11-19 जुलाई,गज वाहन आरूढागमन |रवि पुष्य योग
|
घटस्थापना का शुभ
मुहूर्त
07:52 तक प्रतिपदा | प्रतिपदा में ही घट स्थापना की
जाना चाहिए |इस शास्त्रोक्त नियम के अनुसार सुर्योदय से 07:52 प्रातः तक ही घट
स्थापना की जाना चाहिए | द्वितीया तिथि वर्जित |
गुप्त नवरात्र
में -9 देवियों की पूजा की जाती है |ये नवरात्र में पूज्य देवियों से पृथक
नाम की देवियाँ है |
नवरात्र में पूज्य देवी-?
नौ दुर्गा :
1.शैलपुत्री, 2.ब्रह्मचारिणी, 3.चंद्रघंटा,
4.कुष्मांडा, 5.स्कंदमाता, 6.कात्यायनी, 7.कालरात्रि, 8.महागौरी
और 9.सिद्धिदात्री।
गुप्त
नवरात्र में पूजनीय देवियाँ –प्रकट /उद्भूत ?
सति देहा समुदभवा दस महाविद्याणां शिवश्च प्रियम् |
सतीदेवी शिव प्रिय पार्वती जी के शरीर से प्रकट देवियाँ हैं |
गुप्त नवरात्र
में पूजनीय देवियों के नाम ?दश महाविद्या नाम संज्ञा -
काली तारा महाविद्या शोडषी भुवनेश्वरी ।
भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धुमावती तथा
बगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका।
एता दस महाविद्या सिद्धिविद्या प्रकृतिता
1.काली,
2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4.भुवनेश्वरी, 5.छिन्नमस्ता,
6.त्रिपुरभैरवी, 7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी
और 10.कमला |
दस
महाविद्या प्रकृति के तीन समूह
पहला:- सौम्य (त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी,
मातंगी, कमला),
दूसरा:-
उग्र (काली, छिन्नमस्ता, धूमावती,
बगलामुखी),
तीसरा:-
सौम्य-उग्र (तारा और त्रिपुर भैरवी)।
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दश
महा विद्या स्तुति शाबर -
सुनो
पार्वती हम मत्स्येन्द्र पूता, आदिनाथ नाती, हम शिव
स्वरुप उलटी थापना थापी योगी का योग, दस विद्या शक्ति जानो,
जिसका भेद शिव शंकर ही पायो ।
सिद्ध
योग मर्म जो जाने विरला तिसको प्रसन्न भयी महाकालिका ।
योगी
योग नित्य करे प्रातः उसे वरद भुवनेश्वरी माता ।
सिद्धासन
सिद्ध, भया
श्मशानी तिसके संग बैठी बगलामुखी ।
जोगी
खड दर्शन कोकर जानी,
खुल गया ताला ब्रह्माण्ड भैरवी ।
नाभी स्थाने उडीय्यान बांधी मनीपुर चक्र में
बैठी, छिन्नमस्ता रानी ।
ॐ कार ध्यान लाग्या त्रिकुटी, प्रगटी
तारा बाला सुन्दरी ।
पाताल
जोगन (कुंडलिनी) गगन को चढ़ी, जहां पर बैठी त्रिपुर सुन्दरी ।
आलस मोड़े, निद्रा
तोड़े तिसकी रक्षा देवी धूमावन्ती करें ।
हंसा
जाये दसवें द्वारे देवी मातंगी का आवागमन खोजे ।
जो कमला
देवी की धूनी चेताये तिसकी ऋद्धि सिद्धि से भण्डार भरे ।
जो
दसविद्या का सुमिरण करे । पाप पुण्य से न्यारा रहे ।
योग
अभ्यास से भये सिद्धा आवागमन निवरते ।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क ए
ह ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं महाज्ञानमयी विद्या षोडशी मॉं सदा अवतु।।
ऐं ह्रीं श्रीं।।
हस्त्रौं हस्क्लरीं हस्त्रौं।।
दश महाविद्या स्त्रोत-गुप्त नवरात्र में प्रतिदिन पठनीय |
(सिद्धि प्रद पठन समय
-मंगल ,गुरूवार एवं शनिवार को दिन में ,चतुर्दशी या शुक्रवार को को संध्या समय)
नमस्ते चण्डिके । चण्डि।चण्ड-मुण्ड-विनाशिनि
।नमस्ते कालिके । काल-महा-भय-विनाशिनी । 1
शिवे । रक्ष जगद्धात्रि
। प्रसीद हरि-वल्लभे । प्रणमामि जगद्धात्रीं, जगत्-पालन-कारिणीम् | 2
जगत्-क्षोभ-करीं
विद्यां, जगत्-सृष्टि-विधायिनीम्।करालां विकटा घोरां, मुण्ड-माला-विभूषिताम्|
3
हरार्चितां हरआराध्यां, नमामि
हर-वल्लभाम् । गौरीं गुरु-प्रियां गौर-वर्णअलंकार-भूषिताम् |4
हरि-प्रियां महा-मायां, नमामि
ब्रह्म-पूजिताम् । सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्ध-विद्या-धर-गणैर्युताम् |5
मन्त्र-सिद्धि-प्रदां
योनि-सिद्धिदां लिंग-शोभिताम् । प्रणमामि महा-मायां, दुर्गा दुर्गति-नाशिनीम्
|6
उग्राम उग्र मयीम
उग्र-ताराम उग्र गणैर्युताम् । नीलां
नील-घन-श्यामां,
नमामि नील-सुन्दरीम्| 7
श्यामांगीं
श्याम-घटिकां,
श्याम-वर्ण-विभूषिताम् । प्रणामामि जगद्धात्रीं, गौरीं सर्वार्थ-साधिनीम्| 8
विश्वेश्वरीं महा-घोरां, विकटां
घोर-नादिनीम् ।आद्याम आद्य-गुरोराद्याम आद्यानाथ-प्रपूजिताम् |9
श्रीदुर्गां
धनदामन्न-पूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम् । प्रणमामि जगद्धात्रीं, चन्द्र-शेखर-वल्लभाम्
|10
त्रिपुरा-सुन्दरीं
बालाम बला-गण-भूषिताम् । शिवदूतीं शिवाराध्यां, शिव-ध्येयां सनातनीम् |11
सुन्दरीं तारिणीं
सर्व-शिवा-गण-विभूषिताम् । नारायणीं विष्णु-पूज्यां, ब्रह्म-विष्णु-हर-प्रियाम्
|12
सर्व-सिद्धि-प्रदां
नित्यामनित्य-गण-वर्जिताम् । सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्चितां सर्व-सिद्धिदाम् |13
विद्यां सिद्धि-प्रदां
विद्यां, महा-विद्या-महेश्वरीम् । महेश-भक्तां माहेशीं, महा-काल-प्रपूजिताम्
|14
प्रणमामि जगद्धात्रीं, शुम्भासुर-विमर्दिनीम्
। रक्त-प्रियां रक्त-वर्णां, रक्त-वीज-विमर्दिनीम् |15
भैरवीं भुवना-देवीं, लोल-जिह्वां
सुरेश्वरीम् । चतुर्भुजां दश-भुजाम अष्टा-दश-भुजां शुभाम् |16
त्रिपुरेशीं
विश्व-नाथ-प्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम् । अट्टहासामट्टहास-प्रियां
धूम्र-विनाशिनीम् |17
कमलां
छिन्न-मस्तां च, मातंगीं सुर-सुन्दरीम् । षोडशीं विजयां
भीमां, धूम्रां च बगलामुखीम् |18
सर्व-सिद्धि-प्रदां
सर्व-विद्या-मन्त्र-विशोधिनीम् । प्रणमामि जगत्तारां, सारं
मन्त्र-सिद्धये 19
केवलं
स्तोत्र-पाठाद्धि,
मन्त्र-सिद्धिरनुत्तमा । जागर्ति सततं
चण्डी-स्तोत्र-पाठाद्-भुजंगिनी |
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1प्रथम
देवी काली-
शक्ति का स्वरूपा ,कृष्ण वर्णा सिद्धिदात्री
भवतारणी
काली
हैं।
महाकाल,कृष्ण की कृपा प्रसन्नता प्राप्ति ,शनि
ग्रह दोष नाशनी )
भागवत – कल्प वृक्ष महाकाली ही प्रमुख हैं।
वीरभाव उच्च गर्जन स्वर से पूजा करना चाहिए | ये
काली रूप दैत्यों के संहार के लिए लिया था।
जीवन की हर परेशानी व दुःख दूर करने,सर्व कामना
पूरक देवी हें |
उत्तर दिशा में मुह कर पूजा की जाना चाहिए |
गायत्री- ॐ
कालिकायै विदमहे श्मशान वासिन्यै धीमही तन्नो अघोरा प्राचोदयात|
मन्त्र-'ॐ क्रीं
क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं
हूं हूं स्वाहा।
क्रीं
क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं
स्वाहा।
शाबर मन्त्र –
प्रथम
ज्योति महाकाली प्रगटली|
ॐ
निरंजन निराकार अवगत पुरुष तत-सार, तत-सार मध्ये ज्योत, ज्योत मध्ये परम-ज्योत, परम-ज्योत मध्ये उत्पन्न भई
माता शम्भु शिवानी काली ॐ काली काली महाकाली, कृष्ण वर्णी,
शव वाहिनी, रुद्र की पोषणी, हाथ खप्पर खडग धारी, गले मुण्डमाला हंस मुखी । जिह्वा
ज्वाला दन्त काली । मद्यमांस कारी श्मशान की राणी । मांस खाये रक्त पीवे ।
भस्मन्ती माई जहां पाई तहां लगाई।
सत की
नाती धर्म की बेटी इन्द्र की साली काल की काली जोग की जोगन, नागों
की नागन मन माने तो संग रमाई नहीं तो श्मशान फिरे अकेली चार वीर अष्ट भैरों,
घोर
काली अघोर काली अजर बजर अमर काली भख जून निर्भय काली बला भख, दुष्ट
को भख, काल भख पापी पाखण्डी को भख जती सती को रख,
ॐ
काली तुम बाला ना वृद्धा,
देव ना दानव, नर ना नारी देवीजी तुम तो हो
परब्रह्मा काली ।
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2-तारा—
(नीलसरस्वती )नील वर्णा सिद्धि विद्या तारा हैं। एकजटा |
अक्षोभ्य,रामचंद्र,
की कृपा प्रसन्नता प्राप्ति , बृहस्पति ग्रह दोष नाशनी|
सूर्य प्रलय की
अघिष्ठात्री देवी का उग्र रुपा हें |
मत्स्य अवतार
विष्णु स्वरूप |
भगवती तारा
नीलरूपा और सर्वदा मोक्ष देने वाली है।
वशिष्ठाराधिता -सबसे पहले
महर्षि वशिष्ठ ने तारा की आराधना की थी ।
वाक्-शक्ति,
आर्थिक उन्नति एवं ऐश्वर्यशाली जीवन के लिए पूज्य ।
परारूपा हैं एवं महासुन्दरी कला-स्वरूपा हैं |
उत्तर दिशा में
मुह कर पूजा की जाना चाहिए |
बीजमंत्र'-ह्रूं'
तारा मंत्र : ॐ तारायै विदमहे विदमहे महोग्रायै तन्नो देवी प्रचोदयात.
नीले 'ऊँ
ह्रीं स्त्रीं हुम फट' |
ॐ ह्रीं स्त्रीं फट्, |
ॐ ऐं
ह्रीं स्त्रीं हूँ फट्।
शाबर मन्त्र –
द्वितीय ज्योति
तारा त्रिकुटा तोतला प्रगटली
ॐ आदि योग अनादि माया
जहाँ पर ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया ।
ब्रह्माण्ड समाया आकाश मण्डल तारा
त्रिकुटा तोतला माता तीनों बसै ब्रह्म कापलि, जहाँ पर ब्रह्मा-विष्णु-महेश
उत्पत्ति, सूरज मुख तपे चंद मुख अमिरस पीवे, अग्नि मुख जले, आद कुंवारी हाथ खड्ग गल मुण्ड माल,
मुर्दा मार ऊपर खड़ी देवी तारा ।
नीली
काया पीली जटा,
काली दन्त में जिह्वा दबाया ।
घोर
तारा अघोर तारा,
दूध पूत का भण्डार भरा ।
पंच
मुख करे हां हां ऽऽकारा,
डाकिनी शाकिनी भूत पलिता सौ सौ कोस दूर भगाया ।
चण्डी
तारा फिरे ब्रह्माण्डी तुम तो हों तीन लोक की जननी ।
|
3-षोडषी-( श्री विद्या,
ललिता,
राज-राजेश्वरी, महात्रिपुरसुंदरी, बालापञ्चदशी ,पंचवक्रा)
सर्वमनोहारिणी
श्री विग्रह देवी हैं।वलराम स्वरूप अवतार |चारों दिशाओं में चार और एक ऊपर की ओर
मुख - पंचवक्रा संज्ञाहै।चार भुजाएं एवं तीन नेत्र हैं। सदाशिव(लेती अवस्था) पर
स्थित कमल सीन हैं।
पूजा
प्रार्थना से उच्च पद,नृप तुल्य अधिकार प्रदायनी हैं। षोडश युक्ता - ये षोडशी
कहलाती है। श्री यंत्र या नव योनी चक्र में पूजा की जाती है।
ईशान
दिशा (NE )दिशा में मुह कर पूजा की जाती है | बुध गृह के दोष नाशिका देवी हैं |
त्रिपुरसुंदरी गायत्री मंत्र : ऐं त्रिपुरादेव्यै विदमहे क्लीं कामेश्वर्यै धीमही तन्न:
क्लिन्नै प्रचोदयात.
-त्रिपुर सुंदरी देवी मंत्र:
'ऐ ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम:'
'श्री ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं क्रीं कए इल
ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नम:।'
-श्रीं
ह्रीं क्लीं ऐं सौः ॐ ह्रीं श्रीं कएईल ह्रीं ह |
श्रीं
ह्रीं क्लीं ऐं सौः ॐ ह्रीं श्रीं कएईल ह्रीं हसकहल ह्रीं सकल ह्रीं सोः|
ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं
।
सकहल
ह्रीं सकल ह्रीं सोः ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं ।
शाबर
मन्त्र –
तृतीय
ज्योति त्रिपुर सुन्दरी प्रगटी ।
॥ षोडशी-त्रिपुर सुन्दरी ॥
ॐ
निरञ्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति
मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई ॐ मध्याः उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो
शिवधर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त
में भया नाद ।
तीनों
एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश ।
हाथ
चाप शर धर एक हाथ अंकुश ।
त्रिनेत्रा
अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी ।
इडा पिंगला सुषम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर
सुन्दरी ।
उग्र
बाला, रुद्र बाला तीनों ब्रह्मपुरी में भया उजियाला ।
योगी
के घर जोगन बाला,
ब्रह्मा विष्णु शिव की माता ।
4भुवनेश्वरी
,'शताक्षी, शाकम्भरी'
विष्णु
की वामन स्वरूपा -त्रयंबक,वराह,कृपा के लिए पूजित एवं चंद्रग्रह पीड़ा नाशनी हैं |
दश
देवियों में बाईं तरफ भोगदात्री भुवनेश्वरी हैं।
भुवनेश्वरी
आदिशक्ति और मूल प्रकृति ,भुवनेश्वरी ऐश्वर्य की स्वामिनी हैं। भगवती भुवनेश्वरी -
पुत्र-प्राप्ति के लिए विशेष फलप्रदा है।
ये शाको और फल-मूल से प्राणियों का पोषणकर्त्री भुवनेश्वरी
'शताक्षी' तथा 'शाकम्भरी'
नाम से विख्यात हैं ।
पश्चिम
West दिशा में मुह कर पूजा करना चाहिए |
बीज
मन्त्र –ह्रीं
भुवनेश्वरी गायत्री मंत्र : ॐ नारायण्यै विदमहे भवनेश्वर्यै तन्नो देवी प्रचोदयात.
' ह्रीं भुवनेश्वर्ये ह्रीं नम:||
'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं सौ: नम: ।'
शाबर
मन्त्र-
॥ भुवनेश्वरी ॥
चतुर्थ
ज्योति भुवनेश्वरी प्रगटी ।
ॐ आदि ज्योति अनादि ज्योत ज्योत मध्ये परम ज्योत परम ज्योति मध्ये
शिव गायत्री भई उत्पन्न,
ॐ
प्रातः समय उत्पन्न भई देवी भुवनेश्वरी ।
बाला सुन्दरी
कर धर वर पाशांकुश अन्नपूर्णी दूध पूत बल दे बालका ऋद्धि सिद्धि भण्डार भरे,
बालकाना बल दे जोगी को अमर काया ।
चौदह
भुवन का राजपाट संभाला कटे रोग योगी का, दुष्ट को मुष्ट, काल कन्टक मार ।
योगी
बनखण्ड वासा,
सदा संग रहे भुवनेश्वरी माता ।
6छिन्नमस्ता
: मां चिंतापूर्णी,नृसिंह (विष्णु)
स्वरूप, राहू ग्रह के दोष नाशनी शक्ति हैं |
तीन
नेत्र वाली, श्याम वर्णा देवी मदन और रति
पर आसीन । सर कटा है | दैत्य अंत उपरांत ,रक्त पिपासा शांत न होने पर स्वयं शिरच्छेद
करने से ,कबंध से रक्त की तीन धाराएं प्रवाहित हुई | दो धाराएं उनकी सहचरियां अजया
और विजया की और एक धारा का रक्त देवी स्वयं पान करने लगी | नश्वर जगत अधिपति कबंध
की शक्ति छिन्नमस्ता है।(मार्कंडेय पुराण
व शिव पुराण) छिन्नमस्तिका की उपासना से भौतिक, वाद विवाद में विजय, शत्रुओं पर जय, सम्मोहन शक्ति मिलती हैं। पश्चिम में
कटे सिर को उठाए मोक्ष देने वाली छिन्नमस्ता हैं।
पूजा
समय-संध्याकाल में छिन्नमस्ता की उपासना से सरस्वती सिद्धि होती है।
पूर्व
EAST दिशा में मुह कर पूजा करना चाहिए |
छिन्नमस्तिका मंत्र गायत्री
मंत्र : ॐ वैरोचनायै विदमहे छिन्नमस्तायै धीमही तन्नो देवी प्रचोदयात.
देवी मंत्र : 'श्रीं ह्रीं ऎं वज्र वैरोचानियै ह्रीं
ह्रीं फट स्वाहा'|
श्रीं
क्लीं ह्रीं ऐं वज्रवैरोचनीये हूं हूं फट् स्वाहा।
शाबर
मन्त्र
पञ्चम
ज्योति छिन्नमस्ता प्रगटली
सत का
धर्म सत की काया,
ब्रह्म अग्नि में योग जमाया ।
काया
तपाये जोगी
(शिव गोरख) बैठा, नाभ कमल पर छिन्नमस्ता,
चन्द सूर में उपजी सुष्मनी देवी, त्रिकुटी महल
में फिरे बाला सुन्दरी, तन का मुन्डा हाथ में लिन्हा,
दाहिने हाथ में खप्पर धार्या ।
पी पी पीवे रक्त, बरसे त्रिकुट मस्तक पर
अग्नि प्रजाली, श्वेत वर्णी मुक्त केशा कैची धारी ।
देवी
उमा की शक्ति छाया,
प्रलयी खाये सृष्टि सारी ।
चण्डी, चण्डी
फिरे ब्रह्माण्डी भख भख बाला भख दुष्ट को मुष्ट जती, सती को
रख, योगी घर जोगन बैठी, श्री शम्भुजती
गुरु गोरखनाथजी ने भाखी ।
छिन्नमस्ता
जपो जाप, पाप कन्टन्ते आपो आप, जो जोगी करे सुमिरण पाप पुण्य
से न्यारा रहे ।
काल
ना खाये ।
7धूमावती : विष्णु के वराह स्वरूपा हैं |
—वामन,केतु ग्रह के दोष नाशिका देवी हैं |
अग्निकोण
में विधवा रूपिणी स्तंभन विद्या वाली धूमावती हैं।
ऋषि
दुर्वासा,
भृगु, परशुराम की मूल शक्ति रही हैं.
पूर्व दिशा में मुह कर पूजा करना चाहिए |भय,कष्ट
मुक्तिदायनी एवं कल्याणी हैं |
धूमावती
महाशक्ति स्वयं नियंत्रिका है। इसका । विधवा स्वरूपा ,कोई स्वामी नहीं है ।
मलिन
और भयंकर स्वरूप| कलह सृष्टि की देवी कलहप्रिया संज्ञा है. विपत्ति नाश, रोग
निवारण,
युद्ध जय दायनी है। लक्ष्मी की ज्येष्ठा हैं| चिंता मुक्त और भय मुक्त
करती हैं |
धुमावती गायत्री मंत्र : ॐ धुमावत्यै विदमहे संहारिण्यै धीमही तन्नो देवी प्रचोदयात.
'ऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा:'|
'धूं धूं धूमावती ठ: ठ:।' ॐ ह्सैं ह्स्क्ल्रीं
ह्स्त्रौः
ॐ धूं
धूं धूमावती स्वाहा ।
शाबर
मन्त्र
सप्तम
ज्योति धूमावती प्रगटली
ॐ
पाताल निरंजन निराकार,
आकाश मण्डल धुन्धुकार, आकाश दिशा से कौन आये,
कौन रथ कौन असवार, आकाश दिशा से धूमावन्ती आई,
काक ध्वजा का रथ अस्वार आई थरै आकाश,
विधवा रुप लम्बे हाथ, लम्बी नाक कुटिल नेत्र
दुष्टा स्वभाव, डमरु बाजे भद्रकाली, क्लेश
कलह कालरात्रि ।
डंका
डंकनी काल किट किटा हास्य करी ।
जीव
रक्षन्ते जीव भक्षन्ते जाजा जीया आकाश तेरा होये ।
धूमावन्तीपुरी
में वास, न होती देवी न देव तहा न होती पूजा न पाती तहा न होती जात न जाती तब आये
श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथ आप भयी अतीत ।
8बगलामुखी
,पीताम्बरा –मृत्युंजय शिव रूपा,विष्णु कूर्म स्वरुप,मंगल ग्रह के दोष नाशिका ।
जगदम्बा
पार्वती जी के पीछे ब्रह्मास्त्र एवं स्तंभन विद्यावती , शत्रु मर्दनी बगलामुखी
हैं।
श्री
कृष्ण एवं अर्जुन की शक्ति |
देवी
बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान है |
सुधा
समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय मण्डप में रत्नजडित सिहासन पर विराजती हैं |
रत्नमय
रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं.
हाथ
में शत्रु की जिह्वा और दूसरे हाथ में मुदगर है।
स्तंभन
शक्ति की अधिष्ठात्री,शत्रुनाशनी हैं |.
ब्रह्माण्ड स्वामिनी ,शत्रुनाश, वाकसिद्धि,
वाद विवाद में विजय बाधा से मुक्त जीवन देती है.
पीला
रंग प्रिय इसलिए पूजा में वस्त्र,वस्तु,पुष्प ,फल पीले रंग के हो|
दक्षिण
दिशा में निवास इसलिए दक्षिण दिशा में मुह कर पूजा करना चाहिए |
गायत्री-ॐ ह्लीं
ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भन-बाणाय धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात् ।
शाबर
मन्त्र
अष्टम
ज्योति बगलामुखी प्रगटली
ॐ सौ
सौ दुता समुन्दर टापू,
टापू में थापा सिंहासन पीला ।
संहासन
पीले ऊपर कौन बसे ।
सिंहासन
पीला ऊपर बगलामुखी बसे,
बगलामुखी के कौन संगी कौन साथी ।
कच्ची-बच्ची-काक-कूतिया-स्वान-चिड़िया,
ॐ
बगला बाला हाथ मुद्-गर मार,
शत्रु हृदय पर सवार तिसकी जिह्वा खिच्चै बाला ।
बगलामुखी मरणी करणी उच्चाटण धरणी, अनन्त
कोट सिद्धों ने मानी |
ॐ बगलामुखी रमे ब्रह्माण्डी मण्डे चन्दसुर फिरे खण्डे खण्डे ।
बाला बगलामुखी नमो न अष्टम ज्योति बगलामुखी
प्रगटी ।
9मातंगी :शिव की शक्ति उच्छिष्टचांडालिनी
, महापिशाचिनी, राजमांतगी, सुमुखी, वैश्यमातंगी,
कर्णमातंगी,
विष्णु के बुद्ध अवतार ,मातंग
मुनि की आराध्या- राजमांतगी
,सूर्य
ग्रह की
स्वामिनी
श्याम
वर्णी,त्रिनेत्र युक्ता-सूर्य, सोम और अग्नि
हैं।
मस्तक पर चंद्रमा,चन्द्र प्रभा,चार भुजाओं में
पाश,
अंकुश, खेटक और खडग है। दांपत्य जीवन स्वामिनी
|
गृहस्थ जीवन के सर्व सुख के लिए
मातंगी देवी की साधना श्रेयस्कर है।
वाणी और संगीत की
अधिष्ठात्री| पुरुषार्थ चतुष्ट्य की प्रदात्री हैं. सम्मोहन
की देवी |
वायव्य दिशा की स्वामिनी ,इसलिए पूजा NW वायव्य दिशा की और मुह कर करना चाहिए | अपने
पृथक2 स्वरूप शक्ति के कारण दक्षिण तथा पश्चिम की भी देवता हैं |
'ऊँ ह्नीं ऐ भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:'|
'श्री ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा।
ॐ
ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा ।
शाबर मन्त्र -
नवम ज्योति मातंगी
प्रगटली
ॐ
शून्य शून्य महाशून्य,
महाशून्य में ओंकार, ओंकार मे शक्ति, शक्ति अपन्ते उहज आपो आपना,
सुभय
में धाम कमल में विश्राम,
आसन बैठी, सिंहासन बैठी पूजा पूजो मातंगी बाला,
शीश पर शशि अमीरस प्याला हाथ खड्ग
नीली काया।
बल्ला पर अस्वारी उग्र उन्मत्त
मुद्राधारी, उद गुग्गल पाण सुपारी,
खीरे खाण्डे
मद्य मांसे घृत कुण्डे सर्वांगधारी।
बूँद
मात्रेन कडवा प्याला,
मातंगी माता तृप्यन्ते तृप्यन्ते।
ॐ
मातंगी, सुंदरी, रूपवन्ती, धनवन्ती,
धनदाती, अन्नपूर्णी, अन्नदाती,
मातंगी जाप मन्त्र जपे काल का तुम
काल को खाये ।
तिसकी रक्षा शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी करे ।
10कमला : लक्ष्मी और षोडशी
वर्ण
स्वर्ण, गजराज सूंड में सुवर्ण कलश लेकर मां को स्नान कराते हैं |
दरिद्रता
नाशिका , सुख-शांति,
धन-आय सौभाग्य दायिनी है। धन संपदा की आधिष्ठात्री|
सर्व
भोतिक सुख सृजिका |
कमला गायत्री मंत्र : ॐ महादेव्यै विदमहे बश्णिु पत्र्यै धीमही तन्नो देवी
प्रचोदयात.
मन्त्र
: 'हसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा:।
'ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं
कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:।'
मंत्र
: ॐ ह्रीं क्लीं कमला देवी फट् स्वाहा ।
शाबर
मन्त्र-
दसवीं
ज्योति कमला प्रगटली
ॐ
अयोनि शंकर ॐकार रूप,
कमला देवी सती पार्वती का स्वरुप ।
हाथ
में सोने का कलश,
मुख से अभय मुद्रा ।
श्वेत
वर्ण सेवा पूजा करे,
नारद इन्द्रा ।
देवी देवत्या ने किया जय ॐकार।
कमला
देवी पूजो केशर,
पान, सुपारी, चकमक चीनी
फतरी तिल गुग्गल सहस्र कमलों का किया हवन ।
कहे
गोरख, मन्त्र जपो जाप जपो ऋद्धि-सिद्धि की पहचान गंगा गौरजा पार्वती जान ।
जिसकी तीन लोक में भया मान ।
कमला
देवी के चरण कमल को आदेश ।
दश महाविद्या कवचम्
(कवच पढने का समय –
शाम को,मध्य रात्रि,रात्रि अंत के समय |
किस दिन पढ़े –
मंगलवार.शनिवार.चतुर्दशी ,अमावस्या शिव मंदिर या उनके समीप पढना सिद्धि मनोकामना पूरक |
कौन अवश्य पढ़े -
-तुला,मकर ,कन्या,मीन एवं कुम्भ राशी :मेष,मिथुन,कन्या,मकर,कुम्भ लग्न वालों,को अवश्य उपयोग करना चाहिए |)
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सदाशिव ऋषिर्देवि उष्णिक्छन्दः उदीरितम् ।
विनियोगश्च देवेशि सततं मन्त्र सिद्धये ॥ १॥
मस्तकं पार्वती पातु पातु पञ्चानन प्रिया ।
केशं मुखं पातु चण्डी भारती रुधिर प्रिया ॥ २॥
कण्ठं पातु स्तनं पातु कपालं पातु चैव हि ।
काली कराल वदना विचित्रा चित्र घण्टिनी ॥ ३॥
वक्षःस्थलं नाभि मूलं दुर्गा त्रिपुर सुन्दरी ।
दक्ष हस्तं पातु तारा सर्वाङ्गी सव्य मेव च ॥ ४॥
विश्वेश्वरी पृष्ठदेशं नेत्रं पातु महेश्वरी ।
हृत्पद्मं कालिका पातु कण्ठं पातु नभो गतम् ॥ ५॥ उग्रतारा नभोगतम्
नारायणी गुह्यदेशं मेढ्रं मेढ्रेश्वरी तथा ।
पाद युग्मं जया पातु सुन्दरी चाङ्गुलीषु च ॥ ६॥
षट्पद्म वासिनी पातु सर्व पद्मं निरन्तरम् ।
इडा च प्ङ्गला पातु सुषुम्ना पातु सर्वदा ॥ ७॥
धनं धनेश्वरी पातु अन्नपूर्णा सदावतु ।
राज्यं राज्येश्वरी पातु नित्यं मां चण्डिकाऽवतु ॥ ८॥
जीवं मां पार्वती सम्पातु मातङ्गी पातु सर्वदा ।
छिन्ना धूमा च भीमा च भये पातु जले वने ॥ ९॥
कौमारी चैव वाराही नारसिंही यशो मम ।
पातु नित्यं भद्रकाली श्मशान आलय वासिनी ॥ १०॥
उदरे सर्वदा पातु सर्वाणी सर्वमङ्गला ।
जगन्माता जयं पातु नित्यं कैलासवासिनी ॥ ११॥
शिव प्रिया सुतं पातु सुतां पर्वत नन्दिनी ।
त्रैलोक्यं पातु बगला भुवनं भुवनेश्वरी ॥ १२॥
सर्वाङ्गं पातु विजया पातु नित्यञ्च पार्वती । सर्वाङ्गं सर्व निलया
चामुण्डा पातु मे रोमकूपं सर्वार्थ साधिनी ॥ १३॥
ब्रह्माण्डं मे महाविद्या पातु नित्यं मनोहरा ।
लिङ्गं लिङ्गेश्वरी पातु महापीठे महेश्वरी ॥ १४॥
सदाशिव प्रिया पातु नित्यं पातु सुरेश्वरी ।
गौरी मे सन्धि देशञ्च पातु वैत्रिपुरेश्वरी ॥ १५॥
सुरेश्वरी सदा पातु श्मशाने च शवेऽवतु ।
कुम्भके रेचके चैव पूरके काम मन्दिरे ॥ १६॥
कामाख्या काम निलयं पातु दुर्गा महेश्वरी ।
डाकिनी काकिनी पातु नित्यं च शाकिनी तथा ॥ १७॥
हाकिनी लाकिनी पातु राकिनी पातु सर्वदा ।
ज्वालामुखी सदा पातु मुख्य मध्ये शिवाऽवतु ॥ १८॥
तारिणी विभवे पातु भवानी च भवेऽवतु ।
त्रैलोक्य मोहिनी पातु सर्वाङ्गं विजयाऽवतु ॥ १९॥
राजकुले महाद्युते सङ्ग्रामे शत्रु सङ्कटे ।
प्रचण्डा साधकं माञ्च पातु भैरव मोहिनी ॥ २०॥
श्रीराज मोहिनी पातु राजद्वारे विपत्तिषु ।
सम्पद्प्रदा भैरवी च पातु बाल बलं मम ॥ २१॥
नित्यं मां शम्भु वनिता पातु मां त्रिपुरान्तका ।
इत्येवं कथितं रहस्यं सर्व कालिकम् ॥ २२॥
भक्तिदं मुक्तिदं सौख्यं सर्व सम्पत्प्रदायकम् ।
यः पठेत् प्रातरुत्थाय साधकेन्द्रो भवेद्भुवि ॥ २३॥
कुजवारे चतुर्दश्याममायां मन्दवासरे ।
यः पठेत् मानवो भक्त्या स याति शिव मन्दिरम् ॥ २४॥
गुरौ गुरुं समभ्यर्च्य यः पठेत्साधकोत्तमः ।
स याति भवनं देव्याः सत्यं सत्यं न संशयः ॥ २५॥
एवं यदि वरारोहे पठेद्भक्ति परायणः ।
मन्त्र सिद्धिर्भवेत्तस्य चाचिरान्नात्र संशयः ॥ २६॥
तदैव ताम्बुलैः सिद्धिर्जायते नात्र संशयः ।
अशव सिद्धिश्चिता सिद्धिर्दुर्लभा धरणी तले ॥ २९॥
अयत्न सुभगा सिद्धिस्ताम्बूलान्नात्र संशयः ।
निशा मुखे निशायाञ्च महाकाले निशान्तके ।
पठेद्भक्त्या महेशानि गाणपत्यं लभेत् सः ॥ ३०॥
इति श्रीमुण्डमालातन्त्रे दशमपटले पार्वतीश्वरसंवादे मन्त्रसिद्धिस्तोत्रं कवचं अथवा महाविद्याकवचं सम्पूर्णम् ॥
मुण्डमालातन्त्रे दशमः पटलः श्लोकाः ५७-८६
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