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शीतला- अष्टमी -गृह दोष समाप्त +संतान अष्टमी, कथा:संतान सुख, रक्षा और उज्ज्वल भविष्यSheetla Ashtami – Remedy for Planetary Afflictions + Santan Ashtami Katha: Blessings for Children's Happiness, Protection, and Prosperous Future

 

शीतला- अष्टमी -गृह दोष समाप्त +संतान अष्टमी, कथा:संतान सुख रक्षा और उज्ज्वल भविष्य

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शीतला अष्टमी में शीतला माता की पूजा की जाती है। दिन बासी भोजन का सेवन किया जाता है, जिसे 'बसौड़ा' कहा जाता है, (ताजे भोजन पकाने से बचा जाता है। )

यह परंपरा मुख्यतः इस मान्यता पर आधारित है कि गर्म भोजन या चूल्हे की गर्मी से शरीर में उष्णता बढ़ सकती है, जिससे त्वचा रोग हो सकते हैं। शीतला माता की पूजा से चेचक, फोड़े-फुंसी और अन्य त्वचा रोगों से बचाव होता है।

(शीतला अष्टमी) - मान्यता कि यदि यह तिथि मंगलवार या शनिवार को आती है, तो इसे एक दिन पूर्व मनाना चाहिए? पारंपरिक लोक मान्यताओं आधारित है।

तिथि और व्रत-पूजा में तिथि का महत्व:
हिंदू धर्म में तिथियों का विशेष महत्व होता है, क्योंकि ये कर्मकांड और व्रत-पूजा के लिए निर्धारित समय को दर्शाती हैं।

  • अष्टमी और प्रदोष व्रत में विशेष नियम होते हैं।
  • अष्टमी व्रत का पालन तभी किया जाता है जब अष्टमी तिथि मध्याह्न (दिन के मध्य भाग) में हो।
  • प्रदोष व्रत में त्रयोदशी तिथि का संध्या (शाम) के प्रदोष काल में होना आवश्यक होता है।
  • तिथि का कर्मकाल (जिस समय तिथि प्रभावी होती है) अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

तिथियों की प्राथमिकता का नियम:

  1. यदि किसी दिन सप्तमी और अष्टमी दोनों पड़ती MID DAY me हैं, तो सप्तमी तिथि अधिक महत्वपूर्ण मानी जाएगी।
  2. यदि दो दिनों तक अष्टमी तिथि मध्याह्न में पड़ती है, तो व्रत एक दिन पहले मनाया जाएगा।
  3. यदि पूरे दिन अष्टमी तिथि हो, तो उसी दिन व्रत रखा जाएगा।

यह नियम निर्णय सिंधु, धर्मसिंधु और अन्य धर्मशास्त्रों में उल्लिखित सिद्धांतों पर आधारित है।

शीतला अष्टमी तिथि मंगलवार या शनिवार-

एक दिन पूर्व मनाना चाहिए?

शास्त्रीय प्रमाण - उपलब्ध ग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख कम है।

1.      स्कन्द पुराण (Skanda Purana)
स्कन्द पुराण के काशी खंड और वैष्णव खंड में शीतला माता की उपासना और व्रत के संदर्भ मिलते हैं, जहाँ यह कहा गया है कि तिथि विशेष के अनुरूप पूजा करने से पुण्य फल मिलता है। (arthat ashtmi tithi mahtvpurn)

"अष्टम्यां तु विशेषेण पूजनं यदि कारयेत्।
तस्य सर्वे गृहे दोषा: न भवन्ति कदाचन।।"
(स्कन्दपुराण, काशीखण्ड, अध्याय 45)

अर्थ: अष्टमी तिथि में विशेष रूप से पूजा करने से गृह दोष समाप्त हो जाते हैं।

2.      नारद पुराण (Narada Purana)
नारद पुराण में यह उल्लेख है कि यदि कोई व्रत या पूजा किसी ग्रह की अशुभ स्थिति में आती है, तो उसे एक दिन पूर्व करने से दोष का निवारण होता है।

"मङ्गले च शनौ यत्र व्रतमष्टमि सम्भवेत्।
पूर्वदिनं तु संप्राप्य पूजायां फलमाप्नुयात्।।"
(नारदपुराण, अध्याय 64)

अर्थ: यदि अष्टमी तिथि मंगलवार या शनिवार को आती है, तो एक दिन पूर्व पूजा करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

1-      धर्मसिंधु (Dharmasindhu): धर्मसिंधु ग्रंथ में भी इस विषय पर निर्देश मिलता है कि शीतला अष्टमी का व्रत यदि मंगलवार या शनिवार को हो, तो इसे एक दिन पूर्व करना उचित है।

संस्कृत श्लोक: "शीतलाष्टम्यां तु विशेषेण पूजनं यदि कारयेत्।

 तस्य सर्वे गृहे दोषा: न भवन्ति कदाचन।।"

2-      अर्थ: शीतला अष्टमी के दिन विशेष रूप से पूजा करने से गृह के सभी दोष समाप्त हो जाते हैं।

3-      शीतलाष्टक स्तोत्र (स्कंद पुराण):

4-      "वन्देऽहं शीतलां देवीं रसभस्मास्थितां शुभाम्।

5-      मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालङ्कृतमस्तकाम्॥"

6-      हिंदी अर्थ:

"मैं शीतला देवी की वंदना करता हूँ, जो रज और भस्म में स्थित हैं, शुभ्र स्वरूपिणी हैं, मार्जनी (झाड़ू) और कलश धारण करती हैं, तथा शूर्प (सूप) से अलंकृत मस्तक वाली हैं।"

7-      व्रत संकल्प मंत्र:

8-      व्रत के संकल्प के लिए निम्नलिखित मंत्र का उल्लेख मिलता है:

"मम गेहे शीतलारोग जनितोपद्रव प्रशमनपूर्वकायुरोग्यैश्वर्याभिवृद्धये शीतलाष्टमी व्रत करिष्ये"1. व्रत संकल्प मंत्र:

"मम गेहे शीतलारोग जनितोपद्रव प्रशमनपूर्वकायुरोग्यैश्वर्याभिवृद्धये शीतलाष्टमी व्रत करिष्ये".

2. शीतला देवी का स्वरूप:

 शीतला देवी के स्वरूप का वर्णन स्कंद पुराण में 'शीतलाष्टक' स्तोत्र के रूप में मिलता है। यह स्तोत्र भगवान शंकर द्वारा रचित है और शीतला देवी की महिमा का वर्णन करता है।आपने

स्कन्द पुराण में चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की तिथियों पर शीतला देवी की पूजा का विधान बताया गया है। इन तिथियों पर विशेष खाद्य पदार्थों का सेवन वर्जित माना गया है, क्योंकि इससे विभिन्न रोगों की संभावना होती है।

शीतला देवी का स्वरूप:

स्कन्द पुराण में शीतला देवी का वर्णन इस प्रकार किया गया है:

  • वाहन: गर्दभ (गधा)
  • हाथों में धारण किए गए वस्त्र:
    • कलश
    • सूप
    • मार्जन (झाड़ू)
    • नीम के पत्ते

स्कन्द पुराण में चार अष्टमियों का उल्लेख (शीतला अष्टमी के अतिरिक्त):

स्कन्द पुराण के अनुसार, चार अष्टमियों का विशेष महत्व है। इन तिथियों पर कुछ विशिष्ट खाद्य पदार्थों का सेवन निषिद्ध माना गया है, क्योंकि इनके प्रभाव से शरीर में रोग उत्पन्न हो सकते हैं।

चार अष्टमियाँ एवं निषिद्ध भोजन

  1. चैत्र अष्टमीबासी भोजन (शीतल भोजन) वर्जित
    • इसके प्रभाव से परिवार में ज्वर (बुखार), लाल-पीला बुखार, फोड़े-फुंसी, त्वचा रोग, चर्म विकार, पसयुक्त फोड़े (मवाद), नेत्र रोग और चेचक होने की संभावना रहती है।
  2. वैशाख अष्टमीघी, शक्कर और सत्तू वर्जित
    • इन पदार्थों के सेवन से शरीर में गर्मी बढ़ती है, जिससे त्वचा पर जलन और अन्य रोग उत्पन्न हो सकते हैं।
  3. ज्येष्ठ अष्टमीबासी पूए (तले हुए मीठे पकवान) वर्जित
    • इसके प्रभाव से फोड़े-फुंसी, मवाद युक्त घाव, त्वचा रोग, नेत्र संबंधी समस्याएँ और शरीर में संक्रमण हो सकते हैं।
  4. आषाढ़ अष्टमीघी, शक्कर और खीर वर्जित
    • इसके सेवन से रक्त विकार, त्वचा रोग, जलन, दाद-खुजली और शरीर में गर्मी के कारण उत्पन्न समस्याएँ होती हैं।

शीतला पूजा एवं सुरक्षा

शीतला माता की पूजा इन रोगों से रक्षा प्रदान करती है।

  • शीतला माता का स्वरूप:
    • दिगम्बरा स्वरूप – (अर्थात वस्त्रहीन) यह दर्शाता है कि फोड़े-फुंसी और अत्यधिक गर्मी से ग्रसित व्यक्ति वस्त्र धारण करने में असमर्थ हो जाता है।
    • गधे पर विराजमानगधे की लीद को फोड़े-फुंसी पर लगाने से रोग दूर होते हैं।
    • शूप (सूप) और झाड़ू हाथ में
      • अन्न की सफाई (सूप चलाना) और झाड़ू लगाने से रोगों की वृद्धि होती है।
      • शीतला अष्टमी के दिन झाड़ू लगाने और सूप के प्रयोग से बचना चाहिए।
    • नीम के पत्ते हाथ में
      • नीम के पत्तों से घाव, फोड़े-फुंसी सड़ते नहीं, बल्कि ठीक होते हैं।
    • शीतल जल
      • रक्त विकार से बचाव के लिए अपने पास (कमरे में) कलश रखना चाहिए।

निष्कर्ष:

स्कन्द पुराण के अनुसार, चार अष्टमियों पर विशेष प्रकार के खाद्य पदार्थों का सेवन वर्जित है, क्योंकि वे शरीर में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न कर सकते हैं। शीतला माता की पूजा करने से चेचक, त्वचा रोग, नेत्र रोग, और फोड़े-फुंसी जैसी समस्याओं से सुरक्षा प्राप्त होती है।

इन प्रतीकों का विशेष महत्व है, जैसे नीम के पत्ते रोगों से रक्षा करते हैं, और कलश शीतल जल का प्रतीक है।


 3. वर्जित भोज्य पदार्थ:

शीतला अष्टमी के दिन बासी भोजन करना शास्त्र विहित है।

अर्थात, इस दिन के लिए शास्त्रीय विधान है कि बासी भोजन करना है।

 चूल्हे पर इस दिन तवा नहीं चढ़ाने का विधान है।

4. दीपक में तेल या घी का उपयोग:

शीतला माता की पूजा में दीपक जलाने के संबंध में विशेष निर्देश उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि, सामान्यतः पूजा में घी का दीपक जलाना शुभ माना जाता है। यदि घी उपलब्ध न हो, तो तिल के तेल का दीपक भी जलाया जा सकता है।

5. पूजा का समय, दिशा, दान, और भोज्य पदार्थ:

  • पूजा का समय: शीतला अष्टमी की पूजा प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व की जाती है।
  • दिशा: पूजा करते समय मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना शुभ माना जाता है।
  • दान: भोजन, वस्त्र, और शीतल पेय पदार्थों का दान करना व्रत पुण्यदायी माना गया है।
  • भोज्य पदार्थ दिन बासी भोजन का सेवन किया जाता है। इसमें पूड़ी, पुआ, दही, बासी खीर, बाजरे की रोटी आदि शामिल हैं।
  • 1. शीतला माता ध्यान मंत्र:
  •  
    📖 (स्कन्द पुराण में वर्णित)

"वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्।

मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालङ्कृतमस्तकाम्॥"

 

"जो गधे पर विराजमान हैं, दिगम्बर स्वरूप में हैं, जिनके हाथ में झाड़ू और कलश है, और सिर पर सूप धारण किए हुए हैं, मैं उन शीतला देवी को वंदन करता हूँ।"

2. शीतला माता बीज मंत्र:

 

"ॐ ह्रीं शीतलायै नमः।"

 

"शीतला माता को नमन है, जो समस्त रोगों को नष्ट करने वाली हैं।"

3. शीतला माता स्तुति मंत्र:

 

📖 (स्कन्द पुराण में उल्लेखित)

"शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।

शीतलं धारयं देवि शीतले लोकशीतले॥"

 

"हे शीतला माता! आप संपूर्ण जगत की माता हैं, आप ही पिता हैं। कृपया हमें शीतलता प्रदान करें और समस्त संसार को शीतलता देने वाली बनें।"

4. शीतला माता अष्टक स्तोत्र:

 

📖 (शीतला अष्टक)

🔹

"नमामि शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्।

मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालङ्कृतमस्तकाम्॥ १॥

 

वन्देऽहं शीतलां देवीं सर्वरोग भयापहाम्।

यामासाद्य निवर्तेत विषम ज्वरदारुणः॥ २॥

 

यामासाद्य निवर्तेत पुनरुत्पात पीडनम्।

प्रसन्नवदनां देवीं शीतलां प्रणमाम्यहम्॥ ३॥"

 

"गधे पर विराजमान, दिगम्बर रूप, झाड़ू और कलश धारण करने वाली माता शीतला को नमन है।

जो समस्त रोगों के भय को हरने वाली हैं, विषम ज्वर को समाप्त करने वाली हैं।

जो प्रसन्न मुख वाली देवी हैं, उन माता शीतला को मैं प्रणाम करता हूँ।"

5. शीतला माता पूजन विधि एवं निषेध

 

    पूजन काल: प्रातः काल

    दीपक: तिल का तेल या घी

    निषेध: पूजा के दिन झाड़ू न लगाएं, ताजे अन्न का भोजन न करें, बसौड़ा (बासी भोजन) खाएं।

    भोग: बासी रोटी, दही, चीनी, चावल, गुड़

    वर्जित खाद्य पदार्थ: गरम भोजन, मसालेदार भोजन, उड़द की दाल, तेल से बनी चीजें

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संतान अष्टमी

विष्णु धर्मोत्तर पुराण - श्रीकृष्ण और देवकी की पूजा  संतान अष्टमी:

संतान अष्टमी व्रत संतान की लंबी आयु, स्वास्थ्य और कल्याण के लिए किया जाता है। इस दिन माताएँ उपवास रखती हैं और भगवान श्रीकृष्ण एवं उनकी माता देवकी की पूजा करती हैं। पूजा के दौरान सात्विक भोज्य पदार्थ अर्पित किए जाते हैं, जैसे फल, दूध, दही, माखन आदि। यह व्रत विशेष रूप से उन महिलाओं द्वारा किया जाता है जो संतान सुख की इच्छा रखती हैं या अपनी संतानों की समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं।

विष्णु धर्मोत्तर पुराण में संतान अष्टमी व्रत के संदर्भ में निम्नलिखित श्लोक है:​

 सन्तान सुखमाप्नोति दीर्घमायुरवाप्नुयात्। पूजयेच्च देवकीं कृष्णं चैव समाहितः॥​

 "संतान सुख और दीर्घायु की प्राप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक देवकी और कृष्ण की पूजा करनी चाहिए।"​

 पूजा विधि:

••         घर के पूजा स्थल को साफ करके भगवान श्रीकृष्ण और माता देवकी की मूर्तियों या चित्रों की स्थापना करें।

           सात्विक भोज्य पदार्थ जैसे फल, दूध, दही, माखन आदि का भोग लगाएँ।

           धूप, दीप, पुष्प और नैवेद्य अर्पित करें।

           4. श्रीकृष्ण-देवकी पूजन विधि:

पूजन काल: प्रातः या मध्याह्न (अष्टमी तिथि हो तो उत्तम)
आरती: "ॐ जय जगदीश हरे" एवं "श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी"
भोग: दूध, दही, माखन-मिश्री, सात्त्विक भोजन
संतान रक्षा हेतु विशेष अनुष्ठान: विष्णु सहस्रनाम का पाठ


श्रीकृष्ण और माता देवकी की पूजा करने से संतान की रक्षा, समृद्धि और सुख-शांति प्राप्त होती है। संतान अष्टमी या विशेष संतान प्राप्ति के लिए इन मंत्रों का जाप अत्यंत फलदायी होता है। 🙏

कथा सारांश:

1. देवकी का विवाह और कंस का अत्याचार:
मथुरा के राजा उग्रसेन के पुत्र कंस ने अपनी बहन देवकी का विवाह वसुदेव जी के साथ किया। विवाह के बाद जब कंस अपनी बहन को ससुराल छोड़ने जा रहा था, तब आकाशवाणी हुई
"
हे कंस! जिस देवकी को तू प्रेमपूर्वक विदा कर रहा है, उसी के गर्भ से जन्मा आठवां पुत्र तेरा वध करेगा।"

यह सुनकर कंस भयभीत हो गया और उसने देवकी को मारने का निश्चय किया, लेकिन वसुदेव जी के समझाने पर उसने उन्हें कारागार में डाल दिया और यह शर्त रखी कि वह उनके हर संतान को मार देगा।

2. श्रीकृष्ण का जन्म:
कंस ने देवकी की छह संतानों को क्रूरता से मार दिया, जबकि सातवीं संतान (शेषनाग) योगमाया के प्रभाव से रोहिणी माता के गर्भ में स्थानांतरित हो गई, जो आगे चलकर बलराम के रूप में जन्मे।

आठवीं संतान के रूप में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण रूप में जन्म लिया। जन्म के समय कारागार के ताले खुल गए, पहरेदार गहरी नींद में सो गए और वसुदेव जी भगवान कृष्ण को यमुना पार गोकुल में नंद बाबा और यशोदा माता के पास छोड़ आए। बदले में वहाँ जन्मी योगमाया को लेकर वे वापस आए। जब कंस ने उस कन्या को मारने का प्रयास किया, तो वह आकाश में उड़ गई और देवी के रूप में प्रकट होकर कहा
"
हे कंस! तेरा संहार करने वाला जन्म ले चुका है।"

3. श्रीकृष्ण द्वारा कंस का वध:
बचपन में श्रीकृष्ण गोकुल, वृंदावन और नंदगांव में रहे। उन्होंने कई राक्षसों (पूतना, शकटासुर, तृणावर्त, अघासुर, बकासुर, केशीराक्षस आदि) का वध किया। युवा होने पर वे मथुरा आए और कंस का वध कर अपने माता-पिता (देवकी-वसुदेव) को कारागार से मुक्त कराया


संतान अष्टमी व्रत और माता देवकी की पूजा का महत्व:

विष्णु धर्मोत्तर पुराण और अन्य ग्रंथों के अनुसार, संतान प्राप्ति, संतान की रक्षा और उनके सुखद भविष्य के लिए संतान अष्टमी व्रत किया जाता है। इस दिन माता देवकी और श्रीकृष्ण की पूजा कर संतान की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की प्रार्थना की जाती है।

पूजा विधि:

प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लें।

श्रीकृष्ण और माता देवकी की मूर्ति/चित्र के समक्ष दीप जलाएं।

उन्हें सात्विक भोज्य पदार्थ अर्पित करें (फल, दूध, दही, माखन, मिश्री आदि)।

संतान की रक्षा और समृद्धि के लिए श्रीकृष्ण स्तोत्र और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। श्रीकृष्ण-देवकी मंत्र

 

श्रीकृष्ण और माता देवकी की पूजा विशेष रूप से संतान सुख, संतान रक्षा और उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए की जाती है। विष्णु धर्मोत्तर पुराण में माता देवकी और श्रीकृष्ण की संयुक्त पूजा का उल्लेख मिलता है।

1. श्रीकृष्ण-देवकी ध्यान मंत्र

📖 (विष्णु धर्मोत्तर पुराण से)

"देवकी तनयं वन्दे वासुदेवं जगद्गुरुम्।

सन्तान सुखदं नित्यं श्रीकृष्णं करुणा करम्॥"

 "मैं माता देवकी के पुत्र, जगत के गुरु वासुदेव श्रीकृष्ण को प्रणाम करता हूँ।

जो नित्य संतान सुख प्रदान करने वाले, दयालु और करुणामय हैं।"

2. संतान सुख प्राप्ति के लिए श्रीकृष्ण-देवकी मंत्र

 "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय देवकीनंदनाय सुताय स्वाहा।"

 "भगवान वासुदेव, माता देवकी के प्रिय पुत्र को मेरा नमन। कृपया मुझे संतान सुख प्रदान करें।"

3. माता देवकी स्तुति मंत्र

 "देवकीनन्दनं देवं नन्दगोपप्रियं सुतम्।

1.       सन्तान सुखदं कृष्णं वन्दे भक्तवत्सलम्॥"

2.       "माता देवकी के पुत्र, नंदगोप के प्रिय श्रीकृष्ण को नमन, जो संतान सुख देने वाले और भक्तों के प्रिय हैं।"

निष्कर्ष:

संतान अष्टमी का व्रत हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। माता देवकी और श्रीकृष्ण की पूजा करने से संतान की रक्षा, दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत विशेष रूप से उन माता-पिताओं द्वारा किया जाता है जो अपनी संतान की समृद्धि और सुरक्षा’

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अष्टमी तिथि - वर्जित भोज्य पदार्थ:

           नारियल:, अष्टमी तिथि पर नारियल का सेवन वर्जित माना गया है, क्योंकि इससे बुद्धि का विनाश होता है।

           तिल का तेल: अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, चतुर्दशी, अष्टमी तिथि, रविवार, श्राद्ध और व्रत के दिनों में तिल के तेल का सेवन निषिद्ध है।

6- व्रत वर्जित भोज्य पदार्थ:

           अनाज: व्रत के दौरान गेहूं, चावल, बाजरा आदि अनाज का सेवन नहीं किया जाता।  दालें: दालों का सेवन भी व्रत में वर्जित माना गया है।

           प्याज और लहसुन: ये तामसिक गुण वाले माने जाते हैं, इसलिए व्रत में इनका सेवन नहीं किया जाता।

           मसालेदार और तैलीय भोजन: व्रत के दौरान मसालेदार और तैलीय भोजन से बचना चाहिए।

           मांसाहार और नशीले पदार्थ: मांसाहारी भोजन और नशीले पदार्थों का सेवन व्रत में वर्जित है।

अनुशंसित भोज्य पदार्थ:

           फलाहार: ताजे फल जैसे सेब, केला, अनार आदि का सेवन किया जा सकता है।

           डेयरी उत्पाद: दूध, दही, पनीर और मक्खन का सेवन शुभ माना जाता है।

साबूदाना: साबूदाना खिचड़ी या वड़ा ऊर्जा प्रदान करने वाले होते हैं।

           समक के चावल: इन्हें व्रत के अनुकूल माना जाता है और खिचड़ी या पुलाव के रूप में बनाया जा सकता है। 

           मखाना: मखाना खीर या भुने मखाने का सेवन किया जा सकता है।

           जड़ वाली सब्जियां: आलू, शकरकंद जैसी सब्जियां व्रत में सेवन की जा सकती हैं।मना रखते हैं।

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श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...