सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

– सामवेदिय रक्षा बंधन. हरतालिका तीज ,गुरु तृतीया ,वैदिक रक्षासूत्र बनाये, शुभ मुहूर्त .व्रत से विवाह एवं दाम्पत्य सुख वृद्धि .

 

 सामवेदिय रक्षा बंधन. हरतालिका तीज ,वैदिक रक्षासूत्र बनाये बांधें |

 (ब्राह्मण वर्ग के महापर्व- श्रावणी-पूर्णिमा-चतुर्दशी एवं भाद्र हस्त-त्रयोदशी |

(जन्म से शूद्र,यज्ञोपवीत संस्कार उपरांत-“द्विज”| )

-वैदिक कालीन परम्परा -हरतालिका तीज पर्व सामवेदीय वर्ग विशेष रूप से सामवेदीय कश्यप (कान्यकुब्ज, शांडिल्य) गौतम, गोत्र वालो  का रक्षा बंधन | श्रृंगी ऋषि - सामवेदियों का उपाकर्म सिंह के सूर्य में भाद्रपद मास में ही है।

-जनेऊ परिवर्तन एवं जौ के आटे में दही मिलाकर घी की सामवेद /ऋग्वेद के मंत्रों से सावित्री, ब्रह्मा, श्रद्धा, मेधा, प्रज्ञा, स्मृति, छंद और ऋषि को आहुति देते है।

राखी नारी वर्ग के लिए भी उपयोगी |सभी वर्ग के राखी पर्व का लाभ उठा सकते हैं क्योकि ज्योतिष की दृष्टी से विशेष अद्भुतएवं जिनको गोत्र ज्ञात नहीं उनके लिए  शास्त्र में कहा गया है की उन सबको  "कश्यप गोत्र" मानना चाहिए .

-हरतालिका तीज को ही - राजा हिमवान की पुत्री पार्वती को  भगवान शिव ने पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। सौभाग्य कामना से अविवाहित एवं सौभाग्य की रक्षा हेतु सौभाग्यवती इस व्रत को करती हैं |राखी- के लिए उपयोगी समय -

06:11:53 से 10:33:42 दोपहर तक - |

मुहूर्त,तिलक लगाने का मंत्र ! राशि अनुसार राखी का रंग |

-संपूर्ण भारत में यहाँ तक कुमाऊं के तिवारी बंधुओं द्वारा यज्ञोपवीत धारण तथा रक्षासूत्र बंधन का पर्व 'हरताली' मनाया जाता  है। उत्तरप्रदेश,कर्नाटक,मध्यप्रदेश,आन्ध्र,तमिलनाडू, उत्तराखंड में तिवारी, तिवाड़ी, तेवारी,तेवाड़ी, त्रिपाठी, त्रिवेदी आदि उपनामों से प्रचलित सामवेदी ब्राह्मण आज के दिन ‘हस्त’ नक्षत्र में ही ‘हरताली’ तीज पर जनेऊ धारण करते हैंएवं राखी बाँधते हैं ।

पौराणिक कथन के अनुसार जिनको अपने गोत्र का ज्ञान नहीं उनका गोत्र कश्यप ही मान्य है |सभी धार्मिक कृत्यों में गोत्र का स्मरण प्रारंभ में ही अपने नाम के साथ करना होता है |गोत्र सप्त ऋषियों के नाम पर आधारित हैं | सृष्टि सृजन  कुल के प्रमुख आदि ऋषि कश्यप वर्णित इसलिए गोत्र ज्ञान के अभाव में “कश्यप-गोत्र”मान्य है |

- सामगानामुपाकर्म’ (हरताली) पर हस्त नक्षत्र देव तर्पण, ऋषि तर्पण व पितर तर्पण आदि होते हैं।

-आगामी एक वर्ष तक उर्जा,सुरक्षा या आकस्मिक दुर्घटना से रक्षा का कवच –मुहूर्त विशेष एवं मन्त्र प्रभाव  |

 सामवेदियों का रक्षाबंधन श्रेष्ठ रक्षा बंधन |

ज्योतिष की दृष्टी से वेदों के उपाकर्म एवं रक्षा बंधन के विशेष अति महत्वपूर्ण दिन ग्रह विशेष स्थिति में निर्मित होते हैं जो आगामी एक वर्ष तक उर्जा,सुरक्षा या आकस्मिक दुर्घटना से रक्षा का कवच होते हैं  |”

1.श्रावण चतुर्दशी  को  ऋगवेदियों का उपाकर्म(जनेऊ परिवर्तन) एवं रक्षा बंधन पर्व होता है  |

2.श्रावण पूर्णिमा को यजुर्वेदियों का रक्षा बंधन पर्व होता है  |

रक्षाबंधन की वैज्ञानिकता,उपादेयता,संबंधों की पवित्रता,स्नेह,मनोबल वृद्धि -

1- हृदयाघात सुरक्षा-वैज्ञानिक दृष्टि से भी दाहिने हाथ की कलाई मे बाँधे जाने वाले इस धागे का अलग ही महत्व है हमारे हाथ के रक्त वाहनियो का मुख्य संबंध सीधे हमारे हृदय से है। इसलिए हाथ मे बंधे हुए धागों के दबाव से रक्त का आवागमन हृदय तक एक समान बिना उतार चढ़ाव के बना रहता है।जिससे हृदयाघात जैसी बिमारियो से रक्षा होती है।

आर्ष ज्योतिष ऋषि-वराह मिहिर के अनुसार - शुभ समय 6.48-7.45; 11:55-12:45;
(गुलिक दोष नहीं लगता है )

 .यजुर्वेदीय .रक्षा बंधन उपाक्रम

     रक्षा वस्तु / राखी कोई भी किसी को भी उसकी आयु,रक्षा,प्रगति के उद्देश्य से बाँध सकता है ,केवल बहन  –भाई का ही पर्व नहीं है |

   तिलक लगाने का मंत्र !
पुण्यं यशस्यम आयुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।

कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यम अतुलं बलम् ।

ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्य अहम् ।।

रक्षा बंधन मन्त्र-
रक्षासूत्र बांधते समय श्लोक - जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि  को बांधा गया था, उसी रक्षा सूत्र के बन्धन से मैं तुम्हें बांधती हूं यह तुम्हारी रक्षा करेगा।

मन्त्र :- येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।  तेन त्वामनु बध्नामि रक्षेमाचल मा चल।
      बनायें शुद्ध वैदिक रक्षासूत्र
.

हरी दुर्वा, चावल, केसर, हल्दी, चंदन चूर्ण, सरसों(कालि,पीली,श्वेत) कोड़ी व गोमती चक्र एक पीले या लाल रंग के रेशमी कपड़े में बांध लें या सिलाई करने के पश्चात इसे कलावे मौली  में पिरो दें। राखी तैयार हो जायेगी।

राखी कच्चे सूत. कच्चे सूत के धागे को हल्दी जल से गीला करे ।

पूजा तिलक सरल विधि:

     अष्टकमल दल 8 पंखुरी वाला कमल पूर्व या उत्तर दिशा में स्वच्छ स्थान या लकडी पर बनाऐ। यह श्वेत लाल रंग से निर्मित हो या चावल रंग कर बनाऐ।अभाव में आटे से भी बना सकते है।

   - दीपक.अपनी बांयी ओर तेल महुआ,तिल ,चमेली उतम का दीपक एवं दाहिनी ओर घीका दीपक रखे। दाहिनी ओर जल कलश रखे। दीपक की वर्तिका पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिये।

-कलश पर स्वस्तिक बनाकर उस पर एक कटोरी में चावल रखे |उस पर नारियल आडी स्थिति में रखे नारियल का मोटा भाग अपनी ओर रखे।

-थाली में श्वेत सरसो, केसर, हल्दी ,चंदन, श्वेत बिना टूटे हुए चावल या जौ हरी दूव रखे। इनको गीला कर भाई को तिलक करे |

- ’ अपने गुरु, कुल देवता, गणेश जी,  को रक्षासूत्र अर्पित करे। इसके पश्चात यजमान,अधिकारी, मंत्री, भाई, शिष्य के दाहिने हाथ की कलाई में रक्षासूत्र बांधे |

-ध्यातव्य- वैदिक नियम तात्कालिक परिस्थिति के अनुरूप बनाये गए |

आज नारी वर्ग पुरुष के सामान ही ज्ञान एवं कार्य -कर्मठा ,क्रियाशीला ( आन्तरिक तथा बाह्य दोहरे दायित्व का निर्वहन  कर रही) है,इसलिए उसको भी एक वर्ष की अवधि के लिए अनिष्ट  नाशक ,सुरक्षा कवच के रूप में गुरु,पंडित से मौली कलावा या रक्षा / राखी बंधवाना चाहिए |

रक्षा सूत्र मन्त्र-

मंत्र. येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः

    तेज त्वाम अनुबह नामि रक्षे मा चल मा चल।

जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबन्धन से मैं तुम्हें बांधता हूं जो तुम्हारी रक्षा करेगा।“

रक्षाबंधन के पर्व पर राशि अनुसार राखी बांधे .

1 मेष राशि: गहरे लाल रंग के धागे हो। लाल चंदन पूर्व दिशा की ओर मुह हो।

2 वृषभ राशि - अनेक रंगो के साथ श्वेत रंग अवश्य होना चाहिये। श्वेत या विभिन्न रंग वाला पुष्प भाई को दे। श्वेत चंदन मिश्रित टीका हो। उत्तर दिशा या आग्नेय की ओर आपका मुह हो।

3 मिथुन: हरा रंग राखी में अवश्य हो।

शमी पत्र या विश्व पत्र पुष्प के साथ हो पुष्प पीले या श्वेत रंग के हो।

मुह उत्तर दिशा की ओर बहन का होना चाहिए।

4 कर्क राशि - श्वेत नारंगी रंग की राखी हो। पूर्व या वायत्य दिशा की ओर टीका करने वाले का मुह हो। जल मिश्रित टीका लगाए।

5 सिंह - लाल गुलाबी रंग की राखी हो। पूर्व दिशा में बहिन का मुह हो लाल रंग के पुष्पो का प्रयोग करे।

6 कन्या - हरे रंग की राखी हो। उत्तर दिशा की ओर मुह हो। तुलसी तथा बेलपत्र अवश्य दे। श्वेत रंग के पुष्पो का प्रयोग करे।

7 तुला राशि - आग्नेय दिशा की ओर मुह हो। यज्ञभस्म टीका सामग्री में हो पानी के स्थान पर यदि इत्र सेट स्प्रे को मिलाया जावे तो श्रेष्ठ होगा। बेला मोगरा चमेली चांदनी आदि श्वेत पुष्प हो।

8 वृश्चिक - ईशान पूर्व दिशा की ओर मुह हो टीका लगाते समय। लाल रंग या कत्थई रंग की रोली आदि हो लाल चंदन मिश्रित हो।

9 धनु मीन - या पूर्व दिशा की ओर मुह हो पीले रंग के पुष्प हो टीका सामग्री में हल्दी केसर का मिश्रण करे।

10 मकर व कुंभ राशि - नीले रंग वाली राखी हो। शमी पत्र अवश्य दे। टीका सामग्री में भस्म अवश्य मिलाए। अपराजिता पुष्प श्रेष्ठ है अन्यथा रंग बिरंगे पुष्प हो उत्तर दिशा की ओर मुह हो।

 

 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चाहिए । पिता जीवित हो तो, गया श्राद्ध न करें । २. मां की मृत्यु (सौभाग्यवती स्त्री) किसी भी तिथि को हुईं हो , श्राद्ध केवल

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहि

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती है | अवि

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा जाता है   | पितृ पक्ष में अपने मित्रगण के मरण तिथि

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक होता है | पितृ श्राद्ध किस देव से स

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामान्य रूप से सभी मंगल कार्यों क

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -