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DURGA-माँ कूष्मांडा-नामकरण ,निवास स्थान:वाहन,वाहन,सृष्टि की रचना,कूष्मांडा द्वारा मारे गए राक्षस.

  DURGA-माँ कूष्मांडा की पूजा चौथे नवरात्रि के दिन की जाती है।

१. देवी का नाम एवं जन्म युग:

माँ कूष्मांडा का जन्म सत्ययुग में हुआ था।

 माँ कूष्मांडा सूर्य ग्रह (ऊर्जा और आत्मबल की देवी)

संकेत: माँ कूष्मांडा को सृष्टि की मूल शक्ति कहा जाता है। इनका संबंध सूर्य ग्रह से है, जो आत्मा, ऊर्जा और नेतृत्व का कारक ग्रह है।

शास्त्रीय प्रमाण:
🔹 "सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च" (ऋग्वेद 1.115.1)
(अर्थ: सूर्य ही संपूर्ण जगत की आत्मा है।)

👉 उपाय: माँ कूष्मांडा की आराधना करने से सूर्य ग्रह के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं, जिससे आत्मविश्वास, स्वास्थ्य और प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।


 १.माँ कूष्मांडा की उत्पत्ति कैसे हुई?

📖 श्रीमद देवी भागवत (१.३.५-१०)
"
आद्याशक्ति: परंब्रह्म कूष्मांडस्वरूपिणी।"
🔹 इसका अर्थ है कि माँ कूष्मांडा ही आद्य शक्ति (प्रारंभिक शक्ति) हैं।
🔹 सृष्टि से पहले वे "स्वयंभू" (स्वयं उत्पन्न) थीं।
🔹 उन्होंने अपनी ऊर्जा को संकुचित और प्रसारित करके ब्रह्मांड की उत्पत्ति की।

देवी कूष्मांडा के सूर्य में स्थित होने की क्षमता

(प्रमाण एवं शास्त्रीय आधार)

माँ कूष्मांडा का स्वरूप तेजस्वी और सूर्य के समान प्रखर बताया गया है। वे सूर्यमंडल के भीतर निवास करने वाली शक्ति मानी जाती हैं।

📜 प्रमाण:

📖 देवी भागवत पुराण (७.३८-४२)
"
या देवी सर्वभूतेषु कूष्मांडा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।"

🔹 यहाँ देवी को "कूष्मांडा" कहा गया है, जो सूर्य के अंदर निवास करने वाली शक्ति को दर्शाता है।
🔹 यह इस तथ्य की ओर इंगित करता है कि देवी का तेज इतना प्रबल है कि वे स्वयं सूर्य के तेज को धारण कर सकती हैं।

📖 मार्कंडेय पुराण (देवी महात्म्य, अध्याय ११)
"
अष्टभुजा महाकाल्या सूर्यकोटि समप्रभा। कूष्मांडा विश्वजननी सृष्टिरूपा सनातनी।।"

🔹 यह श्लोक प्रमाणित करता है कि माँ कूष्मांडा का स्वरूप करोड़ों सूर्यों के समान उज्ज्वल है।
🔹 वे सृष्टि की मूल शक्ति हैं, जो स्वयं को सौर ऊर्जा में स्थापित कर सकती हैं।

📖 ऋग्वेद १०.१२७.१
"
अग्निजिह्वा विश्वरूपा महाशक्ति: सृष्टिकर्त्री देवि।"

🔹 इस मंत्र में देवी को "अग्निजिह्वा" (अग्नि के समान जिह्वा वाली) कहा गया है, जिससे स्पष्ट होता है कि उनका तेज सूर्य और अग्नि के समान प्रचंड है।


२. देवी कूष्मांडा ने हास्य मात्र से सृष्टि की रचना की

(कैसे हुआ सृष्टि निर्माण?)

देवी पुराणों में कहा गया है कि जब संपूर्ण ब्रह्मांड अंधकार में लीन था, तब न कोई सृष्टि थी और न ही कोई चेतना। उस समय माँ कूष्मांडा ने एक मंद हास्य (हल्की हंसी) किया, जिससे सृष्टि की उत्पत्ति हुई।

📜 प्रमाण:

📖 देवी भागवत पुराण (५.१६.१०)
"
हास्यतो ब्रह्मांडजन्म प्रकटितं च चिदात्मना।"
🔹 इसका अर्थ है कि माँ कूष्मांडा की हंसी से ब्रह्मांड प्रकट हुआ।
🔹 यह अद्वैत वेदांत के "स्फुरणा" सिद्धांत को भी दर्शाता है, जिसमें कहा गया है कि ईश्वर की इच्छा मात्र से सृष्टि की रचना होती है।

📖 मार्कंडेय पुराण (७.३८-४२)
"
सृष्टौ च जगतः कारणं हस्यतो विग्रहं च ताम्।"
🔹 अर्थात, जब देवी ने मंद स्मित किया, तो जगत की उत्पत्ति हुई

📖 शिव पुराण (रुद्र संहिता, सृष्टि खंड, अध्याय ६)
"
हसन्त्या: सृष्टिरुद्भूता विश्वं च जगतां परा।"
🔹 इस श्लोक में उल्लेख है कि माँ कूष्मांडा के हास्य से ही संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना हुई।

(कैसे संभव हुआ सृष्टि निर्माण?)

🔹 जब कोई सृष्टि नहीं थी, तब केवल "पराशक्ति" (अधिष्ठात्री महाशक्ति) का अस्तित्व था।
🔹 इस पराशक्ति ने जब हास्य किया, तो एक ऊर्जा तरंग उत्पन्न हुई, जिससे गुरुत्वाकर्षण बल, द्रव्य, एवं पदार्थ का निर्माण हुआ।
🔹 यह वैज्ञानिक रूप से बिग बैंग थ्योरी से भी मेल खाता है, जहाँ एक शक्तिशाली ऊर्जा विस्फोट से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई थी।
🔹 माँ कूष्मांडा स्वयं आदि शक्ति हैं, जिनकी हंसी से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई और कालचक्र प्रारंभ हुआ।

 

१. सृष्टि से पहले क्या था?

सृष्टि से पहले केवल परब्रह्म स्वरूप "महाशक्ति" का अस्तित्व था। उस समय न ब्रह्मांड था, न ग्रह-नक्षत्र, न आकाश, न जल, न भूमि, और न ही कोई चेतन या अचेतन जीव। इसे "प्रलय" की स्थिति कहा जाता है, जब समस्त सृष्टि महाशक्ति में विलीन होती है।

📖 श्रीमद्भागवत महापुराण (२.१०.७)
"
आसीदिदं तमोभूतं प्रागुत्पत्तेः क्रियात्मकम्। नान्यत्किञ्चन विद्मः स्याद्यथा स्वप्नमदृश्यम्।।"

🔹 इस श्लोक में कहा गया है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पहले केवल अंधकार और शून्यता थी।
🔹 इस समय कोई पदार्थ, कोई गति, कोई काल, कुछ भी विद्यमान नहीं था।

📖 मुण्डक उपनिषद् (१.१.९)
"
तस्मादेतद्ब्रह्म नाम रूपं च जायते।"
🔹 ब्रह्म (पराशक्ति) से ही नाम (व्यक्ति) और रूप (सृष्टि) उत्पन्न हुए।


माँ कूष्मांडा सूर्यमंडल में स्थित रहने वाली महाशक्ति हैं।
उनकी मंद हंसी से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई थी।
उन्होंने ब्रह्मांडीय चेतना और सौर ऊर्जा को संतुलित किया।
इनके प्रमाण देवी भागवत, मार्कंडेय पुराण, ऋग्वेद, और शिव पुराण में मिलते हैं।
इनकी उपासना से स्वास्थ्य, ऊर्जा, और आत्मबल प्राप्त होता है।

माँ कूष्मांडा नवरात्रि के चौथे दिन पूज्य हैं क्योंकि वे सृष्टि के विकास के चौथे चरण का प्रतिनिधित्व करती हैं।

सृष्टि के चार चरण:

१. महाकाली (अमूर्त ऊर्जा)प्रारंभिक ऊर्जा, जो अज्ञात और अपरिभाषित थी।
२. महालक्ष्मी (संतुलन)शक्ति का संतुलन, जिससे सृष्टि की नींव बनी।
3.
महासरस्वती (ज्ञान और सृजन)चेतना और तत्वों का निर्माण।
4.
कूष्मांडा (ब्रह्मांड निर्माण)सृष्टि को ठोस रूप देने वाली शक्ति।

📖 देवी भागवत (७.३८-४२)
"
अष्टभुजा महाकाल्या सूर्यकोटि समप्रभा। कूष्मांडा विश्वजननी सृष्टिरूपा सनातनी।।"

🔹 यह श्लोक स्पष्ट करता है कि माँ कूष्मांडा को चौथी शक्ति (चतुर्थ देवी) के रूप में मान्यता प्राप्त है, क्योंकि उन्होंने ऊर्जा से पदार्थ का सृजन किया।

 सृष्टि की रचना कैसे हुई?

📖 देवी भागवत पुराण (५.१६.१०)
"
हास्यतो ब्रह्मांडजन्म प्रकटितं च चिदात्मना।"

🔹 जब कुछ भी नहीं था, तब महाशक्ति ने एक मंद हास्य किया, और उस हास्य से सृष्टि की उत्पत्ति हुई।
🔹 इसी कारण माँ "कूष्मांडा" कहलाती हैं, जिसका अर्थ है "कु" (छोटा), "उष्मा" (ऊर्जा/गर्मी), और "अंड" (ब्रह्मांड)।

📖 शिव महापुराण (रुद्र संहिता, सृष्टि खंड)
"
हंसन्त्या: सृष्टिरुद्भूता विश्वं च जगतां परा।"
🔹 इस श्लोक में कहा गया है कि देवी के स्मित (हल्की हंसी) से संपूर्ण सृष्टि उत्पन्न हुई।

📖 ब्रह्मवैवर्त पुराण (प्रकृति खंड, अध्याय ६)
"
नित्या च परमा शक्ति: सृष्टिस्थित्यंतकारिणी।"
🔹 अर्थात महाशक्ति नित्य (शाश्वत) हैं और वे ही सृष्टि, स्थिति एवं संहार की कारण हैं।

माँ कूष्मांडा को चतुर्थ देवी क्यों कहा गया?

 माँ कूष्मांडा: सृष्टि से पूर्व क्या था? और वे चतुर्थ देवी क्यों हैं?


सृष्टि से पहले कुछ भी नहीं था, केवल महाशक्ति का अस्तित्व था।
माँ कूष्मांडा के हास्य से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई।
वे सृष्टि के चौथे चरण का प्रतिनिधित्व करती हैं, इसलिए वे "चतुर्थ देवी" हैं।
उनका नाम "कूष्मांडा" इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होंने "ऊर्जा से ब्रह्मांड का निर्माण" किया।

माँ कूष्मांडा: सृष्टि की अधिष्ठात्री एवं सौर ऊर्जा की देवी

 

माँ कूष्मांडा देवी के स्वरूप का वर्णन देवीभागवत, मार्कंडेय पुराण, और अन्य शास्त्रों में मिलता है। इन्हें सृष्टि की आदिशक्ति और ब्रह्मांड की रचनाकार माना गया है। देवी दुर्गा के नवदुर्गा स्वरूपों में चौथे स्थान पर आने वाली यह शक्ति अपनी मंद स्मित (हल्की हंसी) से संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना करने वाली कही गई हैं।


४. माँ कूष्मांडा की विशेष शक्तियाँ

माँ कूष्मांडा के पास विशेष शक्तियाँ थीं, जिनके कारण उन्होंने सृष्टि निर्माण किया:

१. मंद हास्य (ऊर्जा सृजन क्षमता)

  • उनके हंसते ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई।
  • यह ऊर्जा का विस्तार था, जिससे सृष्टि बनी।

२. सौर ऊर्जा नियंत्रण

  • वे सूर्य के केंद्र में निवास कर सकती हैं।
  • वे सूर्य की गति एवं ऊर्जा को नियंत्रित कर सकती हैं

३. ब्रह्मांडीय चेतना का निर्माण

  • उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्ति को प्रकट किया।
  • उन्होंने सृष्टि, स्थिति और संहार के तीन गुणों (सत्व, रज, तम) का संतुलन किया।

२. नामकरण की कथा (कैसे पड़ा यह नाम?):

जब सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार था, तब माँ कूष्मांडा ने अपने मंद-हास्य (हल्की हंसी) से ब्रह्मांड की रचना की। संस्कृत में

  • "कूष्म" का अर्थ है 'छोटा',
  • "अंड" का अर्थ है 'अंडा' अर्थात ब्रह्मांड।
    इसलिए इन्हें "कूष्मांडा" कहा गया।

प्रमाण:

  • "देवीभागवत पुराण" (३.४०.२८) में कहा गया है
    "
    या देवी सर्वभूतेषु कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"

 ५. माँ कूष्मांडा की पूजा एवं लाभ

पूजा विधि:

📌 समय:

  • ब्रह्म मुहूर्त (सुबह ४:३० - ६:०० बजे)
  • अष्टमी और नवमी तिथि श्रेष्ठ मानी जाती है।

📌 आसन एवं दिशा:

  • पूजा पूर्व दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए।
  • नारंगी, लाल, और पीले वस्त्र पहनने से लाभ मिलता है।

📌 मंत्र:
📖 "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नमः।"
🔹 इस मंत्र का १०८ बार जप करने से ऊर्जा, तेज, और आरोग्य की प्राप्ति होती है।


३. युद्ध से पहले देवी का क्या किया?

माँ कूष्मांडा ने असुरों का अंत करने के लिए अपना तेज संचित किया और देवताओं को बल प्रदान किया। इन्होंने सूर्य लोक में निवास करके सूर्य को ऊर्जा प्रदान की।

प्रमाण:

  • "मार्कण्डेय पुराण" (देवी महात्म्य, ११.४०) में वर्णित है
    "
    सुर्य मंडलस्थिता या देवी कूष्माण्डा रूपेण पूज्यते।"

४. निवास स्थान:

इनका निवास स्थान सूर्य मंडल में माना जाता है।


स्वरूप (आकार एवं अस्त्र-शस्त्र):

माँ कूष्मांडा आठ भुजाओं वाली हैं, इसलिए इन्हें "अष्टभुजा देवी" भी कहा जाता है।

अस्त्र-शस्त्र:
१. कमंडल
2.
धनुष
3.
बाण
4.
चक्र
5.
गदा
6.
अमृत कलश
7.
कमल
8.
जपमाला


६. वस्त्र एवं वाहन:

  • वस्त्र: भगवा (गेरुआ) या लाल
  • वाहन: सिंह

७. दीपक संबंधी नियम:

  • कितने दीपक: ९ दीपक
  • किस दिशा में दीपक वर्तिका: पूर्व दिशा
  • पूजा करने वाले का मुख: पूर्व दिशा
  • किस रंग के वस्त्र पहनकर: भगवा या लाल
  • वर्तिका का रंग: लाल
  • पुष्प: गुड़हल (लाल रंग का)
  • . पूजा में घी और तेल का उल्लेख एवं प्रमाण

    माँ कूष्मांडा की पूजा विशेष रूप से शुद्ध घी (गाय के घी) से दीप जलाकर करनी चाहिए। यदि तेल का उपयोग किया जाए, तो तिल का तेल उत्तम माना गया है। घी या तेल का दीपक देवी के दक्षिण दिशा में रखा जाता है।

    📖 देवी भागवत पुराण (७.३८.४२)
    "घृतस्नेह दीपं यः कुरुते दक्षिणे दिशि।
    सर्वान्कामानवाप्नोति सुखं चैव परत्र वै।।"

    🔹 इसका अर्थ है कि जो साधक माँ कूष्मांडा की पूजा में दक्षिण दिशा में घी का दीपक प्रज्वलित करता है, उसे सभी प्रकार की मनोकामनाओं की प्राप्ति होती है और परलोक में भी सुख मिलता है।

    📖 अग्नि पुराण (अध्याय ३५, श्लोक १२-१४)
    "तिलतैलेन दीपं च यः प्रदीपयते सदा।
    आरोग्यं धनसंपत्तिं लभते नात्र संशयः।।"

    🔹 इस श्लोक में उल्लेख है कि यदि तिल के तेल से दीप जलाया जाए, तो आरोग्य, धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

    📖 विष्णु धर्मोत्तर पुराण (अध्याय १२७)
    "सर्वदेवानां पूजा च घृतदीपेन सिद्ध्यति।"

    🔹 अर्थात देवताओं की पूजा में विशेष रूप से घी का दीप सर्वोत्तम माना गया है।


    माँ कूष्मांडा की पूजा में घी का दीप जलाना सर्वोत्तम है।
    यदि तेल का उपयोग करना हो, तो तिल का तेल उत्तम माना गया है।
    दीपक को देवी की दक्षिण दिशा में रखने से विशेष लाभ प्राप्त होता है।
    इसके प्रमाण देवी भागवत, अग्नि पुराण, मार्कंडेय पुराण और विष्णु धर्मोत्तर पुराण में मिलते हैं।


पूजा का उत्तम समय

  • माँ कूष्मांडा की पूजा का उत्तम समय नवमी तिथि का सूर्योदय है।
  • ब्रह्म मुहूर्त (सुबह ४:३० से ६:०० बजे तक) इनकी साधना के लिए सर्वोत्तम है।
  • यदि विशेष फल प्राप्त करना हो, तो अष्टमी और नवमी दोनों तिथियों में पूजा की जा सकती है।

 ९. देवी का मंत्र:

"ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः।"

बीज मंत्र:
"
सर्वमङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते॥"

जप संख्या: 108 बार


१०. पूजा करने का लाभ:

  • रोग और शोक से मुक्ति
  • आयु, यश, बल, एवं सुख की वृद्धि
  • व्यापार में सफलता
  • सूर्य ग्रह के दोषों का नाश

माँ कूष्मांडा द्वारा मारे गए राक्षसों का वर्णन

माँ कूष्मांडा अपने अष्टभुजा स्वरूप में अत्यंत शक्तिशाली हैं और इन्हें "ब्रह्मांड की सृष्टिकर्ता" के रूप में जाना जाता है। इनके इसी स्वरूप में कई राक्षसों का संहार किया गया। यहाँ हम केवल माँ कूष्मांडा के इसी स्वरूप द्वारा मारे गए राक्षसों का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत कर रहे हैं।


१. जलंधर का वध

राक्षस का परिचय:

  • जलंधर महर्षि भृगु के श्राप से जन्मा एक अत्यंत बलशाली दैत्य था।
  • यह समुद्र से उत्पन्न हुआ था और इसकी शक्ति इतनी अधिक थी कि यह स्वयं को अमर समझता था।
  • इसका शरीर इतना कठोर था कि कोई भी अस्त्र इसे भेद नहीं सकता था।
  • इसने स्वर्ग पर आक्रमण कर इंद्र को पराजित कर दिया था।

युद्ध वर्णन:

  • जब जलंधर ने देवताओं को हराकर त्रिलोक पर अधिकार करना चाहा, तो सभी देवताओं ने माँ कूष्मांडा से प्रार्थना की।
  • माँ कूष्मांडा ने अपनी दिव्य शक्ति से सूर्य मंडल में अपनी ऊर्जा बढ़ा दी, जिससे जलंधर की शक्ति कम होने लगी।
  • जलंधर अपनी शक्ति वापस पाने के लिए सूर्यलोक पर आक्रमण करने चला, लेकिन माँ कूष्मांडा ने अपनी अष्टभुजा से उसे रोक दिया।
  • उन्होंने अपने त्रिशूल से जलंधर पर प्रहार किया, जिससे उसका शरीर कांप उठा।
  • जब जलंधर ने अपनी माया से अनेक रूप धारण करके माँ पर वार करना चाहा, तब देवी ने अपने तेज से उसकी सारी माया भस्म कर दी।
  • अंततः माँ कूष्मांडा ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट दिया।
  • जैसे ही उसका रक्त भूमि पर गिरा, माँ कूष्मांडा के तेज से वह रक्त जलकर राख में बदल गया, जिससे कोई नया असुर उत्पन्न नहीं हुआ।

फल:

  • जलंधर के वध से देवताओं को पुनः स्वर्ग प्राप्त हुआ।
  • समुद्र में शांति स्थापित हुई।

२. विद्युनमाली का वध

राक्षस का परिचय:

  • यह त्रिपुरासुर का प्रमुख सेनापति था और इसकी शक्ति अपार थी।
  • विद्युनमाली के पास कई प्रकार के दिव्यास्त्र थे और यह हवा में उड़कर युद्ध करने में सक्षम था।
  • इसने तपस्या से ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर लिया था कि कोई भी देवता उसे सीधे नहीं मार सकता।

युद्ध वर्णन:

  • जब विद्युनमाली ने देवताओं पर आक्रमण किया, तो सभी ने माँ कूष्मांडा का स्मरण किया।
  • माँ प्रकट हुईं और अपने अष्टभुजा स्वरूप में आकाश में स्थित हो गईं।
  • विद्युनमाली ने देवी पर शक्ति और ब्रह्मास्त्र से आक्रमण किया, लेकिन देवी ने अपनी गदा से उसे नष्ट कर दिया।
  • इसके बाद देवी ने अपने धनुष से विद्युनमाली पर अग्निबाण चलाया, जिससे वह मूर्छित हो गया।
  • जब वह होश में आया, तो उसने फिर से आक्रमण किया, लेकिन माँ ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काटकर उसका अंत कर दिया।
  • जैसे ही विद्युनमाली का सिर धरती पर गिरा, देवी के तेज से उसकी समस्त शक्ति नष्ट हो गई।

फल:

  • विद्युनमाली के मारे जाने से दैत्यों की सेना भयभीत हो गई।
  • त्रिपुरासुर की शक्ति कमजोर पड़ गई।

३. अर्कासुर का वध

राक्षस का परिचय:

  • अर्कासुर सूर्य से उत्पन्न असुर था और सूर्य देव का उपासक था।
  • इसने ब्रह्मा से वरदान लिया था कि कोई भी देवता उसे नहीं मार सकता।
  • यह अपने तेज से सूर्य मंडल को अपने नियंत्रण में रखना चाहता था।

युद्ध वर्णन:

  • जब अर्कासुर ने सूर्य लोक पर आक्रमण किया, तब माँ कूष्मांडा ने अपने दिव्य रूप में प्रकट होकर उसे चुनौती दी।
  • अर्कासुर ने अपनी शक्ति से सूर्य के प्रकाश को मंद कर दिया, जिससे संपूर्ण ब्रह्मांड अंधकारमय हो गया।
  • माँ कूष्मांडा ने अपनी अष्टभुजा से तेजस्वी प्रकाश उत्पन्न किया, जिससे संपूर्ण ब्रह्मांड पुनः प्रकाशित हो गया।
  • अर्कासुर ने अपने गदा और त्रिशूल से आक्रमण किया, लेकिन माँ ने अपने कमल पुष्प से उसे चमत्कृत कर दिया और वह भ्रमित हो गया।
  • इसी समय माँ ने अपने खड्ग (तलवार) से उसका सिर काट दिया
  • जैसे ही अर्कासुर मरा, सूर्य का प्रकाश पुनः तेजस्वी हो गया।

फल:

  • सूर्यलोक पुनः सुरक्षित हो गया।
  • देवताओं ने माँ कूष्मांडा की आराधना की।

४. दारुणासुर का वध

राक्षस का परिचय:

  • यह असुर अपनी माया से अनेक रूप धारण करने में सक्षम था।
  • यह अपनी शक्ति से पृथ्वी और स्वर्ग में डर पैदा करता था।
  • देवताओं को बंदी बनाकर इसे अपनी शक्ति बढ़ाने की क्षमता थी।

युद्ध वर्णन:

  • जब दारुणासुर ने पृथ्वी और स्वर्ग पर आक्रमण किया, तब देवताओं ने माँ कूष्मांडा की स्तुति की।
  • माँ अपने तेजस्वी रूप में प्रकट हुईं और उन्होंने अपनी जपमाला से दिव्य शक्ति उत्पन्न की।
  • दारुणासुर ने अपने मायावी रूपों से माँ पर आक्रमण किया, लेकिन देवी ने अपने चक्र से सारे मायावी रूपों को नष्ट कर दिया
  • जब दारुणासुर ने अपनी संपूर्ण शक्ति संचित करके देवी पर वार किया, तो माँ ने अपने गदा से उसके शरीर को चूर-चूर कर दिया
  • वह अपने मूल रूप में आ गया और अंततः माँ ने अपने त्रिशूल से उसका वध कर दिया

फल:

  • पृथ्वी और स्वर्ग में शांति स्थापित हुई।
  • देवता पुनः मुक्त हुए।

 सारांश:

माँ कूष्मांडा ने जलंधर, विद्युनमाली, अर्कासुर, और दारुणासुर जैसे भयंकर असुरों का वध किया। इनके अष्टभुजा स्वरूप की उपासना से रोग, भय, और नकारात्मकता का नाश होता है।

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दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...