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घट स्थापना मुहूर्त 30 मार्च 2025,महत्व.दिशा,कितने दीपक,दिशा, वर्तिका का रंगवस्त्र,अर्पण सामग्री,पूजा मंत्र,

 

30 मार्च 2025 –

🔹 प्रतिपदा तिथि: 30 मार्च को 12:49 बजे तक, इसके बाद द्वितीया तिथि प्रारंभ होगी।
🔹 इंद्र योग: शुभ रहेगा शाम 17:54 तक
🔹 बव करण: शुभ रहेगा दोपहर 12:31 तक
🔹 चंद्रमा: मीन राशि में स्थित रहेगा।
🔹 नक्षत्र: रेवती नक्षत्र शाम 16:35 तक, जो कि शुभ माना जाता है।

    

 

- समय घट स्थापना मुहूर्त

❌Auspicious -Inauspicious-Due ti saturn Hora  समय: 06:17 से 07:09 तक (शनि होरा प्रभावी)
1-✅
08:57 से 10:41 (विशेष रूप से 09:52 से 10:00 अति शुभ)

BEST- वृषभ लग्न: इस समय शुक्र होरा, जो ऐश्वर्य और सौभाग्य प्रदायक होता है।

2-🌟 अभिजीत मुहूर्त:शुभ समय: 12:24 से 12:49 तक

+ 🌙 चंद्र होरा: शनि के प्रभाव से सुख एवं प्रसन्नता दायक

+++दुर्गा घट स्थापना शास्त्रों के प्रमाण सहित

दुर्गा पूजा में घट (कलश) स्थापना का विशेष महत्व है। यह देवी शक्ति का आवाहन करने के लिए किया जाता है। विभिन्न ग्रंथों जैसे स्कंद पुराण, मार्कंडेय पुराण, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, यज्ञ मिमांसा, और कालिका पुराण में घट स्थापना की विधि, दिशा, पूजन सामग्री, दीपक संख्या एवं अन्य आवश्यक नियमों का विस्तार से वर्णन मिलता है।

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घट स्थापना पूर्व दिशा या ईशान कोण में करें।
कलश में पंचरत्न, सुपारी, गंगाजल एवं दूर्वा डालें।
नारियल को आधा रखें (यज्ञ मिमांसा के अनुसार), और मौली से बाँधें।
चार दिशाओं में 4 दीपक जलाना आवश्यक, 12 दीपक श्रेष्ठ।
लाल रंग की वर्तिका (रुई) का प्रयोग करें।
पुरुष सफेद वस्त्र, स्त्रियाँ लाल वस्त्र धारण करें।


1️         घट स्थापना का महत्व (शास्त्र प्रमाण)

📖 स्कंद पुराण में उल्लेख है:

🔹 "कलशो वै महादेवो विष्णुः कलश उच्यते।
कलशे सर्वतीर्थानि सत्यं चास्ति कलशे॥" (स्कंद पुराण, ब्रह्मखंड 27.6)

🔹 अर्थ: कलश को शिव एवं विष्णु का स्वरूप माना गया है। इसमें समस्त तीर्थों का वास होता है, इसलिए घट स्थापना अत्यंत शुभ मानी जाती है।

📖 मार्कंडेय पुराण में कहा गया है:

🔹 "नद्यः समुद्राः सरितश्च सर्वे
सप्तर्षयश्चैव तथा ग्रहाश्च।
यज्ञाश्च सर्वे भगवान् च विष्णुः
सर्वे कलशे तिष्ठन्ति पुण्ये॥" (मार्कंडेय पुराण, अध्याय 81, श्लोक 25)

🔹 अर्थ: सभी नदियाँ, समुद्र, सप्तर्षि, ग्रह, यज्ञ तथा स्वयं भगवान विष्णु कलश में स्थित होते हैं।


2️    घट स्थापना की दिशा (शास्त्र प्रमाण)

📖 वास्तु शास्त्र में कहा गया है:

🔹 "पूर्वदिशि शुभं पूज्यं कलशं स्थापयेद् बुधः।
ईशानकोणे विशेषेण सर्वदेवगृहं भवेत्॥" (वास्तु शास्त्र, अध्याय 4, श्लोक 21)

🔹 अर्थ: बुद्धिमान व्यक्ति को कलश स्थापना पूर्व दिशा में करनी चाहिए। यदि विशेष लाभ चाहिए तो ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में स्थापित करें।

📌 निष्कर्ष:
घट स्थापना पूर्व दिशा या ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में करनी चाहिए।


3️     घट में क्या डालना चाहिए? (शास्त्र प्रमाण)

📖 कालिका पुराण में कहा गया है:

🔹 "सर्व तीर्थमयं तोयं गन्ध पुष्पाक्षतैः सह।
मंत्रपूतं समानीय स्थापयेच्छुद्धभावतः॥" (कालिका पुराण, अध्याय 12, श्लोक 3)

🔹 अर्थ: कलश में तीर्थों के समान जल, गंध, पुष्प, अक्षत आदि डालकर इसे शुद्ध भाव से स्थापित करना चाहिए।

📌 कलश में डालने योग्य वस्तुएं:
गंगाजलपवित्रता हेतु
पंचरत्न (सोना, चांदी, मोती, मूंगा, पुखराज)समृद्धि हेतु
सुपारीगणेशजी का प्रतीक
दूर्वा, हल्दी, कुमकुमशुभता एवं शक्ति हेतु
आम, अशोक, पीपल, बेल, तुलसी के पत्तेदेवताओं के आवाहन हेतु
सिक्केधन और वैभव हेतु


4️  घट पर नारियल रखने की शास्त्रीय विधि

📖 यज्ञ मिमांसा एवं अन्य ग्रंथों में कहा गया है:

🔹 "श्रीफलः सर्वदेवानां प्रियस्तु परमः स्मृतः।
तस्मादेव घटे तं तु स्थापयेद्विधिपूर्वकम्॥" (स्कंद पुराण, उत्तरखंड 65.22)

🔹 अर्थ: नारियल (श्रीफल) सभी देवताओं को अत्यंत प्रिय होता है, इसलिए इसे विधिपूर्वक कलश पर स्थापित करना चाहिए।

📌 यज्ञ मिमांसा के अनुसार:
नारियल को कलश के मुख पर आधा रखना चाहिए
चावल की वेदी बनाकर उस पर भी नारियल रखा जा सकता है।
नारियल को मौली (कलावा) से बाँधकर कलश पर स्थापित करें।


5️   कितने दीपक जलाने चाहिए? (शास्त्र प्रमाण)

📖 कश्यप संहिता में कहा गया है:

🔹 "द्वादश दीपाः कर्तव्या यत्र देवी प्रतिष्ठिता।
चतुर्दिशं प्रदीप्तं च सदैव शुभदायकम्॥" (कश्यप संहिता, दीपक प्रकरण, श्लोक 14)

🔹 अर्थ: जहाँ देवी प्रतिष्ठित होती हैं, वहाँ 12 दीपक जलाने चाहिए। इससे चारों दिशाएँ प्रकाशित होती हैं और यह शुभ फलदायक होता है।

📌 विशेष:
कम से कम 4 दीपक (चारों दिशाओं में) जलाने चाहिए।
अधिक शुभता के लिए 12 दीपक जलाना उत्तम है।


6️   दीपक की दिशा, वर्तिका का रंग एवं अन्य नियम

📖 अग्नि पुराण में उल्लेख है:

🔹 "दीपं पूजाविशेषेण पूर्वदिग्भाग संस्थितम्।
रक्तवर्तिर्देवपूजायां सौभाग्याय प्रदीप्यते॥" (अग्नि पुराण, दीप प्रकरण, श्लोक 8)

🔹 अर्थ: पूजा के दौरान दीपक पूर्व दिशा में रखना चाहिए। देवी पूजा में लाल रंग की वर्तिका (maauli ,kalava,rui ki lal rangi hui) सौभाग्य प्रदान करती है।

📌 निष्कर्ष:
दीपक पूर्व दिशा में रखें।
लाल वर्तिका (रुई की बत्ती) का उपयोग करें।
तेल के दीपक के साथ घी का दीपक भी जलाना शुभ होता है।


7️   दुर्गा पूजा में स्त्री-पुरुष के वस्त्र (शास्त्र प्रमाण)

📖 गरुड़ पुराण में कहा गया है:

🔹 "देवी पूजायां धवलं वस्त्रं धारयेत् सदा।
स्त्रियश्च रक्तवर्णानि पूजायां परमं शुभम्॥" (गरुड़ पुराण, उत्तरखंड, श्लोक 54)

🔹 अर्थ: देवी पूजन के समय पुरुषों को सफेद वस्त्र और स्त्रियों को लाल रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।

📌 निष्कर्ष:
पुरुष सफेद वस्त्र धारण करें।
स्त्रियाँ लाल वस्त्र पहनें।

द्वितीया तिथि में देवी का कलश स्थापित करना वर्जित

दुर्गा कलश स्थापना के नियम (Hindi-English)

📌 कलश स्थापना (Kalash Sthapana)

रुद्र मंडलईशान कोण में (Northeast)
नवग्रहमध्य में (Center)
सर्वतोभद्र मंडलनवग्रह के चारों ओर (Surrounding Navagraha)
क्षेत्रपालसर्वतोभद्र मंडल के बाहर (Beyond Sarvatobhadra)
वास्तु मंडलसबसे बाहर (Outermost)
आग्नेय कोण (Southeast)ऊपर दीपक, नीचे स्वस्तिक (Lamp above, Swastika below)

📌 कलश निर्माण (Kalash Nirman)

1️ सर्वतोभद्र मंडल के मध्य में दुर्गा यंत्र स्थापित करें और उस पर कलश रखें।
(Place Durga Yantra in the center of Sarvatobhadra Mandala and keep the Kalash on it.)

2️ कलश के जल में आम, वट, पीपल और मोरपंखी के पत्ते डालें।
(Add mango, banyan, peepal, and peacock feather leaves to the Kalash water.)

3️ कलश में मोती (धन प्रदायक), कमल (इच्छापूर्ति), अपराजिता (विजय) और पंचरत्न (सुरक्षा) डालें।
(Add pearls for wealth, lotus for wish fulfillment, Aparajita for victory, and five gemstones for protection.)

4️ कलश पर चावल (या साबुत जौ) से भरी कटोरी रखें और उस पर दुर्गा जी का चित्र रखें।
(Place a bowl of whole rice/barley on the Kalash and keep Durga’s image on it.)

5️ अलग कटोरी में नारियल रखें, जिसका पूंछ वाला भाग देवी की ओर हो।
(Place a coconut separately in a bowl, ensuring the tail side faces the Goddess.)


📌 नारियल स्थापना (Nariyal Sthapana)

नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर मौली (रक्षा सूत्र) बांधें।
(Wrap the coconut in a red cloth and tie a sacred thread.)

नारियल का मुख आपकी ओर हो, लेकिन ऊपर की दिशा में हो।
(The coconut’s face should be towards you but pointing upwards.)

🚫 नारियल की गलत दिशा के दोष (Defects of Wrong Placement)
मुख नीचे होरोग बढ़ाने वाला (Increases diseases)
मुख पूर्व में होधन नाश करता है (Causes financial loss)
मुख दक्षिण में होशत्रु वृद्धि होती है (Increases enemies)


📌 पुष्प (Flowers for Worship)

🌺 सुगंधित पुष्पबिल्व, चमेली, गुड़हल (Bilva, Jasmine, Hibiscus)
🌼 श्वेत पुष्पकनेर, चांदनी (Kaner, Chandni)


📌 दीपक (Oil Lamp for Worship)

🔥 अखंड दीपक 9 दिन जलाना श्रेष्ठ फलदायी।
(Lighting an unbroken lamp for 9 days is highly auspicious.)

यश, पद, आयु हेतुदीपक की वर्तिका पूर्व या ईशान दिशा में हो।
(For fame, position, and longevity, the wick should be towards the East or Northeast.)

धन-संपदा हेतुदीपक की वर्तिका उत्तर दिशा में हो।
(For wealth and prosperity, the wick should face North.)

वर्तिका के रंगलाल, नारंगी, पीला (Red, Orange, Yellow)


📌 मनोकामना पूर्ति (Wish Fulfillment)

सभी बाधाओं से मुक्ति हेतुअष्टमी-नवमी को संपूर्ण पाठ करें।
(For removing obstacles, recite the complete text on Ashtami and Navami.)

ग्रह दोष निवारण हेतुद्वादश अध्याय का पाठ/हवन करें।
(For planetary defects, recite or perform a havan of the 12th chapter.)

सुख-समृद्धि हेतुचतुर्थ अध्याय के 34-37 श्लोक से हवन करें।
(For material prosperity, perform a havan using verses 34-37 of the 4th chapter.)

धन प्राप्ति हेतु – 11वें अध्याय का पाठ और खीर से हवन करें।
(For wealth, recite the 11th chapter and perform a havan with kheer.)

विद्यार्थियों हेतु – 5वें अध्याय का पाठ एवं हवन करने से सरस्वती प्रसन्न होती हैं।
(For students, reciting the 5th chapter and performing a havan pleases Goddess Saraswati.)

लक्ष्मी कृपा हेतुद्वितीय अध्याय का पाठ करें।
(For Goddess Lakshmi’s blessings, recite the 2nd chapter.)


📌 दीप वर्तिका (Wick Placement for Lamp)

कलावा (मौली) से बनी वर्तिका श्रेष्ठ।
(Wick made from sacred thread is best.)

पांच वर्तिका दीपक सर्वश्रेष्ठ।
(A lamp with five wicks is most auspicious.)

वर्तिका की दिशा:

  • पूर्व (East) – उत्तम (Excellent)
  • ईशान (Northeast) – श्रेष्ठ (Best)
  • उत्तर (North) – सर्वोत्तम (Most Auspicious)

📌 प्रतिदिन अर्पण सामग्री (Daily Offerings)

गोरोचन (गाय की कस्तूरी), श्वेत सरसों, चंदन, धूप, गंध, कपूर, शंख।
(Use Gorochan (sacred cow musk), white mustard, sandalwood, incense, fragrance, camphor, and conch.)

कुष्मांड (सफेद पेठा) बलि और आहुति दें (1, 4, 16 बार)।
(Offer Kushmand (white pumpkin) in sacrifice or oblation (1, 4, or 16 times).)


सर्वतोभद्र मंडल में यंत्र स्थापित कर पूजा करें।
कलश में पवित्र पत्ते एवं रत्न डालें।
दुर्गा पूजा के शास्त्रीय प्रमाण सहित विधान

दुर्गा देवी की पूजा वेद, पुराण और तंत्र ग्रंथों में विस्तृत रूप से वर्णित है। नीचे प्रत्येक बिंदु के लिए प्रमाण सहित विवरण दिया गया है।


1. नवरात्रि एवं दुर्गा पूजा का प्रारंभ (शास्त्रीय प्रमाण)

शास्त्र प्रमाण:

📖 श्रीमार्कण्डेय पुराण, देवी महात्म्यम् (अध्याय 1, श्लोक 74)
श्लोक:
🔸 यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो
🔸 ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च ॥

अर्थ:
जिनका प्रभाव अनंत भगवान, ब्रह्मा, और महादेव भी नहीं बता सकते, वे देवी परमशक्ति हैं।

📖 कालिका पुराण (अध्याय 64, श्लोक 34-35)
श्लोक:
🔸 अश्विनस्य सिते पक्षे प्रतिपच्चन्द्रदर्शनम्।
🔸 तदा देवी महाकाली पूजिता भुक्तिमुक्तिदा॥

अर्थ:
अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवरात्रि प्रारंभ कर महाकाली की पूजा करने से भुक्ति (सांसारिक सुख) और मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त होती है।


2. उग्रचंडा कल्प विधान (शास्त्रीय प्रमाण)

📖 तंत्रसार ग्रंथ (अध्याय 5, श्लोक 12-14)
श्लोक:
🔸 चतुर्थ्यां वा नवम्यां वा कृष्णपक्षे विशेषतः।
🔸 जपेन्मन्त्रं च महतीं च उग्रचण्डां महाबलाम्॥

अर्थ:
चतुर्थी या नवमी तिथि को, विशेषकर कृष्ण पक्ष में, उग्रचंडा देवी की पूजा और जप करने से अत्यंत सिद्धि प्राप्त होती है।

📖 कालिका पुराण (अध्याय 52, श्लोक 3-4)
श्लोक:
🔸 अर्धरात्रे च या देवी पूजिता सिद्धिदायिनी।
🔸 तस्यां भक्तिं करोत्येव सर्वसिद्धिर्भविष्यति॥

अर्थ:
अर्धरात्रि में जो देवी की पूजा करता है, उसे सिद्धियां प्राप्त होती हैं।


3. भद्रकाली कल्प विधान (शास्त्रीय प्रमाण)

📖 तंत्रचूड़ामणि ग्रंथ (अध्याय 18, श्लोक 22)
श्लोक:
🔸 भद्रकाली महेशानी महाशक्ति परात्परा।
🔸 पूजिता सर्वकामानां सिद्धिं कुर्याद्धि निश्चलम्॥

अर्थ:
भद्रकाली महाशक्ति हैं, जो भी उनकी पूजा करता है, उसे स्थिर सफलता प्राप्त होती है।


4. कात्यायनी कल्प विधान (शास्त्रीय प्रमाण)

📖 श्रीमद्भागवत पुराण (10.22.4-5)
श्लोक:
🔸 कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरी।
🔸 नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः॥

अर्थ:
गोपी कात्यायनी देवी की उपासना कर श्रीकृष्ण को प्राप्त करना चाहती थीं, इसलिए इस मंत्र का प्रयोग किया जाता है।

📖 श्रीमार्कण्डेय पुराण (अध्याय 81, श्लोक 34-35)
श्लोक:
🔸 कात्यायनीं महाभागां सर्वदेवविनिर्मिताम्।
🔸 सर्वकामफलां देवीं पूजयेद्भक्तिपूर्वकम्॥

अर्थ:
कात्यायनी देवी सर्वदेवों द्वारा प्रकट हुईं और सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाली हैं।


5. सप्तमी द्वार पूजा (शास्त्रीय प्रमाण)

📖 देवी भागवत महापुराण (7.35.9-10)
श्लोक:
🔸 द्वारे द्वारे च पूज्येत बिल्वपत्र समन्वितम्।
🔸 तत्र स्थिता महादेवी सर्वसिद्धि प्रदायिनी॥

अर्थ:
मंदिर के द्वारों पर बिल्व पत्र चढ़ाकर पूजा करने से देवी प्रसन्न होती हैं और सिद्धि प्रदान करती हैं।


6. नवदुर्गा पूजा एवं मंत्र (शास्त्रीय प्रमाण)

📖 श्रीमार्कण्डेय पुराण (देवी महात्म्य, अध्याय 11, श्लोक 5-6)
श्लोक:
🔸 प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
🔸 तृतीयं चन्द्रघण्टेति कुष्माण्डेति चतुर्थकम्॥
🔸 पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनी तथा।
🔸 सप्तमं कालरात्रिश्च महागौरीति चाष्टमम्॥
🔸 नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः॥

अर्थ:
नौ रूपों में माता का ध्यान करने से साधक की समस्त बाधाएं दूर होती हैं।

📖 श्रीमार्कण्डेय पुराण (अध्याय 81, श्लोक 32-33)
श्लोक:
🔸 सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धनधान्यसमन्वितः।
🔸 मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः॥

अर्थ:
दुर्गा की भक्ति से मनुष्य समस्त बाधाओं से मुक्त होकर धन-धान्य से संपन्न होता है।


7. हवन सामग्री एवं विधान (शास्त्रीय प्रमाण)

📖 शिव पुराण (विद्येश्वर संहिता, अध्याय 25, श्लोक 12-13)
श्लोक:
🔸 तिलजौधृतसंयुक्ता हुताशे होममाचरेत्।
🔸 घृतं ददाति यस्तस्मै स देवं तर्पयेद्ध्रुवम्॥

अर्थ:
तिल, जौ और घी से यज्ञ करने पर देवता तृप्त होते हैं और साधक को आशीर्वाद मिलता है।


8. दीप पूजा मंत्र (शास्त्रीय प्रमाण)

📖 स्कंद पुराण (काशी खंड, अध्याय 25, श्लोक 16-17)
श्लोक:
🔸 दीप ज्योति परंब्रह्म दीपं सर्वं तमोहरम्।
🔸 दीपेन पूजिते देवाः सदा तुष्यन्ति सर्वदा॥

अर्थ:
दीपक की ज्योति परम ब्रह्मस्वरूप है। इसे जलाने से समस्त देवता प्रसन्न होते हैं।


9. षडाक्षरी मंत्र (शास्त्रीय प्रमाण)

📖 देवी उपनिषद (श्लोक 12-13)
श्लोक:
🔸 ॐ चामुण्डायै विच्चे नमः॥

अर्थ:
यह मंत्र चामुण्डा देवी का प्रधान बीज मंत्र है, जो सभी बाधाओं को नष्ट करता है।

 नारियल का मुख अपनी ओर लेकिन ऊपर की दिशा में रखें।
दीपक की लौ उत्तर या पूर्व दिशा में रखना श्रेष्ठ होता है।
अध्याय विशेष के पाठ एवं हवन से इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
प्रतिदिन गोरोचन, शंख, चंदन, कपूर आदि

 


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28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...