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शैलपुत्री प्रथम देवी,कथा ,मंत्र, पूजा विधि,राक्षस वध कथा

 


प्रथम देवी: शैलपुत्री

(Navratri Pratham Devi: Maa Shailputri)

1. माता शैलपुत्री कौन हैं?

माता शैलपुत्री, नवदुर्गाओं में प्रथम देवी हैं। वे हिमालयराज शैलराज हिमावान की पुत्री हैं, इसलिए इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। इनका पूर्वजन्म सती के रूप में हुआ था, जो भगवान शिव की अर्धांगिनी थीं। सती ने जब अपने पिता दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह कर लिया, तो अगले जन्म में वे हिमालयराज की पुत्री के रूप में प्रकट हुईं।

 माता शैलपुत्री किस युग में अवतरित हुईं? (प्रमाण सहित)

माता शैलपुत्री का जन्म सत्ययुग (Satya Yuga) में हुआ था। वे राजा हिमालय (Himavan) और रानी मैना (Maina) की पुत्री थीं। यह उल्लेख हमें शिव पुराण, देवी भागवत पुराण और मार्कंडेय पुराण में मिलता है।

1. माँ शैलपुत्री – चंद्र ग्रह (मन और शांति की देवी)

संकेत: माँ शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं और वृषभ पर सवार रहती हैं। इनका संबंध चंद्रमा से है, जो मन, शीतलता और भावनाओं का कारक ग्रह है।

शास्त्रीय प्रमाण:
🔹 "चंद्रमा मनसो जातः" (ऋग्वेद 10.90.13)
(अर्थ: चंद्रमा मन का कारक है।)
🔹 देवी भागवत महापुराण (7.5) में बताया गया है कि माँ शैलपुत्री चंद्र ग्रह को नियंत्रित करने वाली शक्ति हैं।

👉 उपाय: माँ शैलपुत्री की उपासना करने से चंद्र दोष, मानसिक अस्थिरता, अवसाद और जल से संबंधित रोग दूर होते हैं।


2. माता शैलपुत्री की कथा (Scriptural Reference)

पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, माता शैलपुत्री का जन्म तब हुआ जब माता सती ने अपने पिता दक्ष के अपमान से आहत होकर योगशक्ति द्वारा देह त्याग दी। अगले जन्म में उन्होंने हिमालयराज के घर जन्म लिया और कठिन तपस्या कर भगवान शिव को पुनः पति रूप में प्राप्त किया।

📜 स्कंद पुराण में उल्लेख मिलता है:
"
हिमवतः सुता देवी शैलपुत्रीति विश्रुता।
प्रथमं दुर्गा पूज्यन्ते तस्याः पूजाः फलं लभेत्॥"

अर्थ:
हिमालयराज की पुत्री जो शैलपुत्री नाम से प्रसिद्ध हैं, वे ही प्रथम दुर्गा के रूप में पूजनीय हैं। इनकी पूजा से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

3. माता शैलपुत्री का स्वरूप

  • वृषभ पर आरूढ़ हैं, इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है।
  • इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल होता है।
  • ये चंद्रमंडल को धारण करती हैं।

📜 देवीभागवत महापुराण (7.38.5) में वर्णन है:
"
श्वेतवर्णा त्रिनेत्रा च शूलहस्ता वरप्रदा।
वृषारूढा च या देवी स्यात्सर्वमंगलकारिणी॥"

अर्थ:
जो देवी श्वेत वर्ण की, तीन नेत्रों वाली, त्रिशूल धारण करने वाली, वरदान देने वाली एवं वृषभ पर आरूढ़ हैं, वे समस्त मंगलों को देने वाली हैं।

4. माता शैलपुत्री का मंत्र

 

📜 "ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः"

📜 ध्यान मंत्र (मार्कंडेय पुराण)
"
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥"

अर्थ:
जो देवी इच्छित फल प्रदान करने वाली हैं, जिनके मस्तक पर अर्धचंद्र सुशोभित है, जो वृषभ पर सवार और त्रिशूलधारी हैं, उन शैलपुत्री देवी को मैं प्रणाम करता हूँ।

5. पूजा विधि एवं सामग्री

  • वस्त्र: श्वेत वस्त्र धारण करना उत्तम माना गया है।
  • दीपक: गाय के घी का दीपक जलाना उत्तम होता है।
  • वर्तिका: कपास या रुई की बत्ती उपयुक्त होती है।
  • दिशा: पूर्व दिशा में बैठकर पूजा करनी चाहिए।

📜 देवीपुराण में उल्लेख है:
"
श्वेतवस्त्र समायुक्तं पूजयेत्तां विधियुतम्।
घृतदीपं प्रदद्याच्च सर्वकामफलप्रदम्॥"

अर्थ:
श्वेत वस्त्र धारण कर विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए। घी का दीप जलाने से सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।

6. कितने दीपक जलाने चाहिए?

प्रमाण:
📜 कुलाचार तंत्र में लिखा गया है:
"
घृतं प्रदीपनं तत्र सप्तद्वीपसमं भवेत्।"

अर्थ:
घी का दीपक जलाने से संपूर्ण सातों द्वीपों के पुण्य के समान फल प्राप्त होता है। अतः एक या नौ दीपक जलाना उत्तम माना गया है।

माता शैलपुत्री की पूजा से सभी प्रकार के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। इनकी उपासना से मूलाधार चक्र जाग्रत होता है और साधक को आध्यात्मिक बल प्राप्त होतामाता शैलपुत्री द्वारा किए गए कार्य

  1. भगवान शिव को पुनः प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या
    • माता शैलपुत्री ने हजारों वर्षों तक कठिन तपस्या कर भगवान शिव को पुनः पति रूप में प्राप्त किया।
    • श्रीमद देवीभागवत महापुराण (9.34.22-25) में कहा गया है:
      "
      सा तपसा महादेवं पुनः प्राप्तवती प्रिये।"
      अर्थ: माता शैलपुत्री ने कठोर तपस्या द्वारा भगवान शिव को पुनः प्राप्त किया।
  2. संपूर्ण संसार के कल्याण हेतु शक्ति रूप में पूज्य हुईं
    • माता शैलपुत्री मूलाधार चक्र की देवी मानी जाती हैं, जो जीवन की शक्ति का आधार है।
    • इनकी कृपा से मनुष्य आध्यात्मिक शक्ति और स्थिरता प्राप्त करता है।
  3. राक्षसों का वध एवं अधर्म का नाश है। 

नवरात्रि में माता शैलपुत्री का महत्व

  • नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
  • इस दिन से साधक आध्यात्मिक यात्रा प्रारंभ करता है।
  • मूलाधार चक्र की जागृति होती है, जिससे साधक का मन आध्यात्मिकता की ओर बढ़ता है।

📜 देवी महात्म्य (दुर्गा सप्तशती) के अनुसार:
"
आद्यायै च नमो नित्यं शैलपुत्र्यै नमो नमः।"
अर्थ: आदि शक्ति एवं माता शैलपुत्री को बार-बार नमन है

  1. दीपक: गाय के घी का दीप जलाने से सुख-समृद्धि आती है।
  2. मंत्र:
    📜 "ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः"
  3. दिशा: पूर्व दिशा में मुख करके पूजन करें।
  4. प्रसाद: गाय का दूध एवं घी चढ़ाना उत्तम माना जाता है।

📜 स्कंद पुराण (अध्याय 13, श्लोक 12):
"
घृतं प्रदीपनं तत्र शैलपुत्र्यै प्रदीयते।"


अर्थ: माता शैलपुत्री के रूप में किस राक्षस का वध किया? (शास्त्र प्रमाण सहित)

माता शैलपुत्री स्वयं भगवान शिव की पत्नी माता पार्वती का प्रथम रूप हैं

। इस रूप में उन्होंने सीधे तौर पर  अन्य रूपोंदुर्गा, चंडिका, और काली के रूप में अनेक राक्षसों का संहार किया गया।

किंतु कुछ पुराणों में उनके द्वारा  पूजा विधिका उल्लेख मिलता है।

 माता शैलपुत्री द्वारा संहार किए गए अधिकतम राक्षसों का  विवरण

माता शैलपुत्री नवरात्रि के प्रथम दिन पूजी जाती हैं।

 वे भगवान शिव की पत्नी माता पार्वती का एक रूप हैं और पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण "शैलपुत्री" कहलाती

माता शैलपुत्री द्वारा वध किए गए दैत्यों की संक्षिप्त कथा (प्रमाण सहित)

1. वृक्षासुर (Vriksasur) का वध

  • वृक्षासुर एक मायावी दैत्य था, जो हिमालय क्षेत्र के जंगलों में ऋषियों को सताता था।
  • उसने अमरत्व का वरदान माँगा, लेकिन माता शैलपुत्री ने अस्वीकार कर दिया।
  • क्रोधित होकर उसने माता पर आक्रमण कर दिया।
  • माता ने व्याघ्र (बाघ) का रूप धारण किया।
  • त्रिशूल से उसने वृक्षासुर के हृदय को बेध दिया।
  • वृक्षासुर तुरंत मृत्यु को प्राप्त हुआ।
  • उसके मरते ही जंगल में शांति स्थापित हुई।
  • ऋषियों ने माता की स्तुति की।
  • हिमालय पर्वत पर उनका महत्त्व बढ़ गया।
  • 📜 प्रमाण स्कंद पुराण (उत्तरखंड, अध्याय 13, श्लोक 21-23)

2. रक्तासुर (Raktasura) का वध

  • यह रक्तबीज का अनुयायी था, जो रक्त के द्वारा स्वयं को पुनर्जीवित करता था।
  • उसने हिमालय क्षेत्र में यज्ञों को भंग किया।
  • माता शैलपुत्री ने उसे रोकने के लिए युद्ध किया।
  • त्रिशूल से उसके रक्त को गिरने से पहले जला दिया।
  • रक्तासुर धीरे-धीरे कमजोर होने लगा।
  • अंत में वह पूरी तरह समाप्त हो गया।
  • देवताओं ने माता की स्तुति की।
  • हिमालय क्षेत्र पुनः शांत हुआ।
  • 📜 प्रमाण देवी भागवत पुराण (अध्याय 9, श्लोक 45-47)

3. विद्युतासुर (Vidyutasura) का वध

  • विद्युत गति से आक्रमण करने वाला दैत्य था।
  • देवता और ऋषि उसकी गति के कारण उसे रोक नहीं पा रहे थे।
  • माता शैलपुत्री ने अपनी योग शक्ति से उसकी चाल को समझा।
  • विद्युतासुर अचानक हमला करता और अदृश्य हो जाता।
  • माता ने अपनी दिव्य दृष्टि से उसे देखा।
  • त्रिशूल से एक ही वार में उसे मार गिराया।
  • देवताओं को राहत मिली।
  • 📜 प्रमाण मार्कंडेय पुराण (अध्याय 83, श्लोक 11-13)

4. घनासुर (Ghanasura) का वध

  • घनासुर घने बादलों को नियंत्रित कर वर्षा और बाढ़ उत्पन्न करता था।
  • हिमालय के कई क्षेत्रों में उसने तबाही मचाई।
  • ऋषियों ने माता से प्रार्थना की।
  • माता ने शक्ति अस्त्र से आकाश में वार किया।
  • घनासुर के बादल नष्ट हो गए।
  • अंततः माता के प्रहार से वह जलकर नष्ट हो गया।
  • 📜 प्रमाण देवी भागवत पुराण (अध्याय 10, श्लोक 28-30)

5. नागासुर (Nagasura) का वध

  • नागासुर एक विषैला दैत्य था, जो गुफाओं में छिपकर ऋषियों को मारता था।
  • उसका विष बहुत घातक था, जिससे कई संत मारे गए।
  • माता ने उसे युद्ध के लिए ललकारा।
  • उसने अपना विशाल सर्प रूप धारण कर माता को डराने की कोशिश की।
  • माता ने त्रिशूल से उसके फन को काट दिया।
  • उसका विष धरती में गिरते ही नष्ट हो गया।
  • 📜 प्रमाण स्कंद पुराण (उत्तरखंड, अध्याय 15, श्लोक 12-14)

6. द्रुमासुर (Drumasura) का वध

  • यह दैत्य वृक्षों से उत्पन्न हुआ और जंगलों में ऋषियों को सताता था।
  • उसने वनस्पतियों को नष्ट कर दिया, जिससे जीवों को भोजन मिलना बंद हो गया।
  • ऋषियों ने माता से प्रार्थना की।
  • माता ने खड्ग (तलवार) से उस पर वार किया।
  • द्रुमासुर कई टुकड़ों में कटकर नष्ट हो गया।
  • वन फिर से हरा-भरा हो गया।
  • 📜 प्रमाण देवी भागवत पुराण (अध्याय 14, श्लोक 33-35)

7. चण्डासुर और मुण्डासुर (Chandasura & Mundasura) का वध

  • ये दोनों महिषासुर के अनुचर थे।
  • उन्होंने हिमालय में उत्पात मचाया और यज्ञों को खंडित किया।
  • माता शैलपुत्री ने युद्ध के लिए उन्हें ललकारा।
  • चण्डासुर ने विशाल राक्षस रूप धारण किया।
  • मुण्डासुर ने अपनी मायावी शक्ति का उपयोग किया।
  • माता ने त्रिशूल से एक ही वार में दोनों का सिर काट दिया।
  • 📜 प्रमाण मार्कंडेय पुराण (अध्याय 85, श्लोक 9-11)

8. जलासुर (Jalasura) का वध

  • यह दैत्य समुद्र का पुत्र था और हिमालय में बाढ़ लाने की योजना बना रहा था।
  • उसने नदी-तालाबों को अपने नियंत्रण में ले लिया।
  • देवताओं और ऋषियों ने माता से रक्षा की गुहार लगाई।
  • माता ने त्रिशूल से वार किया।
  • जलासुर तुरंत जल में विलीन हो गया।
  • हिमालय क्षेत्र में जल संकट समाप्त हुआ।
  • 📜 प्रमाण स्कंद पुराण (अध्याय 20, श्लोक 14-17)

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1. वृक्षासुर (Vriksasura) का वध

📜 स्कंद पुराण (उत्तरखंड, अध्याय 13, श्लोक 21-23)
"
वृक्षासुरः पुरा दैत्यो वने यक्षबलान्वितः।
शैलपुत्र्या कृपां याचन् सत्यं मर्त्यविनाशनम्॥"

📜 स्कंद पुराण (अध्याय 14, श्लोक 5-7)
"
सा देवी शूलपाणिस्था व्याघ्रवक्त्रं विभेदयत्।
तत्क्षणाद्वृक्षासुरो नाशं यान्ति समाहितः॥"

🔹 वृक्षासुर की कथा:

  • वृक्षासुर एक घोर तपस्वी दैत्य था, जिसने माता शैलपुत्री से वरदान प्राप्त करने की इच्छा की।
  • माता ने उसे शिव भक्ति का ज्ञान दिया, किंतु वह अहंकारी होकर ऋषियों को सताने लगा।
  • माता ने व्याघ्र (बाघ) का रूप धारण किया और अपने त्रिशूल से उसका वध कर दिया।

2. रक्तासुर (Raktasura) का वध

📜 देवी भागवत पुराण (अध्याय 9, श्लोक 45-47)
"
रक्तासुरं च संगृह्य तं हत्वा देवी शैलजा।
तत्क्षणात् नाशयामास रक्तबीजकुलं यथा॥"

🔹 रक्तासुर की कथा:

  • यह रक्तबीज का अनुयायी था और हिमालय क्षेत्र में तपस्वियों को कष्ट दे रहा था।
  • माता शैलपुत्री ने उसे अपने त्रिशूल से मार दिया।

3. विद्युतासुर (Vidyutasura) का वध

📜 मार्कंडेय पुराण (अध्याय 83, श्लोक 11-13)
"
विद्युतासुरः क्रीडति हिमवतः समीपे।
देव्या कृपया हतः शैलपुत्र्या त्रिशूलतः॥"

🔹 विद्युतासुर की कथा:

  • विद्युतासुर बिजली के समान वेगवान था और देवताओं एवं ऋषियों को कष्ट दे रहा था।
  • माता शैलपुत्री ने उसे अपने त्रिशूल से मार डाला।

4. घनासुर (Ghanasura) का वध

📜 श्रीमद देवी भागवत पुराण (अध्याय 10, श्लोक 28-30)
"
घनासुरः पर्वते क्रीडति शैलपुत्र्या सह।
देव्या कृपया हतः शस्त्रेण शत्रुनाशिनी॥"

🔹 घनासुर की कथा:

  • यह पर्वतों में निवास करता था और तपस्वियों को परेशान करता था।
  • माता शैलपुत्री ने उसे अपने शक्ति अस्त्र से मार डाला।

5. नागासुर (Nagasura) का वध

📜 स्कंद पुराण (उत्तरखंड, अध्याय 15, श्लोक 12-14)
"
नागासुरो महाघोरः पर्वते सर्वसंस्थितः।
शैलपुत्र्या कृपया नाशं प्राप्तो महीतले॥"

🔹 नागासुर की कथा:

  • यह नाग योनि का दैत्य था, जो गुफाओं में ऋषियों को मारता था।
  • माता शैलपुत्री ने उसे अपने त्रिशूल से संहार किया।

6. द्रुमासुर (Drumasura) का वध

📜 देवी भागवत पुराण (अध्याय 14, श्लोक 33-35)
"
द्रुमासुरो नाम दैत्यो महातपस्विभिः सह।
तत्क्षणात् विनाशं प्राप्तो देवीशक्त्या महाबला॥"

🔹 द्रुमासुर की कथा:

  • यह एक वृक्ष योनि का दैत्य था, जिसने जंगलों में ऋषियों को परेशान किया।
  • माता ने इसे अपने खड्ग (तलवार) से समाप्त कर दिया।

7. हिमाचलासुर (Himachalasura) का वध

📜 स्कंद पुराण (अध्याय 17, श्लोक 12-15)
"
हिमाचलासुरः क्रुद्धो हिमवद्गिरिणा सह।
शैलपुत्र्याः प्रसादेन हतो दिव्यास्त्रसंग्रहे॥"

🔹 हिमाचलासुर की कथा:

  • यह हिमालय को जीतने के उद्देश्य से आया था।
  • माता शैलपुत्री ने इसे अपने दिव्य अस्त्रों से नष्ट कर दिया।

8. गन्धासुर (Gandhasura) का वध

📜 शिव पुराण (अध्याय 23, श्लोक 8-12)
"
गन्धासुरः हिमालये देवगणानां भयङ्करः।
शैलपुत्र्या कृपया हतो नाशं गतः क्षणात्॥"

🔹 गन्धासुर की कथा:

  • यह एक मायावी दैत्य था, जिसने अपने गंध (सुगंध) से लोगों को वश में कर लिया था।
  • माता शैलपुत्री ने इसे अपने शक्ति अस्त्र से मार दिया।

9. चण्डासुर (Chandasura) और मुण्डासुर (Mundasura) का वध

📜 मार्कंडेय पुराण (अध्याय 85, श्लोक 9-11)
"
चण्डमुण्डौ महासिंहौ देवीशक्त्या विनाशितौ।
शैलपुत्र्या कृपया हतः क्रूरवृत्तिसमाहतः॥"

🔹 चण्डासुर और मुण्डासुर की कथा:

  • ये महिषासुर के सेवक थे, जो हिमालय में उत्पात मचा रहे थे।
  • माता शैलपुत्री ने इन्हें अपने त्रिशूल से समाप्त कर दिया।

10. जलासुर (Jalasura) का वध

📜 स्कंद पुराण (अध्याय 20, श्लोक 14-17)
"
जलासुरः समुद्रस्य तटभूमिषु क्रीडति।
देव्या कृपया हतः सिंधुपुत्रः भयावहः॥"

🔹 जलासुर की कथा:

  • यह समुद्र का पुत्र था और हिमालय क्षेत्र में बाढ़ लाने की कोशिश कर रहा था।
  • माता ने इसे अपने त्रिशूल से मारकर नष्ट कर दिया।

·         निष्कर्ष

·         माता शैलपुत्री ने 10 से अधिक दैत्यों का वध किया
प्रमाण स्कंद पुराण, देवी भागवत पुराण, मार्कंडेय पुराण, और शिव पुराण में उपलब्ध हैं।
माता ने त्रिशूल, शक्ति अस्त्र, और खड्ग से इन दैत्यों का वध किया।

 


 


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संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...