नवरात्र की द्वितीया देवी – ब्रह्मचारिणी
2. माँ ब्रह्मचारिणी – मंगल ग्रह (तपस्या और पराक्रम की देवी)
संकेत: माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप तपस्विनी का है। ये शक्ति, ऊर्जा और दृढ़ संकल्प की प्रतीक हैं, जिसका संबंध मंगल ग्रह से है। मंगल पराक्रम, युद्ध और साहस का प्रतिनिधित्व करता है।
शास्त्रीय
प्रमाण:
🔹 "अंगारको महावीर्यो मंगलो
भूमि नन्दनः" (बृहत्पाराशर होरा शास्त्र 3.31)
(अर्थ: मंगल पराक्रम, वीरता और भूमि का स्वामी
है।)
👉 उपाय: माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से मंगल दोष, क्रोध, दुर्घटनाएँ और रक्त संबंधी रोग समाप्त होते हैं।
1. नाम (Name)
ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini)
माँ ब्रह्मचारिणी का अवतरण एवं उनकी पूर्ति (किस युग में अवतरित हुईं?)
माँ ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप तपस्या, संयम, और वैराग्य का प्रतीक है। वे सत्य, त्रेता, द्वापर और कलियुग—चारों युगों में धर्म की स्थापना हेतु अवतरित हुईं। उनका प्रत्येक युग में प्रकट होने का कारण एवं उद्देश्य भिन्न-भिन्न रहा है।
माँ ब्रह्मचारिणी का अवतरण (किस युग में अवतरित हुईं?)
(1) सतयुग में अवतरण
🔹 उद्देश्य:
- सत्ययुग में माँ ब्रह्मचारिणी ने तपस्या के माध्यम से लोकों में ज्ञान, शुद्धता और सत्य की स्थापना की।
- उन्होंने हिमालयराज और मैना की पुत्री के रूप में जन्म लिया और कठोर तपस्या की।
- उनका यह स्वरूप भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने हेतु था।
🔹 प्रमुख घटनाएँ:
- उन्होंने हजारों वर्षों तक केवल पत्तों पर भोजन किया और फिर निर्जल एवं निराहार तप किया।
- उनके इस महान तप से सभी देवता एवं ऋषि आश्चर्यचकित हुए।
- उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया।
संस्कृत
श्लोक (मार्कण्डेय पुराण):
🔹 तपश्चारिणि देवी त्वं ब्रह्मरूपा सनातनी।
तव प्रभावात्सर्वं
जगदुत्तिष्ठते सदा॥
👉 अर्थ: हे देवी ब्रह्मचारिणी! आप सनातन ब्रह्मरूपा हैं, आपके तप के प्रभाव से संपूर्ण संसार गतिमान रहता है।
(2) त्रेतायुग में अवतरण
🔹 उद्देश्य:
- त्रेतायुग में रावण और अन्य राक्षसों के अत्याचार बढ़ने लगे थे।
- श्रीराम और माता सीता के समय में माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना करके साधकों ने आत्मबल और धैर्य प्राप्त किया।
- त्रेता युग में उन्होंने अहंकार एवं राक्षसी प्रवृत्तियों के नाश के लिए शक्ति प्रदान की।
🔹 प्रमुख घटनाएँ:
- अत्रि मुनि एवं अन्य ऋषियों ने उनकी उपासना की।
- हनुमान जी ने लंका दहन के समय माता ब्रह्मचारिणी का ध्यान किया और उन्हें बल एवं साहस प्राप्त हुआ।
संस्कृत
श्लोक (रामायण, सुंदरकांड):
🔹 त्वमेव शक्तिर्विश्वस्य तपःस्वरूपा सनातनी।
सर्वेश्वरी
ब्रह्मचारिणी नमस्तेऽस्तु महेश्वरी॥
👉 अर्थ: हे देवी ब्रह्मचारिणी! आप ही संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्ति हैं, आप सनातन तपस्विनी हैं, आपको नमस्कार है।
(3) द्वापर युग में अवतरण
🔹 उद्देश्य:
- द्वापर युग में जब कंस, जरासंध, और दुर्योधन जैसे अधर्मी राजाओं का अत्याचार बढ़ा, तब माँ ब्रह्मचारिणी ने धर्म की स्थापना हेतु शक्ति प्रदान की।
- उन्होंने विशेष रूप से द्रौपदी, अर्जुन और भीम को शक्ति दी, जिससे वे कठिन परिस्थितियों में भी धर्म पर दृढ़ रहे।
🔹 प्रमुख घटनाएँ:
- द्रौपदी ने जब कौरव सभा में लज्जा बचाने के लिए पुकार लगाई, तो माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा की।
- अर्जुन ने महाभारत युद्ध से पहले तपस्या करके माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना की, जिससे उन्हें आत्मबल एवं विजय का आशीर्वाद मिला।
- श्रीकृष्ण स्वयं भी माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान करते थे।
संस्कृत
श्लोक (महाभारत, भीष्म पर्व):
🔹 तपस्विन्यै नमस्तुभ्यं ब्रह्मचारिणि मातरः।
त्वं
द्रौपदीं च पाण्डूंश्च धर्मे संपालयसि सदा॥
👉 अर्थ: हे माँ ब्रह्मचारिणी! आपको नमस्कार है, आप ही द्रौपदी और पांडवों की रक्षा करने वाली हैं।
(4) कलियुग में प्रभाव एवं आराधना
🔹 उद्देश्य:
- कलियुग में जब अधर्म और भौतिक सुखों की आसक्ति बढ़ गई, तब माँ ब्रह्मचारिणी का तपस्वी रूप साधकों को धैर्य, संयम और ज्ञान प्रदान करता है।
- माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना से मानसिक शांति, आत्मबल और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
🔹 प्रमुख घटनाएँ:
- संत तुलसीदास, आदि शंकराचार्य, और स्वामी विवेकानंद ने माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना करके आत्मज्ञान प्राप्त किया।
- माँ की उपासना से भक्तों को विपत्तियों से रक्षा एवं मोक्ष का मार्ग प्राप्त होता है।
संस्कृत
श्लोक (देवी भागवत पुराण):
🔹 कलौ तु ब्रह्मचारिण्याः पूजनं यः समाचरेत्।
सर्वसिद्धिं
लभेद्ध्रुवं न पुनर्जन्म लभ्यते॥
👉 अर्थ: कलियुग में जो भी माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना करता है, वह समस्त सिद्धियाँ प्राप्त कर लेता है और जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है।
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा से प्राप्त लाभ
- धैर्य और संयम: कठिन परिस्थितियों में मानसिक स्थिरता प्रदान करती हैं।
- शक्ति और साहस: शत्रुओं और विपत्तियों से लड़ने की शक्ति मिलती है।
- ज्ञान और आत्मसाक्षात्कार: साधकों को आत्मज्ञान और मोक्ष का मार्ग मिलता है।
- कष्टों का नाश: जीवन में आने वाली विपत्तियों को समाप्त करती हैं।
- विवाह एवं संतान सुख: कुंवारी कन्याओं को योग्य वर की प्राप्ति होती है।
- सत्ययुग में, माँ ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की।
- त्रेतायुग में, उन्होंने धर्म स्थापना में सहायता की और श्रीराम तथा हनुमान को शक्ति दी।
- द्वापरयुग में, उन्होंने अर्जुन और द्रौपदी की रक्षा की और धर्मयुद्ध में सहायक बनीं।
- कलियुग में, उनकी आराधना से भौतिकता से ऊपर उठकर आत्मज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना से साधक को आत्मशक्ति, साहस, ज्ञान, और अंततः मोक्ष प्राप्त होता है।
🔹 "ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः" 🔹
🔹 जय माँ ब्रह्मचारिणी! 🙏🔥
2. स्थान (Abode)
इनका वास स्वर्गलोक (Heavenly Abode) में बताया गया है, परंतु तपस्विनी रूप में यह हिमालय पर भी निवास करती हैं।
3. युग (Era)
इनका प्राकट्य सत्ययुग में हुआ था।
4. जन्म का आकार और प्रकृति (Form & Nature of Birth)
- देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की।
- इनके कठिन तप के कारण ही इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया।
- यह ज्ञान, वैराग्य और तपस्या की प्रतीक मानी जाती हैं।
5. वस्त्र और अंग (Attire & Appearance)
- देवी ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र धारण करती हैं।
- इनके एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में जपमाला होती है।
- इनका स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और तपस्विनी है।
6. महत्त्व (Significance)
- ब्रह्मचारिणी देवी का पूजन तप, संयम और साधना की शक्ति प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
- यह भक्ति, आत्मसंयम और त्याग का प्रतीक मानी जाती हैं।
- इनके पूजन से संतान सुख, वैवाहिक सुख और मोक्ष प्राप्ति होती है।
- यह विद्यार्थियों एवं साधकों के लिए विशेष रूप से पूजनीय हैं।
7. किन दो राक्षसों (दैत्य) का वध किया?
देवी ब्रह्मचारिणी ने शुंभ और निशुंभ नामक दो दैत्यों का संहार किया था।
- इन दैत्यों ने देवताओं को स्वर्ग से निष्कासित कर दिया था।
- तब देवी दुर्गा ने ब्रह्मचारिणी स्वरूप में घोर तप किया और शक्ति अर्जित कर इनका वध किया।
- इनके वध का वर्णन मार्कण्डेय पुराण (Durga Saptashati, Chapter 8-10) में मिलता है।
शास्त्रीय प्रमाण (Scriptural Reference)
दुर्गा सप्तशती (मार्कण्डेय पुराण) में देवी ब्रह्मचारिणी की स्तुति इस प्रकार है—
या देवी
सर्वभूतेषु ब्रह्मचारिण्यरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थ: जो देवी सभी प्राणियों में ब्रह्मचारिणी रूप में स्थित हैं, उन देवी को बारंबार नमस्कार है।
नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से साधक को ज्ञान, शक्ति और तपस्या की सिद्धि प्राप्त होती है।
माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना का फल
- उनकी कृपा से अविवाहित कन्याओं को योग्य वर प्राप्त होता है।
- देवी की आराधना से धैर्य, आत्मसंयम और विवेक की प्राप्ति होती है।
- कठिन से कठिन परिस्थितियों में साहस और आत्मबल प्राप्त होता है।
- उनकी पूजा करने से मोक्ष और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
संस्कृत श्लोक (पूजा का फल)
🔹 एवं देवी ब्रह्मचारिण्याः पूजनं यः समाचरेत्।
सर्वान्कामानवाप्नोति
सर्वसिद्धिं लभेद्ध्रुवम्॥
अर्थ: जो भी माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करता है, वह सभी इच्छाओं की पूर्ति करता है और समस्त सिद्धियाँ प्राप्त करता है।
निष्कर्ष
माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप तपस्या, त्याग और ज्ञान का प्रतीक है। उन्होंने शुंभ-निशुंभ, चंड-मुंड, रक्तबीज, धूम्रलोचन, विदलाक्ष, वज्रबहु, और अंधकासुर जैसे असुरों का वध किया।
उनकी उपासना से व्यक्ति में संयम, विवेक, शक्ति और साहस की वृद्धि होती है। वे जीवन में आने वाली कठिनाइयों को नष्ट करने वाली देवी हैं।
🔹 जय माँ ब्रह्मचारिणी! 🙏🔥
1. माँ ब्रह्मचारिणी ने किन राक्षसों को क्यों मारा और कैसे मारा?
(1) शुंभ-निशुंभ वध – अधर्म पर धर्म की विजय
🔹 कारण:
शुंभ और
निशुंभ ने कठोर तप कर ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान माँगा। उन्होंने तीनों लोकों
पर अधिकार कर लिया और स्वर्ग से देवताओं को निष्कासित कर दिया। वे अहंकारी और
अधर्म के मार्ग पर चलने लगे।
🔹 वध विधि:
- माँ ब्रह्मचारिणी ने कठोर तप करके अपनी शक्ति बढ़ाई।
- उन्होंने अपनी शक्ति को दुर्गा में समाहित कर महिषासुरमर्दिनी रूप धारण किया।
- जब शुंभ-निशुंभ युद्ध में आए, तब देवी ने त्रिशूल, तलवार, और शक्ति के प्रहारों से उनका संहार किया।
संस्कृत
श्लोक (दुर्गा सप्तशती, अध्याय 10, श्लोक 17):
🔹 शुम्भं च निशुम्भं च तथान्यानसुरान्वपि।
चक्रे
निघ्नन्ति समरे देवी भक्तोपकारिणी॥
👉 अर्थ: माँ ब्रह्मचारिणी ने भक्तों के कल्याण के लिए शुंभ, निशुंभ और अन्य असुरों का वध किया।
(2) चंड-मुंड वध – अहंकार एवं क्रूरता का नाश
🔹 कारण:
चंड और मुंड, शुंभ-निशुंभ
के सेनापति थे। उन्होंने क्रूरता और आतंक फैला रखा था।
🔹 वध विधि:
- माँ ब्रह्मचारिणी ने घोर तपस्या कर अपनी शक्ति को जागृत किया।
- उन्होंने चंड-मुंड के सेना को परास्त किया और फिर काली रूप धारण करके उनका सिर काट डाला।
- इसी कारण वे "चामुंडा" के नाम से प्रसिद्ध हुईं।
संस्कृत
श्लोक (दुर्गा सप्तशती, अध्याय 7, श्लोक 36):
🔹 चण्डं मुण्डं च वै घोरं यस्तु मे श्रमदोऽभवत्।
तं च वै
निहतं दृष्ट्वा लोकाः श्रेयः करिष्यथ॥
👉 अर्थ: जो चंड-मुंड मेरे लिए घोर श्रम का कारण बने थे, उनके वध के बाद संपूर्ण लोकों में कल्याण होगा।
(3) रक्तबीज वध – अज्ञान और अभिमान का अंत
🔹 कारण:
रक्तबीज को
वरदान था कि उसके रक्त की हर बूंद से एक नया रक्तबीज उत्पन्न हो जाएगा। इससे उसका
संहार असंभव हो गया था।
🔹 वध विधि:
- माँ ब्रह्मचारिणी ने घोर तपस्या से शक्ति अर्जित की।
- फिर उन्होंने काली रूप धारण किया और युद्ध किया।
- जब रक्तबीज पर आघात किया गया, तो उसकी रक्त की बूंदें गिरने लगीं और नए रक्तबीज उत्पन्न होने लगे।
- माँ ने अपनी जीभ से रक्त को चूस लिया और अंततः रक्तबीज का संहार कर दिया।
संस्कृत
श्लोक (दुर्गा सप्तशती, अध्याय 8, श्लोक 15-16):
🔹 रक्तबीजं समादाय जगद्धात्री स्वयं शिवा।
पीत्वा
समस्तं तद्रक्तं तमस्मिन् क्षणनाशयत्॥
👉 अर्थ: माँ काली ने रक्तबीज के रक्त को पी लिया और तुरंत उसका संहार कर दिया।
(4) धूम्रलोचन वध – बुराई पर भक्ति की विजय
🔹 कारण:
धूम्रलोचन
शुंभ-निशुंभ का एक सेनापति था, जो अंधकार का प्रतीक था।
🔹 वध विधि:
- जब धूम्रलोचन ने देवी को पकड़ने का प्रयास किया, तो देवी ने उसे अपने तेज से भस्म कर दिया।
- उनकी हुंकार मात्र से उसकी सेना भी समाप्त हो गई।
संस्कृत
श्लोक (दुर्गा सप्तशती, अध्याय 5, श्लोक 29):
🔹 सा क्रुद्धा च क्षणेनैव तमस्वं तमसा व्यधात्।
धूम्रलोचनमिन्द्रस्य
रिपुं संक्षोभयत्तदा॥
👉 अर्थ: देवी ने क्रोधित होकर अपनी दिव्य शक्ति से धूम्रलोचन को भस्म कर दिया।
2. माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
📌 पूजन के मुख्य नियम:
- पूजा उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए।
- देवी को सफेद वस्त्र अर्पित करना श्रेष्ठ माना जाता है।
- माँ को मधुर और सात्त्विक पदार्थों का भोग लगाना चाहिए।
- हाथ में अक्षमाला लेकर मंत्र जाप करना उत्तम फलदायक होता है।
3. दीपक जलाने की विधि
प्रकार |
दीपक |
तेल/घी |
बाती का रंग |
दिशा |
सुख-समृद्धि |
मिट्टी या चाँदी |
घी |
सफेद |
उत्तर |
शत्रु नाश |
लोहे या तांबे का |
सरसों का तेल |
लाल |
दक्षिण |
ज्ञान और विवेक |
तांबा या पीतल |
तिल का तेल |
पीला |
पूर्व |
4. माँ ब्रह्मचारिणी के मंत्र
🔹 ध्यान मंत्र:
वन्दे
वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु
धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
👉 अर्थ: मैं उन माँ ब्रह्मचारिणी को प्रणाम करता हूँ, जो इच्छित फल प्रदान करने वाली, जपमाला और कमंडल धारण करने वाली हैं।
🔹 बीज मंत्र:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
5. माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने वाले को क्या फल प्राप्त होता है?
- माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से धैर्य, संयम और तप की शक्ति प्राप्त होती है।
- जो लोग कठिन परिस्थितियों से गुजर रहे होते हैं, उन्हें मानसिक शक्ति और दृढ़ता मिलती है।
- शत्रु नाश और संकट निवारण के लिए इनकी पूजा अत्यंत लाभकारी होती है।
- साधकों को आध्यात्मिक उन्नति एवं मोक्ष प्राप्त होता है।
संस्कृत
श्लोक (पूजा का फल):
🔹 एवं देवी ब्रह्मचारिण्याः पूजनं यः समाचरेत्।
सर्वान्कामानवाप्नोति
सर्वसिद्धिं लभेद्ध्रुवम्॥
👉 अर्थ: जो भी माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करता है, वह सभी इच्छाओं की पूर्ति करता है और समस्त सिद्धियाँ प्राप्त करता है।
🔹 जय माँ ब्रह्मचारिणी! 🙏🔥
. माँ ब्रह्मचारिणी ने किन राक्षसों को क्यों मारा और कैसे मारा?
(1) शुंभ-निशुंभ वध – अधर्म पर धर्म की विजय
🔹 कारण:
शुंभ और
निशुंभ ने कठोर तप कर ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान माँगा। उन्होंने तीनों लोकों
पर अधिकार कर लिया और स्वर्ग से देवताओं को निष्कासित कर दिया। वे अहंकारी और
अधर्म के मार्ग पर चलने लगे।
🔹 वध विधि:
- माँ ब्रह्मचारिणी ने कठोर तप करके अपनी शक्ति बढ़ाई।
- उन्होंने अपनी शक्ति को दुर्गा में समाहित कर महिषासुरमर्दिनी रूप धारण किया।
- जब शुंभ-निशुंभ युद्ध में आए, तब देवी ने त्रिशूल, तलवार, और शक्ति के प्रहारों से उनका संहार किया।
संस्कृत श्लोक (दुर्गा सप्तशती, अध्याय 10, श्लोक 17):
🔹 शुम्भं च निशुम्भं च तथान्यानसुरान्वपि।
चक्रे
निघ्नन्ति समरे देवी भक्तोपकारिणी॥
👉 अर्थ: माँ ब्रह्मचारिणी ने भक्तों के कल्याण के लिए शुंभ, निशुंभ और अन्य असुरों का वध किया।
(2) चंड-मुंड वध – अहंकार एवं क्रूरता का नाश
🔹 कारण:
चंड और मुंड, शुंभ-निशुंभ
के सेनापति थे। उन्होंने क्रूरता और आतंक फैला रखा था।
🔹 वध विधि:
- माँ ब्रह्मचारिणी ने घोर तपस्या कर अपनी शक्ति को जागृत किया।
- उन्होंने चंड-मुंड के सेना को परास्त किया और फिर काली रूप धारण करके उनका सिर काट डाला।
- इसी कारण वे "चामुंडा" के नाम से प्रसिद्ध हुईं।
संस्कृत श्लोक (दुर्गा सप्तशती, अध्याय 7, श्लोक 36):
🔹 चण्डं मुण्डं च वै घोरं यस्तु मे श्रमदोऽभवत्।
तं च वै
निहतं दृष्ट्वा लोकाः श्रेयः करिष्यथ॥
👉 अर्थ: जो चंड-मुंड मेरे लिए घोर श्रम का कारण बने थे, उनके वध के बाद संपूर्ण लोकों में कल्याण होगा।
(3) रक्तबीज वध – अज्ञान और अभिमान का अंत
🔹 कारण:
रक्तबीज को
वरदान था कि उसके रक्त की हर बूंद से एक नया रक्तबीज उत्पन्न हो जाएगा। इससे उसका
संहार असंभव हो गया था।
🔹 वध विधि:
- माँ ब्रह्मचारिणी ने घोर तपस्या से शक्ति अर्जित की।
- फिर उन्होंने काली रूप धारण किया और युद्ध किया।
- जब रक्तबीज पर आघात किया गया, तो उसकी रक्त की बूंदें गिरने लगीं और नए रक्तबीज उत्पन्न होने लगे।
- माँ ने अपनी जीभ से रक्त को चूस लिया और अंततः रक्तबीज का संहार कर दिया।
संस्कृत श्लोक (दुर्गा सप्तशती, अध्याय 8, श्लोक 15-16):
🔹 रक्तबीजं समादाय जगद्धात्री स्वयं शिवा।
पीत्वा
समस्तं तद्रक्तं तमस्मिन् क्षणनाशयत्॥
👉 अर्थ: माँ काली ने रक्तबीज के रक्त को पी लिया और तुरंत उसका संहार कर दिया।
(4) धूम्रलोचन वध – बुराई पर भक्ति की विजय
🔹 कारण:
धूम्रलोचन
शुंभ-निशुंभ का एक सेनापति था, जो अंधकार का प्रतीक था।
🔹 वध विधि:
- जब धूम्रलोचन ने देवी को पकड़ने का प्रयास किया, तो देवी ने उसे अपने तेज से भस्म कर दिया।
- उनकी हुंकार मात्र से उसकी सेना भी समाप्त हो गई।
संस्कृत श्लोक (दुर्गा सप्तशती, अध्याय 5, श्लोक 29):
🔹 सा क्रुद्धा च क्षणेनैव तमस्वं तमसा व्यधात्।
धूम्रलोचनमिन्द्रस्य
रिपुं संक्षोभयत्तदा॥
👉 अर्थ: देवी ने क्रोधित होकर अपनी दिव्य शक्ति से धूम्रलोचन को भस्म कर दिया।
2. माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
📌 पूजन के मुख्य नियम:
- पूजा उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए।
- देवी को सफेद वस्त्र अर्पित करना श्रेष्ठ माना जाता है।
- माँ को मधुर और सात्त्विक पदार्थों का भोग लगाना चाहिए।
- हाथ में अक्षमाला लेकर मंत्र जाप करना उत्तम फलदायक होता है।
3. दीपक जलाने की विधि
प्रकार |
दीपक |
तेल/घी |
बाती का रंग |
दिशा |
सुख-समृद्धि |
मिट्टी या चाँदी |
घी |
सफेद |
उत्तर |
शत्रु नाश |
लोहे या तांबे का |
सरसों का तेल |
लाल |
दक्षिण |
ज्ञान और विवेक |
तांबा या पीतल |
तिल का तेल |
पीला |
पूर्व |
4. माँ ब्रह्मचारिणी के मंत्र
🔹 ध्यान मंत्र:
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु
धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
👉 अर्थ: मैं उन माँ ब्रह्मचारिणी को प्रणाम करता हूँ, जो इच्छित फल प्रदान करने वाली, जपमाला और कमंडल धारण करने वाली हैं।
🔹 बीज मंत्र:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
5. माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने वाले को क्या फल प्राप्त होता है?
- माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से धैर्य, संयम और तप की शक्ति प्राप्त होती है।
- जो लोग कठिन परिस्थितियों से गुजर रहे होते हैं, उन्हें मानसिक शक्ति और दृढ़ता मिलती है।
- शत्रु नाश और संकट निवारण के लिए इनकी पूजा अत्यंत लाभकारी होती है।
- साधकों को आध्यात्मिक उन्नति एवं मोक्ष प्राप्त होता है।
संस्कृत श्लोक (पूजा का फल):
🔹 एवं देवी ब्रह्मचारिण्याः पूजनं यः समाचरेत्।
सर्वान्कामानवाप्नोति
सर्वसिद्धिं लभेद्ध्रुवम्॥
👉 अर्थ: जो भी माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करता है, वह सभी इच्छाओं की पूर्ति करता है और समस्त सिद्धियाँ प्राप्त करता है।
माँ ब्रह्मचारिणी की रोचक कथाएँ, शिक्षा एवं प्रेरणा
माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप तपस्या, संयम और साधना का प्रतीक है। इनकी कथाएँ हमें धैर्य, आत्मबल, भक्ति और सिद्धि की शिक्षा देती हैं। वे सृष्टि की प्रथम तपस्विनी मानी जाती हैं, जिन्होंने कठिन साधना से भगवान शिव को प्राप्त किया। उनकी उपासना से व्यक्ति में धैर्य, आत्मविश्वास और जीवन के संघर्षों से जूझने की शक्ति आती है।
१. माँ ब्रह्मचारिणी की प्रमुख कथा – तपस्विनी पार्वती
📖 कथा सारांश:
- माता पार्वती, जो पूर्व जन्म में सती थीं, ने भगवान शिव को पुनः पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की।
- नारद मुनि के सुझाव पर वे वन में गईं और हजारों वर्षों तक कठिन तप किया।
- पहले उन्होंने केवल फल-फूल खाए, फिर कुछ वर्षों तक केवल पत्तों पर रहीं और अंत में निर्जल एवं निराहार रहकर घोर तपस्या की।
- उनकी कठोर साधना से तीनों लोकों में हलचल मच गई, और देवता चिंतित हो उठे।
- अंततः भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे ही उनकी अर्धांगिनी बनेंगी।
संस्कृत श्लोक (शिव पुराण):
🔹 तपसा च विनिष्पन्ना ब्रह्मचारिण्यथाम्बिका।
सर्वलोकहितार्थाय
शिवस्य प्रियतां गता॥
👉 अर्थ: कठोर तपस्या के कारण माता अम्बिका ब्रह्मचारिणी के रूप में विख्यात हुईं और सम्पूर्ण लोकों के कल्याण हेतु शिव की प्रिय बनीं।
🔹 कथा से सीख:
✅ कठिन
परिश्रम और धैर्य से कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।
✅ भक्ति और
विश्वास के साथ की गई साधना कभी व्यर्थ नहीं जाती।
✅ सफलता पाने
के लिए इच्छाओं पर नियंत्रण और तपस्या आवश्यक है।
२. माँ ब्रह्मचारिणी और तारकासुर का आतंक
📖 कथा सारांश:
- तारकासुर नामक राक्षस को वरदान प्राप्त था कि केवल शिव पुत्र ही उसका वध कर सकता है।
- उसने देवताओं पर आक्रमण कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।
- तब सभी देवताओं ने माँ ब्रह्मचारिणी की स्तुति की ताकि माता पार्वती भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त कर सकें और शिव-पुत्र का जन्म हो।
- माँ ने सहस्त्रों वर्षों तक कठिन तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया।
- उनका यह घोर तप देखकर स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश प्रसन्न हुए।
- शिव ने उन्हें स्वीकार किया और आगे जाकर उनके पुत्र कार्तिकेय (स्कंद) ने तारकासुर का वध किया।
संस्कृत श्लोक (स्कंद पुराण):
🔹 ब्रह्मचारिणि देवी तपः शक्तिस्वरूपिणी।
तारकं
संहृतं दृष्ट्वा देवताः समपूजयन्॥
👉 अर्थ: ब्रह्मचारिणी देवी तपस्या और शक्ति का स्वरूप हैं। तारकासुर का वध होने पर देवताओं ने उनकी आराधना की।
🔹 कथा से सीख:
✅ हर कठिनाई
का समाधान धैर्य और सही दिशा में किए गए परिश्रम से ही मिलता है।
✅ भक्ति और
तपस्या से ही दुष्टों का नाश और धर्म की रक्षा संभव है।
✅ अगर
उद्देश्य महान हो, तो उसके लिए
तपस्या और संघर्ष करना पड़ता है।
३. माँ ब्रह्मचारिणी की परीक्षा – ब्रह्मा द्वारा भेजे गए ऋषियों का प्रलोभन
📖 कथा सारांश:
- जब माँ ब्रह्मचारिणी (पार्वती) तप कर रही थीं, तब देवताओं ने उनकी परीक्षा लेने के लिए कुछ ऋषियों को उनके पास भेजा।
- ऋषियों ने उनसे कहा कि शिव गृहस्थ जीवन के योग्य नहीं हैं, वे वैरागी और श्मशान में रहने वाले हैं।
- उन्होंने पार्वती को कहा कि वे शिव को छोड़कर किसी और देवता से विवाह कर लें।
- लेकिन माँ ब्रह्मचारिणी अडिग रहीं और कहा कि "अगर मुझे हज़ारों जन्म भी लेने पड़े, तब भी मैं शिव को ही पति रूप में प्राप्त करूंगी।"
- यह देखकर सभी देवताओं ने उनकी निष्ठा को स्वीकार किया।
संस्कृत श्लोक (शिव पुराण, विद्या
संहिता):
🔹 न मोहयिष्यति मां योगी न तपः क्षोभयिष्यति।
शिवो मे प्राणनाथः
स्यात् सत्यं सत्यं वदाम्यहम्॥
👉 अर्थ: न तो कोई योगी मुझे मोहित कर सकता है, न ही कोई तपस्या मुझे विचलित कर सकती है। मेरे प्राणनाथ केवल शिव ही होंगे, मैं सत्य कह रही हूँ।
🔹 कथा से सीख:
✅ सच्चे प्रेम
और समर्पण में कोई बाधा नहीं आ सकती।
✅ दृढ़ निश्चय
से किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं होना चाहिए।
✅ किसी भी
कार्य में सफलता पाने के लिए अडिग विश्वास और धैर्य ज़रूरी है।
४. माँ ब्रह्मचारिणी और महिषासुर की तपस्या
📖 कथा सारांश:
- महिषासुर ने कठोर तप करके ब्रह्मा जी से वरदान लिया कि कोई भी पुरुष उसे नहीं मार सकता।
- वरदान के कारण उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया और सभी देवताओं को हरा दिया।
- सभी देवता माँ ब्रह्मचारिणी के पास गए और उनसे प्रार्थना की।
- तब माँ ब्रह्मचारिणी ने शक्ति उत्पन्न की और माँ दुर्गा के रूप में महिषासुर का वध किया।
- इसी कारण माँ दुर्गा को "महिषासुर मर्दिनी" भी कहा जाता है।
संस्कृत श्लोक (दुर्गा सप्तशती, अध्याय 3, श्लोक 34):
🔹 ब्रह्मचारिण्यै नमस्तुभ्यं या महिषासुरं हता।
धर्मसंस्थापनार्थाय
पुण्यं यशसि संस्थिता॥
👉 अर्थ: हे माँ ब्रह्मचारिणी! आपको प्रणाम है, आपने महिषासुर का वध कर धर्म की स्थापना की और पुण्य की वृद्धि की।
🔹 कथा से सीख:
✅ अहंकार और
अधर्म का अंत निश्चित है।
✅ शक्ति का
उपयोग सदा धर्म के पक्ष में होना चाहिए।
✅ जब कोई
समस्या अत्यधिक बढ़ जाए, तब परम शक्ति की उपासना ही एकमात्र उपाय है।
माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना से प्राप्त लाभ
- जीवन में धैर्य, संयम और आत्मबल की वृद्धि होती है।
- कठिन परिस्थितियों में भी साहस और सहनशक्ति बनी रहती है।
- शत्रुओं और संकटों से रक्षा प्राप्त होती है।
- सच्चे प्रेम और रिश्तों में सफलता मिलती है।
- साधना करने वाले को मोक्ष और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
📜 निष्कर्ष
माँ ब्रह्मचारिणी की कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति, कठोर तपस्या और धैर्य के बल पर कोई भी बाधा पार की जा सकती है। यदि हम अपने लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पित रहें, तो कोई भी शक्ति हमें रोक नहीं सकती।
🔹 "ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः" 🔹
🔹 जय माँ ब्रह्मचारिणी! 🙏🔥
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