महालक्ष्मी व्रत -16 दिन की पूजा
(निर्धनता /दरिद्रता नाशक लक्ष्मी पूजा के 16 दिन )
महालक्ष्मी पूजा
महालक्ष्मी व्रत -
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ समापन आश्विन मास के कृष्ण
पक्ष की अष्टमी तिथि को होगा|
इस व्रत में देवी लक्ष्मी की पूजा होती है.
महालक्ष्मी व्रत, कथा
भाद्रपद के शुक्लपक्ष की अष्टमी से
शुरू और आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तक होती है। मां लक्ष्मी के गजलक्ष्मी
नामकी की आराधना की जाती हैक्योकि गज या
हठी वाहन पर लक्ष्मी जी होती है ।
सामग्री-चंदन, ताल,पत्र, फूलों की माला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी और नारियल ।
16 में पहले दिन से एक 16 गांठ का पीला
कालवा /मौली हाथ में बांधा जाता है। घर में धन के आभाव दूर होते है।
ऐरावत हाथी की पूजा
कैसे शुरू हुई ?
हस्तिनापुर में
महालक्ष्मी पर्व उत्सव पर महारानी गांधारी ने पूरे नगर को आमंत्रित किया था,
लेकिन कुंती को आमंत्रित नहीं किया । पार्थिव या मिट्टी के हाथी की पूजा होती है
इसलिए गांधारी के कौरव पुत्रों ने मिट्टी का विशालकाय हाथी बनाया।
पुरे राज्य में उत्सव एवं सर्व सामान्य आमंत्रित
राजमहल द्वारा परन्तु कुंती की उपेक्षा हुई | रानी गांधारी द्वारा अनामंत्रित,अपमानित
कुंती बहुत व्यथित हुई ।बिना हाथी के लक्ष्मी पूजा भी नहीं हो सकती थी | माँ कुंती
को दुखी देख कर बेटे दुखी हुए | अर्जुन ने दुखी मां से कहा –“ पूजा की तैयारी करिए
, मिट्टी नहीं जीवित हाथी लेकर आउंगा
आपके लिए ।
कुंती के मना करने के बाद भी अर्जुन स्वर्गलोक गए। अर्जुन ने इंद्र को
वास्तु स्थिति से अवगत करते हुए , ऐरावत हाथी धरती पर ले जाने की स्वीक्रति ली |अर्जुन
ने ऐरावत हाथी को मां कुंती के सामने पूजा हेतु खड़ा कर दिया । एरावत हठी का समाचर
बिजली की तरह हस्तिनापुर में फ़ैल गया |कुंती को ऐरावत हाथी की पूजा करते देख ,पूरा
नगर उमड़ पड़ा | अंततः गांधारी को पश्चाताप हुआ | ऐरावत की पूजा की प्रापर प्रारंभ
हुई ।
एक सोलह शब्दों की
कथा प्रचलित:
महालक्ष्मी व्रत की
कई कथाएं प्रचलित हैं। उनमे एक रोचक लघु एक सोलह शब्दों की कथा भी है। इस सोलह
बोल की कथा को कहने या फिर सुनने के बाद मां लक्ष्मी पर फूल व चावल छिड़के जाते
हैं।
16 शब्दों की कथा -
'अमोती दमो तीरानी, पोला पर ऊचो सो पर पाटन
गांव जहां के राजा मगर सेन दमयंती रानी,' कहे कहानी। सुनो हो महालक्ष्मी देवी
रानी, हम से कहते तुम से सुनते सोलह बोल की कहानी॥'
कई कथाएं प्रचलित
कथा
के अनुसार एक बार स्वर्ग के राजा इन्द्र ऐरावत हाथी पर सवार होकर कहीं जा रहे थे।
तभी उन्हें रास्ते में दुर्वासा ऋषि मिले। उनके गले में एक माला पड़ी थी। उन्होंने
वह माला अपने गले से उतार कर इन्द्र के ऊपर फेंक दी। लेकिन इन्द्र ने उस माला को
अपने हाथी ऐरावत के गले में डाल दिया। उस माला से तीव्र गंध आ रही थी। जिसके कारण
ऐरावत ने उस माला को उतारकर पृथ्वी पर फेंक दिया।
यह
देखकर दुर्वासा बहुत क्रोधित हुए उन्होंने इसे अपमान समझा और देवराज इन्द्र को शाप
दिया कि हे 'इन्द्र' ऐश्वर्य के अहंकार में आकर तुमने मेरी दी
हुई इस माला का निरादर किया है। यह केवल एक माला नहीं बल्कि लक्ष्मी का धाम थी।
इसलिए तुम्हारे अधिकार में जो भी तीनों लोकों की लक्ष्मी है, वह शीघ्र ही अदृश्य हो जाएगी। दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण तीनों लोक
श्रीहीन हो गए और इन्द्र की राज्यलक्ष्मी समुद्र में चली गई। तब सभी देवताओं ने
लक्ष्मी जी से प्रार्थना की जिससे महालक्ष्मी प्रकट हुई, तब
देवराज इंद्र ने मां लक्ष्मी की स्तुति की जिसे महालक्ष्मी रक्षा स्तोत्र कहा जाता
है।
नमस्ते अस्तु महामाये श्री पीठे सु रपूजिते ।
शङ्ख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥ 1॥
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि ।
सर्व पाप हरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥ 2॥
सर्वज्ञे सर्व वरदे सर्वदुष्टभयङ्करि ।
सर्व दुःख हरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥ 3॥
सिद्धि बुद्धिप्र दे देवि भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि ।
मन्त्रपूते सदा देवि महा लक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥ 4॥
आद्यन्त रहिते देवि आद्य शक्ति महेश्वरि ।
योगजे योगसम्भूते महा लक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥ 5॥
स्थूल सूक्ष्म महारौद्रे महा शक्तिमहोदरे ।
महा पापहरे देवि महा लक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥ 6॥
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि ।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि
नमोऽस्तुते ॥ 7॥
आदि लक्ष्मी-
सुमनस वंदित सुंदरि माधवि, चंद्र सहोदरि हेममये
मुनिगण वंदित मोक्षप्रदायनि, मंजुल भाषिणि
वेदनुते ।
पंकजवासिनि देव सुपूजित, सद्गुण वर्षिणि
शांतियुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, आदिलक्ष्मि परिपालय
माम् ॥ १ ॥
धन लक्ष्मी -
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि, वैदिक रूपिणि वेदमये
क्षीर समुद्भव मंगल रूपिणि, मंत्रनिवासिनि
मंत्रनुते ।
मंगलदायिनि अंबुजवासिनि, देवगणाश्रित पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, धान्यलक्ष्मि परिपालय
माम् ॥ २ ॥
धैर्य लक्ष्मी-
जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि, मंत्र स्वरूपिणि मंत्रमये
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद, ज्ञान विकासिनि
शास्त्रनुते ।
भवभयहारिणि पापविमोचनि, साधु जनाश्रित पादयुते
जय जयहे मधु सूधन कामिनि, धैर्यलक्ष्मी
परिपालय माम् ॥ ३ ॥
गज लक्ष्मी –
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि, सर्वफलप्रद शास्त्रमये
रधगज तुरगपदाति समावृत, परिजन मंडित लोकनुते ।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित, ताप निवारिणि
पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, गजलक्ष्मी रूपेण पालय
माम् ॥ ४ ॥
संतान लक्ष्मी-
अयिखग वाहिनि मोहिनि चक्रिणि, रागविवर्धिनि ज्ञानमये
गुणगणवारधि लोकहितैषिणि, सप्तस्वर भूषित
गाननुते ।
सकल सुरासुर देव मुनीश्वर, मानव वंदित पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, संतानलक्ष्मी परिपालय
माम् ॥ ५ ॥
विजय लक्ष्मी -
यल===विजय-
विजय कमलासिनि सद्गति दायिनि, ज्ञानविकासिनि गानमये
अनुदिन मर्चित कुंकुम धूसर, भूषित वासित
वाद्यनुते ।
कनकधरास्तुति वैभव वंदित, शंकरदेशिक मान्यपदे
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, विजयलक्ष्मी परिपालय
माम् ॥ ६ ॥
विद्या लक्ष्मी
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि, शोकविनाशिनि रत्नमये
मणिमय भूषित कर्णविभूषण, शांति समावृत
हास्यमुखे ।
नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि, कामित फलप्रद
हस्तयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, विद्यालक्ष्मी सदा
पालय माम् ॥ ७ ॥
धन लक्ष्मी-
धिमिधिमि धिंधिमि धिंधिमि-दिंधिमि, दुंधुभि नाद सुपूर्णमये
घुमघुम घुंघुम घुंघुम घुंघुम, शंख निनाद
सुवाद्यनुते ।
वेद पूराणेतिहास सुपूजित, वैदिक मार्ग
प्रदर्शयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, धनलक्ष्मि रूपेणा
पालय माम् ॥ ८ ॥
अष्ट
लक्ष्मी से याचना -
अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे
कामरूपिणि ।
विष्णुवक्षः स्थला रूढे भक्त मोक्ष प्रदायिनि ॥
शंख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते जयः ।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मंगलं शुभ मंगलम् ॥
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