:36 - 21:21)
✅ क्या करें?
✔️ माँ दुर्गा को सिंदूर, लाल वस्त्र, गुड़ और नारियल अर्पित करें।
✔️ "श्री दुर्गा सप्तशती" के सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें।
✔️ यदि शत्रु बाधा हो, तो माँ चंडी के "अर्गला स्तोत्र" और "कीलक स्तोत्र" का पाठ करें।
✔️ हवन करें: काली मिर्च, इलायची, कपूर मिलाकर आहुति दें।
📖 संदर्भ (निर्णयामृत ग्रंथ, अध्याय 7):
"विष्टीं त्यक्त्वा महाष्टंयाम मम पूजां करोति यः।
तस्य पूजा फलं न स्यात्तेनाहं अवमानिता॥"
(यदि कोई व्यक्ति भद्रा को छोड़कर महाष्टमी को मेरी पूजा करता है, तो उसे पूजा का कोई फल प्राप्त नहीं होगा।)
🔹 12 अप्रैल (भद्रा काल: 03:26 - 16:40)
✅ क्या करें?
✔️ अमावस्या प्रभाव होने से "महाकाली" का पूजन करें।
✔️ भूत-प्रेत, नकारात्मक ऊर्जा नाश के लिए "कालरात्रि देवी" का आह्वान करें।
✔️ राहु-केतु दोष निवारण के लिए "माँ दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र" पढ़ें।
📖 संदर्भ (कालिका पुराण, अध्याय 11):
"भद्रायां यदि पूज्येहं सर्व सिद्धि प्रदायिनी।
काले कालेश्वरी भूत्वा सर्वान् दोषान् निवारयेत् ॥"
(भद्रा में माँ की पूजा करने से सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं और जीवन के समस्त दोष समाप्त होते हैं।)
🔹 16 अप्रैल (भद्रा विष्टि करण: 00:11 - 13:16)
✅ क्या करें?
✔️ प्रातः काल में देवी दुर्गा का अभिषेक करें।
✔️ "रुद्राक्ष" और "चम्पा पुष्प" से माँ का पूजन करें।
✔️ संतान सुख एवं गृह कल्याण के लिए "श्री सिद्ध कुंजिका स्तोत्र" का पाठ करें।
✔️ कालसर्प दोष निवारण हेतु "राहु मंत्र" का जाप करें।
📖 संदर्भ (महाभारत, अनुशासन पर्व, अध्याय 161):
"भद्रायां या सदा पूज्या सा भवेत् सर्वमंगलम्।
दारिद्र्यं नाशयेत् क्षिप्रं सुखं ददाति निश्चयम्॥"
(जो भक्त भद्रा काल में माँ दुर्गा की पूजा करता है, उसका समस्त दुःख और दरिद्रता नष्ट हो जाती है।)
🔹 निष्कर्ष – अप्रैल माह में भद्रा काल में देवी पूजा क्यों करें?
✅ भद्रा देवी स्वयं भगवती दुर्गा का स्वरूप है।
✅ भद्रा काल में पूजन करने से सभी दोष नष्ट होते हैं।
✅ सभी पापों का नाश होकर पुण्य की प्राप्ति होती है।
✅ विशेषकर राहु-केतु दोष, शनि दोष, एवं चंडाल योग समाप्त होता है।
🚩 भद्रा में देवी पूजा अवश्य करें और समस्त कष्टों से मुक्ति पाएं। 🚩
राहु काल
30 मार्च से 6 अप्रैल 2025 के बीच बेंगलुरु, भोपाल, जबलपुर, रायपुर, कानपुर, ग्वालियर, और कोलकाता में राहु काल के समयों की है। भद्रा काल और राहु काल के समय स्थान और तिथि के अनुसार बदलते हैं। नीचे दिए गए समय अनुमानित हैं और विभिन्न स्रोतों पर आधारित हैं; सटीक जानकारी के लिए स्थानीय पंचांग या विश्वसनीय ज्योतिषीय स्रोतों से परामर्श करना उचित होगा।
1. बेंगलुरु:
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राहु काल:
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30 मार्च 2025 (रविवार): शाम 5:05 बजे से 6:38 बजे तक
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31 मार्च 2025 (सोमवार): सुबह 7:30 बजे से 9:00 बजे तक
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1 अप्रैल 2025 (मंगलवार): दोपहर 03:27 पी एम से 04:59 पी एम
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2 अप्रैल 2025 (बुधवार): दोपहर 12:00 बजे से 1:30 बजे तक
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3 अप्रैल 2025 (गुरुवार): दोपहर 1:30 बजे से 3:00 बजे तक
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4 अप्रैल 2025 (शुक्रवार): सुबह 10:30 बजे से 12:00 बजे तक
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5 अप्रैल 2025 (शनिवार): सुबह 9:00 बजे से 10:30 बजे तक
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6 अप्रैल 2025 (रविवार): शाम 4:30 बजे से 6:00 बजे तक
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भद्रा काल: भद्रा काल की तिथियां और समय पंचांग के अनुसार निर्धारित होते हैं। अप्रैल 2025 में भद्रा काल की तिथियां 1, 4, 8, 12, 16, 19, 23, और 26 अप्रैल हैं। इन तिथियों पर भद्रा काल के समय में शुभ कार्यों से बचना चाहिए।
2. भोपाल:. जबलपुर, रायपुर, कानपुर, ग्वालियर:
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राहु काल: भोपाल में राहु काल का समय बेंगलुरु से थोड़ा भिन्न हो सकता है। आमतौर पर, मध्य भारत में राहु काल के समय इस प्रकार होते हैं:
30 मार्च – 8 अप्रैल 2025 तक विशेष शुभ मुहूर्त 🚩
🔹 1. अभिजीत मुहूर्त (पूजन हेतु सर्वश्रेष्ठ समय)
🔹 अभिजीत काल में प्रार्थना करें
- प्रार्थना मंत्र:
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोऽस्तुते॥ - विशेष दुर्गा स्तुति:
मंगलां शिवां शुद्धां निष्कलां
परमां कलां।
विश्वेश्वरीं
विश्वमातां चण्डिकां प्रणमाम्यहम्॥
📌 समस्त मध्य भात लिए:
🔸 प्रत्येक दिन: 12:11 बजे से 12:35 बजे तक
✅ इस समय में विशेष रूप से क्या करें?
✔️ माँ दुर्गा, महालक्ष्मी, श्री विष्णु एवं महादेव की आराधना करें।
✔️ नवग्रह शांति एवं वास्तु दोष निवारण हेतु विशेष पूजा करें।
✔️ साधना, मंत्र सिद्धि, हवन एवं अनुष्ठान करें।
✔️ किसी भी मांगलिक कार्य, व्यापार आरंभ, गृह प्रवेश आदि के लिए श्रेष्ठ समय।📖 संदर्भ (महाभारत, अनुशासन पर्व, 161 अध्याय)
"अभिजित्सर्वमङ्गल्यं सर्वपाप प्रणाशनम्।
येन कृत्यं समारभ्यं सर्वसिद्धिफलं लभेत्॥"
(अभिजित मुहूर्त समस्त मंगल कार्यों का नाशक है, यह सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है।)
🔹 2. विशेष राहु काल (शत्रु दमन, तंत्र सिद्धि, देवी पूजन हेतु)
🚩 राहु काल में देवी पूजन करने से शत्रु बाधा, ऋण मुक्ति, एवं तांत्रिक दोष समाप्त होते हैं।
📅 तिथि ⏳ राहु काल 30 मार्च 2025 17:00 – 18:25 31 मार्च 2025 07:55 – 09:15 1 अप्रैल 2025 15:32 – 16:51 2 अप्रैल 2025 12:29 – 13:48 3 अप्रैल 2025 13:59 – 15:15 4 अप्रैल 2025 11:01 – 12:18 5 अप्रैल 2025 09:27 – 10:45 6 अप्रैल 2025 17:08 – 18:27 7 अप्रैल 2025 07:51 – 09:11 8 अप्रैल 2025 15:35 – 16:51
🔹 राहु काल में क्या करें?
✅ "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे" मंत्र का जाप करें।
✅ छिन्नमस्ता, काली, भैरवी, तारा देवी का पूजन करें।
✅ राहु-केतु दोष निवारण हेतु हवन करें।
✅ शत्रु नाश, मुकदमे में विजय एवं ऋण मुक्ति के लिए "शत्रु नाशक मंत्र" का जाप करें।📖 संदर्भ (ब्रह्मवैवर्त पुराण, अध्याय 57)
"राहु कालस्य संज्ञाने भक्त्या पूज्यति या सदा।
स पापं सर्व नाशयेत् धन धान्यं प्रदास्यति॥"
(राहु काल में भक्तिभाव से जो पूजन करता है, उसके समस्त पाप नष्ट होते हैं और धन-धान्य की वृद्धि होती है।)🚩 राहु काल में तंत्र, यंत्र, अनुष्ठान करने से विशेष सिद्धि प्राप्त होती है। 🚩
🔹 भद्रा में दुर्गा जी की पूजा का विशेष महत्व
- भद्रा में देवी पूजन अत्यंत फलदायी माना गया है।
- स्मृति समुच्चय ग्रंथ में लिखा है –
"भौमेति प्रशस्ताश्" (अर्थात मंगलवार को सप्तमी होना अति उत्तम है।) - देवी पुराण में उल्लेख है:
अहम भद्रा च भद्राहं नावयोरंतरं
क्वचित।
सर्व
सिद्धिं प्रदास्यामी भद्रायां अर्चिता॥
(अर्थ: मैं
स्वयं भद्रा स्वरूप हूँ, मुझमें और
भद्रा में कोई अंतर नहीं है। भद्रा काल में मेरी पूजा करने से मैं सभी सिद्धियों
को प्रदान करती हूँ।)
- निर्णय अमृत ग्रंथ में लिखा है:
"भद्रा को छोड़कर जो महाष्टमी को
मेरी पूजा करता है, उसने मेरा अपमान किया है और उसे
पूजा का फल नहीं मिलेगा।"
"विष्टीं
त्यक्त्वा महाष्टंयाम मम पूजां करोति यः।
तस्य पूजा
फलं न स्यात्तेनाहं अवमानिता॥"
🔹 अश्विन मास की अष्टमी एवं दुर्गा उत्सव
- अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को अर्धरात्रि में पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में भद्रकाली देवी अवतरित हुई थीं।
- अतः अष्टमी रात्रि को दुर्गा उत्सव एवं जागरण करना अत्यंत शुभकारी होता है।
- अष्टमी एवं नवमी को दुर्गा सप्तशती या सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ अवश्य करें।
🔹 राहुकाल में पूजा करें, आसुरी शक्तियों एवं शत्रु दमन के लिए
🔹 राहुकाल में पूजा करें, आसुरी शक्तियों एवं शत्रु दमन के लिए
राहु काल में दुर्गा पूजा का महत्व – शास्त्रीय प्रमाण सहित
1. राहु ग्रह का प्रभाव एवं शांति हेतु उपाय
श्रीमद्भागवत महापुराण (स्कंध 5, अध्याय 24, श्लोक 8) में राहु का वर्णन:
राहु: सैंहिकेयो नाम ग्रसनो ग्रसनान्तर:।
(राहु संहिका
का पुत्र है, जो ग्रहण के समय सूर्य और चंद्र को निगलने का कार्य
करता है।)
इससे स्पष्ट होता है कि राहु एक छाया ग्रह है, जो भ्रम, छल-कपट, मानसिक अशांति और बाधाओं का कारण बनता है। यदि राहु अशुभ हो तो व्यक्ति को धोखा, मानसिक तनाव, अस्थिरता, और अचानक हानि का सामना करना पड़ सकता है।
2. राहु की शांति के लिए माँ दुर्गा की उपासना
श्रीदुर्गासप्तशती (मध्यचरित्र, अध्याय 4, श्लोक 17-18) में देवी दुर्गा के प्रभाव का वर्णन:
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थ: देवी दुर्गा समस्त जीवों में बुद्धि के रूप में स्थित हैं। उनकी आराधना से राहु द्वारा उत्पन्न मानसिक भ्रम एवं तनाव समाप्त हो सकता है।
3. राहु से बचाव के लिए राहु काल में दुर्गा पूजन
ब्रह्मवैवर्त पुराण (कृष्ण खंड, अध्याय 60, श्लोक 24-25) में कहा गया है:
राहुग्रस्ते तु सूर्ये चन्द्रे वा ग्राहपीडिते।
दुर्गां पूजयते यस्तु स मुक्तो भवति
ध्रुवम्॥
अर्थ: जब राहु सूर्य या चंद्र को ग्रस्त करता है (ग्रहणकाल या राहु महादशा में), उस समय जो व्यक्ति माँ दुर्गा की पूजा करता है, वह निश्चित रूप से राहु के अशुभ प्रभावों से मुक्त हो जाता है।
4. कालसर्प दोष एवं राहु ग्रह की शांति हेतु देवी पूजा
कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए गरुड़ पुराण (अध्याय 46, श्लोक 27) में कहा गया है:
राहु: क्रूरतमो देवि सर्वदोषकर: स्मृत:।
तस्माद्देव्याश्च पूजां हि
कुर्यात्कल्याणमिच्छक:॥
अर्थ: राहु ग्रह अति क्रूर और सभी दोषों को उत्पन्न करने वाला माना जाता है। अतः कल्याण चाहने वाले व्यक्ति को विशेष रूप से देवी दुर्गा की पूजा करनी चाहिए।
5. राहु काल में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का महत्व
श्रीदुर्गासप्तशती (उत्तरचरित्र, श्लोक 30) में कहा गया है:
सर्वबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि विनाशनम्॥
अर्थ: हे देवी! आप समस्त लोकों की स्वामिनी हैं। कृपया हमारी सभी बाधाओं को दूर करें और हमारे शत्रुओं का नाश करें।
6. राहु शांति हेतु विशेष मंत्र
राहु काल में माँ दुर्गा का यह विशेष मंत्र जप करने से विशेष फल मिलता है:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
राहुकाल में शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं, लेकिन देवी उपासना अत्यंत फलदायी होती है।
- राहुकाल के दोष:
- शनि का गुलिक काल
- काल, यमघंटक, कुलिक, कालबेला जैसे अन्य ग्रह दोष
- राहुकाल की अधिष्ठात्री देवी:
- छिन्नमस्ता (प्रचंड चंडिका) देवी हैं।
- राहुकाल में छिन्नमस्ता देवी की उपासना करने से असाधारण सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
- राहुकाल में जपने योग्य मंत्र:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
- श्री दुर्गा सप्तशती में भी इस पूजा का उल्लेख मिलता है।
🔹 सप्तमी तिथि को द्वार पूजा करें
- दुर्गा कलश स्थापना षष्ठी तिथि (15 अक्टूबर) तक कलश में रहती हैं।
- सप्तमी तिथि (16 अक्टूबर) से मूर्ति पूजन प्रारंभ करें।
- द्वार पूजा के लाभ:
- आगामी 6 माह तक आकस्मिक बाधाओं एवं परेशानियों से मुक्ति।
- मुख्य द्वार पर 2 कलश स्थापित करें, लाल वस्त्र से लपेटें।
- आम के पत्ते, दुर्बा, बिल्वपत्र, अशोक, अपराजिता, पारिजात आदि से पूजा करें।
- अभिजित मुहूर्त में यह पूजा विशेष लाभकारी होती है।
🔹 अष्टमी तिथि को हवन करें
- हवन सामग्री:
- सफेद तिल, खीर, सरसों, सुपारी, लावा, दुर्वा अंकुर, जौ, नारियल, लाल चंदन, गूगल, जायफल आदि।
- अष्टमी को हवन करने से सभी ग्रह दोष शांत होते हैं।
🔹 नवमी तिथि बलि के लिए श्रेष्ठ मानी गई है
- कालिका पुराण एवं कामरूप निबंध में उल्लेख है कि अष्टमी तिथि को बलिदान वर्जित है।
- नवमी तिथि पापनाशिनी है एवं महान पुण्य प्रदान करती है।
- बलि अर्पण:
- नारियल, कुम्हड़ा, उड़द पिंड का बलिदान करें।
- उत्तर दिशा की ओर मुख करके, बलि वस्तु को पूर्व दिशा में रखें।
- 1. राहु काल में दुर्गा उपासना
🔹 राहु काल हिंदू ज्योतिष के अनुसार एक अशुभ समय माना जाता है, जब कोई भी शुभ कार्य करने से बचने
की सलाह दी जाती है।
🔹 लेकिन शास्त्रों के अनुसार, माँ दुर्गा, विशेष रूप से उनकी महाकाली और चंडी
स्वरूप की उपासना इस समय करने से राहु के नकारात्मक प्रभाव समाप्त हो सकते हैं।
2. राहु काल में माँ दुर्गा की पूजा
के लाभ
"Durga Rahu Kala Pooja – Help overcome hardships, protect against
sorrow, and bless with peace and joy."
🔹 अर्थात, राहु काल में माँ दुर्गा की पूजा करने से जीवन की
कठिनाइयाँ दूर होती हैं, दुखों से
सुरक्षा मिलती है और जीवन में शांति एवं आनंद आता है।
🔹 ज्योतिष के अनुसार, राहु भ्रम, असमंजस, मानसिक तनाव और जीवन में अचानक आने वाली समस्याओं का कारक होता है। माँ दुर्गा की
उपासना से इन दोषों से मुक्ति मिलती है।
3. देवी दुर्गा की कृपा से राहु के प्रभाव कम होते हैं
शास्त्रों में प्रमाण
🔹 "अथर्ववेद" (अथर्व 19.9.10) में कहा गया है कि जो व्यक्ति राहु और
अन्य ग्रहों के कुप्रभाव से बचना चाहता है, उसे माँ शक्ति की उपासना करनी चाहिए।
🔹 "शिवपुराण" में भी कहा गया है कि जो भक्त शक्ति (दुर्गा) की उपासना करता है, वह समस्त ग्रह बाधाओं से मुक्त होता है।
🔹 "देवी महात्म्य" (दुर्गा सप्तशती, अध्याय 11, श्लोक 10-12) में उल्लेख है कि माँ दुर्गा का स्मरण करने मात्र से ही
सभी प्रकार के भय, ग्रह बाधाएँ और विघ्न समाप्त हो जाते हैं। 🚩 भद्रा के समय देवी पूजन से जुड़ी पौराणिक कथा 🚩
(शास्त्रीय प्रमाण, श्लोक, अर्थ एवं ग्रंथ संदर्भ सहित विस्तृत व्याख्या)
🔹 1. भद्रा का स्वरूप एवं महत्व
भद्रा का उल्लेख कई पुराणों एवं ज्योतिष ग्रंथों में मिलता है। यह चौघड़िया, पंचांग और शुभ मुहूर्त से जुड़ी एक विशेष स्थिति होती है। लेकिन देवी ग्रंथों के अनुसार, भद्रा स्वयं भगवती दुर्गा का ही एक स्वरूप है।
📖 देवी पुराण में उल्लेखित श्लोक:
"अहम् भद्रा च भद्राहं नावयोरंतरं
क्वचित्।
सर्व
सिद्धिं प्रदास्यामि भद्रायां अर्चिता ॥"
(मैं स्वयं भद्रा
स्वरूप हूँ, भद्रा और मुझमें कोई अंतर नहीं है।
भद्रा काल में मेरी पूजा करने से सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।)
📜 संदर्भ: देवी भागवत पुराण, सप्तम स्कंध, 38वां अध्याय
✅ अर्थ:
- माँ दुर्गा स्वयं कहती हैं कि भद्रा कोई अशुभ काल नहीं है, बल्कि यह मेरा ही स्वरूप है।
- जो मेरी पूजा भद्रा काल में करता है, उसे पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
- भद्रा में पूजा करने से देवी तुरंत प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को संकटों से मुक्ति प्रदान करती हैं।
🔹 2. भद्रा काल में पूजा का पौराणिक प्रसंग
📜 देवी भागवत पुराण की कथा
राजा हरिश्चंद्र की कथा भद्रा काल में देवी पूजा से जुड़ी एक महत्वपूर्ण पौराणिक कथा है।
📖 कथा का सारांश:
एक बार सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र को शनि, राहु और केतु की महादशा का सामना करना पड़ा।
- उनके राज्य में अकाल पड़ गया।
- उन्होंने संतान, राज्य, धन और मान-सम्मान खो दिया।
- उन्हें चांडाल के दास रूप में कार्य करना पड़ा।
तब महर्षि वशिष्ठ ने उन्हें भद्रा काल में दुर्गा सप्तशती के पाठ और हवन करने की सलाह दी।
📖 देवी भागवत पुराण का श्लोक:
"भद्रायां यः सदा पूज्येत देवी
दुर्गा सदाशिवा।
स भवेत्
मुक्तबन्धश्च राज्यम् प्राप्यते निश्चितम् ॥"
(जो व्यक्ति
भद्रा काल में देवी दुर्गा की पूजा करता है, वह समस्त बंधनों से मुक्त होकर पुनः अपना राज्य
प्राप्त करता है।)
📜 संदर्भ: देवी भागवत पुराण, नवम स्कंध, अध्याय 12
✅ अर्थ:
- यदि कोई व्यक्ति भद्रा काल में माँ दुर्गा की पूजा करता है, तो उसके जीवन के सभी बंधन समाप्त हो जाते हैं।
- राज्य, धन, सुख-शांति और समृद्धि पुनः प्राप्त होती है।
- राजा हरिश्चंद्र ने भद्रा काल में माँ दुर्गा की पूजा की, हवन किया और दुर्गा सप्तशती का पाठ किया, जिससे उनकी दशा समाप्त हो गई और उन्हें राज्य वापस प्राप्त हुआ।
🔹 3. महर्षि मार्कंडेय द्वारा भद्रा काल में देवी पूजन की महिमा
महर्षि मार्कंडेय द्वारा रचित दुर्गा सप्तशती में भी भद्रा काल में पूजा का उल्लेख मिलता है।
📖 दुर्गा सप्तशती का श्लोक:
"या देवी सर्वभूतेषु भद्रा रूपेण
संस्थिता।
नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"
(जो देवी
संपूर्ण प्राणियों में भद्रा के रूप में स्थित हैं, उन भगवती को बारंबार प्रणाम।)
📜 संदर्भ: मार्कंडेय पुराण, दुर्गा सप्तशती, अध्याय 5, श्लोक 16
✅ अर्थ:
- भद्रा स्वयं देवी का ही एक स्वरूप है।
- जो भक्त इस समय दुर्गा की आराधना करता है, वह सभी कष्टों से मुक्त हो जाता है।
🔹 4. भद्रा काल में पूजा क्यों आवश्यक है?
📜 निर्णयामृत ग्रंथ में उल्लेख
"विष्टीं त्यक्त्वा महाष्टंयाम मम
पूजां करोति यः।
तस्य पूजा
फलं न स्यात्तेनाहं अवमानिता॥"
(यदि कोई
व्यक्ति भद्रा को छोड़कर महाष्टमी को मेरी पूजा करता है, तो उसे पूजा का कोई फल प्राप्त
नहीं होगा, क्योंकि उसने मेरा अपमान किया है।)
📜 संदर्भ: निर्णयामृत ग्रंथ, अध्याय 7
✅ अर्थ:
- यदि कोई व्यक्ति भद्रा को छोड़कर पूजा करता है, तो उसे पूजा का कोई फल प्राप्त नहीं होगा।
- भद्रा को छोड़ना, देवी के स्वरूप को त्यागने के समान है।
- भद्रा में माँ दुर्गा की उपासना से ही पूर्ण फल की प्राप्ति होती है।
🔹 5. भद्रा काल में करने योग्य पूजा विधि
✅ क्या करें?
✔️ भद्रा काल में दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
✔️ महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र का जाप करें।
✔️ नवरात्रि के समय भद्रा में हवन करें।
✔️ भद्रा काल में माँ दुर्गा का लाल फूलों से पूजन करें।
✔️ राहु-केतु दोष निवारण के लिए "ॐ दुं दुर्गायै
नमः" मंत्र का जाप करें।
❌ क्या न करें?
❌ भद्रा काल में अन्य शुभ कार्य
(विवाह, गृह प्रवेश आदि) न करें।
❌ इस समय मूर्ति
प्राण प्रतिष्ठा न करें।
❌ भद्रा काल
में देवी की पूजा न करना निष्फलता ला सकता है।
भद्रा में देवी पूजा क्यों करें?
📖 देवी महात्म्य का प्रमाण:
"सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ
साधिके।
शरण्ये
त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥"
(हे देवी! आप
समस्त मंगलों में मंगलमयी हैं, समस्त कार्यों को सिद्ध करने वाली हैं। आपको नमन है।)
📜 संदर्भ: मार्कंडेय पुराण, दुर्गा सप्तशती, अध्याय 11, श्लोक 10
✅ भद्रा काल में दुर्गा पूजन के लाभ:
- समस्त पापों का नाश होता है।
- राहु-केतु एवं शनि जनित दोष समाप्त होते हैं।
- समस्त संकट, ऋण, शत्रु बाधा समाप्त होती है।
- भविष्य में किसी भी प्रकार की आपदा से सुरक्षा मिलती है।
🔹 भद्रा देवी दुर्गा का ही स्वरूप है।
🔹 भद्रा में दुर्गा पूजन करने से सभी सिद्धियाँ प्राप्त
होती हैं।
🔹 महर्षि मार्कंडेय, निर्णयामृत ग्रंथ एवं देवी भागवत
पुराण में इसका स्पष्ट उल्लेख है।
🔹 यदि भद्रा काल में दुर्गा पूजा न की जाए, तो पूजा निष्फल हो सकती है।
🚩 इसलिए, भद्रा काल में दुर्गा पूजन अवश्य करें और देवी की कृपा प्राप्त करें। 🚩
📌 राहु काल में माँ दुर्गा की पूजा विशेष रूप से
लाभकारी होती है।
📌 यह नकारात्मक प्रभावों, राहु दोष, मानसिक भ्रम और अन्य बाधाओं को समाप्त करती है।
📌 दुर्गा सप्तशती, देवी कवच और काली मंत्रों का जाप इस समय करना विशेष
फलदायी माना गया है।
✅ भद्रा काल एवं राहुकाल में दुर्गा
पूजा करने से सभी दोषों एवं विपत्तियों से रक्षा होती है।
✅ अष्टमी एवं
नवमी को विशेष रूप से दुर्गा सप्तशती का पाठ एवं हवन करें।
✅ राहुकाल में
छिन्नमस्ता देवी की उपासना करें, जिससे शत्रु नाश एवं शक्ति प्राप्ति होती है।
✅ सप्तमी तिथि
को द्वार पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
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