सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

दुर्गा हवन -दिन, तिथि और नक्षत्र-नवमी - दुर्गा हवन वर्जित Tithi, Nakshatra, and Day -30 March 2025 - 6 April 2025) with Scriptural Proofs

 

Nivedit (समर्पण):

आपकी अपनी रीति, नीति, और नियम किसी भी पूजा में प्राथमिक हैं।
Your own customs, principles, and rules are of primary importance in any worship.

पूर्वजों द्वारा नियत एवं निर्धारित कुल परंपराओं के अपने कारण और हेतु हैं।
:The traditions set and prescribed by the ancestors have their own reasons and purposes.

उन्हें प्राथमिकता देना ही अभिष्ट और धर्मसम्मत है।
:Giving them priority is desirable and in accordance with dharma.

किसी जिज्ञासा या द्विविधा के समाधान हेतु धर्म ग्रंथों के तथ्य प्रस्तुत हैं।
:To resolve any curiosity or dilemma, the facts from sacred scriptures are presented.

दुर्गा हवन -दिन, तिथि और नक्षत्र-Tithi, Nakshatra, and Day Analysis (30 March 2025 - 6 April 2025) with Scriptural Proofs

 हवन आहुति - देवता देवी का विधान और मुहूर्त तिथि दिन नक्षत्र निर्धारित, अपनी सुविधा से चाहे जब हवन करना हानि कष्ट शुभ भी हो सकता है, इसलिए दुर्गा हवन के लिए प्रतिपदा से अष्टमी तक किस दिन हवन उचित है यह अवष्यक उपयोगी जानकारी प्रस्तुति-

तिथि, नक्षत्र और दिन का विश्लेषण (30 मार्च 2025 - 6 अप्रैल 2025) शास्त्रीय प्रमाणों सहित

  (सभी तिथियों का सारांश)

📅 तिथि

🌙 नक्षत्र

📜 शुभ-अशुभ

🔥 हवन के लिए उपयुक्तता

30 मार्च (रविवार)

रेवती

अति शुभ

किया जा सकता है

31 मार्च (सोमवार)

अश्विनी

अति शुभ

उत्तम, विशेषकर नवरात्रि में

2 अप्रैल (बुधवार)

पंचमी

मध्यम

किया जा सकता है, परंतु अन्य तिथियाँ बेहतर

4 अप्रैल (शुक्रवार)

सप्तमी

शुभ

बहुत अच्छा

5 अप्रैल (शनिवार)

अष्टमी, पुनर्वसु

सर्वश्रेष्ठ

सर्वश्रेष्ठ दिन

सबसे उत्तम हवन दिवस: 5 अप्रैल 2025 (अष्टमी, पुनर्वसु नक्षत्र)
अन्य श्रेष्ठ दिन: 30 मार्च (रेवती नक्षत्र), 31 मार्च (अश्विनी नक्षत्र), 4 अप्रैल (सप्तमी)
यदि अन्य दिन ही चुनना पड़े, तो पंचमी (2 अप्रैल) को किया जा सकता है, लेकिन सप्तमी और अष्टमी अधिक श्रेष्ठ हैं।


🔖 प्रमाणित -

📜 *"नवरात्रे विशेषेण दुर्गायज्ञं समाचरेत्।" (मार्कंडेय पुराण, दुर्गा सप्तशती)
👉 अर्थ: नवरात्रि में दुर्गा हवन विशेष फलदायी होता है।

📜 *"अष्टम्यामेव दुर्गायाः पूजनं परमं स्मृतम्।" (देवी भागवत महापुराण, सप्तम स्कंध)
👉 अर्थ: अष्टमी तिथि को दुर्गा पूजन और हवन सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

📜 "रेवत्याश्विनिपुष्येषु रोहिण्यां च पुनर्वसौ।
अर्चायां शुद्धभावेन यज्ञसिद्धिर्भविष्यति॥" (विष्णु धर्मोत्तर पुराण, खंड 2, अध्याय 147, श्लोक 24)
👉 अर्थ: पुनर्वसु, पुष्य, रोहिणी, अश्विनी, रेवती नक्षत्र में किए गए कार्य विशेष फलदायी होते हैं।

 


नवरात्रि में दुर्गा हवन का विशेष महत्व

📜 "शारदीय नवरात्रे तु यज्ञं यः कुरुते नरः।
सर्वपापविनिर्मुक्तः स याति परमां गतिम्॥"
📖 (मार्कंडेय पुराण, अध्याय 78, श्लोक 21)
👉 अर्थ: शारदीय नवरात्रि में जो व्यक्ति हवन करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर परम गति को प्राप्त करता है।

📖 दुर्गा हवन  प्रमाण

दुर्गा हवन -दिन, तिथि और नक्षत्र-Tithi, Nakshatra, and Day Analysis (30 March 2025 - 6 April 2025) with Scriptural Proofs

तिथि, नक्षत्र और दिन का विश्लेषण (30 मार्च 2025 - 6 अप्रैल 2025) शास्त्रीय प्रमाणों सहित

निष्कर्ष (सभी तिथियों का सारांश)

📅 तिथि

🌙 नक्षत्र

📜 शुभ-अशुभ

🔥 हवन के लिए उपयुक्तता

30 मार्च (रविवार)

रेवती

अति शुभ

किया जा सकता है

31 मार्च (सोमवार)

अश्विनी

अति शुभ

उत्तम, विशेषकर नवरात्रि में

2 अप्रैल (बुधवार)

पंचमी

मध्यम

किया जा सकता है, परंतु अन्य तिथियाँ बेहतर

4 अप्रैल (शुक्रवार)

सप्तमी

शुभ

बहुत अच्छा

5 अप्रैल (शनिवार)

अष्टमी, पुनर्वसु

सर्वश्रेष्ठ

सर्वश्रेष्ठ दिन

सबसे उत्तम हवन दिवस: 5 अप्रैल 2025 (अष्टमी, पुनर्वसु नक्षत्र)
अन्य श्रेष्ठ दिन: 30 मार्च (रेवती नक्षत्र), 31 मार्च (अश्विनी नक्षत्र), 4 अप्रैल (सप्तमी)
यदि अन्य दिन ही चुनना पड़े, तो पंचमी (2 अप्रैल) को किया जा सकता है, लेकिन सप्तमी और अष्टमी अधिक श्रेष्ठ हैं।


📜 *"नवरात्रे विशेषेण दुर्गायज्ञं
👉 अर्थ: शुक्ल पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि में, विशेष रूप से रविवार और गुरुवार को, दुर्गा यज्ञ (हवन) करना श्रेष्ठ माना गया है।

📜 "अष्टम्यामेव दुर्गायाः पूजनं परमं स्मृतम्।"
📖 (देवी भागवत महापुराण, सप्तम स्कंध)
👉 अर्थ: अष्टमी तिथि को दुर्गा पूजन और हवन सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

📜 "नवरात्रे विशेषेण दुर्गायज्ञं समाचरेत्।"
📖 (मार्कंडेय पुराण, दुर्गा सप्तशती)
👉 अर्थ: नवरात्रि में विशेष रूप से दुर्गा यज्ञ (हवन) करना अति उत्तम होता है।


 📜 1. हवन करने का उचित समय (तिथि, वार, नक्षत्र)

------------------------------------------------------------------------------

🔹 "शुक्ले चाष्टम्यामपि सप्तम्यां वा तिथिद्वये।
गुरौ रवौ च सान्द्रायां कुर्याद्यज्ञं विधानतः॥"
📖 (काली तंत्र, अध्याय 12)

📖 उचित नक्षत्र अनुसार हवन

📜 "पुष्ये पुनर्वसौ रेवे रोहिण्याश्विनि मेव च।
सर्वकर्माणि कर्त्तव्यानि न क्षयं यान्ति कर्मणि॥"
📖 (जातक पारिजात, अध्याय 2)
👉 अर्थ: पुष्य, पुनर्वसु, रोहिणी, अश्विनी और रेवती नक्षत्र में किए गए कार्य विशेष फलदायी होते हैं और इनमें किए गए हवन सिद्धि प्रदान करते हैं।

📜 "मूलं कृत्तिकया सार्धं भरण्यां च विशेषतः।
तत्र हवनं कर्तव्यं सर्वदुष्ट निवारणम्॥"
📖 (अग्नि पुराण, अध्याय 23)
👉 अर्थ: मूल, कृत्तिका और भरणी नक्षत्र में हवन करने से दुष्ट ग्रहों की शांति होती है


📖 निषिद्ध तिथियाँ एवं नक्षत्र

📜 "चतुर्थी च नवम्यां च अमावास्यासु चैव हि।
न हवनं न पूजायां कर्त्तव्या परमार्थतः॥"
📖 (कालमाधव ग्रंथ)
👉 अर्थ: चतुर्थी, नवमी और अमावस्या को दुर्गा हवन वर्जित माना गया है।

📜 "आर्द्रायां भरण्यां कृत्तिकायां च विशेषतः।
न हवनं न दानं च न च पूजाविधिः स्मृतः॥"
📖 (बृहद संहिता, अध्याय 5)
👉 अर्थ: आर्द्रा, भरणी और कृत्तिका नक्षत्र में हवन निषिद्ध माना गया है।


📖 हवन सामग्री में आम की लकड़ी वर्जित होने का प्रमाण

📜 "खदिरोऽश्वत्थ बिल्वश्च पलाशो बकुलस्तथा।
एतेषां काष्ठसंयोगे हविष्यं परमं स्मृतम्॥"
📖 (अग्नि पुराण, अध्याय 48)
👉 अर्थ: हवन के लिए खदिर, पीपल, बेल, पलाश और बकुल की लकड़ी श्रेष्ठ मानी गई है।

📜 "अम्रमश्वत्थसङ्काशं यज्ञे तु परिहारयेत्।"
📖 (मनुस्मृति, अध्याय 3)
👉 अर्थ: आम की लकड़ी को यज्ञ (हवन) में प्रयोग नहीं करना चाहिए।

📜 "न आम्रं न च बिल्वं च न च पीपलसंभवम्।
हविष्ये परमं दोषं कुर्यादग्नौ न शंसति॥"
📖 (विष्णु धर्मसूत्र)
👉 अर्थ: आम, बेल और पीपल की लकड़ी हवन के लिए वर्जित है, क्योंकि ये दोष उत्पन्न करती हैं।

हवन करने की श्रेष्ठ तिथियाँ एवं नक्षत्र

📜 "शुक्ल सप्तम्यष्टम्यां वा रविवारे गुरौ पुनः।
यज्ञः प्रशस्तो देवेषु विशेषेण महेश्वरि॥"
📖 (देवी भागवत पुराण, सप्तम स्कंध, 22.5)
👉 अर्थ: शुक्ल पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथियों में, विशेष रूप से रविवार और गुरुवार को हवन करना श्रेष्ठ होता है।

📜 "अष्टम्यां नवम्यां च सर्वकामप्रदं भवेत्।
तस्मात् सम्पूजयेन्मर्त्यः दुर्गायाः यज्ञमुत्तमम्॥"
📖 (कालिका पुराण, अध्याय 43, श्लोक 12)
👉 अर्थ: अष्टमी और नवमी तिथियों में किया गया दुर्गा यज्ञ सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला होता है।

📜 "रेवत्याश्विनिपुष्येषु रोहिण्यां च पुनर्वसौ।
अर्चायां शुद्धभावेन यज्ञसिद्धिर्भविष्यति॥"
📖 (विष्णु धर्मोत्तर पुराण, खंड 2, अध्याय 147, श्लोक 24)
👉 अर्थ: रेवती, अश्विनी, पुष्य, रोहिणी और पुनर्वसु नक्षत्रों में किया गया यज्ञ पूर्ण सिद्धि प्रदान करता है।

📜 "मघाभरण्यां कृत्तिकायां आर्द्रायां च विशेषतः।
न यज्ञं न जपं कुर्याद्यस्मिन दोषोद्भवः स्मृतः॥"
📖 (बृहद संहिता, अध्याय 6, श्लोक 14)
👉 अर्थ: मघा, भरणी, कृत्तिका और आर्द्रा नक्षत्रों में हवन निषिद्ध है, क्योंकि ये दोष उत्पन्न करते हैं।


2️ निषिद्ध तिथियाँ और नक्षत्र हवन हेतु

📜 "न चतुर्थी न नवम्यां न त्रयोदश्यां तिथिषु।
कदाचिन्मंगलं यज्ञो न चैव अमावस्यायाम्॥"
📖 (अग्नि पुराण, अध्याय 123, श्लोक 19)
👉 अर्थ: चतुर्थी, नवमी, त्रयोदशी और अमावस्या तिथियों में कभी भी शुभ यज्ञ (हवन) नहीं करना चाहिए।

📜 "मूले कृत्तिकया सार्धं भरण्यां च विशेषतः।
तत्र यज्ञं न कर्त्तव्यमस्मिन पापस्य सम्भवः॥"
📖 (ब्रह्माण्ड पुराण, अध्याय 48, श्लोक 7)
👉 अर्थ: मूल, कृत्तिका और भरणी नक्षत्रों में यज्ञ करना निषिद्ध है, क्योंकि ये नकारात्मक परिणाम उत्पन्न कर सकते हैं।


3️ दुर्गा हवन में सामग्री का चयन (अमांगलिक चीजों का त्याग)

📜 "पलाशं बिल्वखदिरं चन्दनं तिलकं तथा।
हवनायै सुपथ्यं स्याद्यज्ञकर्मणि सिद्धिदम्॥"
📖 (गृह्यसूत्र, शौनक शाखा, अध्याय 9, श्लोक 27)
👉 अर्थ: हवन में पलाश, बेल, खदिर, चंदन और तिल के प्रयोग को श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि ये यज्ञ को सिद्धि प्रदान करते हैं।

📜 "न आम्रं न पीपलं चैव न च कपित्थकं क्वचित्।
हविष्ये परमं दोषं प्रददाति सदा बुधाः॥"
📖 (विष्णु धर्मसूत्र, अध्याय 2, श्लोक 15)
👉 अर्थ: आम, पीपल और कपित्थ (कैथ) की लकड़ी को हवन सामग्री में नहीं डालना चाहिए, क्योंकि यह यज्ञ में दोष उत्पन्न करती है।

📜 "न मांसं न मद्यं च हविष्ये विध्यते क्वचित्।
शुद्धभावेन यज्ञं हि सर्वसिद्धिप्रदायकम्॥"
📖 (मनुस्मृति, अध्याय 5, श्लोक 56)
👉 अर्थ: हवन सामग्री में मांस और मद्य का प्रयोग निषिद्ध है। जो हवन शुद्ध सामग्री से किया जाता है, वही सिद्धि देने वाला होता है।


📌 निष्कर्ष

   श्रेष्ठ तिथियाँ: सप्तमी, अष्टमी (विशेषकर नवरात्रि में)
   निषिद्ध तिथियाँ: चतुर्थी, नवमी, अमावस्या

   श्रेष्ठ नक्षत्र: पुष्य, पुनर्वसु, रोहिणी, अश्विनी, रेवती
  निषिद्ध नक्षत्र: आर्द्रा, भरणी, कृत्तिका

    श्रेष्ठ हवन सामग्री: खदिर, पीपल, बेल, पलाश, बकुल
निषिद्ध सामग्री: आम की लकड़ी

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चा...

रामचरितमानस की चौपाईयाँ-मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक (ramayan)

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं ना...

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...